Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 432
________________ ( ३६४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र commander of the brigade of palace guards and asked, “Beloved of gods! You have been to many villages (etc.) as my emissary; tell me if you have ever seen such a bathing celebration at palaces of any of the kings or landlords.” ___ सूत्र ७७. तए णं से वरिसधरे रुप्पिं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वदासी-“एवं खलु सामी ! अहं अन्नया तुब्भे णं दोच्चेणं मिहिलं गए, तत्थ णं मए कुंभगस्स रण्णो धूयाए, पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहरायवरकन्नयाए मज्जणए दिट्टे, तस्स णं मज्जणगस्स इमे सुबाहूए दारियाए मज्जणए सयसहस्सइमं पि कलं न अग्घेइ। ___ सूत्र ७७. रक्षक ने हाथ जोड़कर कहा-“हे स्वामी ! एक बार मैं आपके दूत के रूप में मिथिला गया था। वहाँ मैंने राजा कुंभ और रानी प्रभावती की पुत्री मल्ली का स्नानोत्सव देखा था। सुबाहुकुमारी का यह स्नानोत्सव उसके लाखवें अंश के बराबर भी नहीं है।" 77. The commander replied with joined palms, “Sire! Once I had gone to Mithila as your emissary. There I chanced to witness the bathing ceremony of Princess Malli, the daughter of King Kumbh and Queen Prabhavati. The bathing ceremony of princess Subahu is not even a millionth fraction as good as that of Princess Malli.” सूत्र ७८. तए णं से रुप्पी राया वरिसधरस्स अंतिए एयम8 सोच्चा णिसम्म सेसं तहेव मज्जणग-जणियहासे दूतं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-"जेणेव मिहिला नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। सूत्र ७८. यह सुन-समझकर उस स्नानोत्सव के वर्णन से प्रभावित तथा आकर्षित राजा रुक्मि ने अपने दूत को बुलाया और मल्लीकुमारी से विवाह के प्रस्ताव सहित उसे मिथिला के लिए रवाना कर दिया। ___78. Impressed by this, King Rukmi called his emissary and sent him to Mithila with a marriage proposal for Princess Malli. काशीराज शंख सूत्र ७९. तेणं कालेणं तेणं समएणं कासी नामं जणवए होत्था। तत्थ णं वाणारसी नाम नयरी होत्था। तत्थ णं संखे नामं राया कासीराया होत्था। सूत्र ७९. काल के उस भाग में काशी नाम का एक जनपद था जिसकी वाराणसी नाम की नगरी में काशीराज शंख राज्य करते थे। OrA SAIRATNA PARTNA TYPER (364) JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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