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छठा अध्ययन : तुम्बक
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उपसंहार
ज्ञातासूत्र की इस छठी कथा में एक उदाहरण द्वारा एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर समझाया है। कोई प्राणी जब पापकर्म में लिप्त होता है तो उसकी आत्मा कर्म-बन्धन करती है। आठ कर्म प्रकृतियों के इस मल से आत्मा बोझिल होकर नीचे गिरती है और नरकगति तक जा पहुँचती है। यह गुरुता है और हेय है। जब साधना तथा सत्कर्म के जल से यह कर्म-मल धोया जाता है तो आत्मा हल्की हो ऊपर उठती है। पूर्ण निर्मल होने पर वह लोकाग्र में पहुँच सिद्धगति को प्राप्त होती है। यह लघुता है और श्रेय है।
| उपनय गाथा जह मिउलेखालित्तं गरुयं तुंब अहोवयइ एवं । आसव कय-कम्म गुरु जीवा वच्चंति अहरगई ।। तं चेव तब्धिमुक्कं, जलोवरि ठाइ जाय लहुभावं ।
जह तह कम्म विमुक्का, लोयग्ग पइट्टिया होंति ।। -जैसे मिट्टी के लेप से भारी होकर तुम्बा जल के तल में चला जाता है, इसी प्रकार आम्रव द्वारा उपार्जित कर्मों से भारी होकर जीव अधोगति में जाता है।। ___-जैसे वही तुम्बा मिट्टी के लेप से विमुक्त होने पर, लघु होकर जल के ऊपर स्थित होता है, वैसे ही कर्मविमुक्त जीव लोक के अग्र अर्थात ऊपरी भाग में विराजमान हो जाते हैं।२।
CONCLUSION
This sixth story of Jnata Dharma Katha gives answer to an important question with the help of a suitable example. When an individual indulges in sinful activity his soul binds karmas. Encumbered by the dirt of the eight categories of karmas this soul starts falling down and may reach the hell. This is known as heaviness and is detestable. If this dirt of karmas is washed away with the help of water of pious activity and spiritual practice the soul becomes light and starts rising up. When it becomes absolutely clean and pure it
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CHAPTER-6: TUMBAK
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