Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 309
________________ पंचम अध्ययन शैलक ( २५७ ) कर * religion to the discipline based religion. It would be good to preach and bring him back to my order." Thinking thus he came back to Saugandhika town and stayed in the Math. Taking a few of his disciples dressed in ochre coloured garbs he came out of the Math and went to Sudarshan's house. सूत्र ३७. तए णं सुदंसणे तं सुयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो अब्भुट्टेइ, नो पच्चुग्गच्छइ नो आढाइ, नो परियाणाइ, नो वंदइ, तुसिणीए संचिट्टइ। तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं अणब्भुट्ठियं पासित्ता एवं वयासी-“तुमं णं सुदंसणा ! अन्नया ममं एज्जमाणं पासित्ता अब्भुट्टेसि जाव वंदसि, इयाणिं सुदंसणा ! तुमं मम एज्जमाणं पासित्ता जाव णो वंदसि, तं कस्स णं तुमे सुदंसणा ! इमेयारूवें विणयमूलधम्मे पडिवन्ने ?' ___ सूत्र ३७. सुदर्शन ने शुक परिव्राजक को आते देखकर न तो खड़े होने का उपक्रम किया, न आगे बढ़ा, न आदर किया, न परिचित होने का प्रदर्शन और न ही वन्दना। वह मौन ही रहा। __ इस पर शुक परिव्राजक ने कहा-“हे सुदर्शन ! पहले तो तुम मुझे आता देखकर खड़े होते थे और आगे बढ़कर आदर आदि करते थे। परन्तु आज तो तुमने वह सब व्यवहार नहीं किया। हे सुदर्शन ! बताओ तुमने किसके पास विनयमूल धर्म अंगीकार किया है ?" 37. Even when he saw Shuk Parivrajak approaching, Sudarshan neither stood up, went forward, greeted, nor bowed to him; he did not even recognize Shuk. He just remained silent. ___Disturbed by this neglect, Shuk Parivrajak said, "Sudarshan! In the past when I came, you would stand up and come forward to greet me. But today you have not extended that courtesy. Tell me, Sudarshan! who has initiated you into the discipline based religion?" सूत्र ३८. तए णं से सुदंसणे सुए णं परिव्वायए णं एवं वुत्ते समाणे आसणाओ अब्भुट्टेइ, अब्भुट्टित्ता करयल सुयं परिव्वायगं एवं वयासी–“एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतेवासी थावच्चापुत्ते नामं अणगारे जाव इहमागए, इह चेव नीलासोए उज्जाणे विहरइ, तस्स णं अंतिए विणयमूले धम्मे पडिवन्ने।" ___ सूत्र ३८. यह सुनकर सुदर्शन आसन से उठा और हाथ जोड़कर शुक परिव्राजक से बोला-“देवानुप्रिय! अर्हत् अरिष्टनेमि के अन्तेवासी थावच्चापुत्र नाम के अनगार विहार - - CHAPTER-5: SHAILAK (257) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492