Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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जक्खदेउलाणि य सभाणि य पवाणि य पाणियसालाणि य सुन्नघराणि य आभोएमाणे आभोएमाणे मग्गमाणे गवेसमाणे, बहुजणस्स छिद्देसु य विसमेसु य विहुरेसु य वसणेसु य अब्भुदएसु य उस्सवेसु य पसवेसु य तिहीसु य छणेसु य जन्नेसु य पव्वणीसु य मत्तपमत्तस्स य वक्खित्तस्स य वाउलस्स य सुहियस्स सदुक्खियस्स य विदेसत्थस्स य विप्पवसियस्स य मग्गं च छिदं च विरहं च अन्तरं च मग्गमाणे गवेसमाणे एवं च णं
विहरइ।
बहिया वि य णं रायगिहस्स नगरस्स आरामेसु य, उज्जाणेसु य वावि-पोक्खरिणी-दीहिया-गुंजालिया-सरेसु य सरपंतिसु य सरसरपंतियासु य जिण्णुज्जाणेसु य भग्गकूवएसु य मालुया कच्छएसु य सुसाणेसु य गिरिकन्दर-लेणउवट्ठाणेसु य बहुजणस्स छिद्देसु य जाव अन्तरं मग्गमाणे गवेसमाणे एवं च णं विहरइ। ___ सूत्र ६. राजगृह नगर में विजय नाम का एक चोर था। वह बड़ा पापी, चाण्डाल जैसा
और जघन्य क्रूर कर्म करने वाला था। उसकी आँखें क्रोधी व्यक्ति की आँखों जैसी लाल थीं। उसकी .दाढ़े अतिशय कठोर, विशाल, विकृत और वीभत्स थीं। उसके दाँत बड़े-बड़े थे जिसके कारण दोनों होंठ आपस में मिलते नहीं थे। उसके सिर के बाल लम्बे और हवा से उड़ने के कारण बिखरे रहते थे। वह भँवरे और राहु के समान काला था और दया तथा पश्चात्ताप से परे। इतना रौद्ररूपी था वह कि देखते ही भय उत्पन्न हो। वह नृशंस और दयाहीन था। सर्प के समान एक-दृष्टि वाला अर्थात् क्रूर कर्म में दृढ़ निश्चय वाला था। अन्य की वस्तु चोरी करने की उसकी प्रवृत्ति छुरे की धार के समान तीक्ष्ण थी। गिद्ध जैसा माँस लोलुप तो था ही, वह अग्नि के समान सर्वभक्षी और जल के समान सर्वग्राही भी था। वह उत्कंचन (मिथ्या-प्रशंसा), वंचन (ठगी), माया, पाखण्ड और क्रूर-कपट में पटु था। वह मिलावट और धोखाधड़ी में सिद्धहस्त था। एक लम्बे समय से वह नगर को आतंकित किये हुए था। उसका शील, आचार और चरित्र-सभी गर्हित थे। वह जुआ खेलने, मदिरा पीने, भोजन करने और मांस भक्षण का लोलुप था। वह कठोर, अन्य लोगों को दुःख प्रदान करने वाला, उद्दण्ड, सेंध लगाने वाला, मायाचारी, विश्वासघाती और आग लगाने में बेहिचक था। देवस्थान को नष्ट करने में निःसंकोच और देवद्रव्य हरण करने में चतुर था। वह पराया धन छीन लेने को सदा तत्पर रहता था और वैर-भावना से भरपूर था।
विजय नाम का यह चोर राजगृह नगर के अधिकतर प्रवेश करने व निकलने के मार्गों, दरवाजों, छोटे व गुप्त द्वार, छिद्र, खिड़कियाँ, मोरियाँ, नालियाँ, नये मार्ग आदि स्थानों की खोज लेता रहता था। वह जुए के अड्डे, मदिरालय, वेश्यालयों और उनके प्रवेश स्थलों, चोरों के घर आदि स्थलों की खबर लेता रहता था। चौराहे, तिराहे, चौक तथा अन्य मार्गों
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JNĀTĀ DHARMA KATHÁNGA SUTRA
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