Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
(१३५)
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मेघ की उत्कट तपस्या
सूत्र १५०. तए णं से मेहे अणगारे अन्नया कयाइ समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-“इच्छामि णं भंते ! तुडभेहिं अब्भणुनाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।"
“अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह।"
सूत्र १५0. कई दिन बाद एक बार मेघ अनगार भगवान के पास आए, वन्दना की और कहा- “भगवन् ! मैं आपकी अनुमति पाकर एक मास की मर्यादा वाली भिक्षु प्रतिमा लेने की कामना रखता हूँ।" ___ भगवान महावीर ने कहा-“देवानुप्रिय ! जिसमें सुख मिले वही करो। उसमें व्यवधान मत दो।"
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HARSH PENANCES BY MEGH ___150. After some days ascetic Megh came to Shraman Bhagavan Mahavir, bowed before him and said, “Bhagavan! If you permit me I wish to observe the one month duration Bhikshu Pratima (a specific harsh penance)." ___Shraman Bhagavan Mahavir said, “Beloved of gods! Do as it pleases you. Do not get distracted."
सूत्र १५१. तए णं से मेहे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुनाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं सम्मं काएणं फासेइ, पालेइ, सोहेइ, तीरेइ, किट्टेइ, सम्मं काएण फासित्ता पालित्ता सोहेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
“इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।"
"अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह।"
जहा पढमाए अभिलावो तहा दोच्चाए तच्चाए चउत्थाए पंचमाए छम्मासियाए सत्तमासियाए पढमसत्तराइंदियाए दोच्चसत्तराईदियाए तइयसत्तराइंदियाए अहोराइंदियाए वि एगराइंदियाए वि।
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CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
(135)
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