Book Title: Shatrunjaya Mahatmya
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... . ६.१.१.१ .... ............. ................................................................ HTARNATIHAASTAT E KARTA श्री जिनाय नमः श्री धनेश्वरसूरिकृत श्री शत्रुजय माहात्म्य गुजराती भाषांतर. DAL Acadevalavaracacaola CineSURELEASESecar ANANMALERS SR. प्रथमः खंडः संस्कृतपरथी गुजरातीमां जामनगरवाला पंडित श्रावक हीरालाल वि. हंसराज पासे नाषांतर करावी छपावी प्रसिद्ध करनार श्रा. नीमसिंद्र माशोक श्री मुंबइमां निर्णयसागर मुद्रायंत्रमा छाप्यु. PANCHAL YBRANCS NO.18.COM GOATO TERTAL संवत १९५६ dMJMERELES च सने १८९९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. -88 सर्वे जैनबंधुऊने मालुम थाय जे, श्रा पंचम कालमां तीर्थंकर प्रजु था जरतक्षेत्रमा विचरता नहीं होवाथी, तथा केवली महाराज पण नहीं होवाथी, श्रा अपार संसारसमुथी तारवाने "श्री शत्रुजय महातीर्थ" समर्थ डे, एम तीर्थंकर महाराजो पण कही गएला . ते महातीर्थमाहात्म्य श्री रुपनदेव प्रजुना वखतमां पुंडरिकजी गणधर महाराजे सवा लाख श्लोकनी रचना करीने बनाव्युं हतुं; तथा तेमांथी संक्षिप्त करीने श्री वीरप्रजुना समयमां सुधर्माखामि गणधर महाराजे चोवीस हजार श्लोकनी रचना करीने बनाव्युं हतुं; तेमांथी पण सार उधरीने ववनीपुरना श्री शिलादित्य राजाना श्राग्रहथी श्राचार्य महाराज श्री धनेश्वरसूरिजीए दश हजार श्लोकनी रचना करीने संस्कृत भाषामां बनावेबुं बे; तेमांते आचार्य महाराजे महाकाव्यनी तुल्य अति उत्तमथने अलंकारोथी नरेली रचना करी. वली या ग्रंथ आपणा जैनीऊना अत्यंत प्राचीन ग्रंथ मांहेनो एक ग्रंथ बे; अने ते ग्रंथ बनावीने श्री धनेश्वरसूरिजी महाराजे आपणापर अवर्णनीय उपकार करेलो बे; केम के तेमां श्रा संसार समुज्थी तारनारा " श्री शत्रुजय महातीर्थमुं" माहात्म्य वर्णवेढुं , वली था ग्रंथ मूल संस्कृत नाषामां होवाथी, अमोए तेना था प्रथम खंडन गुजराती भाषांतर जामनगर निवासि पंडित श्रावक हीरालाल वि. हंसराज पासे करावी उपावी प्रसिक कर्यु जे; या ग्रंथमां श्री ऋषनदेव प्रजुश्रादिक केटलाक तीर्थंकरोना पण चरित्रो श्रावेलां बे; था ग्रंथना बे खंडो के तेमां श्रा प्रथम खंडमां श्री शत्रुजय श्रादिक शिखरोनुं माहात्म्य वर्णवेलुं , तथा बीजा खंडमां श्री गिरनारजी श्रादिक शिखरोनुं वर्णन करेलुं .ते बीजा खंडनुं गुजराती नाषांतर पण थोडाज दिवसोमा श्रमारा तरफथी उपाय बहार पडवानुं बे. या ग्रंथमां श्री शत्रुजय तीर्थाधिराजनो अपूर्व महिमा वर्णवेलो , तथा था ग्रंथ जैनीउने माटे एटलो तो जरुरनो डे के, तेनुं था जगोए ब्यान नहीं करतां, फक्त श्राद्यथी ते अंतसुधि ते वांची जवानी अमो अमारा जैनबंधुउने जलामण करीयें बीये. था तीर्थाधिराजनुं माहात्म्य वांचवाथी, तथा सांजलवाथी केटबुं पुण्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. उपार्जन थाय बे, तेनुं वर्णन था ग्रंथज वांचवाथी जणाशे. माटे पोताना बन्ने नावना कल्याण श्छनार, एवा दरेक जैनबंधु था अमूख्य ग्रंथनो जरुर लान लेशे. इत्यलं विस्तरेण. नीमसिंद माणेक. - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. bu विषय सर्ग पेहेलो १ पंचपरमेष्टिनी स्तुतिरूप मंगलाचरण. २ शत्रुजयमाहात्म्य ग्रंथनी रचना संबंधि अधिकार, ३ शत्रुजयमाहात्म्यनो महिमा. ४ श्री वीरप्रजुनुं श्री शत्रुजय प्रते आगमन. ५ श्री शत्रुजय पर्वतर्नु तथा तेनी आसपासनां स्थानकोतुं अलं. ____कारिक वर्णन. ६ कंडु राजानुं वृत्तांत. 5 शासनदेवी अंबीकाएकंडुराजाने कहेलो श्रीशत्रुजय तीर्थनोमहिमा ७ कंडुराजाने मुनिए कहेलु चारित्रनुं लक्षण. ए वीरप्रजुनी आसपास रहेला मुनिउँनुं वर्णन. १० देवोए बनावेलां समवसरणनी रचनानुं वर्णन ११ सौधर्मे करेली श्री वीरप्रजुनी स्तुति. १५ श्री वीरप्रजुए दीधेली देशनानुं वर्णन. १३ सौधर्मेझे श्री वीरप्रजुने पुढेलो शत्रुजय तीर्थनो महिमा. १४ श्री वीर प्रजुए कहेलो शत्रुजय तीर्थनो महिमा. १५ श्री शत्रुजय तीर्थनां नामो. १६ श्री शत्रुजय पर्वतनां शिखरो. १७ श्री शत्रुजय पर्वतना मुख्य शिखरनो महिमा. १७ श्री शत्रुजयपर रहेली रायणनो महिमा. सर्व बीजो. १ए सूर्यावर्त कुंडनो महिमा. २० महीपालनी कथा. १ महीपाल योगी तथा योगिनीनुं वृत्तांत. २५ वांदरानुं तथा राक्षसनुं वृत्तांत. २३ महाकालयदनुं वृत्तांत. २४ मुनिए कहेलो धर्मोपदेश. HeaEEsunam Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. २५ एक बगलानुं वृत्तांत. २६ गुणसुंदरी तथा विद्याधरनुं वृत्तांत. २७ त्रिवि क्रिम राजानुं वृत्तांत. २० केवली महाराजनो उपदेश. शए गुणसुंदरी साथे महिपालनो विवाह. ३० महीपालने थएलो कुष्ठरोग. ३१ चैत्री पुनेमने दिवसे विद्याधरोनुं सिझगिरिपर श्रागमन. ६४ ३२ सूर्योद्याननो महिमा. ३३ विद्याधरनी स्त्रीए सींचेला तीर्थोदकथी महिपालनुं रोगोथी मुक्तथर्बु ६६ ३४ महीपालनु पूर्वजवनुं वृत्तांत. ३५ महीपालनुं मोक्षगमन. सर्ग त्रीजो. ३६ कुखकरोतुं वृत्तांत. ३७ षनदेव प्रजुनो जन्म. ३० षनदेव प्रजुनो जन्मानिषेक. ३ए इंडोए करेली प्रजुनी स्तुति. ४० सें करेली प्रजुना वंशयी स्थापना. ४१ षनदेव प्रजुनो राज्याभिषेक. ४२ विनीता नगरीनी रचना. ४३ लोकांतिक देवोनुं आगमन. ५४ प्रजुनो दीदा महोत्सव. ४५ लरतराजानुं वृत्तांत. ४६ श्रेयांसकुमारे प्रजुने करावेलुं पारj. ४७ षनदेव प्रनुमाटे मरुदेवा मातानो खेद. ४ षजदेव प्रजुने केवलज्ञान थवानुं वृत्तांत. ४ए जरतराजानी आयुधशालामां चक्रनी उत्पत्तिनुं वृत्तात. ५० मरुदेवा माता सहित नरत महाराजनुं प्रजु पासे ज. ५१ प्रजुना समवसरणने जोश मरुदेवा माताने थएलुं केवलज्ञान, तथा तेमनो मोद. ए Go ६ स ԵՆ GG Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. जरत राजाए करेली प्रजुनी स्तुति. ३ शषनदेव प्रभु करेलो उपदेश. २४ प्रभु करेली चतुर्विध संघनी स्थापना. ५५ गणधरोए करेली द्वादशांगीनी रचना. ५६ जरत महाराजे करेलो चक्रनो महोत्सव. ७ जरत चक्रीतुं दिग्जय माटे प्रयाण. ५० चक्रीनुं मागध तीर्थप्रते श्रागमन. ५ चक्रीनुं मागधेश्वरप्रते बाणनुं फेंक. ६० मागधेश्वरने थलो कोप. ६१ चक्रीनं वरदाम तीर्थप्रते आगमन. ६२ चक्रीनुं प्रनास तीर्थप्रते श्रागमन. ६३ प्रजासेशे कहेलं तीथों दकनुं वृत्तांत. ६४ चक्रीनुं महासिंधुप्रते गमन. ६५ चक्रीनुं वैताढ्यप्रते गमन. ६६ चक्रीनं तमिस्रा गुफाप्रते गमन. ६७ सेनापति सुषेणनुं म्लेछ देशोप्रते गमन. ६० तमिस्रा गुफानुं उघाडवुं. ६७ म्लेबोनो उत्पात. ७० चक्रीना सैन्यमां रोगोनो उपद्रव. ७१ शत्रुंजयपर रहेली रायणना पत्रादिकथी चक्रीना सैन्यमां थएलो रोगोनो नाश. ७२ म्लेछोनुं शरणे याववुं. ७३ चक्रीनं कद्र हिमाप्रिते गमन. १४ नमिविन मिनुं वृत्तांत. ७५ गंगासाथे चक्रीनो विलास. ७६ ईशानेंनुं पूर्व जवनुं वृत्तांत. 99 चक्रीनुं खंडप्रपात गुफाप्रते गमन. ७८ चक्रीने नव निधानोनी प्राप्ति. gu चक्रीभुं अयोध्याप्रते श्रागमन. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 5 დი დე १ श् श् ३ ६ g Uu २०० १०० १०१ १०२ १०२ १०२ १०३ १०३ १०७ २०७ २०७ १०८ २०० ११० १११ ११३ ११३ ११४ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११न ११ १२० १२० अनुक्रमणिका. ७० चक्रीनो महानिषेक. ७१ चक्रीना राज्यादिकनुं वर्णन. २ सुंदरीतुं वृत्तांत. ज्३ श्री ऋषनदेव प्रजुनु अष्टापदप्रते आगमन. va चक्रीए करेली प्रजुनी स्तुति. ७५ चक्रीन पोताना नाप्रते दूतोनुं मोकलबुं. ७६ चक्रीनां जाए लीधेली दीदा. सर्ग चोथो 6 चक्रनुं श्रायुधशालामां नहीं दाखल थवानुं सेनापतिए चक्रीने कहेलु वृत्तांत. १२ G७ चक्रीनुं बाहुबलिप्रते दूत, मोकलबुं. १२३ ज्ए दूतने थएलां अपशुकनो, तथा मार्गमां आवेलां जयकर वननुवर्णन.१५४ ए बहलिदेशन वर्णन. १२५ ए? तक्षशिलानुं वर्णन. १२५ एर सजामां बेठेला बाहुबलिनुं वर्णन. १२५ ए३ बाहुबलिए दूतने पुढेलु जरता दिकनुं कुशल वृत्तांत. ए। दूते मधुरादिक वचनोथी बाहुबलिने करेलु वृत्तांत. १५६ एए बाहुबलिने चडेलो क्रोध, अने तेथी तेणे जरतजीने लडाइ माटे दूत मारफते मोकलेलो संदेशो. ए६ तक्षशिलाना लोकोनी चर्चा. १२ ए दूतनुं अयोध्यामां श्राव, अने तेणे चक्रीने जणावेलुं वृत्तांत. १३१ एसुषेणादिकें बाहुबलि साथे लडाश्करवामाटेचक्रीने चडालो,वीररस १३२ एए रणसंग्राम माटे चक्रीतुं प्रयाण. १०० अनंत देवतुं वृत्तांत. १३५ १०१ रणसंग्राममाटे बाहुबलिनी तैयारी. १३६ १२ चक्रीए पोताना योगाउप्रते बाहुबलिना योझाउनुं करेलु वर्णन. १३७ १०३ रणांगणामां बाहुबलि तथा तेना पुत्रोनुं आगमन. १३ए १०४ रणांगणमां चक्री अते तेना पुत्रो, आगमन. १०५ चक्रीअनेबाहुबलिनायुनुवीररसश्रीजरेलुं विस्तारसहितवर्णन. १४१ १२६ १५७ १३३ १४० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ए अनुक्रमणिका. १०६ रणसंग्राम माटे प्रजुना बन्ने पुत्रोने समजाववा माटे देवोए करेली तजवीज. २४ए १७७ बन्ने नानु थएवं वंयुक, तथा तेमां चक्रीनी श्रएली हार. १५५ १०७ जरतजी, बाहुबलिप्रते चक्रनुं फेंक. १५७ १०ए बाहुबलिजीने थएलो वैराग्य, तथा तेमणे करेलो केशोनो लोच. १५७ ११० चक्रीए करेली पोतानी निंदा, तथा बाहुबलि मुनिराजनी ___करेली स्तुति. १५० १११ बाहुबलिजीयें पूर्वे करावेलां धर्मचक्रनुं वृत्तांत. ११२ बाहुबलिजीने ब्राह्मी सुंदरीए श्रापेलो बोध. . १६१ ११३ बाहुबलिजीने थएलु केवलज्ञान, तथा तेमनुं प्रजुनी सजामां आगमन. १६२ सर्ग पांचमो. ११४ श्री युगादीशप्रजुनुं शत्रुजयप्रते श्रागमन, तथा शत्रुजयनुवर्णन. १६५ ११५पुंडरिकजीनी देशना,तथा प्रजुए तेउँने कहेलो शत्रुजयनो महिमा१६३ ११६ पुंडरिकजीए मुनि सहित शत्रुजयपर करेली संलेखना, तथा चैत्री पुनेमे तेमनो सर्वनो त्यां थएलो मोद. १७० ११७ चैत्री पुनेमनो महिमा. १७२ १९७ श्री ऋषनदेव प्रजुनु सिझार्थोद्यानमां आगमन. ११ए प्रजुनी देशना,तथा जरतजीए प्रजुपासेथी मेलवेढुं संघाधिपपणुं. १७३ १२० चक्रीतुं शत्रुजयप्रते संघसहित प्रयाण. १७५ १२१ चक्री अने शक्ति सिंहनो मेलाप. १७६ १२२ श्रीनान गणधरजीए कहेली संघपतिनी विधि. १७७ १५३ चक्रीए करेली तीर्थाधिराजनी स्तुति.. १७७ १२४ चक्रीए करेली आनंदपुरनी स्थापना. १२५ चक्री, शत्रुजय गिरिपर चड. १७० १५६ चिहण मुनि, तथा चित्रण सरोवर, वृत्तांत. १२७ शक्तिसिंहे लदमीविलास वननुं चक्रीने कहेलुं वर्णन. १२७ चक्रीए ते वनमांनाखेलो पडाव,तथा लोकोनी क्रीडा, वर्णन. १७२ १२ए सर्व तीर्थावतार कुंडनुं माहात्म्य. १७२ १०ए १०१ ... ११ १३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ १६ १७ २०० अनुक्रमणिका. १३० चक्री अने सौधर्मेजनो मेलाप, ११ इंजना कहेवाथी चक्रीए शत्रुजयपर बनावेलां "त्रैलोक्यवि जम" श्रादिक प्रासादोनां वर्णन. १३२ प्रासादोमां करेली प्रतिष्ठा श्रादिकनुं वर्णन. १३५ चक्रीए श्री षनदेव प्रनु आदिकोनी करेली स्तुति, तथा गणधरोए तेमने करेला तिलक आदिकनुं वर्णन. १३४ श्रीनान गणधर महाराजनी देशना, तेमां तेए करेलु सा त क्षेत्रोनुं वर्णन. १३५ शत्रुजयी नदीनो महिमा. १९३ १३६ शांतनु राजानुं वृत्तांत. रए। १३७ ऐंडी आदिक नदीउनुं माहात्म्य तथा वृत्तांत. १३० ब्रह्मगिरि श्रादिक शिखरोपर चक्रीए करावेलां मंदिरो. १३ए चक्रीन गिरनारजीप्रते प्रयाण. २०३ १४० तापसोनुं वृत्तांत. २४१ रेवताचलनुं वर्णन. १४२ गजपगलांना (हाथीपगलांनां) कुंडनो महिमा. ११३ चक्रीए श्री नेमिनाथ प्रजुनी करेली पूजा, तथा स्तुति. ០ថ १५४ चक्रीए करेलुं गिरनारजीनुं वर्णन. २११ १४५ बरट राक्षसनुं वृत्तांत. २१५ १४६ गिरनारपर चक्री तथा ब्रह्मेनो मेलाप. १३ १४७ चक्रीन गिरिपुर्गपुरमा (जुनागढमां) आगमन. २१४ १४७ चक्रीए बु विगेरे तीर्थोपर करेला उधारो. २१५ १४ए चक्रीनुं अयोध्यामां फरीने श्रागमन. सर्ग हो. १५० श्री ज्ञषजदेव प्रजुनु अष्टापदप्रते श्रागमन. १७ १५१ श्री षनदेव प्रजुनो मोद. १ए १५२ श्री शषजदेव प्रजुनाशरीरनो इंसादिकोए करेलोश्रग्निसंस्कार. २२० १५३ प्रजुना शरीरना अनिदाहनां स्थानके चक्रीए करेलो 'सिंह निषिक" प्रासाद. २०४ २०५ २०० १६ २२० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. १५३ नरतचीने रिसावनमां थपलुं केवलज्ञान. २२३ १५४ सूर्ययशानुं चरित्र. २२४ २२७ १५५ सूर्ययशाने व्रतथी चलित करवामाटे उर्वसी तथा रंजानुं आगमन. २२६ १५६ सूर्ययशा साथे ते बन्ने अप्सरार्जुनो विवाह. १५७ सूर्ययशा ते अप्सरानी करेली निलंबना. २५० सूर्ययशाने एलुं केवलज्ञान, तथा तेमनो मोक्ष. सर्ग सातमो. १५० द्राविड ने वालखिल्लनुं वृत्तांत, तथा तेर्ज बन्नेनुं युद्ध. १६० वर्षा तथा शरद तुनुं शृंगाररसयुक्त वर्णन. १६१ द्राविड राजाए तापसपासेथी सांजलेलो उपदेश. १६२ द्राविड तथा वाल खिल्लनुं तापसदीक्षाग्रहण. २६३ हंसनुं वृत्तांत. २६४ प्राविड श्रादिकनं मोक्षगमन. १६५ दंडवीर्य राजनुं वृत्तांत. 2 १२० २३१ २४५ १६६ दंडवीर्य राजनी धर्मना निश्चलपणामाटे इंद्रे करेली परीक्षा. १४५ १६७ दंडवीर्य राजाए शत्रुंजयप्रते करेलुं प्रयाण, तथा त्यां तेमणे करेलो बीजो उद्धार. Jain Educationa International १३२ २३५ २३५ २४१ २४२ २४४ २४८ १६० इशानेंद्रे करेलो त्रीजो उद्धार. २५१ १६० माहेंगें करेलो चोथो उद्धार, तथा सुहस्तिनी देवीनं वृत्तांत. २५२ १० ब्रह्मे करेलो पांचमो उद्धार. १५३ १७१ वनेंझें करलो बsो उद्धार. २५४ मो. सर्ग १२ अजितनाथ प्रजुनुं तथा सगरचक्रीनुं चरित्र. १७३ अजितनाथ प्रभु तथा सगरचक्रीनो जन्म. १७४ वसंत ऋतुनुं शृंगाररसयुक्त वर्णन. १७५ अजितनाथ प्रजुए लीवेली दीक्षा. For Personal and Private Use Only २६१ १७६ सगर चक्रीने चक्ररत्लनी प्राप्ति, तथा अजितप्रभुने केवलप्राप्ति. २६२ २६४ १७७ सगर चक्रीए करेलो दिग्विजय. १७० मयूरनुं वृत्तांत. २६५ २५५ २५६ २५ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७१ २० अनुक्रमणिका. १७ए श्री अजितनाथ प्रनुनी देशना. २६६ १७० वर्षा तथा शरद ऋतुनुं शृंगार सयुक्त वर्णन. २६७ १७१ सुव्रत आचार्य- वृत्तांत. २६० १७२ सगर चक्रीना जहुवादिक साठ हजार पुत्रोनु,श्रष्टापदप्रते गमन.श्६ए . १०३ श्रष्टापद पर्वतर्नु वर्णन. श्६ए १४ सगर चक्रीना पुत्रोनुं अष्टापदनी श्रासपास खानु खोदकुं, अने नागेजनुं श्राव; तथा तेणे ते ने दीधेली शिखामण. २७० १५ सगर चक्रीना पुत्रोनुं खानते गंगानुं लाव, अने नागेंडे करेलो ते सघलाउँनो दाह. ইং १६ फुःखी थएला सगर चक्रीना सैन्यप्रते इंजनुं ब्राह्मणरूपें श्रा व, तथा तेणे ते सैन्यने आपेली समजुती. १७ सगर चक्रीने समजावq. | এই १७ साठ हजार पुत्रोना एकदम थएलां मृत्युथी सगरचक्रीने थएलो शोक, तथा इंडे श्रापेली तेने समजुती. २७४ १७ए सगरचक्रीतुं अजितप्रजुप्रते गमन, प्रजुनी देशना, तथा पोता ना ते पुत्रोनो पूर्व नवनो प्रजुपासेथी तेणे सांजलेलो वृत्तांत, २७६ रए संघपतिथक्ष, सगर चक्री- शत्रुजयपर आगमन. १ए? गंगानुं मूल प्रवाहमा वहन. १ए सगर चक्रीनुं शत्रुजयप्रते समुज्नु लावतुं. २० रए३ सगर चक्रीए शत्रुजयादि तीर्थोनो करेलो सातमो उझार. १ए। प्रजुनो अने सगर महामुनिनो पण मोद. श्र १ए५ व्यंतरेंजोए करेलो आठमो उझार. २३ रए६ चंडप्रन प्रजुनु वृत्तांत, तथा चंऽयशाए करेलो नवमो उकार.२४ १ए शांतिनाथ प्रजु, तथा, सिंहदेवनुं वृत्तांत. न्य १एज चक्रधरे करेलो दशमो उकार. श्नए सर्ग नवमो. रएए राक्षसवंश, तथा वानरवंश, अने दशरथनुं वृत्तांत. ए६ २०० रामचंजी तथा रावण- वृत्तांत. ३०१ २०१ जाषांतरकारनी प्रशस्ति. ३२७ - - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जिनाय नमः (श्रीधनेश्वर सूरिकृत) श्रीशजय माहात्म्य गुजराती भाषातर. प्रथमःसर्गः प्रारच्यते उनमो विश्वनाथाय, विश्वस्थितिविधायिने॥ अर्हतेऽव्यक्तरूपाय, युगादीशाय योगिने ॥१॥ अर्थः-जगतना नाथ, तथा जगतनी स्थितिना करनारा, अने अप्रगट बे, रूप जेमनुं एवा, तथा योगी एवा श्री षजदेवजी अरिहंत प्रते नमस्कार था. अर्दचक्रिश्रियःस्वामी, चामीकरसमप्रनः॥ स्तुत्यःसत्कृत्यलानाय, श्रीशांतिः शुनतांतिकृत् ॥३॥ अर्थः-अरिहंत तथा चक्रीनी संपदानां खामी, तथा सोना सरखी कांति वाला, अने स्तुति करवा लायक एवा श्री शांतिनाथ नगवान मोदनां लाजने माटे मंगलनी वृद्धि करनारा थाऊ. देलांदोलितदैत्यारि, जरासिंधप्रतापहृत् ॥ स्मरणीयं स्मरं कुर्वन; श्रीमान्नेमिः पुनातु वः॥३॥ अर्थः-क्रीडाथी हींचोलेल ने श्रीकृष्णने जेणे, तथा जरासिंधनां प्रतापने हरनारा, अने कामदेवने पण संजालवा योग्य करता, एवा श्री नेमिनाथ जगवान तमाकं रक्षण करो ? . यस्यदृष्टिसुधाष्टि दानाददिरदीश्वरः जातस्तापत्रयान्मुक्तः, स श्री पार्थो मुदेऽस्तुवः॥४॥ अर्थः-जेनी दृष्टिरूपी अमृतनी वृष्टिनां दानथी सर्प पण धरणे तथा अतीत, अनागत, अने वर्तमान काल संबंधि पीडाथी मुक्त थयो, एवारते श्री पार्श्वनाथ प्रजु तमारा हर्षने माटे था ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ‍‍ शत्रुंजय मादात्म्य. सुरासुरनाथस्य, संशयापनयाय यः ॥ कंपयत्रिधा वीरः, श्री विरः श्रेयसेऽस्तुवः ॥ ५ ॥ अर्थः- इंद्रनी शंकाने दूर करवा माटे जेणे मेरु पर्वतने पण कंपाव्यो बे. तथा त्रण प्रकारे शुरवीर एवा श्री वीरप्रभु तमारा कल्याणनेथें था. श्वर प्रमुख जिनोनुं तथा पुंडरिक प्रमुख मुनिर्जनुं तथा शासनदेवीनुं ध्यान करीने या शत्रुंजयमाहात्म्यनुं हुं वर्णन करूं हुँ. श्री युगादि जिनेश्वरनी यज्ञाथी पुंडरिक गणधरे सवा लाख श्लोकनां प्रमाणवालुं, तथा नाना प्रकारनां श्राश्चर्यवालुं, तथा सघला तत्वोथी संपूर्ण, तथा देवो पण पूजेल एवं शत्रुंजयमाहात्म्यनुं वर्णन, जगतनां हित माटे पूर्वे बनाव्यं हतुं तेमांथी मथन करीने श्रीवीरप्रभुनी आज्ञाथी सुधर्मास्वामी ए, लोकोने अल्प श्रायुष्यवाला जाणीने ते माहात्म्य संपथी चोविस हजार श्लोकनुं बनाव्युं. तेमांथी पण सारने उधरीने, स्याद्वादवाणीमय एवं ते माहात्म्य, अष्टांग योगमां निपुण, तथा वि श्रादिकमां निस्पृही, तथा नाना प्रकारनी लब्धिवाला, तथा राजगनां मंडन रूप, तथा उत्तम चारित्र्थी पवित्र अंगवाला, अने वैराग्यना समुद्र सरखा, अने, सर्व विद्यामां निपुण एवा श्री धनेश्वर सूए, बौद्धोने मद रहित करतां थकां शत्रुंजयनो उद्धार करनार, तथा ढार राजार्जुना स्वामी, तथा सुराष्ट्र देशनां राजा, एवा श्री शीलादित्यनां श्राग्रहथी वलजी नगरमां बनाव्युं; माटे हे लोको ! ते माहात्म्य तमो जक्तिपूर्वक सांजलो ? हे नव्य लोको! तप, जप, दान विगेरेनुं शुं प्रयोजन बे ? पण केवल शत्रुंजयमाहात्म्यज सांजलो ? वली धर्मनी वांबाथी सघली दिशाJai जमवानुं शुं प्रयोजन बे ? फक्त शत्रुंजय तीर्थनी बायानो तमो स्पर्श करो ? वल्ली या मनुष्य जन्म पामीने, तथा अनेक शास्त्रो सांजलीने पण, या शत्रुंजयमाहात्म्य सांजलीने जन्म सफल करो ? वली जो तत्वने जाणवानी वा होय, अथवा धर्ममां वास्तविक बुद्धि होय, तो बीजुं सघलुं तजीने उत्तम गिरिवरनो आश्रय करो ? या शत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः सर्गः ३ र्थ समान बीजुं कोइ उत्तम तीर्थ नथी, तथा तेना समान बीजो कोइ धर्म नथी, केम के, त्यां ज‍ जिननुं ध्यान करनुं, ते जगतने सुखनुं कारण े. अशुभ परिणामी, मन, वचन, अने कायाथी जे पाप बांध्युं दोय, • जयंकर पाप पण या शत्रुंजय गिरिनां स्मरणथी नाशने प्राप्त थायडे. वली या शत्रुंजय पर्वतनां दर्शनथी सिंह, वाघ, सर्प, जील तथा हिंसक पeिd पण खर्गगामी थाय बे. वली जेर्जए सुर, असुर, अने म नुष्यादि जवोमां पण या शत्रुंजय पर्वत जोयो नथी, तेर्जने पशु सरखा जाणवा, छाने ते मोनां अधिकारी थता नथी. अन्य तीर्थोमां उत्तम ध्यान, शील, दान तथा पूजनथी जे फल मले बे, तेथी पण अधिक फल शत्रुंजयमाहात्म्य सांजल्याथी मले बे. माटे हे लोको! श्रा गिरिराजनुं माहात्म्य तमो महा नक्तिथी सांजलो ? केम के, ते सांजलवा मात्रथीज संपदा प्राप्त थाय बे. एक दहाडो घणां देवोथी वींटाएला एवा श्री महावीर स्वामी, द्रव्य जाव रूप शत्रुने जीतनारा एवा या शत्रुंजय पर्वत प्रते श्राव्या. ते वखते जाणे जिनेश्वरोने नमस्कार करवा माटे उतावलज करतां होय नहीं, तेम इंद्रोनां श्रसनो एकदम कंपवा लाग्यां. त्यारे वीश जवनपतिनां इंडो, बत्रीश व्यंतरनां इंडो वे ज्योतिषनां इंद्रो तथा दश उर्ध्वलोकनां इंडो, एम सघला मली चोसव इंद्रो देवो सहित, प्रभुथी - षित थपला ते शत्रुंजय पर्वत प्रते खाव्या. या लोकमां जोवा लायक एवा श्र पर्वतने जो जोइने, मस्तक धुणावता थका, ते इंद्रादिक देवो, पोताना सेवकोने नीचे प्रमाणे कड़ेवा लाग्या. " हो ! या महान शोजावालो गिरिराज निरुपम किरणोवालां रनोयें करीने जाणे चित्रेलो होय नहीं !! तेवो शोने बे; वली सोनानां शिखरो वडे करीने, जाणे सर्व पर्वतोनो स्वामी होवाथी, मुकुटोथी शोजतो होय नहीं जेम तेम श्र पर्वत शोभे बे. वली ते आकाशमां पढ़ोंari एव सोनां, रूपा, ने रत्ननां शिखरोथी एकी वखते पृथ्वी अने स्वर्गने पवित्र करतो थको पापने हरनारो बे; वली या पर्वत स्वर्णगिरि, ब्रह्म गिरि, उदयगिरि, तथा अर्बुद गिरि आदिक एकसोने आठ शिखरोथी अत्यंत सोने बे. वली स्वर्गमंदिर सरखां यरिहंत प्रजुनां मंदि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुंजय माहात्म्य. रोधी, तथा योनां मंदिरोधी अत्यंत शीने बे. वली या शत्रुंजय पर्वत यक्ष, किन्नर, गंधर्व, विद्याधर, तथा देवोनां समूहोथी, तथा अप्सराथी सेववा लायक थयो थको अत्यंत शोने बे. वली श्रा पर्वतमां मोहनी इछा वाला योगी, विद्याधरो तथा भुवनपति पवित्र गुफामां रहिने श्री अरिहंत प्रजुनुं ध्यान धरे बे. वली या शत्रुंजय पर्वत रसकुंपिका, रत्ननी खाणो, तथा दिव्य औषधियी संपूर्ण थयो थको सघला पर्वतोनां गर्वने भेदनारो बे. वली या पर्वत कस्तुरीयां मृगोनां टोलांJथी, मयूरोथी, मदोन्मत्त हाथीउंथी, तथा चमरी गायोनां समूहोथी सर्व बाजुची शोभे ठे वली श्र पर्वत मंदार, पारिजातक, संतान, हरिचंदन, चंपक, अशोक, तथा सालरीयादिक वृक्षोथी नरेलो बे. वली केतकीनां पुष्पोनी सुगंधिथी सुगंध युक्त करेल वे दिशानां जागो जेणे, तथा ऊरता एवा पाणीनां करणाथी वाचाल थलो, तथा मालती, गुलाब, कृष्णागुरु, अने श्रांबा प्रमुखथी हमेशां पुष्प तथा फलवालो, एवो या पर्वत अत्यंत शोने बे. वली या पर्वतपर कल्पवृक्षोनी घाटी बायामां बेठेली किन्नरी जिनेश्वर जगवाननां गुणोने गाय बे, छाने तेथी पोताना पापोनो दय करे बे. वली ऊरता एवा पाणीना ऊरणानां बिंडु श्रा पर्वतरूपी स्वामी, पोतानी मुक्तिरूपी खीनां द्वार माटे जाणे मोतीने करतो होय नहीं, तेम शोने बे; वली अहीं एक बाजुपर, क रणामांची पडता पाणी नां बिंडुने वर्षाद पडतो जाणीने, मयूरो प्रजुनी पासे नाच्या करे बे. वली एक बाजुए हजार फपाउंथी शोजतो एवो शेषनाग प्रभुनी आगल अहीं दीव्य नाटक करतो थको शोने बे. वली अहीं एक बाजुए उत्तम वस्त्रोवाली, तथा उत्तम रागवाली एवी खेचरी हाथमां वीणा लेइने, अरिहंत भगवाननां गुणोने गाती थकी देखाय बे. पली जे प्राणीजने जम्मथी मांडीने पण परस्पर वैर होय बे, एवा प्राणी पण पोतपोतानुं वैर तजी ने यहीं जिननां मुखने जोता कारमे बे. वहीं एक बाजुए पूर्व समुद्रमां जनारी एवी शत्रुंजयी नदी, जोनार तथा सांजलनाराउंनी जाणे पुण्यनी रेखाज होय नहीं, तेम शोने बे. वली एक बाजुए अहीं तालध्वज ( तलाजा ) नामनां शिखरनां उत्संगमांथी गमन करती एवी तालध्वजी नदी शत्रुंजी नदीने ok Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः सर्गः ս " श्रीने मलेठे. वली अहींथी उत्तर दिशामां; स्वच्छ पाणीथी महा उदयवाली, इंद्रे बनावेली, तथा विकस्वर कमलोवाली “ऐंडी” नामनी नदी वहे बे; तेने तमो जु ? वली दीव्य जलनां मोजांची शोजीती थएली, तथा कमलनी अंदर रहेला हंसोवाली, धने सारसची सेवाएली एवी कपर्दिका नामनी नदीने तमो जुई ? वली हे देवो !! पश्चिम जागमां जगतनो उपकार करनारी, तथा वेद्धेता पाणीथी संपूर्ण, अने पापोनो नाश करनारी एवी या ब्राह्मी नामनी नदी शोने बे. वली हे देवो !! यहीं शेत्रुजी, ऐंडी, नागेंद्री, कपिला, यमला, तालध्वजी, यकांगा, ब्राह्मी, माहेश्वरी, साचमती, शबला, वरतोया, उजयंती, तथा जा नामनी चौद महा नदी शोने बे. वली दे देवो !! यहीं पूर्व दिशामां अत्यंत शोजावालुं सूर्योद्यान वे, तथा दक्षिण दिशामां नंदनवन सरखुं स्वर्गोद्यान बे, तथा पश्चिम दिशामां अत्यंत मनोहर चंद्रोद्यान बे, तथा उत्तर दिशामां या लक्ष्मी लीला विलास नामनुं उद्यान बे. एवी रीतनां, चार दिशाउंमांथी आवती एवी लक्ष्मीनां चोटला सरखा चार उद्यानोथी या शत्रुंजय पर्वत अत्यंत शोने बे. वली अहीं सौधर्मेंद्रनां हुकमी कुबेरे बनावेलो, तथा पापरूपी मेलने धोनारो एवो इंद्र नामनो कुंड शोने बे. स्फुरायमान यती एवी चांदनी सरखा पाणीनां मोजांथी शोजतो, अने जाणे जरतनां यशोनो ढगलोज होय नहीं, एवो जारत नामनो कुंड छाहीं शोजे बे. वली अहीं मंद मंद वाता एवा पवनश्री चलायमान यता मोजानी पंक्तिथी शोजतो एवो कपद्दयनो कुंड कोने सुख करनारो नथी ? ( अर्थात् सर्वने सुख करनारो बे. ) वली श्रीं मुक्ति रूपी स्त्रीनुं मुख जोवा माटे दर्पण सरखो, तथा प्रीति उत्पन्न करना एवो दिल्लण मुनिनो कुंड तमो जुठे ? वली सर्वतीर्थावतार बे नाम जेनुं, एवा चंद्रकुंड ने सूर्यकुंडने, तथा वीजा पण कुंडोने, हे देवो !! तमो यहीं जुड़े ? वली हे देवो !! यहीं श्रा बाजुए उत्तम बुद्धिवान एवो था मुनि तप तपे बे, तेनां विचित्र चरित्रनी वार्ता तमो कौतुकधी सांजलो ? पूर्वे यम सरखो, तथा पापीउंनो स्वामी एवो, चंद्रपूरनो या कंडु नामे राजा हतो. ते धननो मद राखीने देव, गुरु, वृद्ध, तथा मातपि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुंजय माहात्म्य. ताने पण गकारतो नहीं. ( पूर्वनां पुण्यथी पापीनी संपदा पण वृद्धि पामे बे, पण पालथी ते तपखलानी श्रग्मिनी शिखानी पेठे मूल सहित विनाश पामे बे.) ते राजा सुतो थको पण परस्त्री, अने परधननी इछा करनारो दतो, तथा धन मेलववानी इहाथी लोकोने हमेशां दुःख देतो हतो; प्रजावे उठीने लोकोने बोलावीने, निर्भय थयो थको तेमनी पा ६ 41 थी ते धन लेतो. ( राजा प्रायें करीने पुण्यथी संपूर्ण संपदावाला था, ने पढी तेज पुण्यनो द्वेष करे बे, माटे ते दुर्गतिमां जाय बे.) एवी रीतें चक्रवाक प्रते चंद्रनी पेठे, लोकोने दुःख देइने, अंते क्ष्यनां रोगवालो थयो थको मित्रनी पेठे ( सूनी पेठे ) ते धर्मने स्मरवा लाग्यो. ( ज्यांसुधि सर्व बाजुथी सुखधी प्राप्ति होय बे, त्यांसुधि मूढ माणस अहंकारमांज रहे बे, पण मृत्यु काल श्रावते ते धर्मनुं स्मरण करे बे.) एक दहाडो ते राजा क्रूर सेवकोथी सेवायेलो तथा परना जोहनी चिंताथी दुष्टाशयवालो थयो थको जेवामां सजामां बेठेलो बे, वामां आकाशमांथी कल्पवृक्षनां पत्रपर लखेलो एवो कोइके नाखेलो नीचेनो दिव्य श्लोक तेनी पासे चावीने पड्यो. धर्मादधिगतैश्वर्यो, धर्ममेव निदंति यः ॥ कथं शुभगतिर्भावी, स स्वामिशेदपातकी ॥ १ ॥ : अर्थः- धर्मथी मलेलबे, संपदा जेने, एवो जे माणस तेज धर्मनो नाश करे बे, ते खामी द्रोहनां पापवालो माणस शुभ गतिवालो शी रीते या ? (अर्थात् न थाय . ) एव तनां श्लोकनेते राजाए हर्षथी वांच्यो, तथा तेनो अर्थ जाणीने ते मनमां नीचे प्रमाणे चिंतववा लाग्यो. अहो !! में महा मोह अने कपटवाला चित्तथी कष्ट पड्युं त्यांसुधि पण पापकार्य श्राचार्य, छाने हवे मने स्पष्ट ते फल्युं ! वली मत्स्य जेम मांसने, तेम में संपदाने मेलवीने मारा श्र श्रात्माने संसाररूपी जालमा फसाव्यो !!! वली जे राजा न्यायनां मार्गमां चाल्यो बे, ते बन्ने जवमां निर्जय थाय बे, तथा जे अन्यायने मार्गे चाले बे, ते प्रजा, कुल छाने राज्यनो नाश करनारो था बे. एवी रीते चिंतातुर थने ते महामूर्ख राजा रात्रियें राज्य त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः जीने कंपापातथी मरवानी श्शावालो थयो थको चालवा लाग्यो. एवी रीते चालतां थका जेटलामां ते गामनी बहार श्राव्यो, तेटलामां तेणे एक सुंदर अंगवाली गायने सामी श्रावती जोश पड़ी त्यां ते गाये अचानक पुंबडं ऊंचं करीने, क्रोधथी, वैरीनी पेठे तेने शीगडानां अग्र जागथी मार्यो. पड़ी पूर्वनां श्रनुनवधी ते राजा पण खड्ग कहाडीने, यम सरखो थयो थको, क्रोधथी तेनां तरफ दोड्यो; त्यारे ते गाय पण क्रोधायमान थप थकी, तथा अत्यंत फुफाटा मारती थकी तेनी सामे लडवाने दोडी; एवी रीते क्रोधथी सन्मुख श्रावती ते गायने राजाये तलवार मारीने तेनां बे टुकडा कर्या, त्यारे तेणीनां कलेवरमांथी एक स्त्री नीकली; न. यंकर अंगवाली, तथा अत्यंत लाल आंखोवाली, अने हाथमां कातरने नचावती एवी ते स्त्रीए निष्टुर अक्षरवाली वाणीथी राजाने रणसंग्राम माटे बोलाव्यो; अने कह्यु के, रेऽष्ट ! तें था शस्त्रविनानी अने गरीबडी गायने मारी! माटे हवे जो तारामां शक्ति होय, तो मारी साथे खडवाने तैयार था? एवी रीतनुं तेनुं हेतुवाएं वचन सांजलीने, ते राजा पण पोतानां खड्गपर दृष्टि राखीने, आवी रीते अपवित्र वाणी बोलवा लाग्यो; अरे! तुं को युवान, अने केलनां पात्रां सरखा कोमल अंगवाली स्त्री बो, अने हुं शस्त्रमा पंडित एवो शूरो क्षत्री बुं; माटे हे मानिनि ? तुं कहे श्रापण बन्नेनुं युफ कंप्रशंसनीक कहेवाय? केमके, अहंकारी एवो सिंद कंई हरणीनी साथे युद्ध करवानी याचना करे ? (अपितु नज करे.) एवी रीते बोलता एवा ते राजाने ते स्त्री कहेवा लागी के, हे राजा ? हुं कंशं तारी पेठे वाचाल नथी, माटे तुंलडवाने तैयार था ? ते सांजलीने राजा हाथमां खग लश्ने तेनी सामे दोड्यो, पण तेटलामा तेणे पोतानां शरीरने तेणीनी कातरथी विंधायेतुं जोयु, अने तेमांथी रुधिर करवा लाग्यु. पडी ते स्त्री तेने कहेवा लागी के, हे राजा? ते तारुं पराक्रम हवे जाण्युं ? अने हजु पण जो तुं समर्थ होय, तो लडवाने तैयार था ? एवी रीतनी तेनी वाणी सांजलीने कंडु राजा मनमां विचारवा लाग्यो के, अहो ! मारुं कर्म उलटुं होवाथी आ स्त्रीए पण मने जीत्यो. (माटे ज्यांसुधि पूर्वनुं करेलुं पुण्य क्षय यतुं नथी, त्यांसुधिज माणसनुं बल, तेज, अने कीर्ति अखंडित रहे . माटे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G शत्रुंजय मादात्म्य. प्राणीने पुण्य प्रमाणरूप बे, केमके क्षीण तेजवालो सूर्य पण केटलोक वखत चलकी शके ? ) वली पुण्यश्रीज प्राणीने हमेशां सुख मले बे, ने तेज सुख पुण्यनो नाश थवाथी फेरनी पेठे दुःख आपे बे. वली जे हुं खागल हाथीने पण एक चामरनी पेठे श्राकाशमां उबालतो, ते हुंजे या स्त्रीची जीतायो !! एम विचारतां थकां तेने याद आव्युं के, अहो ! में राज्यनो त्याग कयों, मने महारोग थयो, अने वली कोधथी में गायने मारी !! वली हुं मृत्यु माटे तो निकलेलो ढुं, त्यारे वली हूं गायथी केम डर्यो ? वली एवी रीतें प्रसंगथी मलतुं मरण मुकीने, कुगतिने देनारुं गौहत्यानुं में पाप आचर्यु. वली पुण्य मेलव्या विना प्राणी दुःखी थाय बे, केमके, मूडी विनां बुद्धिवान माणस पण दुःखी चाय बे, हवे तो हुं आ पदारूपी समुद्रमां डुब्यो, माहे दवे हुं शुं करुं ? केमके, याग लाग्या पढी कुवो खोदवायी सुख यतुं नथी. एवी रीतें विचार करता एवा ते राजाने ते देवांगना कड़ेवा लागी के, अरे ! महापापी मूढ ! हवे दुःखी थयो को तुं शुं चिंतवे बे ? पेहेलां तो राज्यानां मदयी ध ध तें धर्मनो द्रोह कर्यो, अने हवे दुःख वखते तुं धर्म संजाले बे ! वली धर्म शिवाय बीजो कोइ पण प्रशंसवा लायक पदार्थ नथी, एम बुद्धिवानो माने बे, माटे अंतकाले पण धर्मनुं स्मरण करवायी ते जोहीने पण तारे बे. वली हे मूढ ! तारा चित्तमां धर्मबुद्धि नयी, पण रोगनी पीडाथी तुं पुण्यने याद करे बे, माटे में तारी परीक्षा करी बे; हुं तारी गोत्रदेवी अंबिका लुं, अने तारा सत्वनी परीक्षा माटे हुं गायनुं रूप करीने यावी हती; वली हे राजा ! हजु पण तारुं मन धातुर बे, पण धर्मने रहेवा लायक, तथा समता रूपी अमृतथी जींजालुं नयी. माटे हवे तुं देशांतरोमां जइने तीर्थपर्यटन कर ? अने तने धर्माराधननो वखत हुं निश्चयें करीने कहीश; एम कहीने ते देवी अंत - न य, त्यारे कंडु राजा विचारवा लाग्यो के हो ! हजु पण मारुं जाग्य जागतुं बे ! केमके गोत्रदेवी मने साक्षात नजरे पडी ! माटे हवे मारा मन रूपी हाथीने वश करवा माटे हुं यत्न करूं, के जेथी मोक्षरूप लक्ष्मी मने प्रत्यक्ष याय. एम विचारीने प्रजाते ते कोक दिशाप्रते चालवा लाग्यो, अने खष्ठ चित्तवालो दोवाथी ते कई पण दुःख पाम्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः नहीं. एवी रीते क्रोध रूपी अग्निने शमावीने पृथ्वीपर जमतो थको, तथा प्राणी प्रते समता सहित चित्तवालो थयो थको कोराक नामनां पर्वत प्रते ते श्राव्यो. त्यां रात्रिने पाबले पहोरे, तेनो पूर्व नवनो वैरी यदा, शेष लावीने तेनी पासे श्राव्यो; नयंकर दृष्टिवालो, तथा हाथमां गदावालो, लाल मुखवालो, अने भ्रुकुटी जमावतो एवो, ते यद कोधथी नीचे प्रमाणे वचन तेने कहेवा लाग्यो के, अरे पुष्ट ! कामांधपणाथी तें मने मारीने मारी स्त्रीने पण तें मारी , ते तने याद ? माटे हवे तुं तारा इष्ट देवतुं स्मरण कर ? केमके, मदांघ माणस सुखनी श्वाथी पापो करे , पण तेनुं वखत श्राव्ये जयंकर परिणाम निपजे बे, माटे हवे तुं लडवाने तैयार था ? एवी रीतनां तेनां वचनो सांजलीने राजा मौन रह्यो, त्यारे ते यद तेने उपाडीने क्षणवारमा आ. काशमां चडी गयो; तथा पर्वतनां मध्य नागमा रहेली गुफामां तेने ले३ जश्ने, त्यां तेणे तेने क्रोधथी विविध प्रकारना बंधनोथी बांध्यो. त्यां ते पाटुथी ताडन पामवा, तथा उपाटोथी पीडावा लाग्यो, ते जाणे पू। करेलां पापोनुं प्रायश्चितज संजालतो होय नहीं, तेम लाग्यो. पर्वतनां अग्र नागमां, समुजमा, कांटावाला बृदमां तथा गुफामां तेने फेंकी फेंकीने, ते यद अंतान थयो. ते वखते ते पूर्वनां पुण्यथीज बच्यो, नहीतर तेवा मारथी तो त्रण लोक पण फाटी जाय; पठी ते राजा विचारवा लाग्यो के, अहो! पूर्वनां पापरूपी वृक्ष, आ तो हजु कुंपली निकट्युं बे, पण नरक श्रादिकनी गतिरूप तेनां पुष्पो श्रने फलो तो हजु हवे थवानां बे. मदांध एवा अधम माणसो लीलामात्रथी पापोने बांधे , पण पठी रडतां पण तेथी पोतानो आत्मा बोडावी शकातो नथी. एवी रीते पोते करेलां पापोनो पस्तावो करतो थको, तथा तेनां क्षय माटे शुलध्यानवालो थयो थको तीर्थने उद्देशीने ते चालवा लाग्यो. वली ते सर्व प्राणीने पोतानी पेठे जोतो थको, वेष रहित थश्ने, पुण्य मेलववा माटे ज्यां त्यां जमवा लाग्यो. __एटलामां तेनी अंबा नामनी शासनदेवी पोतानां वचन प्रमाणे प्रसन्न थश्ने तेनी पासे श्रावीने कहेवा लागी के, हे वत्स ! हवे तुं शत्रुजय पर्वत प्रते जा ? अने त्यां तारां हत्यादिक पापो नाश पामशे; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० शत्रुजय मादात्म्य. वली तारा पूर्वजोनी जक्तिथी खुशी थश्ने में तने पहेलां पण शिखामण श्रापी हती, श्रने बाजे पण हुँ तने आ तीर्थ बतावं बु. वली मुग्ध एवो संसारी जीव शा माटे बीजां तीर्थोमां जमे डे ? एकवार फक्त शत्रुजय पर्वतर्नु ते शामाटे स्मरण करतो नथी ? केमके, शत्रुजय पर्वतने सारी रीते पूजवाथी, अथवा तेनुं स्मरण करवाथी, अथवा तेनी स्तुति करवाथी, अथवा तेने जोवाथी पण कर्मनो दय थाय . पापीउने शव्यरूप, धर्मीने सर्व सुख प्रापनार, इछावालाउने इडित श्रापनार एवो आ शत्रुजय गिरि जयवंतो वर्तो ? वली तप दान अने पूजाविना पण शुज नावथी केवल था शत्रुजयनो जे स्पर्श, ते मोद सुखने देनारो बे; वली तारुं श्रा निबिड कर्म नरकादिक गतिने देना बे, माटे ते शत्रुजय विना बीजा कशाथी पण दय थशे नहीं. वली हे वत्स! बाटलो वखत तुं महाद्वेषी होवाथी में तारी उपेक्षा करी हती, पण हवे तो तुं था तीर्थाधिराजने योग्य , माटे तने हुँ कहुं . जगतने पावन करनारी एवी एकवार करेली या पर्वतनी सेवा पण, लाख नवमां उपार्जन करेलां पापोने दूर करे . वली शत्रुजय समान तीर्थ, श्रादिनाथ समान प्रनु, अने जीवरक्षा सरखो धर्म या त्रणे उनीश्रामां नथी. वली मुक्तिरूपी स्त्रीनां विवाद माटे वेदिका सरखो, श्रा अनूत शत्रुजय पर्वत जयवंतो वर्ते . संसाररूपी समुजमा डुबता एवा माणसोनां समूहने श्राश्रय नूत बेट समान, तथा मुक्तिरूपी कांगवालो एवो था पर्वत शोने के. पापोने जीततो, धर्मने पुष्ट करतो, सुखने आपतो, तथा सघला लोकोने पवित्र करतो, एवो था शाश्वतो शत्रुजय पर्वत जयवंतो वर्ते . वली हे राजा! तुं पण त्यां समता रूपी जलमां स्नान करवायी पवित्र थश्ने, तथा श्रात्मरमणतानुं आलंबन लेश्ने था तीर्थनां योगथी मोद प्रते जश्श. एवी रीते देवीनां मुखरूपी कमलमांथी निकलता मकरंद सरखा शत्रुजयनां महिमाने सांजलीने, ते राजा, जाणे अमृतथीज सींचाएलो होय नहीं, अथवा दूधथीज जाणे धोवाएलो होय नहीं, अथवा चांदनीथीज जाणे नाहेलो होय नहीं तेम उत्तम निर्मलपणाने पाम्यो. पड़ी ते राजा, जगतनी पण माता एवी ते अंबा देवीने नमस्कार करीने, शंख सरखा उज्ज्वल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः २१ मनवालो थयो थको, तथा उत्तम चारित्रनी श्छावालो थयो थको शत्रुजयने उद्देशीने चालवा लाग्यो; ते वखते तेणे शत्रुजयप्रते पहोंचवा सुधि थाहारना पञ्चरकाण कयां; तथा पर्वतनां गुणोथी तेनुं मन पण हरा गयु; पठी एवी रीते चालतां थकां सात दिवसे तेणे शत्रुजय गिरिनुं शिखर दीवं; ते वखते तेनां दर्शनमां उत्कंठित एवी पोतानी बन्ने आंखोने ते कंम् राजा नीचे प्रमाणे कदेवा लाग्यो के, हे नेत्रो ! तमारां पुण्यनां समूहथी आ गिरिराजने में प्रत्यद जोयो, माटे तमो तेने सारी रीते जुट ? एवी रीते अत्यंत हर्षित थयेलो एवो ते कंडु राजा, रस्तामा कोश्क महामुनिने जोश्ने, तेने नमस्कार करीने तथा तेनां मुखसामी दृष्टि करीने तेनी पासे बेगे. ते वखते ज्ञानी, अने दयाथी जज्ज्वल एवा ते मुनि पण, ते राजाने वैराग्य युक्त जाणीने श्राग्रह सहित देशनाथी नीचे प्रमाणे तेनापर अनुग्रह करवा लाग्या के, हे वत्स ! तुं धर्ममां उत्सुक डे, अने वली शत्रंजय पर्वत प्रते जाय , माटे तुं हवे चारित्रनुं लक्षण सांजल ? सर्वशोए कर्मरूपी काष्टने बेदनालं, तथा पंचमगतिने देनारुं, एवं पांचे प्रकारनुं चारित्र कहेवू , तेमां पेहेलु सामायिक चारित्र, बीजुं बेदोपस्थापनीय चारित्र, त्रीजुं सूक्ष्मसंपराय चारित्र, चोथु परिहार विशुकि नामनुं चारित्र, तथा पांचमुं यथाख्यात नामर्नु चारित्र कहेलु . चारित्रविनां ज्ञान अने दर्शन पांगलानी पेठे वृथा , तथा ते चारित्र पण ज्ञान अने दर्शन विना अंधनी पेठे निष्फल बे. वली जेम सु. वर्णनां कुंजमां अमृतनुं जरवू, तथा सोनामां सुघंधि श्राववी, चंजने चंदननो लेप करवो, तथा वींटीमां मणि जडवू, तथा पर्वने दिवसे महादान देवू, तथा दानमां जेम नाव लाववो, तेम शत्रुजय पर्वतपर चारित्र सहित जे जिननुं ध्यान धरवू, ते उत्तम फलने देनारं जाणवू. एवी रीते मुनिनी वाणीथी बुफेला एवा ते कंडु राजाए ते मुनिनी पासेथी दीदा लीधी, तथा अव्य अने जावथी परिग्रहनो त्याग करीने, प्रसन्न दृष्टिवालो थयो थको ते तीर्थप्रते पहोंच्यो; तथा त्यां शीलरूपी बखतरवालो, अने व्रतरूपी हथीयारवालो, तथा दयारूपी ढालवालो थयो थको पर्वतपर चडीने पापरूपी शत्रुने ते वेगथी हणवा ला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय मादात्म्य. ग्यो; वली त्यां श्रादीश्वर प्रजुनी प्रतिमाने जोश्ने तृप्ती नहि पामतो थको, रोमांच सहित ते पोतानां चकुने निमेष रहित करवा लग्यो. ते श्रा मुनि शिखरनां अग्र नागपर रहीने पुष्कर तप तपे बे, तथा हमणाज ते घाती कर्मनो क्षय करीने केवल ज्ञान पामशे. हे देवो! हुं माहाविदेह क्षेत्रमा गयो हतो, त्यांथी आ सघलो व्रतांत में श्री मंदिरखामीनां मुखथी सांजस्यो , माटे महापापी माणस पण श्रीशजयनी सेवाश्री श्रा कंडु राजानी पेठे शुद्ध धर्मने जजनारो थाय . हवे ते वखते बीजा देवता पण कांतिथी आकाशने दीपावता थका त्यां जिनेश्वरोने नमस्कार करवा माटे श्राव्या. वली त्यां सघला इंसोए, पुष्कोने नाश करनारी,तथा जूतादिकनां दोषने दूर करनारी एवी रा.. यणने प्रदक्षिणा देश्ने, श्री वीरप्रजुने नमस्कार को. वली तेजए त्यां नाना प्रकारनी लब्धिवाला, अष्टांग योगमां निपुण, प्रजावनाना उदय. वाला, ध्यानमा मग्न श्रात्मावाला, मौनधारी, धर्मर्नु माहात्म्य कहेनारा, . जपमां तत्पर, जपमालानां मणकाउ फेरववामां तत्पर, मांहोंमांहें धमकथा करनारा, कायोत्सर्ग करनारा, पद्मासन वारीने बेठेला, अनुकंपा वाला, हाथ जोडीने बेठेला, आदीश्वर प्रजुनां मुखरूपी कमलने जोवामां तत्पर, सूर्य सन्मुख राखेल डे दृष्टि जेए एवा, हाथमां पुस्तकवाला, तप तपता, तीर्थसेवा करता, सघला सिझांतनां तत्वनी विद्यामा निपुण, श्वेत वस्त्रने धारण करनारा, परिषहोने सहन करनारा, अंतरंग शत्रुने जीतवामां शूरा, प्राणीउपर उपकार करनारा, चौद उपकरणोनुं पडिलेहण करता, मूर्तिवंत जाणे शांतरसोज होय नहीं एवा, तथा देहधारी जाणे धर्मोज होय नहीं एवा, वीर नगवाननी आसपास रहेला केटलाक मुनिउँने पण वांद्या. हवे अहीं मांहोंमांहें स्पर्धा करता थका देवो उत्तम रत्नोथी नीचे प्रमाणे समवसरणनी रचना करवा लाग्या. त्यां वायुकुमारो सुगंधि वायु वीजवा लाग्या; तथा मेघकुमारो अत्यंत सुगंधि जलनी वृष्टि करवा लाग्या. ते वखते पाणीथी सींचायेली शत्रुजय पर्वत उपरनी नूमि, मंगलरूप फलने उत्पन्न करनारा पुण्यरूपी वृदने उगाडवामाटेज जाणे तैयार करेली होय नहीं, तेम शोजवा लागी; वली त्यां देवोये एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः योजनसुधि घुटणपुर, नीचे रहेलां डीटीशांवाली पुष्पनी श्रेणि पाथरी; वली त्यां व्यंतरोये रत्नो साथे बांधीने पचरंगी पुष्पोने विखेया. एवीरीते त्यां पृथ्वीपर विखरायेलां विचित्र पुष्पो, जाणे प्रजुनी पासे कामदेवे पोतानां हाथीयारो बोड्यां होय नहीं, तेम शोनवा लाग्यां. वली त्यां व्यंतरेंजोये चारे दिशामां लाल तोरणो बनाव्यां; के जेथी सूर्यथी जेम, तेम दिशाउँनां मुखो रंगयुक्त शोजवा लाग्यां. वली त्यां जुवनपतिनां ईजोये बहारनां नागमा रूपानो गढ बनाव्यो, ते जाणे मूर्तिमान एवो प्रजुनां शुज ध्याननो नंडारज होय नहीं, तेम शोजवा लाग्यो; वली एक योजन सुधि पृथ्वीपर व्यापीने रहेलो, चं सरखी कांतिवालो तथा बत्रीस अंगुल सहित तेंत्रीश धनुषनां प्रमाणवालो ऊंचाश्मां पांचसे धनुपनां मानवालो, कुंडल सरखा श्राकारवालो, तथा सोनानां कोंगरांथी शोजतो एवो ते गढ पृथ्वीपर शोजतो हतो. ते गढनी अंतरमां पंदरशोधनुष्य जेटली नूमि बोडीने, ज्योतिष देवताउंये उत्तम सोनानो गढ बना. व्यो. उपर कहेला रूपानां गढ सरखाज उंचा अने विस्तारवाला एवा था गढ उपरे मनोहर रत्नमय कोंगरां शोजतां हतां. ते गढनी वच्चे वैमानिक देवोये विचित्र प्रकारनां रत्नोवालो, उपर जेवडोजरत्ननो गढ बनाव्यो. ते गढपर विविध प्रकारनां दिव्य प्रनाववालां रत्नोनां कोंगरांउनी श्रेणि अत्यंत शोजवा लागी. वली त्यां रहेली रंगबेरंगी पताकाऊ, जगतमांत्रमणथी संतापने प्राप्त थयेला एवा प्राणीनां पसीनाने जाणे दूर करवा माटेज होय नहीं, तेम फकरवा लागी. वली ते पर सोनानी घुघरीउनां श्रवाजथी वाचाल करेल के दिशाऊनां मुख जेणे, एवो रत्नमय महाध्वज शोनतो हतो. वली त्यां दरेक गढोमां, उत्तम बारणांवाला चार दरवाजा अत्यंत कांतिवाला रत्नोथी शोजता हता; ते जाणे चारे दिशानी लक्ष्मीने प्रवेश करवा माटेज होय नहीं, तेम लागता हता. वली ज्यां इंजनीलमपीनां (पानानां ) बनावेलां तोरणो, युवान एवा गढोनी जाणे डाढीमुबोज उगेली होय नहीं, तेम देवोने जम उपजावता हता. वली त्यां दरेक बारणापासे, स्फुरायमान थता एवा जे धूपधाणां, तेमांथी निकलता धुंवाडायें करीने व्याप्त करेल जे दिशाउँनां मुखो जेणे, एवा ते महान् ग. ढो, जाणे अंधकारने नसाडताज होय नहीं, तेम शोजता हता. वली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ शत्रुजय माहात्म्य. त्यां देवोये दरेक छारप्रते सोनेरी कमलोथी शणगारेली, तथा उत्तम पा. णीथी जरेली, एवी वावो, अरिहंत प्रजुने नमनाराऊने स्नान करवामाटे बनावी. वली त्यां देवोये पेहेला अने हा गढनी वच्चे, प्रजुने विश्रांति आपनारो, “ देवछंद” ईशानसन्मुख बनाव्यो. वली. ते रत्ननां गढनी अंदर मध्य नागे देवोये मणीनी पीठीकावायूँ सत्तावीश धनुष उचुं चैत्यवृद वनाव्यु. तेनी नीचे उत्तम पादपीठमां जडेला मणिउथी सूर्यनां बिंबनी पेठे सोनानुं सिंहासन शोजतुं हतुं. वली नक्तिथी दीपता एवा देवोये ते सिंहासन पर, त्रण जगतनांप्रनुपणाने जणावनारांत्रण बत्रो धारण काँ. वली त्यां एक हजार जोजन जंचो तथा मोक्षमा चडवाने निसरणी सरखो सोनानो धर्मध्वज शोजतो हतो. वली त्यां दरेक गढनां दरेक छारप्रते तुंबरुं प्रमुख, उत्तम शृंगारवाला पोलीथार्ड शोचता हता, एवी रीते लक्ष्मीनां स्थानक सरखा समवसरणने करीने, बाकीनुं सघर्चा कार्य व्यंतरेंजोये संपूर्ण कयु. पनी देवोये मुकेलां सुवर्णनां कमलोप्रते स्थापेल चरण कमल जेणे एवा, तथा नवतत्वोनां खामी, अने नव निधाननां देनारा, तथा याचकोयें करीने वाक्योथी स्तुति कराता, मनथी चिंतवन कराता, कानथी श्रवण कराता, अने क्रोडो आंखोथी जोवाता, तथा जगतनां जीवित सरखा तथा धर्मीनां सर्वख सरखा, एवा श्रीवीरप्रनु पूर्वधारथी समवसरणमा दाखल थया. वली धर्मनां चक्रवर्ती एवा ते प्रजुनी अगाडी, सोनेरी कमलपर रहेढुं, तथा पापरूपी अंधकारनो नाश करवामां सूर्यनां मंडलसर एवं धर्मचक्र रहेतुं हवं. वली प्रजुनी प्रदक्षिणाने पामीने चैत्यवृक्ष पण कण वारमा जाणे अहंकारने पाम्युं होय नहीं तेम नवपदव अने पुष्पोवालुं थयु. पनी धर्मचक्री तथा तत्वने जाणनारा एवा ते प्रज्जु “तीर्थायनमः” एवी रीतनो ऊंचेथी उचार करीते पूर्व दिशासन्मुख सिंहानपर बेग. वली ते वखते व्यंतरोये बीजी दिशाउमां पण प्रजुनां रूपो काँ; अने ते पण प्रजुनां मुखसरखांज शोजवा लाग्यां; आ सघलो महिमा प्रजुनो जाणवो. पनी त्यां पूर्वतरफनां द्वारथी साधु श्राव्या, तथा रत्ननां गढमां रहेला प्रजुने प्रदक्षिणा देश्ने, तथा नमस्कार करीने, अने नक्तिथी तेनी स्तुति करीने, श्रनिखुणामां प्रजुनी सन्मुख बेगं; तथा पनी त्यां वैमानिक देवांगना श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः वी, श्रने तेउनी पलाडी साधवी बेठी. वली त्यां अनुक्रमे नवनपति, ज्यातिषी, अने व्यंतरनी स्त्री दक्षिण धारथी श्रावीने तथा प्रजुने नमीने नैत्य खुणामां बेठी. वली त्यां ज्योतिषी, जवनपति, अने व्यंतर देवता. उ, पश्चिम हारेधी प्रवेश करीने, तथा प्रजुने नमीने, वायव्य खुणामां बेग. वली त्यां वैमानिक देवो, पुरुषो, तथा स्त्री उत्तर छारथी श्रावीने, तथा प्रजुने नमीने इशान दिशामां बेग. हवे बीजा गढमां हरिण, सिंह, पाडा विगेरे, प्रजुना दर्शननां माहात्म्यथी मत्सरनो त्याग करीने बेग. तथा बेला गढमां देव, असुर अने मनुष्योनां सघलां वाहनो रह्यां, केम के, एवीरीतनो जिनमतनो अनुक्रम ; वली त्यां बीजा सिफ, गंधर्व, किन्नर विगेरे पण यथायोग्य स्थानके, प्रजुनां वचनरूपी अमृतने पीवाने उद्यमवंत थया थका बेग. वली ते एक योजन प्रमाणवाला समवसरणमां पण कोडो गमे मनुष्य, जुवनपति, देव विगेरे माया, ते सघलो प्रनाव प्रजुनो जाणवो. हवे त्यां सिंहासनपर बेठेला, तथा त्रण बत्रोथी शोजता, चामरोथी वीजाता, अने सर्व अतिशयोथी शोजता, सौम्य, कांतिनां समूहथी त्रणे जगतने व्याप्त करता, केवलझानथी लोकोने जोनारा, त्रण लोकनां ऐश्वर्यश्री सुंदर, सघला प्राणीउनु हित करनारा, तथा दीव्य प्रनावथी कीर्तिवंत थयेला एवा ते प्रजुने जोश्ने सघला देवो अवच नीय दर्षने पाम्या. वली ते वखते केटलाको मस्तक धुणाववा लाग्या, केटलाको प्रजुना बुंडणां उतारवा लाग्या, तथा केटलाको प्रजुनी स्तुति करवा लाग्या. एटलामां सुराष्ट्देशनां राजानो पुत्र, यादवकुलवालो, रिपुमक्ष नामे जीर्णदुर्गनो (जुनागढनो) खामी त्यां आव्यो. ते वखते हर्षनां अश्रुथी नरेली , आंखो जेनी, तथा रोमांचरूपी कुंचुकने धारण करनारो, श्रने स्फुरायमान थयेल , नक्ति जेनी एवो सौधर्मे नीचेप्रमाणे प्रजुनी स्तुति करवा लाग्यो. हे सामान्य केवलीनां स्वामी, तथा जगतनां प्रजु, त्रण जगतमा तिलक समान, तथा संसारथी तारनारा तमो जयवंता वों ?