Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 246
________________ m ( २०६ ) लटकाये, जरी वाली डोरी की नाथ से बँधे और नीलकमल की कलंगी से सजे उत्तम जवान बैल जिसमें जुते हों ऐसा रत्नों और सोने की घंटियों से सजा श्रेष्ठ लक्षणों वाला रथ ले आओ ।" सेवकों ने तत्काल आज्ञा के अनुरूप रथ ला उपस्थित किया । 8. Now the merchant boys called other servants and said, "Arrange to get a beautiful chariot decorated with gem studded bells made of gold and drawn by young bullocks of good breed, having resembling hoofs, tails, and horns. These bullocks should be adorned with same colour on horn-tips, silver bells on the neck and brocade straps and bridles with blue lotuses fixed at the top." The servants carried out the order and brought the chariot at the gate. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र उद्यान- भ्रमण सूत्र ९. तए णं ते सत्थवाहदारगा व्हाया जाव सरीरा पवहणं दुरूहंति, दुरूहित्ता जेणेव देवदत्ता गणियाए गिहं तेणेव उवागच्छंति । उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता देवदत्ताए गणियाए गिहं अणुपविसेन्ति । तए णं सा देवदत्ता गणिया सत्थवाहदारए एज्जमाणे पास, पासित्ता हट्ठट्ठा आसणाओ अब्भुट्टे, अब्भुट्टित्ता सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता ते सत्थवाहदारए एवं वयासी - "संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमिहागमणप्पओयणं ? ” सूत्र ९. दोनों सार्थवाहपुत्र स्नानादि कर्म से निवृत्त हो रथ बैठ देवदत्ता गणिका के आवास के सामने आये । रथ से उतरकर उन्होंने गणिका के घर में प्रवेश किया। उन्हें आता देख देवदत्ता प्रसन्न हो अपने आसन से उठी और सात - आठ कदम आगे बढ़ी। उसने आगे बढ़कर सार्थवाहपुत्रों का स्वागत करते हुए कहा - "देवानुप्रियो ! कहिये क्रिस प्रयोजन से आना हुआ ?" THE OUTING 9. Both the merchant boys got ready and riding in the chariot arrived at Devdatta's residence. They got down from the chariot and entered the premises. Jain Education International When Devdatta saw them coming she got up and advanced a few steps. She greeted the merchant-boys and said, "Beloved of gods ! Please tell me what brings you to me?" ( 206 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492