Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 420
________________ له ( ३५४ ) shall sink it in the sea. You will be possessed by the feeling of misery, your meditation will be interrupted and you will die a premature death." ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र ६१. तए णं से अरहन्नए समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी- “अहं णं देवाप्पिया ! अरहन्नए णामं समणोवासए अहिगयजीवाजीवे, नो खलु अहं सक्का केइ देवेण वा जाव निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभेत्तए वा विपरिणामेत्तए वा, तुमं णं जां सद्धा तं करेहि त्ति कट्टु अभीए जाव अभिन्नमुहराग-णयणवन्ने अदीणविमणमाणसे निच्चले निष्फंदे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ । सूत्र ६१. अर्हन्नक ने उस देव को मन ही मन उत्तर दिया – “देवानुप्रिय ! मैं अर्हन्नक नाम का श्रमणोपासक हूँ और जड़ तथा चेतन के स्वरूप को जानता हूँ। मुझे विश्वास है। कि कोई भी देव, दानव, आदि मुझे निर्ग्रन्थ के उपदेश से विमुख या क्षुब्ध नहीं कर सकता और न उनके विरोध में ले जा सकता । अतः जो तुम्हारे मन में आये वह करो।" यह विचार कर अर्हन्नक पहले के समान ही निर्भय हो बिना किसी परिवर्तन के निश्चल, निस्पन्द और मौन हो धर्मध्यान में लीन रहा । 61. Arhannak replied silently, “Beloved of gods! I am Arhannak, the Shramanopasak, who has the knowledge of the fundamentals like matter and soul. I am confident that no divine or demonic power can disturb my faith in the word of the Nirgranth and turn me against it. As such, you may do what you like." With these thoughts Arhannak remained absorbed in his spiritual meditation with courage, serenity, stability, and silence. सूत्र ६२. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे अरहन्नगं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी - "हं भो अरहन्नगा ! " धम्मज्झाणोवगए विहर । DEMO सूत्र ६२. उस दिव्य पिशाच आकृति ने दुबारा - तिबारा अर्हन्नक को पूर्ववत् धमकी दी और अर्हन्नक मन ही मन पूर्ववत् उत्तर देकर धर्म ध्यानमग्न रहा । 62. The demonic apparition again and again threatened but Arhannak still gave the same reply and continued his meditation. Jain Education International सूत्र ६३. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे अरहन्नगं धम्मज्झाणोवगयं पासइ, पासित्ता बलियतरागं आसुरुते तं पोयवहणं दोहिं अंगुलियाहिं गिण्हइ, गिण्हित्ता सत्तट्ठतलाई जाव अरहन्नगं एवं वयासी- "हं भो अरहन्नगा ! अपत्थियपत्थिया ! णो खलु कप्पइ तव सीलव्यय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण - पोसहोववासाइं तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए विहरइ । ( 354 ) JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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