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[ ४ ] जैन संस्कृति की साधना
महापुरुष का जीवन स्वयं ऊपर उठा होता है और वे संसार के लोगों को भी उठाने में सहायक होते हैं जैसे चन्दन स्वयं भी सौरभ वाला है और पास के दूसरे वृक्षों को भी सुगन्धित कर देता है । यही कारण है कि संसार के लोग खासकर सौभाग्यशाली जन महापुरुषों के पीछे चलते हैं । साधक जब अच्छा निमित्त पा लेता है तो उसके ऊपर उठने में समय नहीं लगता । लता भूमि पर प्रसारित होने वाली है, किन्तु आधार पाकर ऊपर चढ़ती है क्योंकि उसका स्वभाव फैलने का है । यदि उसे कोई आधार खम्भा इत्यादि नहीं मिले तो वह जमीन पर ही फैलती है किन्तु ऊपर नहीं उठती, क्योंकि सहारा नहीं है । ऐसे ही साधक को भी सहारा चाहिए । बिना सहारे के अन्तःशक्ति होते हुए भी ऊपर उठना दुःशक्य और असंभव ।
सत्संग का सहारा - निमित्त जीवन को उच्चतम स्थिति पर पहुँचा देता है । महावीर स्वामी का सहारा पाकर कोल्लाग ग्राम का गृहस्थ आनन्द आदर्श जीवन बनाकर न सिर्फ लोक में ही सम्मानित बना, बल्कि उसका परभव भी सुधर गया । सुमार्ग में ले जाने वाले महावीर स्वामी का पवित्र निमित्त मिलने से ही आनन्द अपना जीवन बना सका ।
जब कोल्लाग ग्राम में वीतराग भगवान महावीर स्वामी पधारे तो वहां की स्थिति बड़ी मंगलमय बन गई । वहां का वातावरण आध्यात्मिकता से ओतप्रोत हो गया। किसी कवि ने ठीक कहा है
विवेकी संत बसे जेहि देश ।
ऋद्धि सिद्धि तहं वास करत है, धरि दासिन का वेश ||
त्याग और ज्ञान के मूर्तिमान रूप प्रभु जब कोल्लाग पधारे तो चारों ओर समाचार फैल गया कि हृदय-पटल को खोलने वाले ज्ञानी संत आए हैं । उस युग में