Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 394
________________ ( ३३०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Our ON GARHILA GANING TERI bodies and were born as princes in pure clans and ruling families in Bharatvarsha in the Jambu continent. They grew to be rulers of the following states 1. Pratibuddhi the king of Ikshvaku country (capital-Ayodhya). 2. Chandracchaya the king of Anga country (capital-Champa). 3. Shankh the king of Kashi country (capital-Varanasi). 4. Rukmi the king of Kunal country (capital-Shravasti). 5. Adinshatru the king of Kuru country (capital-Hastinapur). 6. Jitshatru the king of Panchal country (capital-Kampilyapur). तीर्थंकर अवतरण सूत्र २१. तए णं से महब्बले देवे तिहिं णाणेहिं समग्गे उच्चट्ठाणट्ठिएसु गहेसु, सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु, जइएसु सउणेसु, पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसप्पिंसि मारुतंसि . पवायंसि, निप्फन्नसस्समेइणीयंसि कालंसि, पमुइयपक्कीलिएसु जणवएसु, अद्धरत्तकालसमयंसि अस्सिणीनक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, जे से हेमंताणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे फग्गुणसुद्धे, तस्स णं फग्गुणसुद्धस्स चउत्थिपक्खेणं जयंताओ विमाणाओ बत्तीससागरोवमट्टिइयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए रायहाणीए कुंभगस्स रन्नो पभावईए देवीए कुच्छिंसि आहारवक्कंतीए सरीरवक्कंतीए भववक्कंतीए गब्भत्ताए वक्ते। सूत्र २१. सभी ग्रह उच्च स्थान पर थे, सभी दिशाएँ सौम्य, अंधकार रहित और विशुद्ध थीं, सभी शकुन विजय कारक थे, दक्षिण दिशा से चलता पवन अनुकूल हो बह रहा था, फले-फूले धान से खेत हरे-भरे थे और लोग हर्ष से क्रीड़ा कर रहे थे। हेमन्त ऋतु के चौथे महीने का आठवाँ पक्ष चल रहा था। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष का चौथा दिन था। मध्य-रात्रि के समय अश्विनी नक्षत्र का योग आने पर महाबल देव ने तीन ज्ञान से युक्त हो बत्तीस सागरोपम की आयु, भव और स्थिति पूर्ण कर जयन्त नामक विमान से प्रयाण किया और भरत क्षेत्र की मिथिला नगरी के कुंभ राजा की भार्या प्रभावती देवी की कोख में दैवीय आहार, भव और शरीर को मानवीय आहार, भव और शरीर में बदलते हुए अवतरित हुआ। THE DESCENT OF THE TIRTHANKAR 21. All the planets were in their ascendant positions. All the cardinal directions were serene bright and pure. There was an नाम (330) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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