वली हे देवाधिदेव, पूजनीक, करुणानां समुज, शरणे थावेला संसारीनुं रक्षण करनार, तथा करुणानी खाण समान तमो जयवंता वर्तो ? वली हे जंगम कल्पवृक्ष सरखा, अरिहंत, परमेश्वर, परमेष्टी, मृ. त्सुरहित, प्रकट, तथा निरंजन एवा तमो जयवंता वर्तो ? वली हे सिझ, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. खयंबुल, तत्वोनां समुज सरखा, सर्व सुखोना घर सरखा; तथा महेश्वर एवा तमो जयवंता वों.? वली हे प्रनु ! तमो अनादि, अनंत, अव्यक्त, तथा स्वरूपने धारण करनारा बो,अने सुर, असुर तथा राजा तमोनेज नमस्कार करे . वली हे जगतनां स्वामी! आपनायीज हुँ आ ज. गतने धन्य मानुं बुं, तथा अन्य पाखंडिउनां तर्क श्रने कुयुक्तिश्री दोन नहीं पामता एवा तमो प्रते नमस्कार था? वली हे प्रजु ! तमारा पासेथी हुँ मोक्ष सुखनी श्वा रा डं, अने तमारा अतुल्य महिमाने देवो पण जाणी शकता नथी. वली हे देव! तथा सर्व तत्वोनां जाणनार! उत्कृष्ट ज्ञान आपमा रहेj , केम के, मोद हमेशां आपने श्राधिन डे, एम ज्ञानी कहे . वली हे ईश्वर! तमोये जगतनो उद्धार करवा माटें मनुष्यनुं रूप धारण करेलु डे, नहींतर था जगत अजगतज कहेवात. वली सर्व देवोने विषे देवपणुं पण तमारा अंशथीज प्राप्त थयेवू , केमके अन्यदर्शनी पण वीतरागपणानेज मुक्ति कहे बे. वली हे जगतनां पूज्य, निश्चयें करीने तमोज परमेश्वर , केमके, रागडेथे करीने सहितने तत्वथी परमेश्वरपणुं घटी शकतुं नथी. वली जाग्यहीन माणसो अन्य देवनी पेठे आपने जो शकता नथी, केमके, बीजां रत्नोनी पेठे चिंतामणी रत्न कंई सुलन होतुं नथी. वली हे प्रनु ! तमारेविषे प्रजावनी रिकि जेवी , तेवी अन्य देवोमां नथी, केमके ताराऊमां सूर्यनी प्र. ना क्यांथी होय ? वली हे प्रनु ! ज्यां तमो विहार करो बो, त्यां सो जो. जनसुधि कंई पण उपजव थतो नथी, अहो! मोटाउँनो प्रस्ताव पण मो. टोज होय ! ! वली हे जगवन् , ज्योतिरूप एवा तमोज योगी ने ध्यान धरवा लायक हो, वली आठ कोनो नाश करवामाटे आपे अष्टांगयोग करेलो . वली खामीनां पण स्वामी, गुरुनां पण गुरु, श्रने देवोनां पण देव, एवा तमो प्रते नमस्कार था ? वली जलमां, अग्निमां, वनमां, शत्रुनां संकटमां, तथा सिंह, सर्प अने रोग आदिकनी विपदामां तमोज मारा शरणजूत ; एवी रीते सुधर्मे, प्रजुनी स्तुति करीने, नक्तिपू. र्वक, बपैयो जेम पाणीने, तेम प्रजुनां वचननुं पान करवाने बेठो. पनी त्रणे जगतनां स्वामी एवा ते प्रनु, जगतनां हर्षमाटे सर्व नाषामा समान अर्थवाली, सर्व प्राणीउनु हित करनारी, सर्व अतिशयोथी संपूर्ण, सर्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः २७ प्रकारे शोजनिक, तात्विक अर्थथी मनोहर, शांत, तथा एक योजनसुधि संजलाय तेवी वाणी बोलवा लाग्या. जेम कस्तुरी पोतानां सुगंधपणाथी अमूल्यपणाने पामी डे, तेम आ शरीर पण धर्मथी उत्तमपणाने पामे. वली था शरीरनी अंदर मलीन एवी सात धातु रहेली , तेम ते बहारथी पण अशुचि , माटे ते सर्वथा प्रकारे निरर्थकज . एवं जाणीने पण मूढ एवो प्राणी कर्मने वश थर, अहंकारयुक्त थयो थको पोताने अजरामर मानीने श्छा प्रमाणे संचरे बे. वलीथा कायाने या संसारमा नाना प्रकारनां शस्त्रोथी, अग्निथी, स्थावर अने जंगम फेरथी, शत्रुथी, तीव्र रोगोथी, अकाल मृत्युथी, टाढ तडकाथी, घडपणथी, इष्टनां वियोगोथी, इत्यादि महादोषोथी, अत्यंत क्लेश थाय बे; माटे एवी रीतनां था श्रसार देहने पामीने हे लोको! तमो जगतमां सारनूत, तथा पूजनिक एवा धर्मने करो? वली काचनां समूहोथी ज्यारे चिंतामणी रत्न मले, तथा रजथी सुवर्ण मले, पाणीनां बिंपुथी अमृतसमुख मले, तथा घर मात्रथी ज्यारे राज्य मले, त्यारे ते कार्य तत्वने विचारनार कयो माणस न करे.? वली धर्मविना, माता, पिता, नाश, मित्र तथा राजा पण प्राणीनुं श्रा संसारजालथी रक्षण करी शकता नथी, माटे ते धर्मनेज सेववो. वली ते धर्मप्रवृत्ति, काल श्रादिक उपायोथी, उचित श्राचारथी, ज्ञानगर्जित कियाथी, तथा मनुष्यजन्मथी बुझिवानो प्रते प्रशंसनीक थाय बे. वली धर्मज प्रगट रीते तीर्थंकरनी पदवीने योग्य बे, केमके तेनी अनुज्ञा प्रमाणे चालनारा लोको त्रिजुननां पण खामी थाय . वली राजा श्रादिकनी सेवाथी शामाटे श्रात्माने फुःखी करवो जोरये? केमके जे धर्मे ते प्रते पण राजापणुं दीg, ते धर्मनोज श्राश्रय करो? वली हे जव्य लोको ! तमो विचारो के, धर्मविनां को पण जगोयें कई पण मली शकतुं नथी, केमके, था दुनियामां केटलाको पुःखी अने केटलाको सुखी देखाय बे. वली हे जव्य लोको ! रागादिकोने को वखते पण वश थq नहीं, केम के, ते जरा सुख थापीने पाला नरकादिकमां फेंकी दे . वली तमो विचारो के, विषयो सरखा थास्मान अहित करनारा बीजा को पदार्थो नथी, केमके, ते संसारी जीवोने पापकार्योमा प्रवर्तावीने ज्ञानादिकनो नाश करे . ज्यांसुधि श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ शत्रुजय माहात्म्य. त्यंत तेजस्वी धर्मरूपी सूर्य प्रकाशतो नथी, त्यांसुधि ते विषयो अंधकारनी पेठे अटकाव रहित सर्व जगोये फेलाय . वली प्रमादरूप पापोथी अंध थयेल डे जावनेत्रो जेऊनां, एवा कुमार्गी, पुःखनां समूहरूपी जंगली प्राणीउथी व्याकुल एवा नरकरूपी वनमां पडे डे; खरूपमा. थी जाणता एवा संसारी जीवो प्रत्यक्ष श्ष्टनां लोनें करीने उज्ज्वल धर्मनां महिमाने जाणता नथी; वली दिवस, रात्रि, सुख, दुःख, जागरण, तथा निनादिकनां दृष्टांतथी पुण्य पापर्नु फल प्रत्यक्ष जणाय . वली कुछ एवा राक्षस, सिंह, सर्प आदिको पण जे उपव नथी करता, ते सघj स्पष्ट रीते धर्मनुं माहात्म्य जाणवू. वली धर्मनो द्वेष करनार, तथा महाबलवंत एवो प्रमाद सर्वथा तजवो, केम के, जो धर्मनो नाश थाय, तो शरीरमा व्याधि, बंध आदिकनी आपदाउँ लागु पडे . माटे एवी रीते चित्तथी पुण्यपाप, प्रगट फल जाणीने, जेथी कल्याणनी सि. कि थाय , ते धर्मने नजवो. एवी रीते धर्मरूपी अमृतने ऊरनारा प्रजुनां वचनने अत्यंत पीने, लोको अखंड आनंद पाम्या. वली ते वखते सजानां लोको जाणे, अमृतथी तृप्त थया होय नहीं, तथा चांदनीथी जाणे धोवाया होय नहीं, तथा जाणे निधाननी लब्धिने प्राप्त थया होय नहीं, तेवा थया. वली केटलाकोये तो त्यां संयम लीधुं, तथा केटलाको सम्यक्त्व पाम्या, तथा केटलाको त्यां हर्षथी नमकनावने पाम्या. वली त्यां शत्रुजय प्रते प्रजुने श्रावेला जाणीने सौधर्मे अत्यंत हर्ष पूर्वक पुएय कार्योमां नक्तिवंत थयो. वली त्यां त्रणे जगतोनां माणसोथी पूजायेली श्रादीश्वर प्रजुनी प्रतिमाने, तथा दूधने करती रायणने, अने तेनी नीचे रहेलां प्रजुनां पगलांने, तथा नदी, तलाव, कुंड, शिखरो, वृक्षो, वनो, अने नगरोने जोड्ने, तथा प्रजुनां चरणने नमीने, हर्षित थयेलो सुधर्मे, मस्तकपर हाथ जोडीने, रोमांचित थयो थको, अमृत सरखी, तथा पर्षदाने हर्ष उपजावनारी, तथा उत्तम गुणो. थी गर्जित थयेली वाणीये करीने, जगतनां स्वामी एवा प्रजुने कहेवा लाग्यो के, हे जगतनां आधारचूत एवा जगवन्, तमोज था जगतमां तीर्थरूप बो, भने थापनाथी अधिष्ठित थयेलो था शत्रुजय पर्वत विशेषे करीने पवित्र थयेलो . वली हे प्रजु ! था तीर्थमां शुं तप तपा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २॥ प्रथमःसर्गः य.? शुं व्रत ? शुं जप? तथा अहीं कर सिकिने ? वली शुंफल मले? वहीं शुं ध्यान धरतुं ? अहीं शुं शुज कार्य करQ ? तथा आ पर्वत क्यारे अने शामाटे थयो.? तथा तेनी केटली स्थिति के ? तथा या नवीन प्रा. साद कोणे कराव्यो ? तथा था चांदनी सरखी मनोहर प्रतिमा कोणे करावी ? तथा प्रजुनी पासे तलवारने धारण करीने छारमा श्रा बन्ने देवो कोण उन्ना बे? तथा डावी अने जमणी बाजुये कोणनी मूर्ति ? श्रने बीजा देवो पण कोण जे ? तेम था रायणर्नु वृद शुं जे? तथा तेनी नीचे कोना पगलां बे? तथा ए मयूरप्रतिमा कोनी ने ? अने अहीं था यक्ष कोण उनो ? वली अहीं कर देवी क्रीडा करे जे? अने यहीं था मुनिउँ कोण रहेला ? अने था मोटी नदी कश्? तेम था उतम फलोवाला वृदो कोण ? तथा कया मुनिनुं था तलाव ? तथा हे जगतनां प्रजु! श्रा कुंडो कया डे? तथा रसकुंपिका अने रत्ननी खाण शुं प्रजाववाली ? तथा कश कर गुफा जे? हे खामी ! लेपथी बनावेसा स्त्री सहित था पांच माणसो कोण ? तथा त्रणे जगतनुं उबंधन करे एवा षन प्रजुनां गुणोने अहीं आ कोण गाय ? तथा दक्षिण दिशामां था कयो पर्वत ? अने तेनो अ॒ प्रजाव ? वली अहीं शिखरो कया कया ? तथा चारे दिशाउँमां कयां कयां नगरो ? तथा यहीं समुज केम आवेलो ? अने अहीं कोण उत्तम पुरुषो थया ? वली अहीं केटला वखतसुधि प्राणी सिद्धि पामशे, तथा श्रा पर्वत केटला प्रमाणवालो ? तेम हे प्रजु! अहीं सम्यग्दृष्टिना केटला उधारो यशे? इत्यादि सघj व्रतांत, हे प्रनु आपे कृपा करीने कहेवू; केमके, जगत्पूज्यो श्राश्रित प्राणीउप्रते पोतानी मेलेज उपकार करनारा होय . एवी रीतनी सुधर्मेजनां मुखरुपी कमलमांथी निकलेली वाणी सांजलीने, तीर्थनां प्रजावनी वृद्धि माटे, तथा नव्य जीवोने बोध थवा मादे, अने सांजलनाराउनां पापोनो नाश थवा माटे जगवान श्री वीरप्रन्नु गं. नीर वाणीथी, नही श्रति संक्षिप्त तेम नही अति विस्तारवादुं एवू श्री शत्रुजय तीर्थनुं माहात्म्य कहेवा लाग्या के, हे सौधर्मे! सर्व तीर्थोमां राजा समान एवा था शत्रुजय पर्वतनी कथा कहेनार अने सांजलनार बनेने पुण्य अर्थे थाय , माटे ते तुं प्रगट रीते सांजल ? ... Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय मादात्म्य. एक लाख योजननां विस्तारवालो, तथा पूर्णिमानां चंछ सरखी श्राकृतिवालो, अने लक्ष्मीथी निरूपम जंबूहीप नामे दीप जे. जे जं. बुद्धीपमा, मारी शाखापर जिननां मंदिरो बे, एवी रीतनां हर्षथीज हो. य नहीं जेम, तेम जंबूवृदनां पलवोनो समूह हमेशां नाच्या करे . ते जंबूछीपमां नरत, हैमवंत, हरिवर्ष, महाविदेह, रम्यक, तथा औरण्यवंत एम ब क्षेत्रो बे; तथा तेउमां अनुक्रमे हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नीलवंत, रूप्य, तथा शिखरी नामनां च पर्वतो पूर्वथी पश्चिम समुख सु. धि लंबाएला , तथा ते जिनमंदिरथी शोजी रह्यां . महाविदेह देवनां मध्य नागमां, लाख शिखरोथी शोजतो, अने पृथ्वीनां मध्य नागमा रहेलो, सुवर्णनो मेरु पर्वत बे; ते पर्वत लाख योजन ऊंचो, वननी श्रेणिउथी शोजतो, तथा शाश्वता जिनमंदिरोनां शिखरपर रहेलां चलकतां रत्नोनां किरणोथी देदीप्पमान लागे . हवे नरत क्षेत्रने श्रमो पुण्यथी जरेलुं मानीय बीयें, केम के ते देवनां माणसो उःखमकालमां पण पुण्यशाली होय बे. ते जरत देत्रमा नाश थएल ने उनीति तथा उपजव जेमांथी, अने प्रीति युक्त ने माणसो ज्यां अने सघला देशोमां मुख्य, एवो था सुराष्ट्र देश कहेवाय . था देशमां अल्प पाणीथी पण धान्य पाके , तथा थोडां पुण्यथी पण उत्तम फल मले . अने खल्प उपायथी पण कषायोनो नाश थाय . वली था देशनां पाणी निर्दोष बे, तथा पर्वतो पण पवित्र बे, अने अहींनी पृथ्वी पण हमेशां रसाल श्रने सर्व धातुमय तथा उत्तम . वली अहीं पगले पगले सर्व पापोने हरनारां तीर्थो , तथा पवित्र पाणीनां समूहवाली नदी बे, अने उत्तम प्रजाववाला हृदो बे: वली अहीं चारे कोरे विकखर पामेला सुगंधि कमलोवाला तलावो , तथा टाढा अने उना पाणीथी शोजता कुंडो. वली अहीं पगले पगले निधानो , तथा पर्वते पर्वते रसकुंपीकार्ड, महा प्रनाववाली औषधी, तथा हमेशां फलतां वृदो . वली अहीं पूर्वे जाणे वावेलुज होय नहीं तेम पोतानी मेलेज घणुं धान्य नीपजे बे, तथा ज्यांनी पवित्र माटी तीर्थस्नाननां फलने देनारी. वली अहीं श्री कृषन प्रजुनी पूजा माटे हीरा, पुखराज, सूर्यकांत मणि, मोती, तथा पानां श्रादिकनां समूहो पोतानी मेसेज उप्तन्न थाय . वली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः अहीं स्फुरायमान एवां रत्नोयें करीने, आ देशनां गुणोनेज जाणे प्रगट करतो होय नहीं, तथा प्रजुनी जक्तिमां तत्पर थश्ने मोजांरूपी हाथोथी नाचतो तथा गर्जना करतो होय नहीं जेम, तेम समुज शोने दे. श्रा तीर्थनी रक्षामाटे मने अहीं सगर चक्रवर्ती लावेलो, एवा हर्षथी जाणे फीणनां समूहनां मिशथी हसतो होय नहीं, तेम ते समुप शोने दे.वली थहीं देवोथी पूजायेला चोवीस तीर्थंकरो, चक्रवर्ति, वासुदेवो, त. था बलदेव प्रमुखोये पण विहार कयों ने. वली श्रही अनंत मुनि सिकथया बे, तथा घणा सिह थशे, तथा अहीं घणा धर्मधुरंधुर संघपति थयेला बे. वली अहीं जरासिंधादिकने मारीने कृष्णादिके जय मेलव्यो बे, तथा बीजा पण नीतिनिपुणो अहीं घणा राजा थयेला बे; वली अहीं केटलाक राजा प्रजानां प्रतिपालनथी तथा शत्रुनो नाश करखाथी कीर्तिवाला, त्यागी, धर्मकार्यनां श्राधारजूत तथा सर्व जगोये स. मदृष्टिवाला थयेला - वली श्रहीं हमेशां सरल खजावी, प्रसन्न मुखवाला, विवेकी, संतोषी, हमेशां श्रानंदी, तथा निंदा भने मात्सर्य विनानां, पोतानीज स्त्रीउमां संतोषी, परस्त्रीश्री विरक्त, सत्य बोलनारा, पुण्यशाली, परखोहनी बुद्धिविनानां, कदाग्रह अने वैर विनानां, कपट अने खोनविनानां, उदार, निर्दोष श्राचारवाला, तथा सुखी लोको वसे .वली ब्रह्मचर्य गुणें करीने मनोहर, पतिनी सेवामां तत्पर, हसमुखी, रूपाली, परिवारनुं हित करनारी, मातपितानी नक्ति करनारी, जार प्रते प्रीतिवाली, सर्व लोकने ववन, नाग्यथी नासुर, बहु पुत्रोथी शोजती, सजायुक्त, कमल सरखां नेत्रोवाली, कौतुकवाली, स्वल्प क्रोधवाली, उत्तम पेहेरवेषवाली, सरल बुद्धिवाली, मीष्ट वचनोवाली, गंजीर, अने गुणो डे प्रिय जेउँने एवी स्त्री अहीं वसे . वली अहीं पुत्रो मातपिता प्रते ज. क्तिवाला, हमेशांमातपितानी श्राज्ञापालनारा, कलाउँमा कुशल,शांत अने सुशीलो ने. वली अहीं चाकरो शेउप्रते उत्तम नक्तिवाला, कार्य वखते याचना नहिं करनारा, शूरा, स्वल्पमां पण संतोषी, स्नेही, नलुं करनारा शेठना अभिप्रायने जाणनारा, सनाने योग्य, उत्तम वचनवाला, श्रत्यंत प्रीतिवाला, शेषनां वैरी प्रते वैरवाला, तथा शेग्नां मीत्र प्रते मित्राध्वाला . वली अहीं दत्रि आस्तिकपणामां तथा उचितपणामां चतु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजय मादात्म्य. र, दमा अने डाहापणथी मनोहर, बये दर्शनप्रते समदृष्टिवाला अने पराक्रमी . वली श्रहीं पुष्ट, तथा बहु दूधवाली गायो , तथा जेसोपण महा बलवान, शीगडांवाली, बंधनविनानी, तथा कोश् चोरी के हरी न शके एवी . वली श्रहीं धोडा उंचा, तथा चपल गतिवाला बे, बलदो खांधोयें करीने मनोहर ने, तथा संग्रामरूपी समुडमां बेट सरखा हाथी पण श्रहीं शोने जे. वली अहीं बीजा तिर्यंचो पण महाबलवान् थया थका परजातिनो मत्सर करनारा नथी, तेम ते जयथी उछिम थयेला नथी. वली अहींना नगरो मोटा अने ऊंचा किसाथी शोनितां थएलां , श्रने त्यां अरिहंत जगवाननां चैत्योपर रहेली ध. जाउँ तो श्राकाशने स्पर्श करे . वली श्रहींनां लोको जैन साधुनां मुखरूपी कमलमांधी निकलेला सिद्धांतनां सारथी पाप रहित, पवित्र तथा लक्ष्मीवंत . वली अहीं मनोहर तथा सघली वस्तुथी नरपुर, मेहेलो बे, तथा लाज मेलवता एवा त्यां वेपारी पण बे. ते सुराष्ट्र देशने मुकुट समान, तथा स्मरण करवाथीज पापोनो नाश करनारो, श्रा शत्रुजय प. र्वत बे. श्रानुं माहात्म्य केवलज्ञानथी जणाय, पण कही शकाय नहीं, तो पण हे देवें! तारा पुबवाथी हुँ ते तने कडं बु. वली ते माहात्म्य जा. णीने, अने शक्ति बतां पण, जो मौन करवामां आवे, तो मुंगानां रसनां खादसर थाय. वली त्रणे लोकनां ऐश्वर्यनां घर सरखा एवा था तीर्थनां नाममात्रथी पण जेम पार्श्वनाथनां नामथी सर्पनुं फेर जाय, तेम पापोनो नाश थाय. शत्रुजय, पुंडरिक सिझक्षेत्र, महाचल, सुरशैल, विमलाजि, पुण्यराशि, श्रीयः पद, पर्वतेंज, सुजम, दृढशक्ति, अकर्म, मुक्तिगेह, महातीर्थ, शाश्वत, सर्वकामद, पुष्पदंत, महापद्म, पृथ्वीपीठ, प्रजुपद, पातालमूल, कैलास, क्षितिमंडल मंडन, इत्यादि श्रा पर्वतनां एकसोने आठ नामो , ते सुधर्माखामीये बनावेला सपादलद माहात्म्यथी जाणी लेवां. एवी रीतनां था महातीर्थनां नामो, जे माणस प्रजातमां जणे बे, अथवा सांजले , तेने संपदा मले बे, अने तेनी आपदा नाश पामे . वली था शत्रंजय पर्वत सघला तीर्थोमां उत्तम तीर्थ, सघला प. र्वतोमा उत्तम पर्वत, तथा सघलां देत्रोमां उत्तम देत्र . युगनी आदिमां मोक्षने देनारुं था पेहेलु तीर्थ डे,अने बीजां तीर्थो तो तेनी पड़ी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः नां जे. वली हे इं!श्रा त्रणे लोकमां जेटलां पवित्र तीर्थो , ते सघलां था शत्रुजय तीर्थनां दर्शनश्री श्रावी जाय - वली पंदर कर्मनूमीउँमा नाना प्रकारनां तीर्थो बे, पण शत्रुजय समान बीजुं को पण तीर्थ पापोने हरनारं नथी. बीजां कृत्रिम एवां तीर्थोमां, नगरोमां, उद्यानमां, तथा पर्वतोमां जप, तप, नियम, दान अने ध्यानश्री जे पुण्य उत्पन्न थाय , तेथी दशगणुं पुण्य कल्याणिक तीर्थोमां थाय बे, अने जंबु वृक्षमा रहे. लां जिनतीर्थोमां तेथी सोगणुं पुण्य थाय जे. वली शाश्वता एवा धातुकी वृक्षमा तेथी हजारगणुं, तथा पुष्करछीपनां चैत्योमां, रुचकगिरिमां, अने अंजनगिरिमां अनुक्रमे तेथी दशगणुं पुण्य थाय , तथा नंदीश्वरे, कुंडलाजिमा, मानुषोत्तर पर्वतमां, वैनार पर्वतमां, सम्मेत शिखरमां, वैताढ्यमां, मेरुपर्वतमां, रेवताचलमां, श्रने अष्टापदमां अनुक्रमे तेथी कोडग| पुण्य थाय बे; अने शत्रुजय पर्वतनां देखवा मात्रयीज अनंतगणुं पुण्य थाय बे, अने दे इं! था तीर्थनी सेवाथी जे पुण्य थाय , ते तो वचनथी पण कही शकाय तेम नथी. वली पेहेला श्रारामां ते एंसी योजननां विस्तारवालो, बीजा श्रारामां सित्तेर योजननो, त्रीजामां साठ योजननो, चोथामां पचाश योजननो, तथा श्रा पांचमा आरामां बार योजननो , अने हा श्रारामां ते सात हाथनो रदेशे, पण तेनो महिमा घणो थशे. वली था श्रवसर्पिणीमां जेम ते तीर्थनां विस्तारनी अनुक्रमे हानि थाय , तथा उत्सर्पिणीमां तेनी वृद्धि थशे, पण तेना महिमानी हानि कोश पण वखते थशे नहीं. वली श्रीशषजदेव प्रजु ज्यारे था पर्वतपर तप करता हता, ते वखते हे इं! था पर्वतनां मूलनो विस्तार पचास जोजननो, उपरना जागमा दश योजननो, तथा जंचाश्मां पाठ योजननो हतो. एवी रीतनो श्रा पर्वत प्रलयकाले पण नाश पामनारो नथी, अने तेनो श्राश्रय करीने रहेला लोको मोक्ष सु. खने मेलवे . वली था पर्वतनां शत्रुजय, रैवतगिरि, सिक क्षेत्र, सुतीर्थराज, ढंक, कपर्दी, लोहित्य, तालध्वज, कदंबक, बाहुबलि, मरुदेव, स. हस्र, जगीरथ, अष्टोत्तरशतकूट, नागेंज, शतपत्रक, सिराज, सहस्रपत्र, पुण्यराशि, सुरप्रिय, अने कामद, एवी रीतनां एकवीश मुख्य शिखरो . एवीरीतनां प्रत्येक शिखरोनो महिमा कडेवामां तो अनेक वर्षों चाल्यां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ शत्रुजय माहात्म्य. जाय; माटे तेमांधी प्रगट महिमावाला केटलाक शिखरोनो किंचित म. हिमा अहीं कहुं ढूं. मुख्य शिखर शत्रुजयतुं तथा सिझक्षेत्रनुं ने, के जेपर चड्याथी यत्नविना मोदमां जश् शकाय . वली मेरु श्रादिक पर्वतो करतां पण आ पर्वत गुणोयें करीने वधारे उत्तम बे, एम हुं मानुं बु, केमके, तेपर चड्याथी माणसो तुरत मोदमां जाय . वली था शत्रुजय पर्वतपर मेरु, सम्मेतशिखर, वैजार, रुचकगिरि तथा अष्टापदादिक सर्व तीर्थोनां अवतारो बे. वली त्रणे नूवनोमां तीर्थाधिराज सरखा था पर्वतने सातिनी छाथी इंसादिक देवो तथा देवी पण सेवे . वली पोताने घेर बेग पण या तीर्थनां स्मरणथी प्राणी यात्रानुं फल मेलवे , एवा तीर्थनां राजा सरखा, तथा सर्वतीर्थमय था शत्रुजय पर्वत प्रते नमस्कार था ? वली क्रोडपूर्व सुधि शुनध्याने करीने शुधबुद्धि प्राणी बीजां तीर्थोमां जे शुज कर्म बांधे , तेज शुज कर्म था तीर्थमां एक मुहुर्तवारमां बांधे . वली जेणे शत्रुजय पर्वतर्नु स्मरण करेलुं बे, तेणे सघलां तीर्थो, पवित्र पर्वो, तप, अने अनेक प्रकारनां दानो, साराधन करेलुं जाणवू. वली हे इंऽ ! त्रणे जगतमां थाना खरखं को उत्तम तीर्थ नथी, केमके, था तीर्थ- केवल नाममात्र सांजलवाथी पण पापोनो क्षय थाय बे. वली था तीर्थनी आसपासनी पचाश योजननी नूमिनो स्पर्श करवाथी पण मोक्ष मले , अने तेनुं था मुख्य शिखर तो स्मरण मात्रथीज हत्या श्रादिकनां पापोनो नाश करे जे; माटे श्रा मनुष्य जन्म पामीने, तथा सशुरु पासेथी ज्ञान पामीने, जेणे था तीर्थनी पूजा करी नथी, तेनुं सघj कार्य निरर्थक बे. वली ज्यांसुधि जे माणसे था शत्रुजय तीर्थनी सेवा करी नथी, त्यांसुधि तेने गर्नावासमांज रहेलो जाणवो, माटे तेने धर्म तो वेगलोज जाणवो. वली वृषनर्नु रुप धरीने श्री आदिनाथ प्रजुनां चरणमा रहेलो धर्म, अहीं आवेला माणसने जावधी सेवे .वली हे मूढ प्राणी!शा माटे तुं "अहीं धर्म , श्रहीं धर्म " एम कहेतो थको जन्या करे ? फक्त एकज वेला था शत्रुजय पर्वत, तुं दर्शन कर ? वली जे माणसे था शत्रुजय पर्वतपर यात्रा करीने रुषजदेव प्रजुने पूज्या नथी, तेने पोतानो सकल जन्म निरर्थकज गुमाव्यो बे. वली कादव सरखा कर्मोथी प्राणीउने निर्मल करवाथी जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः "विमलाGि" कहेवाय बे, एवो पापोने हरनारो था पर्वत कल्याण माटे था ? वली अन्य तीर्थोमां सेंकडो यात्रा करवाथी माणसोने जे पुण्य थाय , ते पुण्य था शत्रुजय पर्वतनी मात्र एक यात्रा करवाथी थाय डे. वली हे इं! था पुंडरिकगिरिने तुं जो? तेनुं नाम लीधाथी, तथा सांजलवाथी स्त्री जरतारनां पापोनो नाश थयो , वली जे माणस हमेशां उत्तम श्रद्धाथी पुंडरिकगिरिनुं ध्यान धरे, ते माणस संसारनां तापने उखेडीने मोक्षपद मेलवे . वली एक पुंडरीकथी ( सफेद कमलथी) पण जगत ज्यारे ताप रहित थाय , त्यारे पुंडरिक गणधर, अने पुंडरिकगिरि, बा बन्नेथी तो अहीतीय सुखनी प्राप्ति थाय, तेमां शुं आश्चर्य ? वली था एकज पुंडरिकगिरिने जे माणस एकाग्र चित्तथी सेवे , तेने परमानंदमय मोदनुं सुख मले बे. वली ज्यारे तलाव, समुज, शेषनाग विगेरे एक दिशाने पण हर्ष करवाने समर्थ नथी, त्यारे श्रा पुंडरिकगिरिनुं एकज शिखर समस्त जगतने हर्ष करनाऊं . वली जे था - डरिकगिरिने (कमलने) श्रीने रहेला बे, ते संसारमा व्रमण करनारा (ज्रमरो) होता नथी, अने जे थाने सेवता नथी, तेउने पापोयें करीने मलीन जाणवा. जे प्राणी त्रिपदी पामीने आ पुंडरिकगिरिनो आश्रय करीने रहेला , ते पाणीथी (जडथी) उत्पन्न थयेला, तथा जमराउथी आश्रित थयेला (हिंसादिरूप) पुंडरिकने (कमलने) इसी कहाडे बे. वली श्रा जगतमा सजव्य, सुकुलमा जन्म, सिझक्षेत्र, समाघि, अने चतुर्विध संघ, ए पांच सकारो फुर्लज तेम पुंडरिक पर्वत, पात्र, प्रथम तीर्थंकर, परमेष्टी श्रने पर्युषण, ए पांच पकारो पण पुर्खन बे; तेम शत्रुजय, शिवपुर, शत्रुजयी नदी, शांतिनाथ प्रनु अने शमता, ए पांच शकारो पण पुर्खन . एकवार पण महान पुरुषोयें ज्यां स्पर्श करेलो होय, ते तीर्थ कहेवाय, पण था तीर्थपर तो अनंता तीर्थंकरो श्रावेला बे, माटे ते महान् तीर्थ कहेवाय . वली हे इंज! श्रहीं अनंत तीर्थकरो श्रने सिको आवेला बे, तेम असंख्याता मुनि पण अहीं श्रावेला बे, माटे ते महान तीर्थ . वली था पर्वतपर जे चराचर जीवो हमेशा रहे , तेउने धन्य !!! वली हे इं! था पर्वतपर श्री जिनेश्वर प्रहुनां दर्शनश्री, मोर, सर्प, तथा सिंहादिक हिंसक प्राणी पण मोके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ शत्रुजय माहात्म्य. गयेला बे, मोदे जाय , तथा मोदमां जशे. वली था शत्रुजय पर्वतनां स्पर्शथी पण, बालकपणामां, यौवनपणामां, वृद्ध अवस्थामां, तथा तिर्यचना नवमां पण जे पाप बांध्यु होय, तेनो नाश थाय . वली एकज शत्रुजय तीर्थनी जे सेवा करवी, तेज दान, चारित्र, शील, तप, तथा मन वचन अने कायाथी ध्यान दे. वली था उत्तम क्षेत्रमा लेशमात्र धनदान देवाथी महाफल मले बे; तथा तेथी जे पुण्य बंधाय , तेने कहेवाने ज्ञानी शिवाय बीजो को समर्थ नथी. वली था तीर्थमां जिनेश्वर प्रजुनी पूजामा जे माणसो लाखो पैसा खरचे , तेउने उत्तम माणसो जागवां. वली था तीर्थनी यात्रा, पूजा, संघनी रक्षा, तथा यात्राखुनो स. त्कार जे माणस करे , ते माणस पोतानां कुटुंब सहित देवलोकमां पू. जाय . वली जे माणसो था तीर्थनां यात्रालुऊने फुःख दे , तथा तेउनुं धन चोरी ले , ते पापनां समूहथी कुटुंबसहित नयंकर नरकमां पडे . वली पोतानां जन्मनी सफलता श्वनार, तथा सुखनां श्छनार माणसे था तीर्थनां यात्रालुउनु मनथी पण अहित चिंतवq नहीं. अन्य तीर्थोमां करेलुं पाप तो एकज नवसुधि नडे , पण शत्रुजय तीर्थपर करेलुं पाप जवजवप्रते वृद्धि पामे बे. वली हे इंज! देवलोकमां था पृथ्वीपर, अने पातलमा जेटलां जिनबिंबो बे, तेउनी पूजा करतां पण था ती. र्थमां जिननी पूजा करवायी अधिक फल थाय . वली हाथमां चिंतामणि रत्न होय तो शुं दरिउतानो जय थाय ? अने सूर्य उग्याथी मा. णसोने शुं अंधारं होय ? वली वरसाद वरसते ते शुं दावानल वनने बाली शके ? अने अग्नि होते ते \ टाढनी बीक होय ? अने पासे सिंह होते ते शुं हरिणनी बीक होय ? वली जो पासे गरुड होय, तो सों कंज्ञ पराजव करी शके ? अने प्रांगणामांज जो कल्पवृक्ष उग्यु होय, तो शुं तडकानो जय होय ? तेम शत्रुजय नामनुं महातीर्थ ज्यारे श्रापणी पासे होय, त्यारे नरकने देनारी एवी पापनी बीक चित्तमां क्याथीज होय ? वली ज्यांसुधि “ शत्रुजय " एबुं नाम गुरुनां मुखथी सांजव्यु नथी, त्यांसुधिज हत्या आदिक पापो रहे डे. वली प्रमादी माणसोए पापोथी डरवुज नहीं; फक्त एक वखतज श्री शत्रुजय तीर्थ- माहात्म्य सांजलq. था शत्रुजय पर्वतपर एकज दिवस प्रजुनी सेवा करवी, ते स Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः पंथी उत्तम , अने वीजा तीर्थोमां जे भ्रमण करवू, ते तो क्वेशनुं कारण . वली था शत्रुजय तीर्थनी यात्रा करवाने श्छता एवा माणसोनां कोडो जवोमां उपार्जन करेलां पापो पण पगले पगले नाश पामे . वली था शत्रुजय पर्वत प्रते एक एक पगले पण, क्रोडो नवोमां करेला पापोथी प्राणी मुकाय . वली शत्रुजय तीर्थनो स्पर्श करनाराउँने रोग, संताप, पुःख, वियोग, उर्गति, के शोक थतां नथी. वली मोक्षने श्वनार एवा सुबुद्धि माणसे, श्रा तीर्थनां पाषाण दवा नहीं, था तीर्थनी नूमि खोदवी नहीं, तेम अहीं विष्टा के मूत्र करवां नहीं. वली था पवतज तीर्थरूप , माटे तेनां दर्शन, अने स्पर्शथी ते मुक्तिसुखने देनारो बे, तेथी ते कोनाथी सेवातो नथी ? (सर्वथी सेवाय बे.) वली श्रा उत्तम पर्वत श्री षनदेव प्रजुथी विशेषे करीने नूषित थएलो , तथा ते, तप जेम कुकर्मोने, तेम निबिड पापोने नाश करे . वली जो श्राकरो तप तपाणो होय, तथा उत्तम सुपात्रे दान देवायुं होय, श्रने जो जिनेश्वर प्रजु प्रसन्न थया होय, तोज था तीर्थनी सेवानो अवसर मली शके . वली आ पृथ्वीतलपर रहेला बीजा सर्व तीर्थोनुं माहा. म्य ऊंचे प्रकारे वचनोथी कही शकाय . पण या तीर्थाधिराजनुं महात्म्य तो केवली पण जाणतां बतां कही शके तेम नथी. वली था तीर्थपर रहेखा श्री शषनदेव प्रजुनां चरण कमलनी सेवाथी समग्र प्राणी निष्पापी थया थका जगतने वंदनीक तथा पूजनीक थाय . व. ली जे प्राणी शीतल अने सुगंधी पाणीथी श्री रुपनदेव प्रजुनुं स्नात्र करे बे, ते प्राणी शुज कर्मोयें करीने निर्मल थाय . वली जे था त्रण जगतनां ईश्वरचं पंचामृतथी स्नान करे बे, ते केवलज्ञान पामीने मोक्ष मेलवे . आ जगतमा श्रेष्ट, तथा नाश करेल , अंतरंग शत्रुट जेणे एवा जे माणसो, कस्तुरी, अगर, कुंकुम, तथा चंदनथी श्रा तीर्थमां तीर्थंकर महाराजनी पूजा करे , ते अखंड लक्ष्मीना सहायवाला थया थका कीर्तिनां विस्तारने नजनारा थाय जे. वली हे इं! जे माणसो था तीर्थमां जिनेश्वर प्रजुनी पूजा करे जे, ते आ जगतमा कीर्तिवंत थया थका था लोक अने परलोकमां पण पापरहित थाय बे. बसी जे माणसो आदर पूर्वक जिनेश्वर जगवानने था तीर्थमां सुगंधि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्व शत्रुंजय माहात्म्य. पुष्पोथी पूजे बे, ते माणसो सुगंधियुक्त देवाला थया थका त्रणे लोकनां प्राणीयोने पूजनीक थाय बे. वली बीजी पण सुगंधि वस्तुथी हर्षे करीने जे श्रावको हीं जिनेश्वर प्रजुनी पूजा करे बे, ते सम्यक्त्व सहित या थका शुक्ल ध्यानथी मोक्ष मेलवे बे, वली अहीं प्रजुनी धूपपूजाची पंदर दिवसनां उपवासनुं फल मले बे, तथा बरासनी पूजाथी एक मासनां उपवासनुं फल मले बे. वली हे इंद्र ! वहीं जे माणसो वासपथी तथा वस्त्रोधी जिनेश्वर प्रजुनी पूजा करे बे, ते देवोथी पण पूजाय बे. वली अहीं अखंड चोखाथी पूजा करवाथी अखंड सुखनी संपदावाला, तथा उचित काले चडावेला फलोधी इछित फलोनां जोगवनारा थाय छे. वली अहीं प्रजुनी स्तुति करवायी माणसो स्तवनीय थाय बे, दीपकपूजाथी कांतियुक्त शरीरवाला तथा नैवेद्यपूजा करवाथी अत्यंत हर्षवाला थाय बे. वली अहीं प्रजुनी धरती उतारवाथी माणसाने यश, लक्ष्मी, अने सुखो मले बे, तथा तेथी ज्ञान, दर्शन अने चारित्रने तुरत मेलवीने माणसो मानसिक, पीडा पामता नथी. वली जे 2 अहीं प्रभुने नमस्कार करे बे, ते त्रण जगतथी नमाय बे, तथा जे गीतपूजा करे बे, तेना गुणो गवाय बे; अर्थात् यहीं जे क्रिया प्रजुप्रते कराय बे, ते फल प्राणीउने मले बे. वली अहीं प्रजुनी पासे दीपक कर्याथी माणसोनुं जवसंबंधि अज्ञान नाश पामे बे, तथा मंगल दीवो करवाथी द्रव्याने जावमंगलो थाय बे, वली जे माणसो यहीं प्रभुने लंकारो पढेरावे बे, ते पवित्र थया थका त्रणे वनोनां श्रलंकार रूप थाय बे. वली अहीं प्रभुनी रथयात्रा माटे जे रथ पे बे, तेर्जने चक्रवर्त्तिनी लक्ष्मी पोतानी मेले श्रावीने वरे बे. वली अहीं प्रजुनी नीराजना ( आरती ) करवायी माणसोने निष्पापपणुं प्राप्त थाय बे, तथा तेर्ज प्रतापथी शत्रुनो जय करे बे. वली या तीर्थमां घोडानुं दान देवाथी, सर्व जगोएथी, लक्ष्मी चावीने मले बे ने हाथी देवाथी गजगामिनी शीलवंत स्त्रीयो मले बे. वली अहीं प्रजुनां पंचामृत स्नात्र माटे जे गायनुं दान थापे बे, ते माणस हाथी सहित समस्त पृथ्वीनो राजा थाय बे. वली हीं जे माणसो चंदरवा, बत्र, सिंहासन, तथा चामरनुं दान आपे बे, तेजने, जाणे थापणज मुकी होय नहीं, तेम ते वस्तु म · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः सर्गः श ले बे. वली जे माणस अहीं गुरुनी आज्ञाथी महाध्वजनुं दान आपे बे, अनुत्तर विमाननुं सुख जोगवीने ठेवटे मोह मेलवे बे. वली जे माणस या तीर्थमां पवित्र वस्त्र आदिकथी प्रभुनी यांगी रचावे बे, ते आखा जगतमां शोजनिक थाय बे. वली जे माणस श्र तीर्थमां सोना, रुपा, पीतल विगेरेनां कलशो करावीने थापे बे, तेर्जने खप्तमां पण दुःख तुं नथी, ने मोक्षपद मले बे. वली जे माणस या तीर्थमां प्रभुनी सेवा माटे जावसहित भूमिनुं दान करे बे, ते शझिनो जोक्ता थाय बे, तथा यहीं गाम, बगीचा विगेरेनां दानथी प्राणी ज्ञान सहित चक्रवर्ती थाय बे. वली जे माणस श्रहीं माला पेहेरीने विधिपूर्वक प्रभुनी आरती करे बे, ते माणस देवोने पण चाकररूप करीने स्वर्गनी संपदा जोगवे बे. वली अहीं प्रभुनी दश पुष्पमालाथी पूजा करवाथी एक उपवासनुं, तथा तेथी दशगणी मालाउंथी अनुक्रमे बठ, श्रम, तथा पासखमनुं फल मले बे. वली या तीर्थमां जिनपूजा करवाथी मासखमणनुं फल मले बे; वली बीजां तीर्थोंमां सुवर्ण, भूमि, तथा आभूषणोदेवाथी जे पुण्य थाय बे, ते पुण्य तीर्थमां फक्त एक उपवास करवाथीज थाय बे. वली अन्य तीर्थमां घणा कालसुधि उग्र तपथी, तथा ब्रह्मचर्य पालवाथी जे फल मले बे, ते फल या तीर्थमां एक उपवास करवायी पण मले बे. वली या तीर्थमां नोकारसी प्रमुख दश प्रकारनां पञ्चखाए करीने, पुंडरिक गणधरनुं स्मरण करतां थकां माणस विघ्नरहित सर्व इतिने मेलवे बे. वली अहीं उठनो तप करवाथी मलेलां पुण्यर्थी प्राणी सर्व संपदा मेलवे बे, तथा श्रहमनो तप करवायी आठ कर्मोनो कय करी मोहने मेलवे बे. वली अन्य तीर्थमां सूर्य तरफ दृष्टि राखी ने, तथा पृथ्वीपर टचली चांगलीथी स्पर्श करीने रह्याथी, ब्रह्मचर्य पूर्वक एक मासनां उपवासथी जे फल मले बे, ते फल श्रा शत्रुंजय तीर्थमां एक मुहुर्तवारज सर्वहारनो त्याग करवाथी मले बे. वली श्रा तीर्थमां रागद्वेषथी रहित थने, श्राव उपवासथी जे अरिहंत प्रजुनुं ध्यान धरे बे, ते माणस स्त्रीहत्यानां पापथी मुक्त थाय बे. वली जे माणसो यहीं पाखमानो तप करे बे, तेजने बालहत्यानुं पाप तो क्यांथीज होय ? मासखमणनो तप तरवाथी ब्रह्मचारिनी हत्यानुं पाप नाश पाने डे. वली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० शत्रुजय माहात्म्य. लाख श्रादिकनां करजथी पण, श्रहीं एक श्रादि उपवास करवाथी प्राणी मुकाय बे, तथा मोक्षसुखने देनारं सम्यक्त्व पामे . वली श्रहींनां जिनमंदिरमा प्रमार्जन, विलेपन, तथा मालारोपण करवाथी प्राणी, सो, हजार, अने लाख रुपीथानां दानथी थता फलने पामे . वली हे ! था तीर्थमा जक्तिपूर्वक गीतगान करवाथी जे पुण्य थाय , ते तो कही पण शकाय तेम नथी. वली शत्रुजयनुं नाम सांजल्याथी जे पुण्य थाय बे, तेथी क्रोडगणुं पुण्य तेनी समीप गयाथी थाय बे, तथा तेथी अनंतुं पुण्य तेने नजरे जोयाथी थाय . वली था तीर्थने जोतां अथवा न जोतां पण जे माणसो त्यां जता संघनी पूजामां तत्पर होय बे, ते मोक्षपर्यंत महा पुण्यने मेलवे . वली त्रिकरण शुद्धिथी था तीर्थमां साधुने अन्नादिक आपवाथी कार्तिक मासनां तपनु उत्तम फल मले बे. वली था शत्रुजय तीर्थमां जेउये मुनिउनी पूजा नथी करी, तेऊनो जन्म, धन, अने जीवित पण निरर्थक . वली था शत्रुजयादिक तीर्थोमां यात्रामां, अने जैनपर्वोमां जे माणसो मुनिउँने पूजे , ते त्रणे लोकनां ऐश्वर्यने जजनारा थाय . वली मुनि ने ते, पंडितोने पूजनिक, सेवनीक, अने माननीक , वली मुनिनां श्राराधनथीज यात्रा सफल थाय , अने मुनिविनानी यात्रा निष्फल जाणवी. वली वीतरागपणामां पण पूर्व जवमां सांजलेली एवी गुरुनी वणीज कारणरुप , माटे देव तत्वथी पण गुरुतत्व मोटुं जाणवू. वली सुपात्र प्रते जे दान आप, ते हमेशा महापुण्यने अर्थे थाय , तेमां पण था तीर्थमां श्रावी सुपात्र प्रते जे दान आप, ते तो सुवर्णमां सुगंधि मलवा जेवू दे. वली था तीर्थमां जे माणसो मुनिउँने, अन्न, पाणी, वस्त्र, स्थानक, श्रासन, तथा पात्रोथी पूजे, ते लक्ष्मी करीने देवोने पण जीती जाय . वली जे सुखी माणस अन्न अने वस्त्रादिकथी गुरुनु पूजन करे , ते शुद्ध थयो थको तत्वथी त्रीजे नवे मोक्ष पामे . वली जे धनथी जगतनां पूजनिक एवा मुनी जक्तिपूर्वक पूजाय , तेज धन वखाणवा लायक , तथा तेज परम तत्व, तथा तेज पुण्यनी बुधि . वली जे माणसो गुरुने साक्षीरूप करीने, जिनेश्वर प्रजुने पूजे , ते था लोक अने परलोकमां चक्री आदिकनी पदवी मेलवीने उत्तम गतिमां जाय . वली आ तीर्थमा ह: Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःसर्गः जारो अने लाखो एवा शुद्ध श्रावकोने जमाडवाथी जे पुण्य उत्पन्न थाप, तेथी पण अधिक पुण्य अहीं मुनिने दान देवाथी थाय . गमे तेवो पण चारित्रयुक्त मुनि, समकीती डाह्या माणसोये था तीर्थमा गौतम गणधरनी पेठे पूजवो. कर्मरूपी व्याधियी पीडायेला माणसोये, शोजाविनानां, मनने क्लेश करनारा, तथा शास्त्रार्थरूपी रस विनानां मुनिने पण, उत्तम औषधनी पेठे या तीर्थमां सेववो. गुरुनां श्राराधनथी वर्ग मले , तथा तेनां विराधनथी नर्क मले , एवी रीते बन्ने गती पुरुषी मले ,माटे पोतानी छाप्रमाणे प्राणीउये ग्रहण करवी. वली बीजां दानो तो कीर्ति, लक्ष्मी तथा सुख श्रादिकोने आपे , पण अजयपाननुं फल तो मुखथी कडं जाय तेम नथी. वली दीन श्रादिको प्रते श्रा तीर्थमा जे दान श्राप, ते स्वर्गनां सुखमाटे थाय , तथा नव प्रते प्रखंड लक्ष्मीनां कारणरूप मनुष्य जन्मने ते देना5 बे; वली ते दानयी था लोकमां सम्यक्त्व सहित राज्यनां लाजरूप फल थाय बे, तथा ने पुण्यानुबंधि पुण्य श्रापे, अने विशेष प्रकारे मोदनां लालने पण करे . वली अन्य स्थानकमां करेलुं पाप, उत्तम जाववालो प्राणी नहीं त्याग करे , पण या तीर्थमां करेलुं जे कर्म ते तो वज्रलेप सरखं थाय जे. वली था तीर्थमां आवीने कोश्नी निंदा, तथा परना सोहनुं चिंतवन करवू नहीं, तथा परस्त्रीनी लोलता राखवी नहीं, तेम परजव्य हरवाकी बुद्धि पण राखवी नहीं; तेम मित्थात्विऊनो संग करवो नहीं, तेउनां चनपर श्रका करवी नहीं, तेम तेउनी निंदा पण करवी नहीं, अने उनां शास्त्रोनो श्रादर पण करवो नहीं; वली अहीं वैरी प्रते वैर नाव राखवो नहीं, तथा कोश्ने मारी नांखवानी श्छा करवी नहीं, तथा घृत धादिक नव विगयोमां श्रासक्ति राखवी नहीं. कुलेश्यानुं चिंतवन करबु नही. एवी रीते सघलां पापकार्योने जाणीने, बुद्धिज , धन जे एवा माणसोये, स्तुति करवा लायक एवां पुण्यनी श्वाथी अहीं जीअहिंसा करवी नहीं. वली जिनतीर्थादिनो योग होते बते, मिथ्यात्वमिश्रित जे क्रिया करे, तेने महापापी जाणवो, माटे तेने पुण्यनी प्रा. ति तो क्यांधीज होय ? वली मोदसुख मेलववामां उद्यमवंत थयेला माएसोये महातीर्थमां अनर्थ दंडोथी विरति, तत्वचिंतनमां आसक्ति, प्रजु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ . शत्रुजय मादात्म्य. मां नक्ति, मुनिमां रक्तपणुं, दानमां हमेशनी वृत्ति, उत्तम आचारनुं चिं. तवन, पंच नमस्कारर्नु स्मरण, पुण्य जंडारोनुं नरवापणुं, नवरूपी समुप्रथी तरवापर्यु, उत्तम ध्यान, देव पूजन, तथा तप आदिक उत्तम कार्यों करवा. वली यहीं चतुर्विध संघसहित यात्रा करवाथी माणसो तीर्थंकरनी पदवीरूप लोकोत्तर फल मेलवे . या तीर्थमा यात्राथी उत्पन्न थयेला पसीनाने जे लु , तेज निष्पापी एवा निर्मल देहने पामे बे. वली था तीर्थमां जे माणसो यात्रालु लोकोने, नक्तिपूर्वक अन्न तथा वस्त्रादिकथी पूजे , ते विस्तीर्ण लक्ष्मीनां सुखने नोगवीने अंते मोदने जजनारा थाय . वली आ तीर्थमा जे माणसो जरा पण संकोच राख्याविनां घणुं शचित दान आपे , ते आनंदपूर्वक उंचे प्रकारे सुखी थाय . वली या तीर्थमां पोतानी शक्ति मुजब जे कं पुण्यनां कार्योंजत्तम बुद्धिवाला करे , ते ( कार्यो) कुकर्मोनो नाश करी, बन्ने नवोनी शुझिने माटे थाय . हे इं! एवी रीते संदेपथी या तीर्थमां करेलां दाननो महिमा कह्यो; हवे तीर्थजूत एवं जे रायण वृक्षा, तेनो महिमा तुं सांजल ? रुपनदेव प्रजुश्री जूषित थयेली, तथा दूधनी धाराने करती एवी श्रा शाश्वती रायण श्रज्ञानरूपी अंधकारनो दणमां नाश करो? आरायणनी नीचे नाजिराजानां पुत्र श्री रुपनदेवस्वामी समोसर्या हता, तेथी उत्तम तीर्थनी पेठे ते वंदनीक . आ रायणनां दरेक फल, दरेक पांदडां, तथा दरेक डालांप्रते देवालयो , माटे अजाणतां पण तेनां पत्रादिक बेदवां नहीं. नक्तिसहित चित्तवाला थश्ने, पानी प्रदक्षिणा करनार संघपतिनां मस्तकपर था रायण हर्षथी दूधने वर्षे जे; अने तेथी जाणवू के, ते संघपतिने आगामी कालमां शुजरूप थश्ने बन्ने नवोमां सुखकारी थशे; अने रीसथी जेनापर ते दूध वर्षती नथी, तेने हर्षादिकनी करनारी ते थती नथी. वली था रायणनुं जो सुवर्ण, रु, मोती, तथा चंदनादिकथी पूजन करवामां आवे, तो ते खप्नमां श्रावीने, सघर्बु शुजाशुन कही आपे डे. वली शाकिनी, नूत, वेताल तथा राक्षस श्रादिकथी जयजीत थयेलो माणस, खरेखर थारायणनी पूजा करीने ते दोषोथी मुक्त थाय बे. वली जे माणस श्रारायणनी पूजा करे , तेने एकांतरी, तरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ प्रथमःसर्गः के कालज्वर तथा फेर श्रादिक तेनां शरीरने पराजव करी शकतां नथी. पसी पोतानी मेले जखरीने पडेला थारायणनां डालां, तथा पांदडांदिक ले. इने, तेने जीवनी पेठे साचवां, केम के, ते सर्व उःखोने नाश करनारां के वली जे बे मित्रो था रायणने साक्षीरूप करीने पोतानी मित्राश्बांधे , ते राज्यादिक सुखोने मेलवीने मोद पदमां जाय . था रायणनां पश्चिम दिशानां नागमा पुर्खन एवी रसकुंपिका ने, के जेनां रसनां गंधथी सोढुं क्रोड सोनामोहोर जेटलुं थाय जे. वली पूजा, नमस्कार अने नाबने जजनारो कोश्क माणस अमनो तप करीने आ रायणनां प्रसादथी ते रसकुंपिकानां रसने मेलवे . वली कल्पवृदो, दिव्य औषधीठ, बने श्राप सिधिनी शी जरूर बे ? फक्त एक था रायणज माणसप्रते प्रसन्न था ? वली था रायणनी नीचे, जग तनां लोकोथी पूजायेलां, तया महासिकि अने सुखने देनासं श्री षनदेव नगवाननां पगलां . पसी तेनी डाबी अने जमणी बाजुये रुषजदेव प्रजुनां पेहेला गणधर श्रीपुंडरिकखामीनी बन्ने नवोमां सुख करनारी मूर्ति जे. वली श्रीमरुदेवानां शिखरपर क्रोडो देवोथी सेवनीक एवा श्रीशांतिनाथ प्रजु संघनी शांतिनेमाटे था ? करेलुं बे, मंगल जेऊये एवा माणसोज श्री श्रादिनापप्रनुप्रते, पुंडरिक गणधरप्रते, रायणप्रते, पगलां प्रते, तथा शांतिनाय प्रनु प्रते, सूरिमंत्रथी मंत्रेला, तथा शुद्ध पाणी, सुगंध, अने पुष्पोथी जरेला, एकसोने आठ कुंनोथी स्नात्र करे . वली ते स्थानकोनी सवंदा सेवा करवायी राज्य, बुद्धि, लक्ष्मी, कीर्ति, सर्वन वशपणुं, धननी प्राप्ति, स्त्री, पुत्र, संपत्ति, सौजाग्यपणुं, जय, सर्व इडित, आनंद, दोषनो माश, तथा उत्तम नोगोनी प्राप्ति थाय बे. वली अहिं अष्टोत्तरीस्नात्रश्रा करवाथी शाकिनी, नूत, वेताल, तथा व्यंतर आदिकनां दोषोथी ग्रव थएला प्राणीउँनां ते दोषोनो नाश थाय बे. वली अहीं स्नात्रपूजा क(वाथी ज्येष्टा, अश्लेषा, मघा, मूल, नरणी अने चित्रा श्रादिक नक्षत्रो थयेल , जन्म जेनां, एवा माणसोनो विकार पण दूर जाय . व था तीर्थ निर्मल, मोक्ष लक्ष्मीनो संग करावनालं, नूमिरुपी स्त्रीनांकप्रसमां तिलक समान, तथा षनप्रजुरुपी उत्तम रत्ने करीने शोनित थ. सुं. वली श्रा तीर्थ, अनंत मुक्तिनां घाम सर, हमेशां स्थिर, निर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ शत्रुजय माहात्म्य. ल, बाधाने नाश करनारं एईं जे केवल ज्ञान, तेना सरखं ऊरितनां समूहने तथा जवने नाश करना बे, माटे उत्तम बुद्धिवाला माणसोये जगतनां स्वामि श्री षनदेव प्रज्जुमां चित्त राखीने ते तीर्थने सेवq. वली या तीर्थनी पूर्व तरफनी दिशानां जागने नूषित करनालं, तथा दूषण रहित, अने देवोने पण प्रिय, एवं सूर्योद्यान नामर्नु उद्यान में; जे उद्यानमां कल्पवृदनीश्रेणि, पर्वतरूपी लक्ष्मीनी जाणे वेणीज होय नहीं, तेम जगतनां इलितने पूरे दे, तथा जिननी सेवानी स्पर्धा करे बे; वली आ उद्यानमां किन्नरो पोतानी स्त्री सहित जिनमंदिरमा श्रावीने नृत्यादिकथी गायन करे , तथा तेश्री विद्याधरोने पण गम्मत उपजावे . तमाल, हिंताल, पलाश, तथा तालनां पत्रोनी पंक्ति, ऊंकार करता चमरनी मालाने प्रेरणा करे . वली था उद्यानमां वसंत झतुमां पत्रोनां समूहोथी युक्त थयेली वननी पंक्ति, ते जाणे कामदेवे, सूर्यनां किरणोथी स्पर्श थ न शके, ते माटे लजायुक्त करी होय नहीं, तेम शोजती हती. वली श्रा वनमां वसंत ऋतुमां थाम्रनां वृ. क्षपर रहेली कोकिल आनंद आपनारा पंचम स्वरथी गाय , अने तेथी ते एम जणावे डे के, गुणीनां संगथी निर्गुणी पण गुणयुक्त थाय, एवी वाणी निष्फल जे; वली अहीं रागी माणसोने रंगनां तरंगो जपजावनारी वाणी पदिउँ बोले , के जे वाणीनी मीगश अमृतनां रसनी धाराने पण दूर करे . वली अहीं क्याराऊमां वलयाकारने प्राप्त थयेवू, तथा मार्गे चालती पशुऊनी श्रेणिउथी शोजतुं, नीकोमा पाणी वहे . वली अहीं मधुपान करवामां लीन थयेला जमराऊनीश्रेणियी मनोहर लागती, तथा उगता सूर्यनी कांतिसरखी लाल, अने धारण करेल , पृथ्वी प्रते अग्नि सरखी लाल बाया जेणे, एवी आंबानी कलिका, मदोन्मत्त कुतकीउनी श्रेणिनी तुलनाने जजे . आंबानी मनोहर मांजर, के जेनापर मनोहर कोकिल मनोहर शब्द करे , अने ते कामी वियोगीउनां मनमां आपदा उत्पन्न करे . माणसोने पीडती एवी जे तापनी श्रेणि, तेने दूर करवाने, उत्तम स्त्री जेम विऊणाश्री पवन नांखे , तेम था वन केलनां पांदडांउरूपी वींऊणाउथी पवन नांखे बे. वली अहीं सर्व ऋतु पण हमेशां एकी वखतेज होय , त. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ बीतीयःसर्गः या तेथी हसता एवा जे वृदोनां समुहो, ते पोतानां पुष्षोनी श्रेणियी विलासयुक्त थया थका सुखेछुने अनुपम सुख आपे बे. वली अहीं जिननी दृष्टिरूपी अमृतथी सिंचायेला, तथा विकखर श्रयेलां कमलोनी श्रे. णियी शोजता, तथा विविध प्रकारनां वृदोनी रचनाथी देदीप्यमान देवो वनलक्ष्मीनी पेठे शोने दे. वली अहीं हंसनी पंक्तिथी सहित डे, श्रेणि जेनी, एवां विकखर थयेलां कमलोथी मनोहर थयेदुं था तलाव बे, के जे अढार जातनां कुष्टोनो नाश करे . वली हे इंज! शत्रुजय पर्वतनी पासे रहेखें, तथा त्रणे लोकोनां प्राणीउथी सेवायेखें, तथा तमारी दिशाने मंडन करनालं, था वन कोने यानंदकारक नथी ? __एवी रीते श्राचार्य श्री धनेश्वरसूरिये रचेला, महातीर्थ श्री शत्रुजयनां माहात्म्यमा पर्वत, कंडमुनि, प्रजुनुं समवसरण, देशना, श्रने उ. धाननां वर्णनरूप पेहेलो सर्ग समाप्त थयो. हीतीयः सर्गः प्रारज्यते. देव तथा असुरोनां मस्तकपर रहेलां रत्नोनी कांतिथी रोमांचित थयेल बे चरणो जेमनां तथा जगतनां नाथ, अने कर्मोनो नाश करनारा श्री श्रादिनाथ प्रजु तमारं रक्षण करो? एवी रीते श्री जगवाननी वाणीने सांजलीने, सुधर्मेज, प्रणाम करीने, तथा हाथ जोडीने प्रजुने विनती करवा लाग्यो के, हे जगवन्, श्रापे जे था तीर्थाधिराजनो महिमा कह्यो, ते मने अत्यंत आनंद उपजावनारो थयो, हवे मनेा सूर्योद्यानमा रहेला तलावनी कथा सांजलवानी श्वा बे. त्यारे नगवान पण सोने नव्य जाणीने तीर्थनां माहात्म्यने वृद्धि करनारी, ते कुंडनी कथा कहेवा लाग्या. या सूर्यावर्त नामनो उत्तम कुंड जवरूपी खाडाने हरनारो , तथा तेनी सेवाथी पण अढारे कुष्टोनो नाश थाय . वली श्रा कुंडनुं पाणी प्रजुनां चरणपर सींचवाथी, तत्वथी जेम मिथ्यात्व, तेम सघला दोषो नाश पामे . ते नीचे प्रमाणे. - श्री सुराष्ट्र नामनां देशमां विशाल किसाथी शोनितुं, तथा लक्ष्मीने विलास करवानां घररूप एवा घणा लोकोथी विनूषित थयेलं, वाव, कुवा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ शत्रुंजय माहात्म्य. तलाव, तथा मोटां उद्यान यादिकथी घेरायेलुं, दानशालाउंथी नरेलं, इंद्रनी नगरी सरखं, तथा जिनवचननी श्रेणिरूप मोहनी नीसरणीची मंडित थयेलुं " गिरिदुर्गपुर” नामनुं नगर गिरनार पर्वतनी तलेटीमां रहेलुं छे. ते नगरमा रहेनारा लोको जरा पण निर्धन, चाडीथा, मूर्खा, विवेकी, दीन के पराधीन नथी. वली त्यांनां लोको देवपूजन क नारा, जक्तिपूर्वक तपखीउने दान देनारा, मागणीने दान देनारा, तथा दुःखी प्रते दयालु बे; तेम त्यांनां वेपारी राजनां मानीता, कवि सत्कारवाला तथा चाकरो शेठो तरफथी इनाम मेलवनारा बे. ते न - गरमां समुद्र विजय राजानां वंशनो तथा घणां जाग्योथी शोजतो, अने अरिहंत प्रभु तथा मुनिमां जक्तिवालो, सूर्यमल्ल नामे राजा हतो. ते राजाये वैरीरूप अंधकारने हरीने समस्त पृथ्वीने आनंदयुक्त करी. वली यादववंशमां भूषण समान एवा ते राजाये क्रिडामात्रमांज, रणसंग्राममां लाखो वैरीनां मस्तकपर पग मुक्यो. वली तेनां प्रतापरूपी सूनां तापथी माखणसरखी शत्रुनी कीर्ति गली गई. सूर्यने विषे जेम कमलीनी, तेम या राजामां प्रीतिवाली, कमलसरखां मुखवाली, तथा शुन कार्योमां तत्परतेनी शशिलेखा नामनी पटराणी ह्ती. सूर्यमल्लनी ते इती, बतां सूर्यने ते जोती नहोती, तथा श्री नेमनाथ प्रजुनां चरण कमल ने सेवनारी हती. पुण्यमां आदरवाला, शांत, तथा सुखरूपी समुद्रमां काचानां जोडां सरखा, ते बन्ने स्त्री पुरुषो सुखेथी पोतानो काल निर्गमन करता हता. एक वखते राजा प्रभुनी यात्रा करवामा गयो हतो, ते वखते राणीये, पोतानां बालकोने रमाडती एक मयूरीने जोइ ते वखते ते राणी पोते पुत्रहीन होवाथी, पोतानां यात्माते शोक करवा लागी; त्यां राजाये आवीने, तेणीने धीरज श्रापीने युंके, ते कार्यमाटे तुं प्रजुनी सेवा कर ? पढी जगतनी माता सरखी एवी अंबा देवीनां प्रसादथी तेणीने प्रख्यात देवपाल ने म हीपाल नामनां वे पुत्रो थया; ते बन्ने कलानां समूहवाला, उत्तम पदवाला, मिष्ट वचनो बोलनारा, सर्व लोकोनी उन्नतिमां प्रीतिवाला तया सर्वपर समदृष्टि राखनारा हता; वली तेर्जये पोताना हृदयरूपी पृथ्वीमां उत्तम श्राचारणाने धारण कर्या हतां; वली बुद्धिना जंडाररूप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीतीय सर्गः ३० एवा तेउये गुरुने तो फक्त शाहीरूपज करीने शास्त्राच्यास, तथा विवि*ध प्रकारनो शस्त्राच्यास कयों. वली तुख्य वयवाला ते क्रीडा करता थका, तथा लोकोने खुशी करता थका अनुक्रमे यौवन अवस्थाने पाम्या. पड़ी मातपिताये घणां हर्षपूर्वक तेउने घणी राजकुमारी परणावी. हवे तेउमां महीपाल ते, मानी, यशस्वी, तेजस्वी, विनयी, तथा नीतीने जा‘णनारो हतो, तेथी देवपालथी घणां गुणोयें करीने ते जुदो पडतो हतो. एक दिवसें महीपाल पाबली रात्रं निखारहित थयो थको, थचानक पो"ताने, वनपशुथी व्याकुल वनमां देखवा लग्यो. त्यां तेणे को जगोये खंडोनां टोलां, तो कोश जगोये हाथीनां टोला, अने को जगोये 'तो वली सिंहोनो संचार जोयो. त्यारे ते विचारवा लाग्यो के श्रा ते विन्रम ! के खप्न ! के चित्तनो विपर्यय थयो ! के उजाल !