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आध्यात्मिक आलोक
19 उनकी बराबरी का कोई दूसरा महापुरुष नहीं था । शरीर, मन, और वाणी के तप से युक्त महावीर स्वामी अंतरंग और बहिरंग तपस्वी थे । उनसे आधि व्याधि और उपाधि रूप त्रय ताप सर्वथा दूर रहा करते थे । जैसे अन्धकार प्रकाश से दूर रहता है। प्रभु के आगमन की सूचना से सारा जनपद उनके दर्शनार्थ उमड़ पड़ा । जनसमुदाय को जाते देख कर ज्ञान ग्रहण की कामना से आनन्द भी जाने को उद्यत हुआ |
कहावत है कि जैसा संग वैसा लाभ | गंधी के संग में गंध का लाभ होता लोहार के घर में उसकी संगति से आग की चिनगारी का दर्शन तथा कोयले की दूकान में कालापन मिलता है । वैसे ही ज्ञानवान की संगति में ज्ञान लाभ के संग आत्मिक शान्ति भी मिलती है । इस प्रकार संगति का फल मिले बिना नहीं रहता। कहा भी है - 'ज्ञान बढ़े गुणवान की संगत' ।
आनन्द जब ज्ञान ग्रहण करने की सुभावना लेकर चला तो महावीर स्वामी के सदृश त्याग, तप और आचारपूर्ण संत की संगति से भला लाभ क्यों न होता, जबकि आचारहीन विद्वानों की संगति से भी कुछ-न-कुछ लाभ मिल जाता है । फिर धर्म साधना का अधिकार हरएक को है, क्योंकि धर्म किसी एक की जागीरदारी नहीं जो दूसरा उसमें प्रवेश नहीं करे ।
यद्यपि प्रभु-दर्शन को जाने वाले कई लोग महावीर स्वामी की ख्याति, बड़ाई और विशेष गुणदर्शन की उत्कण्ठा से जा रहे थे । जिज्ञासावश जाने वाले को भी सत्संगति का लाभ मिलता है । जैसे किसी सुरभित उद्यान में प्रवेश करने वाले का मानस सुरभिपूर्ण और सुखी हो जाता है, मगर सत्संग में दर्शक की अपेक्षा गुण ग्राहक अधिक लाभान्वित होता है । दर्शक की प्रसन्नता तो तभी तक है, जब तक दर्शनीय उसके सामने हो किन्तु ग्राहक वस्तु को ग्रहण कर पीछे भी प्रमुदित होता रहता है। साधना के मार्ग में ग्राहक बनकर जाना चाहिए, दर्शक बनकर ही नहीं, ग्राहक बनकर जाने वाला तात्कालिक लाभ से भी अधिक भविष्य का लाभ लेकर जाता है।।
आनन्द समस्त कौटुम्बिक जंजाल को त्याग कर शुद्ध मन से प्रभु की सेवा में जा रहा था । इसलिये उसने धर्म सभा के अनुकूल अपनी वेशभूषा बना ली । क्योंकि राजसभा की तरह धर्म-सभा में भी अनुशासन और अदब का ध्यान रखना आवश्यक है । अन्यथा आत्मा उत्थान के बदले पतन की ओर झुकती है । संत के पास जाने के लिए पांच नियम हैं :- १-सचित्त द्रव्य, फल-फूल और श्रीफल आदि दूर रखकर जाना । स्अचित्त-वस्त्राभूषण बिना छोड़े, वंदन में बाधक, छड़ी-छाता आदि दूर रखकर जाना । श्वार से संत को देखकर अंजलि जोड़े जाना । ४-एक शाटी के वस्त्र से उत्तरासन करना । ५मन को सांसारिक विषयों से दूर कर स्थिर करना ।