Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
विजय चोर का निग्रह __सूत्र २२. तए णं ते नगरगुत्तिया विजयस्स तक्करस्स पयमग्गमणुगच्छमाणा जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता मालुयाकच्छयं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता विजयं तक्करं ससक्खं सहोडं सगेवेज्जं जीवग्गाहं गिण्हंति। गिण्हित्ता अट्टि-मुट्ठि-जाणु-कोप्पर-पहारसंभग्गमहियगत्तं करेन्ति। करित्ता अवाउडबंधणं करेन्ति। करित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणं गेण्हंति। गेण्हित्ता विजयस्स तक्करस्स गीवाए बंधंति, बंधित्ता मालुयाकच्छयाओ पडिनिक्खमंति। पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता रायगिहं नगरं अणुपविसंति। अणूपविसित्ता रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-महापह-पहेसु कसप्पहारे य लयप्पहारे य छिवापहारे य निवाएमाणा निवाएमाणा छारं च धूलिं च कयवरं च उवरिं पक्किरमाणा पक्किरमाणा महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वदंति_ “एस णं देवाणुप्पिया ! विजए नामं तकरे जाव गिद्धे विव आमिसभक्खी बालघायए, बालमारए, तं नो खलु देवाणुप्पिया ! एयस्स केइ राया वा रायपुत्ते वा रायमच्चे वा अवरज्झइ। एत्थढे अप्पणो सयाई कम्माइं अवरझंति' त्ति कटु जेणामेव चारगसाला तेणामेव उवागच्छति। उवागच्छित्ता हडिबंधणं करेन्ति, करित्ता भत्तपाणनिरोहं करेंति, करित्ता तिसझं कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा निवाएमाणा विहरंति।
सूत्र २२. इसके बाद वे नगर-रक्षक विजय चोर के पद-चिन्हों का अनुसरण करते हुए उस घने झुरमुट के पास पहुंच गये। झुरमुट में घुसकर विजय चोर को चोरी के माल सहित पकड़ लिया। पंचों की साक्षी करवाकर उसे गर्दन से बाँध लिया। फिर हड्डी के डंडे, मुक्के आदि से घुटने, कोहनियों आदि पर मार-मार कर उसका शरीर ढीला कर दिया। दोनों हाथों को पीठ के पीछे बाँध दिया और बालक के आभूषण कब्जे में कर लिये। यह सब कार्यवाही करके वे झुरमुट से बाहर निकले और राजगृह नगर में प्रवेश किया। नगर के विभिन्न मार्गों पर वे चोर को कोड़ों, बेंत और चाबुक से मारते और उसके ऊपर राख, धूल, कचरा आदि डालते हुए चलने लगे। इस बीच वे ऊँचे स्वर में यह घोषणा भी करते जा रहे थे-"हे देवानुप्रियो ! यह विजय नाम का चोर है। यह गिद्ध के समान मांसभक्षी है, बाल-घातक है, बच्चों का हत्यारा है। हे देवानुप्रियो ! इसे यह मार किसी राजा, राजपुत्र अथवा अमात्य के कहने से नहीं पड़ रही है। यह तो स्वयं अपने किये कुकर्म का दण्ड भोग रहा है।" चलते-चलते वे कारागार में पहुंचे और उसे बेड़ियों से जकड़ दिया। उसका भोजन-पानी बंद कर दिया और सुबह, दोपहर, शाम उस पर कोड़े आदि की मार बरसाने लगे।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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