Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 357
________________ सातवाँ अध्ययन : रोहिणी ज्ञात ( २९९) opan INDOM उन खेतिहारों ने अगली वर्षा ऋतु में तेज वर्षा होने पर इस घड़े के चावलों को निकाला और पुनः बुवाई कर दी। इस बार फसल पकने पर अनेक कुडव (एक माप) चावल हो गये जिन्हें संरक्षणादि का प्रबन्ध कर भंडार के एक भाग में रख दिया गया। THE RICE MULTIPLIED 10. These fresh grains were filled in a pitcher and its mouth was closed and sealed with mud. This pitcher was marked and stored in the godown. When the next sowing season came and it rained, the farm-hands took out those same grains from the pitcher and sowed them again. This time, after the harvest, the yield was many Kudavs (a weight measure). This rice was also similarly stored in safety. सूत्र ११. तए णं ते कोडुबिया तच्चसि वासारत्तंसि महावुट्टिकायंसि बहवे केयारे सुपरिकम्मिए करेंति, जाव लुणेति, लुणित्ता संवहंति, संवहित्ता खलयं करेंति, करित्ता मलेंति, जाव बहवे कुंभा जाया। तए णं ते कोडुंबिया साली कोट्ठागारंसि पक्खिवंति, जाव विहरंति। चउत्थे वासारत्ते बहवे कुंभसया जाया। __सूत्र ११. तीसरी वर्षा ऋतु में इसी प्रकार फिर फसल बोने पर चावल की मात्रा कुछ कुम्भ (एक माप) हो गई। चौथी वर्षा ऋतु में वही बढ़कर सैकड़ों कुम्भ प्रमाण चावल हो गये। 11. In the third season the seeds were again sowed and this time the yield was a few Kumbhs (a large measure of weight). After the fourth sowing the total quantity of rice became hundreds of Kumbhs. परीक्षा परिणाम __ सूत्र १२. तए णं तस्स धण्णस्स पंचमयंसि संवच्छरंसि परिणममाणंसि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु मम इओ अईए पंचमे संवच्छरे चउण्हं सुण्हाणं परिक्खणट्टयाए ते पंच सालिअक्खया हत्थे दिन्ना, तं सेयं खलु मम कल्लं जाव जलंते पंच सालिअक्खए परिजाइत्तए। जाव जाणामि लाव काए किहं सारक्खिया वा संगोविया वा संवदिया वा ? जाव ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जाव जलंते विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं मित्तणाइ. चउण्ह य CHAPTER-7 : ROHINI JNATA (299) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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