Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 269
________________ चतुर्थ अध्ययन : कूर्म into the shell. In this state they stopped where they were; absolutely immobile and unstirring. शृंगालों की चालाकी सूत्र ७. तए णं ते पावसियालया जेणेव ते कुम्मगा तेणेव उवागच्छंति । उवागच्छित्ता ते कुम्मगा सव्वओ समंता उव्वत्तेन्ति, परियत्तेन्ति, आसारेन्ति, संसारेन्ति, चालेन्ति, घट्टेन्ति, फंदेन्ति, खोभेन्ति, नहेहिं आलुपंति, दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसिं कुम्मगाणं सरीरस्स आबाहं वा, पबाहं वा, बाबाहं वा उप्पाएत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए । ( २२३ ) तए णं ते पावसियालया एए कुम्मए दोच्चं पि तच्वंपि सव्वओ समंता उव्वत्तेंति, जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए । ताहे संता तंता परितंता निव्विन्ना समाणा सणियं सणियं पच्चोसक्कंति, एगंतमवक्कमंति, निच्चला निष्कंदा तुसिणीया संचिट्ठति । सूत्र ७. दोनों सियार कछुओं के पास पहुँचे और उन्हें उलटा-पलटा, आगे-पीछे सरकाया, घसीटा, हिलाया और अन्त में नाखून और दाँत गड़ाकर नोंचने - फाड़ने की चेष्टा की। किन्तु वे उन कछुओं के शरीर को न्यूनाधिक किसी भी प्रकार पीड़ा पहुँचाने में अथवा चमड़ी को भेदने में सफल नहीं हो सके। ये सब चेष्टाएँ उन्होंने बार-बार कीं और हर बार असफल होने पर वे रुक गये। शरीर और मन दोनों की थकान से उन्हें ग्लानि और खेद हुआ। फिर वे धीरे-धीरे वापस लौटे और एकान्त में जा निश्चल, निस्पंद और मूक हो ठहर गये। CUNNING JACKALS 7. The jackals reached near them, turned and over-turned them, pulled and pushed them, shifted and shook them, and in the end tried to pierce and tear them with claws and canines. But they failed to cause any damage or pain to the hard outer shell of the turtles. They tried these tricks again and again but in vain, and stopped. Extremely tired in body and spirit they felt dejected and ashamed. Slowly they returned to their lonely den and waited quietly without moving or stirring. Jain Education International चपल स्वभाव का फल सूत्र ८. तत्थ णं एगे कुम्मए ते पावसियालए चिरंगए दूरगए जाणित्ता सणियं सणियं एगं पायं निच्छुभइ । तए णं ते पावसियालया तेणं कुम्मए णं सणियं सणियं एवं पायं CHAPTER - 4: KURMA For Private Personal Use Only (223) Spaso 3020and www.jainelibrary.org

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