के श्रा को देवचरित्र !!! वली हुं तो गीतरसोनो स्वाद आपनारी स्त्रीउँनी क्रीडामां मग्न थयो थको चंशालामां सूतो हतो, अने अहीं क्याश्री श्राव्यो!!! हशे ! हुं था वन तो जोड! एम विचारि जेटलामां ते चालवा जाय , तेटलामां तेणे एवी वाणी सांजली के, हे मित्र ! हुँ तने अहीं लावेलो ढुं, माटे डरीश नहीं. पण ते वाणीनां मार्गने नहीं जो. वाथी, ते एक मेहेलमांथी जेम बीजा मेहेलमां तेम वृदोपते मार्गने शोधतो थको खेद पाम्याविनां जमवा लाग्यो. एवी रीते वनमां जमतां थकां तेणे, को जगोये तो चंकांत मणिनां किरणोश्री शरद ऋतुनां 'वादलाउनी शोजाने धारण करतो, तथा अनील मणिनी श्रेणियी उत्तम वेणीनी शोजाने धारण करतो, पुखराजोथी कमलनां रंगनी देदीप्यमान कांतिने धारण करतो, सुवर्णनां कलशोथी मंगलपणाने धारण कर. तो, तथा हजारो फरुखाउँथी जाणे हजारो आंखोवालो थयेलो, तथा हीरानां किरणोनां समूहथी जय पामता राज्यपणाने धारण करतो, तथा रत्नोथी तापयुक्तपणायें करीने जाणे पताकाउँथी वीफातो होय नहीं, एवा एक मोटा मेहेलने तेणे ते वननां मध्य नागमां जोयो. जंगली जानवरोथी नरपूर वनमां था मेहेल क्याथी !!! एम आश्चर्य पामतो यको ते, ते मेहेल तरफ जोवा लाग्यो. पडी तेणे विचार्यु के, मारी श्रांखनां विनोद मादे प्रसंगधी मलेलो था मेहेल हुं जो तो खरो ! एम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ शत्रुंजय मादात्म्य. विचारि ते तेनी तरफ चालवा लाग्यो. या मेहेलमां था वस्तु बहु रमfor a ! था वह रमणीक बे ! एम विचारतो थको, ते तेनां मजलाईपर चडवा लाग्यो. महापराक्रमी एवो ते एवी रीते चालतां धकां, जेवो चंद्रशालाप्रते आव्यो, तेवामां तेणे पद्मासन वारीने बेठेला एक योगीने जोयो. त्यारे ते विचार्यु के, संसार सरखा या अरण्यमां संसारीनी पेठे जमता एवा में, प्रसंगधी जीवतां मुक्त थया सरखा श्रा योगीने जोया; एम विचारि पृथ्वीपर मस्तक अडाडीने, कल्याण करनारा, तया दयाने पालनारा ते योगीने समतापूर्वक तेणे नमस्कार कर्यो. पंच महाव्रत तथा यमोने समतापूर्वक धरनारो, आसनपर बेठेलो, महा प्रा' यामने धारण करनारो, नियमोमां यादरयुक्त, पांच इंडि तथा मन, वचन ने कायानां योगने धरनारो, चार ज्ञानने धरनारो, तथा समाधित्रिकां जावी अरिहंत संबंधी तेजनुं स्मरण करनारो, तथा दयालु एवो ते योग। तेने जोइने पोतानुं ध्यान छोडतो वो अने तेने कहेवा लाग्यो के, हे वत्स !! तुं सुखी तो बे ने ? जले श्राव्यो ! तारा शरीरने तो सुखसाता बेनी ? धने तुं यहीं विघ्नरहित श्राव्यो बेनी ? वली हे वत्स! तुं श्राश्चर्य नहीं पामजे ? ताराप्रते विद्या आपीने गुरुपणानुं करज बोडवानी इहाथी हुं तने खरेखर यहीं लाग्यो तुं. " तुं जुख्यो होश एम कही ने दीव्य शक्तिथी मगावेली श्राश्चर्यकारक रसोइ, प्रीतिपूर्वक योगी ने जमाडी. पठी तेणे पण जोजन करीने, पूर्वपुण्यनुं फल जातां कां, विनयपूर्वक ते योगीनी पासेथी खड्गसिद्धि नामनी विद्या मेलवी, पी ते वखते योगी पण कमलासनपर बेसीने, तथा कांतिथी ते महेलने पण दीपायमान करतो थको, आकाश नेदीने पोतानां प्राणोने तजतो दवो. एवी रीते ते योगी स्वर्गमां गये बते, सारासारने जाणनारो ते राजकुमार, मेहेल के योगीने न जोवा लाग्यो; पण केवल वननेज जोवा लाग्यो; अने विचारवा लाग्यो के, अहो ! योगनो महिमा hat a !!! जेथी जीवतां थकां पण घ्यावी लक्ष्मी मले बे, तथा परजवमां तेी मुक्ति मले बे. सारी रीते योगनो आश्रय करनाराउने पापोनो नाश, मुक्तिनो संग, तथा सर्व सिद्धि प्राप्त थाय बे. एम विचारि त्यांथी वीने, ते वनमां जमवा लाग्यो, त्यां तेणे उंचां वृक्षोवालो, तथा अंदर बे " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वितीयःसर्गः बगलांनुं स्थानक ज्यां, एवो तेणे एक महा कुंड दीगे. पडी जेटलामां ते तेमां स्नान करवानी श्छा करे बे, तेटलामां ते महाबुद्धिवाने “मा!मा!" एवी रीतनी वाणी सांजली; पण ते वचननां बोलनारने नहीं जोवाथी ते कुंडनां कांगपर गयो, तथा ते अवज्ञानुं वचन त्यां वारंवार सांजलवा लाग्यो. एवी रीते ते माणसरहित वनने जोतो थको जेटलामां आश्चर्य पामे , तेटलामा कोश्क वांदरो तेनी सन्मुख प्रगट थश्ने कहेवा लाग्यो के, हे वीर! मने पशु जाणीने मारां वचननी तुं अवगणना करीश नहीं, केम के, वांदरनां वचनथी रामे पण राक्षसोने जीत्या बे. वली श्रा कुंडमां रहेला राक्षसे अहीं जे प्राणीउँने मारी नांख्या बे, ते प्राणीउनां, पर्वतनां शिखरो सरखा हाडकांनां समूहोने तुं जो? अने तुं तो कोश उत्तम श्राकृतिवालो तथा डाह्यो राजानो पुत्र जणाय , माटे अहींथी तुरत चाल्यो जा? नहींतर ते राक्षस तने मारी नांखशे. ते सांजली महीपाल जरा हसीने कहेवा लाग्यो के, अरे ! पशु ! तुं खरं कहे , पण मने राक्षसनो नय नथी, केम के सूर्यने अंधकारनो जय होतो नथी. ते सांजलीने वांदरो तेने कहेवा लाग्यो के, जो तारी शक्ति बे, तो तारी श्या प्रमाणे कर? अहीं जयंकर, क्रोधी, तथा श्याम कांतिवालो एक राक्षस वसे बे; एम कही ते वांदरो वनमांअदृश्य थयो. पडी तेराजपुत्र उत्तम विद्याथी विनूषित थयेला खगने हाथमा लेश्ने, वेगथी कुंडप्रते श्राव्यो. पडी ते कुंडनां पाणीमां पडीने, जेटलामां ते बगलांनां स्थानकपते पहोंच्यो, तेटलामां क्रोधथी ऊंचां करेल बे, नेत्रो जेणे एवो राक्षस क्षणवारमा तेनी तरफ दोड्यो. पड़ी युद्धमां पारंगामी तथा महाबलवान तेढ बन्ने युद्ध करवा लाग्या, तथा पडता थने पाडता थका पृध्वीने कंपाववा लाग्या. पनी खड्गविद्यानां प्रनावथी ते राक्षस राजपुत्रथी जीतायो अने तेनी सेवा करवा लाग्यो, केम के, साहसथी शुं कार्य सिक यतुं नथी? पनी ते रादसे प्रतिज्ञा करी के, हे राजपुत्र! ज्यारे तुं मारं स्मरण करीश, त्यारे हुँ तने प्रत्युत्तर श्रापीश, तारा वैरीप्रते हुं वैरी यश्श, तथा तारा मित्रप्रते हुँ मित्र थश्श. पडी ते राक्षसे ते राजकुमारने वेष बदलवानी, तथा घाने साजो करनारी एम बे औषधी थापी; अने तेनी पासेश्री तेणे धर्म अंगीकार कयों. पड़ी कुमार तेने रजा श्रापीने, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ მი शत्रुंजय माहात्म्य. तथा क्रीडाथी ते तलाव उतरीने, अखंड सुखवाली ते वननी शोजाने जोवा लाग्यो. ते कौतुकी राजकुमार जोवानी इहाथी कोइ जगोयेथी पुष्पो, तो कोइ जगोयेथी पलवो, तो कोइ जगोयेथी पाकेलां फलो सेवा लाग्यो. पढी त्यांथी ते श्रीनिवास नामनां वनमां गयो, त्यां मनोहर तोरणवालुं श्री नेमनाथ प्रजुनुं मंदिर तेने मन्युं त्यां दर्षथी नेमनाथ प्रभुने नमीने, तथा तेनी स्तुति करीने ते बेठो, तथा निधाननी पेa ध्यान धरवा लाग्यो. त्यां चलायमान थता कुंडलथी घसायेलां बे, कपोलस्थलो जेणीनां, तथा पलाशनी पावडीपर चडेली, सुवर्णदंडने धारण करती, तथा हाथमां मनोहर वृक्षोनां फलोथी नरेलां पात्रने धारण करती, एक योगिनीने तेणे तुरत प्रजुनी पासे दीवी. त्यारे या राजकुमार पण संग्रम सहित उठीने तेणीनां चरणोने नम्यो, त्यारे योगिनी पण तेना प्रते " जय, जीव" एवी रीतनी श्राशिष दीधी. रूप, लावण्य ने आभूषणोथी नूषित थरली ते योगिनीने साक्षात जोइने, खुशी थयो थको, तथा तेणीने देवांगना मानतो थको आदर सहित ते कहेवा लाग्यो के हे देवि! तुं खरेखर मारी गोत्रदेवी बे, केमके, या वखते या जंगली पशुथी नरेला वनमां तुं प्रगट थइ बे. एवी रीतनी अमृतस रिखी तेनी वाणी सांजलीने ते योगिनी कड़ेवा लागी के, हे वत्स ! हुं देवी नयी, पण तपस्या करती मानुषी बुं; वली हे वत्स ! जे पुण्यनां कारणरूप तुं मारो अतिथि तरिके श्राव्यो ढुं, माटे मारी वाणीने तारे व्यर्थ करवी घटशे नहीं. वली हे उत्तम पुरुष ! जेने घेरथी अतिथि निराश थर चाल्यो जाय बे, तेनां पुण्यनो दय करी, तथा पापोनो उदय करीने ते जाय बे पढी ते राजकुमारे ते वात कबुल राख्याथी, ते योगिनी दंडसहित पात्र लेइने जिनमंदिरमांथी निकली. हवे ते कुमार श्रश्चर्य सहित जो बते, हाथमां पात्रवाली, तथा योगनां माहात्म्य वाली ते योगिनी वृक्षप्रते फलोनी याचना करवा लागी ; तथा तेणीये नीचे पात्र धर्या ते वृक्षो फण फलो देवा लाग्यां, तथा एवी रीते घणुं दान देवाथी ते कल्पवृक्षनी तुलनां करवा लाग्यां पढी ज्यारे ते पात्र फलोथी जराइ रधुं त्यारे तेी ये ते महीपालनी सन्मुख मुक्युं, त्यारे तेणे पण तेमांथी पोतानी वा प्रमाणे खाधां पढी ते प्रजुने नमीने ज्यारे जवानी इछा करवा ला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीतीयःसर्गः ४१ यो, त्यारे तेणीयेकडं के, हे वत्स! तुं हवे क्या जाय ? तथा क्याथी थाज्यो इं? ते कहे ? त्यारे तेणे कडं के, हे माता ! टुं को साथथी ब्रष्ट घश्ने अहीं श्राव्यो ढुं, तथा हवे नेमनाथ प्रजुने श्रने तमने नमीने मारां नगरप्रते जश्श. त्यारे ते दयाबु योगिनी कहेवा लागी के हे वत्स ! था आगल रहेला वनने तुं जो? अहीं महाकाल नामे यद वसे ,तथा कालनी पेठे ते प्राणीने हणे . वली ते यदे यहीं आवेला घणां लोकोने हण्या , माटे था वनने दूर मुकीने तने जेम सुख उपजे तेम तुं जजे. एवी रीते ते मांहोंमांहें हर्षपूर्वक वात करे , तेटलामां थकस्मात, महा तेजखी को मुनि श्राकाशमांथी उतर्या. तप अने शरीरथी पण तेजस्वी एवा ते मुनिने जोश्ने, संत्रांत थया थका ते बन्ने, पोतानां पुण्यने जेम, तेम तेने नमस्कार करता हवा. त्यारे मुनि पण आनंदयुक थया थका, तेजेनां विघ्नरूपी हाथीने नसाडवामां सिंह सरखी धर्मलाननी आशिष देता हवा. पडी ते तेने कहेवा लाग्या के, श्राजे तमोजे श्रमारी दृष्टिये पड्या तेथीवण जगतनां नाथ एवा श्री नेमिनाथ प्रजुनां चरणनां नमस्कार, फल अमाझं परिपक्क थयु. वली श्राप तो सादात समता रसनां समुज, तथा पुण्यनां ढगला समान बो, अने नि र्जाग्य लोकोने तो श्राप सरखानुं दर्शन पण पुर्खन बे; माटे हे प्रज्जु ! तमारे श्रमोने धर्म कहेवो योग्य , केम के, छापसरखा परोपकारमा रक्त होय . एवी रीतनुं तेउनुं अमृतने करनारं वचन सांजलीने, मुनि पण पांच दंडके देवोने नमस्कार करीने कहेवा लाग्या के, हे वत्सो! दान, ध्यान, शील अने जीवदयाथी जे पुण्य थाय , ते सघलुं जिनपूजाथी थाय . जिनपूजाथी माणसोने चक्रवर्तिपणुं, उत्तम बुकि, पुण्यनो संग्रह, पापोनो नाश, तथा ग्रहपीडानो पण नाश थाय . वली जे माणस त्रिकाल जक्तिथी उत्तम पुष्पोयें करीने, जिनने पूजे , तेज माणसने धन्य, पुण्यशाली, तथा गुणवान जाणवो; माटे खेद आपनार प्रमादने तजीने, हमेशां उद्यमवंत थया थकां, पापोने नाश करनारी जिनपूजा त्रिकाल करवी. एवी रीतनां मुनिनां वचनने सांजलीने हर्षयुक्त थयेला एवा ते बन्ने महाकाल यदनुं चेष्टित पुरवा लाग्या के, हे जगवन् ! धर्मश्री देवपणुं पामीने, तेज धर्मप्रते शत्रुजूत एवी हिंसा, था यद खार्थथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ शजय माहात्म्य. पराङ् मुख थयो थको केम करे बे.? वली सघली पुण्यबुद्धिने तजीने श्रा यक्ष माणसोप्रते वेषी केम बनेलो डे.? ते सघलुं हे पूज्य! श्राप अमो. पर कृपा करीने कहो ? एवी रीतनुं तेउँनुं वचन सांजलीने मुनि पण, ज्ञाननां माहात्म्यथी ते यदनुं चरित्र जाणीने, अमृतथी पण अधिक वाणी बोलवा लाग्या. या वननी अंदर अगाउ कोश्क तापस हतो, ते चलकता सूर्यप्रते जेम घुवड, तेम जिनशासनप्रते वेष धरनारो हतो. ते तापस स्त्री सहित, जटाधारी, तथा कंदमूल अने फलने खानारो हतो, तथा उत्तम वक्कल पेहेरीने एक वनथी बीजा वनमां जमतो हतो. ते तापसथी, कचरामांथी जेम रत्न, तेम अति रूपवाली, पवित्र तथा तेजयुक्त कांतिवाली अने उत्तम लक्षणवाली एक पुत्री थर. गुणोयें करीने उज्ज्वल ए. वी ते कन्या तेने प्राणधी पण वधारे वहाली हती, तथा तेणीनुं नाम शकुंतला हतुं, थने तेणीनां वाल मयूरनी कला सरखा हता. वसंत ऋतुने पामीने जेम वननी लक्ष्मी शोने, तेम ते पण प्रकृतिथीज यौवनने पामीने मनोहर श्राकारवाली थर थकी शोजवा लागी. एटलामा कामदेव सरखी आकृतिवाला जीम नामे राजाये क्रीडा माटे वनमां जमतां थकां देवांगनानी पेठे तेणीने जो. अत्यंत मनोहर एवी ते स्त्रीने जोश्ने, ते राजा चोकडं खेंची घोडाने उनो राखी त्यां स्थिर रह्यो. पड़ी क्षणवार चम पामीने, ज्यारे ते शुक्रिमां श्राव्यो, त्यारे तेणीने कन्या जाणीने, योगी जेम शाश्वती शक्तिने पामीने, तेम ते श्रानंद पाम्यो. पडी ते राजा ते मृगादीनी नजदीक जश्ने, तेणीने कहेवा लाग्यो के, हे नितंबिनि! तुं परणेली डे के, नहीं? ते कहे? त्यारे कुमारिकाये कडं के, हे राजन्! हुँ कुमारी ईं; एम कहेतांज ते प्रपंची राजा तेणीने घोडापर चडावी चा. सवा लाग्यो. एवी रीते पुत्रीनां वियोगथी कुःखी थयेलो ते तापस, कुर्बल शरीरवालो थयो थको, उःखथी पोतानां दिवसो निर्गमन करवा ला. ग्यो. पडी दीण थयेल ने धातु जेनी, ईर्षालु, मरवानी श्छावालो, अने चेतना रहित ते थयो; त्यारे तपखी पुण्यमाटे तेने था जिनमदिरमा लाव्या. ते तापस खन्नावथीज मत्सरवंत होवाथी जिनेश्वर प्रनु. ने नम्यो नहीं, पण जिननां दर्शनथी, थार्तध्यानथी मरीने यक्षपणाने प्राप्त थयो. जेम फेर चड़ेला माणसोने मृत्युमुंज शरणुं बे, तेम मिथ्या. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीतीयः सर्गः ४३ लिथी मूढ थयेला मनवालाउनी गति नरकज बे; पण या विचाराने - तकाले पण जे नेमिनाथ प्रभुनुं दर्शन थयुं, तेथी नरकगति मटीने तेने देवपणुं प्राप्त थयुं; केमके, स्मरण करायेला, दीठेला, स्तवेला, अथवा पूजेला जिनेश्वर प्रभु, स्वर्गादिक उत्तम गति थापे डे. अहो ! जिनें5 प्रभुनुं माहात्म्य केतुं बे ! ! के जेनां एकवार दर्शनथी पण तापस पानां समूहने तजीने देवपणाने प्राप्त थयो. दवे ज्यारथी तेनी पुत्रीनुं हरण धयुं बे, त्यारथी ते मनुष्यप्रते द्वेषवालो थयो डे, माटे हजु पण ते अभ्यासथी माणसोने ते दुःख आपे बे. एम कहीने ते मुनि, कांतिनां समूही आकाशाने पृथ्वीने तेजखी करता थका, बीजां चैत्योने नमवामा आकाश मार्गे चाल्या गया. पढी दीव्य प्रजाववाली ते योगिनी पण पोताने स्थानके ग, छाने कुमार पण जिनपूजा कर्या बाद कालवन - प्रते जवा लाग्यो. ते वखते नाशिकाने फोडी नाखे एवी दुर्गंध, त्यां पडेलां मुडदांमांची निकलवा लागी हवे उत्तम पराक्रमवालो ते कुमार पण, ते गंधने अनुसारे, हाथमां तलवार नचावतो थको त्यां जवा लाग्यो. ते वखते शस्त्र सहित, तथा जयंकर एवा काल अने कंकालने तेणे जोया, तथा ते तेने क्रोधथी मारवा लाग्या. युद्धमां कुशल एवा ते राजकुमारे, मुनि जेम राग अने द्वेषने, तेम ते महाबलवान तथा दुर्गतिमां जनारा यहोने जीत्या. पढी एवी रीते जीत करीने, ते कुमार यकनां घर गयो, त्यारे तेज तेने मोटी गदाथी रोक्यो; अने ते यक्ष तेने कड़ेवा लाग्यो के, अरे मनुष्य ! तुं कोइ नवीन बे, छाने मारी पासे तारं बल शुं हीसाबमां बे ? माटे हवे तारा इष्टदेवनुं स्मरण कर ? केमके, हमणां तारुं मृत्यु यशे. त्यारे राजकुमार पण जरा हसीने साहसी कड़ेवा लाग्यो के, हे यक्ष ! वचनमात्रथी मने तुं शामाटे कोज पमाडे बे? वली तुं क्रोध नहीं कर? पण जरा शांत था ? अने हृदयमां विचार के, क्रोधने वश यह तुं शामाटे निरपराधि प्राणीउने हणे बे ? माटे तुं मूल्य देवपणुं जोगव? अने मनुष्यवधनो त्याग कर ? केमके क्रोधांध माणसने या जवाने परजवमां पण सुख नथी; कारणके, क्रोध बेते, क्यारूपी वेलडीने बालवामां दावानल सरखो, जवरूपी समुद्रने वधारनारो, कुगति श्रापनारो, तथा धर्मनो घात करनारो बे. वली क्रोध बे ते, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ शत्रुजय माहात्म्य. अग्निनी पेठे तीव्र तापने करनारो , तथा प्रथम पोतानुं स्थानकज बासे , अने पली बीजं स्थानक तो बाले, अथवा न पण बाले, माटे तेनो तुं त्याग कर ? एवी रीतनुं तेनुं दूध सरखं वाक्य पीने, नवा ताववालानी पेठे, ते यदें क्रोधथी बलवा लाग्यो, तथा हृदयमा रहेला क्रोधनेज जाणे कहाडतो होय नहीं, तेम होग्ने स्फुरायमान करीने, तथा भृकुटी चडावीने कहेवा लाग्यो के, नथी बीजुं जेना सर शरणु, एवो जे धर्म, ते तारे विषेज स्फुरायमान थक्ष रहेलो , माटे ते धर्मर्नु माहाम्य मारे जोवु , तेथी तुं मारी साथे युद्ध कर? एम कहीने, हाथमां मुगर लेश्ने ते महाकाल यद कुमारप्रते दोड्यो. ते वखते महा पराकमी एवो ते कुमार पण खड्गविद्याथी पवित्र थयो थको, क्रोधथी खड्ग उगामीने युद्ध माटे तेनी तरफ दोड्यो. महाम, महापराक्रमी, तथा महासुजावाला, एवा ते बन्ने युद्ध करता थका वनदेवीउने आश्चर्य करवा लाग्या; महापराक्रमी एवा ते बन्ने को वखत श्राकाशमा फाल देता, तो को वखते पृथ्वीपर रहेता, तो कोई वखते विचित्र प्रकारे गमन करता; वली ते जाला, मुगर, तथा तलवारथी एक बीजाउने वारंवार मारता हता. वली ते मुष्टीश्री मदनी पेठे लडता थका, पगनां घबकाराथी पृथ्वीने पण अत्यंत कंपाववा लाग्या. हवे यदनां मारथी जर्जरित थयेला ते कुमारे, क्रोधयी खड्गविद्यानुं स्मरण कर्यु, तथा ते खड्ग हाथमां लीधुं. ज्वालानी श्रेणिवायूँ, तणखाऊनी पंक्तिथी युक्त थये, तथा मारवानी श्याथी “बट्" शब्द करतुं, तथा प्रत्यक्ष कोपाग्निसरखं ते खड्ग जोश्ने, ते यद पण बीकथी अत्यंत दोज पामवा लाग्यो. पडी महीपाले ते यदने कयु के, अरे यद! मारा क्रोधथी तुं तारा देवपणानो शामाटे त्याग करे ? माटे मारां चरणकमलनी तुं सेवा कर ? तथा हिंसा तजीने दया कर ? तथा सर्व जीवो प्रते समता राख ? अने तारी संपदा जोगव.? एवीरीतनी ते राजकुमारनी शौर्यता, तथा वाक्यनी धीरताने सांजलीने, मनमां आश्चर्य पामी ते यद कहेवा लाग्यो के, हे वत्स ! हुं ताराथी जीतायो, माटे हवे तुं तुरत कंज्ञक वरदान माग ? तथा हे उत्तम लोचनवाला! तारा शिवाय बीजो कोइ पण वीरपुरुष आ पृथ्वीपर नथी. वली तें कह्यु के, धर्मथी निश्चयें करीने जय थाय , ते खरं बे; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीतीयःसर्गः . ४५ हुं तो हिंसक बुं, तथा तुं सर्वने अजयदान देनारो बुं. एवी रीतनुं यदातुं वचन सांजलीने, विवेकी एवो ते राजकुमार खड्गने मीयानमां नांखीने, धर्मनी रुचिवाला एवा ते यदने कहेवा लाग्यो के, हे यद! धर्मने विषे तारी रुची हवे स्फुरे , एवी हुँ तर्क बांधुं बुं; माटे हवे श्रापणे तारा मेहेलनां श्रय नागप्रते जश्य, अने त्यां आपणे वातो करीशु. ए. वी रीते महा पराक्रमी एवा ते महीपाल श्रने महाकाल मेहेलमा जश् फरुखामां बेगा. पनी त्यां ते राजकुमार धर्मनां सर्वखें करीने मनोहर, गंजीर, तथा महिमाथी अधिक, अने मनने प्रीति करनारी वाणी बोलवा लाग्यो के, धर्मथी राज्य मले बे, देवपणुं प्राप्त थाय बे, तथा मोक्षपण मले बे, माटे डाह्या माणसोये धर्म सेववो; वली धर्म उत्कृष्ट मंगलरूप , तथा स्वर्ग अने मोदने देनारो, अने संसाररूपी वनने उलंघवामां मार्ग देखाडनारो बे; वली धर्म मातानी पेठे पोषण करे बे, पितानी पेठे रक्षण करे , मित्रनी पेठे खुशी करे , तथा बंधुनी पेठे स्नेह राखे . ते धर्मनी माता सरखी दया, सुरासुरोने पण माननीक बे; माटे ते दयानी वैरीरूप हिंसाने डाह्यो माणस अंगीकार करतो नथी. वली जे माणस हिंसानो त्याग करतो नथी, तेनुं दान, तप, देवपू. जा, शील, सत्य, तथा जप, ए सघलुं निष्फल जे. कांटाथी विधायेलुं श्रापणुं शरीर पण ज्यारे फुःख पामे बे, त्यारे शस्त्रथी बीजा प्राणीनी हिंसा ते केम कराय ? वली जे मूर्खनां सरदारो दया विनां धर्मने ईबे, ते हीजडा वंध्या स्त्रीश्री पुत्रोत्पत्तीनी इला राखे माटे दयाज उत्कृष्ट धर्म, तथा उत्कृष्ट ज्ञान ने, अने दयाविनानो सघलो धर्म निष्फल थाय . वली हे यदराज ! कृतघ्नपणुं आदर नहीं, पण कृतपणुं श्रादरवू, तारो उपकार करनारा धर्मप्रते तुं श्रादर कर? वली जीवदयावाला धर्मने अंगीकार करीने, पूर्वे कोश बगलाए स्वर्गसुख मेलव्युं बे, तथा पड़ी फरीने जव न करवा पडे, एवी ते मुक्ति पाम्यो . ते कथा नीचे प्रमाणे जाणवी. श्रीद नामनां वनमां निर्मल पाणीवाटुं, तथा कमलोथी शोजतुं एक तलाव . ते तलावमा मत्स्योनुं जक्षण करनारो, रौअध्यानी, तथा म. हाकुर, अने स्वेछाचारी एक बगलो रहेतो हतो; ते बगलो त्यां जल पीवामाटे श्रावता कागडा श्रादिक पक्षीउने पण मारी नांखतो. एट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ शत्रुंजय माहात्म्य. लामां साक्षात् देहधारी धर्मसरखा, तथा सकल प्राणीने पोतानी पेठेज जोता. कोइक केवली मुनि त्यां श्राव्या; ते मुनि ते तलावने कांठे समोसर्या, तथा त्यां हरिण, सिंह यादिक पशु पण तुरत श्राव्यां. ते वखते पुष्ट थयेलो ते बगलो पण, केटलाक बगलांJयी वींटायो थको, मुनिनी वाणीरूपी अमृतने पीवानी इवाथी त्यां श्राव्यो. ते वखते ते मुनि पण तेने बोध देवा माटे तेर्जनीज जापाथी, दयापूर्वक, धर्मरूपी राज्यने शोभावनारी देशना देवा लाग्या के, या संसारमां पांचे इंडिजनुं पटुपएं, तथा ज्ञान डुर्लज बे, तेमां पण विवेक रहित पशुउने तो उत्तम धर्म दुर्लन बे. जे प्राणीउयें पूर्वे धर्मने विराध्यो बे, तेउने तिर्यचगति मले बे, पण जे तिर्यंच गतिमां श्रवीने पण पाप करे बे, ते नरकमां जाय बे; त्यां तपावेलां लोखंड साथे थालिंगन, तपावेला सीसानुं पान, बंधन, बेदन, जेदन, तथा वज्र ने कांटानुं जोंकावापणुं थाय बे, माटे श्रार्त ने रौद्र ध्यान ध्याववां नहीं, तथा प्राणीवध करवो नहीं; सघला चराचर प्राणीने पोतानी पेठे जोवां एवी रीतनां ते मुनिनां वाक्यथी सिंह, वाघ श्रादिकोये परने पीडा करवानुं तजी दीधुं, तथा ते बगलो पण दयामां तत्पर थयो; तथा ते दिवसथी मांडीने दयामां तत्पर थयो थको ते पोतानो काल निर्गमन करवा लाग्यो, अने धर्मने स्मरतो थको ते देवलोकमां गयो; त्यांथी चवी वेपारीनां कुलमां उत्पन्न थ, तथा पोताने हितकारी एवो धर्म करी, एकावतारी थयो थको ते मोक्ष पामशे. माटे हे यक्षराज ! तें पण धर्मश्रीज श्रा देवप मेलव्युं बे, माटे क्रोधयुक्त थयो थको तेज धर्मनो द्वेष करनारी एवी हिंसा तुं शामाटे करे बे ? माटे हवे तुं हिंसाने तज ? श्रने दया कर ? तथा हमेशां धर्मने जज ? तथा तारा देहथी पण प्राणीयोप्रते उपकार कर ? उत्तम माणसोये धन, जीवित, विद्या ने बलें करीने, श्र लोक परलोकमां हितकारी परोपकार करवो जोइये. वली श्र पूर्व जन्मनां क्रोधं फल जोइने, तारे खरेखर, तारा पोतानाज हित माटे वैरीप्रते पण वैर कर नहीं. वली अंतकाले पण जे तें जिनेश्वर प्रजुनुं द र्शन कर्यु, तेथी तुं देवपणाने पाम्यो, माटे हवे तुं हमेशां नेमनाथ प्रभुने पूज? एवी रीते ते राजकुमारनां वचनची खुशी थयेलो ते यक्ष, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ हीतीयःसर्गः चिंतामणि रत्न सरखा उज्ज्वल धर्मने पामीने गुणी एवा ते गुरुने नमतो हवो; अने कहेवा लाग्यो के, हवेथी मने जिन देव, परिग्रह रहित गुरु, तथा दयावालो धर्म था? एवी रीतनो धर्म तेणे अंगीकार कर्यो, तथा गुरुपूजानां बदलामां तेणे राजकुमारने विद्या थापी. पडी ते राजकुमार हर्षथी ते यदने रजा श्रापीने, दया सहित मनवालो थयो थको चालवा लाग्यो; तथा विचारवा लाग्यो के, हवे मारा नगरप्रते जलं; पण नहीं! हुँ प्रसंगेथी ज्यारे बहार श्राव्यो, त्यारे हवे नाना प्रकारना आश्चर्योथीनूषित थयेला विविध प्रकारनां देशोने मारे जोवा, के जेथी पोतानी शक्ति जणाशे, देशाचारनी परीक्षा थशे, उत्तम अधम माणसोनुं जाणपणुं थशे, तथा कलाउँनो पण श्रन्यास थशे, तेम तेथी नाना प्रकारनां माणसोनो, प्रसंग थशे, तथा विविध प्रकारनां तीर्थो पण जोवाशे; थने तेज हेतुथी डाह्या माणसो देशाटन करे . वली पुरुष ज्यां त्यां जश्ने, परथी तथा खजनोथी जे सन्मान मेलवे बे; तेमां पण पूर्वनां पुण्योनुंज कारण जे. एम विचारिने ते राजपुत्र पूर्वदिशा सन्मुख चालवा लाग्यो, तथा केटलाक नगरो अने बगीचा श्रादिकने उलंघी गयो, एम करतां केटलेक दिवसे ते सुंदर नामनां नगरप्रते पहोंच्यो, अने त्यां वृदोनी घटावाला वनमा गयो. त्यां अंबिकानां चैत्यमां जश् एक फरुखामा रह्यो, तथा देवगुरुर्नु स्मरण करीने, रात्रिये निर्जय थर सूतो; एटलामां तेणे, “हे तात! हे माता! हे ना! हे दयावंत शूरा लोको! यमनी पेठे निर्दय एवा श्रा पापीथी माझं रक्षण करो?" एवी रीतनी कोर स्त्रीनी दीन वाणी ते महीपाले वारंवार सांजली, अने ततदण जागी नव्यो; तथा ज्यांथी ते श. ब्द आवतो हतो, ते तरफ निश्चल मनथी हाथमां तलवार लेश, उतावलथी चालवा लाग्यो. त्यां तेणे पर्वतनी खीणमां ध्यानमा रहेला एक पुरुषने, व्याकुल थयेली एक स्त्रीने, तथा अग्निकुंडने जोयो; त्यारे तेणे विचार्यु के, कोथी पण उगायेलो, आ मुग्ध माणस था स्त्रीने मारवा. नी श्वावालो ने, माटे हवे तेणीनुं हुं रक्षण करुं, एम विचारी, ते, ते पुरुषने कहेवा लाग्यो के, अरे पुष्ट ! या तें पापर्नु कार्य शुं श्रारंज्यु बे? था बालिकाने बोडी दे? नहींतर हमणा तने यमने घेर पहोंचतो करीश. ते सांजली संत्रांत थयेलो तथा आक्षेपथी त्रासयुक्त ययेलो ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४G शत्रुजय माहात्म्य. विद्याधर बन्ने हाथोथी ते स्त्रीने उपाडीने, पवनथी पण अधिक गतिथी चालवा लाग्यो. त्यारे कुमार पण ते स्त्रीने मुकाववा माटे निश्चययुक्त थयो थको, खड्ग सहित तेनी पाउल दोड्यो. एवी रीते पाउल दोडता एवा ते राजकुमार तरफ दृष्टि राखीने, विद्याधर पण वेगथी पवनने पण जीततो थको चालवा लाग्यो. एवी रीते दोडतां थकां स्त्रीमांज रहे. ली बे बुद्धि जेनी, एवा ते विद्याधरे थाकी जवाथी, नरक सरखा जयंकर कुवामां तुरत ऊंपापात कों; त्यारे दयालु, तथा महा पराक्रमी एवा ते राजकुमारे पण, तेने खेंची कहाडवानी श्वाथी तेमां कंपापात कयों. त्यारे ते विद्याधर पण, दीधेलो ने ताप जेये, एवा पापोयें करीने जाणे खेंचातो होय नहीं तेम अदृश्य थयो. पड़ी ते कुमार पण त्यां कुवानो केटलोक नाग उलंगी गयो; त्यां तेणे प्रकाश दीगे, तथा पनी त्यां तेणे वृदोनी पंक्ति जोइ. पली अहीं तहीं जमतां, तथा वनोने जोतां थकां. फरीने तेणे ते स्त्रीनां रडवानो शब्द सांजल्यो; त्यारे वृदोमां संता. श्ने, तथा धीरे धीरे चालीने अने मौन धरीने खड्ग लेश तेणीनी पासे ते गयो; त्यां तेणे लाल चंदनथी लीप्त करेलां अंगवाली, लाल वस्त्र तथा लाल माला पेहेरेली, एवी ते स्त्रीने अग्निकुंडनी समीपे जोश. पडी कुमार पण थाकारगोपन करीने,तथा वस्त्रथी खड्गने आछादित करीने, क्रीडापूर्वक फरीने ते तेनी पासे श्राव्यो; अने तेने कहेवा लाग्यो के, हे महासत्व ! था तुं शुं करे ? वली तुं गुरुनी आझाथी, के पोतानी बुद्धिथी,के कुलक्रमथी श्रा कार्य करे बे? त्यारे विद्याधर पण कहेवा लाग्यो के, हे पंथि! हुं मारी श्वा प्रमाणे करुं बुं, तुं तारे चाल्यो जा ? सर्व माणसो पोतपोतामां तत्पर होय , तेमां बीजानी शिखामणनी कं पण जरूर होती नथी. ते वखते ते कुमारिका राजकुमारने कहेवा लागी के, हे महा परोपकारी! मने मारवामां तत्पर एवा था पापीथी मारुं रक्षण कर ? एवी रीते तेणीनुं दीन अक्षरोवालुं वचन सांजलीने, ते दयालु राजकुमार उत्तम रचनावालुं वचन ते विद्याधरने कहेवा लाग्यो के, हे विद्याधर! था बीचारी उत्तम निराधार स्त्री , अने तुं तो दात्री वंशमां उत्पन्न थयेल , माटे आयु कुकर्म करतां तने मनमां पण शुं लड़ा थावती नथी? वली “स्त्रीनां वधथी विद्या सधाय " एवो नम तुं बिल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीतीयःसर्गः ४ए हुल राखजे मां ? केम के पापारंजश्री तो शुज कर्म पण पोतानी मेसेज माश पामे . वली हे मुग्ध ! कोशक तारा वैरीये तारी उन्नतिनो नाश करवा माटे, श्रा उपायथी खरेखर तने उग्यो ; माटे हे मुग्ध ! मारुं कमुमान ? अने था स्त्रीने बोडी मेल ? केम के स्त्रीहत्याथी माणसने उति मले जे. एवी रीतनां राजकुमारनां वचनने सांजलीने उलटो ते वियाधर वधारे कोपायमान थयो; केम के, तपेला तेलमां जल नाखवायी ते वधारे जडको ले उठे . पडी ते विद्याधर ते राजकुमारने कहेवा लायो के, तुं विद्याने शामाटे निंदे ? अने मारा गुरुने पण तुं शामाटे नेदे ? माटे तुं तारे तारे मार्गे चाल्यो जा? नहींतर क्यांक माथु पण पाश् जशे !! एम कहीने हाथमां खड्ग लेश, ते कुमारप्रते दोड्यो. पराक्रमी कुमार पण लडवाने सज थयो. पड़ी ते बन्ने खगथी, तथा दंडथी अत्यंत लडवा लाग्या. पड़ी महा बलवान एवा ते कुमारे खगवियानां प्रजावधी ते विद्याधरने जीत्यो, त्यारे विद्याधर कहेवा लाग्यो के, विया श्रने शस्त्रमा पारंगामी देवोथी पण हुँ अगाउ जीतायेलो नथी, पण महा पराक्रमी एवा तुंथी हुँ जीतायो बुं, माटे हवे तुं कोण ? ते कहे ? वली हुँ तो पापमां रक्त थयेलो बुं, अने तुं तो प्राणीउनु हित करनारो बे, वली धर्मथी जय थाय , तथा अधर्मथीनंग थाय बे, तेमां संशय नथी. एम कदीने ते विद्याधर मौन रहेते बते ते राजपुत्र तेने कहेवा लाग्यो के, हवे तुं खेद कर नहीं ? पण धर्मप्रते बुद्धि राख ? वली जीवधनां पापथी नरकमां जवाय बे, अने विद्यानां समुज्सरखो तुं, ते स्त्रीवधथी उत्तम फल मेलववाथी इला राखे !! वली हे महा बुद्धिवान् ! इजु पण तुं परनो वेष कर नहीं; पण जिनेश्वर प्रजु, बाराधन करीने सुखी था? एवी रीतनी तेनी वाणी सांजलीने करेल डे नमस्कार, तथा जोडेल , हाथ जेणे एवा ते विद्याधरे तेनी पासे श्रावीने शिष्यनी पेठे शिखामण ग्रहण करवा पडी ते राजकुमारे तेने पुब्युं के, था कन्या कोण ? त्यारे ते विद्याधर कहेवा लाग्यो के, कान्यकुब्ज नामनां देशमां कल्याणकटक नामे एक मोटुंनगर , ते नगरमां दीधेल बे, याचकोप्रते सुवर्ण जेणे, तथा मंगलनी श्रेणिथी शोनित थयेलो अने उत्तम बुशिवालो कल्याणसुंदर नामे राजा . ते राजाने, पतिनी नक्तिश्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० शत्रुजय माहात्म्य. पवित्र, तथा शीलरूपी श्रलंकारने धरनारी कल्याणसुंदरी नामनी राणी डे. तेनी कुक्षीमा रत्ननी पेठे उत्पन्न थयेली गुणसुंदरी नामनी श्रा कन्या बे; तेणीने में पुर्विनीते मोटी इलाथी अहीं श्राणी जे. वली हे कुमार! तें था तारी शक्तिथी, श्रा कुमारिकाने जीवितदानथी, तथा मने नरकनां उझारथी, एम अमो बन्नेने चाकरनी पेठे खरीदी लीधा . वली श्रा कन्यानो स्वयंवर एक मासमां मोहोटो थवानो डे, पण जीतेल ले मुखथी कमल जेणीये, एवी श्रा कन्याने में तेनां घरथी त्याग करावी. एवी रीते महीपालने कहीने, ते विद्याधर तेनां वचनरूपी ज्योत्स्नाने पीवाने च. कोरनी पेठे तेनी सन्मुख जोश्ने उनो. पठी ते कुमार पण उत्तम रसनां श्राश्रयवाली वाणी कहेवा लाग्यो के, श्रा कुमारीकाने तुं हवे तुरत तेनां पिताने घेर पहोंचाड? एवी रीतनी तेनी वाणीथी, ते विद्याधर, विद्यानी शक्तिश्री, श्राकाशमार्गे ते कन्याने तेणीने पोताने स्थानके ले गयो.पबी विद्याधरे ते कुमारने शोल वीद्या श्रापी, अने कुमारे तेने जैनधर्म थाप्यो. पडी पूर्व दिशामां तिलक समान एवा एक ऊंचा मेहेलने जोश्ने, कुमारे तेने पुज्युं के, श्रा मेहेल कोनो देखाय ? त्यारे विद्याधरे कंक मनथी विचारिने कडं के, हे कृपालु कुमार? तुं मारी कथा आदरसहित सांजल ? था वैताढ्य पर्वत उपर रत्नपुर नामर्नु नगर , त्यां शत्रुउने जीतनारो मणिचूड नामे राजा हतो. तेने विद्याविलासमां रसिक, तथा पितानी जक्तिथी पवित्र थयेला, एवा रत्नप्रन तथा रत्नकांति नामनां बे पुत्रो हता. तेउमांथी रत्नप्रने राज्यनां मदथी, मने रत्नकांतिने बलवान जाणीने, कंज्ञक मिशथी नगरमांथी कहाडी मेट्यो. पड़ी मणिचूडे रत्नप्रजने राज्य सोंपी दीक्षा लीधी, तथा सर्व प्राणी प्रते समचित्तवालो थयो थको ते वनमा गयो. हवे ते नाश्नां रेषथी में था पातालमां, मोहोटा मेहेलोनी श्रेणियी शोनावालुं नवं शेहेर वसाव्यु. श्रा नगरनांनायक समान तथा महाप्रनाविक एवा श्रीशांतिनाथ प्रनु, सिछनां धरोथी विंटायेला था प्रासादमा रहे बे. ते मारा नाश्ने जीतवामाटे, हे महीपाल ! में था कुविद्यानो उपाय को हतो, पण सारं थयुं के, तें मने नरकमां पडतो बचाव्यो. माटे हवे चालो, आपणे जिनपूजामाटे था चैत्यमा जश्ये, एम कही ते विधिपूर्वक देवसेवा करवा लाग्या. पनी उ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीतीयःसर्गः तम विनयवालो ते खेचर कुमारने मार्ग देखाडतो थको, पातालवनमां रहेला मुनिउँने देखाडवा लाग्यो. त्यां जाणे पाषाणनी मूर्तिमयज होय नहीं, तेम ध्यानमा बेठेला, तथा जगतमा प्रख्यात एवा सर्वज्ञपुत्रोनी तुलना करता, संयमधारी तथा पवित्र मूर्तिवाला, ते मुनि ने जोश्ने कुमार अत्यंत श्रानंद पाम्यो. पनी अत्यंत नतिवंत एवो ते राजकु. मार विधिपूर्वक तेउँने नमीने, तेजेनां मुखरूपी चंप्रते दृष्टि राखीने त्यां बेगे. पठी सहज उपकारी एवा गुरुये पण ते बन्नेने नव्य जाणीने, चंड सरखो उज्ज्वल धर्मोपदेश कहेवा मांड्यो. कल्याणरूपी वेलडीनां कंद समान, अने आपदारूपी कमलनीनो नाश करवामां हाथी समान, तथा लक्ष्मीनां कुलमंदिर सरखो धर्म आ पुनियामां जयवंतो वर्ते . हवे ते वखते त्यां चारित्रं करीने पवित्र, मनोहर आकृतिवाला, तथा पुएयरूपी शृंगारवाला, वे साधु श्राव्या; तथा गुरुने नमस्कार करीने त्यां बेग; त्यारे उत्तम बुद्धिवाला महीपाले ते ने पुब्युं के, हे जगवन्, तमो बन्ने क्यांथी आव्या ? त्यारे ते कहेवा लाग्या के, अमो बन्ने पुंडरिकगिरि, अने गिरनारनी हर्षथी यात्रा करीने, हमणा अहीं श्राव्या बीये. त्यारे विद्वानोमां शिरोमणि महीपाल, ते सांजलीने तीर्थनी वााथी पोताने धन्यमां शिरोमणि मानवा लाग्यो. पड़ी गुरु पण महीपालने धर्ममां श्रने तीर्थमां आदरयुक्त मानीने, हर्षथी, ते तीर्थ- माहात्म्य कहेवाने, तेनापर कृपा करता हवा. जेम जिनोमां आदिनाथ, चक्रीमा जरत, जवोमां मनुष्यनव, अक्षरोमां ॐकार, देशोमां सौराष्ट्र, तथा बतोमा शील, मुख्य बे, तेम सघला तीर्थोमां शत्रुजयतीर्थ मुख्य कहेवाय डे. ज्यां दारिद्यने नाश करनारो तथा जयवंतो सिझाचल पर्वत , त्यां पुःख तथा पापोनो संजवज क्याथी होय ? वली ते शत्रुजय पर्वतर्नु मा. हात्म्य तो जिनेश्वर प्रजुज जाणी शके, केम के, समुनी गंजीरता मंदाराचलज जाणी शके बे, बीजो को जाणी शकतो नथी. वली त्रणे जुवनोमां पण था सिद्धाचल पर्वतज मुख्य तीर्थ डे, केम के तेनां दर्शनमात्रयीज प्राणीउनां पापोनो समूह नाश पामे . वली ते शत्रुजय पर्वतनां शिखरपर, कुःखें करीने वारी शकाय एवो अज्ञानरूपी जे अंधकारनो समूह, तेने दूर करवाने सूर्य समान श्री नालिराजानां पुत्र - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ शत्रुजय माहात्म्य. षनदेव प्रजु बिराजे बे. एवी रीते त्रणे जगतमां अत्यंत अतिशयवाला ते बन्ने तीर्थोने जोश्ने, प्राणी सर्व इत्यादिक पापोथी मुकाय जे. हवे ते. नी कथा कहे . . जरतक्षेत्रमा श्रावस्ती नामनी नगरीमां त्रिशंकुनो पुत्र त्रिविक्रम नामे राजा हतो. ते राजा एक दहाडो उद्यानमा फरतो थको एक वडनां कृ. क्षनी नीचे उन्नो, त्यां तेणे पोतानां मस्तकपर, क्रूर शब्द करता एक पक्षीने जोयो. कडवा शब्द बोलता ते पक्षीने राजाये उडाडवा मांड्यो, पण ते उड्यो नहीं, त्यारे तेणे क्रोधथी बाणे करीने तेने मार्यो. त्यारे ते पती पृथ्वीपर शिथिल थश् तरफडवा लाग्यो, तेने जो राजा कंक पश्चातापयुक्त थयो थको, पाडो वली नगरप्रते गयो. हवे ते पक्षी पीडाथी मृत्यु पामी कोश्क निबनां कुलमा उत्पन्न थयो, त्यां वनने विषे बालपणाथीज पापरूपी छिनी वृद्धि करनारो थयो. हवे एक दहाडो ते त्रिविक्रम राजाये धर्मरूचि नामनां मुनिपासेनी, जावसहित नीचे प्रमाणे दयामय धर्म सांजल्यो के, दयाज उत्कृष्टो धर्म, परम क्रिया, तथा प. रम तत्व बे, माटे हे जड ! ते दयानेज तमो नजो? वली जो दया न होय, तो दान, ज्ञान, निग्रंथपणुं तथा योगनी क्रिया पण व्यर्थ जे. कानने अमृततुल्य एवं मुनिनुवचन सांजलीने दया उत्पन्न थवाथी राजा पोते मारेला जीवोनुं स्मरण करवा लाग्यो के, अहो ! में अज्ञानतानां वशथी श्रगाउ बहु सुष्कार्य कर्यां , तेथी मारे फुःखें सहन थाय एवा विविध प्रकारनां नवसंबंधि नावोने सहन करवा पडशे; माटे श्रा जीवीतर्नु, त. था राज्यादिकनुं शुं प्रयोजन ? के जेथी आ लोकमां संताप, श्रने प. रलोकमां मने नरकनी गति मलशे; माटे हवे हुँ, कादवमांथी जेम पनने तथा माटीमांधी जेमसुवर्णने, तेम आ शरीरथी व्रतने ग्रहण करीश. ए. म विचारि राजाये, मुनिने नमस्कार करी आदरसहित, व्रतनी याचना करी, त्यारे मुनिये पण तेने हर्षथी दीक्षा आपी. पनी जणेल जे सर्व सि. छांतो जे, तथा नवे तत्वोने घरनारो ते त्रिविक्रम मुनि विधिपूर्वक उ. त्तम व्रत पालवा लाग्यो. एक दहाडो ते गुरु माहाराजनी रजा लेश्ने एकाकी, सूर्य जेम आकाशमां, तेम संसाररूपी वनमां नमवा लाग्यो उत्कृष्ट संयमवाला, तथा प्रतिमा धरीने उनेला, ते मुनिने, ते नीद्दे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीतीयःसर्गः बोयो; त्यारे पूर्वनां वैरथी ते क्रोधायमान थयो; तथा लाकडी अने मुष्टी वगेरेथी, क्रोधे करीने अल्पबुधि जेम पोतानां लाग्यने, तेम ते तेने मारखा लाग्यो; त्यारे शांत मनवालो, तथा जितेंजिय, ते मुनि पण जयंकRमारथी पीडीत थयो थको, अरणिनां काटनी पेठे क्रोधथी बलवा लाज्यो; तथा ते नीलप्रते तेणे तेजोलेश्या मुकी, अने तेथी ते वृक्षनी पेठे बली गयो. एवी रीते ते जीलनो जीव मरीने नयंकर अटवीमां केसरी सिंह थयो, अने ते मुनि पण विहार करतो थको ते वनमां श्राव्यो, त्यारे ते सिंह तेने जोवाथी, श्रागला नवनां वैरथी तेने हणवाने दोड्यो; त्यारे मुनि पण धर्मनां साधनरूप देहy रक्षण करवामाटे जाग्यो. त्यारे करेबुं कर्म जेम प्राणीनी पाउल जाय , तेम ते सिंह पण तेनी पाडल दोज्यो, एवी रीते श्रति क्रोधायमान थयेला ते सिंहे मुनिने एटलोखेद पमाज्यो के मुनिये क्रोधायमान थर, तेनापर तेजोलेश्या मुकी; तेथी मृत्यु प्रामी ते सिंह नयंकर वनमां अत्यंत कर दीपडो थयो, श्रने त्यां पण कमें योगे ते मुनि श्राव्यो; तथा जेटलामां ते मुनि स्थिर मनथी प्रतिमा धारीने रहे , तेटलामा पूर्व नवनां वैरथी ते दीपडो तेने मारवानी श्छाश्री त्यां श्राव्यो. ते वखते मुनि पण, जोके कषायोनुं जयंकर परिणाम जाणतो हतो, तो पण कर्मनां वशथी कोप पाम्यो. अत्यंत ज्ञाननी संपदावाला तथा मोदनी श्छा राखनारा मुनिर्जनां चित्तमां पण ज्यारे अत्यंत क्रोध श्रावे बे, त्यारे बीजानी तो वातज शी करवी ? पड़ी ते मुनिये मुकेली तेजोवेश्याथी ते अत्यंत क्रोधी दीपडो मरीने कोश्क नयंकर वनमां जंगली सांढ थयो, घणी रीते अराधेल , योगर्नु अंग जेणे, तथा दैवयोगे त्यां पण श्रावेला, ते मुनिने ते सांढे उपव कयों. त्यां पण ते मुनिये तेने प्रथमनी पेठेज मारी नांख्यो. त्यारे ते सांढनो जीव अवंति देशमा, उजायनी नगरीमां, सिफवडनां कोटरमा अत्यंत फेरी थाशिविष सर्प थयो. अनुक्रमे ते त्रिविक्रम मुनि पण चालता थका, ते वडनीचे श्रावीने कायोत्सर्ग ध्यानमा रह्या; त्यारे तुरत ते सर्प पण तेने जोयो. पली अत्यंत मत्सरथी पूर्व नवनां वैरी एवा ते मुनिने डंखवा माटे, पुष्ट श्राशयवालो, तथा विस्तारवाली फणावालो ते सर्प त्यां श्राव्यो. त्यारे मु. निए पण तेने श्रावतो जोश, क्रोध लावीने श्रागलनी पेठेज यमने मं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ शत्रुजय माहात्म्य.. दिरे मोकलावी दीधो. त्या कामनिर्जरानां योगथी कंश्क कर्मोने दी. ने, ते सर्पनो जीव, कोश्क गाममां एक दरिजी ब्राह्मणने धेर पुत्रपणे जर उपनो; एक दहाडो ते मुनि पण विहार करतो थको तेज गाममा श्राव्यो. त्यां गामनी समीपे ते मुनिने ध्यानमा रहेलो जोश्ने, ते नीच ब्राह्मण पूर्वनां वैरथी, तेने मारवा दोड्यो; तथा निर्दय थश्ने, मूष्टी लाकडी श्रादिकथी अनेक प्रकारे ते तेने मारवा लाग्यो, त्यारे मुनिए पण क्रोधयुक्त थर, आगलनी पेठेज तेने मारी नांख्यो. त्यारे अकामनिर्जराथी तथा किंचित् शुजनां उदयथी ते ब्राह्मणनो जीव वाराणसी नगरीमां महाबाहु नामे राजा थयो. त्यां तेणे उत्तम लीला श्रादिकथी घणो काल व्यतीत कों. एक दहाडो ते मेहेलनां जरुखामां बेठेलो ह. तो, त्यारे मार्गमां एक निष्पापी मुनिने जतो तेणे जोयो; त्यारे ते वि. चारवा लाग्यो के, अहो ! था कोश्क महात्मा बुद्धिवानोने पूजवा योग्य बे; तो पण मारुं मन तेना पर कंक वेषयुक्त थाय बे; वली अगाउ पण आवा कोश्क महात्माने में क्यांक पण जोया बे, एवी रीते ते रा. जा घणीवार सुधि विचारवा लाग्यो. एम विचारतां तेने जातिस्मरण झान थयु, अने तेथी, साधुनां क्रोधरुपी अग्निनी ज्वालामां कवलरूप थएलडे जीवित जेमां, एवा पोतानां सात जन्मो तेने सांजल्या. तेथी रा. जाए नीचे प्रमाणे अरधो श्लोक रच्यो. ॥विहंगः शबरः सिंहो, वीपी शंडः फणीविजः॥ अर्थः- “पक्षी, जीब, सिंह, दीपडो, सांढ, सर्प ने ब्राह्मण." पड़ी तेणे लोकोमां कदेवराव्यु के, जे बुद्धिवान माणस था समश्या पूरशे, तेने हुँ लाख सोनामोहोरो श्रापीश. पनी गूढ तथा प्रौढ रहस्यवाली ते समश्या धननी स्वाथी सर्व लोको बोलवा लाग्या. पडी त्यां चालता ते मुनिये एक गोवालीयानां मुखथी ते समश्या सांजली. त्यारे मुनिये तेनां नीचे प्रमाणे बे पदो पूर्या. ॥येनामीनिदताः कोपा, त्सकथं नविता दहा॥ अर्थः-जेमाणसे क्रोधथी तेउने मार्या , तेनी अरेरे!! शी गति थशे ? एवी रीतनां मुनिनां वाक्यने सत्य मानीने, ते गोवालीये राजापासे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीतीयःसर्गः ए जश, ते बन्ने पदो संजलाव्यां. त्यारे राजाये विचार्यु के, श्रा समश्या श्रा गोवाली पुरी शके नहीं, एवं विचारि राजाये तेने पुज्यु के, जे माणसे श्रा समश्या पुरी होय, तेने बताव ? पढी राजाये तेने घणो श्राग्रह करवाश्री, ते श्रदरोरूपी रत्नोने उत्पन्न करवामां खाण समान, तथा पापोने खोदवामां कोदाली सरखा वनमां श्रावेला ते मुनिनुं व्रतांत तेणे कही संजलाव्युं. त्यारे राजा पण अत्यंत उत्कंठित थयो थको वनमां ते मुनिपासे गयो; तथा त्यां जातिस्मरण ज्ञानथी ते मुनिने जेलखी कहाडीने, तेने कहेवा लाग्यो के, हे मुनीश्वर! तमो मारा अपराध क्षमा करो ? वली मने धिक्कार ! के में ते ते नवोमां तमोने पीडा उपजावी जे; वली धाप उपकारीनां दर्शनथी हुँ था राज पाम्यो बुं. वली में क्रोधरूपी चांडालने वश थश्ने, तमारा तपमां विघ्न कयुं बे, माटे हवे मारा निमित्तनां कोधनो तमो त्याग करो? पढी त्यां मुनिये पण तेनां वचनरूपी अंकुशपी, पोतानां मनरूपी हाथीने, तेवी रीतनां व्यापाररूपी वनमाथी खेंची सीधो. अने कहेवा लाग्या के, हे राजन्! मने धिक्कार ! के, साधु थरने पण, पापी एवा में ते ते जन्मोमां तने हण्यो; माटे अज्ञानयुक्त मारा अपराधोनी तुं पण दमा कर ? एवी रीते ते बन्ने त्यां परस्पर जेटलामां गातो करे , तेटलामां तेउये आकाशमां इंजिनो नाद सांजल्यो. श्रा मुंहशे!!! एम विचारतां थकां जेटलामां ते आकाशमां नजर करे , तेटलामां तेउये देवनां कहेवाश्री वनमा रहेला केवली मुनिने जाण्या; यारे तेने जोवानी श्वा माटे आदरयुक्त थया थका, ते मननां संशयतो नाश करनारा, तथा देवोथी पूजायेला, ते केवली पासे जश्ने, तेने नमता हवा. त्यां मुनिये पण तेऊनां निष्पापी नावने जाणीने, जीवदयामय धर्मनुं माहात्म्य कहेवा मांड्यु. देवपदवीयें करीने मनोहर एवं धर्म पी पाणी होय , पण क्रोधरूपी फेरथी उत्पन्न थता हिंसारूपी मेलथी ते मलीन थाय बे. वली पोतानां श्रआत्मारूपी जीतपर करेली चारित्ररूपी चित्रनी रचना, क्रोधरूपी कूचामां चोंटेला हिंसारूपी काजलथी नाश गमे . वली जे माणस अज्ञानथी उत्पन्न थयेला अविवेके करीने,मुनिने कदर्थना करे , तेनां सरखो बीजा कोश्ने पण पापी जाणवो नहीं. वली मूर्ख मुनि तीव्र तप तपतो थको पण क्रोध करे , ते चारित्ररूपी - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ शत्रुजय माहात्म्य. दने बालीने, तेनी राख पोतानां श्रात्माप्रते नांखे बे. वली हे राजन् ! तें जे पूर्व नवमां मुनीने गुस्सो चडाव्यो, तेथी तने अने मुनिने, बन्नेने कर्मबंध पड्यो. वली हे मुनि! तें पण अजाणतां थकां हिंसा करेली ; माटे हवे सर्व पापोने नाश करनारा शत्रुजय पर्वतप्रते तुं जा? श्रने त्यां तपस्या करता थकां, तथा अरिहंत प्रजुनुं ध्यान धरतां थकां, केवलज्ञान पामी तुं मोदे जश्श; वली हे मुनि ! निबिड एवं था तारं कर्म, शधुंजय तीर्थविनां श्राकरा शीलादिकथी पण दूर थशे नहीं; वली हे राजन् ! तुं पण आ मुनिने गुरुरूप मानीने, तथा तेने अगाडी करीने, माएसोनी साथे शत्रुजय पर्वतप्रते जा? अने त्यां समतापूर्वक यात्रा कर ? तथा यात्रा कर्या बाद सर्वविरति तथा स्थिर ब्रह्मचर्यमां तत्पर थश्ने, ते मुनिनी साथे त्यांज उत्तम तप कर ? वली सुवर्ण जेम टंकणखारथी, तथा खुण जेम पाणीथी, तेम शत्रुजयनां स्मरणथी कर्मरूपी कादव गली जाय बे. वली सूर्यथी जेम अंधकार, तथा पुण्यश्री जेम दरिअपणुं, तेम शत्रुजयनां स्मरणथी कुकर्मो नाश पामे बे; वली वज्रथी जेम पर्वत, तथा सिंहथी जेम हरिण नाश पामे , तेम शत्रुजयनां स्मरणथी पूर्वनां कमों नाश पामे बे; वली अग्निथी जेम सघली वस्तु, तथा लोखंडथी जेम बीजी धातु, तेम शत्रुजयनां स्मरणथी सघडं अज्ञानरूपी अंधकार नाश पामे बे. एवीरीतनां ज्ञानीनां वचनने तेउँ बन्ने हृदयमा धारीने,तथा नक्तिथी तेने नमीने, प्रीतिवाला थया थका, तथा संघप्रते अनुरक्त थया थका, तीहां यात्रा करीने, उत्सवनी रचनाथी रंजित करेल , सघर्बु जगत जेठये, एवा थया थका, तीव्र तप तपीने, तथा पुण्यने प्रगट करीने, मुक्तिसुख मेलवताहवा, एवीरीते हे महीपाल ! शत्रुजय पर्वतपर सर्व ह. त्यानां पापो तुरत नाश पामे डे. एवी रीते आदिनाथ प्रजुये कहेला धर्मने गुरुपासेथी मेलवीने, पोताने धन्य मानतो थको, ते विद्याधरसहित त्यांथी उठ्यो. पनी त्यां विद्याधरथी सेवायेलो, ते महीपाल, शाश्वता प्रज्जुनां वंदनथी, तथा साधुनी सेवाथी केटलोक काल सुखेथी रह्यो. पड़ी ते महिपाल खेचरनी रजा बेश्ने, तलवारयुक्त थयो थको तथा मार्गमां कोतुकनो आश्रय लेतो थको कल्याणकटक नगरप्रते चालवा लाग्यो. पड़ी ते राजकुमार श्राकाशगामिनी विद्यायें करीने श्राकाशमां चालतो थको Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होतीयःसर्गः वयंवर जोवानी श्वाथी कल्याणकटक नगरप्रते पहोंच्यो. त्यां जुदा जुदा देशोथी श्रावेला, तथा जुदी जुदी जाषामां निपुण, अने जुदा जुदा वेबने धारण करनारा एवा राजाउँने तेणे जोया. त्यां ऊंचा मांचाऊनी श्रेपि, तेवी रीतनां संघट्टथी पसीनावाली जाणे थर होय नहीं, तेथी पताकाठनी श्रेणियी वीजाती हती. त्यां आम तेम जमता महीपाले, लष्करथी वीटायेला पोतानां मोटा जा देवपालने जोयो. पठी त्यां महीपाले पोतानो वेष बदलावीने, जाणे कंज्ञवात जाणतो न होय नहीं, तेम तेनी समीप श्रावीने जोवा लाग्यो. पठी तेणे तेने पूब्युं के, आ सघलां राजानां सैन्यो, था उंचा मांचा, तथा अहीं तहीं दोडतो माणसोनो समूह, ते था सघर्बु शुं ? वली हुँ तो परदेशी बु, तेथी हे मित्र! श्रा व्रतांत ९ जाणतो नथी; माटे ते सघटुं तुं मारी बागल निवेदन कर.? त्यारे देवपाले कयु के, हे महासत्व ! तुंसघली वार्ता सांजल? श्रा समृद्धिवालुं कल्याणकटक नामर्नु नगर . तथा अहीं कल्याणसुंदर नामनो राजा , तेने गुणसुंदरी नामनी पुत्री , तेनो श्राश्चर्यकारक खयंवर महोत्सव श्रावती काले थवानो के. वली ज्वालानी श्रेणियी श्राकुल थयेला था अग्निकुंडने तुं जो? तेनी अंदर घणां डालांउथी वींटायेलो था अग्निवृद बे; तेनी शिखारूपी शाखामा रहेलां फलोने जे साहसी माणस ग्रहण करशे, तेने आ कन्या स्वयंवरपूर्वक परणशे. एवी रीतनुं तेनुं वचन चित्तमा निश्चय करीने, ते महीपाल पण मांचाउँनां एक जागमां जश्ने बेगे. पठी लग्मने दिवसे घणां श्राञ्जूषणोथी शणगारेली थर थकी, तथा विचित्र प्रकारनां रत्नोनी कांतिनां समूहोथी श्राकाशनागने पूरती, तथा चलायमान थती नेत्रनी कांतिमां परोवेलांडे, कानपरनां कमलो जेनां तथा लटकता कुंडलथी घसायेल डे, कपोलरूपी मणिनां धारिसा जेनां, तथा मनोहर हारनी कांतिरूपी जे चंडनी कला, तेथी स्फुरायमान डे किरणोनो समूह जेनो, वलयने धारण करती, तथा चोटलामा रहेला मालतीनां पुष्पोनी सुगंधिथी, मदोन्मत्त थयेला ज. मराउथी सेवायेली, तथा सेंकडो गमे सखीये लावेला सुगंधि अव्योथी श्रादरयुक्त थयेली, तथा प्रकाशित थयेला चंजसरखी कांतिवाली, श्वेत बस्त्रीने धारण करती, एवी ते राजकुमारी वरमालासहित मनुष्योये उपा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ԱՆ शत्रुंजय माहात्म्य. डेली पालखी मां बेसीने ते सनामां दाखल थइ. ते वखते सघला राजाd, पडता कामदेवनां बाणोथी पीडीत थया थका, ते सुंदरीने जोइने कोजायमान था. पठी जगतने जीतवा माटे जाणे देहधारी कामदेवनी शक्तिज होय नहीं, एवी ते बालाने ते कुंडने किनारे ले गया. वली त्यां महापराक्रमी, अने गर्वथी दुर्धर एवा पर्वतोज जाणे होय नहीं, एवा विद्याधर ने राजानां कुंवरो पण श्राव्या; पण ते सघला ते अग्निकुंडनी पासे पण जइ शक्या नहीं, त्यारे ते वृनां फलो लेवानी कुशलता तो दूरज रही. वली करेलो बे, उपाय जेर्जये एवा विद्याधरोपण, मिथ्याविॐ दुष्प्राप्य मुक्तिने जेम तेम ते फलो मेलवी शक्या नहीं. श्रेवी ते सघला विद्याधरो तथा राजाश्रो थाकी गये बते, तथा " हवे शुं करवुं ? " वा विचारमां जड होते बते, महिपाल जुजास्फोट करीने त्यां श्राव्यो; तथा हाथो उंचा करीने कहेवा लाग्यो के, हे सघला पराकमी तथा विद्वान राजाश्रो ! तमो सघला सांजलो ? तमो यहीं लाखोनी संख्यामां एकठा थया बो, पण तमो या वृनां फलो बेइ शक्या नहीं; वली तमो तमारां बलने जाएया विना यहीं शा माटे श्र व्या ? केम के, वगरविचार्य काम कोइ पण जगोए सुख माटे यतुं नश्री. वली हजु पण जो तमारी कंइ पुरुषार्थने प्रगट करनारी शक्ति होय, तो ते तमोहमणा प्रगट करो ? केम के खाजे तेनो अवसर बे. - ने जो तमारामां शक्ति न होय, तो तमारी समझ, बाहारनो आडंबर राख्याविनां या गुणसुंदरी सहित फलोनी लुंब हूं लेश्श. ते सांजलीने " · काथी सघला राजाउँए नीचुं मुख कर्ये उते, तथा कौतुकथी लोको पोतांनां मस्तको धुणावते ते, ते राजकुमारे क्रीडा पूर्वक त्यां जश्ने, तया श्राकाशगामिनी विद्यानुं स्मरण करीने, फलोनी पंक्ति हाथेथी लेइने, दर्पपूर्वक ते कुमारीकाने थापी ते वखते ते राजार्जुनां मुखरुपी कमलोने संकोच करता एवा लोकोए जयजयनो शब्द कर्यो. वली ते वखते स्त्री ताली वगाडीने राजार्जनी हांसी करवा लागीनं, अने तेथी नरवर्मा - दिक राजानां मनमां क्रोध उत्पन्न थयो पढी जर्तारनां चित्तनी अंदर प्रवेश करवा माटे जाणे तोरण बांधती होय नहीं, तेम रोमांच युक्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीतीयःसर्गः पर थकी, गुंजारव करता जमरानां ऊंकारथी मनोहर बनेली मालाने हाथमा लेश्ने, प्रेमबंधन पूर्वक तेणीए ते राजकुमारनां कंठमां नांखी, पली कल्याणसुंदर राजा तेनी पासे थाव्वो, तथा तेने कदरुपो जोश्ने ते विचारवा लाग्यो के, देखावमा था कदरुपो बे, पण चरित्रथी उत्तम , माटे ते, जगतने उद्योत करनारुं ने तेज जेतुं, एवा लश्ममां बवाएला उत्तमरत्न सरखो .