Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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चतुर्थ अध्ययन : कूर्म
(२२७४
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सूत्र १३. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि।
सूत्र १३. हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने चौथे ज्ञाताध्ययन का यही अर्थ कहा है। ऐसा मैं कहता हूँ। ____13. Jambu ! This is the text and the meaning of the fourth chapter | of the Jnata Sutra as told by Shraman Bhagavan Mahavir. So I confirm.
॥ चउत्थ अज्झयणं समत्तं ॥
॥ चतुर्थ अध्ययन समाप्त ॥ || END OF THE FOURTH CHAPTER ||
उपसंहार
ज्ञातासूत्र की इस चौथी कथा में इन्द्रिय-संयम के महत्त्व को एक सटीक उदाहरण से समझाया है। जो साधक इन्द्रियों की प्रवृत्तियों को संयम के कवच में समेटे रखता है वह आत्मोन्नति के मार्ग पर बढ़ता रहकर ध्येय को प्राप्त करने में सक्षम होता है। इसके विपरीत जो साधक इन्द्रियों की चंचल प्रवृत्तियों को संयम के कवच से बाहर निकाल देता है वह विकारों से ग्रसित हो वीभत्स अन्त को प्राप्त होता है। अतः चंचलता, कौतूहल और अस्थिरता का त्याग कर स्थिरता, एकाग्रता और संयम को अपनाना ही साधक के लिए श्रेय है।
उपनय गाथा
विसयेसु इंदियाई रुंभंता राग-दोस निम्मुक्का । पावंति निव्वुइ सुहं कुम्मुव्व मयंगदहसोक्खं ॥ अवरे उ अणरत्थ परंपराउ पावंति पाव कम्मवसा।
संसार सागर गया गोमाउग्गसिय-कुम्मोव्व ॥ इन्द्रिय विषयों में आसक्ति नहीं रखते हुए राग-द्वेष से रहित साधक संयम द्वारा अपनी आत्मा को रक्षित करते हुए मोक्षसुख की प्राप्ति करते हैं। जैसे कछुए ने इन्द्रिय-गोपन करके मृतगंगा तीर पर पहुंचकर सुख प्राप्त किया।
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CHAPTER-4 : KURMA
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