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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
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MANIA
भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहुहिं छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
सूत्र १५४. मेघ अनगार ने गुणरल संवत्सर नामक तप का यथा सूत्र, कल्प और मार्ग सम्यक् पालन, शोधन तथा कीर्तन किया। फिर वे भगवान महावीर के पास आये और यथाविधि वन्दन करके उनसे अनुमति ले एक के बाद एक अनेक षष्टभक्त, अष्टमभक्त, दशमभक्त, द्वादशभक्त, अर्धमासखमण, मासखमण आदि अनोखी तपस्याएँ करते हुए विहार करने लगे। ____154. Ascetic Megh accepted this penance with proper rules and procedures as prescribed in the scriptures. He physically observed this penance, and adorned the observance with desired attitude, perfected and prolonged it. Concluding the penance with verbal praise of its fruits he went to Shraman Bhagavan Mahavir and seeking permission from Shraman Bhagavan Mahavir he observed a great number of harsh penances including fasts for a day, two days, three days, four days, five days, a fortnight and a month; and followed the ascetic way of life.
सूत्र १५५. तए णं से मेहे अणगारे तेणं उरालेणं विपुलेणं सस्सिरीए णं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धनेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारएणं उत्तमेणं महाणुभावेणं तबोकम्मेणं सुक्के भुक्खे लुक्खे निम्मंसे निस्सोणिए किडिकिडियाभूए अट्ठिचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाव यावि होत्था।
जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता, गिलायइ, भासं भासमाणे गिलायइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलायइ। __ सूत्र १५५. मेघ अनगार ऐसी उदार, विपुल, श्रीयुक्त, गुरु प्रदत्त, स्वयं गृहीत, कल्याणकारी, शिव, धन्य, मंगल, उदग्र, वर्द्धमान, उत्तम और महाप्रभावशाली तप साधना के कारण क्षीण, भूखे, रूक्ष और माँस व रक्तहीन से हो गये और उठते-बैठते उनके हाड़ कड़कड़ाने लगे। उनकी हड्डियाँ मात्र चर्म से मढ़ी दीखने लगी और दुबले शरीर पर नसें दिखाई देने लगीं।
वे अपने आत्मबल से ही खड़े रहते और चलते थे। बात करते तो थक जाते थे, यहाँ तक कि बोलने का विचार करने मात्र से भी थक जाते थे। ___155. As a result of these wide ranging, numerous, gracious, bestowed (by the guru), accepted, beneficent, torment free, commend
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CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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