Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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सूत्र ४९. तए णं से सेलए राया सेलगपुरं नयरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणं सन्निसन्ने।
तणं से सेल राया पंथयपामोक्खे पंच मंतिसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी“एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए सुयस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य धम्मे मए इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । अहं णं देवाणुप्पिया ! संसारभयउव्विग्गे जाव पव्वयामि । तुभे णं देवाणुप्पिया ! किं करेह ? किं बसेह ? किं वा ते हियइच्छिए त्ति ?"
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
तए णं तं पंथयपामोक्खा सेलगं रायं एवं वयासी - “ जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभयउव्विग्गे जाव पव्वयह, अम्हाणं देवाणुप्पिया ! किमन्ने आहारे वा आलंबे वा ? अम्हे वियणं देवाप्पिया ! संसारभयउव्विग्गा जाव पव्वयामो, जहा देवाणुप्पिया ! अम्हं बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य जाव तहा णं पव्वइयाण वि समाणाणं बहूसु जाव चक्खुभूए ।
सूत्र ४९. शैलक राजा अपने नगर में प्रवेश कर अपने महल की राजसभा में गया और सिंहासन पर बैठा । उसने पंथक आदि पाँच सौ मंत्रियों को बुलाया और कहा - "हे देवानुप्रियो ! मैंने शुक अनगार से धर्म सुना है, वह मुझे रुचा है और मैंने उसकी इच्छा की है। अतः हे देवानुप्रियो ! मैं संसार के भय से उद्विग्न आदि होकर ( पूर्व सम) दीक्षा ले रहा हूँ। तुम क्या करोगे ? कहाँ रहोगे ? तुम्हारी हार्दिक इच्छा क्या है ?"
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पंथक आदि मंत्रियों ने कहा - "हे देवानुप्रिय ! जब आप प्रव्रजित होना चाहते हैं तो हमारा अन्य कौन-सा आधार है, कौन आलंबन है ? अतः हम भी दीक्षा अंगीकार करेंगे। हे देवानुप्रिय ! जैसे आप गृहस्थावस्था में हमारे समस्त कार्यों और कारणों में मार्गदर्शक हैं - वैसे ही दीक्षित अवस्था में भी मार्गदर्शक रहेंगे।
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49. King Shailak entered his town, went into his palace and sat on his throne in the assembly hall. He called his five hundred ministers including Panthak and said, "Beloved of gods! I have listened to the discourse of ascetic Shuk, I have liked it and I wish to embrace his religion. As such, Beloved of gods! being disturbed by the sorrows of the world (etc., as mentioned earlier) I shall get initiated into his order. What shall you do? Where shall you live? What is your true desire?"
Panthak and the ministers replied, "Beloved of gods! Once you renounce the world and become an ascetic we will be without a support
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