Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 323
________________ पंचम अध्ययन : शैलक तए णं से सुए अणगारे अन्नया कयाई तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं विहरमाणे जेणेव पुंडरीए पव्वए जाव । मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धे । ( २७१ ) सूत्र ५३. शुक अनगार ने शैलक अनगार को पंथक आदि पाँच सौ श्रमण शिष्य रूप में प्रदान किये। शैलक मुनि शैलक नगर में निकलकर विभिन्न जनपदों में विहार करने लगे । शुक अनगार अपनी एक हजार श्रमणों की शिष्य संपदा सहित एक गाँव से दूसरे गाँव में विहार करते अंत में पुंडरीक पर्वत पर पधारे और एक मास की संलेखना लेकर केवलज्ञान प्राप्त करके अन्त में सिद्ध पद को प्राप्त हुए ( वर्णन पूर्व सम ) | 53. Ascetic Shuk awarded the leadership of five hundred ascetics including Panthak to ascetic Shailak who left Shailak town and started moving from one populated area to another. At the end of his itinerant life Ascetic Shuk and one thousand of his disciples went to Shatrunjaya hills and attained liberation after taking the ultimate vow (details as mentioned earlier). शैलक मुनि की रुग्णता सूत्र ५४. तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहि अंतेहि य, पंतेहि य, तुच्छेहि य, लूहि य अरसेहि य, विरसेहि य, सीएहि य, उण्हेहि य, कालाइक्कतेहि य, पमाणाइक्कंतेहि य णिच्चं पाणभोयणेहि य पयइसुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीगंसि वेयणा पाउब्भूया उज्जला जाव दुरहियासा, कंडुयदाहपित्तज्जर - परिगयसरीरे यावि विहरइ । तए से सेलए तेण रोगायंकेणं सुक्के जाए यावि होत्था । सूत्र ५४. उधर शैलक श्रमण को सदा अन्त, प्रान्त, तुच्छ, रूक्ष, अरस, विरस, ठंडा-गरम, असमय और अल्पाधिक आहार मिलने के कारण शरीर में व्याधि हो गई। उसकी वेदना उत्कट और दुस्सह थी । उनको पित्त ज्वर हो आया जिससे शरीर में खुजली और दाद हो जाते हैं। शैलक श्रमण बीमारी से सूख गये । Jain Education International AILING SHAILAK 54. In the mean time Ascetic Shailak became sick due to getting terminal, left over, low value, dry, insipid, unpalatable, too hot, too cold, untimely, too little or too much food. The pain he suffered was CHAPTER-5: SHAILAK For Private Personal Use Only (271) www.jainelibrary.org

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