Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 441
________________ आठवाँ अध्ययनः मल्ली ( ३७३) O लेबल 04HIRO and Rahe ना Malladinna lost his temper at this statement of his governess and said, "Who is that ill fated and foolish artist who has made this portrait of my respected elder sister?" and he ordered the artist to be killed. सूत्र ९४. तए णं सा चित्तगरसेणी इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेइ, वद्धावित्ता एवं वयासी "एवं खलु सामी ! तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगरलद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, जस्स णं दुपयस्स वा जाव णिव्वत्तेति, तं मा णं सामी ! तुब्भे तं चित्तगरं वज्झं आणवेह। तं तुब्भे णं सामी ! तस्स चित्तगरस्स अन्नं तयाणुरूवं दंडं निव्वत्तेह।" __ सूत्र ९४. इस घटना की जानकारी मिलते ही चित्रकारों की वह मण्डली कुमार के पास आई और हाथ जोड़ अभिनन्दन कर उनसे प्रार्थना की-"स्वामी ! उस चित्रकार को ऐसी विशिष्ट योग्यता प्राप्त है कि वह किसी भी वस्तु की पूर्ण अनुकृति उसका एक अवयव देखकर ही बना सकता है। अतः हे स्वामी ! आप उसके वध की आज्ञा न देकर अन्य कोई उपयुक्त दण्ड देने की कृपा करें।" 94. When the group of artists became aware of this development they came to the prince, greeted him and appealed, "Sire ! That artist has the astonishing ability to paint a subject completely even if he just has a glimpse of a small part of its body. As such, we appeal for your mercy to reduce his sentence." निर्वासित चित्रकार सूत्र ९५. तए णं से मल्लदिन्ने तस्स चित्तगरस्स संडासगं छिंदावेइ, निव्विसयं आणवेइ। तए णं से चित्तगरए मल्लदिनेणं निव्विसए आणत्ते समाणे सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाओ नयरीओ णिक्खमइ, णिक्खमित्ता विदेहं जणवयं मज्झमज्झेणं जेणेव हत्थिणाउरे नयरे, जेणेब कुरुजणवए, जेणेव अदीणसत्तू राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करित्ता चित्तफलगं सज्जेइ, सज्जित्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नगाए पायंगुट्ठाणुसारेणं रूवं णिव्वत्तेइ, णिव्वत्तित्ता कक्खंतरंसि छुब्भइ, | छुब्भइत्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता हत्थिणापुरं नयरं मज्झमज्झेणं जेणेव Og OME CHAPTER-8 : MALLI (373) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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