Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 409
________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ( ३४५ ) BIHA - जोयंति, चंपाए नयरीए मझमझेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति। सूत्र ४८. एक दिन ये सभी व्यापारी एक स्थान पर एकत्र हुए तो उनमें आपस में मंत्रणा हुई-"हमें गणिम (संख्या में बेची जाने वाली), धरिम (तोल से बेची जाने वाली), मेय (नाप से बेची जाने वाली) और परिच्छेद (टुकड़ों में बेची जाने वाली), ये चार प्रकार की वस्तुएँ लेकर समुद्र-यात्रा पर निकलना चाहिये।" सभी इस प्रस्ताव से सहमत हुए और तदनुसार विक्रय योग्य सभी सामग्री एकत्र की। गाड़ी-गाड़े साफ कर तैयार किये और उनमें वह सब सामग्री भर दी। फिर शुभ मुहूर्त देख अशन-पान आदि भोज सामग्री का प्रबन्ध कर अपने स्वजनों को भोज दिया और यात्रा के लिए उनकी अनुमति ली। फिर वे गाड़ी-गाड़े जोत चम्पानगरी के बीच से होते हुए गंभीर बन्दरगाह पर आए। ___48. One day when all these merchants met together they discussed, “We should stock the four categories of goods and go on a sea-voyage. The four categories being-Ganim or the goods that are sold in numbers, Dharim or the goods that are sold by weight, Meya or the goods that are sold by measurement, and Paricched or the goods that are sold in pieces." Everyone agreed to this proposal and accordingly started collecting salable goods. They got their carts and trucks cleaned and loaded them with the collected goods. They then looked for an auspicious moment, invited their friends and relatives on a feast and sought their permission for the proposed voyage. Once they got the permission they drove their transports through the town and arrived at Gambhir port. समुद्र-यात्रा __ सूत्र ४९. उवागच्छित्ता सगडिसागडियं मोयंति, मोहत्ता पोयवहणं सज्जेंति, सज्जित्ता गणिमस्स य धरिमस्स य मेज्जस्स य परिच्छेज्जस्स य चउव्विहस्स भंडगस्स भरेंति, भरित्ता तंडुलाण य समियस्स य तेल्लस्स य गुलस्स य घयस्स य गोरसस्स य उदयस्स य उदयभायणाण य ओसहाण य भेसज्जाण य तणस्स य कट्ठस्स य पावरणाण य पहरणाण य अन्नेसिं च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं दव्वाणं पोयवहणं भरेंति। भरित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तसि विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावित्ता मित्त-णाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं आपुच्छंति, आपुच्छित्ता जेणेव पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति। Oma OMES MARA बारिश R CHAPTER-8 : MALLI (345) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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