Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 346
________________ Dattor ( २९२ ) 2. Sudharma Swami narrated-"Jambu! During that period of time there was a town named Rajagriha outside which there was a garden named Subhumibhag. King Shrenik was the ruler of that town. In Rajagriha lived a wealthy merchant named Dhanya whose beautiful wife was Bhadra. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Dhanya Merchant and Bhadra had four sons-Dhanpal, Dhandev, Dhangope, and Dhanrakshit. The names of their wives were – Ujjhika, Bhogvati, Rakshika, and Rohini respectively. सूत्र ३. तए णं तस्स सत्थवाहस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था - "एवं खलु अहं रायगिहे णयरे बहूणं राईसर-तलवर- माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहपभिईणं सयस्स य कुटुंबस्स बहुसु कज्जेसु य, करणिज्जेसु य, कुडुंबेसु य, मंतणेसु य, गुज्झेसु य, रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे, मेढी, पमाणे, आहारे, आलंबणे, चक्खू, मेढीभूए, पमाणभूए, आहारभूए, आलंबणभूए, चक्खूभूए सव्वकज्जवड्ढावए । तं ण णज्जइ जं मए गयंसि वा, चुयंसि वा, मयंसि वा, भग्गंसि वा, लुग्गंसि वा, सडियंसि वा, पडियंसि वा, विदेसत्यंसि वा विप्पवसियंसि वा, इमस्स कुटुंबस्स किं मन्ने आहारे वा आलंबे वा पडिबंधे वा भविस्सइ ? तं सेयं खलु मम कल्लं जाव जलते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता मित्तणाइ-णियग-सयण-संबंधि - परियणं चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गं आमंतेत्ता तं मित्तणाइ-णियग-सयण-संबंधि परियणं चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गं विपुलेणं असण- पाणखाइम- साइमेणं धूवपूष्फवत्थगंध जाव सक्कारेत्ता सम्माणेता तस्सेव मित्त-णाइ - नियगसयण-संबंधि-परियणस्स चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ चउन्हं सुण्हाणं परिक्खणट्टयाए पंच पंच सालिअक्खए दलइत्ता जाणामि ताव का किहं वा सारक्खेइ वा, संगोवेइवा, संवइ वा ? Jain Education International सूत्र ३. एक बार मध्य रात्रि के समय धन्य सार्थवाह के मन में विचार उठा - " मैं राजगृह नगर के अनेक ऐश्वर्यशाली निवासियों और अपने स्वजनों के अनेक कार्यों-व्यवहारों में मार्गदर्शक-सलाहकार ( विस्तार पूर्व सम) स्वरूप हूँ । परन्तु मेरे कहीं चले जाने पर स्थान च्युत हो जाने पर, मर जाने पर, असमर्थ हो जाने पर, रोगी हो जाने पर, क्षीण हो जाने पर, चोटग्रस्त हो जाने पर, विदेश-परदेश जाकर रहने पर मेरे कुटुम्ब का (292) JNĀTA DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only JAME www.jainelibrary.org

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