Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 328
________________ ( २७६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र तए णं से पंथए कत्तियचाउम्मासिसि कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिकंते चाउम्मासियं पडिक्कमिउंकामे सेलयं रायरिसिं खामणट्ठयाए सीसेणं पाएसु संघट्टेइ। ___ तए णं से सेलए पंथए णं सीसेणं पाएसु संघट्टिए समाणे आसुरुते जाव मिसमिसेमाणे उढेइ, उद्वित्ता एवं वयासी-“से केस णं भंते ! एस अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए जे णं ममं सुहपसुत्तं पाएसु संघट्टेइ ?' ___ सूत्र ६0. पंथक अनगार सब प्रकार से शैलक राजर्षि की विनयपूर्वक और बिना ग्लानि के सेवा करने लगे। एक बार शैलक राजर्षि चातुर्मास के कार्तिक महीने में संध्या समय खूब भोजन और मद्यपान कर आराम से सो रहे थे। __उसी समय पंथक मुनि ने दिन का कायोत्सर्ग तथा प्रतिक्रमण कर लेने के बाद चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने से पूर्व शैलक राजर्षि से क्षमायाचना हेतु अपने मस्तक से उनके चरणों को छूया। इस पर शैलक कुपित हो गये और क्रोध से तिलामिलाकर उठ गये। वे उग्र हो चिल्लाये-“अरे कौन श्रीहीन है जो अपनी अकाल मृत्यु की इच्छा रखता है ? किसने मेरे पैरों का स्पर्श कर मुझे सुख भरी नींद से जगा दिया?" - BREAKING OF THE TRAP 60. Ascetic Panthak served Ascetic Shailak with all humility and without any reservations. One evening during the month of Kartic, the last month of the monsoon stay, after a heavy dinner and a doze of sedative, Ascetic Shailak was sleeping in all comfort. At that time ascetic Panthak arrived there after finishing his day time meditation and Pratikraman (the ritual reviewing of the deeds of the day) and touched the feet of Ascetic Shailak with his forehead in order to seek the formal forgiveness before commencing the Chaturmasik Pratikraman (the ritual reviewing of the deeds of the year). This disturbed Shailak and consumed by anger he got up. He shouted angrily, “Who is the ill fated one that desires for an untimely death? Touching my feet, who has woken me up from my pleasant sleep?" सूत्र ६१. तए णं से पंथए सेलए णं एवं वुत्ते समाणे भीए तत्थे तसिए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी-“अहं णं भंते ! पंथए Cee (276) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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