वली हुँ एम जाणुं बुके, गुणोयें करीने जगतने पण वंदन करवा लायक आनो वंश बे केम के वादलांमां ढंकाएला सूर्यनुं तेज पण कोण धारी शकतुं नथी? वली पूर्ण थई प्रतिज्ञा जेनी, एवी आ कन्याए था वरने वयों, केम के, एवी रीतनो कुलकन्यानो श्राचार जगतमां सर्व जगोए वर्ते आ. वली कुल, शील आदिकथी नूषित थएला श्रा राजानां देखतां, अजाण्यु ने कुलशील जेनुं एवा श्रा कुमार प्रते कन्या देतां थकां मने लजा श्रावे . माटे हवे तो मारा मननो खेद दूर करवा माटे श्रादरथी, तेनी पासे जई, तेनुं कुलादिक हुँ पुढे. एम विचारिने, ते महाबुझिवान राजा तेनी पासे जश्, स्नेह युक्त अने गंजीर वाणीथी तेने पुलवा लाग्यो के, हे उत्तम पुरुष! तारा गुण, विनय अने शक्तिथी, तारी उत्तम जाति श्रादिक सर्व हुं जोके जाणी गयो बुं, तोपण उनीथा बहारनां नपकाने जुवे डे, केम के, अंदर नीत गमे तेवी होय, तोपण बहारथी रंगेली नपकाबंध लागे ; माटे हे कुमार! तुं को वियाधर, के देव, के मलेलु डे वरदान जेने एवो पुरुष, के नागकुमार ? ते कहीने मारा कान तुं पवित्र कर? राजाये एम कहेते थके, महा प्र. जाविक एवा ते महीपाले, कंचुकनी पेठे क्षणवारमांज पोतानो कदरुपो वेष कहाडी नाख्यो. ते वखते वादलाउँथी मुकायेला सूर्यनी पेठे, धुंवाडा विनानां श्रमिनी पेठे, कादवरहित श्रयेला मणिनी पेठे, लांबन रहित थयेला चंछनी पेठे, बीपमांथी निकलेला मोतीनी पेठे तथा माटीमाथी कहाडेलां सुवर्णनी पेठे ते महीपाल दीपवा लाग्यो. ते वखते लोकोये चारेकोरेथी जय जय शब्द कों; तथा तेनापर आकाशमाथी पुष्पवृष्टि थ. वली ते वखते देवपाले, ते महीपालने यथास्थित जोश्ने, संत्रमसहित उठीने हर्षश्री आलिंगन कर्यु. वली त्यां ते देवपालनां परिवारे पण, श्राश्चर्यथी विकस्वर लोचनवाला थश्ने पृथ्वीपर काया नमावीने तेने नम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. स्कार कयों. ते वखते त्रणे जातिनां वाजां वागवा मांड्यां, तथा लोको हर्षथी नाचवा लाग्या; अने स्त्रीउनां मुखोथी उंचे प्रकारे धवलमंगलनो ध्वनि निकलवा लाग्यो. हवे महीपाले पूर्वे कहेलां वचनोथी थयेल ने क्रोध जेने, एवा सघला राजा एका थश्ने नरवर्मा राजाने कहेवा लाग्या के, था महीपाले हाथथी जे फलो ग्रहण काँ, तेमां कंई श्राश्चर्य नथी, केम के, इंजाल विद्याथी शुं असाध्य ? वली था महीपाल पुराचारी होवाथी तेना पिताये तेने पहेलांज घरमांथी कहाडी मेट्यो बे, पण क्यांकथी चमत्कार पामीने, तेणे जे आ कार्य कर्यु, तेमां कं तेनुंबल नथी; वली स्त्री तो स्वनावधीज नीचगामीनी होय , अने तेथी था मूर्ख कन्याये तेने वर्यो; माटे ते वर तरिके केम थाय? माटे आ श्रनुचित कार्य श्रापणे सहन करीशुं नहीं; अने तेटलामाटे दरिखी पासेथी जेम रत्न, तेम तेनी पासेथी था कन्याने आपणे ग्रहण करीशु. एवी रीते बीजा राजानां वचनने सांजलीने नरवर्मा जरा विचार करीने, गंजीर वाणीथी कहेवा लाग्यो के, तमो थोडो काल सबुर करो? केम के था कल्याणसुंदर राजा मारो मित्र , माटे हे राजा ! तमारे क्रोध करवो नहीं. वली हमणा तो श्रापणे आपणा क्रोधने समावीने, तथा एकमत थश्ने, उत्कृष्ट प्रीतिपूर्वक था विवाह महोत्सव गुजारवो. वली मने मालुम बे के, ए सौराष्ट्रनो राजा वल्प लश्करनां बलवालो ने, माटे प. र्वत जेम पाणीने, तेम आपणे तेनो मार्ग रोकीने बेसीशु, माटे तेज विचार थापणे राखवो, बीजुं कं; पण करवू नहीं; केम के ज्यारे सूर्य- बिंब उगे , त्यारे झुं अंधकार रही शके ? एम विचारिने सघला राजा गुप्त अदेखाश्वाला थया, तथा सूर्यकांत मणिनी पेठे अंदर बलता थका उपरथी मीगबोला थया. हवे एटलामां देवपाल महीपाल पासे आवीने, हर्षयुक्त मनवालो थयो थको, स्नेहसहित तेने कहेवा लाग्यो के, हे वत्स! तारो वियोग थया बाद आपणा मातपिता फक्त शरीररुपज रहेलां , पण तेऊनो जीव तो तारामांज वलगेलो;वली हुं श्रहीं स्वयंवर महोत्सव माटे बिलकुल श्रा. वेलो नथी, पण तुं अहीं आवीश, एवी शंकाथी हुँ अहीं खरेखर श्रावे. लो बुं; माटे हवे तारूं थाजसुधिनुं सघj व्रतांत तारे कहेवू जोश्ये. ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीतीयःसर्गः वी रीतनी प्रीतिरूपी अमृतथी जरेली पोताना जाश्नी वाणी सांजलीने, ते महीपाल पोतार्नु सघवं व्रतांत कहेवा लाग्यो. पडी पोतानां जानु महा आश्चर्यकारी ते व्रतांत सांजलीने देवपाल अत्यंत आनंदित थयो. पड़ी राजाये वाजिंत्रोनां नादोथी तेजेनो अत्यंत मनोहर विवाह महोत्सव संपूर्ण कयों. वली त्यां ते महीपाले हस्तमोचनमां हाथी, घोडा, पालखी, तथा रत्न विगेरे राजापासेथी मेलव्यु. हवे ते खयंवरमां रत्नप्रन विद्याधर श्राव्यो हतो, तेनी बंदिलोकोनां मुखथी सूर्यमवनां पुत्रे कीर्ति सांजली. त्यारे ते तेने आवासे गयो, त्यां तेणे तेनुं सन्मान कर्यु; अने रत्नकांतनो तथा पोतानो व्रतांत तेने कही संजलाव्यो, पडी पोतानां बुद्धिबलश्री तेने नाश्नां स्नेहमां रक्त थयेलो जाणीने, तेजेनी प्रीति वधारवामाटे तेणे कडं के, पूर्वनां पुण्ये करीनेज पोतानां नाश्नो मेलाप थायबे, माटे हमेशां सुखनां श्वनाराये बीजा हाथनी पेठे तेनुं रक्षण करवू. वली संपदा अने स्त्री तो जगो जगोये मले बे, पण मातानी कुक्षिविनां बीजी जगोये सहोदर मलतो नथी. वली लक्ष्मीनां लवमाटे जे मूर्ख माणसो जापर केष करे , ते निर्जाग्य माणसो कुतरानी तुलनाने धारण करे . वली जे जाग्यहीन माणसो राज्यादिकने माटे पोतानां जाने मारी नांखे , ते पोतानी मेसेज पोतानां पदनो नाश करे बे, एम हुँ मानुं बं. वली जे माणसो ग्रासनां लवथी गर्वित थया थका पोतानां जाछने ठगे , ते कागडाउँथी पण हांसीपात्र थाय . इत्यादि अमृतथी जरेली कुमारनी वाणी पीने रत्नप्रन पोतानी अांखोरूपी मणिमांथी घणा बिंऽउने करवा लाग्यो. एवी रीते निःश्वाससहित, तथा गलता यांसुथी रोका गयेल डे कंठ जेनो, एवो ते विद्याधर महीपालपासे जश्ने गदगद वाणीथी कहेवा लाग्यो के, ते मारो नानो नाश खनावथीज उकत हतो, तोपण में तेने कंशं रोषित कर्यो नथी, पण ते पोतेज मनमा कंक विकल्प करीने चाल्यो गयो , वली तेने मंत्रिये पण हितकारी नीतिवाक्योथी वार्यों हतो, अने में पण तेने श्राग्रहसहित अटकाव्यो, पण ते नहीं मानतां चाल्यो गयो. वली हे बांधव ! एकांगी सुखमुखने देनारा मारा था राज्यपणाने पण, तेना विनां हुँ विषमिश्रित अमृत सरखं मानुं बु. पडी कुमारे तेने कह्यु के, हवे तुं खेद नहीं कर ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ शत्रुंजय माहात्म्य. हवे हुं, कर्म जेम जीव छाने शरीरनो, तेम तमारा बन्नेनो संगम करा - वीश. एवी रीतनुं कुमारनुं वचन अंगीकार करीने, जाइने मलवामां उत्सुक थयो थको, स्वच्छ मनथी ते त्यां रह्यो . हवे त्यां महीपाले, गीत, शास्त्र तथा इष्ट जनना संगथी, राजपुत्रीनी साथै सुख जोगवतां थकां केटलाक दिवस गाव्या. हवे यहीं पूर्वे करेलां कर्मोनां परिपाकथी म - ही पालने तापनी पीडा थर, तथा गोपर फोडलाई थया; छाने तेथी तेने घणीज व्याधि थवा लागी. वली ते तापने दूर करवा माटे जे जे ठंडा उपायो करवामां यावता, तेथी तो तेनुं कमल सरखं कोमल शरीर अत्यंत दुःख पामवा लाग्युं; एवी रीते मृत सरखां औषधोथी तेनो उपाय करवा मांड्यो, तो पण शांत वचनोथी जेम डुर्जन, तेम तेनो व्याधि विशेष दुःखदायक थयो. वली तेनां रोगमाटे जे उपाय न कर्यो, तेवो कोइ पण उपाय के, विद्या के प्रपंच था दुनियामां हतोज नहीं, अर्थात् सघला इलाजो कर्या. एवी रीते एक माससुधि घणां वैate विविध प्रकारनां औषधोथी उपायो कर्या, तो पण तेनो रोग मढ्यो नहीं. पबी तो मीष्ट वचनोथी राजानी रजा बेइने, तथा पितानी पेठे तेने ने दिलगिर थता लोकोने पण शांत करीने सेंकडो लश्करथी तथा विद्याधरोथी विंटायो थको, पिताने मलवानी उत्कंठाथी ते महीपाल चालतो थयो . गुणसुंदरी पण वृद्धोनी अनुज्ञा लेइने, तथा मातपितानां चरणने नमीने पोतानां जतरनी साथे चाली. एटलामां पूवनां मत्सरी राजा ए ते महीपालने मार्गमां रोक्यो; छाने ते तेने कदेवा लाग्या के, अरे ! रंक ! श्रमो राजानां देखतां, बलविद्याथी या कन्यारूपी रत्नने लेने तुं क्यां जवानो के ? हमणा तने तेनुं फल मलशे. वली जे माणस प्रति लोजयी पोतानां परिमाणथी पण अधिक कार्य करे बे, तेने तुं जेम कुष्टी थयो, तेम प्रगट फल जोगववुं पडे बे. वली त्यां तुं जे जेम तेम बक्यो हतो, तेनुं तने हमणा फल मलशे . एम कहीने अत्यंत क्रोधायमान थएला ते राजार्टए एकता थइने, सघलां लश्करी ते महीपालने घेरी लीधो. ते वखते शत्रु प्रते काल सरखा महीपाले पण रोगनी पीडाने नहीं गणीने, हाथमां तलवार लीधी. ते वखते हाथी दांतोथी, रथवालाई बापोयी, पालार्ज तलवारोधी, तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ीतीयः सर्गः ६३ पोडेस्वारो जालांउंथी लडवा लाग्या. एवी रीते बन्ने सैन्यो स्वपरनो विबार कर्या विनां दीनता रहित मांहों मांहें लडवा लाग्यां. ते वखते पोतानां स्वामिनां जक्त एवां बाणो, पण तेमनां यशथी पृथ्वीने व्याप्त पिएली जोइने, जेटलामां ते यशनो स्वर्गमां विस्तार करवामाटे श्राकाशमां जवानो यत्न करे बे, तेटलामां त्यां पण किन्नरोथी गवाता ते यशने सांजलीने, पोतानां स्वामिनी स्तुति नहीं करता एवा वैरीउपर खावीने पडवा लाग्यां. हवे ते वखते, उबलता चपल मोजांवाला समुद्रोथी जेम कांगे, तेम वैरीजनां समूहोथी महीपालनुं सैन्य उपद्रव प्राम्युं. त्यारे महा यशस्वी रत्नप्रन, देवपाल, तथा महीपाल, अने बीजा पण तेउनी साथे अत्यंत क्रोधथी लडवा लाग्या वली तेर्जए रज्ञेया सरखा थइने शत्रुर्जनी सेना रूपी दहींने वलोवीने, जगतनां सापने हरवा माटे यशरूपी माखण उधरी कहाड्यं. ते वखते जगतमां सारभूत एवा ते महीपालनां बिंबने सहन करवाने अशक्त थया थका, से शत्रु राजा पोतानां लश्करो सहित दिशा दिशाउंमां नाशी गया. ते वखते यादवनां लश्करीए जयजयनो शब्द कर्यो, तथा तेमना पर देवोनां हाथोमांथी पुष्पोनी श्रेणि पडी. वली महाबलवानो कदापि पण तृणपर गुस्सा करता नथी, एवं जाणी नरवर्मादिक राजार्जए त्यां मुखने विषे ते तृण लीधुं. वली या पृथ्वीमां या महीपाल महा सुगंधिवाला ( कीर्तिवंत ) बे, तेथी ते राजार्जए तेनी आगल थालोटीने, बलथी पण तेनां राजकीय पोतानां शरीरपर लेपन कर्यु. वली तेनां चरणोने नमता एवा ते राजार्जनी पीउपर महीपाले, स्फुरायमान थती एवी जे लझी, तेनां पद्मरूप घरसमान पोतानो हाथ मेल्यो. ते वखते नरवर्मा राजाए देवकन्या सरखी पोतानी वनमाला नामनी कन्या देवपालने श्रापी. एवी रीते राजार्डने जीतीने, तथा देहधारी जयलक्ष्मी सरखी वनमालाने लेइने ते नगरप्रते चाल्यो, पढी तेनां पराक्रमथी आश्चर्य पामेला, ते नरवर्मादिक राजार्ज, ते महीपालनी श्राज्ञा लेइने पोतपोताने स्थानके गया. वे यहीं वनमां श्रपायने (दुःखने) करनारो वायु जेम जेम वावा लाग्यो, तेम तेम महीपालनो रोग पण अत्यंत वृद्धि पामवा लाग्यो. वली ते दुष्ट वायुनी पीडाथी श्रढारे जातिनां कोढो, लक्ष्मीनां घ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ शत्रुंजय माहात्म्य. र सरखा तेनां शरीरने अत्यंत कष्ट श्रापवा लाग्या. ते वखते वननी रमणिक भूमि तेने नरकनी पृथ्वी सरखी लागवा मांडी, तथा कमलो - वालुं नदीनुं पाणी, तेने जयंकर लागवा मांड्यं; तेम वाजांनो नाद यमनां वचन सरखो लागवा मांड्यो, तथा तेनुं वास मारतुं शरीर तेनां परिवारने पण दुःखदायक लागवा मांड्यं. वली तेने जोजन तो फेरसमान, तथा पाणी तपावेला सीसा सरखं, अने बरास तो दुःखदायक लागवा मांड्यो; वली तेने गायन दुर्वाक्य सरखुं, तथा नाटिक सर्पनां वींटला सरखं, ने पुष्पो यमनां बाणो सरखां लागवा मांड्यां. वली नरकथी पण अधिक दुःख पामता एवा ते महीपालने माणसो वच्चे, तेम एकांतमां पण चेन पडवा लाग्युं नहीं. एम करतां केटलेक दिवसे ते कुसुमोनां समूहवाला उद्यानमां पहोंच्यो, तथा त्यां तेणे मुकाम कर्यो; अने तेनां दुःखधी सैन्य पण दुःख पामवा लाग्युं. जेम जेम माणसोने पूर्वे करेलुं शुभाशुभ कर्म उदयमां श्रावतुं जाय बे, तेवी रीते परनां उप्रदेश विनानी तेमनी बुद्धि प्रवर्ते बे. वली कर्मोथी प्रेराएलो श्रा जीव, कुंजार - नां चक्रनां स्वजावनी तुलनाने धारण करतो थको, सर्व जगोए जम्या करे a. वे एक दहाड़ो पूर्णिमाने दिवसे ते महीपाल कुमार रात्रिए सुखनी छाथी अकाश प्रदेशमां सूतो. एटलामां त्यांथी विद्याधरो चैत्री पुनेमने दिवसे सिद्धगिरिपर आदिदेव प्रजुनां चरणकमलनी सेवा माटे जवा लाग्या. त्रणे लोकमां जेटलां तीर्थो बे, अने तेर्जनी यात्राथी जे फल मले, ते फल या तीर्थनी एकज यात्रा थापे बे. तेमां पण चैत्री पुनेम दिवसे, या पुंडरिक गिरिनी करेली स्तुति, स्वर्ग ने मो नां सुखने हथेली मां श्रापे छे. हवे ते आकाशगामी विद्याधरो, शक्तियें करीने नंदनवनमांथी लावेलां विचित्र पुष्पोथी श्री कृषजदेव प्रजुनी सेवा करवा लाग्या, तथा नाना प्रकारनां श्रजिनयोथी नूषित, एवा संगीतने, अत्यंत प्रीतियुक्त चित्तवाला थया थका त्यां करवा लाग्या; वली विचित्र प्रकारनी भाषावालां, तथा वैराग्य गर्जित स्तवनोयें करीने, ad त्यां जिनेश्वर प्रजुने आराधवा लाग्या. पढी ते विद्याधरो त्यांची उतरीने पोतानां स्थानकोप्रते चालवा लाग्या. ते वखते चंद्रचूड नामनां विद्याधरने तेनी स्त्री प्रिय वचनोथी कहेवा लागी के, हे नाथ ! आपण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होतीयःसर्गः ६५ विनां था बीजा सघला विद्याधरो जले जाउँ ? केमके, श्रीषनदेव प्रनु मारा चित्तमां एवा तो वसी रह्या डे के, जेथी स्वर्ग अने मोक्षादिक सुखने पण हुं तेनी पागल तृणसमान लेखू बुं. माटे हे स्वामी! थाठ दिवससुधि था पुंगरीकगिरिपर थापणे रहीयें, एवी कृपा करो. ? के जेथी श्रीशषनदेव प्रजुने हुं स्तवं, तथा पूजॅ. हवे ते विद्याधर पोते पण ते ती. र्थप्रते अत्यंत नक्तिवालो हतो, अने वली तेणीये पण तेनी अत्यंत प्रार्थना करी, माटे ते त्यां रह्यो, केम के, इष्टे कहेडं इष्ट वचन कोण उपेही मेले ? एवी रीते अत्यंत उत्कंठाथी चिरकालसुधी त्यां प्रजुने, पूजी. ने, अतृप्त थया उतां पण, ते जवाने श्ववा लाग्या, पडी ते बन्ने - नुपम विमानमां बेसीने मार्गे चालतां थकां, पूर्व दिशामां रहेलां सूर्योयानने जोवा लाग्या, एवीरीते पूर करेल ले (शोजाथी) नंदनवन जेणे तथा अत्यंत पुष्पोवाला ते वनने जोश्ने, हरिणसरखां नेत्रोवाली ते स्त्री पोतानां खामीने कहेवा लागी के, हे नाथ ! था शत्रुजयनी पासे घाटां वनने तमो जु? ते वन पुष्पोयें करीने, दिवसे पण तारासहित श्राकाशनां ब्रमने धारण करे बे; वली तेनां मध्य नागमां कमलोनां समूहथी शोलतो, तथा निर्मल पाणीरूपी अमृतथी नरेलो, श्रा मोटो कुंड डे. वली तेनी आसपास कांगपर चलायमान थता ध्वजनां कपडांउथी वींजेला बे, देवोने जेये, एवा निर्मल प्रासादोने तमो जुठे ? वली हे नाथ ! जो तमो कृपा करो तो, शत्रुजय गिरिनी सीमामां रहेली था वननी शोना मारी शांखोने वणवार सुख प्रापे. एवी रीते पोतानी स्त्रीनां मुखरूपी कमलमांथी निकलेली, तथा श्रवणने प्रीय लागे एवी, वाणी रूपी सुधाने पीने, ते विद्याधरे ते वनमा पोतानुं विमान उतार्यु; तथा पोतानी स्त्रीने ते कद्देवा लाग्यो के, हे हरिणसरखी श्रांखोवाली! था सूर्योद्यान नामनुं वन बे, तथा सर्व कार्योमा उपयोग लागे, एवी दिव्य औषधि अहीं थाय . वली रोगोनी पीडाने नाश करनारो सूर्यावर्त नामनो श्रा कुंड , तेनां पाणीनां बिंमुथी श्रढारे कोढो नाश पामे . एवी रीते ते कुंडनो तथा वननो प्रजाव तेणीने कहेतो थको, ते विद्याधर तेनी साथे त्यां मनोहर लतागृहमा क्रीडा करवा खाग्यो. वली स्त्रीनां चपल लोचननां डाथी लालित थयो थको, ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. विद्याधर कमलोनां समूहथी नरेला ते पाणीमां विलास करवा लाग्यो. वली कमलनां पुष्पो लेश्ने, तथा पवित्र वस्त्रो पेहेरीने स्त्रीसहित तेणे सिकायतनमा रहेला प्रजुने पूज्या, तथा स्तव्या. पनी अरिहंत प्र. जुनां चरणथी पवित्र थयेवू, ते सूर्यावर्त कुंडनुं पाणी, रोगनां नाश माटे लेश्ने, ते बन्ने विमानमां बेसी त्यांथी चालवा लाग्या; एटलामां चंनी कांतिथी अत्यंत शुत्र लागती, एवी महीपालनी सेनाने, तेजे बन्ने. ये विमानमा रह्यां थकां जोश; ते वखते चारे बाजुथी अत्यंत घोडा, हाथी, रथ तथा पालाउँने जोश्ने, विमानमां बेठेली ते खेचरी पोतानां खामिने कदेवा लागी के, हे नाथ! श्रा वनमां मनुष्योनी स्थिति केम ले ? तथा अहीं ज्यां त्यां हाथी, घोडा विगेरे केम जम्या करे ? वली तेमां घणा माणसोथी विंटायेलो श्रा कोश्क रोगी जणाय बे, अने तेनी जे छगंध श्रावे , तेथी तेने हुँ कुष्टी जाणुं बुं; वली हे खामी! आपणी पासे कोढने हरनारं उत्तम पाणी अहीं , तो जो आपनी रजा होय, तो हुँ तेनां शरीरपर ते सींचं. पडी पतिये रजा श्रापवाथी ते दयालु स्त्रीये विमानमा रहीने तेनांपर ते पाणीनां बिंडु रेड्यां; ते पवित्र पाणीनां स्प मात्रथीज महीपाल ते वखते अत्यंत आनंद पाम्योः वली ते वखते. ग्रीष्म ऋतुमां सुकाएबुं वृद जेम वर्षा ऋतुमां नवपद्धव थाय , तेम महीपाल पण ते पाणीनां सींचावाथी थयो, पड़ी महीपालना शरीरने दिव्य कांतिवाळु जोश्ने, ते विद्याधर, गुणसुंदरी, तथा देवपाल, लश्करी सहित श्रानंद पाम्या. हवे ते महीपालनां शरीरथी कुष्टो निकलीने, आकाशमा रह्या थका तेने कहेवा लाग्या के, हे राजेंड! तुं जय पाम ? हवे अमोए तने तजी दीधो डे; वली अमोए तने सात नवो सुधि सेव्यो बे, पण हवे तने सूर्यकुंडनुं पाणी मद्युं, तेथी श्रमाराथी रही शकाय तेम नथी; एम कहीने, कोलाहल करता, तथा नयंकर काला रंगवाला, ते सर्वे रोगो क्यांक चाख्या गया. पडी अत्यंत सुखदायक एवी ते रात्रि व्यतीत करीने, प्रजातमां देवपाले अत्यंत हर्षथी महोत्सव कर्यो; पठी त्यां महीपाले पोतानां पूर्वला मित्र रत्नकांतिने तेडाव्यो, तथा पोतानां श्रारोग्यपणानां तेने समाचार कडेवराव्या, पडी रत्नकांति पण महीपालनुं नाम सांजलीने, हर्षित थयो थको विमान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीतीयःसर्गः ६७ ना समूह सहित तुरत त्यां श्राव्यो. ते वखते महीपाल पण, प्रेमाल थयो थको, पोतानां निरोगी अंगोथी, जाणे एकज शरीर करतो होय नही, तेम अत्यंत तेने नेव्यो. वली पागल वचन श्रापवा मुजब महीपाले, रत्नप्रन अने रत्नकांतिने नेला करीने, पोतानी मित्रता त्यां सफल करी; पड़ी ते बन्ने प्रथक शरीरवाला, पण एक आत्मावालाज होय नही जाणे, तेम, अथवा एक वैताढ्यनां राजनां जेम मालिक होय, तेम शोजवा लाग्या. हवे एटलामां मासोपवासने अंते पारणा माटे बे मुनि आकाशगामिनी विद्याथी त्यां श्राव्या. जाणे धर्म अने सुखनीज मूर्ति होय नहीं, तेवा ते बन्ने मुनिउने जोश्ने, महीपाल नक्तिथी संज्रम सहित उठीने तेउने नम्यो; तथा अत्यंत नक्तिथी शुद्ध अन्न, वस्त्र, पाणी विगेरेथी तेउने प्रतिलाजीने, तेणे पोतानां रोगनुं सघj व्रतांत पुज्युं. त्यारे तेउए धर्मलान पूर्वक कोमल वाणीथी कडं के, हे राजन् ! अमारा ज्ञानी गुरु था वननी अंदर , माटे हे उत्तम श्राशयवाला ! जो तने कंई संदेह होय, तथा धर्म कार्यमां जो तारी मति होय, तो अमारा गुरु पासे आवीने तुं हमणा तेमने पुड ? एवी रीते महीपालने कहीने, तेनाथी वंदाएला ते बन्ने मुनिए गुरुपासे श्रावीने सघलो व्रतांत यथास्थित कही बताव्यो. पठी महीपाल, देवपाल, रत्नप्रज, रत्नकांति, तथा बीजा पण केटलाक लोको त्यांथी गुरुनी सेवा करवा गया. त्यां थानंदमय श्रात्माने उंचे प्रकारे श्रात्माथीज ध्यावता, तथा नादविंडुनी कला रूपी ज्योतिथी नाश करेल ने अज्ञान रूपी अंधकार जेणे, तथा श्राधाररूप पनने आकुंचीने, अने शक्तिश्री तेने हृदयमा स्थापीने, ब्रह्मस्थानमा रहेला परम ज्योतिने चिंतवता, तथा सर्व जावोमां समताने नजता, अने मुक्तिमा जनारा, एवा ते गुरुने जोश्ने, वचनथी न कही शकाय, तेटला आनंदने ते पाम्या. पबी त्यां ते मुनीश्वरने, मन, वचन अने कायाथी, त्रण प्रददीणा देश्ने, ज्ञाननां नंडार सरखा तेने खड श्राशयवाला थया थका ते नमता ह. वा. पड़ी ते मुनीश्वर पण समतावाला ते ध्यानने बोडीने, धर्मनां व्यापारमा तत्पर थश्ने, तेने बोध देवामाटे नीचे प्रमाणे कहेवा लाग्या के, माणसोने पुण्य उपार्जन करवामां, श्रार्यदेश, मनुष्यपणुं, दीर्घ श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ शत्रुंजय माहात्म्य. युष्य, उत्तम कूल, तथा न्यायोपार्जित धन, एटलां साधनो बे. एवी रीते गुरुनां मुखरूपी चंद्रथी निकलेला देशना रूपी अमृतने पीने, पोतानां रोगसंबंधि व्रतांत महीपाले पुग्यो. त्यारे गुरुए पण समाधिथी तेनां पूर्व जवन व्रतांत जाणीने कयुं के, हे महीपाल ! जे रीते तें दुष्कर्म उपार्जन कर्यु हतुं, ते सधनुं तुं सांजल ? जर क्षेत्रमां पुर नामनुं नगर बे, त्यां महागुणी श्रीनिवास नामे राजा हतो; ते राजा पितानी पेठे प्रजाने पालतो, तथा यमनी पेठे शत्रुने हणतो, अने दानथी तो कामधेनु, चिंतामणि रत्न, तथा कल्पवृकोने पण दूर करतो. वली ते शीलादिक गुणोयें करीने युक्त हतो, तो पण तेने शिकारनो घणो शोक हतो; अने तेथी ते राजा ( कलंक सहित ) चंद्रनी तुलनाने धारण करतो. एक दहाडो ते राजा शिकारनो लोलुपी यो को, घोडापर बेसीने, तथा हाथमां धनुष्य धारीने, वनभूमिमां गयो. त्यां वेगवाला घोडायें करीने, हरिणनां टोलांने त्रास पमाडतो थको, ते राजा वरसादनी पेठे अविछिन्न रीते वाणोनो वरसाद वरसाववा लाग्यो. एवी रीते शिकारमां तल्लीन थयो थको, जे वस्तु दूर हती, तेने नजदी कमां, तथा जे नजदीक हती, तेने दूर करतो थको, ते पोतानां सैन्यथी बुटो पडी गयो. त्यां घाटा वनखंडमां कोइ प्राणीने रहेलां जाणीने, तेने मारवानी इहाथी, तेणे तीक्ष्ण बाणो मुक्यां; एटलामां तेणे " नमोऽईदद्भ्यः " एवी रीतनी गदगद कंठनी वाणी सांजली; त्यारे तेनी उत्पत्ति जाणवाने ते जेटलामां दृष्टि फेंके बे, तेटलामां तेणे पोतानां वाणी वधारला, तथा कायोत्सर्गमां रहेला, अने पृथ्वीपर पडता एक मुनिने जोया. एवी रीते दाएला ते मुनिने जोइने, जाणे पोतानुं पुण्यरूपी वृक्ष बेदायुं होय नहीं तेम जाणीने ते खेद पामवा लाग्यो के अरे ! आजे में था शुं निबिड पाप उपार्जन कर्यु ? खरेखर में जे दुष्कर्मरूपी श्रभियें करीने बोधिबीजने वाली नांख्युं ! ! अरे ! मारा जीवितव्यने पण धिक्कार बे !! केम के, एक जीवने दवाश्री पण माणसाने अत्यंत जयंकर नर्क मले बे. वली में दुष्टे मारुं व्यसनले सुधि वधार्थं के, जेथी मुनिनी हत्या मारे हाथे थइ. वली जेde निरपराधी प्राणीजने दुःख देवारूप या व्यसन मने शीखान्युं, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीतीयःसर्गः ने पण धिक्कार . वली जेउँए राजाउने एम कडं ले के, पापरूप एतो पण था शिकार पापमाटे नथी, तेउनी विद्वता, तथा तेउनी तत्वबुद्धि क्षय पामो ? वली अरेरे! पापी अने उहत माणसो, या घास अने पाणीथी तृप्त थएला निरपराधि जीवोने तीक्ष्ण बाणोथी हणे !! वली महायोगी, तथा देहधारी पुण्यनां राशिसरखा था मुनिने में जुहै हण्यो! हवे ढुं क्यां जलं ? अने शुं करुं ? एम कहीने, खेद पामतां यकां तेणे पुर्गति थापनार, तथा पापोनां मूल समान एवां धनुष्य बने बाणोने नांगी नांख्यां. पली तुरत घोडापरथी उतरीने ते मुनिमी पासे आव्यो, तथा जाणे पोतानां पापोनुं प्रायश्चित लेतो होय नही जेम, तेम तेने तेणे नमस्कार कयों. वली श्वास लेता ते मुनिना बन्ने पगो पोतानां हाथमां लेश्ने, नमेला एवा पोतानां मस्तकपर तेणे मुकुट रूपे कर्या; तथा पोतानां कुकर्मने निंदतो थको, ते एटलो तो रज्यो, के तेणे पडखे रहेला हरिण तथा पदि श्रादिकोने पण रडाव्यां. पड़ी ते कदेवा लाग्यो के, अरेरे! शिकारनां व्यसनी, तथा इष्ट एवा में बहु पुष्कर्म कयु !! माटे हे देव ! हवे मारे शुं करतुं ? ते कहो ? बली हे नाथ! में मारा निर्मल कुलमां कलंक लगाड्यु, तथा महा तेजखी एवा मारा पुण्यरूपी मेहेलमा में मशीनो कुचो फेरव्यो, पुराचारथी हणायेवू , अंतःकरण जेनुं एवो जो कोश पुत्र कुलमा उत्पन्न थाय, तो जाणवू के, बापदादानां पुण्यरूपी वृदमां दावानल लाग्यो. वली क. संकी तथा तिर्यंच अने नरकमांजवा लायक एवा मने, हे नगवन् ! हवे श्रा तमारा चरणोज शरणारूप दे. एवी रीते आंसुथी कलुषित थयेली डे अांखो जेनी, तथा पोताना श्रात्मानी निंदा करतो, एवो ते राजा वारंवार मुनिना चरणोने नमस्कार करवा लाग्यो. ते वखते ते मुनि पण थरिहंत प्रजुनु स्मरण करतो थको, जाणे तेनां बाणोथीज खेंचायां होय नहीं, तेम कर्मोथी खेंचाएलां प्राणोने तजतो हवो. ते वखते ते राजा पण ते मुनिनां वधरूपी तलवारथी बेदायेला हृदयवालो थयो थको, फरीते पोकार करवा लाग्यो, तथा ते मुनिनां गुणोनी पंक्तिने याद करतो थको मूर्ग पाम्यो. एटलामां तेनां सैनिको त्यां श्राव्या, तथा तेने तेवी हालतमा जोश्ने, न्याययुक्त वचनोथी समजावीने, कंश्क छुःखमांथी मुक्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ go शत्रुंजय माहात्म्य. कयों. पढी त्यां राजाये मुनिनां देहनो अभिसंस्कार कयों तथा मनमां अत्यंत दुःखी थइने, ते पोताने घेर गयो. पढी ते राजाये मुनिहत्यादिक पापनी शांति माटे ते वनमां श्री शांतिनाथ प्रजुनुं चौमुख देरुं कराव्युं; तथा मुनिर्जने, सर्व पापोने नाश करनाएं शुद्ध अन्न, वस्त्र す दिकनुं जति पूर्वक दान देवा लाग्यो एवो रीते त्रिकरण शुद्धिथी महाधर्म करतां rai पण ते राजा, मुनिहत्यादिक पापोथी मुक्त थयो नहीं; अने तेज दुःखरूपी शस्यथी पीडीत थयो थको, ते श्रीनिवास राजा, महारोगथी मृत्यु पामीने सातमी नरके गयो; त्यां बंधन, बेदन यादिक महाडुःख सहन करीने, तथा घणो काल त्यां नरकमां रही ने, तिर्यंच जवमां ते श्राव्यो वली त्यां पण टाढ, तडको, महारोग, ताडन, क्षुधा, तृषा श्रादिक ज्ञानकष्ट सहन करीने, फरीने पण ते नरकमां गयो. एवी रीते नरकाने तीर्यंचमां तेणे अवतार कर्या; पढी व जवो सुधि मनुष्यपणामां कुष्टी थने ते मृत्यु पाम्यो. वली हे महीपाल ! श्रा जवां पण पूर्वे करेली मुनिहत्यानां फलरूप तने कुष्ट थयो; वली हांसीश्री पण जो मुनिनी विराधना करवामां आवे, तोपण ते दुःखनो समूह आपे बे, त्यारे जे मत्सरजावथी मुनिने पीडे, तेनी तो वातज शी कर'वी ? वली मुनिने कोपाववाथी एक जवमां करेलुं पुण्य जतुं रहे बे, अने मुनिनो घात करवाथी तो सातमी नरके जतुं पडे बे. माटे मुनिनी ह त्यारूपी वेलडी या लोक अने परलोकमां पण, दुःख, दुर्भाग्य, तथा दुर्गति यादिक माठां फलो आपे बे. वली त्रिकरण शुद्धिश्री आराधन करायेलो मुनि सर्व प्रकारनां सुखो थापे बे, छाने तेनी विराधना करवाथी नरक तथा तिर्यंच संबंधि दुःखो मले बे. वली चारित्री, महा पराक्रमी एवा व्रतधारी तो एक बाजु रहो, पण क्रिया रहित अने निर्गुणी मुनिनी पण विराधना कोइ पण वखते करवी नहीं. माटे गमे तेवो पण चारित्रथी नूषित थलो मुनि, गृहस्थीये पुण्यनी इहाथी गौतम स्वामीनी पेठे पूजवो. वली मुनिनुं शरीर कई वंदनीक नथी, पण तेनो वेष वंदनीक बे, माटे एवा वेषधारी मुनिने पण पुण्यशाली ये पूजवो. वली मुनिनुं श्राचरण वंदनीक बे, पण वेष वंदनीक नथी, माटे मुनिनुं याचरण तपासी ने मोहनी श्वावालाये तेने पूजवो. वली क्रिया तथा . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीतीयःसर्गः ७२ हित मुनिने पण पूजवाथी, लहाथी ते व्रतने धरनारो थाय बे, अने उत्तम क्रियावालो मुनि पण, तेनी अवज्ञा करवामां श्रावे, तो ते व्रतमां शिथिल थ जाय बे. वली जे माणसो व्रतधारीने जोश्ने पण नमता नथी, तेउनु दान, दया, दमा, तथा शक्ति सघ अल्प सिकिने करनारूं , माटे जैनलिंगने धरनारा मुनि ने त्रिकरण शुद्धिथीभाराधवा; पण खार्थनो नाश करनारी एवी तेउनी निंदा तो सर्वथा प्रकारे नजकरवी. तेथी हे महीपाल ! तारा कुष्टोनुं तेज प्रगट कारण , माटे क्रोधातुर मुनि ने पण तारे को दहाडो विराधवा नहीं. हवे सूर्यावर्त कुंडनां पाणीनी कथा तुं सांजल ? शत्रुजय पर्वतनी नीचे पूर्व दिशामां सूर्यवन नामे मोहोटुं वन डे. ते वनमां सूर्य वैक्रिय शरीरथी साठ हजार वर्षोसुधि, जिननी सेवा माटे रह्यो हतो, तेथी तेनुं नाम सूर्योद्यान कहेवाय बे. ते वनमां षजदेव प्रजुनी दृष्टिरूपी अमृतथी नरेला पाणीथी जरेलो सूर्यावर्त नामनो कुंड , महा नक्तिथी जिनस्नात्रमा जोडेलु तेनुं पाणी हत्यादि दोषोने, तथा सर्व कुष्टोने नाश करनारुं . हवे ते वखते मणिचूड नामनो विद्याधर पोतानी स्त्रीसहित, चैत्री पुनेमनां महोत्सवमा विमलाचलपर जिनने नमीने था सूर्योद्यानमां श्राव्यो; तथा त्यां पण श्री रुपनदेव प्रजुनी प्रतिमाने नमीने, तथा ते कुंडनुं पाणी वेश्ने, ते पोतानां नगर प्रते चाल्यो. ते वखते विमानमां बेठेली तेनी स्त्रीये तने तेवी रीतनी जोयो, तेथी दया लावीने, तथा पतिनी आज्ञा लेश्ने तेणीये तारापर ते पाणी रेड्यु; अने तेथी ते सघली व्याधि तारा शरीरथी दूर गश्, तथा तने ते कद्देवा लागी के, तारे विषे हवे श्रमो रहेवाने समर्थ नथी; वली प्रायें करीने सर्व हत्या नरकादिक फुःखो देनारी , तेमां पण मुनिनी हत्या तो विशेषे करीने जवज्रमणनां कारणरूप . वली दूषण रहितोये वचनथी पण मुनिने कोपित करवो नही; वली परनी निंदा प्रायें करीने महापुःखनां समूहने देनारी . वली उत्कृष्ट मुनियें, परनिंदा, परखोह, तथा परधननी चोरीने, मोटां पापो कहेला ले. एम कहीने ते मुनि ज्यारे मौन रह्या, त्यारे महीपाल कदेवा लाग्यो के, हे जगवन् ! तमो मने जंगम तीर्थ समान थाजे मल्या डो; धर्मरूपी नेत्रनो प्रकाश करवाथी, तथा सर्व तीर्थोनां उपदेशथी, तमो अतुल्य तीर्थ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १‍ शत्रुंजय माहात्म्य. समानज बो; अने तेथी तमोज प्राणीजने सेवनीक, पूजनीक, तथा ध्यान धरवालायक बो, वली बुद्धिवान पण गुरुविनां धर्मनां तत्वने जाणी शकतो नथी. वली गुरुना उपदेश विनां डाह्या माणसने पण, सुवर्णसीद्धि, कला, विद्या, धर्मतत्व, तथा धनार्जन पण सिद्ध थतां नथी. वली माता, पिता, जा श्रादिकनां अनृणी तो थइ शकीयें, पण धर्म देनारा गुरुनो अनृषी विविध उपायथी पण प्राणी थइ शकतो नथी. वली पिता, माता विगेरे सर्व संबंधि तो जवे जवे मले बे, पण धर्मने देनारा सकुरु तो, पुण्यश्री कचित् जगोएज मले बे. अने तेथी हे जगवन्! श्र जवरूपी समुद्रमां जमता, तथा प्रमादी चित्तवाला, एवा मने अमूल्य चिंतामणि रत्न स मान तमो मल्या बे; वली तमोए मने या तीर्थ बताव्युं, तेथी हुं धन्योमां पण धन्य, छाने पुण्यवंतोमां पण पुण्यवंत थयो बुं. वली सघली कियार्ड गुरुनी साक्षीयेज सफल थाय बे, पण बीजी रीते यती नथी, केम के, जो सूर्य न होय, तो श्रांखोवालो पण वस्तुने जोइ शकतो नथी. एवी रीते गुरुनी प्रार्थना करवाथी गुरुये कयुं के मारे पण अहींज रहेवुं बे; ते सांजली श्रानंदसहित महीपाल त्यांची उठ्यो; पठी वाजांनां नादोश्री संत्रांत करेल बे, दिशानां पण जागो जेणे, तथा महापराक्रमी एवा ते सर्वे सेनासहित गुरुनी साथे चालवा लाग्या. एवी रीते अविछिन्न प्र याणोथी सूर्यवनमां जश्ने तेजये वृक्षोनी बायामां सैन्यनो पडाव नांख्यो; तथा त्यां गुरुये कहेली विधियें करीने, तेजये कुंडमां तथा चैत्यमां उत्सवपूर्वक अरिहंत प्रजुनी पूजा करी, अने महोदय मेलव्यो. वली त्यां विद्याधरोये विद्यानां बलथी, ध्वजानां समूहोथी शोजतां रत्ननां विमानो बनाव्यां पढी विमानोनां समूहथी श्राकाशतलने आछादन करता एवा तेर्ज, सिद्धिरूपी मेहेलनी अग्रवेदिका सरखा शत्रुंजयप्रते पहोंच्या. त्यां मंदिरोपर, यात्रा करनारार्जुनां संपूर्ण पुण्यनां ढगला सरखी सुवर्णनां क लशोनी श्रेणि जोश्ने ते आनंद पाम्या. वली त्यां त्रणे भुवनोमां उत्त म तीर्थ समान एवा ते पर्वतनां य जागने पामीने, तथा मोक्ष सुख देनारा श्री रुषजदेव प्रभुने जोइने, ते पवित्रपणुं पाम्या. त्यां विमान मांथी उतरीने, तथा रायणनां वृक्षने प्रदक्षिणा देने, ते ये श्रीकृष देव प्रजुनां चरणोने नमस्कार कर्यो. दूषण रहित एवा ते, जिननां प्रा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीतीय सर्गः ७३ लादने जोइने श्रादरपूर्वक, प्रीतिथी संपूर्ण अंगवाला थया थका, हायो ऊंचा करीने नाचवा लाग्या; वली श्रादिदेवनां दर्शनथी ते पोतानां आत्मानी स्तुति करवा लाग्या, तथा ते वखते राजाए श्रवचनीय पु. ख उपार्जन कर्यु; वली तेए प्रथम उत्तम किरणोवालां रत्नोथी प्रजुने पधाव्या, तथा पुण्यनां समूहथी उबलता थका पृथ्वीपर लोटीने ते नमस्कार करवा लाग्या. वली त्यां ते शत्रुजयी नदीमा नाहीने, बहारथी धने अंतरथी शुझ थया, अने त्यां तेए यशथी उज्वल थएला वस्त्रो पेहेर्या. वली विद्याधरोए नंदन वनमांथी लावी आपेला पुष्पोयें करीने, तेजेए त्रणे लोकमां तिलक समान एवा प्रजुनी पूजा करी. एवी रीते मुरुनां उपदेशथी, मननां हर्षपूर्वक, तेजेए ते तीर्थमां सर्व सुखोने श्रापनारुं धर्मकार्य कर्यु. वली तेए त्यां अत्यंत हर्षथी, पवित्र पदो तथा अर्थोवालां स्तवनोथी जिनेश्वर प्रजुनी स्तुति करी. वली त्यां तेउए न. तिथी शुद्ध उपकरणोयें करीने, गुरुने प्रतिलाजीने, तथा दीनादिकोने दया पूर्वक दान देश्ने आनंद मेलव्यो. वली जिननी पूजामां जे पुण्य थाय , तेथी अनुक्रमे सोग, तथा हजार गणुं पुण्य जिननी प्रतिमा अने प्रासाद बनाववाथी थाय . वली अरिहंत प्रजुनी प्रतिमा अने मंदिर बनाववाथी प्राणी पापोथी मुक्त थश्ने स्वर्गने जजनारो थाय ने, तथा तीर्थनी रक्षाथी अनंतगणुं पुण्य मले बे; एवी रीतनुं गुरुर्नु वचन सांजलीने, महीपाले अत्यंत नक्तिथी प्रतिमा सहित उंचुं जिनमंदिर बंधाव्यु. एवी रीते त्यां परमं उत्सवथी ते अगर महोत्सव करीने, गुहनां वचन पूर्वक विमानो सहित रेवताचल पर्वतप्रते गया. त्यां पण नेमिनाथ प्रजुनां चरणमां तप्तर रहीने, तेए अगर महोत्सव को. त्यां सूर्यमत राजा, प्राप्त थएल डे महोदय जेऊने एवा पोतानां पुत्रोने बहु सहित आवेला जाणीने, तुरत सामो श्राव्यो. जंगम तीर्थसमान एवा ते पिताने जोश्ने, श्रादरवाला, तथा जक्तिवंत एवा ते बन्ने पृथ्वीपर लोटीने तेने नमस्कार करवा लाग्या; त्यारे राजाए पण न्याय अने धर्मथी जेम बन्ने पदोने तेम, पोताना बन्ने हाथोथी पृथ्वीपर रहेला ते गुणी पुत्रोने ऊंचक्या. पडी ते बरसपरस अत्यंत प्रीतिथी नेव्या; अने ते वखते तेउँने जे हर्ष थयो, ते वचनथी पण कही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ शत्रुजय माहात्म्य. न शकाय तेटलो हतो. पनी राजा हाथीपर चडीने, तथा पुत्रोने पण हाथीपर चडावीने, मागण लोकोने उंचे प्रकारे धन देतो थको नगरमां दाखल थयो. त्यां उंचा मांचार्ज, तथा धजानां समूहोने, अने मनोहर तोरणोने, तथा नाटकने जोता थका ते राजमंदिर प्रते श्राव्या. त्यां राजाए ते बन्ने विद्याधरोने सुवर्ण, हाथी, घोडा विगेरेथी सत्कार करीने, परिवार सहित तेने पोताने स्थानके पहोंचाड्या; तथा तेज दिवसे राजाए महीपालने राज्य थाप्यु. गुणोथी मनोहर एवा ते महीपाले रा. ज्यने यत्नपूर्वक पालातां थकां, अखंड यश रूपी नंडारोने नर्या. ते महीपाल राज्य करते बते, अन्याय, रिपुनो जय, उकाल के रोगोनो संजव पण पृथ्वीपर रह्यो नहीं; वली ते वखते वादलां इडित वृष्टि करतां, वायु तापनो नाश करतो, तथा वृदो संपूर्ण फलो श्रापतां. वली ते महीपाल स्त्री सहित आकाशगामिनी विद्याथी कृत्रिम तथा शाश्वतां मंदिरोमां जिनेश्वरोने पूजतो हतो. वली तेणे शत्रुजय, तथा गिरनार आदिक पर्वतोपर, शेहेरोमां, गामोमां, तथा बगीचार्जमां जिननां मंदि. रो बनाव्यां. वली ते चोरासी गढ, तथा चोरासी पद, अने एक लाख बत्रीस हजार गामोने नोगवतो हतो. वली ते सात लाख घोडा, सातसो हाथी, तथा सातसो रथोनो खामी हतो. एवी रीते चारसो वर्ष राज्य पालीने, अंते पोतानां पुत्र श्रीपालने राज्य सोंपीने, महीपाल सं. सारथी विरक्त थयो. वली तेणे देवपालनां पुत्रने, जलरूपी किरावालो, तथा धान्यनां नंडाररूप सिंधदेश आप्यो. एवी रीते ते महीपाल राजा विवेक सहित पुण्यनो समूह बांधीने, स्त्री सहित श्री शत्रुजय पर्वतप्रते गयो; तथा त्यां श्रीकीर्ति नामनां मुनिवर पासेश्री तेणे दीक्षा लीधी; अने श्रायुनो दय होते बते निर्मल ज्ञानथी जासित थयो थको, ते मोद पाम्यो. तेना वंशमां हे इं! यश अने पुण्यनां संचयवालो, श्रा रिपुमन राजा थयो बे; वली ते रैवताचलनी पासे रहे बे, माटे ते धन्य बे, अने ते अनंत शोनावालो थयो थको त्रण नवे मोदे जशे. वली हे इंस! स्मरण करवाश्रीज सर्व इबित फलने देनारु, था शाखतुं तथा आदि तीर्थ , अने तेनो महिमा कहेवाने तत्वने जाणनारा पण समर्थ नथी. वली हे छ ! अहींथी पूर्व दिशामां, विकस्वर थएलां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः नाना प्रकारनां वृक्षोवालुं, तथा सिद्ध श्रने अरिहंत प्रभुनी प्रतिमाने नमस्कार करता, तथा तेनुं स्मरण करता एवा माणसोनां पापोने नाश करना, या सूर्योद्यान बे, तथा अत्यंत सुगंधिनां समूहथी शोजतुं बे पाजेनुं, तथा प्रजावें करीने मनोहर, अने सघला कोढोने नाश करनारो या सूर्यावर्त कुंड बे. एवी रीते श्राचार्य महारज श्री धनेश्वरसूरिए रचेला, महातीर्थ श्री शत्रुंजयना महात्म्यमां महीपालना चरित्रना वर्णननो बीजो सर्ग संपूथयो. श्रीरस्तु . तृतीयः सर्गः प्रारम्यते. राज्यने श्रवसरे दीवेलां बे कमलो जेए एवा युगलांए प्रभुना चरण कमल सरखा जोइने जलरहित कमलो पृथ्वीपर होय बे, एवं जाणीने, आश्चर्य थइ, जेए पाणीथी सींच्या नहीं, एवा प्रथम प्रभुना चरणो सर्वथा प्रकारे जवरूपी महा तापने बेदवा माटे था ? हवे श्री वीर प्रभु ने कड़े ते के, हे इंद्र ! एवी रीतें में तीर्थनो या संदेपथी महिमा कह्यो; हवे या तीर्थनां प्रजावनी विचित्रताने तुं सांजल ? अनंत काल यशे, तो पण या तीर्थ नाश पामशे नहीं; हवे सर्पिणी कालमां तेना संबंधमां जे थयुं बे, तेनी कथा तुं सांजल? या जंबूदीपनां दक्षिण जरतार्थमां गंगा ने सिंधुना मध्य जागमां युगल रहेता हता. ते मां विमल नामनां हाथीपर चडवाथी विमलवाहन नामनो, युग्मी धर्मवालो, अने सुत्रर्ण सरखी कांतिवालो, पेहेलो कुलकर थयो. तेनो पुत्र चक्षुष्मान् तेनो पुत्र यशस्वी, तेनो पुत्र श्रमिचंद्र, तथा तेनो पुत्र प्रसेनजित थयो; तेनो पुत्र मरुदेव, तथा तेनो पुत्र न्यायें करीने उज्ज्वल नानि नामे थयो, तेनी स्त्री मरुदेवी नामेहती, अने ते हमेशां श्रर्जव गुणोथी उज्ज्वल हती. दवे या अवसर्पिणीनां त्रीजाराने बेडे, श्री रूपनदेव प्रजुनो जीव सर्वार्थ सि थी चवीने ते मरुदेवीनी कुद्दिमां श्राव्यो. असाड वद चोथने दवसे, चंद्र उत्तराषाढा नक्षत्रमां आवते बते तेणीए रात्रिने बेडे नीचे प्रमाणे चौद खप्नो जोयां, वृषन, हाथी, सिंह, लक्ष्मी, पुष्पमाला, कलश, ध्वजा, अभि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. रत्ननो राशि, पन्न सरोवर, विमान, क्षीरसमुज, चंड श्रने सूर्य, एवी रीते तेणीये चौद स्वप्नो जोयां. एवी रीते प्रज्जुनोज्यारे गर्नमां अवतार थयो त्यारे त्रणे जगतमा उद्योत थयो, तथा नारकीने पण उंचे प्रकारे सुख थयु. पठी मरुदेवा माताए जागृत थश्ने, नाजिराजा पासे आवीने, तेमने मिष्ट वचनोथी ते व्रतांत कह्यो. सरल खनावी नानिराजाये पण विचारिने कह्यु के, हे प्रिया! था खप्ननां प्रजावे करीने, तने अद्भूत पुत्र थशे. एटलामां आसन कंपवाथी छे त्यां श्रावीने, तथा मरुदेवा माताने नमस्कार करीने कडं के तमोने पुत्रनी उत्पत्ति थशे. पनी मनोहर मुखवाली ते मरुदेवा माता, पृथ्वी जेम उज्ज्वल रत्नने, तेम मनोहर गर्जने धारण करवा लागी. जगतनां श्राधार, जगतनां सार, तथा जगतनां गुरु एवा प्रजुने धारण करती मरुदेवा माता, जाणे प्राणीउनी दयाथीज होय नहीं, तेम धीरेधीरे चालवा लागी. ते वखते धनद, इं. उनी श्राज्ञाथी, जूंनक देवोये तैयार करेली इडित वस्तुयी तेणीनांहर्षने वधारवा लाग्यो. हवे गर्नकाल संपूर्ण थये ते चैत्र वदी बाग्मने दिवसे, तथा चंड उत्तराषाढा नक्षत्रमा श्रावते ते,अने बीजा ग्रहो पण उंचा होते बते, निशीथ समये मरुदेवा माताये व्याधि रहित युगलरत्नने जन्म श्राप्यो. ते वखते वायु सुखेथी वावा लाग्या, तथा नारकीनां जीवो पण आनंदित थया, अने त्रणे जगतमा प्रकाश थयो, तथा देवकुंकुनि वागवा लागी. ते वखते तपावेलां सुवर्णसरखी कांतिवाला, वृषजनां लक्षणवाला, सर्व सुलक्षणे करी संपूर्ण, तथा जाणे देवसंबंधि शरीर सहितज आव्या होय नहीं, तेम प्रनु शोजवा लाग्या. ते वखते श्रा. सनो चलायमान थवाथी प्रजुनो जन्म थयेलो जाणीने थत्यंत हर्षयुक्त थश्ने उपन्न दिकुमारी त्यां श्रावी; तथा प्रजुने अने प्रजुनी माताने नमीने, अने नक्तिथी तेनी स्तुति करीने, पोताने धन्य मानती थकी ते नृत्य करवा लागी. वली तेउये दर्पण, कलश, पंखा, चामर, रक्षाबंधन श्रादिक पोतानुं सर्व कार्य संपूर्ण कर्यु. वली आसनो कंपवाथी, अवधिझाने करीने प्रजुनो जन्म जाणीने, सघला देवो विमानोथी आकाशने शोजावता थका त्यां श्राव्या. ते वखते सुधमैले पण नक्तिथी पोतानुं वै. क्रियरूप करीने, सूतिकागृहमा जश्, प्रजुने अने मरुदेवा माताने नम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . तृतीयःसर्गः स्कार कर्यो; तथा माताने अवस्खापिनी निता देश्ने, तथा तेमनी आझा लेश्ने, श्रने प्रजुनुं प्रतिबिंब त्यां रहेवा देश्ने तेणे प्रजुने पोताना हाथथी सीधा. त्यां इंजे अंतरमा नक्तिनाव लावीने पोतानां पांच रुपो कयां; एक रूपथी प्रजुने लीघा, एक रूपथी बत्र धर्यु, एक रूपथी वज़ लीधुं, तथा बे रूपथी चामर लीधां. पठी ते सघला देवो, विमानोथी बाकाशने चि. तरता, तथा रत्नोथी चंजनी कांतिने उल्लेखता, अने शब्दोथी जगतने पण फोडता थका मेरुपर्वत तरफ चालवा लाग्या. त्यां पांडुक नामनां उयानमां अर्धचंड सरखा आकारवाली अतिपांडुकंबला नामनी शिलाप्रते इंड पहोंच्यो. त्यां सोए थालियोगिक देवोनी मारफते रूपानां अने रत्ननां, सोनानां श्रने रत्ननां, सोनानां, रूपानां, अने माटीनां कलशो बनाव्या. पनी अनत कांतिवालो ते २७ डिव्य सिंहासनपर पूर्व सन्मुख प्रजुने खोलामा लेश्ने बेगे. पनी समुन, नदी, कुंड, तलाव तथा अहोमांथी पाणी लावीने इंजोये प्रजुनो स्नात्रमहोत्सव कर्यो; पड़ी तेउये मनोहर बरास, लेपन, पुष्प, फल, अक्षत, वस्त्र, आजरण विगेरेथी प्रजुनी पूजा करी. पली निर्मल नाववाला ते इंजोये हर्षथी प्रजुनी भारती उ. तारीने, नीचे प्रमाणे स्तुति करवा मांडी. हे स्वामी! हे युगादीश! हे जगतनां गुरु! हे अर्हन् ! हे ध्यान धरवा लायक! हे निरंजन! तमो जय पामो? वली श्रढार कोडा कोडी सागरोपम सुधि नाश पामेलो धर्म जेठनो, एवा प्राणीउनो उकार करनारा, तथा अज्ञानरूपी अंधकारनां समूहनो नाश करवामां सूर्य समान एवा हे प्रजु ! तमो जयवंता वर्तो ? वली हे कल्याणरूप व्यवहारनां करनारा! तथा सर्व सुखनां स्थानक सरखा तमो जयवंता वर्तो ? वली हे स्वामी! आजे जे तमारं मने दर्शन थयु, तेथी हुँ सघला पुण्यशालीउमा विशेष पुण्यशाली बु. वली वृद, पत्थर, पर्वत तथा पृथ्वी आदिकने धरी राखवाने तो कोश्क पण समर्थ थक्ष शके, पण हे नाथ! या नवरूपी समुद्रमां पडता प्राणीनां समूहने तो तमोज उद्धार करनारा बो. वली राग थादिक शत्रुथी पीडाएला लोकोने तमो निर्णय करनारा , वली मुक्तिरूपी स्त्री मेलववामां दूत समान एवा हे धर्मनां राजा! तमो जयवंता वर्तो? वली बाह्य अने अंतरंग शत्रुनां समूहोथी पीडाता प्राणीउनो जीवद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 96 शत्रुंजय माहात्म्य. यानां उपदेशथी तमोज उद्धार करशो. वली हे ईश ! पिंडस्थ, पदस्थ तथा रूपस्थ ध्यानथी, योगीउ तमोने घ्यावे बे, अने तेज॑नां व कर्मोंनो नाश करीने, तमो तेमने पोताने स्थानके पहोंचाडशो वली हे भगवन्! आपनां प्रसादथी ज्यांसुधिमां मने मोक्षसुख मले, त्यांसुधि हमेशां मने पनां चरणनुं शरणं थार्ज ? एवी रीते प्रजुनी स्तुति करी कृतार्थ ला ते इंद्रे उत्सवपूर्वक प्रजुने लावीने, फरीने तेमनी माता पासे मुक्या वली त्यां उसीके बे कुंडल, दीव्य वस्त्रो, हार अने मुकुट मुकीने ते मातानी श्रवखापिनी निद्रा पाठी खेंची लीधी. वली त्यां इंद्र अप्सराउने धाव तरीके मुकीने, तथा पोते नंदीश्वर दीपमां वाइ महोत्सव करीने देवलोकमां गयो पढी प्रजाते पुत्रनो ते वृतांत जाणीने नाजि राजाये पण पोतानी रुद्धिने अनुसारे महोत्सव कर्यो. प्रजुना सा मां जनुं चिन्ह हतुं, तथा स्वप्नमां पण पेहेलां माताये शषन जोयो हतो. तेथी मातपिताये तेमनुं “रुष" नाम पाड्यं इंडे प्रजुनां अंगुठामां मोतीनां सरखुं उज्वल अमृत मुक्युं हतुं, तेथी ते कारणने अनुसरीने प्रजुनां दांतो पण मोती सरखा उज्वल थया. वली इंद्रनील मणिनां बनावेला घुघरा, चरणरूपी कमलोमां लीन थयेला श्रने गुंजारव करता जमरानी पेठे शोजता हता. बाल्यपणामां प्रभु पांच धावरूप - सरायी सेवाता हता, ते जाणे पांच सुमतिरूपी धावमाताथी वृद्धि पमाता संयमधारीज होय नहीं तेम शोजता हता. वली त्यां चार निकायनां देवो इंद्रनी श्रज्ञाथी वयथी प्रभु जेवडा थइने, ( पण गुणोथी प्रभु जेवा नहीं ) प्रजुनी साथे क्रीडा करता हता. वली कौतुकथी प्रभु जे जे प्रकारे क्रीडा करवानी इछा करता, ते ते प्रकार देवो प्रजुनी सन्मुख रजु करता. एवी रीते एक वर्ष गया बाद प्रभु ज्यारे पोताना पितानां खोलामां बेठा हता, त्यारे सौधर्मेंद्र तेमनां वंश स्थापनमाटे सेलीनो सांगे लेइने श्राव्यो. जाणेलबे इंद्रनी इछा जेणे एवा प्रभुए ते सांगे ते वखते लीधो, अने तेथी प्रजुनां वंशनुं " ईक्ष्वाकु " नाम पाडीने इंद्र गयो हवे अंगुष्टपाननी व्यवस्थाने घोलंगी जनारी वयने पामीने प्रभु उत्तरकुरुक्षेत्रमा यतां दिव्य फलोथी संतोष पामवा लाग्या. एम करतां थकां प्रभु अनुक्रमे वृद्धि पामता थका कल्पवृक्षनी पण स्पर्धा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः करवा लाग्या, तथा सौजाग्य श्रने रूपरूपी राजाने रहेवानां जुवन सरखा यौवनने पाम्या, अने ते वखते तपावेल सुवर्ण सरखी कांतिवाला, तथा जन्मनां चार अतिशयोथी उज्वल, अने पांचसो धनुष्यना माननी कायावाला उत्तम लक्षणो सहित शोजवा लाग्या. पड़ी एक दहाडो इंजे प्रज्जुने कडं के, हे करुणानां नंडार ! जो के तमारे श्रा जगतनो व्यवहार प्रकाशवो बे. तेम तमो संगरहित, तथा नवथी उछिन्न थया डो, थने मोक्षसुखमां रक्त थया बो, तो पण मने तमो था वखते लग्ननो महोत्सव देखाडो ? एवी रीतनां इंधनां श्राग्रहथी प्रजुये ते वात अंगीकार करी. एवी रीते ज्यारथी प्रजुये आ लग्ननो व्यवहार देखाड्यो , त्यारथी आजसुधी पण तेज व्यवहार प्रवर्ते . एवी रीते 3 लाख पूर्व गया बाद प्रजुने सुमंगलाथी जरत अने ब्राह्मीनुं युगल थयुं, वली पड़ीथी अनुक्रमे तुल्यरूपवाला ते सुमंगलाथी प्रजुने उगणपचास जोडलां थयां, तथा सुनंदाथी प्रजुने सुंदर थाकृतिवाला, तथा जगत्नो उझार करवामां समर्थ, बाहुबलि अने सुंदरी नामनां अपत्यो थयां. हवे प्रजुनां अतिशय दानथी जाणे लजायुक्त थयां होय नहीं जेम, तेम कल्पवृदो अनुक्रमे निष्फल थयां थकां अलक्ष्य थयां, त्यारे ते युगलीयां मांहोंमांहें कलह करवा लाग्या, तथा एक बीजा प्रजुपासे तेनी फर्याद करवा लाग्या, त्यारे प्रचुये तेमने कह्यु के, लोकोपर राजा अमल करे , अने ते राजा तो माणसोथी जलें करीने अनिषेक करायेलो होवो जोश्य, माटे मारो अनिषेक करवामाटे तमे यत्न करो ? एवी रीतनुं प्रजुनुं वचन सांजलीने ते युगलीयां पाणी लेवामाटे तलावे गया, एटलामां आसन कंपवाथी ते अवसर इंजोये जाण्यो, अने तेथी तुरत त्यां आवीने, तेउये मोटो मंडप रच्यो, तथा तेमां मणिनी पीठिकापर सिंहासन स्थाप्यु, ते पर प्रजुने बेसाडीने, जन्मस्नातनी पेठे हर्षथी विधिपूर्वक तेउये प्रजुनो राज्यानिषेक कयों, वली तेउये प्रजुने योग्य स्थानके दरेक अंगोपर बालूषण विगेरे पहेराव्यां, तथा देवोये चंजनी कांति सरखां बत्र चामरो पण प्रनुपर धयाँ, तथा सघला इंस्रो, प्रधान, मंडविखिकादि सर्व व्यापारने धरता थका एकग थश्ने, प्रजुनी पासे बेग. एटलामां ते युगलीयां कमलनां पात्रोपां पाणी लेश्ने तुरत प्रजुपासे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ចុច शत्रुजय माहात्म्य. श्राव्या, त्यां तेये प्रजुने ऐश्वर्यथी नूषित थयेला जोया, ते वखते देहथी उत्पन्न थती कांतियें करीने नाश करेल बे, देवोनी पण शोजा जेणे, तथा जंगम प्रतापनी पेठे चर्मदृष्टिथी न जोर शकाय एवा प्रजु शोजता हता. आजूषण, लेप, वस्त्र अने पुष्षमालाउथी नूषित श्रयेला, ते प्रजुने जोश्ने, ततक्षण उत्पन्न थयेला विवेकथी ते विचारवा लाग्या के, जो श्रापणे प्रजुनां मस्तकपर अनिषेक करीशुं, तो प्रजुनां अंगपरनुं लेपन विगेरे नाश पामशे. एम विचारि तेये ते पाणीथी प्र. जुना चरणपर अनिषेक कस्यो, अने देवो ते श्राश्चर्यसहित जोवा लाग्या. पनी सुधमैडे, तेने, प्रजुनां राज्यरूपी मेहेलनां दृढ स्तंन सरखा अधिकारी बनाव्या, तथा अहीं युगलीश्रांजने स्वयमेव विनय थयो, तेथी इंडे त्यां “ विनीता” नामनी नगरी वसाववानो धनदने हुकम कस्यो. एवी रीतें प्रजुना राज्याभिषेक वखते इंजना हुकमथी धनदे रत्न अने सुवर्णना समूहोथी नवी नगरी वसावी. ते नगरी बार योजन लांबी नव योजन पोहोली, श्राप दरवाजावाली, मोटा किरावाली, तथा तोरपोथी मनोहर लागती हती. वली ते नगरीने फरतो बारसें धनुष्य उंचो, बाउसे धनुष्यनां पायावालो, तथा एकसो धनुष्य पोहोलो तेणे खाइसहित गढ बनाव्यो. ते सुवर्णनां गढपर रहेली मणिनां कोंगरांनी श्रेणि, मेरुपर रहेली तारानी पंक्ति सरखी शोजती हती. वली ते नगरीमा चोखुणा, त्रिखुणा, गोल, स्वस्तिकनां श्राकारवाला, सर्वतोना (चारे बाजुथी सरखा ) एक नोंवाला, बे लोंवाला, त्रण नोंवाला, तथा बेक सात नोंवालासुधि राजाना रत्न अने सुवर्णनां क्रोडो मेहेलो हता. वली त्यां इशान दिशामां चोखुणो, तथा सात नूमिवालो, मेहेल, तेणे नानिराजामाटे बनाव्यो. वली पूर्वदिशामां सातनूमिवालो, सर्व बाजुथी सरखो श्रने गोल, मेदेल तेणे जरतने माटे बनाव्यो. वल। अग्नि खुणामां तेणे बाहुबलिमाटे पण जरतना जेवोज मेहेल बनाव्यो, श्रने बीजा कुमारोनां मेहेलो तेणे ते बन्नेनी वच्चे बनाव्या, अने तेउनी वच्चे एकवीस नूमिवालो, तथा त्रैलोक्यविन्रम नामनो मेहेल, तेणे श्री रुषलदेव प्रनु माटे रत्नोनी श्रेणिधी बनाव्यो, ते मेहेल सर्व बाजुयेथी सोनानां कलशोथी वीटायेलो, अने चलकती धजानां मीशथी जाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः नाचतोज होय नहीं, तेम शोजतो हतो. वली ते मेहेल एक हजार ने श्राप मणिनी जालीउथी, ते जाणे तेटलां मुखोथी प्रजुनो यश बोलतो होय नहीं, तेम शोजतो हतो. वली ते नगरीमां कल्पवृक्षोथी विंटायेली, किल्लावाली, अने पताकाऊनी श्रेणिने धारण करनारी, हाथी अने घोडानी शाला हती. वली त्यां प्रजुनी कृपाथी मनोहर रत्नमय सुधर्मा सजा सरखी, सर्वप्रना नामनी सना थ. वली त्यां पंच वर्णवाली कांतिथी आकाशने शोलावनारी मणिनां तोरणोनी श्रेणि चारे दिशामां शोजती हती. वली त्यां नगरीनी वच्चे कुबेरे, एक हजार ने श्राप मणिनां बिंबोथी शोजतुं चार गाउ उंचुं, मणि रत्न अने सुवर्णमय, नाना प्रकारनी नूमि अने जरुखावालु श्रीषजदेव प्रजुनुं मंदिर बनाव्यु. वली त्यां तेणे सामंत, मंडलिक विगेरेनां नंदावर्तादिक मनोहर मेहेलो बनाव्या. वली त्यां तेणे, ध्वजानां श्रग्र नागथी खेदित करेल , सूर्यनां घोडा जेणे, एवां उंचां एक हजारने श्राप जिनेश्वर प्रजुनां मंदिरो बनाव्यां; ते मंदिरो चोवटाउँमां बांधेला हतां, तेथी तेपरनां सुवर्ण कलशो अत्यंत शोजता हता. तेणे कौबेरी दिशामां मेरुसरखा उंचा, तथा सुवर्ण अने रत्नमय, श्रने धजावाला वेपारीजनां मेहेलो बनाव्या. दक्षिण दिशामां विविध प्रकारनां क्षत्रिनां मेहेलो थया, अने जाणे तेमां रहेनाराऊनां तेजोज होय नहीं, तेम त्यां शस्त्रशाला थ. तेवीज रीते चारे दिशामां देवविमान सरखी उत्तम शोजावाला, नगरनां लोकोनां क्रोडो गमे मेहेलो त्यां शोनवा लाग्या. वली त्यां किहानी बहार सामान्य कारिगरोनां चारे दशाउँमां, सर्व धनथी जरपूर क्रोडो घरो थयां. वली दक्षिण अने प. श्चिम दिशामां एक जोंधी मांडीने त्रण नूमिसुधि उंचां कारु लोकोनां घणां घरो थयां. एवी रीते एक रात्रि दिवसमां धनदे ते नगरी बनावी, तथा तेमां सुवर्ण, रत्न, धान्य, वस्त्र अने आनूषणो तेणे बनाव्यां. वली तेज रात्रि दिवसमां तेणे तलावो, वावो, कुवा, देवालयो, तथा बीजुं सघटुं बनाव्यु.