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आध्यात्मिक आलोक उत्तम साधक होगा ? मछली, मांस, मैथुन आदि को बुरा न मानने वाले साधक भी मिलेंगे, परन्तु ऐसे पथभ्रष्ट साधकों से किसी का भला नहीं होने वाला है । कोरा त्याग हो किन्तु ज्ञान न हो तो आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता, तथा ऐसे साधक जन-जीवन को भी प्रभावित नहीं कर सकते । आत्म-ज्ञान विहीन व्यक्ति उस चम्मच के समान है जो मिष्ठान से लिप्त होकर भी उसके माधुर्य के आनन्द से वंचित ही रहता है। कहा भी है
पठन्ति वेदशास्त्राणि बोधयन्ति परस्परम् ।
आत्मतत्वं न जानन्ति, दर्वी पाकरसं यथा ।। लोक और परलोक दोनों को बनाने के लिए परमात्म तत्व का ज्ञान जरूरी है और इसके लिए सत्संगति परमावश्यक है । बिना सत्संगति के न तो साधना की रुचि ही होगी और न आत्म तत्व का ज्ञान ही । अतः मनुष्य जीवन को पाकर चाहिए कि उसको सफल बनावें, अन्यथा कीट-पतंगे आदि की घृणित योनियों में भटकते हुए नाना दुःखों से टकराना पड़ेगा | आनन्द और संभूति विजय आदि का उज्ज्वल जीवन प्रकाश-स्तम्भ की तरह हम सबका मार्ग निर्देशन कर रहा है और हमें इंगित कर रहा है कि हमारी तरह तुम भी अपने अन्तःकरण में ज्ञान की ज्योति भर कर जगत् के भूले-भटकों का मार्गदशन करो और बुराइयों से बचकर भलाइयों के पथ पर बढ़ते हुए अपने जीवन को यशः पूर्ण बनालो ।