Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 284
________________ ( २३६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ----JAm - सूत्र ६. तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा णाम गाहावइणी परिवसइ, अड्डा जाव अपरिभूया। तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चा-पुत्ते णामं सत्थवाहदारए होत्था सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारयं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेइ, जाव भोगसमत्थं जाणित्ता बत्तीसाए इब्भकुलबालियाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेइ, बत्तीसओ दाओ जाव बत्तीसाए इब्भकुलबालियाहिं सद्धिं विउले सद्द-फरिस-रस-रूव-वन्न-गंधे जाव भुंजमाणे विहरइ। सूत्र ६. द्वारका नगरी में थावच्चा नाम की एक समृद्धिशाली और सामर्थ्यवान गृहस्थ महिला रहती थी। उसके थावच्चापुत्र नाम का एक बेटा था जो सुकुमार अंगों वाला और रूपवान था। जब वह बालक आठ वर्ष से अधिक आयु का हुआ तो थावच्चा गाथापत्नी ने उसे शुभ मुहूर्त देख कलाचार्य के पास भेजा। कालान्तर में युवा हो जाने पर उसका विवाह एक साथ बत्तीस कुलीन कुमारियों से करा दिया और बत्तीस सुसज्जित सभी सुविधायुक्त महल उसे दे दिये। थावच्चापुत्र अपनी बत्तीस पत्नियों के साथ मानवोचित सभी भोग-उपभोगों का आनन्द लेता हुआ जीवन व्यतीत करने लगा। 6. In the town of Dwarka there lived a prosperous and resourceful lady named Thavaccha. She had a son named Thavacchaputra who was handsome and delicate. When this boy became eight years old Thavaccha sent him to a teacher at the opportune moment. Later, when he grew to be a young man he was married to thirty two young girls belonging to good families and, was given thirty two well furnished palaces. Thavacchaputra spent his time enjoying all earthly pleasures along with his thirty two wives. अर्हत् अरिष्टनेमि का आगमन सूत्र ७. तेणं कालेणं तेणं समए णं अरहा अरिट्ठनेमी सो चेव वण्णओ. दसधणस्सेहे. नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पयासे, अट्ठारसहिं समणसाहस्सीहिं सद्धिं संपरिबुडे, चत्तालीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिबुडे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जाव गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहं सुहेणं विहरमाणे जेणेव बारवई नयरी, जेणेव रेवयगपव्वए, जेणेव नंदणवणे उज्जाणे, जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे, जेणेव असोगवरपायवे, तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ। परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ। O SONICE (236) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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