वली त्यां तेणे चारे दिशामा सिझार्थ, श्रीनिवास, पुष्पाकर तथा नंदन अने बीजां पण अनेक वनो बनाव्यां. ते दरेक वन प्रते जिनेश्वर प्रजुनां सुवर्णमय चैत्यो शोजतां हतां, ते वृदोथीपण, पवनें करीनेलावेलां पुष्पोनी पंक्तिथी पूजातां हता. ते नगरीनी पूर्व दिशाए अष्टापद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ शत्रुजय माहात्म्य. नामनो, दक्षिणमां घणोज उंचो महाशैल नामनो, पश्चिममां सूरशैल नामनो, अने उत्तर दिशामा उदयाचल नामनो पर्वत हतो. एवी रीते त्यां कल्पवृदोनी श्रेणिउथी शोलता, मणि अने रत्नोनी खाणोवाला, तथा जिनमंदिरोथी पवित्र पर्वतो हता. एवी रीते इंजनी आज्ञाथी कुबेरे रत्नमय, तथा जेनुं बीजुं नाम अयोध्या बे, एवी इंजनी नगरी सरखी विनीता नगरी बनावी; ते नगरीनां लोको देव, गुरु तथा धर्ममां आदरवाला, स्थिरता श्रादिक गुणोवाला, तथा सत्य, पवित्रता अने दयावाला, तेमज कलानां समूहोमां कुशल, सत्संगमा रक्त, निर्मल शांत जाववाला, तथा महा उदयवाला हता. ते नगरीमां सुर अने असुरोथी नमस्कार करायेला अने जगतनो व्यवहार करनारा, एवा षनदेव प्रजु जगतने रंजन करता थका राज्य करता हता. वली त्यां अयोध्यानी आसपास चारे बा. जुए नगरो हता, अने ते प्रजुए बनावेली शिल्पकलाथी तेमनाज वच. नथी बनावेला हता. प्रजुए वीस लाख पूर्वो कुमारपणामां गाव्यां, अने पली त्रण जगतनो ज़हार करवाने तेमणे राज्य स्थिति बांधी. तेमणे राज्यमा सात अंगो बांध्यां, वैरीनो नाश करवामां गुणोनी रचना करी, स्थिति माटे पांच करणो कर्यां, लश्करनां चार अंगो कां, फल ग्रहण करवामां त्रण शक्ति करी, बे न्याय कर्या, अने एक इत्र कयु. श्रा प्रजुनी पेहेलां वरसाद, अग्नि, विद्या, कला के कोर पण व्यवहार नहोतो. वली ते प्रजुनी आज्ञाथी पृथ्वीपर वरसाद वृष्टि करवा लाग्यो, पृथ्वी बीजादिकने धारण करवा लागी, तथा अग्नि तेने पकाववा लाग्यो. वली ते प्रजुए खेतीकारो, चाकरो, कुंजारो, वेपारी, उपरी, द. त्री, सुतार, कारीगरो, सोनी, चिताराज,तथा मणीयार विगेरे बनाव्या. वली तेमणे मोटा पुत्र नरतने बहोतेर कला शिखवी, तथा जरते बीजा जाउने शिखावी; वली प्रजुए बाहुलिने हाथी, घोडा, स्त्री तथा पुरुषनां लक्षणो शिखव्यां, तथा सुंदरीने गणितशास्त्र शिखव्यु; वली तेमणे जमणा हाथथी, ब्राह्मीने ज्योतिरूप तथा जगतने हितकारी अढार लीपीउ शिखावी; एवी रीते तेमणे जगतनी स्थिति बनावीने, सघला लोकोने जुदा जुदा कार्योमा जोड्या. पडी देवोथी स्तुति करायेला ते प्रजु, कोश वखते अद्भूत बगीचामां, तो कोश् वखते समुज्ने कांठे, तो कोश वखते क्रि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः डानां पर्वतोमां, तो को वखते चित्रशालामां, तो कोश् वखते स्त्रीउनी रासलीला जोवामां, तो कोइ को वखते किन्नरीउनां मनोहर गीतो सांजलवामां, तो कोई वखते इंजे हुकम करेली देवांगनाये करेलां नाटकमां तत्पर थश्ने पोतानां कर्मोनी निर्जरा करवा लाग्या. एवी रीते पूर्व ही. पमां, पूर्व क्षेत्रमा, पूर्व दिशामां अने पूर्वनी नगरीमां त्रेसठ लाख पूर्वोसुधि प्रजुए राज्य कर्यु. एक दहाडोप्रनु लजासहित होय नहीं जेम तेम आरामक्रीडा करता हता, ते वखते पोतानां कार्यमां तत्पर एवा लोकांतिक देवोये आवीने नमस्कार करी जय जय शब्द करीने प्रजुने कां के, हे जगवन् ! मुक्तिनो मार्ग देखाडो ? एम कहीने ते देवो गया बाद प्रजुये क्रीडा तजीने, पूर्वनां जिनोनी स्थितिने स्मरण करतां थकां, विरक्त थश्ने, मोटा पुत्रने न्याय युक्त तथा अमृत सरखां वचनोथी शांत करीने, राज्यपर बेसाड्यो; तथा बाहुबलि प्रमुख बीजा पुत्रोने पण यथोचित पोतपोतानां नामनां देशो वेहेंची थाप्या. एवी रीते राज्यनो नार तजीने प्रजु जगतने करज रहित करनारं वर्षिदान देवा लाग्या. वली इंजनी श्राशाथी धनदे, चोवटा श्रादिकमा रहेढुं नधणीथातुं धन प्रजुने पुर्यु. एवी रीते प्रनु हमेशां सनामां श्रावीने, याचकोने सुवर्ण, रत्न तथा धनादिक तेजेनी श्छा प्रमाणे श्रापवा लाग्या; अने तेम करीने दिनोदयथी मांडीने जोजन वखत सुधि प्रनु एक करोडने श्राप लाख सो. नैयानुं दान देता हता. एवी रीते प्रजुए एक वर्षमा त्रणसो अव्यासि क्रोड ने एंसी लाख सोनैयानुं दान थाप्यु; त्यारथी मांडीने सर्व प्राणीउँने हितकारी दानधर्म चाल्यो; केम के, जेम थरिहंत प्रनु प्रवर्ते , तेमज लोको पण प्रवर्ते बे. हवे चैत्रवदी बाग्मने दिवसे, चंड उत्तराषाढा नक्षत्रप्रते श्रावते ते, पाबले पहोरे, देवोथी पूजाएला प्रजुये, कब, महाकछादिक चार हजार राजाऊनी साथे शकटोद्यानमां दीक्षा लीधी.ते वखते संज्ञी प्राणीनां मननां पर्यायने सूचवनालं, प्रजुने चोथु मनःपर्यय झान थयु. जे प्रजु पूर्वे राग, द्वेष, मद,अजिमान श्रादिक शत्रुथी श्लिष्ट थएला हता, तथा तेजनो नाश करवा माटे ते पृथ्वीतल पर उपाय सहित ज्रमण करता हता, एवा प्रनु नाशिकाना श्रय नागपर बन्ने थांखो राखीने, तथा सघली इंजिउने वश करीने, जाणे मनमां कंक विचार कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ច។ शत्रुजय माहात्म्य. ता होय नहीं, तेम ते वखते देखावा लाग्या. पली सर्व प्राणीउनी दयाथी र्यासमिति पूर्वक, पोतानां शरीरमां पण निरीह थया थका प्रजु पृथ्वीपर विहार करवा लाग्या. हवे ज्यां वैरी पण उपजव नथी करता, एवी अयोध्या नगरीमा पुएयमां रक्त नरत राजा पोतानां पितानुं राज्य चलावता हता. ते जरत राजा सूर्यनी पेठे, तेजनां समूह सरखा, हमेशां उदयमां स्थिर, वैरीरुपी अंधकारने हरनारा, तथा कलावानोने ( चंडने) धननां (तेजनां) दे. नारा हता; वली ते समुनी पेठे गंजीर, सिंहनी पेठे शूरा, चंडनी पेठे कलावान, वरसादनी पेठे जगतनां जीवन तुल्य, कल्पवृदनी पेठे दानेश्वरी, कलहंसनी पेठे विवेकी, चैत्यनी पेठे उंचा, तथा कोयलनी पेठे मधुर स्वरवाला हता, वली पवननां मोटा मोजांउथी जेम मेरु, तेम ते शत्रुथी श्रचल, तथा प्रजातनी पेठे मित्रनां (सूर्यनां) उदयमां तत्पर, अने धनने वधारनारा हता. वली ते शेषनागनी पेठे उत्तम जोगोथी (फणाउंथी) लालित, पृथ्वीनां नारने घरनारा, नंदनवननी पेठे हमेशां पुष्पोनी श्रेणि सहित, हारनी पेठे गुणो सहित, ( दोरीसहित ) तथा मोतीनी पेठे उत्तम व्रतने (गोलाकारने ) धरनारा, अने पृथ्वीमंडलने शोलावनारा हता. जेनो प्रतापरुपी सूर्य जगतने दोषर. हित (रात्रिरहित) करतो थको, लक्ष्मीना क्रीडारुप कलाधरने (चंडने) उत्पन्न करतो हतो. वली तेनां प्रतापरुपी सूर्यथी त्रास पामीने सूर्य श्राकाशगामी थयो, अने ते अभ्यासथी तेने हजुसुधि पण स्थान मलतुं नथी. सूर्यादिकोनो तो “ तापज” होय डे, पण जरतनो तो "प्रताप” हतो, केम के ते प्रतापथी बलेला शत्रुरुपी वृदो फरीने उगतांज नहोतां. वली ते जरत राजा न्यायी, विनयमां आसक्त, मनोहर दृष्टिवालो, विचारवंत, कलावान, अने दोषने नहीं धारण करनारो हतो. __ हवे सर्व प्राणी प्रते हीतकारी एवा प्रजु, युगमात्र पृथ्वीपर दृष्टि करता थका, कर्मथी प्रेराश्ने एक देशथी बीजे देश विहार करवा लाग्या. वली ते वखते लोको मुग्ध होवाथी, निरवद्य थाहारने जाणता नहोता, अने तेथी प्रनु एक वर्षसुधि आहार विनां रह्या, केमके, लोको मुग्धपणाथी तेमने रथ, घोडा, हाथी, कन्या, सुवर्ण तथा वस्त्रो देवा लाग्या; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः पण समतावान प्रजुए पोतानुं राज्य, सैन्य जंडार विगेरे तज्यां दतां, तेथी तेमणे तेमांथी कंं पण लीधुं नहीं. एवी रीते श्राहार रहित एक वर्ष गयाबाद प्रभु राजा ने देवोथी वींटाया थका गजपुर नगर प्रते श्राव्या. त्यां कल्याणनां भंडाररुप बाहुबलिनां पौत्र श्रेयांसे प्रभुने जोइने पोतानां पूर्व जन्मोनी यादगीरी करी. ते वखते जातिस्मरण ज्ञानथी श्रेयांसे प्रजुनो ने पोतानो संबंध जाणीने, अनवद्य आहारनुं दान, "" पात्रो विचार करवा मांड्यो; तेज वखते निर्मल सेलडीनां रसने श्रावेलो जाणीने, तथा प्रभुने पात्ररुप जाणीने, ते आपवानी तेणे श्वा करी, छाने ते प्रजुने कह्युं के, हे स्वामी ! श्रा रस निरवद्य बे, माटे कृपा करीने आप ते ग्रहण करो ? एम कहीने तेणे प्रजुनां हाथमां ते रस रेड्यो. प्रजुनां हाथमा रहेलो घणो एवो पण ते रस शिखाने धारण करवा लाग्यो; 'पण नीचे पड्यो नहीं; केम के जिनने जजनारार्जुनी नीची गति यती नथी. ते वखते जगतने जाणनारा प्रजुए अमृत रस सरखा ते रसने पीने, तपथी तपेली पोतानी साते धातुर्जने शांत करी. एवी रीतें प्रजुनां पारणा समये सुगंधि पाणी, पुष्प श्रने सुवर्णनी वृष्टि, देवकुंडु जि, तथा चेलोनूय एवी रीते पांच दीव्यो प्रगट थयां मांगक क्तिवाला श्रेयांसे, " प्रजुनां पारणानी भूमिने कोइ स्पर्श न करे, तेटला माटे त्यां रत्ननी पीठीका बनावी. वैसाक सुदी त्रीजने दिवसे प्रजुने या दान मल्युं, त्यारथी अखात्री जनुं पर्व आजदन सुधि चाले बे. जेम डुनीयामां प्रभुथी जगतव्यवहार चालु थयो, तेम श्रेयांसश्री सत्पात्र दान चालु थयुं. एवी रीते श्रेयांसनो उद्धार करीने, जगतनो उद्धार करनारा बद्मस्थ प्रभु, कर्मनां नाश माटे पृथ्वी पर विहार करवा लाग्या. अहीं जरत राजा पण धर्मानुशासनथी राज्यने पालवा लाग्या, तथा दिवसे दिवसे पोतानां कुलने दीपावता थका, अद्भूत लक्ष्मीवाला थया. वली ते जरत राजा पितानां चरण कमलनी सेवामां रसिक थया थका, पितानी माता मरुदेवाने हमेशां नमस्कार करता. एवी रीते राज्य पालतां थकां एक हजार वर्षो गया बाद, जक्तिथी हमेशां जेनी उपासना करेली छे, एवी मरुदेवा माताने नमस्कार करवा माटे जरत राजा प्रजातमां गया. हमेशां पोतानां पुत्रनां स्मरणथी करता श्रसुथी श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ՇԱ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. कुल थएला ते मरुदेवा माताने, तेणे पोतानां नाम पूर्वक नक्तिश्री नमस्कार को. ते वखते राजाउंना खामी तथा कमल सरखी आंखोवाला जरत महाराजे, मरनी ब्रांतिने धरनारा एवा पोतानां केशोथी तेणीनां चरणकमलोनुं प्रमार्जन कर्यु. ते वखते पोतानां नेत्रोनां आंसुजेने जरा बुडीने, तथा मननां खेदने बहार कहाडीने मरुदेवा माता जरतने कहेवा लाग्यां के, हे वत्स ! तुं जो ? मारो पुत्र, मने, तने अने बीजा पुत्रोने पण तजीने हरिणोनो साथी थएलो बे. वली ते दुधा, तृषा, टाढ, अने तडकानी पीडाथी क्षीण शरीरवालो थश्ने, हमेशां रातदहाडो वायुनी पेठे एक वनमांथी बीजा वनमां जमे बे. वली चंन सरखं शीतल, अने मोती तथा रत्नोथी जडेलु एवं तेनुं बत्र क्या ? अने दावानल सरखं प्रचंड आ सूर्यमंडल क्यां ? वली किन्नरीउनां गीतोनां ऊंकारवालुं मनोहर संगीत क्यां ? अने वननी अंदर चालवाथी संजलाता मछरोनां नणकारा क्या ? वली गजेंउपर चडीने तेमनुं नगरमां चालबुं क्यां ? अने कांकरा तथा पबरोवाला पर्वतोमा तेमनुं जमवू क्या ? जेने मृयु नथी आवतुं एवी हुँ, पुत्रनां श्रावी रीतनां फुःखनां समूहने सांजलवाथी पण मरती नथी, माटे लोकनिंदित एवा आ मारा जीवतरने धिक्कार !! वली राजसुखमां तथा जोगविलासमां रक्त 'थयेलो तुं, वनमां जमता मारा पुत्रनी कंई संजाल पण पुबतो नथी!! एवी रीते दीन वाणीवाली, तथा अश्रु सहित आंखोवाली पोतानी दादीने, जरा हसवाथी स्फुरायमान थएल डे होठ जेनां, एवा नरत महाराज कहेवा लाग्या के, हे माता! त्रण लोकनां खामी, धीर, अने गंजीर एवा पुत्रने तमो उत्पन्न करनारा बो, माटे एवी रीतर्नु कायरपणावालुं वचन तमो फरी फरीने बोलो नहीं. वली हे माता! जयंकर एवा श्रा संसाररुपी समुजमां शिला सरखा अमो तातनुं रक्षण करवाने केम समर्थ थ शकीयें ? तात तो मोदनी श्बावाला बे, अने ते क्षणिक संसार सुखने दूर करवाने पोते उत्तम तप तपे . वली इंसादिक देवो पण चाकरोनी पेठे तेमनी पासे हाजर रहे बे, एवा ते प्रजनुं माराजेवा केम रक्षण करी शके ? वली हे माता ! त्रणे लोकनां अधिपति एवा ते प्र. जुनी तमो ज्यारे लदमी जोशो,त्यारे तमोने तेमनां तपनुं सत्य फल ज. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B तृतीयःसर्गः णाशे. एवीरीते जरत महाराज मरुदेवा माता साथे जेटलामां वात करे बे, तेटलामां को पोली नक्तिपूर्वक हाथ जोडीने, तथा पृथ्वीपर मस्तक नमावीने तेमने कहेवा लाग्यो के, हे खामि ! यमक अने शमक नामनां बे पुरुषो आपने कंज्ञक कहेवा माटे आव्या बे, अने ते बारणे उना . पली जरत माहाराजे तेने अज्ञा आपवाथी पोलीथाए तेने त्यां प्रवेश कराव्यो, त्यारे ते पण हर्षथी “जय जय" शब्द करता त्यां श्राव्या, तथा तेउमाथी शमक नमस्कार करीने बोल्यो के, हे देव ! ढुं वधामणी थापुं हुं के, पिताजीने केवलझान उत्पन्न थयु! वली पुरीमताल नामनां नगर पासे शकटानन नामनां वनमां, ते त्रण जगतनां प्रजुनुं खोए समवसरण बनाव्यु बे; तथा त्यां सर्व दिशाउँमाथी पुरुषो, स्त्री, देवो भने देवी, पोतानी रुधिथी स्पर्धा करता थका श्राव्या . पड़ी यमक पण नमस्कार करीने, हर्षयुक्त थयो थको उंचे स्वरे कदवा लाग्यो के हे खामि ! हुँ पण वधामणी आपुं हुं के, स्फुरायमान प्रजाए करीने देदीप्यमान सूर्यना बिंबनी पेठे उज्ज्वल, हजार श्रारावालु, तथा स्फुलिंगोनी श्रेणिथी शोनितुं अने देवाधिष्ठित चक्ररत्न थापणी शस्त्रशालामां उत्पन्न थयु . जरत राजाये ते सांजलीने ते बन्नेने उचित दान आपी विसर्जन कर्या, तथा पोते श्रवचनीय आनंद पाम्या. पनी तेनुं चित्त हिंचोला खावा लाग्यु के,पेहेलां मारे तातनां केवलज्ञाननो महोत्सव करवो, के चक्ररत्ननो महोत्सव करवो? एम विचारतां बेवटे तेणे निश्चय कर्यो के, अहो! जगतने अनयदान देनारा तात क्या ? अने जगतने जय आपनारूं आ चक्र क्यां? माटे आटलो वखत जे में विचार कर्यो, ते फोकट कों; तेथी हवे मारे प्रथम प्रजुनां केवलज्ञाननी उत्पत्तिनो महोत्सव करवो. एम विचारि तेणे मरुदेवा माताने विनंति करी के, हे माता! तमो जे कहो बो के, मारो पुत्र हमेशां वनमां जमीने, दुधा, तृषा, ताप आदिकधी पीडित थश्ने उःख जोगवे बे; पण हवे सुरअसुरोथी सेवित, एवा तमारा पुत्रनी, त्रणे जगतने आश्चर्य करनारी लक्ष्मीने जोश्ने तेनी तपस्यानुं फल जुलं ? एम कहीने, तेणीनी अनुज्ञापूर्वक ते वाक्यथी हर्षित थएलां मरुदेवा माताने, विद्वानोमां शिरोमणि एवा जरत माहाराजे हाथीपर चडाव्यां; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GG शत्रुंजय माहात्म्य. पढी ते सऊ करेला घोडा, हाथी, रथ, तथा पायदलसहित त्यांची चाल - वा लाग्यो. सुवर्ण, तथा माणिक्यनां उलसायमान यतां किरणोथी विचित्र थयेलुं छाने कोडो गमे शस्त्रोधी चलकतुं यएलुं ते लश्कर विजलीनां चमने करावनारुं हतुं वली विविध प्रकारनां उत्सवोमां उत्साहवाला नगरनां लोकोथी वटायेलो ते जरत राजा प्रजुने वांदवा माटे उद्यमवंत यो को मरुदेवा मातासहित चालवा लाग्यो. ते वखते "हुं पेहेलां प्रजुने बांड, हुं पेलां प्रजुने बांडुं" एवी रीते केटलाको गाडी अगाडी जवा लाग्या. वली ते वखते प्रजुपासे जनारा लोकोने श्रमार्ग पण मार्गरूप थयो; अने वा जतिवंताने श्रागल जतां मोक्ष मार्ग पण मलशे. ते वखते पिता पुत्रनी, जाइ जाइनी, शेठ चाकरनी के चाकर शेठनी राह जोता नहोता. एवी रीते दीनतारहित सैन्योथी तथा वेगयुक्त घोडाउथी जतां थकां जरत माहाराजे गाडी अरिहंतपणाने सूचवनारो रत्नध्वज जोयो. त्यां त्रण गढोमां रहेलां रत्नोनी चलाचल कांतिनां किरणोथी, तेने धर्मरूपी सूर्यनो उदय करनारा प्रजातनी चांति थइ पढी त्यां जरत माहाराजे मरुदेवा माताने धुंके, दे माता ! श्र श्रगाडी रहेला प्रजुनां समवसरणने तमो जु ? ते समवसरण त्रण लोकोमां रहेनारा देवोये रत्नोनी श्रेणिउथी बनाव्यं बे, अने उबलता किरणोनां समूहोथी ते सूर्योनी श्रेणि सरखं सुंदर लागे बे. वली या बाजुए सेवा माटे श्रावेला देवोनो, सांजलनारानां श्रवणोने प्रिय लागतो " जय जय " शब्द संजलाय बे. वली या बा. जुए पांच जातिनां रत्नोनी कांतिरूपी यांगली वालो, प्रजुने उलखावनारो, धर्मेज पोतानो हाथ उंचो कर्यो होय नही, तेवो या रत्नध्वज शोजे बे, वली या बाजु जाणे तातना गुणोनेज कहेतो होय नहीं, एवो नवा शब्दोनां रंगवाल अद्भुत देवकुंडुनि संजलाय ते. वली प्रजुनां गुणो थीज होय नहीं, तेम मांजरोथी पिंजर थएलो श्रा अशोक वृक्ष, पह्न वानां समूहोथी जाणे नाचतो होय नहीं, तेम देखाय बे. ते सांजलीने मरुदेवा मातानां, दुःखाशुथी उत्पन्न थएलां श्रांखोनां पडलो हर्षा थी दूर यां. ते वखते यानंदित थएला देवोथी कराती पोतानां पुत्रनी स्तुति जेम जेम ते सांजलतां गयां, तेम तेम ते अत्यंत जलसायमान थयां सर्व श्रतिशयोथी संपूर्ण, तथा जिनरूप एवं पोतानां पुत्रने प्रेमथी ध्यावतां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः नए थकां मरुदेवा माता तन्मयपणाने पाम्यां. पढी संसार संबंधि व्यापारने जुली जश्ने, प्रजुने चिंतवतां थकां ते दणवारमां जिनमय थयां; वली ते वखते हृदयमां, दृष्टिमां, आगल, पडखे, पाडल, वचनमां अने सर्व जगाए मोद सुखना कारणरूप जिननेज ते जोवा लाग्यां पली कर्मोनो क्षय करनारी क्षपकश्रेणिपर चडीने, नानाश्रुतविचार, एकश्रुत विचार, सूक्ष्मक्रिया, समुछिन्न क्रिया तथा अनुक्रमे ते शुक्ल ध्यानने पाम्यां. पली अंतकृत केवलीपणाथी कर्मनो क्षय करी केवलोत्पत्ति समयेज मरुदेवा माता मोदे गयां. एवी रीते पुण्य कर्याविना पण, जे माणस स्नेहथी अं. तकाले अरिहंत प्रजुनु स्मरण करे डे, ते माणस श्रा मरुदेवा मातानी पेठे शिवगामी थाय . हवे ते वखते इंजोये समवसरणमांथी आवीने मरुदेवा मातानां शरीरनो संस्कार करीने, तेने क्षीरसमुअमां पधराव्यु;तथा ते जंचे खरे कहेवा लाग्या के, या अवसर्पिणी कालमां था मरुदेवा माता प्रथम केवली थश्ने मोदे गयां (सिक थयां.) एवी रीतनी उद्घोषणा करीने, देवो, बांसुनां जलथी जीजाएला जरतने अगाडी करीने प्रजुपासे लेश जवा लाग्या. त्यां जरत राजाए प्रनुनी लक्ष्मी जोश्ने, तथा देवोनां कदेवाथी शोकनो त्याग कर्यो, अने प्रजुने नमवाने उत्सुक थयो. त्यां उत्र, चामर श्रादिक राजानां उपकरणो तजीने, नरत राजा उतरासंग वारीने प्रजुनी पासे जवा लाग्या. वली त्यां वावमां नाहीने, अने धोएलां वस्त्रो पेहेरीने, जरत महाराज पूर्वधारथी समवसरणमां दाखल थया. पडी तेणे विधिपूर्वक प्रजुने प्रदक्षिणा देश्ने, तथा पृथ्वीपर मस्तक नमावीने नमस्कार कर्यो; पड़ी नक्तिथी उलसायमान थती रोमराजीथी कंचुकित थएला, तथा प्रफुड़ित लोचनवाला, नरत राजा, हृदयमां नहीं माता हर्षने वाणीनां मिशथी बहार कहाडवा लाग्या के, हे स्वामी ! त्रणे लोकमां तिलक समान, जिनेश्वर, अनंत, अव्यक्त, चिडूप, तथा योगीश्वर एवा तमो प्रते नमस्कार था ? वली हे नाथ ! एकांत हितकारी एवा तमोए आ संसारमा अवतार लेश्ने, बहुरूपवालो जगतनी व्यवस्थानो मार्ग देखाड्यो. वली हे जगत्प्रजु ! अमोनेज आ नवरूपी समुअमांथी उझारवानी श्वाथी, तथा मोदमार्ग देखाडवा माटे तमोए संयम लीधुं ३. वली हे प्रनु ! तमोज था जगतनां ईश्वर, दयालु, अने प्राणीउने १२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए शत्रुजय माहात्म्य. शरणुं देवा लायक बगे. वली श्राप, पोतानी मेलेज अमोने तारवामां ततर थया बो, माटे हवे श्रापनी हुँ केटलीक याचना करूं ? एवी रीते प्रजुनी स्तुति करीने, जरत राजा, इंजने अगाडी करीने प्रजुनी पासे बेग, पड़ी तत्वने जाणनारा प्रनु पण एक योजनसुधि गमन करती, सर्व जापानां खरूपवाली, अने गंजीर वाणीथी क्वेशने नाश करनारी देशना देवा लाग्या. (धर्ममां प्रीति करवी, अने पापोथी यत्नपूर्वक विरक्त थर्गा; एवी रीतनो जेमां माणसो प्रते उपदेश होय, ते देशना कहेवाय बे.) जिनपूजा, सुगुरुनी सेवा, खाध्याय, निर्मल तप, दान, श्रने दया, एवी रीतनां उ कार्यो, हमेशां उत्तम गृहस्थीउने करवानां . वली माता पिता, ममत्व रहित गुरु, धर्मशास्त्र नणावनार, अजयदान देनार, अन्नपाणी देनार, तथा कला शिखवनार, एटलानां चरण कमलोनी से. वाथी पुण्य उपार्जन करवू. वली प्राणी प्रते दया, शुज पात्र प्रते दान, गरीबोनो उकार करवानी बुद्धि, अने यथोचित सर्व जनोप्रते उपकार, एवी रीतनो धर्म संसारथी तारनारो . वली झान, अजय, औषध, स्थान अने वस्त्रनुं दान, अरिहंत प्रनुनी पूजा, समतावंत मुनि ने नमः स्कार पोतानीज स्त्रीमां तृप्ति, तथा अन्य स्त्रीउथी विरक्तपणुं, ए सघलां पुरुषोने अक्षय मंडनरूप बे. वली चाडी, द्वेष, परधननी चोरी, जीवहिंसा, निंदा, रात्रिनोजन, तथा कन्यादिक मोटां जूठ, एटलांवाना वजवां, केम के, तेना सरखं बीजुं पाप नथी. वली पाप, तथा मरकी श्रादिकने हरनारांत्रण रत्नोने ग्रहण करवां; केम के, तेथी शुरू नावयुक्त थया थका संत पुरुषो त्रण नवोमांज सुखेथी मुक्ति सुख पामे . एवी रीते, मनोहर मोक्षरूपी फलने उत्पन्न करनारां, वचनरूपी पाणीने, जविकरूपी पृथ्वीमां वरसीने, प्रजुए उत्कृष्ट संपदा माटे त्रण रत्नरूपी (झान, दर्शन अने चारित्ररूपी) बीज त्यां वाव्यु. एवी रीतनी प्रजुनी पवित्र देशनाने श्रवणगोचर करीने, नरतनो पुत्र झषनसेन प्रजुने विनति करवा लाग्यो के, हे स्वामि ! आ जवरूपी अरण्यमां दिङ्मूढ चि. त्तथी जटकतां थकां अकस्मात सार्थपतिनी पेठे, पुण्योथी मने आपनो आजे मेलाप थयो ; अने तेथी थाप मने तारो ? जे राज्यमा आ राग आदिक शत्रु मारा पुण्यरूपी नंडारने लुंटी जाय , ते राज्यनुं विष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए तृतीयःसर्गः योथी विरक्त थएला मने हवे शुं प्रयोजन ठे? वली धनादिकनी लोलताथी आ जयंकर संसारसमुअमां जटकता बुद्धिवानो पण ( मछीमारो पण ) नाश, पुत्र श्रादिकनी जालमा फसा पडे बे; माटे हे जगवन् ! हवे श्राप मने शरणारूप बो, अने तेथी चारित्रदान देश माझं रक्षण करो ? नहींतर या विषयो फरी मने पोतानां सपाटामां लेशे. त्यारे प्र. जुए पण तेने जव्य जाणीने, चारित्र श्रापी तेनापर उपकार कयों; केम के सजानो हमेशां परनो उकार करनाराज होय बे. पली तेणे था जवरूपी तापनी शांतिमाटे प्रजुनां चरणारविंदो मस्तके धाँ, वली ते समये जरतनां बीजा चारसे पुत्रोए, तथा सातसे पौत्रोए पण चारित्र अं. गीकार कर्यु. वली ते वखते क्रोडो देवोथी प्रजुने सेवाता जोश्ने, नरतनां पुत्र मरीचीए पण दीदा लीधी; तथा उज्ज्वल शीलने धरनारी ब्राह्मीए पण बरतनी रजा लेश्ने ते वखते घणी राजकुमारी साथे दी. दा लीधी. वली ते वखते सुंदरीने पण व्रत ग्रहण करवानी श्छा हती, पण जरते विचार्यु के, प्रज्जुनां चतुर्विध संघमां था सुंदरी श्राविका थशे, एम विचारि तेणीने तेणे दीदा लेती अटकावी. वली ते वखते जरत महाराजे पण प्रज्जु सन्मुख सम्यक्त्व अंगीकार कर्यु, केम के, समतावंतोने पण नोगावली कर्म तो अवश्य लोगवज पडे . वली ते समये केटलाक विद्याधरो तथा मनुष्योए चारित्र लीधुं, केटलाकोए श्रावकवत अंगीकार कर्यां, तथा केटलाको जड़ परिणामने स्वाधिन थया. वली कब, महाकब शिवायनां अगाज तापस थएला राजार्जए पण प्रत्नां चरण समीपे श्रावीने, आनंदयुक्त व्रत अंगीकार कर्यु. पुंडरिक आदि साधु, ब्राह्मी आदिक साधवी, श्रेयांस श्रादिक श्रावको, तथा सुंदरी श्रादिक श्राविका, एवी रीते प्रजुए चतुर्विध संघनी जे स्थापना करी, ते आजदन सुधि पण मोजुद बे, केम के तेवा महान पुरुषोनी झार्नु उलंघन थ शकतुं नथी. एवी रीते तीर्थंकरोने पण माननीक, पुण्यवानोने पण पूजनीक, अने सुरासुरेंजोने पण सेवनीक एवो संघ हमेशां जय पामे . हवे प्रजुए जेम चतुर्विध संघनी स्थापना करी, तेम इंख, चक्री विगेरेए मलीने षनसेन आदिक चोरासी गणधरोनी प्रजुनी आज्ञा प्रमाणे स्थापना करी. महा बुद्धिवान ते गणधर महाराजोए प्रजु पासेथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए शत्रुजय मादात्म्य. त्रिपदी मेलवीने तुरत द्वादशांगीनी रचना करी; श्रने प्रजुनी कहेली तेज व्यवस्था आजे पण चाली आवे , केम के, अरिहंत प्रजुनी श्राज्ञानुं विवेकी माणस उद्धंघन करता नथी. पडी देव, गंधर्व, विद्याधर, तथा राजा प्रजुने नमस्कार करीने, तेमनी देशनानुं स्मरण करता थका पोतपोताने स्थानके गया. प्रजु पण नविक जीवोने बोध देता थका चोंत्रीश अतिशय सहित पृथ्वीतलपर विहार करवा लाग्या. एकज जगोए स्थिरता करवाथी परनो उपकार नहीं थक्ष शके, एवा हेतुथीज होय नहीं जेमतेम प्रजुए एकज जगोए स्थिति करी नहीं. हवे पुण्यशाली, तथा लोकोथी नमाएला जरत राजा पण मनोहर मेहेलोवाली अयो. ध्या नगरीमापरिवार सहित श्राव्या;तथा उलसाय मान वैनववाला चक्रने जोवानी श्छाथी ते शस्त्रशालामां गया, त्यां तेमणे सूर्यबिंबनी पेठे उललता किरणोनी श्रेणिथी शोलायुक्त थएबुं, तथा शस्त्रशालाने पण चलकाटयुक्त करतुं चक्ररत्न जोयुं, ते वखतेज तेमणे तेने पंचांग प्रणाम कस्यो, केम के, क्षत्रिने शस्त्र उत्कृष्ट देवरूप . पडी तेमणे पवित्र जलथी आनंदपूर्वक स्नान करीने, धोयेलां, सुगंधयुक्त करेला, तथा श्वेत वस्त्रो शरीरपर धारण कस्वां, अने शस्त्रशालामां आवी ते चक्र हाथमां ग्रहण कह्यु, अने जाणे वधारे चलकाटवालुं करता होय नही जेम तेम तेमणे बन्ने हस्तोथी तेनुं प्रमार्जन कझुं. पठी तेणे सहस्र आरावालुं ते चक्र सुवर्णनां सिंहासनपर स्थापन कस्तूं, अने तेम करीने ते उदयाचलनां शिखरपर रहेला सूर्यबिंबने याद करवा लाग्यो. पढी राजाये पो. तानांज हस्तथी निर्मल जलथी ते चक्रने स्नान कराव्यु, त्यारे समुनमांथी उबलता वडवानल सरखं ते शोजवा लाग्यु. पनी तेणे चंदन, अ. गर, कपुर, कस्तुरी, कुंकुम विगेरेधी तेनुं पूजन कमु. वली ते चक्र दशे दिशाउनु चक्रिपणुं तेमने श्रापशे, तेथी तेमणे पंच वर्णनां पुष्पोथी तेनुं पूजन कमु. वली ते चक्र तेमने मंगल करनारुं . तेथी तेमणे तेनी आगल अखंड चोखाथीअष्ट मंगलो चितस्यां; तेम हीरा, वैडुर्य, माणिक, मोती, कर्केतन श्रादिकथी तेमणे तेनी पासे स्वस्तिक कस्यो, वली तेमणे मंगलदीपकपूर्वक तेनी आरती उतारी. “कत्रिर्जना गुरुसमान, तथा प्रत्यक्ष देवरूप, एवा तमो प्रते नमस्कार था ?” एम कहीने जरत रा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः ए३ " जाए ते शस्त्राधिपतिने नमस्कार कस्यो. एवी रीते आठ दिवसोसुधि ये मनोहर नेटोपूर्वक तेनुं पूजन कर्यु. पठी एक हजार योथी धिष्ठित, दिव्य शक्तिवालुं, हजार थारार्जवालुं, महान् ज्वालाउंनी श्रेणिश्री लालित थयेलुं, गोलाकारवालुं श्राकाशमां मण करना ने दुष्ट दैत्य तथा शत्रुर्जनो नाश करनारुं ते चक्र जरतनां प्रतापनी पेठे दीपवा लाग्. पी ते चक्री जयस्नानमाटे मनुष्य ने देवोए बनावेला मणिमय सिंहासन पर पूर्वसन्मुख बेठा, ते वखते कोइक स्त्री, तेनां रूपथी मोहित थइने, मणिनां कुंनमांथी पडता जलने पोतानां कटाक्षोथी बेवडां करीने तेनो अभिषेक करवा लागी, वली कोइक मदोन्मत्त स्त्री तो पोतानां कुंज सरखां स्तनोनी बच्चे, तेवडाज ( स्तन जेवडाज) कलशने लेइने श्रनिषेक करवा लागी. वली ते वखते कोइक स्त्री तो पोतानां हस्तरूपी कमलमां कर्णिकासरखा कलशने लेइने भरत राजापर जल सींचवा लागी, ते वखते धवलध्वनिर्जनी साथे वाजिंत्रोनां नादो, ते मंडपने पूरीने दिशानां मूलमां मूर्छा पामवा लाग्या. एवी रीते जय जय शब्द पूर्वक जिषिक्त थयेला चक्री अधिक कांतिवाला थइने सूर्यबिंबनुं अनुकरण करवा लाग्या. सोनेरी कांतिवाला ते जरत महाराजाये ज्यारे सफेद वस्त्रो प यां, त्यारे ते मेखलासुधि शरदकतुनां वादलांची वीटायेला मेरुसरखा शोजवा लाग्या. दरेक अंगप्रते घणां श्राभूषणोथी नूषित ययेला, तथा पृथ्वीपर चालता ते जरत राजा जंगम कल्पवृक्ष सरखा शोजवा लाग्या. पढी जक्तिश्री प्रेराइने तेमणे, पुष्प, अक्षत, स्तुति यादिकथी प्रथम प्रभु आराधन कस्युं. पठी तपखीउने दान देने, जोजन करीने, तांबुल चावीने ते सजामां गया. त्यां चामरोथी वीजाता, तथा बथी छादित थला, ते जरत राजा, वर्षाकालमां ऊरणोवाला पर्वतसरखा शोजवा लाग्या. वली ते जरत राजा महा पराक्रमी, अने जक्तिवंत सोल हजार योथी वींटाया थका शोजता हता. हवे ते चक्र - युधशालामाथी निकलीने, प्रयाणने सूचवतुं यकुं श्राकाशमां पूर्वसन्मुख र. पी प्रजातमां सर्व शुभ लक्षणोथी खेंचेली बे, संपदा जेणे, तथा यश सरखा श्वेत हस्ती रत्नपर राजा चड्या अत्यंत गर्जना करतो ते हाथी, ते वखते मदनी धाराउंथी बीजा मेघ सरखो देखावा लाग्यो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए४ शत्रुजय माहात्म्य. आकाशने जाणे नवपल्लव करता होय नही जेम तेम उंचा हाथो करीने, ते वखते बंदिलोकोए जय जय शब्द को. वली ते वखते प्रयाणसमयनो उंछनिनाद थवा लाग्यो, अने तेथी 'सघली दिशा गाजवा लागी. वली ते वखते दोनित करेल , नुवननो मध्य नाग जेणे, एवो मांगलिक वाजानो नाद दूतनी पेठे सर्व दिशाउँमा रहेलां सैन्यने बोलाववा लाग्यो, पढी करतो डे मदनो समूह जेउँने एवा करणावाला पर्वतो सरखा हाथीउथी, तथा समुजनां मोजां सरखा अने चपल घोडाउँथी, तथा जंगम घर सरखा अने फणकार करता मोटा रथोथी, तथा वैरीउने विदारवामां शक्तिवाला पालाउँथी, वींटाया थका, तथा इंश सरखा पराक्रमवाला नरत राजा,सैन्यनां चालवाथी उडती रजोथी सूर्यने आबादित करता थका प्रथम पूर्व दिशा तरफ प्र. याण करवा लाग्या. त्यां श्रगाडीना नागमां सुषेण नामनां सेनापतिरत्न, श्रश्वरत्नपर चडीने, तथा हाथमां दंडरत्न वेश्ने चक्रनी पेठे चालवा लाग्या. विघ्ननां समूहनां नाश माटे देहधारी जाणे शांतिरत्नज होय नहीं, एवा पुरोहित रत्न नक्तिथी प्रजुने पूजीने चालवा लाग्या. वली जंगम दानशाला सरखा, तथा दरेक स्थानकप्रते क्षणवारमा सैन्य माटे दीव्य अन्न उत्पन्न करनार गृही रत्न पण चालवा लाग्या. वली विश्वकर्मा सरखा, तथा स्कंधावारादिक बनाववामां समर्थ वार्धकीरत्न पण त्यां चालवा लाग्या. वली सुरासुरोथी श्राश्रित थयेलां चर्मरत्न, खड्गरत्न, मणिरत्न तथा काकिणीरत्न पण चक्रिनी साथे चालवा लाग्यां. एवी रीते पृथ्वीनो स्वामी थश्ने पण को बीजामां तेणीने उत्कंठीत जाणवानां गुस्साथीज जाणे होय नहीं जेमतेम सैन्यना निर्घातोथी पृथ्वीने चलित करतो, तथा पर्वतोने पण चलायमान करतो थको ते राजा बलयुक्त लश्करसहित चालवा लाग्यो; तथा ते हमेशां चकनी पाउल चालीने एक योजन- प्रयाण करतो, अने शत्रुनां प्राणोने प्रयाण करावतो हतो. वली जे जगोये सैन्य पडाव नाखतुं, त्यां वार्धकी दाणवारमांज नगरनी पेठे श्रावास बनावतो. तेमां अयोध्यानी पेठेज चक्रिनो शिविर, चोवटा, वटा, शिल्पशाला, तथा, बजारनी श्रेणि थती. वली त्यां मार्गमां राजाउँ, हाथी, घोडा विगेरेनी नेटोसहित विनयथी नम्र थया थका, देवोथी सेवायेला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः - रतने श्रावीने नमता हता. एवी रीते सैन्यनां समूहनां मर्दनथी काश पातालने दोन पमाडता थका जरत राजा मागधतीर्थप्रते खाव्या. त्यांतेमणे पूर्व समुद्रने कांठे नव योजन पोहोलो, तथा बार योजन rial सैन्यनो पडाव नांख्यो. त्यां वार्धकीये अयोध्यानी पेठे सैन्यने माटे वासो बनाव्या, अने रत्नोनी श्रेणियी तेथे एक पौषधशाला पण बनावी. पठी राजा मां हस्ती समान ते जरत राजा पर्वतपरथी जेम केसरी सिंह, तथा उदयाचलथी जेम सूर्य तेम हाथीपरथी उतर्या; तथा पढी ते पोतानां कार्यमाटे पौषधशालामां ननुं दर्जनुं श्रासन पाथर्यु. तथा आभूषण, माला विगेरेनो त्याग करीने, छाने श्वेत वस्त्रो पेहेरीने, ते मागध देवना निमित्ते पौषध लीधो. तथा तेणे शुद्ध संथारापर बेसीने, सर्व सावद्यने तजीने, मुनिनी पेठे श्रहम तप कर्यो. पढी पौषध पूर्ण या बाद शरद तुनां वादलांमांथी जेम सूर्य, तेम पौषधशालामांथी ते अधिक कांतिवाल यो थको निकल्यो. पठी तेथे विधिपूर्वक स्नान करीने, तथा प्रजुने पूजीने क्रुद्र देवोनी प्रीति माटे बलिदान कयुं. पढी ते उबलती पताकावाला, दिव्य शस्त्रोनी श्रेणिथी शस्त्रशाला सरखा, घंटानां ऊंकारथी दशे दिशाउंमांथी लक्ष्मीने बोलावता, तथा चोकडांथी खेंचाल वे मुख जेनुं, छाने वैरीनां अहंकारनुं नक्षण करनारा, एवा उंचा घोडावाला रथमां ते बेठो पढी इंद्रनो जेम मातली, सूर्यनो जेम अरुण, तेम राजानां निप्रायने जाणनारो तेनो संगर नामे सारथी थयो. पढी फक्त दोरीनां चलावामात्रथीज उबलता घोडार्ड वेगयी राजाने पूर्वसमुssc ले गया. पढी कांठापर रहेलां वृक्षोनां पडतां पांदडांनां श्रवाजयी जलचर जीवोने त्रास होते बते, ते नानिसुधि रथ पाणीमां बुडे त्यांसुधि समुद्रमां गयो. घोडानां वायुथी वडवानलनी शंका करावता, एवा समुऊनां पाणीथी दोन पामेलुं, तथा मध्य जागमां धनदे श्राश्रय करेलु, घने श्रावमनां चंद्रसरखं तेणे धनुष्य चडाव्युं. पठी तेणे शत्रुनां प्राणोनां प्रयाणमाटे पटध्वनि सरखा, तथा धनुर्वेदनां बँकारसरखा, लवण समुद्रने दोन पमाडनार, तटपरनां पर्वतोने फाडनार, तथा जलचरोने त्रास यापनार एवो धनुष्यनो टंकार कर्यो. मंदराचलना चमणथी यता समुद्रनां शब्द सरखा निष्ठुर एवा ते धनुष्यनां टंकारने सांजलीने Jain Educationa International Ա For Personal and Private Use Only . Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए६ शत्रुजय मादात्म्य. त्रणे जगतनां मनो ते वखते दोजायमान थयां. वली ते टंकारनां शब्दथी सूर्यनां घोडा पण जडकीने उन्मार्गप्रते जवा लाग्या, तेथी तेनां रथर्नु एक चक्र नांगी गयु. पली बिलमांथी जेम जयंकर सर्पने, तेम तेणे सुर अने असुरोने पण दोल पमाडनाहं बाण नाथामांथी कहाड्यु. पनी शत्रुनी पंक्तिमां जेम दंड, तेम तेणे पोतानां नामवालुं बाण दोरीपर च. डाव्यु. ते वखते बाणनां किरणोयें करीने वैरीरूपी तलावने शोषावता ते जरत राजा रथमां बेग थका सूर्यनी पेठे शोजवा लाग्या. पली नखनां किरणोथी उज्ज्वल थयेला ते बाणने तेणे कर्णसुधि खेंच्यु. पड़ी एक पगने खेंचीने उन्नेला, तथा नाथांउरूपी पांखवाला, अने बाणनां श्रग्रजागरूपी तीदण चांचवाला, ते जरत राजा गरुडनी पेठे तर्क करावा लाग्या, ते वखते तेवा नरत राजाने जोश्ने समुज्ने एवी शंका थइ के, शुं श्रा मने सुकावी नाखशे ? के मने खेंची सेशे? पनी पूर्व दिशा, अने पूर्वाचलने दोनावनालं, तेम नागकुमार, देवो विगेरेथी आश्रित थयेलु,अने पर्वतोमां पण नहीं अटकतुं ते बाण चक्रीए बोड्युं. ते बाणने जो लवण ससुरु अत्यंत दोजायमान थयो, अने ते श्रन्यासने श्राजे पण ते चलायमान मोजांउथी याद करे . वली ते वखते जलमां रहेला पर्वतो पण ते बाणने जोश शंका करवा लाग्या के, शुं क्रोधथी फरीने इंजनां हाथमांथी वज श्रावे !!! पढी समुजनां जलने उबालतुं, तथा आकाशमां विजलीनां सरखं ते बाण बार योजन उलंगीने, मागधेशनां हृदयमां शल्यसर,थयुं थकुं तेनी सनामां जश्ने पड्युं तेनां पडवाथी थएला संघटनथी रत्ननां सिंहासनमांथी चारे बाजुए अग्मिनां तणखा निकलवा लाग्या; अने तेज तेनां क्रोधरूपी अग्निनां कारणरूप थया, अने तेनां राज्यरूपी वृक्षनां मूलमां अग्मिनी तुलना करवा लाग्या. वली ते बाणने जोश्ने ते क्षणवार तो दिङ्मूढ थयो, अने ते बाणनी पांखनां पवनथी तेनो चित्तरूपी दीपक वधारे बलवा लाग्यो. पडी नाशिकाने नचावतां थकां तेनी श्रांखो चणोठी सरखी लाल थक्ष, अने तेथी तेनुं क्रोधरूपी वृक्ष जाणे नवपद्धव थयुं होय नहीं, तेम देखावा लाग्यु. पड़ी तेणे त्रण प्रकारनां को. पने सूचवनारीत्रण वली कपालपर धारण करी, अने होग्ने स्फुरायमान करीने तेणे म्यानमांथी तलवार खेंची कहाडी. पठी ते पोताना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः कोपरूपी अग्निनी ज्वालानी श्रेणि सरखी, अने फेर तुल्य वाणी बोलवा लाग्यो के, अनिने हाथथी पकडवाने, दिग्गजोने पकडवाने, तथा शेषनागनां मस्तकपर रहेला मणिने हरवाने कोण उद्यमवंत थयेलो ? तेम अणिदार जालांथी पोतानी शांखमां खरज करवाने कोण श्छे ? तथा सिंहनी केशवालीने लेवाने कोण श्छे ? वली फरती श्ररघटमालामां पोतानो पग नाखवाने कोण उत्सुक थाय ? तेम था मारी सनामां कया कुबुझिये बाण फेंक्यु डे ? एम कहीने क्रोधयाम थयो थको, डाबा हाथथी वैरीनां कपोलने जेम तेम पोतानां सिंहासनने थाप मारीने, सर्पनी पेठे फुफाटा मारतो, तथा पोतानां अंगने मरडतो थको ते एकदम सिंहासनपरथी उठ्यो. ते वखते तेनो परिवार पण तेनी पेठेज कोपथी जाज्वव्यमान थश्ने उठ्यो; केमके किरणोनो समूह सूर्यनुं अनुकरण करेज जे. ते वखते केटलाको तो क्रोधरूपी वृदनां पदव सरखी तलवारो नचाववा लाग्या, अने केटलाको वैरीनी बातीमां शल्य सरखा नालां उबालवा लाग्या. केटलाको श्राकाशने फोडता होय नहीं जेम, तेम मुगरो उबालवा लाग्या, तथा केटलाको यमनी चुकुटी सरखा बाणो चडाववा लाग्या. केटलाको क्रोधनां गुडासरखा वज्रो धारण करवा लाग्या, तथा केटलाको आकाशने दांतावायूँ करता थका त्रिशूलो धारण करवा लाग्या. केटलाको आकाशपातालने फोडता थका जुजास्फोट करवा लाग्या, तथा केटलाको मेघनादनुं अनुकरण करता थका सिंहनाद करवा लाग्या. वली केटलाको कहेवा लाग्या के, घुवड जेम सूर्यप्रते, तेम श्रा को पुर्विनीत माणस श्रापणा स्वामीप्रते करे , माटे तेने पकडो अने मारो ? एवी रीते प्रलयकालमा दोलायमान थयेला समुपना नादनुं अनुकरण करनारो सघला परिवारनो एकी वखते कोलाहल थवा लाग्यो. एटलामां तेना प्रधाने ते बाण लेश्ने, क्रोधरूपी अग्निने शमववाने मंत्रसरखा ते परनां अदरो वांच्या के, “हे देवो ! जो तमारे राज्य अने जीवितनुं प्रयोजन होय, तो श्रमोने तमारूं सर्वख खाधिन करीने तमो अमारी सेवा करो ? एवी रीते तमोने सुर, असुर अने मनुष्यनां स्वामी श्री षनदेव प्रजुनां चक्रवर्ती नरतपुत्र आज्ञा करे .” एवी जीतनां श्रदरोने जोश्ने, तथा अवधिज्ञानश्री ते बाबत जाणीने, ते मंत्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एG शत्रुजय माहात्म्य. पोतानां खामीने ते बाण देखाडतो थको सर्वने कदेवा लाग्यो के, हे राजन्यो ! उतावल करनारा एवा तमोने धिकार !! केम के, तमो खामीनुं हित चिंतवता थका उलटुं श्रहित करवा लाग्या बो. आ जरत क्षेत्रमा प्रथम तीर्थकरनां पुत्र, तथा वैरीरूपी चंप्रते राहुसरखा था नरत चक्री थया . वली मेरूने तोली शकाय, पृथ्वीने उपाडी शकाय, अने लवण समुत्रने पण सुकावी शकाय, तोपण चक्रीने जीती शकाय नहीं. हवे ते इंज सरखो चंड आज्ञावालो चक्री तमारीपासेथी दंड मागे बे, अने सुरासुरोथी मान्य एवी तेनी श्राझा, तमोने मनाववानी तेनी श्छा . वली देवोने विषे सर्वज्ञ जेम जिनेश्वर प्रनु , तेम श्रा पण पोतानी शक्तिथी माणसोमां इंज सरखो चक्री थयेल बे. माटे न्यायी एवा तमोये था वखते तेनो विनय करवो लायक , अने पोताने कालरात्रि सरखी लडाश्नी तो वातज करवी नहीं. वली सूर्यप्रते जेम पतंगीलं तेम चक्रीप्रते वेष करनार था लोकोने पण आपे निवारवा. माटे हवे दंड देवानी वस्तु एकठी करो ? अने ते चक्रीने जइ नमस्कार करो? केम के गर्व ले ते, हृदयने बालतो थको सर्वखनो नाश करे जे. एवी रीतनी मंत्रीनी वाणी सांजलीने तथा ते अदरो जोश्ने, परमेष्टीना स्मरणथी जेम पाप, तेम ते मागधेशनो गुस्सो नरम पड्यो. पडी ते नेट तथा ते बाण लेश्ने मंत्रीनी साथे चक्रीपासे जश् विनती करवा लाग्यो के, हे स्वामि ! चातकने जेम वरसादनुं पाणी, तेम घणा कालथी उत्कंवित थयेला मने बाजे श्रापर्नु दर्शन थयुं, ते अत्यंत श्रेष्ट कार्य थयुं. वली श्राप अमारा खामी थवाथी अमो.