Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 435
________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली (३६७) Ta> M Omes ल ATM COMSADAV यादा MARA सूत्र ८३. देश से निकल जाने का दंड पाकर वे सुनार अपने-अपने घर लौटे और अपने कपड़े-लत्ते, बर्तन-भाँड़े व औजार-पाती लेकर मिथिला नगरी के बीच होते हुए बाहर निकल गये। विदेह जनपद से निकलकर वे काशी जनपद में वाराणसी नगरी पहुँचे। नगर के बाहर उद्यान में अपनी गाड़ियाँ खड़ी कर वे वाराणसी नगरी के बीच होते राजा शंख के दरबार में पहुंचे। हाथ जोड़कर राजा का अभिनन्दन किया और भेंट सामग्री राजा के सम्मुख रख दी। फिर वे राजा से बोले 83. Getting this punishing order the goldsmiths returned to their respective homes; collected their cloths, utensils, instruments, and other necessary things; and left the town. Leaving the Videh country they entered the Kashi country and arrived in Varanasi city. They parked their vehicles in a garden outside the city and arrived at the court of King Shankh. They greeted the king with joined palms, placed gifts before him and submitted सूत्र ८४. “अम्हे णं सामी ! मिहिलाओ नयरीओ कुंभएणं रण्णा निव्विसया आणत्ता समाणा इहं हव्वमागया, तं इच्छामो णं सामी ! तुब्भं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुब्बिग्गा सुहं सुहेणं परिवसिउं।" तए णं संखे कासीराया ते सुवण्णगारे एवं वयासी"किं णं तुब्भे देवाणुप्पिया कुंभएणं रण्णा निव्विसया आणत्ता?' तए णं ते सुवण्णगारा संखं एवं वयासी-“एवं खलु सामी ! कुंभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए। तए णं से कुंभए सुवण्णगारसेणिं सदावेइ, सद्दावित्ता जाव निव्विसया आणत्ता।" सूत्र ८४. “हे स्वामी ! राजा कुम्भ के द्वारा मिथिला नगरी से निर्वासित होकर हम सीधे यहाँ आये हैं। हम आपकी भुजाओं की छाया में निर्भय और निरुद्वेग होकर सुख-शान्ति से रहना चाहते हैं।" काशीराज ने प्रश्न किया-“देवानुप्रियो ! राजा कुंभ ने तुम्हें देश निकाला क्यों दिया?" सुनारों ने उत्तर दिया-"स्वामी ! राजा कुम्भ की पुत्री मल्लीकुमारी के कुण्डल का जोड़ खुल गया था। राजा ने हमें बुलाकर उसे ठीक करने को कहा और वैसा न कर पाने पर उन्होंने हमें निर्वासित कर दिया।" 84. “Sire ! After being exiled by King Kumbh from Mithila we have come here straight-away. We want to settle down here, in peace and without any fear or disturbance, under your protection.” CHIER moonmaye CHAPTER-8 : MALLI (367) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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