Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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OMPU
प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
( ११९)
ORO
PAHARAN
SAHARANA
SAHEN
लिवान
"Suddenly the giant creature lifted its tail. Hurt by the shattered ego, it started trumpeting with all its power as if it would tear the sky apart. Like a deported king or a ship caught on a stormy sea or a giant whirlwind, it started running around with its herd piercing the screens of dense vines, uprooting trees, and defecating again and again.
सूत्र १२७. तत्थ णं तुम मेहा ! जुन्ने जराजज्जरियदेहे आउरे झंझिए पिवासिए | दुब्बले किलंते नट्ठसुइए मूढदिसाए सयाओ जूहाओ विप्पहूणे वणदवजालापारद्धे उण्हेण
य, तण्हाए य, छुहाए य परब्भाहए समाणे भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजायभए सव्वओ समंता आधावमाणे परिधावमाणे एगं च णं महं सरं अप्पोदयं पंकबहुलं अतित्थेणं पाणियपाए उइन्नो। __ सूत्र १२७. “हे मेघ ! (गजराज के रूप में) तुम जीर्ण-जर्जरित देह लिए, व्याकुल, भूखे, प्यासे, क्षीण, क्लान्त, बहरे और दिशा भ्रमित हो अपने यूथ से बिछुड़ गये। दावानल की ज्वालाओं से हार, गर्मी, प्यास, भूख की पीड़ा से भयभीत और त्रस्त हो गये। तुम्हारे भीतर का आनन्द का झरना सूख गया। भय से पराभूत हो इधर से उधर दौड़ने लगे। इस दौड़ भाग में तुम्हें एक बड़ा तालाब दिखाई पड़ा जिसमें जल कम और कीचड़ अधिक था। पानी पीने के लिए तुम बिना किसी घाट के ही उस सरोवर में उतर गये। ____127. “Megh! (In the birth as the king elephant) With your decrepit and withered body and frantic, hungry, thirsty, weak, tired, and deaf condition you were separated from your herd and lost. Overpowered by the flames of forest fire you became fearful and awe-struck with the agony of heat, hunger and thirst. The stream of joy within you dried up. Consumed by fear you started running around and saw a large pond which had more slime than water. In search of water you entered it without looking for a proper landing.
सूत्र १२८. तत्थ णं तुमं मेहा ! तीरमइगए पाणियं असंपत्ते अंतरा चेव सेयंसि विसन्ने।
तत्थ णं तुम मेहा ! पाणियं पाइस्सामि त्ति कटु हत्थं पसारेसि, से वि य ते हत्थे उदगं न पावेइ। तए णं तुम मेहा ! पुणरवि कायं पच्चुद्धरिस्सामि त्ति कटु बलियतरायं पंकसि खुत्ते। __सूत्र १२८. “मेघ ! तुम उस सरोवर में किनारे से दूर तो चले गये किन्तु पानी | तक पहुँचने से पहले ही दलदल में फँस गये। फिर तुमने किसी तरह पानी पी लूँ इस
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CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
(119)
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