आजे सनाथ थया, केमके सू. र्योदयथी कमलोनी संपदा वृद्धि पामे . वली सूर्यसमान को तेजस्वी नथी, पवन समान को गतिवालो नथी, अने मेरूसमान कोइ पर्वत नथी, तेम श्राप समान को पराक्रमी नथी. वली हे स्वामी ! प्रमादनां वशथी में श्रापनी तुरत सेवा करी नहीं, ते श्राप दमा करशो, केमके संत पुरूषो नमनारप्रते प्रीतिवाला होय . वली हवेथी हे नाथ ! हुँ आपनां चरणकमलप्रते ब्रमरसमान डं, तथा जिननी आशिषनी पेठे आपनी आज्ञा हुँ मस्तकपर चडावीश. वली हे स्वामी! आ. पनी श्राज्ञाथी हुँ जक्तिवालो थश्ने, पूर्व दिशानां था मागध ती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः ୯୯ र्थमां जयस्तंजनी पेठे रहीश वली हे स्वामी ! श्रा अमो आ राज्य, खाणो, लक्ष्मी विगेरे श्रापनांज बे, माटे आपनी इछा प्रमाणे सेवकने आज्ञा, फरमावो ? एटलुं कहीने तेणे चक्रीने हार, मुकुट, कुंडल, मागध तीर्थनुं पाणी, अने ते बाण प्राप्यां वली तेणे पूर्वे मेलवेलां रत्नो, मोती, मणी, ने बीजी पण दीव्य वस्तु पी. पढी जरते पण तेने इनाम श्रापीने, तथा पोतानां सेवकोमां गणीने रजा श्रापी पढी तेज मार्गे रथ पाटो वालीने, नरत राजा, इंद्र जेम देवलोकमां, तेम पाठा पोतानां सैन्यमां श्राव्या; तथा त्यां रथथी उतरीने, अने विधिपूर्वक स्नान करीने, परिवार सहित तेमणे श्रठमनुं पारणं कर्यु. पढी त्यां मागधेशने जाणे सामी नेटज श्रापता होय नहीं तेम तेम अगर म होत्सव कर्यो. पी ते चक्ररत्न तेजश्री सूर्यनी पेठे चलकतुं शकुं आका - शमां चालवा लाग्युं पढी उन्नतोने नमावता, नम्रोने स्थापन करता, पर्वतोने दलता, दीनोनो उद्धार करता, नेटो लेता, तथा चक्रनी पाटल हमेशां जोजनसुधि प्रयाण करता, ते चक्री दीव्य शक्ति पूर्वक दक्षिण समुद्र प्रते पहोंच्या. एलची, लविंग, चारोली, कंकोल, तथा सोपारीवाला ते दक्षिणसमुना कांठापरनां वनमां तेणे लश्करनो पडाव नाख्यो. त्यां पण गाउनी पेठे वार्धकीए लश्करमाटे श्रवासो तथा उत्तम पौपधशाला बनावी. त्यां वरदाम देवने मनमां धारीने, अर्थ साधनार, पौषध सहित अवमनो तप चक्रीए कर्यो; तथा पढी बलिनो विधि करीने सुवर्णनां रथपर चडी, धनुष्य लेइने ते समुद्रने कांठे गयो. त्यां रथथी नाजिसुधिनां पाणी मां जश्ने, तेणे धनुष्य खेंची दीव्य बाण बोड्यं. पठी सोनेरी वालुं ते बाण दिशानां जागने उज्ज्वल करतुं कुं, बार जोजन जश्ने तेनी सजामां पड्यं. एवी रीते अकस्मात बाणनां पडवाथी चंडघातथी जेम सर्प, तेम ते वरदाम गुस्से थयो, तथा समुद्रनी पेठे गाजवा लाग्यो; अने मत्सर लावीने परिवार सहित हथियारो raai करवा लाग्यो. पण पढी ते बाणनां अक्षरो जोइने, तथा चक्रीने श्रावेलो जाणीने, नेटो तथा ते बाण लेइने ते जरत पासे गयो ; पढी तेनां विनयथी जरत राजा संतोष पाम्या, केम के, मोटाउनो गुस्सो प्रशिपातसुध होय . पढी त्यां तेने पर्वतनी पेठे स्थापीने, चक्री, सिं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० शत्रुजय मादात्म्य. हनी पेठे संपूर्ण मानवाला थया थका तेज मार्गे पागा वड्या; तथा सैन्यमां श्रावीने श्रममनुं पारणुं करी पूर्वनी पेठेज तेमणे चक्ररत्ननो त्यां बहाश्महोत्सव कों. पनी वायु जेम फोतरांउने, तेम शत्रुनां समूहोने उडावता, तथा सर्वानी पेठे सुरासुरथी नमाता, मेघनी पेठे जगतने जीवितदान देनारा, ते चक्री चक्रनी पाबल चालता थका अनुक्रमे प. श्चिम समुज्ने तीरे श्राव्या. त्यां पण पूर्वनी पेठेज तपपूर्वक रथमां बेसी तेमणे बाण बोड्यू, अने ते प्रजासेशनी सनामां पड्यु. त्यां बाणनां श्रदरोथी क्रोधने समावीने, नेट सहित नरत पासे श्रावी, नमस्कार करी कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! मने अनाथने आजे पुण्यथीज आपy द. र्शन थयुं बे, अने तेथी हवे श्रापना हुकमथी हुं अहीं आपनो सामंत थश्ने रहीश. एम कहीने तेणे ते बाण मुकुट, कडां तथा कंदोरो जरतने थाप्यां. पडी तेना हाथमा रहेला सुवर्णकुंजमां रहेढुं पाणी जोश्ने रा. जाए कह्यु के, हे प्रजासेश! श्रा जीवनी पेठे तें सांचवेढुं शुं ? त्यारे प्रजासेश कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! तेनी कथा तमो सांजलो ? था सुराष्ट्र देशमां शत्रुजय नामर्नु तीर्थ डे; ते तीर्थ अनंत महिमावालुं, अनंत पुण्योनुं स्थानक, नाना प्रकारनां रत्न, औषधि, कुंड अने रसकुंपिकानी झझिवावु, तथा दर्शनथी, श्रवणथी, स्पर्शनथी अने कीर्तनथी पण पापोने हरनारं , अने ते दणवारमांज प्राणीउने खर्ग अने मोदनुं सुख श्रापे . वली तीर्थरूप एवां नगर, बगीचा, पर्वत, देश, नूमि विगेरेमां शत्रुजय समान त्रण लोकने पवित्र करनारं तीर्थ नथी. वली अन्य तीर्थोमां सेंकडो यात्राथी माणसोने जे पुण्य थाय , ते पुण्य श्रा शत्रुजयपर एक यात्राथीज थाय . ते तीर्थथी दक्षिण दिशामां, प्रना. विक जलथी जरेली, अने जिनचैत्योथी मंडित थएली शत्रुजयी ना. मनी नदी बे. विशेष प्रकारे तीर्थोथी संगत थएली था पवित्र शत्रुजयी नदी, गंगा, सिंधु थादिकनां पाणीथी पण अधिक फलने देनारी . प. वित्र तीर्थनी वेणी समान, तथा कमलोनां समूहथी शोजती आ शत्रुजयी नदी स्नान करनाराउनां सर्व पापोने जलना स्पर्शथी नाश करे . वली ते गंगानी पेठे अपूर्व पुण्यने उत्पन्न करती थकी, घणां होनां प्र. जाववाली तथा श्राश्चर्य करावनारी . वली तेनां शत्रुजयी, जाह्नवी, पुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः १०१ डरिकीणी, पापंकषा, तीर्थनूमि, हंसी विगेरे नामो . कदंब तथा पुंडरिक गिरिनी वच्चे, आ नदीमां महा प्रनाविक कमल नामनो हृद बे. श्रा हृदनी माटीनो, तेनांज जलथी पिंड करीने अांखे बांधवाथी अंधपणुं, पडल विगेरे रोगो नाश पामे . वली हे स्वामी ! तेनुं पाणी कांति, कीर्ति श्रने (शुज) गतिने देनारुं , तथा शाकिनी, नूत, वेताल, वायु, पित्त विगेरेनां दोषोने हरनारुं . वली तेथी थता उपसर्गोने ते पाणी स्पर्शमात्रथीज नाश करे बे; अने ते पाणीमां जीवनी उत्पत्ति थती नथी. वली हुँ ते पुंडरीक तीर्थप्रते हमेशां नमस्कार करवाने जलं डं, अने अहीं मारा घरमा रहेला जिनेश्वर प्रजुना स्नात्र माटे ते हृदमांथी जल लावू बुं. वली आ पाणी सघला शत्रुनां नाश माटे में राखेबुं बे, अने ते मने बहु प्रीय , माटे ते आपने श्रापवामाटे हुं लावेलो बुं; माटे तेने श्राप यत्नथी राखजो, केम के, ते था दिग्यात्रामा सर्व दोषोने हरनारूं . एवी रीतनुं तेनुं वचन सांजलीने स्पृहावाला थया थका जरत राजा, तेणेज ब. नावेला विमानमां बेसीने शत्रुजय पर्वते गया. त्यां शत्रुजयी नदीमां स्नान करीने, तथा ते उत्तम तीर्थनो स्पर्श करीने, फरीथी वेगवाला विमानथी पोतानां श्रावासप्रते श्राव्या. पड़ी तेमणे प्रीतीथी ते प्रजासेशने, ते स्थानकमां वृदनी पेठे फरीने स्थाप्यो. वली तेज वखते गृही. रत्ने, दीव्य रसवतीथी नरत महाराजने अमिनुं पारणुं कराव्यु. त्यां ते प्रजासेशने निमित्ते अगर महोत्सव करीने, सूर्यनी पाडल जेम तेज, तेम ते चक्रनी पाउल चालवा लाग्यो. पड़ी ते चक्रीए महासिंधुनां द. दिण कांगपर जश्ने, पूर्व सन्मुख लश्करनी पडाव नाख्यो. पडी चक्रीये त्यां ते सिंधु देवीनु मनमां ध्यान धरीने अमिनो तप कर्यो, अने तेथी चलायमान थता पवनथी जेम मोजां तेम तेणीतुं श्रासन कंपवा लाग्यु. पबी अवधिज्ञानथी तेणीए चक्रीने आवेला जाणीने, नेटो लेश्ने ते तेने पूजवा माटे गश्. त्यां चक्रीने आशिष देश्ने, तथा जय जय शब्द करीने थाकाशमां रही थकी कहेवा लागी के, हुं आपनी दासी ढुं श्रने मारे शुं करवू? तेनो आप हुकम फरमावो? एम कहीने महा तेजश्री तिरस्कार करेल ने अंधकारनो समूह जेजेए, एवा एक हजार ने श्राउ रत्ननां घ. डा तेणीए चक्रीने आप्या.वली तेणीए तेमने मनोहर रत्ननां सिंहासन, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ शत्रुजय माहात्म्य. मुकुट, बाजुबंध, कडां, हार, अने कोमल वस्त्रो पण आप्यां. पली चक्रीए पण ते सघलुं लेश्ने तेणीने विसर्जन करी, तथा अहमनुं पारणुं कर्यु. पनी त्यां पण तेणे सिंधुदेवीने निमित्ते अगश्महोत्सव कयों;अने पनी ते चक्ररत्ने देखाडेला मार्गप्रते जवा लाग्या. एवी रीते उत्तरपूर्व दिशातरफ जतां थकां अनुक्रमे ते चक्री वैताढ्य पर्वत प्रत्ते पहोंच्या. त्यां तेणे पचीश जो. जन उंचो, तथा पचाश जोजननां विस्तारवालो रूपानो वैताढ्य पर्वत जोयो. ते पर्वत जिनेश्वर प्रजुनां चैत्योथी, मोटां वनोथी, विद्याधर अने देवोनां स्थानकोथी, तलावोथी तथा लाखो गामोथी शोलतो हतो. त्यां दक्षिण बाजुए सैन्यनो पडाव नांखी, तेनां स्वामीने मनमां धरी तेणे श्र मनो तप को. त्यारे वैताढ्याजिकुमारनुंआसन कंपवा लाग्युं, अनेपबी तेणे अवधिज्ञानथी चक्रीने त्यां श्रावेला जाण्या. त्यारे ते चक्री पासे थावीने श्राकाशमां रही कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी! श्राप जय पामो ? हुँ आपनो किंकर बुं, माटे मने आज्ञा आपो? एम कहीने तेणे नक्तिथी चक्रीने मणि, रत्ननां थानूषणो, सिंहासनो तथा देवदूष्य वस्त्रो आप्यां, त्यारे ते सघलां लेश्ने तेणे तेने त्यां स्थाप्यो. पबीतेणे अहमनुं पारj करीने, ते देवने निमित्त त्यां अहाश्महोत्सव को. पनी त्यांथी चक्रनी पबाडी चालता थका चक्री तमिस्रा गुफाप्रते पहोंच्या, अने त्यां सैन्यनो पडाव नांख्यो. त्यां कृतमालने मनमां धारीने तेणे अमनो तप कयों, त्यारे तेनुं श्रासन कंपवा लाग्युं, अने तेथी तेणे त्यां चक्रीने आवेला जाण्या. पड़ी तेनी सेवा करवामाटे ते त्यां आव्यो, अने नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! हुं था गुफानां द्वारप्रते तमारा द्वारपालनी पेठे रह्यो बु. एम कहीने तेणे चक्रीने दीव्य आनूषणोनो समूह तथा स्त्रीने योग्य चौद अनोपम रत्नो, तेने योग्य पुष्पो, तथा दीव्य वस्त्रो थाप्यां. पली चक्रीए तेने त्यां स्थाप्या बाद ते पोताने स्थानके गयो,अने तेणे पण राजा सहित त्यां थमनुं पारणुं कर्यु. पठी चक्रीए पोतानां सेनापतिने हुकम कयों के, हवे तमो सिंधुसागर,वैताढ्यनी सीमा, तथा सिंधुनां निकुटने साधो? पड़ी सुषेणे पण अर्ध सैन्यसहित चर्मरत्नथी सिंधु नदी उतरीने, लीलामात्रमांज बर्बर,निव,सिंहल,टंकण,यवन,कालमुख,म्लेब,योनक विगेरेने जीत्या. पड़ी तेणे चक्री पासे श्रावीने तेने रत्नोनां समूहो, घोडा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः २०३ रथ तथा हाथी विगेरे सोंपी थाप्या. त्यां केटलाक दिवसो रहीने राजाए सेनापतिने कडं के, था तमिस्रा गुफानां बन्ने छारो उघाडो ? पड़ी तेमनी श्राझाश्री सुषेण सैन्यसहित त्यां गयो; तथा त्यां तप करीने,अने सुखथी स्नान करीने, तेणे श्वेत वस्त्रो पहेयां. पठी सोनानुं धूपधाएं लेइने ते गुफापासे गयो, अने तेने देखतांज तेणे नमस्कार कस्यो. त्यां यहा महोत्सव करीने, तथा चोखाधी अष्टमंगल चीतरीने, तेणे हा. थमां दंडरत्न लीधुं. पली सात आठ पगलां पागं हठीने, तेणे वेगथी त्रण वार ते दंडरत्नथी कपाटप्रते ताडना करी. ते दंडघातथी ते कमाडो तडतड अवाज करता थकां उघडी गया. पली सेनापतिए विनंति करवाथी चक्री हस्तीरत्नपर चडीने ते गुफासमीप श्राव्या. पड़ी तेणे विचार्यु के, अहीं घात, बार्ति, अंधकार, नूत आदिकनां उपसर्गो आपणने थशे, एम विचारि तेणे चार अंगुलनुं मणिरत्न साथे लीधुं. पड़ी तेणे ते हाथीनां कुंजस्थलपर राख्यु; श्रने पली ते चतुरंगी सेनासहित चक्रनी पा. बल चालता थका गुफामां दाखल थया. त्यां तेणे श्राप सोनैयानां प्रमाणवालु, श्राव कर्णिकावालु, तथा बार योजन सुधि अंधकारनो नाश करनारूं काकिणीरत्न पण साथे लीधुं. यदोनां समूहथी आश्रित थएलां ते काकिणी रत्नथी, योजन योजनप्रते, ते गुफानी बन्ने बाजुमां मांडला करता थका ते चक्री जवा लाग्या. एवी रीते तेना उद्योतथी जता थका चक्री आज्ञालेख सरखी निम्नगा श्रने उन्निम्नगा नामनी गंजीर नदीप्रते पहोंच्या, ते मांथी एक नदीमां तुंबडानी पेठे परनी शिला पण तरती हती, अने बीजीमां शीलानी पेठे तुंबडं पण बुडी जतुं हतुं. ते नदीउपर वार्धकीए करेला पुलपरथी ते उतर्या, अने एवी रीते ते गुफानां उत्तरहार प्रते पहोंच्या. पेहेला छारनां उघाडवानां जयश्रीज होय नहीं जेम, तेम ते उत्तरनां छारो पण पोतानी मेलेज उघडी गयां, अने तेथी चक्री ते हारे बहार निकल्या. एवी रीते पचाश योजननां विस्तारवाली ते गुफाने उलंगीने चक्री उत्तर जरतार्धने जीतवामाटे चाल्या. ते वखते त्यां वसता म्लेडगेनां उत्पातो थवा लाग्या. ते म्लेडोनां कालवक्त्र, कालदंष्ट्र, कराल, कालदारूण, वडवामुख, सिंहमुख विगेरे उपरी हता. तेने दरेकनी पासे पांच करोड घोडा, दश करोड रथो, एक करोड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ शत्रुजय माहात्म्य. हाथी अने पचास करोड पायदल हतुं, अने ते एवा बलवान हता के, रणसंग्राममां देवो पण तेऊनां पराक्रमने सहन करीशकता न होता. मदोन्मत्त थएला ते म्लेडो पोतानां सैन्यो एकगं करीने चक्रीप्रते पोकार करवा लाग्या. वली ते क्रोधांध थश्ने जगतने त्रणसमान गणता थका बरन्तर अने हथीयारबंध थश्ने आमतेम दोडवा लाग्या. ते प्रद्वयकालनां वरसादनी पेठे बाणोनी श्रेणीने वरसावता थका चक्रीनां अग्रसैन्यनी साथे लडवा लाग्या. ते उबलता थका, गर्जना करता थका, तथा जुजपीडन करता थका रणांगणमां प्रगट रीते नटनी पेठे शोजवा लाग्या. वली क्रोधथी जयंकर आंखोवाला थया थका सादात क्षत्रिय संबंधि तेजतुव्य शोजवा लाग्या. ते वखते घोडाऊना इषारवोथी, हाथीउनी गर्जनाउथी; रथोनां चित्कारोथी तथा सुनटोनां सिंहनादोथी ज. गत जयथी दोन पामवा लाग्यु. ते वखते योधा पोतपोताना जयमां जत्सुक थया थका पर्वतोनां शिखरोथी वृदोथी तथा लोखंडनां हथीयारोथी लडवा लाग्या. केटलाको नयंकर दंडोथी, तो केटलाको मुजरोथी तो केटलाको बाणोथी, फरसीथी, तथा खगोथी शत्रुठनी साथे लडवा लाग्या. ते वखते प्रचंड वायुथी जेम वन, तथा पुर्जनथी जेम सऊन, तेम ते क्रूर म्लेडोथी चक्रीनां सैन्यने उपञ्व थयो. वली त्यारे ते म्लेहोनां शस्त्रोथी चक्रीनो परिवार नाशवा, चष्ट थवा, पडवा, मुळ खावा, तथा जोवा लाग्यो. ते वखते पोतानां हाथीने नाशता, रथोने जांगता, तथा घोडाउँने त्रास पामता जोश्ने सेनापतिने कोप चड्यो. पड़ी ते सुषेण सेनापति ज्यारे रणसंग्राम करवा लाग्यो, त्यारे म्लेबनां लश्करी त्रास पामवा लाग्या, तथा दिशाउने जोवाने पण समर्थ थया नहीं. पनी ते कागडानी पेठे एकग थश्ने, पीडीतो जेम माताप्रते तेम विचारमाटे सिंधु नदी प्रते गया. त्यां वस्त्रो तजीने,वेलुपर रहीने, तपस्याथी पोतानां मेघमाली आदिक देवोने प्रसन्न करवा लाग्या. ते वखते तेजेनां श्रासन कंपवाथी, ते पोतानां जक्त म्लेको पासे श्रावीने आकाशमां रही कहे. वा लाग्या के, तमोए अमोने शामाटे आराध्या बे ? त्यारे ते कहेवा लाग्या के, या अमारा देशने अगाउ कोइए पण परानव को नथी, अने श्रा को नवीन राजा आजे पराजव करवा श्रावेल , अने तेणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः २१५ अमोने लग्न कर्या. ते सांजलीने ते आग्रही म्लेलोने ते मेघकुमारो कहेवा लाग्या के, श्रा श्री युगादिदेवनां महा पराक्रमी पुत्र ; वली ते जरतेश्वर नामनां था जरतखंडनां पेहेला चक्री , तथा ते मंत्र, यंत्र, विष, शस्त्र, अग्नि तथा विद्यादिकथी पण जीती शकाय तेम नथी. तो पण तमारा उपरोधथी अमो तेने उपसर्ग करीशु, एम कही ते अंतर्ध्यान थया. पली श्राकाशमां श्याम रंगनां मेघो फेलावा लाग्या, तथा नयंकर गर्जना अने वीजलीनां कडाका थवा लाग्या. पनी ते अंधकारनां परमाणुनी पेठे मूसलधाराथी समस्त पृथ्वीने व्याप्त करवा लाग्या. ते वखते वृदोनां मूलोने खोदी नाखता, तथा पर्वतनां शिखरोने पाडता थका मेघो जलना प्रवाहोथी खाडादिकोने पूरवा लाग्या. पली, पुष्ट राजाप्रते जेम अन्यायो, रात्रिप्रते अंधकारो, तथा कलिकालमां जेम चोरो, तेम मेघनां समूहो पृथ्वीमां व्यापवा लाग्या. ते वखते चक्रीए करस्पशथी चर्मरत्न विस्तायु, श्रने जिनेश्वरे जेम जुवनने, तेम तेणे तेमां ते सैन्यने उधयु. वली तेनी पेठेज तेमणे बत्र रत्नने विस्तायु, अने ते पारानां बिंडुनी पेठे चर्मरत्ननी साथे मली गयु. पडी समुजमा जेम वाहाण, तेम ते चर्मरत्न पाणीमा तरवा लाग्युं, अने बत्ररत्न उपर पडता मेघने रोकवा लाग्यु. एवी रीते नूतनसृष्टि सरखा ते लश्करनुं चक्रीए पितानी पेठे रक्षण कर्यु, अने त्यारथी ब्रह्मांडनी कल्पना थ. वली त्यां काकिणी, मणि अने, चक्ररत्नथी अंधकारनो समूह नाश होते बते, तत्काल उत्पन्न थएला धान्योथी ते सैन्य सुखे रहेवा लाग्यु. एवी रीते ते मेघकुमारोए कल्पांतकालनी पेठे सात रात्रि दिवसो सुधि पाणी वरसाव्यु. “श्रा कोण पापी उठेग करवा लाग्या ?” एवी रीतनां जरतनां नावने जाणीने, तेनां सोल हजार अंगरक्षक यदो कोप पामीने, तथा तुणीरो (नाथां) बांधीने मेघकुमारोने कहेवा लाग्या के, थरे रांकडा ! तमो या चक्रीने क्रोध चडाववाने उद्यमवंत थएला कोण बो ? वली तमो मूखों श्रा जरतेश्वर चक्रीने जाणता नथी !! माटे हवे तमो तुरत श्रावीने या चक्रीने पगे पडो? अने तमो शरणे श्राव्याथी ते तमारो अपराध क्षमा करशे. अने जो तमो तेम नहीं करशो, तो तेनां चाकर एवा अमो तमोने हत्थी मारगुं; ते सांजलीने मेघकुमारोए आ १४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ शत्रुजय माहात्म्य. काशमांधी वादलाउनो समूह खेंची लीधो. पनी ते मेघकुमारो यदोनी साथे चक्रीपासे श्रावीने नमस्कार करवा लाग्या, तथा पोतानां अपराधोनुं प्रायश्चित करवा लाग्या. पडी चक्रीए पण तेमनुं सन्मान करीने, तेने डोडी मेल्या, त्यारे ते म्लेडोपासे आवी कहेवा लाग्या के, श्रा चक्री श्रमाराथी पण जीताय तेम नथी, माटे तमो तुरत तेमने जश्नमस्कार करो ? एवी रीते शरणाचूत मेघकुमारोए तेमने तेम कह्याथी, ते म्लेडो मुखमा तरणां लेश्ने लोटता थका चक्रीने नमवा लाग्या. तथा पनी तेजेए रत्नोनां समूहो, घोडा, हाथी, अने मेरु सरखा सोनानां ढगला चक्रीनां चरणपासे मेल्या; तथा बहु नक्ति पूर्वक ते मिष्ट वचनो बोलवा लाग्या. पनी चक्रीए पण तेमने रजा श्राप्याथी ते पोताने स्थानके गया. एवी रीते सन्मानित करेला पण म्लेडोए, मनमां मत्सर लावीने, कुछ मंत्रोथी चक्रीनां सैन्यमां अनेक रोगो फेलाव्या. ते वखते सुबुद्धि मंत्री नमस्कार करीने, तथा मुकुटपर बन्ने हाथो जोडीने चक्रीने कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! आपणा सैन्यमां हाथी, घोडा अने माणसोने अमृत रोगनी पीडा थडे, अने ते दीव्य शक्ति तथा औषधोथी पण मटती नथी, माटे ते को पुष्मने अनिचारादिकथी उत्पन्न करेली लागे . एवी रीते ते मंत्री जेटलामां चक्री साथे वात करे . तेटलामां आकाशतलने उद्योतवायूँ करता थका महा तेजस्वी बे विद्याधरो त्यां श्राकाशमांथी उतर्या. ते वखते श्रादरथी ऊंचां मुखोवाला सैन्यनां लोकोथी जोवाता ते विद्याधरो चक्रीने नमीने तेमनी पासे बेग. त्यारे चक्रीए पण उत्तम श्राकृतिवाला, तथा महा तेजस्वी एवा तेउँ बन्नेने जोश्ने बहुमान पूर्वक पुज्युं के, तमो कोण बो? त्यारे चक्रीनी मूर्ति अने वाणीथी खुशी थएला ते विद्याधरो पण प्रसन्न मुखवाला थया थका, नमीने चक्रीने कहेवा लाग्या के, हे स्वामि! अमो बन्ने वायुसरखी गतिवाला विद्याधरो बीयें, तथा श्राजे आपनां तातने वांदवाने गया हता. त्यां ते युगादीश प्रजुनां मुखथी शत्रुजयनी कथा सांजलीने, अमो बन्नेए त्यां जश, ते उत्तम तीर्थने स्पर्श कस्यो. त्यां आनंदपूर्वक श्राश्महोत्सव करीने, वृषनेश प्रजुनां पुत्र आपने अमो जोवाने अहीं श्राव्या बीये. वली खामिनां पुत्रप्रते पण खामिनी पेठेज वर्तवं, एवो क्रम होवाथी श्राप पण अमोने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः - १०७ युगादीश प्रजुनी पेठेज सेववालायक बो. वली हे स्वामि ! आपनुं श्रा सैन्य मंद तेजवालुं केम जणाय बे ? केमके, सूर्य छाने पाणी बतां कमलोनो संकोच केम संभवे ? त्यारे चक्रीये कयुं के, मंत्र ने औषधिची पण असाध्य रोग अकस्मात या सैन्यमां फाटी निकल्यो बे, तेथी प्राणीउने लानि एली बे. ते सांजली ते विद्याधरो चक्रीशने कड़ेवा लाग्या के, हे राजन् ! शत्रुंजय पर्वतपर शाश्वतुं रायणनुं वृक्ष बे. तेनो प्रभावं शाकिनी, भूत, वेताल, तथा दुष्ट देवादिकनां दोषने हरनारो बे, एम मोए बहु वखत युगादीश प्रजुनां मुखथी सांजल्युं बे. अने ते वृनी बाल, माटी, शाखा, पत्र यादिक अमारी पासे बे, तेनुं पाणी करी, ते सेववाथी तमारुं सैन्य जले निरोगी थाय. पढी चक्रीए तेम करवानी श्राज्ञा श्रपवाथी ते सैन्यने निरोगी कर्यु पछी चक्रीए तेमने सन्मान श्राप्याबाद ते पण पोताने स्थानके गया. पी पोतानां सैन्यने निरोगी जो ने हर्षित चित्तवाला थर, चक्री पोतानुं मस्तक धुणाववा लाग्या. पढी ते हर्षनेज जाणे बहार कहाडता होय नहीं, तेम ते कड़ेवा लाग्या के, अहो ! या उत्तम तीर्थनो महिमा तो वचनातीत बे; वली हुं एम मानुं हुं के, या शिवाय कोइ उत्तम तीर्थ त्रणे जगतमां पण नथी, वली तेनां चिंतनमात्रथी पण बन्ने लोकनुं सुख मले ठे वली गाउ प में या तीर्थनो अतिशय महिमा प्रजास देवनां मुखथी सां हतो; वली या दिग्जय कर्या बाद संघ सहित ज्यारे हुं श्रा तीर्थनी यात्रा करीश, त्यारेज श्रा मनुष्य जन्मने हुं सफल मानीश. एवी रीतनी अमृत सरखी वाणी बोलता ते चक्री, सर्व सभासदाने परम प्रीतिनां हेतुरुप थया. पठी चक्रीए फरीने क्रोधयुक्त घइने म्लेछो प्रते चक्र मेल्युं; त्यारे तेनां अधिष्ठायक देवो तेने तुरत बांधीने लाव्या. त्या चक्रीए तेमने दीन मुखवाला, तथा दीन वाक्योवाला जोइने, शिक्षा माटे तेज॑नां हाथी रत्नादिक लेइने, तेजने जता मेल्या. पठी सु पण गिरि ने सागरनी मर्यादावाला सिंधुनां उत्तर निष्कुटने चक्रीनी यज्ञाथी जीतीने त्यां श्राव्यो. त्यां विविध प्रकारनां जोगोने जोगवता थका चक्री घणो काल रह्या; पढी एक दहाडो चक्ररत्न श्रायुधशालामाथी निकलीने बहार चाल्युं पढी ते मार्गे अनुक्रमे चालता थका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०न शत्रुजय माहात्म्य. चक्री कुहिमाजिनां दक्षिण प्रदेश प्रते श्राव्या. त्पां सैन्यनो पडाव नाखीने, अहम तप करीने, रथमां चडी चक्री तुरत कुहिमाजिपर गया, त्यां रथनां शीर्षपर त्रणवार ताडन करीने, पोतानां नामर्नु बाण तेनां अधिष्टायक देवप्रते तेणे मेट्युं. त्यारे ते बाण बहोतेर जोजन वेगथी श्राकाशमार्गे जश्ने पड्यु, अने तेथी हिमवत् कुमारने गुस्सो चड्यो, पण तेपरनां अदरो वांचवाथी तेनो गुस्सो उतरी गयो, तथा हाथमां नेट लेने ते चक्री पासे श्रावी नमस्कार करवा लाग्यो. एवीरीते चक्रीनु थाराधन करीने, तेमनी रजा देश ते पोताने स्थानके गयो, अने चक्री पण पोतानी सेनाप्रते आव्या. पली झषनकूट पर्वत प्रते जश्ने तेणे त्रणवार रथपर ताडना करी, तथा काकीणी रत्नथी त्यां लख्यु के, “श्रा अवसर्पिणीमां त्रीजा थाराने डेडे, श्री युगादीश प्रजुनो पुत्र, तथा लदमीथी इंऽ सरखो, हुं नरत नामे चक्रवर्ती थयो ढुं.” पली त्यांथी ते चक्री लश्कर सहित तेज मार्गे जता थका जरतार्थ प्रते रहे. ला वैताढ्य पर्वत पासे गया. हवे पेहेलां ज्यारे श्रादिदेव प्रनु राज्य करता हता, त्यारे कब महाकवनां नमि अने विनमि नामनां पुत्रोने प्रजुए कंज्ञक कार्य माटे क्यांक मोकल्या हता; अने ज्यारे ते ते कार्य करीने पाला श्राव्या, त्यारे तो तेमणे प्रजुने संयमसहित जोया. एवी रीते निर्मम प्रजुने नहीं जाणीने “ हे तात ! हे तात !” एम कहेता थका पुत्रनी पेठे ते प्रनु पासे राज्य याचवा लाग्या. पठी ते “जरतने तो सेवशुं नहीं,” एम प्रतिज्ञा करीने, तलवार लेश प्रजुनी सेवा करवा लाग्या. एक दहाडो पातालेंज प्रजुने वांदवा आव्यो, त्यारे तेणे तेमने प्रजुनी अत्यंत भक्ति करता जोया; अने तेथी तेणे तेमने हर्षथी सोल हजार विद्यार्ड, तथा वैताढ्यनी दक्षिण अने उत्तर श्रेणिर्नु राज्य प्राप्युं. त्यां ते नमि अने विनमि सूर्य चंनी पेठे आनंद पूर्वक राज्य करता हता. हवे नरत चक्री पण रथपर बेसी त्यां आव्या, अने पातानां नामर्नु बाण तेणे तेउप्रते फेंक्यु. ते बाणने जोश ते बन्ने परस्पर विचारवा लाग्या के, जंबूहीपनां जरत देत्रमा श्रा जरत प्रथम चक्री थया बे. अने ते पोतानां जुजाबलथी गर्वित थश्ने श्रापणीपासेथी पण दंडनी याचना करे डे; पण तेनी पासे कं विद्यामंत्र नथी; एम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०ए तृतीयःसर्गः विचारिक्रोधथी लालचोल थर ते लडवाने तैयार थया. हवे तेउनी श्राझाथी बीजा विद्याधरोपण महा सैन्योथी वींटाया थका त्यां श्राव्या. के. टलाको तो पोतानां विमानोथी आकाशने सेंकडो सूर्यवावु करता थका, तथा केटलाको रथोथी आकाशने गरुडमय करता थका, केटलाको मदऊरता हाथीथी आकाशने जंगम पर्वतमय करता थका, केटलाको घणा पालाउँथी आकाशने बाणमय करता थका, अने केटलाको गर्जना करता उंउनिनां अवाजोथी पर्वतोने पण गजावता थका, तथा हाथमां ह. थियारो लेश्ने त्यां श्राव्या. हवे दिवसे पण विमानोथी आकाशने ज्योतिष्चक्रवायूँ करता थका ते विद्याधरो रणसंग्राम करवा लाग्या. हवे चक्रीनुं सैन्य पण को वखते यदोयें रचेलां विमानोथी, तो कोई वखते रथ, हाथी अने घोडाथी पण ते विद्याधरोनी साथे लडवा लाग्यु. ते वखते.वि. मानो विमानोनी साथे, घोडा घोडाउनी साथे,हाथी हाथीउनी साथे, पाला पालाउनी साथे तथा रथो रथोनी साथे, धनुषधारी धनुषधारीउनी साथे, तथा तलवारवाला तलवारवालाउँनी साथे,एम बन्ने सैन्यो लडवा लाग्यां. हवे यहीं विद्याधरोए पोतानी विद्याथी जेजे लश्करमां बनाव्यु,ते ते सघj चक्रीनां अंगरक्षक यदोए दूर कयु. एवी रीते बार वर्षोंसुधि लड्याबाद चक्रीए तेजने जीत्या, त्यारे ते हाथ जोडीने, तथा नमस्कार करीने ज. रत महाराजने कहेवा लाग्या के देखामि ! मेरुउपरांत बीजो पर्वत कयोबे? वायु उपरांत कोण वेगवालो ने ? वज्रसमान शुं तीक्ष्ण ? तेम तमाराथी बीजो कोण शूरो ? वली हे स्वामी! आजे तमोने जोवाथी तो श्रमोए सादात प्रजुनेज जोया , माटे श्री युगादिदेवनी पेठेज तेनां पुत्र एवा तमोने अमो सेवगुं. वली आपनी आज्ञाथी अमो था वैताढ्यपर दुर्गपालोनी पेठे रहीशु. एम कही विनयना आधारचूत एवा विनमि राजाए सर्व अंगे श्रावेला तारुण्यथी मनोहर अंगवाली, तथा नेत्र, मुख, हाथ, हृदय अने पगरूपी कमलोए करीने कामदेव रूपी राजाने क्रीडा करवाने तलाव सरखी, तथा चलकती कांतिरूपी अमृतनां समूहथी नरेती, सर्व रोगोने शांत करनारी, अने श्छा प्रमाणे दीव्य जलनी पेठे शीतोष्णनां स्पर्शवाली, सर्व शुजलक्षणोथी सं. पूर्ण, तथा सर्व अवयवोथी सुंदर, एवी पोतानी सुना नामनी कन्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० शत्रुजय मादात्म्य. चक्रीने आपी. पनी चक्रीए तेमने रजा आपवाथी, तेए पोतानां पुत्रोने राज्य सोंपी संसारथी विरक्त थर, श्री शषजदेव प्रजुनी पासे व्रत लीधुं. पळी चक्री चक्रनी पाउल चालता थका गंगाने किनारे पहोंच्या, अने त्यां तेमणे नहीं अति दूर, तेम नहीं श्रति नजदीक लश्करनो पडाव नाख्यो. त्यां पण सुषेण सेनापति चक्रीनी श्राज्ञाथी सिंधुनी पेठे गंगा नदी उतरीने; तथा उत्तर निष्कुट साधीने पाडो श्राव्यो. त्यां अहम तपथी सिक थएली गंगा देवीए चक्रीने बे सुवर्णनां सिंहासनो, एक हजारने श्राप रत्नोनां कुंनो, हार, बाजुबंध, मुकुट, रत्नशय्या, दीव्य वस्त्रो तथा दीव्य पुष्पो थाप्यां. पठी लावण्यनां मनोहर सुंदरपणाश्री चाकररूप करेल जे कामदेवने जेणे, एवा ते चक्रीने जोश्ने, तेनी साथे विलास करवानी श्वाथी ते मनमां चिंतववा लागी के, शुं श्रा ? के चंड ने ? के कुबेर ? के सूर्य बे ? अथवा देवोनुं ते श्रावू रूप क्याथी होय? था तो जगतनां स्वामी श्री युगादिप्रजुनां पुत्र जरत बे, केम के, रत्नाकर विनां श्रा, रत्न बीजी जगोए कंई उत्पन्न थतुं नथी. एवी रीते कामदेवनां बाणथी व्यग्र थश्ने ते कटादो मारवा लागी, तथा नरतनी प्रार्थना करवा लागी, तेथी जरते तेणीने रतिवेश्ममा दाखल करी. पनी त्यां तेणीनी साथे विविध प्रकारनां लोगो जोगवतां थकां चक्रीए एक दिवसनी पेठे एक हजार वर्षों निर्गमन काँ. हवे एक दहाडो इंज जेम देवो सहित सुधर्मा सनाने, तेम जरत राजा राजा सहित पोतानी सनाने शोजावता हता. एटलामां मूर्तिवंत चंजसूर्य सरखा सौम्य कांतिवाला बे चारणमुनि श्राकाशमांथी उता. ते वखते नरत चक्रीए संज्रम सहित उठीने नक्ति पूर्वक सादात विवेक अने विनय सरखा ते मुनिने नमस्कार कर्यो. पड़ी तेमने सिंहासनपर बेसाडीने, चक्री हाथ जोडीने तेनी सन्मुख बेग. पड़ी श्री युगादीश प्रजुना पुत्रने ते नवमां मोक्षगामी जाणीने ते मुनि गंजीर वाणीथी तेने कहेवा लाग्या के, मैत्रीचतुष्क, अष्टांग योगनो अन्यास, उपसगोंर्नु सहनपणुं, थार्जवता, कषाय, विषय अने श्रारंजोनो परिहार, अप्रमादीपणुं, प्रसन्नपणुं, कोमसता, तथा समता एटला मोदनां मार्गों . पडी ते देशनाने अंते रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः १११ जाए मुनिने नमस्कार करी पूब्धुं के, परोपकारमां रक्त एवा आप हीं क्यांथी वो बो ? वली मने एम जणाय बे के, रागद्वेषथी मुक्त थला तथा पोतानां शरीरमां पण ममता विनाना एवा तमो केवल मने पवित्र करवा माटेज यहीं पधारेला लागो बो. त्यारे ते मांधी एक मुनिए राजाने कयुंके, दे राजन् ! श्रमो श्री युगादि प्रभुने वांदवा माटे गया हता. त्यां तेमनां मुखथी श्री पुंडरिक गिरिनुं उज्ज्वल माहात्म्य सांजलीने तेनो स्पर्श करवा माटे श्रमो आकाशमार्गे जवा लाग्या. त्यां देवो सहित ईशानें मोने जोइ श्रनंदित मनवाला थइने मस्तक धुणावी कयुंके, हे जगवन् ! या पर्वतनुं श्राश्चर्यकारक माहात्म्य तमो जुठे ? श्रा हुं नरकगामी हतो, त्यांथी हुं था इंद्र थयो बुं. हुं मादाविदेह देवनां पशुग्राममां सुशर्मा नामे ब्राह्मण हतो, ते दुःख ने दारिजनो तो एक मुख्य स्थानकरूप हतो. एक दहाडो ते श्राखा गाममां निक्षा माटे जम्यो, पण त्यां तेने कंई पण नहीं मलवाची, ते केवल खाली हाथे पाटो पोताने घेर थाव्यो. एवी रीते खाली हाथे तेने थावेलो जोश, तेनी स्त्री क्रोधथी हाथमां सांबेलुं लेइ तेने मारवा दोडी. सुशर्मा दरिद्रताथी पेहेलेथीज पीडित थयो हतो, अने स्त्रीना या थाकोशथी तो ते वधारे क्रोधातुर थयो. पढी तेणे स्त्रीने वारी तो पण ते क्रोध शांत नहीं, त्यारे तेणे तेणीने जोरथी पाणो मार्यो. ते पाणो मर्मस्थानमा लागवाथी ते मुर्छित थइने पडी, अने तुरत मृत्यु पामी. ते जोइ तेनो पुत्र क्रोधायमान थर कड़ेवा लाग्यो के, अरे कुलचंडाल ! श्रा तें शुं कार्य कयुं ? ते वचनथी क्रोधायमान यश् ते ब्राह्मणे, पूर्वनां तापथ तस थने, तेने तथा रडती एवी पुत्रीने पण मारी नांखी. पी जयजीत थलो तथा कोन पामेल बे सघली इंडिल जेनी एवो थयो थको, ते जवा लाग्यो, एटलामां कोइ गाय साथे थडावाथ। तेणे ते - पण मारी नांखी. पढी तेने पकडवा माटे कोटवालो तेनी पाबल दोड्या, त्यारे जयांत य, अंध तुल्य थयो थको ते पोतानां पापथी नरक सरखा कुवामां पड्यो. धिक्कार बे क्रोधने ! ! ! के जेने वश थ‍ मूढ arat कृत्याकृत्यनो विचार करता नथी, अने नरकना खाडामां पडे बे. ! ! ! हवे ते कुवामां पडतां थकां ते ब्राह्मणनां टुकडे टुकडा थइ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ शत्रुजय मादात्म्य. गया, अने ते पीडाथी ते मृत्यु पामी जयंकर पुःखदायक सातमी नरके गयो. त्यां बंधन, बेदन, ताप, ताडन, श्रादिक महाकुःखो जोगवीने, मृत्यु पामी ते सिंह थयो. त्यां घणां निरपराधी जंतुने हणीने ते फरीने पाडो चोथी नरकमां गयो. त्यांथी चवी चांडालकुलमां क्रूर कार्य करनारो थयो, अने फरीने पालो ते सातमी नरके गयो. त्यां बहु कष्ट सहन करीने ते दृष्टिविष सर्प थयो, त्यां एक दहाडो तेणे पोतानां बि. सपासे केटलाक व्रतधारी मुनिउँने जोया. त्यारे क्रोधथी फुफाडा मारतो थको, तेउँने डंखवानी श्वाथी ते दोडवा लाग्यो; पड़ी तेउने जोश्ने ते चिंतववा लाग्यो के, था तो मूर्तिथी शांत, तथा व्याधिरहित देखाय , एम विचारि ते धीरे धीरे चालवा लाग्यो. त्यां तेणे ते मुनि ने विद्याधरोप्रते उत्तम धर्मनो उपदेश देता, तथा शत्रुजयनुं माहात्म्य कहेता दीग, अने ते माहात्म्य तेणे पोते पण सांजल्यु. ते शत्रुजयमाहात्म्य सांजव्याथी, तथा कर्माना लघुपणाश्री तेने जातिस्मरण झान उत्पन्न थयु. अने तेथी ते पोतानां पूर्वनवोने याद करवा लाग्यो. पडी ते बिलमांथी निकलीने, पोतानी संपदानां निदाननूत मुनिनां चरणोने कुंडालांरूप थश्ने नमतो हवो. पड़ी तेनां जावने जाणीने मुनिए तेने अनशन कराव्यु, तथा विद्याधरनी साथे तेने पुंडरिक गिरिप्रते पहोंचडाव्यो. त्यांथी ते काल करीने था हुँ अरूपे थयेलो बुं. माटे हे मुनि! हुँ एम मानुं बु के, पृथ्वीपरनां सघलां तीर्थोमां तेना सर बीजं को पापोने हरनारूं तथा उत्तम तीर्थ नथी. पड़ी ते महाशकिवान इंजे ते वात न. रताधीशने निवेदन करीने, चंदन श्रने कपूरनां काष्टोधी ते सर्पना पुनलनी सक्रिया करी. त्यां दादनूमिपर रत्नोनुं सिंहासन करीने, तथा ते महातीर्थने नमस्कार करीने इंज पोतानुं राज्य पालवा लाग्यो. एवी रीतनुं चरित्र सांजलीने हे चक्री ! अमो समाधियी वारंवार ते तीर्थनो स्पर्श करीए बीए. हवे ते तीर्थप्रते जतां अमोए था तमारं सैन्य जोयु. अने तमो अमारा गुरुनां पुत्र बो, तेथी आदरपूर्वक अमोए तमाळं आजे दर्शन कयु. हवे आप अमोने रजा आपो? केम के अमारे तीर्थप्रते जर्बु बे; वली अमोए आपनो अति उत्तम विवेक अने विनय जोयेलो बे. पळी चक्रीए नमस्कार कर्या बाद ते त्यांथी चालता थया; अने चक्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःसर्गः ११३ पण ते वात सांजली मनोरथ करवा लाग्या के, ते दिवस, ते क्षण अने ते रात्रि क्यारे श्रावशे !! के जे वखते हुं संघसहित श्रीशजय तीर्थनी यात्रा करीश. हवे चक्री गंगाने समजावीने, तथा तेनी आज्ञा लेश्ने प्रबल लश्कर सहित खंडप्रपात नामनी गुफासन्मुख चालवा लाग्या. त्यां जश् अहम तप करवाथी चलितासन थएलो नाट्यमाल देव नेटणां सहित चक्रीपासे श्राव्यो; तथा तेणे चक्रीने आलूषणप्रमुख आप्यां. पड़ी चक्रीए तेने बहुमान पूर्वक रजा श्रापवाथी ते पोताने स्थानके गयो. पठी त्यां चक्रीनी आज्ञाथी सुषेण सेनापतिए तमित्रानी पेठेज खंडप्रपातनां छारो पण दणवारमा उघाड्यां. पली चक्रीए हाथीपर चडीने तथा तेनां जमणा कुंजस्थलपर मणिरत्न राखीने ते गुफामा प्रवेश कस्यो. त्यां सैन्यसहित चालतां ते चक्रीए पूर्वनी पेठेज काकिणी रत्नथी गोमुत्रिका आकारनां मंडलो लख्यां; तथा निम्नगा अने जन्निनगा नदी ते उतत्या; अने त्यां ते गुफा, दक्षिण धार पण पोतानी मेलेज उघडी गयुं. पली ते गुफानां हारमाथी निकलीने गंगानां पश्चिम कांगपर तेणे पडाव नांख्यो, तथा अहमनो तप कस्यो. ते अहमने अंते एक हजार यदोथी अधिष्ठित थयेला प्रख्यात नवे निधानो तेनी समीप श्राव्यां. तेजेनां नामो नैसर्प , पांडुक, पिंगल, सर्वरत्नक, महापद्म, काल, महाकाल, मा. णवक अने शंबक हता. तेउनी ऊंचाइ आठ योजननी, पोहोला नव योजननी, तथा लंबा बार योजननी हती. वली तेऊनांज नामवाला तथा एक पट्योपमनां आयुष्यवाला, तेजेनां नागकुमार नामनां अधिष्ठायको चक्रीने श्रावीने नमस्कार करवा लाग्या; अने कहेवा लाग्या के, श्रमो गंगानां मुखपर मागधतीर्थनां रहेनारा बीए, तथा हे महानाग ! तमारां जाग्योथी वश थश्ने अमो तमारी पासे श्राव्या बीयें. वली हे चक्री! तमारां जाग्यनी पेठे अमो कदी पण दय पामनारा नथी, माटे तमारी श्वा प्रमाणे तमो श्रमोने दान तरिके आपो ? अने जोगवो ? एवी रीते ते निधानो प्राप्त थवाथी चक्रीए अहाश्महोत्सव कस्यो; तथा कल्पवृक्षथी पण अधिक दान ते पोतानी श्छा मुजब देवा लाग्या. पनी चक्रीनी श्राझाथी सुषेण पण गंगानो दक्षिण निष्कुट साधीने पालो त्यां श्राव्यो. हवे त्यां केटलोक वखत हर्षपूर्वक रह्या बाद चक्ररत्न अयोध्याप्रते श्रा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ शत्रुंजय मादात्म्य. काशमार्गे जवा लाग्यं. एवी रीते व खंड पृथ्वीनां स्वामि, सुर असुर ने नरोथी विंटाएला, तथा अखंड श्राज्ञावाला चक्री केटलेक दिवसे - योध्या नजदीक पहोंच्या. चोरासी लाख हाथी, तेटलाज घोडा छाने ते - लाज रथो, तथा बन्नु क्रोड सुनटोनां परिवारवाला ते जरत चक्री, पेहेला प्रयाणनां दिवसथी मांडीने साठ हजार वर्षो गया बाद पोतानां नगरमां श्राव्या. त्यां विनीता नगरथी थोडे दूर तेमणे लश्करनो पडाव नांख्यो, तथा त्यांनी अधिष्टायक देवीप्रते तेमणे श्रहमनो तप कस्यो. पी वादलांमांथी जेम सूर्य, तेम पौषधशालामांथी निकलीने चक्रीए स. संपदानां कारणरूप श्रमनुं पारणं करूं. पी अयोध्यामां लोकोए पगले पगले तोरण बांध्यां, तथा केसर ने कुंकुमनां जलथी पृथ्वीपर टकाव कस्यो. वली जरतनां चरित्रोधीज होय नहीं जेम तेम लोकोए घरोमां चित्रामणो करयां, तथा सर्व जगोए त्यां मंगलध्वनि फेलावा लागी. वली ते वखते त्यां लोकोए हर्षथी उमदा उमदा पोषाको पेहेर्या, तथा जगोजगोए सोनानां स्तंजोपर मांचा मांड्या वली त्यां चक्रीने जोवामाटे जाणे सूर्यबिंबोज श्राव्यां होय नहीं, तेम दरेक मांचापर रत्ननां वासणोनां तोरणो शोभतां हतां वली त्यां चालता फुवाराउंथी - चानक जर्तानां दर्शनथी अयोध्यारूपी स्त्री जाणे पसीनावालीज थ‍ होय नहीं, तेम देखावा लागी. वली ते अयोध्यारूपी स्त्री विचित्र प्रका रनी पताका रूपी हाथोथी घणे काले श्रावेला पोताना पतिने जाणे उत्सुकता अलिंगन करवाने इछती होय नहीं, तेम देखावा लागी. वली ते अयोध्यारुपी स्त्री, लोकोए धूपधाणामां करेला धूपमांथी निकलता - त्यंत धुंवाडानां मिशथी जाणे पोतानां जर्तारनां वियोगने दूर करती होय नहीं, तेम लोकोथी तर्क करावा लागी. हवे ते वखते ते नगरीमां प्रवेश करवानी इछाथी चक्री ऐरावण सरखा हाथीपर स्वार थया. ज. गतनां या एक पतिने सूचवनारा, तथा तेनां यश सरखा श्वेत छत्र थी ते चक्री शोजवा लाग्या वली मानस सरोवरमांथी तेनां मुखरुपी कमलप्रते श्रावेला हंसोथीज होय नहीं जेम तेम बन्ने पडखे वींकातां चा मरोथी ते शोजवा लाग्या. मांहोमांहे जटकातां किरणोथी जाणे युद्ध करतां होय नहीं, एवां रत्नोथी शोजता तथा इछित दान देवाथी जंगम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः ११५ कल्पवृक्ष सरखा ते चक्री देखावा लाग्या वली ते ते दिग्जयथी एलां विचित्र चरित्रोनां वचनोथी पगले पगले सुनटोथी जेम तेम सुरासुरोथी ते स्तुति करावा लाग्या. एवी रीते लोकोनां शरीरोथी पगले पगले माता ते चक्र नगरीमां, अने गुणोथी माणसोनां हृदयमां पण प्रवेश करवा लाग्या. पढी ते लाखो ऊरुखाउं रुपी नेत्रोथी उत्सुकपणे जोता, तथा उत्कंठा ने हर्षथी पताका रुपी हाथोथी नाचता, तथा कोइ जगोए इंद्रनील मणिबी श्याम, तो कोइ जगोए स्फटिकोथी निर्मल, तो कोइ जगोए माणिकथी लाल, तो कोइ जगोए सुवर्णथी पीला, अने विचित्र वर्णोथी देवलोक सरखा एकवीस भूमिवाला पोतानां पितानां मेढ़ेल प्रते पहोंच्या. पढ़ी चकी वेदिकापर पग मुकीने, पर्वतपरथी जेम केसरी तेम हाथीपरथी नीचे उतर्या; अने बीजार्ज पण पोतपोतानां वादनोपरथी उतर्या. पठी त्यां चक्री लोकोनी नेटोने स्वीकारता, तथा नमस्कार करता माणसोने प्रीतिथी बोलावता थका क्षणवार योज्या. पढी तेमणे पोतानां शोल हजार अधिष्ठायक यहोने यथोचित पूजीने विसर्जन कर्या; वली तेवीज रीते तेमणे बत्रीस हजार राजाउने, सेनापतिने, पुरोहितने, गृहपतिने अने वार्धकीने पण विसर्जन कर्या; तथा एव ते तेथे सघाउने विसर्जन कर्या पछी इंद्राणी सहित जेम इंड, तेम सुना नामे स्त्रीरत्नसाथे, तथा बत्रीस हजार बीजी राणीउंथी, तथा तेटलीज जनपदराजार्जनी कन्याउँथी तथा बत्रीस पात्रो अने बश्रीस नाटकोथी वीटाएला ते चक्री, मणि अने रत्नोनी शिलार्जनी श्रेपिथी पेल बे, दृष्टिने उत्सव जेणे एवा मेहेलमां, धनद जेम कैसमां ते प्रवेश करता हवा. त्यां श्री रुषनदेव प्रजुनी मूर्तिने नमस्कार करीने, चक्री स्नानपीठपर गया, तथा पढी जक्तिथी, पुष्प, धूप, अक्षत विगेरेथ तेज मूर्तिनी तेमणे पूजा करी. पढी चंद्रशालामां जश्ने राजानां समूहनी साधे, माणसोने आश्चर्य करनारां जोजनोथी तेमणे श्राहार कर्यो. पढी तांबुल, चंदन, पुष्पमाला, श्वेतवस्त्रो, तथा श्राभूषणोथी ते चक्री इंद्र सरखा शोजवा लाग्या. पढी त्यां दीव्य संगीत, नाटक तथा स्त्रीउनां विलासोथी तेमणे केटलोक काल सुखमां गाल्यो. एक दहाडो देवो अने मनुष्योए श्रावी चक्रीने विनंति करी के, दे ढ खंडनां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ शत्रुजय मादात्म्य. खामी ! तमो महादत्रीय बो; अने तेथी हे प्रजु ! अमोने आप महाराज्यनां अनिषेक माटे आज्ञा श्रापो ? केम के जिनप्रते जेम सोनुं तेम चक्रीप्रते श्रमारं ते कार्य . पळी चक्रीए तेमने तेम करवानी - ज्ञा आपवाथी क्षणवारमांज विद्याधरो, तथा यदो एकग थया, अने तेजेए पूर्व दिशानां मंडनरुप रत्नोनां समूहोथी मंडप रच्यो. पड़ी ते अहो, नदी, क्षीरसमुख, अने तीर्थोमांधी पाणी, माटी तथा वेलु लाव्या. पली चक्रीए पौषधशालामां जश् अहमतप कर्यो; केम के तपथी मलेढुं राज्य तपश्रीज वृद्धि पामे बे. पडी उत्तम वस्त्रो पेहेरीने ते राणी सहित, नाट्यरसमां मग्न थश्ने ते मंडपमां गया. मेरुने जेम सूर्य, तेम चक्रीए सिंहासन, तथा मणिमय स्नानपीउने प्रदक्षिणा करी. पडी पूर्व तरफनां पावडीयांउथी सिंहासनपर चडीने, स्त्री सहित ते पूर्वसन्मुख बेग, वली त्यां बीजी बत्रीस हजार स्त्री पण श्रासनोपर बेठी; पनी जक्तिवान राजा उत्तर तरफनां पावडीउथी ते स्नानपीठपर चड्या. वली सेनापति, गृहपति, वार्धकी, पुरोहित तथा श्रेष्टि श्रादिको दक्षिण बाजुनां पावडीआंउथी त्यां चड्या. वली ते वखते बीजा पण चक्रीने जो हाथ जोडीने, हर्षित थया थका यथायोग्य आसनोपर बेग. त्यां चारण श्रमणोए प्रथम जैन श्रागममां कहेली विधिपूर्वक चक्रीने मंत्रस्नान कराव्यु. पडी तेनां आलियोगिक देवोए, शोए जेम जिनने तेम शुरू तीर्थोदकथी तेमनो अनिषेक कर्यो, पढी शुज कणे बत्रीस हजार राजाए तथा बीजा गोत्रवृझोए थने सेनापति प्रमुखोए पण तेमनो अनिषेक कयों. पली चंदनथी लिप्त ले अंग जेमर्नु, तथा चांदनी सरखा श्वेत वस्त्रवाला ते चक्री, शरद ऋतुनां वादलांउथी वीटाएला मेरुपर्वत सरखा शोनवा लाग्या. पडी देवोए चैत्यपर जेम कलश, तेम तेमनां मस्तकपर षन प्रजुने इंछे आपेलो मुकुट स्थापन कर्यो. वली तेए पवित्र मोतीउथी गुंथेलो हार तेमनां कंठमां स्थापन कर्यो. ते हारनां काविन्यपणाने नेदनारी पारिजातनां पुष्पोनी अत्यंत सुगंधिवाली माला तेए चक्रीनां कंठमा स्थापन करी. पळी चक्री ते रत्ननां सिंहासनथी उव्या, अने तेज वखते तेनां प्रतिबिंबोनी पेठे बीजाउँ पण त्यांथी उव्या. पडी जे मार्गेथी सिंहासन पर चड्या हता, तेज मार्गेथी उतरीने चक्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः ११७ जंगम मेहेल सरखा हाथीनां स्कंधपर चड्या. पढी फरीने स्नानगृहमां जs, स्नान करी तथा प्रभुने पूजीने तेमणे श्रहमनुं पारणं कर्यु. एवी ते जुदा जुदा देशोमांथी श्रावेला राजार्जए, देवोए, तथा विद्याधरोए मनो बार वर्षोधि अभिषेक कर्यो, ते वखते ते अभिषेकथी मनोहर एकांत सुखमकाल सरखो त्यांनां लोकोनो काल निर्गमन थयो. एवी रीते चंद्रनी पेठे सौम्य, सूर्यनी पेठे शत्रु प्रते तीव्र, कुबेरनी पेठे धनवान, वरुणनी पेठे जुवनेश, तेजथी अनि सरखा, धर्मनी पेठे प्रसाद दंड करनार, कामदेव सरखा रूपवाला, दिवसे विकस्वर यएला कमल सरखा मुखवाला, देवोथी पण नथी मेलवातो मध्यजाग जेनो एवा कीर समुद्रनी पेठे गंजीर, अधिकारी प्रते आज्ञाथी इंद्रनी पेठे समर्थ, वरसादनी पेठे प्राणीउने हमेशां जीवितदान देनार, तथा तारामां जेम चंद्र, तेम सघला विद्याधरो, राजार्ज अने जरतनां देवोमां पण ते चक्री एकज राजा होता हवा. वली ते हमेशां चौद रत्नोथी शोजता हता, तथा नवे निधानो तो तेनां चरणकमलनी पासेज रहेतां हतां वली ते नीचेनी वस्तुनां स्वामि थया थका शोल हजार यदोषी, परिवार सहित बीस हजार राजाउंथी, बत्रीस हजार जानपद क न्याउँथी, बत्रीस हजार राजकन्याथी, त्रणसो साठ रसोइयायी, चोरासी लाख रथोथी, चोरासी लाख हाथी थी, चोरासी लाख घोडाथी, बन्नुं क्रोड पालाउंथी, वत्रीत्र हजार जनपदराजाउंची, बदोंतेर दजार नगरोथी, नवाणु हजार द्रोणोथी, घडतालीस हजार पत्तनोथी, चोवीस हजार कर्बटोथी, वीस हजार खाणोथी, सोल हजार खेटकोथी, चौद हजार संबाधोथी, उपनसो द्वीपोथी, तथा बीस हजार बंद - रोथी शोजता हता. वली ते उगणपचास कुराज्योनां, जरत खंडनां श्रने जां राज्योनां पण स्वामी हता. वली यादीश्वर प्रजुए बतावेली नीतिने जाणनारा, विश्वजर, श्रीधर, सुबुद्धि तथा बुद्धिसागर नामनां तेमनां मंत्रि दता. वली तेर्जना अंश सरखा एकसो आठ, अने वली - क्रोड पण मंत्रि तेमनां हता. वल्ली जरत महारजनां अंश सरखा, ने जगतमां एक वीर सरखा, तेमनां सुषेण, श्रीषेण, दुर्जय ने जगजय नामनां सेनापति हता. वली तेमनां जीवानंद, महानंद, संजी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ शत्रुजय माहात्म्य. वन, अने सुजीवन नामनां चार मुख्य नरवैद्यो, तथा बीजा साडात्रण लाख नरवैद्यो हता. वली तेमनां जांगल, कृतनाल, विशाल अने विमस नामनां चार मुख्य गजवैद्यो अने बीजा त्रण लाख गजवैद्यो हता. वली तेमनां विश्वरूप, परब्रह्म, हंस अने परमहंस नामनां चार मुख्य पंडितो, अने सात लाख बीजा पंडितो हता. वली तेमनां श्रीकुंठ, वैकुंउ, नृकुटि, अने धुर्जटि नामनां चार मुख्य धनुर्विद्या जाणनाराजे, तथा बीजा पण घणा हता. वली तेमनां ज्योतिषी, धर्मांग जाणनारा, अने दंडनीति जाणनारा पण घणा हता. हवे एक दहाडो जरत राजा हपथी क्रीडा करता थका पोतानां साठ हजार वीरोने संजालवा लाग्या. ते वखते राजपुरुषोए तेमने नामो से बेश्ने देखाड्या, अने जरत राजा पण तेमने आनंद सहित जोवा तथा बोलाववा लाग्या. पनी दिवसे रहेली चंजनी कला सरखी कांति विनानी, तथा हिमयी विष्ट थएली कमलनी सरखी विरूप थएली तथा सेवकोथी देखाडाती सुंदरीने जरत राजाए जोश. त्यारे लाल आंखोथी चित्तमां थएला क्रोधनी रेखाने देखाडता थका नरत राजा कठिन वचनोथी सेवकोने कहेवा लाग्या के, अरे बुच्चा ! शुं अमारा घरमां कंश जोजन श्रादिक खावा मलतुं न. थी? अथवा तमो शुं श्रा सुंदरीनो कंई थादर करता नथी ? वली रुं श्रा कंश खाती नथी ? के आने शुं कंई रोग थयो बे ? अथवा ते ते विद्याने जाणनारा वैद्यो शुं मरी गया ? वली था मदरहित हाथणीनी पेठे म्लान केम थ ? अने था उपरथी खातरी थाय डे के, खरेखर तमोए माझं बीजुं पण नुकशान कयु होशे !!! एवी रीते बोलता ते राजाने ते सेवको नमीने हाथ जोडी कहेवा लाग्या के, हे स्वामी ! श्री जरत महाराजने घेर तो संघली संपदा बे, केम के, इंडने घेर कंइंदरिजपणुं होय ? वली श्रा सुंदरी कुलदेवीनी पेठे श्रमोने हमेशां पूजनीक बे, तेम मृत्युप्रते उपाय करनारा वैद्यो पण घणा जीवता बेग . पण हे खामी! आप ज्यारथी दिग्यात्रामाटे सिधावेला बो, ते दिवसथी श्रा सुंदरी केवल प्राण धारवामाटेज आंबेलो करे .वली ते वखते श्रापे तेणीने प्रजुपासेथी दीक्षा लेती अटकावी हती, तेथी ते था गृहस्थावासमां पण जावसाधवी थश्ने रहेली . पनी जरत महाराजाए सुंदरीने पुब्युं के, तारे दीक्षा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः सर्गः ११ लेवी बे ? त्यारे तेणीए हा पाड्याथी जरत राजा कहेवा लाग्या के, सुंदरि ! तुं जे श्रा संसारथी विरक्त थर, माटे तने धन्य बे. वली तातना अपत्य सुखदाइ कार्यज करवुं उत्तम बे. वली हे सुंदरि ! विषयरूपी चोरथी लुंटाएला श्रमो तातनां श्रपत्यो थइने पण तु सुखवाला या राज्यमां माची रह्या बीए, माटे हे महासत्वे ! दवे तारी इवाप्रमाणे कर ? एवी रीते जरत राजाए आज्ञा आपवाथी ते हृदयमां अत्यंत श्रानंद पामी. हवे एटलामां त्रण जगतनां नाथ श्री रुषजदेव प्रभु पण जी - वोनी अनुकंपाथी पृथ्वी पर विहार करता थका अष्टापद पर्वतप्रते श्राव्या. त्यां इंद्रोनां समूहोए हर्षथी श्रावीने रत्नोनी श्रेणिथी प्रभुनुं समवसरण बनाव्युं ते वखते त्यांनो उद्यानपाल वांदरानी पेठे कुदीने, हर्षथी जरतपासेवी जय जय शब्द करवा लाग्यो; तथा पढी पृथ्वीपर म स्तक नमावीने कड़ेवा लाग्यो के, हे स्वामी! हुं आपने कल्याणकारी वार्तानी वधामणी श्रापुं हुं के, श्री तातपादोए अष्टापद पर्वतने पवित्र करेलो बे, तथा त्यां देवोए पण दमणाज समवसरण रच्युं छे. ते सांजली हर्ष पामेला चक्रीए प्रफुल्लित मनवाला थइने तेने साडा बार करोड सोनामोहोरोनुं इनाम श्राप्युं पढी जरत राजाये सुंदरीने कथं के, तारो मनोरथ पण संपूर्ण थयो. एम कही ने तेमने तेणीने अंतःपुरनीस्त्री मारफते शुद्ध तीर्थोदकोथी स्नान कराव्यं. पढी तेर्जए तेणीनां मनसरखां पवित्र ने निर्मल श्वेत वस्त्रो पहेराव्यां; तथा अंगे विलेपन क. पी ते पालखीमां बेसीने बत्र चामरथी वींजाती थकी जरतनी पाबल अष्टापद पर्वतप्रते गइ. त्यां तेणीए जवनां तापथी दुःखित थला पोतानां चित्तप्रते केलनां वृक्षसरखं समवसरण जोयुं. दवे जरत सुंदरी वाहनमांथी उतरीने, तथा प्रभुने प्रदक्षिणा देने जक्तिसहित नमस्कार करवा लाग्या. मुक्तिसुखनी स्पर्धा करता एवा जिनना चरणकमलोने साठ हजार वर्षे मेलवीने जरत चक्री अत्यंत आनंद पामवा लाग्या. पी मनमां रहेला श्रानंदनेज जाणे बहार कहाडता होय नहीं तेम, त्रण जगतने स्तुति करवा लायक एवा रुषजदेव प्रजुनी जरत महाराज स्तुति करवा लाग्या के, हे स्वामी ! तमो सर्व प्राणीउने ध्यान धरवा लायक बो, पण तमो कोइनुं ध्यान धरता नथी, तेम तमा इंडोने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० शत्रुंजय माहात्म्य. पण पूजनीक ढो, पण तमोप्रते कोइ पूजनीक नथी; वली तमोज जगतनां पेला नाथ ढो, पण तमाराथी कोइ पेहेलो नथी, वली जगदीश्वरपणाथी स्तुति करवा लायक बो, पण तमो कई कोइनी स्तुति करनारा नथी. वली तमो सर्वने शरणारुप बो, पण तमोने कई कोइनुं शरणं नथी, वली तमो या जगतनां स्वामी बो, पण तमारो कोइ स्वामी नथी. वली मो नुं सुख पण श्रापनेज स्वाधिन बे, केम के ते देनारो आप शिवाय बीजो कोइ नथी. वली उत्कृष्टमां उत्कृष्ट पण आपज बो, आपशिवाय कोइ उत्कृष्ट नथी. वली आप अनादि, अनंत तथा ज्योतिरुप बो, तेम पंडितो आप ध्यान धरे बे, अने आपनाथीज आ त्रणे जगतोने धन्य माने बे. माटे या जवरूपी समुद्रमां वहाणसमान एवा आपप्रते नमस्कार था; वली हे नमनारप्रते वत्सल जाव राखनारा प्रभु ! आपनी पासे हुं मोक्षसुखनां श्रनंदनी याचना करूं बुं. वली हे प्रभु! हुं तो आपनो दास हुं, ने श्रापना तरफथी सनाथपणानी मागणी करूं तुं, माटे हे जगतने शरणाभूत प्रभु ! मारापर कृपा करी मारुं रक्षण करो ? एवी रीते ते चक्रीश्वर प्रजुनी स्तुति करीने, जिनरूपी चंद्रपासेथी नीचे प्रमाणे देशनारूपी अमृत पीवा लाग्या के, शीलबी सौनाग्यपणुं मले बे, सुपात्रदानथी जोगो मले बे, देवपूजनथी साम्राज्य मले बे, तथा तपथी कर्मोंनो दय थाय बे. या सघलुं जावनाथी दणवार पण सेववार्थी अनुक्रमे चिन्मयपणाने पमाडी मुक्तिनां कारणरूप थाय बे. पी ते देशनाने ते सुंदरी प्रभुने नमस्कार करीने कड़ेवा लागी के, हे नाथ ! कृपा करीने मने दीक्षा श्रापो ? तथा मारो तुरत उद्धार करो ? एवी रीतनां तेणीनां श्राग्रहथी प्रभुए तेने दर्षथी दीक्षा श्रापी, अने तेथी ते पण पोताने अत्यंत धन्य मानवा लागी पढी जरतराजा पण एवी रीते सुंदरीनो दीक्षामहोत्सव करीने, तथा प्रजुने नमीने, पोतानी नगरीमां श्राव्या. एक दहाडो दिग्जयमां पण नहीं आवेला पोतानां नाइटने जोवानी इवाथी जरत राजा तेमने संजालवा लाग्या. पढी तेमणे प्रीतिथी तेने बोलाववामाटे दूतो मोकल्या; केम के राजा प्रायें करी ने दूतरूपी पगोवाला होय बे. ते दूतो ते पासे जइ प्रथम साम वाक्योथी तेजने समजावबा लाग्या; पण तेये तेम नहीं मान्याथी चाकरां वचनोथी ते ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ तृतीयःसर्गः मने कहेवा लाग्या के, जो तमारे जीवित श्रने राज्यनी पण श्छा होय, तो तुरत जरतनी पासे श्रावी हमेशां तेमनी सेवा करो? एवी रीतनी तेउनी कडवी वाणी सांजलीने, ते राजा मानश्री अष्टापदप्रते रहेला प्रजुपासे गया; त्यां प्रजुने नमीने तथा स्तवीने, आंखोमां किंचित आंसु लावीने पोतानो व्रतांत ते कहेवा लाग्या के हे तात! श्रापे दीक्षा लेती वेलाए श्रमोने अने नरतने पण यथायोग्य, श्रापनी श्यामुजब राज्यो थाप्यां हतां; हवे दावानलनी पेठे परनी उन्नतिने नहीं सहन करीने जरते श्राखा ब खंडनो ग्रास कयों. अने अमो तो आपनी जक्तिमां तत्पर थश्ने श्रमा. रां राज्योथीज संतुष्ट थथा थका, सुखेथी दिवसो गालता हता. पण हवे तो था मोटा नाश् श्रमारां राज्योने पण देवाने श्छे बे, माटे हवे श्रमारे शुं करवू ? ते माटे पूर्वनी पेठेज श्राप अमारां हितनीश्वाथी फरमावो ? ते सांजलीने जगतनां नाथ जगतने पण प्रिय लागे एवं वचन कहेवा लाग्या के, पराक्रमी क्षत्रीए शत्रुजेने मारवाज जोश्य !!! अने तेथी हमेशां बलमा तत्पर अने पासेज रहेता एवा रागद्वेषरूपी महाशत्रुने तमो मारो ? श्रा संसाररूपी समुजमां राग . ते पत्थरनां ढगला सरखो , तथा द्वेष तेसम्यक्त्वरूपी कल्पवृक्षने बालवामां अग्नि सरखो . माटे हे वत्सो! व्रतरूपी राज्य मेलवीने, अति जयंकर तपरूपी हथीयारोथी, ते रागषरूपी शत्रुने हो ? एवी रीते प्रनुपासेथी बोधिबीज पामीने, अत्यंत वैराग्ययुक्त थया थका, मोक्षसुखनी श्वाथी तेए तुरत दीक्षा लीधी. पड़ी ते सघली वात दूतोए जरतने जर कही; त्यारे सूर्य जेम सघलां तेजोने, तथा समुन जेम पाणीनां समूहोने, तेम जरते तेनां सघलां राज्यो लेश्ने खाधीन कर्यां; अने तेऊनां पुत्रोने पोतानी श्राज्ञामां राखीने राज्यो सोप्यां; केम के, राजा पोतानी श्राझा मनाववानेज श्छे .