Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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आठवाँ अध्ययन : मल्ली : आमुख
शीर्षक - मल्ली-उन्नीसवें तीर्थंकर का नाम । यों तो सभी महापुरुषों के जीवन का घटनाक्रम प्रेरक और उद्बोधक घटनाओं से भरा होता है, किन्तु अर्हत् मल्ली की आत्मा की विकास गाथा उन सबमें भी अद्भुत है। भावना में उत्पन्न अंशमात्र दोष भी कर्म-बन्धन का कारण होता है और उसके प्रभाव को भोगे बिना शुद्धतम स्तर की आत्मा का भी निस्तार नहीं । अर्हत् मल्ली का जीवन उस सूक्ष्म स्तर पर हुई अशुद्धि और उसके फल का ज्वलन्त उदाहरण है। इस कारण उनका नाम एक प्रतीक बनकर जैन वाङ्गमय में स्थापित हो गया है।
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कथासार - महाविदेह क्षेत्र की वीतशोका नगरी के राजा बल थे। उनके पुत्र का नाम महाबल था । एक बार एक स्थविर श्रमण नगरी के बाहर के उद्यान में आये। उनके प्रवचन से प्रभावित हो राजा बल ने महाबल को राज्य सौंप दीक्षा ग्रहण कर ली।
महाबल राजा के छह अन्य राजा बाल-मित्र थे। ये सभी सातों मित्र सभी काम एक-दूसरे की सहमति व सहयोग से करते थे। एक बार एक स्थविर श्रमण का उपदेश सुन महाबल के मन में वैराग्य का उदय हुआ। महाबल ने अपने छहों मित्रों से कहा कि वे दीक्षा लेना चाहते हैं। छहों मित्रों ने भी उनके साथ ही दीक्षा लेने का निर्णय लिया। महाबल आदि मित्रों ने अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों का राज्याभिषेक कर दीक्षा ग्रहण कर ली।
अपने श्रमण जीवन में साधना करते हुए इन श्रमणों ने परस्पर विमर्श कर यह निश्चय किया कि उनमें से एक जो साधना या तपस्या करेगा शेष सब भी वही साधना करेंगे। साधना के इस काल में महाबल सबसे आगे निकल जाने के लिए गुप्त रूप से अधिक तपस्या करने लगे। अन्य मित्र एक उपवास करते तो वे किसी बहाने से दो उपवास करते। छल-माया की इस प्रवृत्ति के चलते उन्होंने स्त्री - नाम - गोत्र कर्म का बन्धन किया। कालान्तर में महाबल - मुनि ने बीस स्थानक की उत्कृष्ट आराधना की और अपनी विशुद्ध साधना के बल पर तीर्थंकर नाम - गोत्र कर्म का बन्धन किया। ये सभी मित्र अपने साधनामय जीवन को पूर्ण कर जयन्त देवलोक में देवरूप में जन्मे और वहाँ की आयुष्य पूर्ण कर भरत क्षेत्र में भित्र-भित्र राजवंशों में जन्मे ।
महाबल के जीव ने मिथिला के राजा कुम्भ की पुत्री मल्लीकुमारी के रूप में जन्म लिया । अन्य सभी मित्र भी राजवंशों जन्मे और युवा होने पर अपने-अपने राज्यों के अधिपति बने। उनके नाम थेकौशल देश के राजा प्रतिबुद्ध, अंग देश के राजा चन्द्रच्छाय, काशी के राजा शंख, कुणाल के राजा रुक्मि, कुरु के राजा अदीनशत्रु तथा पांचाल देश के राजा जितशत्रु ।
मल्लीकुमारी भी युवावस्था को प्राप्त हुईं। उन्होंने अपने अवधिज्ञान से अपने पूर्व जन्म के मित्रों के सम्बन्ध में सभी सूचनाएँ जान लीं। भविष्यानुमान के आधार पर उन्होंने अपने उद्यान में एक विलक्षण मोहनगृह का निर्माण करवाया। इस गृह में मध्य में एक ऐसा कमरा था जिसके चारों ओर छह कमरे थे।
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