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पंचम अध्ययन : शैलक
सूत्र ३१. काल के उस भाग में थावच्चापुत्र अनगार अपनी शिष्य संपदा सहित सौगंधिका नगरी के नीलाशोक उद्यान में आकर ठहरे।
उनके आने पर परम्परानुसार परिषद धर्म सुनने निकली। सुदर्शन भी वहाँ आया और यथाविधि वंदना करके पूछा - " आपके धर्म का मूल क्या है ?"
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थावच्चापुत्र अनगार ने सुदर्शन को उत्तर दिया - " हे सुदर्शन ! हमारा धर्म विनयमूलक बताया गया है। यह विनय दो प्रकार का कहा है- आगार विनय अर्थात् गृहस्थ का चारित्र और अणगार विनय अर्थात् श्रमण का चारित्र । आगार विनय पाँच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत और ग्यारह उपासक - प्रतिमा रूप है तथा अणगार विनय पाँच महाव्रत रूप है । पाँच महाव्रत हैं- समस्त प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह का त्याग। साथ ही रात्रि भोजन तथा समस्त मिथ्यादर्शन शल्य से विरमण । इनके साथ ही दस प्रकार का प्रत्याख्यान और बारह भिक्षु प्रतिमायें भी अणगार विनय में सम्मिलित हैं। इन दो प्रकार के विनयमूलक धर्म के पालन से क्रमशः आठ कर्मप्रकृतियों का क्षय कर जीव लोकाग्र अर्थात् मोक्ष में स्थान पाता है।
DIALOGUE BETWEEN THAVACCHAPUTRA AND SUDARSHAN
31. During that period of time Thavacchaputra arrived with all his disciples and stayed at the Nilashok garden of Saugandhika city.
As per the norms, on his arrival a delegation came to attend his discourse. Sudarshan also arrived there and after formal obeisance he asked, "What is the fundamental principle of your religion?"
Thavacchaputra replied, "Sudarshan! My religion is based on discipline. The discipline is of two types-Agar-discipline or the way of life of the laity and Anagar-discipline or the way of life of the ascetic.
The first includes five minor-vows, seven preparatory vows and eleven prescribed practices for the citizen.
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The second includes the five great vows. These great vows arecomplete abstainment from acts and feelings of destruction of life, falsehood, acquisition, sex, and possession. Also included are refraining from eating at night and pursuing misconceptions. Besides these, ten types of reversions and twelve prescribed practices for the ascetic are also added to these disciplines.
CHAPTER-5: SHAILAK
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