Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 406
________________ ( ३४२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र CHO Ramro सूत्र ४२. तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धिं रायं एवं वयासी-“एवं खलु सामी ! अहं अन्नया कयाई तुब्भं दोच्चेणं मिहिलं रायहाणिं गए, तत्थ णं मए कुंभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहवररायकन्नाए संवच्छरपडिलेहणगंसि दिव्वे सिरिदामगंडे दिट्ठपुव्वे। तस्स णं सिरिदामगंडस्स इमे पउमावईए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमं पि कलं न अग्घइ।" सूत्र ४२. अमात्य सुबुद्धि ने उत्तर दिया-"स्वामी ! मैं एक बार आपके दूत के रूप में किसी काम से मिथिला नगरी गया था। वहाँ मैंने राजा कंभ और रानी प्रभावती की पत्री, विदेह राजकन्या, राजकुमारी मल्ली के जन्म दिवस के महोत्सव के समय एक दिव्य गजरा देखा था। उसके सामने महारानी पद्मावती का यह गजरा उसके एक बाल के अंश के बराबर भी नहीं ठहरता।" 42. Minister Subuddhi replied, “Sire! Once I went on some mission as your emissary to Mithila city. There, on the occasion of the birthday celebrations of Princess Malli, the daughter of King Kumbh and Queen Prabhavati, I saw a divine entwined garland. Queen Padmavati's garland stands nowhere as compared to that; even a thin fiber from that garland was much more attractive than this whole garland.” मल्लीकुमारी की प्रशंसा __सूत्र ४३. तए णं पडिबुद्धी राया सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी-“केरिसिया णं देवाणुप्पिया ! मल्ली विदेहवररायकन्ना जस्स णं संवच्छरपडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमं पि कलं न अग्घइ ?" तए णं सुबुद्धी अमच्चे पडिबुद्धिं इक्खागुरायं एवं वयासी-“एवं खलु सामी ! मल्ली विदेह-वररायकन्नगा सुपइट्ठियकुम्मुन्नयचारुचरणा, वन्नओ।" सूत्र ४३. राजा प्रतिबुद्धि ने अमात्य से कहा-"वह मल्लीकुमारी कैसी है जिसके जन्म-दिवस के उत्सव के गजरे की तुलना में यह गजरा तुच्छ सा है ?" __ सुबुद्धि ने उत्तर दिया-“स्वामी ! विदेह राजकन्या मल्ली सुप्रतिष्ठित और अपूर्व सुन्दरी है। (उसके चरण कछुए के समान उन्नत हैं आदि विस्तृत वर्णन जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के समान)" PRAISE OF PRINCESS MALLI 43. King Pratibuddhi asked further, “What about Princess Malli, whose birthday-celebration-garland you are so praising?" BAma PARDA / (342) JNATĂ DHARMA KATHANGA SÜTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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