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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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'एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जाव जलंते जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-“एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम तस्स गब्भस्स जाव दोहलं विणेन्ति; तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुब्भेहिं अब्भणुनाया समाणी जाव विहरित्तए।
"अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंध करेह।"
सूत्र १२. जब भद्रा को गर्भवती हुए दो महीने बीत गये और तीसरा चलने लगा तो उसे एक दोहद उत्पन्न हुआ-"वे माताएँ धन्य हैं, पुण्यशालिनी आदि हैं जो खूब अशनादि, घुष्पादि वस्त्रालंकार लेकर मित्रादि की स्त्रियों के साथ नगर के बीच से हो नदी के किनारे आती हैं। नदी में स्नान आदि कर वस्त्रालंकार पहन आनन्द से आहार ग्रहण करती हैं, स्वाद से खाती और खिलाती हैं और इस सबमें संतोष प्राप्त कर अपना दोहद पूर्ण करती हैं।" इस विचार के उठने के पश्चात् दूसरे दिन प्रातःकाल वह धन्य सार्थवाह के पास गई
और बोली-“देवानुप्रिय ! मुझे गर्भ के प्रभाव से एक दोहद उत्पन्न हुआ है।" दोहद का वर्णन कर उसने धन्य से दोहद पूर्ण करने की इच्छा प्रकट की।
धन्य ने कहा-“हे देवानुप्रिये ! तुम्हें जिसमें सुख मिले वह कार्य निर्विलम्ब करो।" PREGNANCY-DESIRE
12. During the third month of pregnancy Bhadra had a Dohad (pregnancy-desire)—“Blessed, pious, and contented are those mothers who, accompanied by other women, carrying plenty of gourmet food, flowers, cloths and ornaments (etc.) go to the river bank passing through the town. After arriving there they bathe (etc.) in the river, adorn themselves with cloths and ornaments, and enjoy as well as offer the food to others. Deriving happiness in these activities they fulfill their Dohad."
Next morning she went to Dhanya merchant with these thoughts and said, “Beloved of gods ! Due to my pregnant condition I had a Dohad." She explained her desire to Dhanya merchant and asked him to make necessary arrangements.
Dhanya said, “Beloved of gods ! do as you please without any delay."
सूत्र १३. तए णं सा भद्दा सत्थवाही धण्णेणं सत्थवाहेणं अब्भणुनाया समाणी हतुट्ठा जाव विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं जाव उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता ण्हाया
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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