Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र भन्स्यति ? भगवानाह-'गोयमा ! भवागरिसं पड्डुच्च अत्थेगइए बंधी, बंधइ, वंधिस्सइ' हे गौतम ! भवाकर्ष प्रतीत्य-आश्रित्य भवाकर्षापेक्षया इत्यर्थः अस्त्येककः कश्चित् ऐर्यापथिक कर्म बद्धवान , बध्नाति, भन्स्यति च भवे अनेक भवे उपशमादिश्रेणिप्राप्त्या आकर्षः-ऐर्यापथिककर्माणुपुद्गलानां ग्रहणं भवाकर्षः कथ्यते, तदपेक्षया ' अत्थेगइए बंधी, बंधइ, न बंधिस्सइ ' अस्त्येककः कश्चित् ऐर्यापथिकं कर्म बद्धवान् , बध्नाति, किन्तु न भन्स्यतिर, 'एवं तं चेव सव्यं जाव अत्थेगइए न बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ, एवं रीत्या तदेव पूर्वपक्षोक्तं सर्व यावत्-अस्त्येककः कश्चित् बद्धवान् , न बध्नाति, भन्स्यति३, अस्त्येककः कश्चित् है ? न इसे वह बांधता है और न इसे वह बांधेगा ? ८, इस प्रकार से ये आठ विकल्प हैं । इसके उत्तर में भगवान कहते हैं-'गोय. मा! भावागरिसं पडुच्च अत्थेगइए बंधी, व धइ, बंधिस्सइ' हे गौतम! भवाकर्षको आश्रिक करके-अर्थात् भवाकर्ष की अपेक्षा लेकर के किसी एक जीव ने ऐर्यापथिक कर्म को बांधा है, वह बांधता है और वह यांधे. गा। अनेक भवों में उपशमश्रेणी आदि कीप्राप्ति से ऐर्यापथिक कर्म पुद्गलों का ग्रहण करना इसका नाम भवाकर्ष है। इस भवाकर्ष की अपेक्षा से जिस किमी एक जीवने पहिले ऐपिथिक कर्म को बांधा है, वही इस वर्तमान में बाधता है, आगे वह इसे बांधेगा, यह प्रथम विकल्प है। 'एवं तं चेव सव्वंजाव अत्थेगइए नधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ' इसी तरह से पूर्वपक्षोक्त बीच के अन्य छह विकल्प के संबन्ध में भी लगा(७) " न बधी, न बधइ, धिस्सइ” शुसूतते ४ वे બાળે નથી ? શું એજ જીવ વર્તમાનમાં તેને બાધ નથી? શું તે ભવિ. ध्यमा तन मध ? (८) ( न बधी, न बधइ, न बांधिस्सइ) शुं भूताwi કઈ જીવે તે બંધ બાંધ્યો નથી, વર્તમાનમાં બાંધતો નથી અને ભવિષ્યમાં એ જીવ તેને બાંધશે પણ નહીં? આ પ્રમાણે આઠ પ્રશ્નરૂપ વિકલ્પ છે.
तन म मापता महावीर प्रभु ४ छे 3--" गोयमा ! भवागरिसं पडुच्च अथेगइए बधी, बधइ, बधिस्सइ” हे गौतम ! अपनी मक्षा કઈ એક જીવે અર્યાપથિક કર્મ બાંધ્યું છે, તે બાંધે છે અને તે બાંધશે. (અનેક ભવમાં ઉપશમશ્રેણી આદિની પ્રાપ્તિથી અપથિક કર્મ પુદગલેને ગ્રહણ કરવા તેનું નામ ભવાકર્ષ છે) આ ભવાકર્ષની અપેક્ષાએ જે કઈ જીવે પહેલાં અર્યાપથિક કર્મ બાંધ્યું હોય છે, એ જ છ વર્તમાનમાં પણ તેને मांधे छ भने भविष्यमा ५ मा. म. पी . वि४६५ छ. ( एवं त चेव सव्वं जाप अत्थेगइए न बंधी, न बंधइ, न बांधिस्सइ " ८ प्रमाणे प्रश्न
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