Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 411
________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ( ३४७) ANDRA श्री QAR सूत्र ५१ तओ समाणिएसु पुप्फबलिकम्मेसु, दिनेसु सरस-रत्तचंदण-दद्दरपंचंगुलितलेसु, अणुक्खित्तंसि धूवंसि, पूइएसु समुद्दवाएसु संसारियासु वलयबाहासु, ऊसिएसु सिएसु झयग्गेसु, पडुप्पवाइएसु तूरेसु, जइएसु सव्वसउणेसु, गहिएसु रायवरसासणेसु, महया उक्किट्ठसीहनाय जाव रवेणं पक्खुभिय-महासमुद्द-रवभूयं पिव मेइणिं करेमाणा एगदिसिं जाव वाणियगा णावं दुरूढा। ___ सूत्र ५१. फिर नाव की पूजा की गई। चंदन के लेप को हथेली में लगाकर छापे लगाए गए और धूप खेई गई। समुद्री पवन की पूजा की गई। वाद्यों की मधुर स्वर-लहरी आरंभ की गई। यह सब कार्य होने पर और यात्रा के लिए राजा का आदेश पत्र प्राप्त हो जाने पर शुभ शकुन देख सभी यात्री ऊँचे स्वर में सिंहनाद कर महासमुद्र जैसी गर्जन से धरती गुंजाते हुए एक दिशा से नाव पर चढ़े। 51. After this the ritual worship of the ship was performed. Palm imprints with sandal wood paste were applied on the ship and incense was burned. In the end, ritual worship of the sea wind was performed. Instrumental music was played. By the time all this was concluded they also received the official permission from the king to travel. At an auspicious moment all the voyagers boarded the ship from one side, hailing the start of journey. The chorus of this hail was as loud and booming as the thunderclap of giant waves of the ocean. सूत्र ५२. तओ पुस्समाणवो वक्कमुदाहु-"हं भो ! सव्वेसिमवि अत्थसिद्धी, उवट्ठियाई कल्ला-णाई, पडिहयाइं सव्वपावाई, जुत्तो पूसो, विजओ मुहुत्तो अयं देसकालो।" तओ पुस्समाणवेणं वक्कमुदाहिए हट्टतुट्ठा कुच्छिधार-कन्नधार-गब्मिज्जसंजत्ताणावावाणियगा वावारिंसु, तं नावं पुनुच्छंगं पुण्णमुहिं बंधणेहिंतो मुंचंति। __ सूत्र ५२. तब चारणों ने कहा-“हे श्रेष्ठियो ! आप सभी को अर्थ लाभ हो। आपका कल्याण हो और आपके सभी विघ्न-बाधाएँ नष्ट हों। अभी पुष्य नक्षत्र का योग है और विजय नाम का मुहूर्त है, इस कारण यह देश-काल यात्रा के लिए श्रेष्ठ है।" यह सुनकर प्रसन्न हो चप्पू चलाने वाले नाविक, कर्णधार, गर्भज (नाव के मध्य में नियुक्त) कार्यकर्ता तथा वे व्यवसायी और अन्य यात्री अपने-अपने कार्यों में जुट गये और फिर माल से भरी उस मंगल-मुखी नाव की तट से बँधी रस्सियों को खोल दिया गया। 52. Bards said in farewell. "O Merchants! May you be prosperous. May all be well with you and all your troubles and impediments vanish. It is the auspicious conjunction of the Pushya constellation SANG ' CHAPTER-8 : MALLI (347) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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