Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 259
________________ तृतीय अध्ययन : अंडे ( २१५) SARAME - सत्र २२. तए णं से मऊरपोयए जिणदत्तपत्तेणं एगाए चप्पडियाए कयाए समाणीए णंगोलाभंगसिरोधरे सेयावंगे अवयारियपइन्नपक्खे उक्खित्तचंदकाइयकलावे केक्काइयसयाणि विमुच्चमाणे णच्चइ। तए णं से जिणदत्तपुत्ते तेणं मऊरपोयए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु सइएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य पणिएहि य जयं करेमाणे विहरइ। ___ सूत्र २२. जिनदत्त पुत्र के एक इशारे पर वह मोर क्रीड़ा करते हुए अपनी गर्दन को सिंह की पूँछ के समान गोलाकार बना लेता था। उसके नेत्र के कोर सफेद हो जाते थे। वह अपने पंखों को फैला लेता था और चंदोवे युक्त पूँछ को ऊपर उठा लेता था। और तब वह बारंबार कूकता हुआ नाचने लगता था। जिनदत्त-पुत्र चम्पा नगरी के विभिन्न भागों में होने वाली अनेकों मयूर-प्रतिस्पर्धाओं में उस मोर को ले जाता और हजारों, लाखों के दाँव जीतकर लाता। 22. At the command of Son-of-Jinadatta the peacock playfully bent its neck back giving it a shape as circular as the tail of a lion. The edges of its eyes turned white. It stretched its wings and lifted its tail high, displaying its moons. And then it started cooing and dancing. Son-of-Jinadatta used to take this peacock along to various competitions in the town and win high wagers. उपसंहार __ सूत्र २३. एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथो वा पव्वइए समाणे पंचसु महव्वएसु छसु जीवनिकाएसु निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्विइगिच्छे से णं इह भवे चेव बहूणं समणाणं समणीणं जाव वीइवइस्सइ। ___ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं णायाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते त्ति बेमि। सूत्र २३. हे आयुष्मान् श्रमणो ! इसी प्रकार हमारा जो साधु-साध्वी दीक्षित होकर पाँच महाव्रतों, षट्जीव निकाय तथा निर्ग्रन्थ प्रवचन में शंकादिरहित होता है वह इस भव में अनेक श्रमण-श्रमणियों से मान-सम्मान प्राप्त करता है और अन्त में संसार सागर को पार कर लेता है। __ हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता सूत्र के तीसरे अध्ययन का यह अर्थ कहा है। ऐसा मैं कहता हूँ। CHAPTER-3 : ANDAK (215) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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