Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 359
________________ सातवाँ अध्ययन : रोहिणी ज्ञात ( ३०१) - 13. “Daughter! Five years back, in presence of these same guests, I had given you five grains of rice with instructions that when I demand you should return those to me. Am I correct?" "Yes, Papa, you are absolutely correct." “So, daughter, I want those grains back." उज्झिका : बाह्य सेविका __ सूत्र १४. तए णं सा उज्झिया एयमढें धण्णस्स सत्थवाहस्स पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव कोट्ठागारं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पल्लाओ पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-“एए णं ते पंच सालिअक्खए" त्ति कट्ट, धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थंसि ते पंच सालिअक्खए दलयइ। __ तए णं धण्णे सत्थवाहे उज्झियं सवहसावियं करेइ, करित्ता एवं वयासी-"किं णं पुत्ता ! एए चेव पंच सालिअक्खए उदाहु अन्ने ?' सूत्र १४. उज्झिका ने धन्य सार्थवाह की बात सुनी और भण्डार-गृह में गई। वहाँ ढेर से पाँच दाने चावल के उठाये और धन्य सार्थवाह के पास आकर बोली-“ये लीजिये चावल के वे पाँच दाने।" और उसने वे दाने धन्य के हाथ में रख दिये। धन्य सार्थवाह ने उज्झिका को शपथ दिलाकर पूछा-“पुत्री ! ये वही पाँच दाने हैं अथवा दूसरे ?" UJJHIKA : THE OUTER SERVANT 14. Ujjhika at once went into the store room, picked up five grains of rice, returned to Dhanya Merchant and said, "Here are those five grains of rice." She handed over the grains to Dhanya Merchant. ___Dhanya Merchant asked her on oath, “Daughter! these are the very same grains or some other?" सूत्र १५. तए णं उज्झिया धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-“एवं खलु तुब्भे ताओ ! इओ अईए पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्तणाइ. चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स जाव विहराहि। तए णं अहं तुब्भं एयमटुं पडिसुणेमि। पडिसुणित्ता ते पंच सालिअक्खए गेण्हामि, एगंतमवक्कमामि। तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु तायाणं कोट्ठागारंसि. सकम्मसंजुत्ता। तं णो खलु ताओ ! ते चेव पंच सालिअक्खए, एए णं अन्ने।" - CHAPTER-7 : ROHINI JNATA (301) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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