हवे सूर्यनां दर्शन सरखो, वरसादनी धारासरखो, पवननी गतिनी पेठे सर्वव्यापी, तथा पर्वतसरखो वजनदार जरतनो प्रताप शत्रुथी सहन न करातो हवो. पोतानां हाथथी दीधेलां दानोथी याचकोनी दरिखताने, तथा धर्मरूपी सूर्यथी अज्ञानरूपी अंधकारना समूहने, श्रने चक्रथी शत्रुनां कुलने हपता एवा श्री नरत महाराजा जयवंता वर्तो ? ते चक्रीश्वरे सकल जगतमां धर्मने एवो तो फेलाव्यो के जेना ध्वनिथी सर्व पापो तथा (अंत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ शत्रुंजय मादात्म्य. रंग ) शत्रु नाश पामवा लाग्या नमता राजार्जुनां मुकुटनां किरणोनां समूहोथी मनोहर थएल बे पादपीठ जेनुं, तथा लोकोनां तापने हरनारा, श्री जरतराजारूपी चंद्र शत्रुनी कीर्तिरूपी तारार्जुने पोतानां गुणरूपी किरणोनां समूहोथी त्रास श्रापवा लाग्या (ए आश्चर्य बे ) एव रीते श्राचार्य महाराज श्री धनेश्वरसूरिए बनावेला श्री शत्रुंजय मदा तीर्थनां माहात्म्यमां श्री कृषनदेव प्रजुनो जन्म, राज्या जिषेक, दीक्षा, केवलोत्पत्ति ने रतनां दिग्जयनां वर्णनरूप त्रीजो सर्ग समाप्त थयो. चतुर्थः सर्गः प्रारम्यते. जे प्रभु रूपी व्यापारीना देव, असुर, भुवनपति ने मनुष्य अनु ग्रहवाला बे, तथा कमल, समुद्र, चंद्र ने विद्याधरो संपदा रूप बे, तथा कामधेनु, कल्पवृक्ष, दक्षिणावर्त शंख छाने रत्नरूपी श्रकरो (खाणो) बे, एवा श्री आदिनाथ प्रभु तमारुं रक्षण करो, १ हवे श्री वीरप्रभु इंडने कड़े बे, हे इंद्र ! वली पण या तीर्थनुं वखाणवा लायक तथा आश्चर्य वालु माहात्म्य तुं सांजल ? एक दहाडो उलसायमान सुवर्ण कुंडलवाला जरत इंड जेम मेरुपर तेम सिंहासनपर बेठा हता. ते वखते त्यां रहेला बत्रीस हजार राजार्जनां मुकुटोना किरणोथी तेनी वरसाद सरखी सजा, विजली सहित देखाती हती. वली ते वखते तुल्य अलंकार तथा वस्त्रोवाला मंडलीक ने सामंतोथी, सामानिक देवताथी जेम इंद्र तेम जरत चक्री शोजता हता. एटलामां सुषेण सेनापति पृथ्वीपर मस्तक राखीने, तथा बन्ने हाथो मस्तकपर जोडीने जरतने विनंति करवा लाग्यो के दे खामी ! सर्व जगोए विस्तार पामती आपनी श्रज्ञाने, जिननी आशिषनी परें राजार्ज मस्तके चडावे बे. वली आपना चक्ररत्ननो उदय थवाथी सघला क्षुद्र उपद्रवो नाश पाम्या बे, केम के, सूर्यनुं बिंब तपते ते शुं तारानो समूह रही शके बे ? वली तमोए दानथी दरिsudai दारिद्रने, तथा तलवारथी शत्रुर्जने नाश कर्या बे. तो पण हे स्वामी ! अजव्यनां मनप्रते जेम जिननो बोध, तेम श्रापएं चक्ररत्न श्र युधशालामा प्रवेश करतुं नथी. ते सांजलीने चक्रीए मंत्रिनां मुखसामुं जोयुं. केम के, राजा प्राएं करीने मंत्रीमुखा होय बे पढी विश्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः सर्गः १२३ जर नामनो मुख्य मंत्री जरतने नमीने, हाथ जोडी, विनयथी वामन यो को कवा लाग्यो के, हे स्वामी ! विस्तार पामता आपना प्रतापटकाववाने समर्थ त्रणे लोकमां कोइ देव के पुरुष नथी; वली मोटा मोटा घंटी सरखा पत्थरोनी गणना कराय, पण पर्वतनी खीषोमां रहेला कांकराने ते कोण गणे ? तो पण कोइक वीरपणांनुं डोल घालतो पृथ्वीपर रहेलो लागे बे, के जे डुर्नयी घरमां शूरो थने श्रापनी आज्ञा मानतो नयी. दवे मालुम पड्युं ! ! ! हे स्वामी ! जिताएला राजाdai आपनो जाइ बाहुबलि के जे, बलवान ने गर्वथी पर्वत सरखो बे, ते दजु बाकी रहेल बे. बाहुबलिना हाथनां बलने रणसंग्राममां इंद्र पण सहन करवाने समर्थ नयी, ते पण हवे अपनी पासे निर्बल यशे; केम के इंद्रनां वज्र सरखा श्रापना दोर्दंडनां घातथी पर्वतनी पेठे सघला राजानं चूर्णपणाने पामे बे. वली थापे या दिग्जयनां मिशथी केवल दिग्निरीक्षण कर्तुं बे, हवे था बाहुबलिने जीतवाथी तमारुं चक्रीपणुं सफल थशे. वली हे स्वामी ! " या मारो जाइ बे" एम विचारि श्रपे तेनी उपेक्षा करवी नहीं, केम के, शरीरनो रोग पण शुं मूलमांथी न उ खेडवो ? वली आज्ञा के मूल जेनुं एवं राज्य पंडितोए कहेलुं बे, केम के पोतानुं पेट जरनारा तो बीजा घणा होय बे, तेमां यश शानो ? ते सां "" लीने स्नेह ने कोपने वश थएला चक्री जरा विचार करीने श्रादरसहित मंत्री ने कड़ेवा लाग्या के, एक बाजुथी " मारो आ जाइ बे तेथी मारुं मन शंका पामे बे, छाने बीजी बाजुथी ते मारी खाज्ञा मानतो नथी, तेथी क्रोधबुद्धि आवे बे. वली पोतानां जाइ साथे युद्ध करवामां मारा मनने लगा वे बे, छाने शत्रुने नहीं जीतवाधी चक्र शांत तुं . वली जेनी श्राज्ञा घरमां पण पलाती नथी, तेनी श्राज्ञा बहार पलाती केम कद्देवाय ? छाने नाना जाइनी साथे युद्ध करवायी लोकापवादनो पण जय रहे बे. ते सांजली अवसर उलखनारो, तथा राजानां श्रभिप्रायने जा नारो ते मंत्री कड़ेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! आपनो नानो जाइ थापनुं संकट दूर करशेज; केम के गृहस्थीउनो एवो सामान्य श्राचार बे के, मोटो जाइ श्राज्ञा थापे, अने नानो जाइ ते मस्तकपर धारण करे; माटे प्रथम दूत मारफते यापनी श्राज्ञा मानवामाटे तेमने कहेवरावो, पण ते, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ शत्रुजय मादात्म्य. हाथी जेम कमलनीनां बंधने, तेम तमारी थाझाने सहन करशे नहीं. अने एवी रीते ते अविनयीने शिक्षा करवाथी तमारो लोकापवाद थशे नहीं, अने तेथी तमारी पण जीत थशे. एवी रीतनुं सचीवनुं वचन सांजलीने चक्रीए, नीति जाणनार, तथा वाचाल एवा सुवेग नामनां दूतने बाहुबलिप्रते मोकल्यो. पड़ी ते सुवेग पण पोतानां स्वामीनी आज्ञा ले. श्ने, तथा वेगवाला रथमां बेसीने, राजनां मूर्तिवंत उत्साहनी पेठे चालवा लाग्यो. उत्तम सैन्यनां परिवारवाला ते सुवेगे पण मार्गे चालतां शत्रुसरखां अपशुकनोने जरा पण गणकार्यां नहीं. ते वखते गधेडो नश्मादिक स्थानमा रहीने खराब रीते जुकवा लाग्यो; तथा धूलि उडाडतो वायु तेनी सन्मुख वावा लाग्यो, अने प्रचंड कालदंडनी पेठे कृष्ण सर्प तेनी अगाडी थश्ने जवा लाग्यो; एवी रीतनां अपशुकनोने जाणतां थकां पण दूत वेगथी जवा लाग्यो, केम के, तेवा माणसो स्वामीना कार्यमाटे विलंब करता नथी. वली सिझा मार्गमां पण तेनो रथ जडना चित्तनी पेठे स्खलना पाम्यो, तेम तेनी डाबी आंख फरकवा लागी. एवी रीतनां अरिष्टोथी पगले पगले वारण करातो पण ते अनुक्रमे कुछ जंतुथी उस्तर वनमां गयो. त्यां को जगोए जयंकर हाथी सरखा नीलोने, तो कोई जगोए मारेल ने हाथी जेए, तथा लाल चणोजी सरखी श्रांखोवाला सिंहोने, तो कोई जगोए हाथीथी उखेडाता पर्वतनां टुकडा सरखा वृक्षोने, तो कोई जगोए श्राश्चर्यकारी चित्राउने, अने मुंडनां समूहोने, तेम पोकार करता, चालता तथा युद्ध करता श्रने बलवानोने पण जय श्रापता केटलाक मुष्ट जंगली प्राणीउने जोतो थको, मृत्युनां क्रीडावन सरखां, तथा कालरात्रिने आनंद आपनारां, तथा वृदोनी घटाथी नथी देखातो सूर्य ज्यां एवा वनने ते सुवेग उलंगी गयो. पनी अनुक्रमे ते ब खंडथी बीजा, तथा अखंड लक्ष्मीनां स्था. नक सरखा, श्रने इंजने रहेवानां घर सरखा बाहुबलीना बहलि देशमा पहोंच्यो. ते त्यां ठेकाणे ठेकाणे तथा गाम गाम प्रते मनोहर गोपीउथी गवाता श्री युगादीशप्रजुनांगुणग्रामोने सांजलवा लाग्यो. वली पर्वत,गाम, सीमा विगेरेमा बाहुबलिना लोकोत्तर बलतुं मांहोंमांहें थतुं वर्णन तेणे वारंवार सांजल्यु. वली त्यां तेणे बाहुबलि शिवाय बीजा राजाने नहीं जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः २३५ पता, तथा लदमीथी कुबेर सरखा लोकोने जोया. वली सर्व जगोए प. वतनां शिखरो सरखा धान्यनां ढगलाउने तथा फलप वृक्षोने जोतो थको ते मनमां चमत्कार पामतो पामतोजवा लाग्यो. एवी रीते अनुक्रमे वेगथी त्रण लाख गामोने उलंगीने, ते बाहुबलीनी राजधानी तक्षशिला . नगरीप्रते पहोंच्यो. त्यां तेणे उंचां अरिहंत प्रजुनां मंदिरोपर रहेली धजाऊनी पंक्तिथी वींकाती, तथा मोतीनां ढगलाउँथी जाणे पसीनावाली, तथा कुबेर सरखा सामंत लोकोवाली, अने लीलाथी मनोहर, तथा अदय संपदावाली, इंजपुरी सरखी ते नगरीने जोश. त्यां तेनी थांखोने वर्ष थापता, अने कवायत खेलवाथी खिन्न थएला क्षत्रीउने दणवार जोश्ने तेना मनमां जय थयो. पड़ी पुकानोनी श्रेणिपर रहेला, तथा पोताने “ अहमिंग" मानता शाहुकारोनां पुत्रोने जोतो थको अनुक्रमे ते राजानां राजदरबारमां आव्यो. पड़ी महेनत विना रत्नोनां किरणोनां समूहोथी आकाशने चित्रित करता, तथा, कृत्रिम अने श्रकृत्रिम सिंहो, अने दीपडाउँथी बीता ने हाथी ज्यां एवा, तथा हाथमां खुलां हथीयारोनां समूहवाला, अने बीजानी बाया जोवाथी पण सावधान रहेता द्वारपालोथी थाश्रित कराएला, तथा को जगोए खरती कस्तुरीथी नरेला, अने को जगोए शत्रुनां हृदयनी पेठे घोडानी खरीउथी खोदाएला, तथा मंडपोथी देवलोकनी पेठे मंडित थएला, एवा अति सुंदर राजमेहेल प्रते ते पहोंच्यो. त्यां क्षणवार सुधि द्वारपालोथी रोकी रखाएलो, श्रने पड़ी बडीदारे राजानी ज्ञाथी प्रवेश क. राएलो ते सुवेग बहु जयसहित राजसनामां दाखल थयो. त्यां तेणे शिखरोथी जेम मेरु, तेम बाहुबलि सरखाज खरूपवाला मुकुटबंध हजार राजाथी सेवाएला, किरणोथी जेम सूर्य, तेम उत्तम शृंगार वाला, अने मूर्तिवंत उत्साह सरखा कुमारोथी अधिष्ठित थएला, वली रत्नोनी जीत अने मणिनां स्तंजोमां पडतां प्रतिबिंबोनां मिशथी अमात्योए करीने अनेक मूर्तिवाला, मुखरूपी सोनेरी कमलनी शंकाथी श्रावेला हंससरखा चामरोए करीने, देवांगनोउथी जेम इंड, तेम वारांगनाउथी वीजाता, पवित्र वेषवाला, तथा सुवर्णदंडने धरनारा बडीदारथी नामग्रहणपूर्वक वर्णन करातुं ने नमता राजाउँनुं जेनी पासे एवा, तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ शत्रुंजय माहात्म्य. पोतानां तेजोथी सकल जगतने तृण समान चिंतवता, एवा बाहुबलिने सिंहासन पर बेठेला जोया. अपूर्व क्षत्रीय तेजवाला ते बाहुबलिने जोइने प्रथम तो होन पामेलो ते सुवेग दूत आकार गोपवीने तेमने नमतो हवो. पठी मस्तकपर जोडेल बे हाथ जेणे, तथा बाहुबलिनां मुखपर राखेल बे दृष्टि जेणे एवो ते दूत राजाए चुकुटी संज्ञाथी देखाडेला आसनपर बेठो. पी बाहुबलि पडबंदाथी सजानी जींतने पण वाचाल करता थका गंजीर वाणीथी तेने कड़ेवा लाग्या के, हे सुवेग ! तातनी पेठे मने पूजवा योग्य एवा मारा मोटा भाइ तो खुशी मां बे नी ? तथा अयोध्या नगरी तो कुशलतामां बेनी ? वली पिताजीये लांबा कालसुधि लालन करेली एवी प्रजा पण कुशल बेनी ? तेम श्रार्य एवा मोटा नाइनो ब खंडनो विजय तो अखंड रीते थयो बेनी ? वली ते दिग्जयमां चोरासी लाख रथो, चोरासी लाख हाथी ने चोरासी लाख घोडाउने कं बाधा तो थइ नथी ने ? तेम सघला राजा पण कुशलतामां बे नी ? तेम त्यां कोइने कंं पण विघ्न तो थयुं नयी ने ? एटलुं बोलीने बादुबलि रही गया बाद सुवेग पण तेमने नमस्कार करीने, तथा तेमनी वाणीथी कोन पामीने जरा विचार करी कड़ेवा लाग्यो के, ते तमारा मोटा जाइनी कृपार्थी अन्योने घेर पण कुशलपएं थाय बे, त्यारे तेमना कुशलमाटे तो पुबवुंज शुं ? वली जे विनीता नगरीनां तमारा मोटा जाइ अधिपति बे, ते नगरीने जिननां वचनमां जेम संशय, तेम विघ्ननो अंश पण क्यांथी होय ? वली जेनां शत्रुर्जने चक्ररत्न पोतानी मेलेज नेदी नाखे बे, तेनी प्रजामां तो सर्वदा कुशलज होय बे. वली जेनी सेवा सर्वे सुर, असुराने मनुष्यो करे बे, तेनी सामे थवाने व खंडना विजयमां कोण हिम्मत धरी शके तेम हतुं ? वली त्रणे लोकनो विजय करवामां जे समर्थ बे, एवा जरत चक्री जेनां स्वामी बे, तेवा तेनां घोडा, रथ ने हाथीने कोण विघ्न करी शके तेम डे ? वली ते लाख यो, तथा राजार्ज, विद्याधरो ने देवोथी सेवाय बे तो पण बांधवो विना तेने चेन पडतुं नथी. सर्व राज्योमां जमतां थकां तेमणे क्यांय पण जाने जोया नहीं, छाने तेथी उत्कंठासहित ते बांधवोने मलवाने छे छे. वली दिग्जयम तेम बार वर्षनां राज्याभिषेकमां पण ते श्राव्या नहीं; वली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः सर्गः १२१ बेटे ते सघला निरीह तथा पोतानां शरीरमां पण निस्पृह थया बे. हवे तमारामां जरत महाराजनी उत्कंठा होवाथी मने वहीं तेमणे मोकलेलो बे. माटे हवे तमो त्यां श्रावो, अने तमारा संगथी तेमने सुख आपो ? केम के बंधुविना तेमनुं राज्य दीपतुं नथी. वली कुलीनोने पोतानो मोटो जाइ तातनी पेठेज पूजनीक होय बे, छाने तमो तेमने नमाथी तमारुं मान पण विशेष थशे. वली ते चक्रीनां चरणोने देवो पण नमे बे, तेथी तेमनी सेवा करवाथी तमोने लगा यशे नहीं. वली 'हुं श्राटला दिवससुधि गयो नथी' एवी शंका तमो करशो नहीं, केम के, ते मोटा जाइ बे, माटे तमारो अपराध क्षमा करशे. वली तमारा संगमयी ते मोटा जाइ सुख पामीने वात्सल्यपणाथी तमोने अधिक राज्य आपशे, तेम तमारुं सर्व कष्टोथी ते रक्षण करशे. वली तमो बन्ने इंद्र ने उपेंद्रनी पेठे, तथा अश्विनी कुमारोनी पेठे, वैरीनां हृदयमां शव्यरूप या थका मलीने राज्य करो ? वली 'ते मारो जाइ वे' एम विचारि तमारे निर्भय धनुं नहीं. केम के अहंकारीने शिक्षा आपवानी दारुण राजनीति बे. वली जूता निमित्तियानुं वृष्टितुं वचन, वरसाद वरसवार्थी जेम निष्फल थाय बे, तेम तमारा विषे जरतने खोटुं समजावनाराउनुं वचन निष्फल थशे. वली जरत महाराजनुं सघलुं सैन्य तो एक बाजु रयुं, पण हाथमां दंड धारण करता एक सुषेण नामना तेमना सेनापतिनुं बल पण रणसंग्राममां कोण सहन करी शके तेम बे ? वली रणसंग्राममां पर्वतोनी पेठे उबलता तेनां चोरासी लाख हाथीउने तथा समुद्रनां मोजांनी पेठे उबलता तेटलाज घोडाउने रोकवाने पण कोण समर्थ बे ? वली तेनां अन्य सैन्योनी तो गणनाज शुं करवी ? केम के, भरत राजानां संग्रामने बलवान इंद्र पण सहन करी शके तेम नथी !!! वली ते जरत महाराजाने इंद्र पण पोतानुं श्ररधुं श्रासन श्रापीने पासे बेसाडेबे, तेवा तमारा मोटा चाइने नमवामां तमोने लगा शानी ? वली तमोने राज्यनी ने जीवितनी पण जो इछा होय, तो जरत महाराजनां चरणकमलने तमो तुरत सेवो ? एवी रीतनां सुवेग दूतनां वचनो सांजलीने बलवान् बाहुबलि पोतानां खजाउपर दृष्टि करता था, तथा ( क्रोधथी ) लाल यांखोवाला थइने तेने कड़ेवा लाग्या के, हे दूत ! Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ शत्रुजय माहात्म्य. तुं खरेखर वाचाल , तथा परस्थानमां श्रावीने पण जे तुं श्रावां श्रहितकारी वचनो ऊंचे प्रकारे बोल्यो, तेथी खरेखर तुं तारा खामीनुं कार्य करनारो . ते जरत चक्री मारा मोटा नाश , माटे ते मारे पू. जनीक , तेमां संशय नथी; केम के, मोटा नाश्ने पितानी पेठे पूजवा, ए कुलीनोनो आचार बे; पण मोटो नाश् पोतानी मोटाश्ने ज्यांसुधि जालवी राखे, त्यांसुधि तो ते नाना नाश्ने पूजनीक बे, पण ज्यारे ते पोतानी मोटाश्ने उलंगी जश् कार्य करे, त्यारे तेने शी रीते सेवाय ? वली तेमणे बल करीने नाना नानां राज्यो जीनवी लीधां, माटे अहो! तेनुं नाश्पणुं श्रने स्नेहरस पण केटलो बधो मोटो जे !!! वली ते सघला पण तातनांज पुत्रो इता; अने रणसंग्रामथी कंई डरता नहोता; पण "था मोटा जाइ साथे कलह करवो !!" एम विचारि तेउँने लगा थश्. पड़ी तेजेए विचाखु के, था मोटा जाश्ने तो शरम नहीं श्रावी; पण अमोने लगा थावे , एम विचारि तेए पिताजी पासे जश् दीक्षा लीधी. वली ते जरतने जे राजा सेवे , तेउने तो अधिक राज्य आदिकनी श्छा बे, पण ढुं तो पिताजीए श्रापेलां राज्यश्री संतुष्ट थयेलो बुं, माटे मारे तेनी सेवा शामाटे करवी जोश्ये ? वली बंधुऊनां राज्योने ग्रहण करतां थकां में जे तेमनी उपेक्षा करी, एवी रीतनो मारो दोष शुं ते चाडीबा तेने सूचवशे ? !! वली तुं जे कहे जे के, ते तमारो अपराध दमा करशे, ते शुं में तेमनां कंगाम श्रादिक नांग्यां ले ? के शुं? वली पण जे तेने भरधा आसनपर बेसाडे , ते पण "श्रा श्रीषनदेव प्रजुना ज्येष्ट पुत्र , माटे माननीक " एवं विचारिनेज बेसाडे बे, तेमां कंई जरतनो पोतानो प्रनाव नथी. वली ज्यारे हुँ रणसंग्राममां चडीश, त्यारे तेनुं ते सैन्य, ते बिचारो सुषेण, ते चक्र अने ते जरत पण शुं हिसाबमा २ ? वली अगाउ अमो बन्ने ज्यारे गंगानां कांगपर कवायत करता हता, त्यारे हुं तेने आकाशमां उबालतो, अने दया लावी तेने पालो कीली सेतो; ते सघर्चा हमणा या राज्यमदशी झुं ते जूली गयो ? के जेथी पुष्ट आशयथी माराप्रते तारासरखा दूतने मोकल्यो!!! वली तेनां नाडुत लश्करी तो रणसंग्राम वखते क्यांनाक्यांए चाल्या जशे; थने ते वखते केवल जरतनेज मारा था जुजदंडनां बलनुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः सर्गः १२ए दुःख सहन करवुं पडशे !! माटे हे दूत ! तुं चाल्यो जा ? केम के न्यायी राजाए दूतने मारवो जोइए नहीं. फक्त ते जरतनेज तेनां श्रन्यायनुं फल हुं चखाडीश. एवी रीतनी गंजीर वाणीथी मनमां चमत्कार पामीने ते दूत पोतानो जीव लेइ ते श्रासनपरथी धीरे रहीने उठ्यो . दिङ्मूढ वाथी तथा श्रांखनां चपलपणाथी तथा जयथी घांटीमां श्रावता पोताना दुपट्टाथी स्खलना पामतो थको, अने उगामेला दथीयारोवाला कुमारो अने राजाउंची पोताने हाएलो मानतो थको ते धीरे रहीने समांथी निकल्यो. पढी ते जीवितव्यनां देहधारी मनोरथ सरखा रथपर जयजीत यो अको वांदरी जेम वृक्षपर तेम चडी बेठो. ते दूतने जोइ त्यांना लोको नीचे प्रमाणे मांहोंमांहें वातो करवा लाग्या. एक - श्र कोइक नवीन माणस क्षणवारमां सजामांयी निकल्यो !! बीज-रे ! हुं तो एम तर्क करुं हुं के, या जरत राजानो दूत बे. एक - अरे ! शुं बाहुबलि विना या पृथ्वी पर कोई बीजो राजा बे शुं ? !! बीजो आज श्रापणा बाहुबलि राजानो मोटो जाइ, तथा श्री कृषन - देव प्रजुना जरत नामे पुत्र राजा बे. - एक-त्यारे शुं ? ते घाटलो वखत कोइ देशांतर गया दता ? बीजो - ते चक्रवर्ती ; अने तेथी व खंड जरतक्षेत्रने ते जीतवा गया हता. एक - पण त्यारे तेणे या बाहुबलिप्रते दूत शामाटे मोकल्यो होशे !!! बीजो - शा माटे शुं ? पोतानां दुकममां रही सेवा माटे बाहुबलिने बोलाववा माटे ? !!! वली बीजुं शुं ? समज्यो ! ! ! एक-त्यारे शुं ! तेनी पासे कोइ शिखामण श्रापनार मंत्री नहीं होय !!! के जे तेने श्रावां कार्यथी निवारे ! ! ! बीजो आए कोक उडु लागे बे ! ! ! तेनी पासे तो सेंकडो मंत्री बे, ने तेज कार्य माटे तेने विशेषे करीने प्रेरणा करी बे. !! एक-त्यारे तो ते जरत सुखे सुतेला सिंहने लाकडी मारी जगामवा जेवुं करे ! बीज - एम बे ! ! ! केम के, प्राणीउनुं जेतुं जाग्य तेवी तेने बुद्धिश्रवेबे ! ! ! Jain Educationa International १७ For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० शत्रुजय मादात्म्य. एवी रीतनी नगरीनां लोकोनां मुखमांथी निकलती कथाने सांजलतो थको ते सुवेग रथने वेगथी हांकीने तुरत नगरी बहार निकल्यो. प. बी सुनटोनां जुजास्फोटोथी, तथा तेजेनां विविध प्रकारनां हथीयारोनां नर्तनोथी, अने शुरवीरोनां सिंहनादोथी नडकता रथना घोडा जेनां, एवो थयो थको ते दूत चालवा लाग्यो. पनी सिंहनां टोलांनी व्यथाथी मुक्त थएलायने दिङ्मूढ थश्गजराएला दरिणनी पेठे, नगरमांथी निकव्याबाद ते थोडी थोडी जीवितव्यनी श्राशा राखवा लाग्यो. पड़ी मार्गमां नगर नगरप्रते वैरनी वातोमां बादरवाला, तथा खुल्लां हथीयारोवाला, अने पोतानां जुजामदथी अहंकारयुक्त थएला सुनटोने, तथा बालकोने पण रणसंग्रामनी उत्कंगवाला, अने हाथमां शस्त्रवाला जोश्ने ते दूत मनमां विचारवा लाग्यो के श्रहींनां या स्त्री बालको विगेरेपण युद्धनी - बावाला , तो शुं था पृथ्वीनोज तेवो गुण जे ? के बाहुबलिनो प्रनाव !!! वली जेवा राजा तेवी प्रजा पण होय अने तेथीज था लोको पण पोतानां स्वामिनां बलनां माहात्म्यथी शूरा थएला . वली तेजेनां मुखथी ते दूते जरतनी साथे बाहुबलिनां युद्धनी वात तो उपहास तरीके जाणी; ते वात युक्तज बे, केम के पोतानां स्वामिनां बलथी माणसो परनी अवज्ञा करेज . वली त्यां ते पोतानां खामिनां तेजनेज जेम तेम हथीयारोने सजवा लाग्या, तेम केटलाको घोडाउने खेलाववा लाग्या, तथा रथोने समारवा लाग्या; तेम केटलाको जंगम मेहेलो सरखा तंबुर्ड सज करवा लाग्या, अने केटलाको कवचो तथा नाथांउने दृढ करवा लाग्या. पली ते दूत ज्यारे मार्गमां चालतो हतो, त्यारेत्यांना लोको जाणे बापमार्यानुं वैर होय नहीं, तेम तेना तरफ करडी नजरे जोता हता; वली ते दूते त्यां सर्व जगोये पर्वतमा रहेता राजाउने पण बाहुबलिप्रते बहु नक्तिवाला, रणसंग्राममाटे सऊथयेला, तथा खुट्खा हश्रीयारोवाला जोया. एवी रीतनुं जोश्ने सुवेग दूत लोकापवादथी डरीने पोतानाशात्माने निंदवा लाग्यो के, श्राबन्ने जानां वैररूप हुँ थयो; वली ते विचारवा लाग्यो के, चक्रीने हजु शुं खोट रही गइ हती के, था बाहुबलिनी पासेथी सेवानी श्वा करी !! फोकट था केसरी सिंहने जगाडवा जेवू कयुं !! एवी रीते वारंवार विचारतो थको ते दूत केटलेक दिवसे रथना वेगयी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः सुखे समाधे पोताना खामिना देशमां श्राव्यो. त्यारे तेणे पोतानां लोकोनी एवी वाणी सांगली के अरे नाच! जेटलामां बाहुबलि पासेथी दूत पाडो श्राव्यो नथी, तेटलामां स्त्री, डोकरां विगेरे सर्व सामान तुरत किसाउँमा दाखल करो? वली नहीं पाकेला धान्यो पण तुरत लणी स्यो? तथा नूमिमां डाटी मेलो ? के जेथी सर्वनो नाश न थाय. वली केटलाको कहेवा लाग्या के, अरे! बोकरां बैयां तो एक बाजु रह्यां, पण पोता. तुं शरीर सांचवqए उर्खन बे; वली ज्यारे बाहुबलि गुस्से थयो, त्यारे तो श्रापणुं किसानुं बल पण फोकटज . एवी रीतनी लोकोनी वाणी सांजलीने दूत विचारवा लाग्यो के, आ लोको तो माराधी पण वधारे वेगवाला लागे ! के जेठ श्रावी रीतनो पोतानो जय प्रगट करे . एम विचारतो, तथा बाहुबलिनां वचनने याद करतो थको ते दूत तुरत अयोध्यामां आवी नरत महाराजने नमस्कार करतो हवो. पडी ते नक्तिथी हाथ जोडीने नैगमेषी देवनी पेठे जरत महाराजनी सामे बेठो. त्यारे चक्री जरा हसीने तेने स्नेहथी पूबवा लाग्या के,हे दूत ! तुं तुरत श्राव्यो, तेथी मारा नाश्ने कुशलतो बेनी? अथवा में तेनी बालक्रीडा वखते घणीवार परीक्षा करी, के ते गंधहस्तीनी पेठे अन्यनी आज्ञा सहन करे तेम नथी. ते सांजली सुवेग पण नमस्कार करीने जरतेश्वरने कदेवा लाग्यो के, हे स्वामि ! ते बाहुबलिने अकुशल करवाने आ पृथ्वीपर कोण समर्थ ? वली में तेमने प्रथम सामवाक्योथी घणा समजाव्या; अने पडी विविध उपायोथी समजाव्या, पण ते तो कंइंगणकारता नथी. वली सुषेण, सैन्य अने चक्रादिकनां वर्णन वखते अवज्ञा करीने, तेणे उ खंड विजयनी तो वात पण सांजली नहीं; पण उलटुं पोतानां खनाउँतरफ दृष्टि करीने तेणे मने कह्यु के, हे दूत! तुं तुरत तारा स्वामी पासे जा? अने तेनां राज्य अने जीवितमाटे तुरत तेने मारीपासें मोकल? वली ते देशनां सघला लोको तेनाज रागी बे, अने पोतानां जीवितदानथी पण तेनीज लक्ष्मीने श्वे. वली तमो वैरी थवाथी ते रणसंग्राम माटे तातामाता थ रह्या बे, केम के, तेउमां पोतानां स्वामिनी शक्तिनां गुणो थावेला . एवी रीते दूत कही रह्या बाद चक्री क्रीडापूर्वक कहेवा लाग्या के, ते मारो नाहानो नाश् शत्रुरूपी काष्टप्रते अग्निसरखोज . वली हुँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ शत्रुजय माहात्म्य. ते मारा जाश्नी साथे रणसंग्रामरूप दुःखदायक विरोध करीश नहीं; केम के सर्व देशोमा ढुंढतां पण सगो नाश मली शकतो नथी. वली माणसोने संपदा राज्य विगेरे सर्व जगोए मले बे, पण सगो ना तो लाग्यविना क्याए पण मली शकतो नथी. वली मन विनानुं जेम दान, चनुविनानुं जेम मुख, तथा मंत्रिविनानुं जेम राज्य तेम बंधुविना था जगत वृथा बे; वली जे धन बंधुनां उपकारमाटे यतुं नथी, ते धन वृथा , तथा जे जीवित कुःखीनां कु:खो मटाडवामाटे थतुं नथी, ते जीवित पण वृथा . वली जेना घरमां गोत्रीउनां घातथी मलेली लक्ष्मी विलास करे , ते घरनां स्वामिने पतित जाणवो, तथा तेनुं राजतेज पण शोजतुं नथी. वली “श्रा पराक्रमहीन " एम लोको जले मारी हांसी करे, पण हुं था नाना नाश्नी साथे युद्ध करीश नहीं. हवे पोतानी (बाहुबलिए करेली) निंदाथी अंतरमां गुस्से थएलो, तथा महा उत्साही सुषेण सेनापति, राजानी ते वाणी सांजलीने धीर श्रने गंजीर वाणीथी कदेवा लाग्यो के हे स्वामी! युगादीश प्रजुनां पुत्र एवा त. मोने दमा लाववी युक्तज डे, श्रने बंधु संबंधि अपूर्व स्नेह तमोने क्षमा करावे . पण हे स्वामी! आपनो था स्नेह एक हाथनी ताली सरखो , केम के,थापनापर तेनी दृष्टि शत्रुतावाली बे, अने तमो उलटा तेनापर स्नेह करो जो! वली राजाए तो पोतानी पाझानो जंग करनार एवा नाश्नी पण उपेक्षा करवी जोयें नहीं, केम के राजाउने तो श्राझाज ज्योत्स्नानी पेठे सर्व तेजनी करनारी. वली पोतानांज राज्यथी कृतार्थ थएला राजाउँजे दिग्जय करे , ते कंलोजथी नहीं, पण पोतानां पराक्रमनी वृद्धिमाटेज करे .वली श्रागामि कालमां पोतानुं हित श्छनार माणसे शत्रुनी उपेक्षा करवी नहीं, केम के ते क्षयरोगनी पेठे वृद्धि पामतो थको पो. तानेजहणे .माटे ज्यांसुधि तमारा सैन्यनी रजोनी श्रेणिथी था सूर्यमंडल वायुं नश्री, त्यांसुधि ते बाहुबलि कांखो थश्ने पोतानो देश बोडशे नहीं.वली ज्यांसुधि तमारा हाथीनां सैन्यनां नारथी था पृथ्वी नमी नथी, त्यांसुधि अहंकारथी उकत थएला ते बाहुबलिनी गरदन केम नमशे ? माटे हे स्वामी ! अपने या कार्यमा जरा पण विलंब करवो लायक नथी. जो मारा वचनपर श्रद्धा न होय, तो तमो था मंत्रि प्रमुखोने पण रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः १३३ जनीतिमाटे पूलगे? पड़ी मंत्रित पण सुषेणना वचननां पडघानी पेठेज बोलीने विशेष प्रकारे चक्रीने उत्साहित करता हवा. पळी चक्रीए पण रणकार्यमां तत्पर एवं नंगा नाम, वाजिन वगडाव्यु, थने तेना शब्दश्री सर्व जगोएथी राजा त्यां श्रावी एकठा थया. पड़ी चक्रीए पण शुन दिवसे स्नान करीने तथा पवित्र वस्त्रो पेहेरीने उत्तम पुष्पोथी श्री युगादीश प्रजुनी सेवा करी, वली तेणे वांबित सिलिमाटे पौषधशालामां रहेला मुनिउने नमस्कार कर्यो; अने तेऊनी धर्मलाजनी थाशिष पण तेने अधिक सिद्धिने थापनारी थर. पडी ते महा पराक्रमी चक्रीए श्रानंद थने वेगथी पोताना नगरनी समीपे सैन्यनो पडाव नाख्यो. ते वखते चमकपाषाणथी जेम लोखंड तेम जंजानादथी खेंचाइने देश देशनां सघला राजा त्यां श्राव्या. वली त्यां जंगम पर्वतो सरखा हाथी तथा घोडार्ड श्राव्या, श्रने ते मनुष्योनां समूहरूपी समुअमां मोजांउनी पेठे शोजवा लाग्या. हवे पतिवाली तथा पुत्रोवाली कुलकन्याउँथी अखंड चोखाए करीने वधावेल डे मंगल जेनुं, तथा बंदीउनां समूहोथी स्तुति कराता, देवो अने राजाउंथी सेवाता, नगरनी स्त्रीउथी गवाता, तथा महाजनोथी जोवाता, एवा ते चक्री प्रजात समये,अत्यंत उंचा, पोतानांयश सरखा सफेद, बन्ने पडखेथी करता मदें करीने करेल ने कस्तुरी सरखी पत्रवसी जेनी, तथा लीलामात्रयीज पर्वतो अने समुसोने उलंघवामां समर्थ, हमेशां एक हजार यदोथी अधिष्ठित थएला, एवा सुरगिरि नामनां हाथीपर, सूर्य जेम पूर्वाचलपर तेम, यात्रानां श्रारंजमाटे चड्या. पड़ी तेमना अंश सरखा बीजा पण बखतर तथा हथीयार सहित थश्ने, तेज वखते दणवारमां हाथी, घोडा, रथ, खचर विगेरे पर वार थया. पली शेषनागनां मस्तकपर जेम मणि, तेम संपूर्ण चंअसर, तथा मंगलीक कलशोथी विटाएलु, हजारो नागकुमार तथा देवोथी अधिष्ठित थएटुं, तथा पर राज्यने त्रास करनालं, जय नामनुं बत्ररत्न चक्रीनां मस्तकपर शोजवा लाग्यु. पड़ी लीलायुक्त स्त्रीउथी चामरोए करी वीजाता ते चक्री पगना अंगुगथी हाथीने चलाववा लाग्या. एवी रीते इंजिनां अवाजोथी दिशाउने बघिर करता, तथा नानां नादोथी ब्रह्मांडने वाचाल करता, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय मादात्म्य. मांगलिक वाजांऊनां अवाजोथी हाथीनां गर्जारवोने पुष्ट करता, ते चक्री किरणो सहित जेम सूर्य, तेम सैन्यो सहित चालवा लाग्या. पली सूर्यमंडलनी पेठे चारे बाजुथी दीपतुं, तथा एक हजार रावाडं चक्ररत्न पण तेमनी पागल बागल चालवा लाग्यु. वली, हे दिशा ! तमो दूर जाऊँ ? पृथ्वी ! तुं मोटी था ? श्राकाश ! तुं पण तुरत अवकाश आप ? केम के, आजे आ जरत चक्री सैन्यनां समूहना नारथी, तथा वाजां अने उंजिनां नादोथी तमोने दली नाखशे, एवी रीतनी बंदिनी वाणीने सांजलता थका, तथा रथोनां चित्कारोथी वाचाल करेल ने दिङ्मुख जेणे एवा, ते चक्री अगाडी अगाडी चालवा लाग्या. एवी रीते सैन्यथी उडती धूलनां अंधकारथी सूर्यने पण पतंगी सरखो करता, पृथ्वीने पण अस्थिर करता, मार्गमां श्रावती नदीने सूकावता, तलावोने स्थलरूप करता, हाथीनां मदथी नवां तलावो क. रता, तथा अमार्गने पण मार्गरूप करता थका ते चक्री हमेशां योजननां प्रयाणे करीने अनुक्रमे केटलेक दिवसे बहलि देशनी पासें पहोंच्या. हवे चक्रीए सैन्यनां पडावमाटे पेहेलेथी केटलाक माणसोने त्यां मो. कल्या हता, ते तेमनी पासे श्रावीने हर्षथी कहेवा लाग्या के, हे खा. मी ! श्राप जय पामो ? अहींथी उत्तर दिशामां गंगानां कांठगपर वृक्षो. नां डालांउथी सूर्यने पण श्राबादित करतुं एक वन डे; त्यां हृदयने श्राश्रयनूत, तथा मनोहर सुवर्ण, मणि, रत्न विगेरेथी बनावेलु तातनुं मंदिर . ते मंदिरमा पंडितनां कुलमां मंडनरूप, तथा उत्तम ध्यानमा रहेल ने अंतःकरण जेनुं एवो, अने उत्तम बुद्धिवालो कोश्क साधु सु. खेथी रहेलो . ते सांजलीने पुण्यमां श्रादरवाला ते जरत चक्री ते व नमां श्री प्रथमप्रजुने वांदवामाटे गया. त्यां विधिपूर्वक श्री रुपनदेव प्रजुने नमीने, तथा जक्तिथी पूजीने, रत्नमय वेदिकापर चक्री बेग. पनी श्राम तेम जोयाबाद ते मुनिने जो तेणे नमस्कार कयों, अने उत्तम वचनोथी कहेवा लाग्या के, हे मुनि ! तमो रणसिंहनी पेठे नमि विनमिनी जोडे मारी साथे युद्ध करवामां उत्सुक थएला विद्याधर बो. अने हवे तो सर्व प्राणीउमां समस्खजाववाला तमो थया बो, माटे हे कृपालु। तमो तमारा वैराग्यनुं मने कारण कहो ? त्यारे मुनि कहेवा लाग्या के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः २३५ हे चक्री! ते वखते तमोए नमिविन मि तथा मने पण जीत्यो; पड़ी श्रमोए अमारा पुत्रोने राज्य थापी वैराग्यथी दीक्षा लीधी, अने त्यारथी श्री युगादीश प्रजुनी हुँ सेवा करुं ईं; केम के, बन्ने जवोमा साम्राज्यने थापनारनी कोण सेवा न करे ? पढी चक्रीए पुज्युं के, हमणा तात क्यां ले ? त्यारे मुनिए कयु के, हे चक्री ! तुं ते कुतुहल सांजल ? हमणा ते प्रनु श्रीप्रन उद्यानमां देवोथी सेवाया थका रहे , त्यां अनंत नामनां नागकुमारनी साथे धरणेन श्राव्यो हतो. पडी धरणे प्रजुने नमीने पुब्युं के, हे, स्वामी ! सर्व देवोमां था अनंत देवनां शरीरनी कांति अधिक केम डे ? त्यारे प्रजुए कह्यु के, था अनंत देव श्राजथी चोथे नवे एक श्राजीर थयो हतो, त्यां ते मुनिने पराभव करीने घj पाप उपार्जन करतो हतो. त्यांची मृत्यु पामी नरकमां जश, घणी वेदना सहन करीने सुग्राम नामनां गाममां कुष्टी ब्राह्मण थयो. तेणे त्यां श्रमारा एक सुव्रत नामनां शिष्यने पुलवाथी तेणे कडं के, तें पूर्व नवमां मुनिने कष्ट आप्युं बे, तेथी तुं कुष्टी थयो ९. माटे उत्तम माणसोए मु. निनी श्राराधना करवी, पण तेने विराधवो नहीं; ते मुनि कदाच क्षमावान होय, तो पण (तेनां विराधनहुँ) पाप तो पागल श्रावेज . वली मुनिनुं सन्मान करवाथी ते उत्तम वर्गादिकनी गति आपे , अने तेनुं अपमान करवाश्री मूलमां पडेला श्रमिनी पेठे अनंत कुलोने ते बाली नाखे बे. पड़ी ते ब्राह्मणे ते रोग मटवानो उपाय पुग्यो, त्यारे ते मुनिए कडं के, हवे तुं शत्रुजय गिरिवरनी सेवा कर ? त्यां रागद्वेष रहित थ समतारसमा रहेवाथी कर्मोनो क्षय करी तुं निरोगी थश्श. वली श्राकरा तपथी प्राणी जेम वजरूप कर्मोथी मुकाय , तेम था शत्रुजयनी सोवाथी पण ते कर्मोथी मुकाय जे. वली था तीर्थना माहात्म्यथी, शुद्ध श्राशयवाला अहीं रहेनारा तिर्यंचो पण प्राएं करीने पाप रहित थया थका सुगतिमां जाय . वली ते शत्रुजय तीर्थनां स्मरणथी माणसोनो, सिंह, अग्नि, समुज, सर्प, राजा, फेर, युक, चोर, शत्रु, तथा मरकीनो जय पण नाश पामे . वली उग्र तपथी, तथा ब्रह्मचर्यथी पण जे पुण्य मले बे, ते पुण्य श्रा शत्रुजय प्रते रहेवाथी मते . वली श्री विमलाचलनुं दर्शन कर्याथी त्रणे लोकनां तीर्थोमां जे कं , ते सघलुं जोएलुं कहेवाय. एवी रीतनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ शत्रुंजय माहात्म्य. मुनिना मुखनी वाणी सांजलीने, ते शत्रुंजय पर्वत प्रते गयो, अने त्यां मुनिना कहेवा प्रमाणे करवायी अनुक्रमे ते निरोगी थयो. त्यां वैराग्ययुक्त as अनशन करी, मृत्यु पामीने अधिक कांतिवालो या अनंतदेव थयो बे. वली ते तीर्थसेवानां प्रजावथी श्राजथी त्रीजे जवे, सघलां कर्मोंनो कय करी, अनंत चतुष्टयवालो थर मोके जशे ते सांजलीने ते अनंत नागकुमार शत्रुंजयप्रते गयो, अने हुं पण तेनी साथेज आग्रह सहित ते तीर्थने उद्देशीने गयो पढी ते देव त्यां महोत्सव पूर्वक हा करीने, जक्तिथी तीर्थनुं स्मरण करतो थको पोताने स्थानके गयो. माटे हे चक्री ! ते शत्रुंजय समान बीजं कोइ पण तीर्थ त्रणे वनोमां पण नथी, केम के, जेनां स्पर्शमात्रथीज श्रापदार्थ दूर जाय बे. एवी रीते हे राजन् ! तीर्थोप्रते जमतो थको हुं ह्रीं श्री युगादीश प्रजुने नमवामाटे आव्यो हतो, त्यां प्रसंगे तमारुं पण दर्शन थयुं. वली श्री बाहुबलिना सोमयशा नामे पुत्र बे, तेमणे श्र श्री युगादीश प्रभु मंदिर बंधाव्यं बे. श्री युगादीश प्रभु त्रणे लोकोनां नायक बे, ने तमो तेमनां पुत्र हो, माटे आपनां दर्शनथी मने बहु श्रानंद थयो बे. ते सांजलीने चक्री शत्रुंजयनुं तथा श्रीयुगादीश प्रजुनुं स्मरण करता थका पोतानां सैन्यप्रते श्राव्या, वृक्षोनी घटावाला तेज प्रदेशमां तेणे सैन्यने पडाव पण नांख्यो अने ते मुनि पण त्यांथी चालता थया. वे बाहुब लिए पण जरतने श्रावेला जाणीने पोताना सिंहनादसहित गंजा वा जित्र वगडाव्युं. त्यारे सैन्यसहित नरतने “हुं जीतीश, हुं जीतीश " एम स्पर्धा करता थका सर्व योद्धा त्यां श्रावी पहोंच्या. ते सुजटो जाणे पोतानां अंतरंग तेजनेज देखाडता होय नहीं तेम, दथीयारोथी श्राकाशने दांतावालुं करता थका शोजवा लाग्या. वली ते बाहुबलिनां सुनो ते रणसंग्रामने तो श्रावेला उत्सव तरीके लेखवा लाग्या. पठी उतम शृंगारवाला तथा देहधारी वीररस सरखा त्रण लाख पुत्रोधी वींटाएला ते बाहुबलिए चतुरंगी सेना तैयार करी पछी ते सैन्यसहित जानां शब्दोथी दिशाउने वाचाल करता, बत्रवाला तथा चामरोथी विंजाता, तथा करेलुं बे मंगल जेनुं एवा ते बाहुबलि उत्तम दिवसे कल्याकारी जड़कर हाथीपर चड्या. पढी उत्तम परिवारवाला ते बाहुबलि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः १३० राजाए पण पोताना देशनां सिमाडापर लश्करनी पडाव नांख्यो. पड़ी प्रजातमां सर्व राजानी सम्मतीथी बाहुबलिए पोतानां पुत्र सिंहरथने सेनापति तरिके नीम्यो. पडी राजाए पोते तेनां मस्तकपर रणपट्ट बांध्यो, तेथी ते उंचे चडता तेजथीज होय नहीं जेम, तेम शोजवा लाग्यो. वली जरत चक्रीए पण पोतानां राजाऊनी संमतिथी, वैरीनी सेनाने मर्दन करनार सुषेणने सेनापति नीम्यो. वली जरत चक्रीए सर्व राजाने तथा पोतानां सवा क्रोड पुत्रोने दूतो मारफते बोलावीने, तथा दरेकने बहु मानथी नामो लेश बोलावीने, इंश जेम वैमानिकोने तेम, तेजेने तेणे कडं के, दिग्जय करीने सघला राजा, विद्याधरो, देवो तथा उर्मद नीलोने पण जीत्या, पण तेउमां था बाहुबलिनां सामंत सरखो जोरावर पण कोश नहोतो, वली था बाहुबलिपासे रणसंग्राममां कुशल एवा घणां शूरवीरो बे, वली परनी सेनामां जेम एक महा पराक्रमी होय , तेम थानी सेनामां तो सघला वीरो पराजयने नेदनारा (महापराक्रमी) . वली श्रा बाहुबलिनो महापराक्रमी सोमयशा नामनो पुत्र , ते एक लाख हाथीठ, त्रण लाख घोडा अने रथोनी साथे लडी शके तेवो . वली ते सोमयशानो नानो नाश सिंहस्थ नामे बे, ते पण महा शूरवीर अने हाथमां दीव्य शस्त्रोने धरनारो बे. वली ते बाहुबलिनो दोन पामेला समुद्र सरखा ध्वनिवालो सिंहकर्ण नामनो पुत्र बे, ते पोताना बलथी हाथे करीने पर्वतोने पण श्रधर उपाडे . वली तेनेजगतनां वीरोथीपण न जीती शकाय तेवो, तथा सिंह सरखा पराक्रमवालो, अने शत्रुनां सैन्यनो दय करवामां समर्थ सिंहसेन नामनो पण पुत्र . वली ते कुमारोमां जे सर्वथी नानो बे, ते पण उःखें करीने जीती शकाय तेवो . वली तेउमाथी कोश्क तो अक्षौहिणी सेनाने पण जीती शके तेवो बे, एम सांजव्युं . वली हे राजाउँ ! दिग्जयनां मिशथी तो केवल दिशाउँनु जोवापणुंज थयुं बे खरेखलं युद्ध तो था बाहुबलि साथे करवानुं . माटे समुज प्रते जेम प्रवाहो, तेम तमारे था सुषेण सेनापतिनी पाल रहेवू. एवी रीतनी चक्रीनी श्राझा धारण करीने हर्षित थया थका, तथा पोतानां खामी प्रते सेवकपणानो बदलो वालवानी श्वावाला थया थका ते पोतपोताने स्थानके गया; तथा त्यां तेजेए वज, १८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ शत्रुजय मादात्म्य. मुजर, चक्र, तलवार, नालां, बाण विगेरे हथीयारोनी विविध प्रकारनां पुष्पोथी पूजा करी; वली ते नृत्य सहित जयलक्ष्मीनां प्रारंज सरखां मंगल वाजिंत्रो शस्त्रोनी पासे वगाडवा लाग्या. वली श्राठे दिशामांधी सदमीने खेंचवा माटेज होय नहीं जेम तेम तेए हथीधारोनी आगल अक्षत अने रत्नोथी अष्ट मंगलो आलेख्यां. प्रजातमां युहनी श्छावाला बन्ने सैन्यना वीरोने ते रात्री पण लांबी थक्ष पडी. “ हवे प्रजात क्यारे थशे. ?” एवा विचारथी ते उठी उठीने वारंवार अस्ताचल प्रते जता चंजने जोता हता. ते वखते ते वीर पुरुषोनां मनने जाणीने रणसंग्रामनी इछावाली तेउनी आंखोमां बीकथीजहोय नहीं जेमतेम निशा श्रावी नहीं. हवे ते श्री रुपनदेव प्रजुना बन्ने पुत्रोनां युद्धने जोवानी श्वधीज होय नहीं जेम, तेम सूर्य पण उदयाचलनी चूलिकाप्रते तुरत चड्यो. हवे दश लाख वाजित्रोनां दृढ शब्दोथी दिग्गजो तो जाणे शब्दविनानां श्रने चेष्टा विनानांज थया होय नहीं, तेम थया. वली ते वखते अढार लाख उंछनि वागती थकी चंजनां हाथीने अने सूर्यना घोडाउने पण जय देवा लागी. जरतनां सैन्यमां वैरीनां प्राणोने हरनारा शोल लाख रणशीगाउँ वागवा लाग्यां. ते वखते काहलीनां तथा नेरीनां जांकारोथी पृथ्वीतल नेदावा लाग्यु. वली ते वखते वाजांना शब्दोथी तारामंडल त्रास पामवा लाग्युं, तथा वीरोनां सिंहनादोथी ज. गत शब्दमय थ गयु. वली ते समये, " हे वीरपुरुषो ! तमो बख्तर पेहेरो ? घोडाउने पाखरो पहेरावो ? शस्त्रो तथा रथादिक तैयार करो? हमणा रणसंग्राम थशे;" एवी रीते वारंवार कहेता थका राजपुरुषो बन्ने सैन्योमां फरवा लाग्या. ते वखते वीरपुरुषो राजानी आझाश्री शरीपर रोमांच धारण करवा लाग्या. वली ते घोडाउने पाखर पहेरावता थका तेऊनां जय सूचवनारा देषारवोथी अत्यंत आनंद पामवा लाग्या. तेव. खते रणशींगानां अवाजोथी घोडा जडकता हता, तेथी तेउने मधुर वाक्योथी शांत करीने ते पाखरो पहेरावता हता. वली तेउए ते घोडाऊनी बन्ने बाजुर्जए गरुडनी चांचो सरखां नालांट बांध्यां. ते वखते शत्रुनां समूहने गलवा माटे केटलाक घोडा सिंदमुखा, गरुडमुखा, ह. स्तीमुखा अने बहुमुखा पण थया. वली बखतरवाला तथा गर्जना कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः सर्गः १३ ता हाथी, मेखलापर उगेला वृक्षोवाला जंगम पर्वत सरखा शोजता इता. वली ते वखते वीर पुरुषोए हाथी उनी सुंढोमां परशु, जालां तथा मुरो श्राप्यां, तथा तेज॑नां दांतोमां लोखंडनां वलयो पहेराव्यां वली ते वखते इंजिनां नादोथी जडकता घोडाउने चोकडांटथी खेंचीने घणी मेढेनते रथोमां जोड्या क्रोधायमान थएला योकार्ड, नाथां बांधीने वेगयी वारंवार चालता रथोपर पण चडवा लाग्या. वे बाहुबलि पण स्नान विलेपन करीने, तथा श्वेत वस्त्रो पेहेरीने प्रजुने पूजवा माटे गया. त्यां तेमणे श्री आदिनाथ प्रजुनी प्रतिमाने जलथी स्नान करीने विविध प्रकारनां पुष्पो, अक्षत, तथा स्तवनोथी तेमनुं पूजन कर्यु. पढी ते देवलमांथी निकलीने, तेमणे वज्रनुं बखतर तथा टोप पहेर्या. वली तेणे पीठपर बाणोथी नरेलां जायां बांध्यां, अने तेथ ते चार हाथोवाला देखावा लाग्या, वली जेनां टंकारथी श्राकाशमांथी तारा पण खरी जाय बे, एवं धनुष्य तेणे डाबा हाथमां पकड्यं. पढी करता मदथी करणावाला पर्वत सरखा, तथा जंगम उत्साह सरखा महान नामनां गंधहस्ती पर ते बाहुबलि चढ्या पढी सिंहनां त्रि.. हवाली धजानां मिशथी जाणे नाचताज होय नहीं एवा बाहुबलि, गतने त्रण समान गणता थका सैन्यसहित समरांगणमां श्राव्या. ते खते लीला घोडावालो चंद्रनी ध्वजावालो तथा चंद्ररथवालो सोमया शत्रुने रोकवा माटे बाहुबलिनी श्रागल थयो. वली त्यां यमनी पैके दुःखे जो शकाय एवो, कूर्मनी धजावालो ने सिंहघोडावालो, महायशा पण जालां सहित श्राव्यो. तेनी यागल सिंहनी धजावालो तथा जगजय नामनां रथवालो, महा बलवान सिंहरथ पण अनेक शस्त्रोसहित चालवा लाग्यो. वली त्यां मयूरकेतुवालो, महासागर सरखा ध्वनिवालो ने कालदंष्ट्र नामनां रथपर चडेलो सिंहकर्ण पण आव्यो. तेम त्यां रक्तबीजहंसकेतुवालो, सर्व शत्रुथी न जीताय एवो, तथा महाबल रथपर चडेलो सिंहविक्रम पण श्राव्यो. वली बज्रकेतुवालो, तथा रणसंग्राममां सर्व शत्रुने जीतनारो ने कालार्गल नामनां रथपर चडेलो सिंहासन पण त्यां श्रव्यो. इत्यादि बाहुबलिनां पुत्रो, तथा राजा नाना प्रकारनां वाहनों तथा शस्त्रो सहित उत्सादधी त्यां श्राव्या. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० शत्रुजय मादात्म्य. हवे नरत महाराज पण स्नान करी, शुद्ध वस्त्रो पेहेरीने देवलमां गया; केम के, संत पुरुषो पोतानां कार्योमां गाफल रहेता नथी. त्यां श्री पनवामिनी प्रतिमाने स्नान करी, तेणे पोतानां यशथी जेम पृथ्वीने, तेम ते प्रतिमाने केसरथी लेपन कयुः पनी संपूर्ण जक्तिथी तेमणे सुगंधि पुष्पोथी ते प्रतिमा पूजन कयु, तथा धूप उखेवीने स्तुति करी. पड़ी तेणे जगतने जीतनार, अने वज्रथी पण नेदाय नहीं तेवू बखतर तथा उत्तम शोजावायूँ शिरस्त्राण ( टोप) पेहेर्यु. पड़ी तेमणे अक्षय तथा लोखंगनां बाणोथी नरेलां जय अने पराजय नामनां बे तुणीरो बांध्यां. वली तेमणे डावा हाथमां त्रणे लोकोने दंग करनालं, तथा देवोनां समूहोथी आश्रित, अने जयंकर टंकारवालुं धनुष्य धारण कयु. वली तेमणे दैत्योप्रते दावानल सर, तथा वैरीने नाश करनारुं खङ्ग धारण कयु, तथा बीजां हथीयारोने पण चक्रीए हाथथी स्पर्श कयों. पडी ते करता मदनां समूहवाला, तथा औरावण सरखा सुरगिरि नामनां हाथीपर शककेतु सहित बेग. पनी सिंहनी धजावालो सुषेण पण पवनंजय नामनां रथपर चड्यो, अने तेनो नानो नाश गरुड नामनां रथपर बेठगे. वली ते सुषेण सेनापतिए कालानल खगने तथा वीजली सरखी कांतिवाला अग्निमुख नालांने हाथमां धारण कयु; पड़ी त्यां महा पराक्रमी सवा लाख कुमारो पण सज थश्नेश्राव्या.