Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 387
________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ( ३२३) Oms arease Q4GRIDANA तओ से महब्बले अणगारे छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। जइ णं ते महब्बलवज्जा अणगारा छटुं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तओ से महब्बले अणगारे अट्ठमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। एवं अट्ठमं तो दसमं, अह दसमं तो दुवालसमं। सूत्र १२. महाबल ने इस श्रमण जीवन में अपने साथियों से छल करना आरम्भ कर दिया। जब अन्य छह श्रमण उपवास करते तो महाबल बेला करते, जब अन्य बेला करते तो महाबल तेला करते और इस प्रकार वे छल से अपने साथियों से अधिक तपस्या करते थे। इस छल व्यापार के फलस्वरूप उन्होंने स्त्री नामगोत्र कर्म का बन्धन कर लिया। CHEATING BY MAHABAL ____12. Mahabal, however, started cheating his friends. When others observed a one day fast he would observe a two day fast. Thus he secretly did more vigorous penance on one pretext or the other. Due to these guileful ways he acquired the Karma that would make him take the next birth as a female (The Stree-naam-gotra karma). __ सूत्र १३. इमेहि पुण वीसाएहि य कारणेहि आसेवियबहुलीकएहिं तित्थयरनामगोयं कम्मं निव्वत्तिंसु, तं जहा अरिहंत-सिद्ध-पवयण-गुरु-थेर-बहुस्सुए-तवस्सीसुं। वच्छलया य तेसिं, अभिक्ख णाणोवओगे य॥१॥ दंसण-विणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारं। खणलव-तवच्चियाए, वेयावच्चे समाही य॥२॥ अपुव्वनाणगहणे, सुयभत्ती पवयणे पभावणया। एएहिं कारणेहिं, तित्थयरत्तं लहइ जीवो॥३॥ सूत्र १३. महाबल ने इनके अतिरिक्त बीस कारणों (बीस स्थानक) की एकानेक बार उपासना-आराधना की जिसके फलस्वरूप उन्होंने तीर्थंकर नामगोत्र कर्म का बंधन भी कर लिया। वे बीस स्थानक हैं (१) अरिहंत, (२) सिद्ध, (३) प्रवचन, (४) गुरु, (५) स्थविर, (६) बहुश्रुत, (७) तपस्वी की सेवा-भक्ति (८) सतत ज्ञानोपयोग, (९) दर्शनविशुद्धि, (१०) विनय, (११) षडावश्यक, (१२) निरतिचार व्रत साधना, (१३) विरक्ति, (१४) तप, (१५) सुपात्र दान, (१६) वैयावृत्य, (१७) संघ को समाधि प्रदान करना, (१८) अपूर्व ज्ञान ग्रहण, (१९) श्रुत भक्ति, (२०) प्रवचन प्रभावना। - MAHI कालमा CHAPTER-8 : MALLI (323) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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