Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 382
________________ ( ३२०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र ६. कालान्तर में एक बार रानी कमलश्री ने स्वप्न में सिंह देखा, गर्भवती हुई और यथासमय पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम बलभद्र रखा। वह धीरे-धीरे विकास पा युवा हो गया। ___6. Later, one day queen Kamalshri woke up from her sleep after seeing a great lion in her dream. As a result of this auspicious dream she got pregnant and in due course gave birth to a son who was named Balbhadra. With passage of time he turned to be a handsome young man. सूत्र ७. तस्स णं महब्बलस्स रनो इमे छप्पिय बालवयंसगा रायाणो होत्था, तं जहा(१) अयले, (२) धरणे, (३) पूरणे, (४) वसू, (५) वेसमणे, (६) अभिचंदे, सहजाया सहवड्डियया अण्णमण्णहियइच्छियकारया अण्णमण्णेसु रज्जेसु किच्चाई करणिज्जाइं पच्चणुभवमाणा विहरंति। सूत्र ७. महाबल राजा के छह बाल मित्र थे-अचल, धरण, पूरण, वसु, वैश्रमण और अभिचन्द्र। वे एक समय पर ही जन्मे थे, साथ-साथ बड़े हुए, परस्पर एक-दूसरे के हित की भावना रखते थे, और एक-दूसरे की इच्छा के अनुसार ही सब काम करते थे। उन्होंने यह निश्चय भी कर लिया था कि इसी प्रकार आत्म-कल्याण का कार्य भी साथ-साथ ही करेंगे। 7. King Mahabal had six childhood friends-Achal, Dharan, Puran, Vasu, Vaishraman, and Abhichandra. They all were born at the same time and did everything with mutual consent. They had also resolved that they would even do spiritual practices together. महाबल की दीक्षा सत्र ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा थेरा जेणेव इंदकुंभे उज्जाणे तेणेव समोसढा, परिसा निग्गया, महब्बलो वि राया निग्गओ। धम्मो कहिओ। महब्बलेणं धम्म सोच्चा-"जं नवरं देवाणुप्पिया ! छप्पिय बालवयंसगे आपुच्छामि, बलभदं च कुमार रज्जे ठावेमि, जाव छप्पिय बालवयंसए आपुच्छइ।" तए णं ते छप्पिय बालवयंसए महब्बलं रायं एवं वयासी-"जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे पव्वयह, अम्हं के अन्ने आहारे वा ? जाव आलंबे वा ? अम्हे वि य णं पव्वयामो।" तए णं से महब्बले राया छप्पिय बालवयंसए एवं वयासी-“जइ णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे मए सद्धिं जाव पव्वयह, तओ णं तुब्भे गच्छह, जेठ्ठपुत्तं सएहिं सएहिं रज्जेहिं Bam RAMA (320) JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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