Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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तृतीय अध्ययन : अंडे
( २०७)
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सूत्र १०. तए णं ते सत्यवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं वयासी-"इच्छामो णं, देवाणुप्पिए ! तुम्हेहिं सद्धिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरित्तए।"
तए णं सा देवदत्ता तेसिं सत्थवाहदारगाणं एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता ण्हाया कयवलिकम्मा जाव सिरिसमाणवेसा जेणेव सत्थवाहदारगा तेणेव समागया। __सूत्र १0. सार्थवाहपुत्रों ने कहा-“हम तुम्हारे साथ-साथ सुभूमिभाग उद्यान की उद्यानश्री छटा का आनन्द लेना चाहते हैं, देवानुप्रिये !'
देवदत्ता ने सार्थवाहपुत्रों का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उसने स्नानादि कर लक्ष्मी के समान उत्तम वस्त्र पहने और सार्थवाहपुत्रों के पास पहुंच गई। ____10. The merchant-boys replied, “Beloved of gods ! We want to enjoy the beauty of Subhumibhag garden in your company"
Devdatta accepted the proposal of the merchant-boys. She got ready after her bath (etc.), dressed like Laxmi, the goddess of wealth, and came back to the merchant-boys. ___ सूत्र ११. तए णं ते सत्थवाहदारगा देवदत्ताए गणियाए सद्धिं जाणं दुरूहंति, दुरूहित्ता चंपाए नयरीए मज्झमज्झेणं जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे, जेणेव नंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति। उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता गंदापोखरिणि
ओगाहिति। ओगाहित्ता जलमज्जणं करेंति, जलकीडं करेंति, ण्हाया देवदत्ताए सद्धिं पच्चुत्तरंति। जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थूणामंडवं अणुपविसित्ता सव्वालंकारविभूसिया आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धिं तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं धूवपुष्फगंधवत्थं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुजेमाणा एवं च णं विहरति। जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा देवदत्ताए सद्धिं विपुलाइं माणुस्सगाई कामभोगाई भुंजमाणा विहरंति। ___ सूत्र ११. सार्थवाहपुत्र देवदत्ता को साथ ले रथ पर चढ़े और चम्पा नगरी के बीचोंबीच होकर सुभूमिभाग उद्यान में नन्दा पुष्करिणी के पास पहुंचे। रथ से उतरकर नदी में गये। स्नान व जल-क्रीड़ा आदि करके वे देवदत्ता के साथ बाहर निकले और शामियाने में गये। वहाँ वस्त्राभूषण पहन स्वस्थ चित्त व शान्त चित्त हो उत्तम आसन पर बैठ गये। देवदत्ता के साथ भर पेट भोजन करते कराते, गंध-वस्त्रादि का उपभोग करते-कराते और भोजनोपरान्त देवदत्ता के साथ मन भरकर मनुष्योचित कामभोग का आनन्द लेते हुए समय बिताने लगे।
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CHAPTER-3 : ANDAK
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