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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
संजय बहू हत्थीहि य जाव कलभियाहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्वओ समंता दिसोदिसिं विप्पलाइत्था ।
तए णं तव मेहा ! तं वणदवं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - "कहिं णं मन्ने मए अयमेयारूवे अग्गिसंभवे अणुभूयपुव्वे ।" तए णं तव मेहा ! लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं, अज्झवसाणेणं सोहणेणं, सुभेणं परिणामेणं, तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं, ईहापोह - मग्गण - गवेसणं करेमाणस्स सन्निपुव्वे जाइसरणे समुप्पज्जित्था ।
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सूत्र १३३. " एक बार ग्रीष्म ऋतु के ज्येष्ठ मास में दावानल की ज्वालाओं में समस्त वनप्रान्त धधक उठा (पूर्व सम) और तुम बवण्डर की तरह इधर-उधर दौड़ने लगे । भयभीत और व्याकुल हो बहुत से हाथी - हथनियों के साथ चारों ओर भागने लगे ।
"उस समय हे मेघ ! दावानल को देख तुम्हारे मन में विचार उठा, 'लगता है ऐसी आग मैंने पहले भी कभी अनुभव की है।' विशुद्ध होती लेश्याओं, शुभ अध्यवसाय, शुभ परिणाम के प्रभाव से और मति - ज्ञानावरण कर्मों के क्षयोपशम होने से तुम्हें ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा (तर्क-वितर्क युक्त विशेष एकाग्र चिन्तन) करते-करते जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ।
MEMORY OF THE EARLIER BIRTH
133. “Once during the month of Jyeshtha in the summer season a terrible forest fire started and you and your herd ran wild in panic (details as mentioned earlier ).
"Looking at this forest fire you thought, 'It seems that I have experienced such holocaust before also.' While you were going through the process of thinking, ascertaining, analyzing, and exploring (Iha, Apoh, Margana, and Gayeshana), as a result of gradually purifying inner energies (Leshya), righteous endeavour and attitude, and destruction and suppression (Kshayopasham) of the instinctiveknowledge-veiling Karmas (Mati-Jnanavarniya Karma), you acquired the knowledge about earlier births (Jatismaran Jnana).
सूत्र १३४. तए णं तुमं मेहा ! एयमहं सम्मं अभिसमेसि - " एवं खलु मया अईए दोच्चे भवग्गहणे इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयगिरिपायमूले जाव तत्थ णं मया अयमेयारूवे अग्गिसंभवे समणुभूए ।" तए णं तुमं मेहा ! तस्सेव दिवसस्स पच्चावरण्हकाल-समयंसि नियए णं जूहेणं सद्धिं समन्नागए यावि होत्था । तए गं तुमं मेहा ! सत्तुस्सेहे जाव सन्निजाइस्सरणे चउद्दंते मेरुष्पभे नाम हत्थी होत्था ।
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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