Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
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किन्तु वैदिक परम्परा में तीर्थयात्रा के उद्देश्य को छोड़ अन्य किसी कारण से इस क्षेत्र में प्रवेश करने के निषेध की बात मिलती है। यहाँ अधिक समय तक निवास करने से प्रायश्चित्त करने का विधान भी है। समय के साथ अपनी सीमाओं के विस्तार तथा संकोचन के बावजूद वर्तमान के बिहार प्रान्त को प्राचीन मगध देश कहा जा सकता है।
श्रेणिक राजा-शिशुनाग वंशीय मगध सम्राट्। राजा प्रसेनजित का पुत्र तथा अजातशत्रु कुणिक का पिता। अन्य नाम–बिम्बिसार, भिंभिसार तथा भंभासार।
स्वप्न-लगभग सभी प्राचीन भारतीय परम्पराओं में यह मान्यता है कि जब कोई महापुरुष अपनी माता के गर्भ में आता है तब उसकी माता श्रेष्ठ स्वप्न देखती है। सभी परम्पराओं में स्वप्न-फल वेत्ताओं का तथा अष्टांगनिमित्त वेत्ताओं का उल्लेख है। स्वप्न-फल अष्टांगनिमित्त का एक अंग है। जैन मतानुसार बहतर स्वप्न होते हैं जिनमें बयालीस सामान्य स्वप्न तथा तीस महास्वप्न होते हैं। अरहंत तथा चक्रवर्ती की माताएँ इन महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न-विशेष देखती हैं। वासुदेव की माताएँ इन चौदह स्वप्नों में से सात स्वप्न देखती हैं। इसी प्रकार बलदेव की माता चार तथा माण्डलिक राजा की माता एक स्वप्न देखती है। इस संबंध में अनेक प्राचीन ग्रन्थों में विस्तार उपलब्ध है, जैसे-सुश्रुतसंहिता के शरीर स्थान का तेतीसवाँ अध्याय, ब्रह्मवैवर्त पुराण-जन्मखंड-अध्याय-७, भगवतीसूत्र-शतक ६, उद्देशक ६ आदि। प्राचीनकाल में स्वप्नशास्त्र का विधिवत् अध्ययन किया जाता था तथा इसके फलाफल बताने वाले स्वप्न पाठक कहे जाते थे। स्वप्न के सम्बन्ध में आधुनिक मनोविज्ञान भी बहुत गहराई से अनुसंधान कर रहा है। अनेक पाश्चात्य लेखकों ने स्वप्न शास्त्र को परा-मनोविज्ञान की एक स्वतंत्र विधा मानकर इस पर कई ग्रन्थ लिखे हैं।
अष्टांगनिमित्त-भविष्य विषयक अनुमान में सहायक विद्या। इसके आठ अंग हैं-(१) भौम (भूकंप आदि), (२) उत्पात (प्राकृतिक उत्पात), (३) स्वप्न, (४) अंतरिक्ष, (५) आंग (शरीर के अंगों से संबंधित), (६) स्वर (पक्षियों आदि की ध्वनियाँ), (७) लक्षण (स्त्री. पुरुष आदि के लक्षण), (८) व्यजंन (शरीर पर के चिन्ह, तिल, मस्से आदि)। इन विषयों की विस्तृत जानकारी वराहमिहिर की वृहत संहिता में उपलब्ध है।
जाति-मातृ वंश, कुल-पितृ वंश
कौटुम्बिक पुरुष-निकट के नौकर या विशेष नौकर। वैसे इस शब्द का अर्थ पारिवारिक लोग होता है। किन्तु जिस अर्थ में इसका प्रयोग हुआ है वह परिवार के कार्यकर्ताओं से संबंधित है। ऐसा लगता है कि विशेष सेवाओं के लिए दूर-निकट के संबंधियों को अथवा राजवंशीय लोगों को नियुक्त किया जाता रहा होगा अतः यह शब्द इस अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। ये लोग वैतनिक पर स्वतंत्र कर्मचारी रहे होंगे क्रीतदास नहीं, जैसे दास चेट होते थे। ___दोहद-द्विहृद या दो हृदय। गर्भावस्था में स्त्री दोहृदयवाली होती है, एक अपना, एक गर्भस्थ शिशु का। अतः गर्भिणी स्त्री को जो विशेष इच्छाएँ, कामनाएँ उत्पन्न होती हैं उन्हें दोहद (दोहला/डोहला) कहा जाता है। ये इच्छाएँ गर्भावस्था के तीसरे माह में उत्पन्न होती हैं और ऐसी मान्यता है कि इन्हें पूर्ण न करने से स्त्री तथा उसके गर्भ को हानि पहुँचती है। अतः परिवार वालों का यह कर्त्तव्य होता है कि दोहद पूरे किये जायें। दोहद से गर्भस्थ शिशु के गुण-स्वभाव का अनुमान भी किया जाता है। प्राचीन धार्मिक साहित्य जैन, बौद्ध, वैदिक ग्रन्थों में दोहद की अधिक घटनाएँ आती है। (विस्तृत सूचना-सुश्रुत संहिताशरीर स्थान-अध्याय ३)
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CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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