Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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C) ( १८४)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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धन्य सार्थवाह का निग्रह
सूत्र २४. तए णं से धण्णे सत्थवाहे अन्नया कयाइ लहुसयंसि रायावराहसि संपलते जाए यावि होत्था। तए णं ते नगरगुत्तिया धण्णं सत्यवाहं गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव चारग तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता चारगं अणुपवेसंति, अणुपवेसित्ता विजए णं तकरेणं सद्धिं एगयओ हडिबंधणं करेंति।
सूत्र २४. एक बार कुछ चुगलखोरों ने धन्य सार्थवाह पर किसी सामान्य छोटे-मोटे राज्यापराध का आरोप लगा दिया। नगर-रक्षकों ने उसे बंदी बना लिया और कारागार में ले जाकर विजय चोर के साथ एक ही बेड़ी से बाँध दिया। DHANYA IN PRISON
24. Once some adversaries framed Dhanya merchant and accused him of some minor offense against the state. He was apprehended and imprisoned. He was put in the same prison and shackled jointly with Vijaya thief.
सूत्र २५. तए णं सा भद्दा भारिया कल्लं जाव जलंते विपुलं असण-पाण-खाइमसाइमं उवक्खडेइ, उवक्खडित्ता भोयणपिडयं करेइ, करित्ता भायणाई पक्खिवइ, पक्खिवित्ता लंछियमुद्दियं करेइ। करित्ता एगं च सुरभिवारिपडिपुण्णं दगवारयं करेइ। करित्ता पंथयं दासचेडं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-“गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिया ! इम विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं गहाय चारगसालाए धन्नस्स सत्थवाहस्स उवणेहि।" ___ सूत्र २५. अगले दिन सुबह होने पर भद्रा ने बहुत-सी आहार सामग्री तैयार की और एक छबड़ी में उस सामग्री सहित आवश्यक पात्र आदि रख दिये। इस छबड़ी को बंद कर उस पर अपने चिह्न की मोहर लगा दी। सुगंधित जल से भरा एक छोटा घड़ा भी तैयार किया। पंथक नामक दास-पुत्र को बुलाकर भद्रा ने कहा-“हे देवानुप्रिय ! यह सब खाने-पीने का सामान कारागार में धन्य सार्थवाह के पास ले जाओ।"
25. Next morning Bhadra cooked a lot of food and put it in a basket along with the necessary utensils. She covered and sealed this basket. A small pitcher was filled with perfumed water. She now called slaveboy Panthak and instructed him, “Beloved of gods ! take all this food and water to Dhanya merchant in the prison."
सूत्र २६. तए णं से पंथए भद्दाए सत्थवाहीए एवं वुत्ते समाणे हट्टतुढे तं भोयणपिडयं तं च सुरभि-वरवारिपडिपुण्णं दगवारयं गेण्हइ। गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ।
BEDI (184)
meoJNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
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