तेउमां सर्वथी मोटो सूर्ययशा नामे हतो, के जे त्रणे लोकोनो जय करवामां समर्थ, तथा दीव्य शस्त्रोथी रणमां वै. रीथी न जीताय तेवो हतो. वली ते देवसंबंधि सूर्यहास खड्ने, इंस धनुष्यने तथा सुरसन्नाह नामनां बखतरने धारण करतो थको शोजतो हतो. वली ते सूर्यध्वजवालो, लीला घोडावालो, वैनतेय नामनां रथमां चडीने रणसंग्राममां श्राव्यो. वली देवोथी पण न जीताय तेवो, सफेद घोडावाला रथपर चडेलो, अने सिंहध्वजवालो देवयशा कुमार पण त्यां आव्यो. वली गरुडपताकावालो तेनो नानो नाश् वीरयशा पण, उग्र ब. खतर तथा धनुष्यने धारण करतो थको त्यां श्राव्यो. वली कपिकेतुवालो तथा उर्जय नामना रथपर चडेलो, सुयशा नामनो चक्रीनो पुत्र पृथ्वीने कंपावतो थको त्यां आव्यो. वली पोतानां नादथी श्राकाशपातालने पण गजावतो, मत्स्यनां केतुवालो अने धनुष्यने धारणः Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः २४२ करनारो महापराक्रमी मेघनाद कुमार पण त्यां श्राव्यो. वली वरसादनी पेठे बाणोनी धारा वरसावनारो, तथा हाथीनी पताकावालो, रथपर चडीने सर्व शस्त्रोसहित कालमेघ कुमार पण त्यां श्राव्यो. वली वैरीउनां सुनटोनुं मर्दन करनारो, पीला घोडावालो तथा घुवडानी पताकावालो महाकाल कुमार पण रणसंग्राममा उत्सुक थयो थको रथमां बेसीने त्यां श्राव्यो. वली अश्वनी पताकावालो श्याम घोडावालो, अने रणमां पांच अक्षौहिणी सेनाने पण जीतनारो, वैरिसिंह कुमार पण त्यां श्राव्यो. वली ते वखते वीरपणानुं मान धरावनारो, लीला घो. डावालो, हंसनी पताकावालो, अने हाथमां गदा धारण करनारो वीरसेन कुमार पण रणसंग्राम माटे उत्सुक थयो. इत्यादि चक्रिना पुत्रो अने बीजा महा बलवान राजा पण विविध प्रकारना वाहनोपर बेसीने त्यां रणसंग्राम माटे श्राव्या. हवे ते वखते रथमाथी निकलता शब्दोथी गर्जना करतो, अने कोडो सुनटोथी वीटाएलो महाबलवान सुषेण सेनापति सैन्यनी अगाडी थयो. वली बीजा पूर्णरथी तथा अर्धरथी एवा राजा अने कुमारो पण हाथी, घोडा, रथ विगेरे वाहनोपर बेसता हवा. ते वखते केटलाक सुजटो तो रसातुर थश्ने प्रथमश्रीज रणसंग्राममां नटकवा लाग्या, तेउने खामिना हुकमथी बडीदारो वेगथी रोकवा लाग्या. वली ते वखते चालता लश्करीउनां पदघातोथी, पृथ्वी पण शेषनागनी फणोनी पंक्तिने नमावती थकी कंपवा लागी. वली ते वखते बन्ने सैन्योनां महायोकानां बलातिशयथी रंजित थश्ने जाणे मस्तको धुणावता होय नहीं तेम, महान पर्वतो पण कंपवा लाग्या. हवे प्रलयकालनां प्रारंजमां उबलता समुनी पेठे गर्जारवा करता, एवा ते बन्ने लश्करो एकां मल्या. ते बन्ने सैन्योनां कुंडजिनां नादोश्री पुष्ट थयेला वाजिंत्रोनां शब्दोथी त्रणे लोको दोन पामवा लाग्यां. ते वेलाए खारोनी साथे खारो, रथवालाउँनी साथे रथवाला, विद्याधरोनी साथे विद्याधरो, राजाऊनी साथे राजार्ड, सुनटोनी साथे सुलटो, सामंतोनी साये सामंतो, तथा निहोनी साथे जिल्ह्यो मल्या. वली ते समये बन्ने सैन्योनां हाथीनां दांतो एक बीजा साथे मलीने जयलक्ष्मीनां पलंगपणाने जजता हता. ते वखते बाणधाराऊनां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ शत्रुजय मादात्म्य. वरसादथी दिशाउँने आलादित करता, विचित्र प्रकारना धनुष्योने ध. रता, सिंहनादथी गर्जना करता, नालांऊनां अपनागोने खद्योतरूप करता, खगोने विजलीरूप करता, पताकाउंने बगलीरूप करता, उबलती धूलिने वादलांरूप करता, कीर्तिरूप वेलडीनी वृद्धिमाटे रुधिररूपी पाणीथी पृथ्वीने सिंचता, पाउलनां योहाने जीवितदानथी चातकोनी पेठे संतुष्ट करता, तथा वाहनोथी पृथ्वीने पण स्पर्श नहीं करता, एवा ते सुजटो रणसंग्राममां थाम तेम नमता प्रलयकालनां मेघसरखा शोजता हता. वली. सैन्यरूपी समुअमां उबलता मोजांउनी पेठे क्रोधातुर थया थका तेजे, घोडा, रथ के हाथीने पण गणकारता नहोता. वली ते वखते त्यां हाथी सुंढमां योझासहित रथने लेश्ने तथा तेने श्राकाशमां जमाडीने पदिनां मालानी पेठे फेंकवा लाग्या. एवी रीते ते जयानक रणसंग्राम चालते बते कोश्क साहसी योको, पोतानी स्त्रीनां स्तननां वैरथी हाथीनां कुंजस्थलोने ताडना करवा लाग्यो. ते वखते सुषेण सेनापति पोतानां सैन्यनुं जरा मंदपणुं देखीने क्रोधातुर थयो थको, हथियारसहित घोडापर बेसीने प्रलयकालना अग्निनी पेठे श्रागल धस्यो. एवी रीते ते सुषेणे लीलामात्रथी सुजटोनां समूहोने तृणनी पेठे कापवा मांड्याथी तेनी सामे कोइ पण सुजट उनी शक्यो नहीं. एटलामां अनिलवेग नामनो महाविद्याधर सुजट बाहुबलिनां चरणोने नमीने पवन सरखा वेगथी सुषेणनी सामे दोड्यो, अने तेने कहेवा लाग्यो के, हे सुषेण ! तुं सेनापति बे, अने हुं तो एक बाहुबलिनो पालो हुँ, पण मारूं जुजाबल तुं जो ? तेने जो महापराक्रमी सुषेण पण समुषसरखी गर्जनाथी श्राकाशपातालने पण गजाववा लाग्यो. तुल्य बलवाला ते बन्ने हर्षयुक्त थया थका रोमांचकंचुकथीते वखते बखतरने पण फाडवा लाग्या. पली ते बन्ने बाणोथी लडता थका देवोने पण जगतनां नाशनी शंका कराववा लाग्या. वली ते आकाशमां रही जोता देवोनां विमानोने बाणोना स्पर्शथी त्रास पमाडवा लाग्या. मदोन्मत्त थएला हाथीउनी पेठे एक बीजानां यशनी श्छा राखता, तथा क्रोधथी लाल अांखोवाला ते बन्ने, सैनिकोने फुःखे जोवालायक थया. प्रलयकालमा पर्वतनी साथे जेम पर्वत अथडाय, तेम अथडातां थकां ते विद्याधरे सुषे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ चतुर्थःसर्गः णने जरा हगव्यो. ते वखते ते विद्याधरे वीर्योल्लासथी वरसादनी पेठे महाध्वनिवालो सिंहनाद कर्यो. ते सिंहनादश्री अत्यंत हर्षित थएला बाहुबलिनां लश्करी तेनां पडघानी पेठे चारे कोरथी गर्जना करवा लाग्या. ते वखते क्रोधथी लाल थएलो, विकराल श्रांखोवालो, तथा सादात कल्पांतकालनां अग्निसरखो सुषेण सेनापति खड्गरत्न लेश्ने दोड्यो. ते वखते लोको एवी तर्क करवा लाग्या के, शुं श्रा सुषेण श्राखा जगतनो संहार करशे ? के पर्वतोने उखेडी नाखशे ? के पृथ्वीने फाडी नाखशे ? हवे तेवी रीते सुषेणने धसी श्रावतो जोश्ने सिंहरथ कुमारे वायुसरखा वेगवाला घोडाथी रथने वच्चे नांख्यो. त्यारे कांगपरनां पर्वतथी अटकावेलो समुनो मोजो जेम अटकी जाय, तेम महाबलवान सुषेण पण तेथी अटकी गयो. ते वखते युजनो साक्षी सूर्य पण बहु पडतां एवां सुनटोनां बाणोथी जाणे त्रास पाम्यो होय नहीं, तेम अस्ताचलप्रते गयो. त्यारे बन्ने राजाऊनी झाथी पूर्वापर समुजो. नी वेलानी पेठे बन्ने सैन्यो पागं वल्या. पड़ी ते महापराक्रमी वीरो केटलीक मेहेनते ते रात्रि गालीने, प्रजात काल थवाथी नाचवा लाग्या. पली ते पोतपोतानां बख्तरोतथा हथियारो धारण करीने तैयार करेला पोतपोतानां वाहनोपर चड्या. पड़ी ते वाजांनां शब्द प्रमाणे चालता थका रणनूमिपर श्राव्या; तथा प्रसिक पताकाउंथी उलखीने तथा एकबीजानां कुलादिकनुं वर्णन करीने, तथा बोलावीने बाणोनो वरसाद वरसाववा लाग्या. ते वखते पोतानां स्वामिना - पारूपी समुज्ने पार पहोंचवानी श्वाथी ते तीदण अणिवाला बाणोने पण गणकारता नहोता. वली ते समये बाणो, बाणोनी साथे घसावाश्री अग्मिने उत्पन्न करता थका, जोवा श्रावेला देवोने पण जय उपजाववा लाग्या. वली ते वखते घासथी जेम दरिजिनुं घर, तेम राजाउँ बाणोथी आकाशने आलादित करवा लाग्या, अने तेथी देवोने ते रणसंग्राम जोवामां विघ्न थवा लाग्युं. ते जयंकर रणसंग्रामने जोश्ने कायरो तो त्रास पामवा लाग्या, अने वीर पुरुषो तो ते महाघातोथी पण जाणे बेवडा थवा लाग्या. त्यां वीर पुरुषो, लोहीथी सींचाएली, तथा घोडाउँथी चूर्णित थएली पृथ्वीपर, हाथीनां कुंनस्थलोने नेदीने मोती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ शत्रुजय मादात्म्य. रूपी बीजो वाववा लाग्या; ते बीजोमांथी तेउनुं यशरूपी वृक्ष डालांउथी विस्तार पामीने श्रदय थयुं थकुं, त्रणे जगतमां व्यापवाने समर्थ थशे. हवे सिंहरथ कुमार क्रोधातुर थश्ने, सर्व शस्त्रोथी स्फुरायमान थयो थको चक्रीनी सेना प्रते पोतानो रथ वेगथी दोडाववा लाग्यो; ते वखते सिंहकर्ण कुमार, अग्निनी पाबल जेम वायु, तेम सर्वने संहार करवामां समर्थ थयो थको तेनी पाउल आव्यो. पड़ी ते बन्ने वीरो चक्रीनी सेनाने दोजाववा लाग्या, अने पृथ्वीने कंपाववाथी देवोने पण पुष्प्रेय थया. तेऊनां बाणोना पडवाथी ते नहीं सहन करी शकावाथी लश्करीउनी आंखो मीचा ग. ते संग्राममां रसिक श्रया थका हाथी, घोडा, रथ, पाला के राजाउँने पण गणवा लाग्या नहीं. एवी रीते तेऊना स्वबंद रीते चालवाथी लश्करमां श्रांतरो पड़ी गयो. त्यारे सुषेण पण मात्सर्यपणाथी प्रलयकालनां समुपनी पेठे, विविध प्रकारनां हथियारो सहित पवनवेगे दोड्यो. त्यारे बाहुबलिनां सैन्यनां राजा बोलवा लाग्याके, अरे ! श्राने मारो ! मारो ! पकडो ! पकडो ! पठी सुषेणे बाहुबलिनी सेनाने एवी तो विखेरी नाखी के, तेनी सामे को पण श्रावी शक्यो नहीं. पनी त्यां सुषेणे पेला विद्याधरनां पुत्रने जोश्ने त्रणे जगतने कोजावनारो धनुष्यनो टंकार कयों अने तेने कर्वा के, हे विद्याधर ! ते वखते सिंहरथे वचमां रथ नाखीने तारं रक्षण कर्यु हतुं, पण था समये तारुं रक्षण कोण करी शके तेम डे ? ते सांजलीने अनिलवेग पण महावेगथी तेनी सामे श्राव्यो. पण ततक्षण सु. षेणनां हथीयारोथी व्याकुल थर ते पाडो बल्यो. पनी त्यांची वेगसे हित उबलीने ते चक्रीनी हाथीनी सेनामां श्राव्यो, त्यां ते दडाउनी पेठे हाथीउने श्राकाशमा उडालवा लाग्यो, तथा तेउने पडता जीलीने मुष्टीउधी मारवा लाग्यो. ते को वखते पृथ्वीपर, तो कोश वखते आकाशमां, तो को वखते तीनें, तो कोश वखते फुदडी फरतो, तो कोश वखते चतुरंगी सेनामा देखावा लाग्यो. तेवी रीतनो तेने जोश्ने, हथीपर बेठेला चक्रीए क्रोधथी, इंज जेम वजने तेम तेनापर चक्रने मुक्यु. हजार श्राराउंमांथी निकलती ज्वालानी श्रेणिवाला सूर्यबिंब सरखां ते चक्रने जोश्ने घुवडनी पेठे ते विद्याधर जय पाम्यो. पठी तेणे विचार्यु के, अ. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४५ चतुर्थःसर्गः हीथी नाशी जq तेज श्रेष्ट बे, एम विचारि वारंवार चक्रने पाडं वाली जोतो थको ते नाशवा लाग्यो. पड़ी ते मेरु, गुफा, समुज, रुचकछिप, बीजा छीपो,अने पाताल विगेरे ज्या ज्यां जवा लाग्यो, त्यां त्यां ते चक्रने पूर्वार्जित कर्मनी पेठे पाबल श्रावतुं जोश, तेणे वजपंजर बनाव्यु, त्यारे तेने चक्राधिष्टायक देवो हसीने कहेवा लाग्या के, रे रंक ! तें था चक्रीप्रते शुं करवा मांड्युं ? वली हे रंक ! ते चक्री ज्यारे तारापर कोपायमान थया, त्यारे देवोमांथी पण तारुं कोण रक्षण करी शके तेम ? माटे हवे ते पक्षीनी पेठे पंजर शामाटे धारण कर्यु ले ? पड़ी ते शनिलवेग विद्याधर उमास पठी पोतानां ते पिंजरमांथी निकल्यो, त्यारे चके तेनुं माथु कापी नांख्यु. पठी ते चक्र पालुं वलीने चक्रीना हाथमा श्राव्यु, अने चक्रीनां सैन्ये वारंवार जय जय शब्द को. हवे सिंहस्थ तथा सिंहकर्णने तेवी रीतना जोश्ने मेघनाद अने सिंहनाद नामनां चक्रीनां पुत्रो तेनी तरफ दोड्या. पड़ी ते चारे वीरो परस्पर युद्ध करता थका, देवोने पण चारे दिशानां प्रदयनी ब्रांति सूचववा लाग्या. जगतने दोन पमाडनारा ते चारे वीरो वजोनी साथे जेम वजो तेम श्रत्यंत बलथी लडवा लाग्या. हवे ते वखते तेउनां रणसंग्रामथी जाणे डयो होय नहीं तेम, सूर्य अस्ताचलप्रते गयो; अने बन्ने लश्करो पण पोतपोताने स्थानके गयां. त्यां पुरोहिते काकिणी रत्ननां पाणीथी वैरिनां मारथी घायल थएली सेनाने पानी नवी जेवी करी; अने चंज्यशाए चंथी मेलवेली विद्यानां योगथी बाहुबलिनी सेनाने शल्यरहित करी. पली प्रजातमां पोतपोतानी पताकाउंथी अकाशने चित्रित करता थका, अंदर क्रोधवाला थश्ने सर्वे शस्त्रो सहित त्यां श्रावी पहोंच्या. त्यां पर्वत सरखा माथांवालो रत्नारि नामनो विद्याधर बाहुबलिनां चरणोने नमीने, तथा तेनी आज्ञा लेश्ने, लाख जारनां वजननी लोखंडनी गदा हाथमां धारण करीने, वंटोलीश्रानी पेठे गर्जना करतो थको वेगथी दोड्यो. यमनी पेठे हाथमां गदावाला, ताडनां वृक्ष सरखा उंचा, वलती अग्निसरखी पीली आंखोवाला, उगता सूर्य सरखा मुखवाला, वृक्षनां डाला सरखा हाथोवाला, शीलातल सरखा हृदयवाला, बीजा विद्याधरोथी वीटाएला, महा जयंकर तथा महा बलवान एवा ते विद्याधरने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ शत्रुजय मादात्म्य. जोश्ने लश्करी कंपवा लाग्या. ते विद्याधर, वरसादनी पेठे गर्जना करतो थको चक्रीनां सैन्यमांप्रदयकालनां अग्निनी पेठे गदानां मारथी कांकराउनी पेठे हाथीउने, पतंगीश्रांउनी पेठे घोडाउने, पदिनां मालानी पेठे रथोने, तथा कुछ कीडाऊनी पेठे पालाउँने मारवा लाग्यो. त्यारे माहेंअचूड नामनो विद्याधर पण जरतने नमी, हाथमां नयंकर मुजलने नमावतो थको क्रोधथी तेनी सामे दोड्यो. पठी ते महा बलवान घिद्याधरे वजथी जेम पर्वतने, तेम ते रत्नारिने मार्यो, थने तेथी ते पृथ्वीपर लोटवा लाग्यो. ते वखते सूर्य पण तेनी साथे तेनीज श्राकृतिने धारण करतो थको पश्चिम समुजमां जश्ने पडयो. ते रात्रिए बाहुबलिनुं सैन्य कमलनी पेठे मुकुलित थर गयुं; पण प्रजात होते ते पाळ क्षणवारमा प्रफुलित थयु. हवे रत्नारिने हणाएलो जाणिने अमितकेतु क्रोधथी बलतो थको, धनुष्य अने फरसी खेश्ने चक्रीनां सैन्यप्रते दोडी श्राव्यो. ते बाणोनी धाराउँथी वैरीनां समूहमां उर्दीन करतो थको मेघनी पेठे तेऊनां मुखोने उलटां करवा लाग्यो. पली वीरसमुअनी पेठे गर्जना करतो, तथा प्रध्वयकालनां सूर्यनी पेठे तीव्र अने अभूत तेजोथी तपतो, तथा दोषोनी खाणसरखा (चंड सरखा ) शत्रुनां समूहोने कलंक सहित करतो थको सूर्ययशा रथ सहित तेनी सामे श्राव्यो. ते सूर्ययशानां नादथी चक्रीनां लश्करीउँने जाणे बेवडो हर्ष थयो होय नहीं तेम, ते समरांगणपर श्राव्या. एवी रीते धसी आवता सूर्ययशानां केतुने श्रमितकेतुए क्षणवारमा बाणथी बेदी नाख्यो. ते जो धूमकेतुनी पेठे उडलेला सूर्ययशाए अर्धचंड नामनां बाणथी तेनुं गर्बु कापी नाख्यु. ते वखते चक्रीनी सेनामां जय जय शब्द थयो, तथा सूर्य यशापर श्राकाशमांथी पुष्पवृष्टि थ. एवी रीते मंथानक सरखो ते सूर्ययशा बाहुबलिनी सेनाने वलोवीने पालो पोतानां सैन्यमां आव्यो. पठी बाहुबलिए राजाउँने बोलाव्याथी वीस कोड पाला, तेटलाज घोडा, रथ, तथा हाथीउँनो खामी,तथा वैताढ्यनी दक्षिण श्रेणिनो सुमति नामनो नायक, बाहुबलिने नमीने रणसंग्राममां धस्यो. ते वखते साक्षात दत्रीधर्म सरखो, तथा सिंहनी पेठे महापराक्रमी शार्दूल नामनो चक्रीनो पुत्र ते सुमतिने धस्यो श्रावतो जोश्ने, वीररसथी आकुल थयो थको, हा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ चतुर्थःसर्गः थीपर बेसी सिंहनाद करी समरांगणमां आव्यो. तेनां बाणोनुं श्राकपण, संधान, के मोद कं पण शत्रुनां समूहो जोश शक्या नहीं; एवी रीतनां ते शार्दूलने बाणोथी उर्जय जोश्ने सुमतिए देवोथी पण ने नेदाय एवां दीव्य शस्त्रो तेनापर फेंक्यां. त्यारे प्रेमपाशोथी जेम प्राणी, तेम ते शार्दूल सिंहनी पेठे नागपाशोथी बंधायो थको चालवाने अशक्त थयो. तेनी पीडा जरा वेठीने, तथा तुरत सूर्यथी प्राप्त थएली विद्यानुं स्मरण करीने, हाथी जेम कमलनां तंतुउँने, तथा योगी जेम कुकमोंने तेम तेणे तुरत ते नागपाशोनां बंधनो ब्रोडी नांख्यां. पढ़ी वादलांमांथी निकलता सूर्यनी पेठे अधिक कांतिवालो थएलो ते शार्दूल खड्ग उगामीने क्रोधथी सुमतिपते दोड्यो. पठी सिंद जेम पर्वतने तेम हाथीने बोडीने तेणे सुमतिने क्रोधथी मस्तकमां खड्गथी मार्यो. ते घाथी ते विद्याधरना काचा घडानी पेठे बे टुकडा थ गया; अने रणसंग्राममां शार्दूलनो प्रताप पण बेवडो थयो. ते वखते सूर्य पण कमलोनां निमीलनने नहीं सहन करवायी जय पामीने श्रपर समुजप्रते गयो. पडी प्रजाते वैरीरूपी कमलोने नाश करनारो सोमयशा, तेजथी जाज्वल्यमान थश्ने चक्रीनी सेनासाथे लडवा लाग्यो. कालसरखो जयंकर एवो ते सोमयशा चक्रीनी सोनामांथी सर्व शस्त्रो ए. कां करीने बहु क्रोधथी तेनो वरसाद वरसाववा लाग्यो; त्यारे तेनी साथे चक्रीनां सैनिको सूर्यसाथे जेम अंधकारो तेम लडवा लाग्या. एक एवो पण ते सोमयशा रणमां अनेक सरखो थश्ने, हरिणोनी साथे जेम सिंह, तेम ते सघलाउँनी साथे लंडवा लाग्यो. एवी रीते वंटोलीयानी पेठे तेणे चक्रीनी सेनाने उन्मार्गे चडावी दीधी. ते वखते सूर्ययशानो सुरराज नामनो महाबलवान् पुत्र, सोमयशाने तेवी रीते नुकशान करतो जोश्ने तेनी सामे धस्यो. एवी रीते जयनी छावाला ते बन्ने ज्यारे एका थया, त्यारे लोकोनां मनमां क्षणवारसुधि प्रलयकालनी शंका थ. ते वखते तेचैनी बीकधीज जेम, तेम सूर्य अस्त थयो;तथा पाडो तेने जोवामाटे ते कौतुकी सूर्य उदय थयो. ते वखते शब्दबंधु थने वीरबंधु, महाबाहु अने सुबाहुक, धूपघट ने धूमकेतु, जयवीर थने महाजय, बालुक ने त्रिलोक, तथा कामनोज अने चंडक, एवी रीते चक्री अने बाहुबलिनां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ शजय माहात्म्य. वीरो मांहोंमांहें खडवा लाग्या. एवी रीते ते बन्ने सैन्योनो जयंकर रणसंग्राम बार वर्षीसुधी चाल्यो. हवे प्रजातमां रणतुरीउथी फरीने वी पहोंचेला लश्करी महाक्रोधथी शस्त्रोनो वरसाद वरसाववा लाग्या. ते वखते जरतनां कालसेन अने वीरसेन नामनां पुत्रो, तथा महायश श्रने सिंहसेन नामनां बाहुबलिनां पुत्रो लडवा लाग्या; वली कालमेघ अने महाकाल, सिंहविक्रम अने सुंदर एवी रीतनां कुमारो मांहों मांहें रणसंग्राम करवा लाग्या. तेनां रथोनां चित्कारोथी पृथ्वीतल कंपवा लाग्यु. अने बाणोनां प्रहारोथी श्राकाशमां रदेला देवो पण त्रास पामवा लाग्या; वली तेऊनां सिंहनादोथी सिंहादिक पशुउँ पण हरिणोनी पेठे दूर नाशवा लाग्या; तथा तेऊनां जुजास्फोटोथी पर्वतो पण फाटवा लाग्या. ते वखते श्री नरत महाराजाना मोटा पुत्र सूर्ययशाए कल्पांतकाले उपांत थएला समुनी पेठे गर्जना करी; पड़ी ते उंचे प्रकारे नाद करतो थको तथा पोतानां हाथमा धनुष्य धारण करतो थको, बाणोनां समूहोने फेंकतो थको, सैन्यनां समूहने मूर्जित करतो थको, वायुथी जेम पर्वतो, तेम वेगयी हाथीने लोटावतो थको, मूर्तिवंत यमनी पेठे सुनटोनां समूहने हणतो थको, रथोने चूर्ण करतो थको, घोडाऊनां समूहने घुमावतो थको, रथनां चक्रनां शब्दोथी पृथ्वीमंडलने दोन पमाडतो थको, वीरोनां कलेवरोथी गीधो अने शियालोने लोनावतो थको, पु:सह पराक्रमथी पोताना पिताने श्रानंद श्रापतो थको, महान राजाउने जडमूलथी काढी नाखतो थको, तथा अगल रहेलाउने जश्मरूप करतो थको, बाहुबसिनां लश्करप्रते दोड्यो. एवी रीते पोतानी सेनानो संहार करता सूर्ययशाने जोश्ने, क्रोध पामेला बाहुबलि तेनी सामे रणनूमिमां आव्या; तथा पृथ्वीने धडो अने मस्तकोवाली,आकाशने शस्त्रोवाटुं, तथा दिशाउँनां चक्रने रुधिरवावं करवा लाग्या. पनी ते सूर्ययशाने कहेवा लाग्या के, हे वत्स! तुं वीरकंठ (बालक) बतां पण मारी सेनामांश्रावी रीते कुजे , तेथी हुँ खुशी थयो बुं, केम के,ते वंशनी शोजा वधारी जे. वली त्रणे लोकमां पण एवो कोश् माणस नथी के, जे मारा क्रोधने सइन करी शके, माटे तुं जलदी मारी दृष्टिथी दूर था? केम के, तुं मने मारा सोमयशा सरखो . ते सांजलीने, सूर्ययशा उत्साह सहित जाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः २४ए उलटो तेमने तर्जना करतो होय नहीं, तेम गंनिर वाणीथी बाहुबखिने कहेवा लाग्यो के, हे काकाजी! आजे तो मंगल बे; वली तमो मने ताततुल्य डो, तेथी हुँ तमोने नक्तिथी नमुंडं. वली पिताजी ज्यारे दिग्जयमाटे गया हता, त्यारे ते मने विनीतामांज बोडी गया हता, तेथी में जरा पण रणसंग्राम जोयो नथी; माटे बाजे कृपा करीने थापनां था पुत्रनी सुजाउनु पराक्रम जु? एम कही तेणे धनुदंडनो टंकार कयों. ते वखते त्रणे लोकनां नाशनी शंकाथी संभ्रांत थएला देवो, आकाशमां एक बीजापर पडता थका टोलांबंध एका थया; अने विचारवा लाग्या के, अहो ! पोतानां बन्ने हाथोसरखा, था बेषनदेव प्रजुनां प्रत्रोनो रणसं ग्राम केवो जयंकर निवडशे! एम विचारि तेठए बन्ने सैन्योनां सुनटोने कडं के, हे सुजटो! ज्यांसुधि अमो तमारा बन्ने खामिउँने समजावीयें, त्यांसुधि तमोए कोए युद्ध करवू नहीं; अने ते माटे तमोने श्री कृषजदेव प्रजुनी “श्राण" . एवी रीते त्रणे जगतनां स्वामिनी आणाथी बन्ने सैन्योनां सुनटो चित्रेलाऊनी पेठे स्थिर थर गया. अने देवो जरत महाराजापासे गया. त्यां जश् तेजेए जरतने कह्यु के, हे उ खंड जरतनां खामी ! तथा हे चक्रीशिरोमणि! तमोए ब खंड पृथ्वीनो जय सुखेची कर्यो; अने तेमां देवोमांधी पण को तमारी सामे थयुं नहीं बने हवे तमो बन्नेए श्रीषनदेव प्रजुनां पुत्रो थश्ने, पोतानां हाथथीज पोतानां हाथनो वध केम थारंज्यो ? तमारा पिताजीएज था जगतनी सृष्टि बनावी, अने तेसृष्टिनो तमो बन्ने संहार करोडो,ते तेमनां पुत्रपणाने लायक ? वली तमोज्यारे सामा चालीने लडवा आव्या बो, त्यारे ते बाहुबलि पण सामा श्रावेल ,माटे तमो चाख्या जवाथी ते पण चाल्या जशे.वलीते तमारा नाना जा जे; माटे कारणे कारज नीपजे . माटे हे राजन् ! जगतने संहार करवानां कारणरूप धारणसंग्रामथी तमो विरमो ? के जेथी श्राप जेवानो उदय त्रण जगतनां हर्षमाटे थाय. एवी रीते कहीने देवो मौन रह्याबाद चक्री तेउने कदेवा लाग्या के हे देवो! तमो हमेशां पिताजीनां नक्तो बो, अने श्रमो पण तेज पिताजीना पुत्रो बीयें; माटे युक्तायुक्तनो विचार करीने, तमो श्रमोने शिखामण श्रापो ? "हुं बलवान बुं" एवा हेतुथी अथवा मात्सर्यथी हुँ कंशं रणसंग्रामनी श्बावालो नथी, पण श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० शत्रुंजय माहात्म्य. चक्र आयुधशालामा प्रवेश करतुं नथी, माटे तेनुं मारे शुं करवुं ? वली साठ हजार वर्षोसुधिमां दिग्जय करीने हुं श्राव्यो, अने ते वखते पण नहीं श्रावेला जाने में माणसो मारफते बोलाव्या, त्यारे तेर्ज तो मनमां कंक लावीने तातनां अनुयायिर्ड थया; पण था बाहुबलि मारो विनय करवा लाग्यो. पेहेलां तो ते मने तातनी पेठे विनयथी श्राराधतो हतो, " · नेमणां तो ते दैवयोगे मारी श्राज्ञा पण मानतो नथी. हवे एक बाजुथी जोउं बुं तो या मारो नानो जाइ माराज शतुल्य बे; अने बीजी बाजुथी श्री चक्ररत्न पोतानां स्थानकमां प्रवेश करतुं नथी. माटे एकज वखत ते मारो जाइ मारी पासे श्रावे; ने पढी ते या हाथी, घोडा, रथो, राज्य विगेरे मारुं सघलुं तुरत जले लेइ जाय. माटे हे देवो ! एवी रीते संकटमा रहेला मने न्यायदृष्टिथी विचारिने तमो शिखामण आपो ? एवी रीतनी चक्रीनी वाणी सांजलीने ते देवो तेमने कड़ेवा लाग्या के, हे महीपति ! चरत्ननां प्रवेशथी श्रमो तमोने कई पण अटकावी शकता नथी. पण हवे जो ते बाहुबलि राजा पण माने तो, तमोए द्वंद्वयुलड, के जेथी जगतनो दय थाय नहीं, अने तेथी तमो बन्नेए दृष्टि, वचन, मुष्टि, अने दंडथी युद्ध कर के जेथी तमारां बन्नेनां पराक्रमनी सिद्धी थशे अने प्राणीजनो नाश यतो अटकशे पढी ते वात जरते कबुल करवायी ते देवो बाहुबलिनां सैन्यमां गया, त्यां तेर्जए बाहुबलिने जोया; त्यारे ते ए तेमने आशिष थापी के, दे युगादीश प्र जुनां पुत्र बाहुबलि ! तमो जय तथा आनंद पामो ? एम कही ते तेमकवा लाग्या के, हे बाहुबलि ! बलवान एवा तमोए जुजदंडनी खरजना मिशथी जगतना संहारनां कारणरूप या शुं आरंज्युं बे ? वली हे राजन् ! तमो यशनां श्रर्थी तथा गुरुजक्त बो, तो आ मोटा जाइ साथै तमोए रणसंग्रामनो संरंज शुं मांड्यो बो ? माटे तमो चालो ? अने भरतराजाने नमस्कार करो ? केम के तेवीं रीतनी गुरुसेवाथी तमारुं विशेष मान थशे. वली पोतेज मेलवेला धननी पेठे व खंड जरतनुं राज्य तमो करो ? अने तेम कर्याथी सर्वथा तमारी शोजा वधशे, केम के, अहंकार तो अज्ञानी माणसोने होय बे; एटलुं कहीने देवो मौन रह्या बाद बाहुबलि तेमने कहेवा लाग्या के, सरल आशयवाला तमो तातनां अत्यंत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः २५१ नक्त डो. अगाउ श्री पिताजीए याचकोप्रते जेम धन, तेम श्रमोने अने जरतजीने पण राज्य वेहेंची आप्यु . त्योरे श्रमो तो पिताजीनी श्राझापूर्वक तेटलाज राज्यथी संतुष्ट रह्या; अने जरतजी तो असंतुष्ट थश्ने समस्त जरतखंड गली गया; तेटलेथी पण तेनी श्राशा संपूर्ण न थवाथी तेमणे जाऊनां राज्यो ले लीधां; अने तेम करीने तेमणे तेवी रीतनी पोतानी गुरुता देखाडी !!! अने तेथी मिथ्यात्वथी मूढ मनवालो अतत्वने पण जेम तत्वबुद्धिथी माने , तेम में पण गुरुबुझिथी तेमनी फोकट तातनी पेठे सेवा करी. वलीते चक्री थश्ने पण माझं राज्य अन्यपणानी बुधि लावी हरवानी श्वा करे ,पण ते एम नथी जाणता के, था बाहुबलि तो तेनुं सर्व कंज्ञहरी लेशे!माटे ते मोटा नाश्ने पण गुरुबुद्धिथी फोकट केम नमुं? अने तेथी पोतानां पराक्रमथी जो ते राज्य वेश् शके, तो जले लीए.वली हे देवो! जे सामो लडे नहीं, तेनी साथे लडवू नहीं; माटे ते जेवा श्राव्या , तेवाज जो पाना जाय,तो समर्थ एवो पण हुं तेमनी उपेदा करीश. वली तेमनां दीधेला जरतखंडने हुँ लोग, एवं तमो सांजव्युं पण क्याथी ? केम के, जो पिताजीनां आपेलांथी पण तृप्ति न थ, तो पड़ी शाथी थवानी हती ? माटे हे देवो ! जो तमो श्रमाकै हित श्वता हो तो, तेमनीपासे जर तेमने लोनांधनेज समजावो ? वली हुं तेमना जेवो कंझं लोजी पण नथी. एवी रीतनी बाहुबलिनी वाणी सांजलीने देवो मनमांश्राश्चर्य पामी कदेवा लाग्या के, चक्रनां अप्रवेशथी जरतने पण अटकावी शकाय तेम नथी, माटे हवे तमो बन्नेए उत्तम इंछ युद्धोथी लडवू, पण अधम युकोथी लडq नहीं. ते वात बाहुबलिए कबुल करवाथी देवो जोताथका नजदीकमां आकाशमां उन्ना. हवे बाहुबलिनो बडीदार हाथीपर चडीने, हाथ उंचो करी, मोटा शब्दोथी सुनटोने कहेवा लाग्यो के, हे सघला राजपुरुषो! तमो श्रा वांडित रणसंग्रामथी पाला गे? तथा हाथी घोडा श्रादिक वाहनोने पण सर्व जगोएथी पाडा खेंची व्यो ? केम के, देवोनी मागणीथी श्रापणा स्वामीए युद्ध करवं कबुट्युं बे; माटे तमो ते दूर रहीने जुर्म ? ते सांजली सर्वे सुनटो पोतानी नुजाउने फोकट वृद्धि पामेली मानता थका, राजानी आज्ञाथी वांडित रणथी दूर खस्या. पड़ी जरतनां लश्क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Այ शत्रुंजय माहात्म्य. ad पण पाढा हवता थका एवं चिंतववा लाग्या के, अमो बेठा बतां आपणा स्वामीए द्वंद्वयुद्धनो शामाटे श्राश्रय कर्यो हशे ? वली सैन्यनां मृत्युथी तथा जागवाथीज सर्वथा रक्षण करवा लायक एवा राजाउये द्वंद्वयुद्ध कर लायक गणाय वली एक श्रा बाहुबलि शिवाय समस्त ब खंड नरतमां पण आपणा खामि सरखो कोइ बलवान नथी, अने तेथीज मोने या बाबत शोच थाय बे. एवी रीते एकठा थइने शोचमां पडेला पोतानां सैनिकोने जोइने जरते पोतानुं बल देखाडवा माटे तेने आज्ञा थापी के, तमो एक मोटो खाडो खोदो ? ते सांजली तेर्जए एक विस्तारबालो खाडो खोद्यो. पठी महा बलवान चक्री ते खाडानां कांठापर बेठा, ने पोतानां बने हाथो सांकलोथी बांध्या. एवी रीते सेंकडो बेडावाली सांकलोथी विंटाएल बे शरीर जेमनुं एवा ते चक्री, वडवायोथी विंटाएला वडनी पेठे, तथा किरणोथी विंटाएला सूर्यनी पेठे शोजवा लाग्या. पढी तेम पोताना लश्करीने हुकम कर्यों के, हवे तमो सघला सर्व वाहनोसहित तथा तमारां समस्त बलथी मने खेंचीने श्रा खाडामां तुरत पाडो ? के जेथी तमोने मारा बलमाटे निर्भयपणुं याय. पढी ते सघला मने खेंची खेंची ने थाकी गया, पण तेथी चक्रीने जरा पण ते चलावी शक्या नहीं. पबी चक्रीए हृदयपर हाथ फेरववानां मिशथी तेने जरा स्वेंच्या; त्यारे सघला राजाउं विगेरे सैनिको पोतानां वाहनो ने परिवारोसहित, लताप्रते जेम पक्षिर्ज, तेम सांकलमां लटकता थका खाडामां पड्या. एवी रीतनां पोतानां स्वामिनां बलनां माहात्म्यथी खुशी थएला एवा ते रणसंग्राममां पराङ्मुख यइने साक्षिनी पेठे नजदीक उजा. वे देव ते रणभूमिने गंधोदकची सींची, तथा त्यां पचरंगी पुपोनी श्रेणि पायरी पढ़ी चक्री अने बाहुबलि दृष्टियुद्धनी प्रतिज्ञा करीने, रणभूमिपर सामसामा उजा. एवी रीते अनिमेष रीते जोता थका ad बन्ने चिरकालनां अनालोकदोषं मार्जन करता होय नहीं, तेम शोजवा लाग्या. विस्तारवाली श्रांखोवाला, लाल मुखवाला, तथा पर्वत - सरखा उंचा, एवा ते बन्ने वीरो, एक बीजाने ग्रस्त करवानी, इछावाला होय नहीं, तेम जयंकर देखावा लाग्या. पढी बाहुबलिनां सूर्य सरखा रौद्र मुखने जोवाथी चीनी आंखोमां पाणी श्रावी ते बीडाइ गए, ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः २५३ वखते जरतेशनां लश्करीउनां मुखो नीचां थयां, अने तेनी स्पर्धाथीज होय नहीं जेम, तेम बाहुबलिनां सैनिकोनां मुखो उंचां थयां, पड़ी नीचु मुख करी रहेला नरतने बलवान बाहुबलि कहेवा लाग्या के, हे खामी! तमो उद्विग्न केम था बो? हजु मारी साथे वाग्युक करो? एवी री. तनां तेनां वचनथी, पदघातथी जेम सर्प, तेम थामर्षयुक्त थश्ने चक्री कहेवा लाग्या के जले तेम करो ? पड़ी चक्रीए मंदराचलथी वलोवाएला समुजना ध्वनि सरखो, तथा ऐरावणनी गर्जना सरखो, अने कल्पांतका. खनी मेघनी गर्जना सरखो, तथा आकाशमांथी नक्षत्रोनां समूहने पाडतो, एवो महानयंकर सिंहनाद कयों. ते सिंहनादयी कुलपर्वतोनां शिखरो कंपवा लाग्यां, तथा समुप उबलवा लाग्यो, थने तेनां पाणी गगनांगणमां पहोंचवा लाग्यांवली ते वखते नागकुमारो एक पातालमांथी बीजा पातालमां, तथा सिंहादिक दृष्ट प्राणी एक गुफामांथी बीजी गुफामां जवा लाग्या. वली ते समये उर्बुद्धि, जेम सुबुछिने तेम घोडा लगा मने, तथा हाथी अंकुशने, न गणकारवा लाग्या. वली चाडीथा जेम उत्तम वाणीने तेम रथनां घोडा राशने, अने खच्चरो जाणे नूतनराएला थयां होय नहीं तेम, चाबुकना मारने न गणकारवा लाग्या. वली सर्वे लश्करी तो घूर्णित तथा निश्चेतनोनी पेठे, पोतानुं सर्वख हराइ गयुं होय नहीं तेम मूर्छित थया. पड़ी क्रोधातुर थयेला बाहुबलिए पण सर्व गर्व श्रने सर्व तेजथी ब्रह्मांडने पण फोडी नाखे, एवो सिंहनाद कर्यो. ते वखते अंदर पडेला मंथाचलनां मथननां शब्दनी शंकाथी स. मुत्रमा रहेला जलचरो त्रास पामवा लाग्या. वली फरीने इंजे मुकेला वजनी ध्वनिनां चमथी पोतानां दयनी शंका करता थका कुलपर्वतो पण कंपवा लाग्या. वली ते समये अंतःकरणमां जाणे शल्य पेतुं होय नहीं, तेम त्रणे जगत चेतनरहित थयां. वली देवांगना पण दिग्मूढ थश्ने पोतानां जरतारनां हृदयतुं शरणुं लेवा लागी, पढी चक्रीए फरीने फुःसह सिंहनाद कयों. त्यारे बाहुबलिए पण कानने बेहेरा करीनाखेएवो, तथा स्थिर वस्तुउँने पण चलायमान करे तेवो, सिंहनाद फरीने कर्यो, तेम करतां थकां अनुक्रमे उर्जननी मित्राश्नी पेठे चक्रीनो सिंहनाद घटवा लाग्यो, अने बाहुबलिनो सिंहनाद नदीनां प्रवाहनी पेठे, तथा सजननी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ शत्रुजय मादात्म्य. मित्राश्नी पेठे वृद्धि पामवा लाग्यो. एवी रीते शास्त्र संबंधि वादमां पण सर्वनी सादीए बाहुबलिनी जीत थ. पडी बाहुबलिए फरीने चक्रीने कडं के, हे जगन्नाथ ! श्रा काकतालीय न्यायथी में तमोने जीत्या बे, पण तेथी तमो विषाद करो नहीं ? हजु मुष्टियुद्ध करो ? एवी रीतनां बाहुबलिना वचनथी उत्साहवंत थयेला जरताधिपे मुष्टियुजमाटे जंचे प्रकारे जुजास्फोट कर्यो. पळी ते बन्ने कटीपर पट्टा बांधीने, तथा पगनां धवकाराउथी पृथ्वीने उंची नीची करता थका खेलवा लाग्या. पडी ते सिंहनाद करता थका वायुवेगथी जेम वृदो, तेम आकाशपातालने उंचं नीचुं करता थका शोजवा लाग्या. वली ते वारंवार कुदीकुदीने पगोथी पृथ्वीने ताडन करता थका कूर्मराजने पण प्राणसंदेहनां संकटमा पाडवा लाग्या. वली ते नजदीक नजदीक रहेलां वृदोनी पेठे, एक बीजानी नुजाउँने मरडता थका नेटवा लाग्या, तथा ततक्षण विखुटा पडवा लाग्या. पठी बाहुबलिए क्रोधायमान थश्ने चक्रीने हाथमां लेश्ने दडानी पेठे आकाशमां वेगथी उगल्या. ते वखते “था चक्री खंडने जीतीने हवे शुं श्राकाशने पण जीतवानी श्छा करे ?” एवी शंकावाला देवोथी को. तुके करीने जोवोता, ते चक्री योगीनी पेठे आकाशने तेजस्वी करता थका तेने उलंगीने अदृश्य थया. ते वखते बन्ने सैन्योमा मोटो हाहाकार थक्ष रह्यो; तथा आकाशमां रहेला देवोंने पण म्लानि श्रावी ग. ते वखते बाहुबलि शोचवा लाग्या के, धिक्कार ने मारा था उश्रृंखल बलने! तथा मने अविवेकीने! तथा धिक्कार ! मारा था राज्यमाटेनां लोजने! अने बन्ने राज्योनां मंत्रिने पण धिक्कार !!! पण हवे आवी शोचनाथी शुं थवानुं ले ? माटे जेटलामां आ मारा मोटा नाश् पृथ्वीपर पडीने चूर्ण नथ जाय, तेटलामां तेनो उपाय करूं. एम विचारि तेमणे पोताना बन्ने हाथोने शय्यानी पेठे विस्तार्या; तथा ऊंची दृष्टि करीने पगनां अग्र जागथी पृथ्वीने स्पर्श करीने उन्ना. पली आकाशने दीपावता एवा विद्युदंडनी पेठे पडता चक्रीने बाहुबलिए जीली लीधा. पली चक्री अत्यंत उग्र मुष्टिने उगामीने खेचरोने त्रास पमाडता थका बाहुबलिप्रते दोड्या. पली चक्रीए ते मुष्टि बाहुबलिने माथामां मारवाथी, ते जाणे जरा आंखो विंचीने कंक याद करता होय नहीं, तेवा देखावा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः लाग्या. पनी पवन जेम पर्वतना शिखरने, तेम बाहुबलिए खस्थ थया बाद मुष्टिथी जरतनी बातीमां ताडना करी. ते घाथी चक्री, जाणे पोता. प्रते पृथ्वीनां समस्त रागने जाणवानी श्वावाला थया होय नहीं तेम पृथ्वीतलपर पडी गया. ते वखते पोतानां खामिनां पुःखथी फुःखी थएला जरतना सर्व सैनिको मूळ पाम्या; केमके मोटाउनी आपदा कोने उःखदायक थती नथी ? ते वखते बाहुबलि विचारवा लाग्या के, अहो ! में 3मंदीए था कुलनो नाश करनारुं शुं कार्य आरंन्युं ? वली ज्यारे श्रा मोटा ना जीवे नहीं, त्यारे तो हुँ पण जीवी शकुं नहीं; एम विचारि ते आंखमां बांसु लावी जरत महाराजने पोतानां उपटाथी पवन नाखवा लाग्या. पठी संज्ञा श्राव्या बाद चक्रीए नाना नाश्ने चाकरनी पेठे पासे उन्नेला, तथा पोताने तेवी स्थितिमा रहेला जोया. पडी ते चक्री उठीने क्रोधांध थया थका लोखंडनो दंड जमावता थका बाहुबलिप्रते दोड्या. पड़ी हाथी दांतोथी जेम नगरनां दरवाजाने, तेम चक्रीए क्रोधथी बाहुबलिने तुरत ते दंडथी ताडना करी, एवी रीतना चकीना दंडघातथी बाहुबलिनां मस्तकपर मोटो ध्वनि थयो, तथा तेमनो मुकुट जीर्ण घडानी पेठे चूर्णित थ गयो. अने तेनी व्यथाथी बाहुबलिनां नेत्रो बीडा गयां, तथा तेनां दुःसह शब्दथी लोकोए कानोपर हाथ मेल्या. पड़ी ते व्यथाने नहीं गणकारीने तेणे पण लोखंडनो दंड लेश नमाववा मांड्यो; ते वखते लोकोने एवी शंका थक्ष के, शुं श्रा पर्वतोना शिखरोने नांगी नाखशे ? के पृथ्वीने फाडी नाखशे ? पढी हाथी जेम पोतानां मजबूत दांतोथी नगरनां दरवाजाने, तेम तेणे ते दंडथी चक्रीना हृदयमां ताडना करी. ते घाथी चक्रीन दृढ बख्तर पण चुर्णित थश् गजु; अने तेथी वादलांमांथी निकलेला सूर्यनी पेठे प्रगट कांतिवाला ते देखावा लाग्या, पढी कल्पांत कालनो मेघ तडिदंडथी जेम पर्वतने, तेम चक्रीए ते दंडथी बाहुबलिने ताडना करी.ते वखते बाहुबलिप्रते पोताना अपराधनां जयथीज होय नहीं जेमतेम ते लोखंडनो दंड नांगी गयो. ते दंडघातथी बाहुबलि धुंटणसुधि पृथ्वीमां समा गया; अने ध्यानमा रहेला योगीनी पेठे क्षणवार बेजान रह्या. पनी कादवमा डुबेला हाथीनी पेठे पोतानुं अंग कंपावीने ते तुरत बहार निकट्या; तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ शत्रुंजय माहात्म्य. हाथमा लोहदंड लीधो. ते वखते " शुं था ताराउने पाडी नाखशे ? के पर्वतोने चूरी नाखशे ? के पक्षिनां मालाउनी पेठे श्राकाशमांथी विमानोने फेंकी देशे ?” एवी रीते लोकोथी शंका कराता, अने जोवाता एवा बाहुबलिए यमनी पेठे चक्रीने बलथी ताडना करी. ते दंडघातथी ची बेक कंठसुधि जमीनमां डुबी गया; अने तेथी राहुथी जरा यसाएला चंद्र सरखा ते देखवा लाग्या. ते वखते बाहुबलि शोचवा लाग्या के हो ! जानां वधथी मने मोटुं छाने दुःसह पाप थयुं ! तथा अरे ! में कुपुत्रे तातना वंशने कलंकित कर्यो !! एवी रीते बाहुबलि जेटलामां शोच करे बे, तेटलामां सूर्य सरखी कांतिवाला चक्री ते व्यथाने तजीने पृथ्वीमांथी बहार निकल्या; तथा विचारवा लाग्या के, देवोथी जेम इंद्र, हरिणोथी जेम सिंह, तथा ताराउंथी जेम चंद्र, तेम चक्री बीजा राजाJथी जीताय नहीं !! माटे साठ हजार वर्षोसुधि में जे दिग्जय कर्यो, ते शुं श्रा बाहुबलिमाटेज कर्यो ? के जेथी श्र मने मारवाने उद्यमवंत थयो बे ! ! ! वली वासुदेवनी पेठे एकी वखते वे चक्री थाय पण नहीं; केम के जिनागमनी वाणी शुं वृथा थाय ? माटे खरेखर हुं चक्री नथी, पण या चक्री बे; श्रने आजदनसुधि में तेना सेनापतिनी पेठे दिग्जय कर्यो. एवी रीते मनमां चिंतातुर थएला ते चक्रीना हाथमां तेज वखते सूर्यसरखी कांतिवायुं, तथा अग्निकणाने उडाडतुं चक्ररत्न श्राव्यु. ते चक्रनां श्राववायी पोताने चक्री मानीने, तथा चक्रने जमावी ने गर्वथी ते बाहुबलिने युं के, हे बाहुबलि ! हजु पण कई बगडी गयुं नथी; माटे देवोए पण मानेली, एवी मारी श्रज्ञाने तुं मान बोडीने अंगीकार कर ? वली तुं नानो जाइ बे, तेथी तारा पूर्वना सघला अपराधो हुं क्षमा करीश, अने तारा वधथी मने जातृहत्यानुं पाप पण न लागे तो सारुं ! वली तीर्यंचोमां पण जेम हाथीथी मोटो सिंह, अने तेथ मोटो अष्टापद बे, पण ते सघला शुं राजाने वश नथी यता ? एवी रीते बाहुनां बलथी तारे पण गर्व करवो लायक नथी, केम के सघला बलवान राजाने पण चक्रीनी श्राज्ञा माननाराज थाय बे. एवी रीते बोलता चक्रीने बाहुबलि पोतानां खनाउपर दृष्टि नाखता थका गंजीर वाणीथी कड़ेवा लाग्या के, हे खार्य ! था तमारी क्षत्रीयपणानी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः २५७ बुद्धि तथा तमारुं तातपुत्रपणुं तो अहो ! बहु सारं शोने !! केमके दंडयुद्धनी प्रतिज्ञा करीने पण तमोए चक्र ग्रहण कयु डे !!! वली हे गुणज्येष्ट ! पतंगी जेम सूर्यने तेम तमो था लोखंडनां टुकडाथी था बाहुबलिना बाहुनां बलने शामाटे निंदो हो ? वली तमारा बाहुनुं बल तमोए जोयु ! हवे आ चक्रनां बलने पण तमो जुर्ज ? वली हे ना! तमो कंपण शंका करशो नहीं! केम के क्षत्रीयोनो ते व्यवहार बे. ते वचनथी क्रोध पामेला चक्रीए ते चक्ररत्नने जवामीने, तथा जोनाराउने नय उत्पन्न करीने, तुरत ते बोड्यु. ते वखते बाहुबलि विचारवा लाग्या के, शुं श्रा चक्रने हुं लोहदंडथी घडानी पेठे फेंदी नाखुं ? के दडानी पेठे लीलामात्रयी आकाशमां उगली ना ? अथवा मारा यशरूपी वृदमाटे तेने पृथ्वीमां बीजनी पेठे दाटी देखें ? अथवा चकलीनां बच्चांनी पेठे हाथमां वेश्ने तेने चूर्ण करी ना ? अथवा मूष्टी मारीने तेने को दिशामा फेंकी दलं? नहीं! पण तेनुं पराक्रम तो जो!! बाहुबलि एम विचारते बते, ते बलतुं चक्र तेने प्रदक्षिणा करीने, फरीने चक्रीना हाथमां गयु. (चक्रीनां सामान्य गोत्रीउपर पण ते चक्र चाली शकतुं नथी; त्यारे आवा सिद्धिवंत पुरुषनी तो वातज शी करवी ?) पनी बाहुबलिए विचार्यु के, हवे तो श्राजे आ चक्रने, तेनां अधिष्टायक हजार यदोने, तथा अन्याय करनारा ते चक्रनां खामी जरतने पण मुष्टिथी चूर्ण करी नाखू; एम विचारि बाहुबलि कल्पांतकाले मूकेला इंजनां वज्र सरखी निष्ठूर मुष्टि जगामीने चक्रीप्रते दोड्या. पडी समुन जेम मर्यादानूमिप्रते तेम, बाहुबलि रणनूमिपर चक्रीनी पासे श्रावी विचारवा लाग्या के, अरे !! चलाचल राज्य माटे, तथा मारा बन्ने नवोने नष्ट करखा माटे, में श्रा नाश्नो वध करवानुं कार्य प्रारंज्यु !!! वली मोटा नाश्ने मारीने, तथा नाना नाने लथी ठगीने जे राज्य आ मुनियामां मेलवाय , तेवू मनोहर राज्य पण मारे जोश्तुं नथी. वली लेशमात्र सुखनी प्राप्तिथी व्रमित थएला अधम नरोज नरकागारनां कारणरूप कार्यमां पडे बे; जो एम न होत तो जिनेश्वर प्रनु शामाटे तेवा राज्यनो त्याग करत? माटे हवे श्राजे तो हुँ पिताजीने मार्गे चालनारो थG!! एम मनमां विचारिने ते महाबुद्धिवान बाहुबलि, जरा उष्ण अश्रुजलोथी ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ शत्रुजय माहात्म्य. थ्वीने सिंचता थका चक्रीने कदेवा लाग्या के, हे ज्येष्टबंधु ! आप हवे मारो अपराध क्षमा करो? वली हे जगत्प्रजु ! में राज्यमाटे श्रापने वहु खेद थाप्यो बे; वली हे वडीलना! मारे हवे संपदानुं प्रयोजन नथी; हूं तो हवे पिताजीने मार्गे चालनारो थश्श; एम कही बाहुबलि महाराजे तेज जगामेली मुष्टीथी पोताना मस्तकपरनां केशोने उखेडी नाख्या. (लोच कयों.) ते वखते “अहो! उत्तम कार्य ! अहो ! उत्तम कार्य!” एवी रीते देवो श्रानंद सहित बोलवा लाग्या; तथा बाहुबलि महाराजपर पुष्पोनी वृष्टि करवा लाग्या. पनी अंगीकार करेल महाव्रतो जेणे एवा बाहुबलि मुनिराज विचारवा लाग्या के, अनंत सुखनी संगतिवाला श्री पिताजीनां चरणकमलप्रते हवे हुँ जजं; अथवा अहींज रहुँ; केम के त्यां जवाथी प्र. थमथी दीक्षित, तथा झाने करीने मनोहर एवा मारा नाना नानी मध्ये मारी लघुता थशे.माटे अहीज ध्यानरूपी अग्निथी घातिकमोंने बालीने, केवलज्ञान मेलव्याबाद हुँ प्रजुनी सन्नामां जश्श. पड़ी ते पंडितशिरोमणि बाहुबली मुनिराज एम विचारता थका, त्यांज बन्ने हाथो लांबा करीने कायोत्सर्ग ध्यानमां लीन थया. पड़ी चक्री, बाहुबलिने तेवी रीतनां, तथा पोतानुं तेथी उलटुं कार्य जोश्ने, नीचं मुख करी जाणे पृथ्वीमां समा जवानी श्छा करता होय नहीं तेम देखावा लाग्या. पनी आंखोमां बांसु लावीने चक्रीए ततदण पोतानां नाना जाश्ने नमस्कार कर्यो; तथा पोतानी निंदारूप तथा ते. मनी प्रशंसारूप नीचे प्रमाणे वचनो ते बोलवा लाग्या. हे बांधव ! था उनीयामां जेटला लोन अने मत्सरथी ग्रस्त थएला माणसो तेनो हुं सरदार बुं! अने आप तो बलवान, कृपालु, अने धमीनां सरदार बो. वली हे बंधु ! आपे मने प्रथम युद्धथी जीत्यो, तथा हवे तमोए व्रतरूपी हथीयारथी रागादिक शत्रुउँने जीत्या; माटे आपस. रखो था मुनीयामां कोरपण बलवान नथी. वली हे ना! श्रापज खरेखरा तातनां पुत्र हो! केम के, तेमना मार्गमां आप वर्तो बो! अने हुं तो जाणतां बतां पण रागद्वेषथी कदर्थित थयो ढुं. माटे हे जगवन् ! श्राप हवे मारापर कृपा करो? अने आ समस्त पृथ्वीनुं मारुं राज्य ग्रहण करो? अने ढुं श्रापर्नु संयमरूपी साम्राज्य ग्रहण करीश. एवी रीते बाहुबलि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ F चतुर्थः सर्गः श्य मुनिराजप्रते बालकनी पेठे श्रालाप करता ते चक्रीने, पवित्र बुद्धिवाला मंत्रीए पछी समजाव्या. पढी ते चक्री बाहुबलिनां पुत्र सोमयशाने अगाडी करीने, तक्षशीला नगरीपासे रहेला जिनमंदिरमां गया. त्यां उद्यानमा हजार श्रारावाला, तथा विचित्र मणिधी जडेला, मंदिर सहित धर्मचक्रने नमस्कार करीने सोमयशा चक्रीने कड़ेवा लाग्यो के, हे तात! पूर्वे कक्ष्मष रहीत श्री रुषजस्वामी ब्रद्मस्थ अवस्थामां पृथ्वीपर विहार करता थका रात्रिए वी यहीं समोसर्या हता; त्यारे पिताजीए ( बाहुबलिए) एम विचायुं के, हुं प्रजातमां सर्व राजार्ज तथा सर्व लोको साथे मोटा उत्सवपूर्वक तातपासे जर तेमने वांदीश; एवी प्रतिज्ञा करीने, तेमणे मांचार्ज, करुखा, बजार विगेरे शणगाराव्यां; तथा वटा छाने चोवटा विगेरे सर्व मार्गो पर कपूर ने चंदननां बंटकावपूर्वक कस्तूरीथी मंडलो कराव्यां; तथा त्यां पुपमाला, रंगबेरंगी पताका ने मणिनां तोरणो बंधाव्यां पढी प्र जाते पवित्र थने, परिवार तथा सर्व लोको सहित, तातनी स्तुतिनुं स्मरण करता थका ते हीं श्राव्या; पण तेटलामां तेमणे सूर्य विनानुं जेम आकाश, पुत्र विनानुं जेम उत्तम कुल, तथा जीवविनानुं जेम शरीर, तेम पिताजी विनानुं या वन जोयुं. त्यारे मनमां खुंचेला दुःखरूपी खीलाथी पीडित थपला पिताजी, पडखे रहेला वृकोने पण रोवरावता थका रुदन करवा लाग्या के, विलंब करनार, तथा धर्मनो विघात करनार एवा मने धिक्कार बे !! केम के, में रात्रिये जश्ने पण पिताजीनां चरणकमलोने नमस्कार कर्यो नहीं ! ! वली हे जगवन् ! तमो खरेखर वीतरागज बो, आप समान बीजो कोइ पण या पृथ्वी पर ममतारहित नथी. केम के, पु ते पण तमोए जरा पण राग धर्यो नहीं. एवी रीते रुदन करता पिताजीने मंत्र प्रमुखोए समजाव्या बाद, तेमणे पिताजीना पगलांनी प्रतिमाने नमस्कार कर्यो; पठी तेमणे विचायुं के, पिताजीना श्रा पगलांना स्थानकने कोइ स्पर्श न करे तो सारुं, एम विचारि तेमणे या उंचां प्रासाद सहित या धर्मचक्र यहीं स्थापन कराव्युं. ( माटे बुद्धिवाने नानुं अथवा मोटुं प्रारंभेलुं धर्मकार्य विलंबविना प्रयत्नथी कर, धर्मका - ना विस्तार माटे विलंब करवोज नहीं, केम के, विलंबथी रात्रि गया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० शत्रुजय माहात्म्य. बाद बाहुबलि पण प्रजुने नमी शक्या नहीं) ते सांजली चक्री ते धर्मच. ऋने नमीने तक्षशिलामां गया, तथा त्यां सोमयशानो अनिषेक करी राज्यपर बेसाड्यो. श्रने त्याथीं सेंकडो शाखाउँवालोसोमवंश (चंदवंश) चाबु थयो, केमके पुरुषरत्नोनी उत्पत्तिनुं कारण तेवू तेवु एक होय बेज. ते सोमयशाने रूपवंती, तथा कुलीनएवी सुव्रतादिक चोवीस हजार स्त्री हती, तथा जगतमा प्रख्यात पराक्रमवाला अने पवित्र श्रेयांस आदिक बहोतेर हजार तेमने पुत्रो हता; वली ते बत्रीस लाख गामोनु, एकसो पत्तनोनु, तथा त्रणसो नगरोनुं रक्षण करता हता. वली तेमने चुमालीस लाख रथो, एक लाख हाथी, तथा सूर्यनां घोडासरखा पांत्रीस लाख घो. डाउँ, तथा सवा क्रोड पाला हता; तेम सातसो राजा तेमनी श्राझा धारण करता हता. हवे सोमयशाथी, तथा त्यांना सर्व राजाउँथी पूजाएला चक्री फरीने पण श्रीबाहुबलि मुनिराजनां चरणोने नमीने पोताना नगरप्रते गया, तथा त्यां सुर, असुर श्रने मनुष्योनां समूहोथी सेवाएला ते चक्री पितानी पेठे प्रजाने पालवा लाग्या. - हवे त्यां बाहुबलि मुनिराजे सर्व सावध व्यापारथी रहित थश्ने, तथा सर्व प्राणीप्रते हितकारी थश्ने, कर्मोनो नाश करवामाटे ध्यान धरवा मांड्यु. नाशिकापर राखेल जे दृष्टि जेमणे, निर्मल ज्योतिवाला, प्रचुर्नु ध्यान धरता, तारानां प्रचारोथी रहित मेरुसरखा निष्कंप, घुटणसुधि लं. बावेल हाथोवाला, रोकेल डे सर्व श्राश्रवो जेमणे एवा, तथा गोपवेल बे, चित्तरूपी पवन जेमणे एवा ते बाहुबलि मुनि शोजवा लाग्या. सर्व . तुनां दोषोथी दूषिन नहीं थएला, तथा द्वेष अने रागयी नहीं पाएला योगी, तेम टाढ, तडको, तथा वरसादयी नहीं पाएली मूर्तिवाला ते बाहुबलि मुनि पर्वत सरखा शोजता हता. वली परस्पर जन्मवैरवाला जीवो पण सहोदरतुल्य थश्ने, तेमनो श्राश्रय करता हता; तथा तेमना मस्तकपर, डाढीमूढोपर अने जुजादिकमां पदिउँ माला बांधी रहेता हता. वली कर्मरूपी लता उखडी जवाथी, वनलताउँथी वीटाया थका, वादलाउनां समूहोथी जेम मेरुपर्वत तेम अधिक कांतिवाला ते गंजीर मुनिराज शोजता हता. वली उष्ट माणसो जेम सजनोनां चित्तने, तेम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःसर्गः २६१ जलथी वृद्धि पामेला, अने तीदण मुखवाला दर्जनां अंकुरो, पगमा प्रवेश करीने, तेमनां शरीरने नेदवा लाग्या. एवी रीते ते मुनिराज रागशेषने जीतीने, हृदयकमलमा प्रजुनुं ध्यान धरता थका, तथा मत्सररहित बुझिवाला थया थका, समनावमा एक वर्षसुधि रहीने घातिकर्मोनां पटलोने बालवा लाग्या. पनी श्री युगादीश प्रजुए तेमनी केवलोत्पत्तिना समयने, तथा तेमां विघ्न करनारा तेमनां मानने जाणीने, तेमने प्रतिबोधवामाटे ब्राह्मी अने सुंदरी सतीउँने त्यां मोकली; अने ते पण अनुक्रमे ते मत्सररहित मनुष्यवाला वनमांश्रावी. त्यां ते साधवी वादलांमां रहेला सूर्यनी पेठे, वेलडीउनां समूहोथी विटाएला ते मुनिराजने केटलीक महेनते उलखीने, आदरपूर्वक तेमने प्रजुनां वचनो कहेवा लागी के, हे ना! श्रीयुगादीश प्रजु थापने श्रमारा मुखथी संदेशो कहेवरावे डे के, हाथीपर चडेला पुरुषोने शुं केवलज्ञान थाय? माटे ते तमारा वै. रीने तमो जीतो? वली हे युगादीशप्रजुनां पुत्र! तमोते तरुण गजेंथी नीचे उतरो ? वली हे बांधव ! तमो आवा उत्कृष्ट मुनि थश्ने पण केम मोहमां पडो गे? माटे बोध पामो? एटयूँ कहीने ते बन्ने बेहेनो श्री श्रादिदेव प्रजुनां चरण समीपे गश्; पठी ते वचनो सांजलीने बाहुबलि पण तेनुं तत्व विचारवा लाग्या के, श्रा बन्ने मारी बेहेनो सर्वज्ञ एवा श्री पिताजीनी शिष्यो; माटे ते को पण वखते जूतुं बोले नहीं, पण तेमणे जे हाथी कह्यो ते क्या डे ? वली में तो हमेशने माटे आ सप्तांग राज्य तो तज्यु ! अने हुं तो कायोत्सर्ग ध्यानमा ढुं! त्यां मने हस्तीनी प्राप्ति क्यांथी? पण अहो! हवे मालुम पड्यु !! " नाना जाने कोण नमे?" एवी रीतनो मानरूपी हाथी मारी पासेज रहेलो , माटे ते मारुं पुष्कृत हवे मिथ्या था ? हुं तेने जश्नमीश. मानथी तो पुण्य, कीर्ति, यश, लक्ष्मी तथा स्वर्गनुं साम्राज्य पण जतुं रहे डे, श्रने ते पुर्गतिनी संगति करावे . वली मान डे ते म्लानि करनारूं, गुणोने हरनारूं, धर्मरूपी ल मीने चोरनारुं, नीचगोत्ररूपी वृक्षप्रते वरसादसर, सौजाग्यनो नाश करनालं, कीर्तिने घटाडनारं, मोदसुखने दूर करनालं, तथा पुण्योनी श्रेणिरूप रात्रिने नाश करवामां सूर्यसरखंबे, तेथी सत्पुरुषो प्रायें करी तेनो त्याग करे . वली पूर्वे जेठए चारित्रनो जार अंगीकार करेलो के, एवा २१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ शत्रुजय माहात्म्य. मारा नाना जाने पण हुँ तातनी पेठेज वंदना करीश, एम पोतानां मनमां विचारिने, जेवा ते तातपासे तुरत जवाने श्छे , तेटलामा केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी, के जे पेहेलेथीज तेमनाप्रते अत्यंत रागवाली हती, ते तेमनां मानरहित चित्तरूपी मंदिरमां तुरत दाखल थर, थने तेथी ते बाहुबलि महामुनिराज समकालेज समस्त जगतने जोवा लाग्या. पनी त्यां देवोए श्रापेला मुनिनां वेषने धारण करीने ज्ञानथी शुद्ध चित्तवाला ते बाहुबलि मुनिराज त्यां जश् प्रजुने प्रदक्षिणा करीने केवलीनी सनामां बेग. एवी रीते बलवानोमां पण महाबलवान था बाहुबलि मुनिराज जे; केम के, तेमणे एकी वखतेज रणसंग्राममां जरत चक्रीने अने कर्मोने पण तुरत जीत्यां; तथा पोतानुं मान पण तेमणे तजी दीधुं. एवी रीते आचार्य महाराज श्री धनेश्वरसूरिए बनावेला महातीर्थ श्री शत्रुजयनां महात्म्यमां जरतचक्री अने बाहुबलिनां संग्रामनां वर्णननो चोथो सर्ग संपूर्ण थयो. श्रीरस्तु. पंचमः सर्गः प्रारभ्यते. श्री शत्रुजय पर्वतरूपी ऐरावणमांथी उत्पन्न थएला मुक्तामणि सरखा, लक्ष्मीनी श्रेणिसरखा, पुण्यनां सूर्यसरखा, शुन यशनी वेणिसरखा, त्रणे लोकोनां गुरु, नाजिराजाना वंशथी (वांसथी) उत्पन्न थएला मणिसरखा तथा कुवलयने (चंड विकासी कमलने) उद्दोध करवामां चं सरखा, श्रीयुगादीश प्रनु अखंडित सुख आपो? हवे श्री वीरप्रजु इंजने कहे ले के, हे इंड! हवे ते चक्रिनां बाह्य शत्रुनी जीतनी पेठे, तेमनो अंतरशत्रुउनो जय, तथा श्री शत्रुजय तीर्थनी सिद्धिने तुं सांजल? हवे अतिशयोरूपी किरणोवाला, तथा चक्रवाकोथी जेम सूर्य, तेम त्रणे जगतनां लोकोथी सेवाता, श्री शषनदेव प्रनु पृथ्वीने पवित्र करता थका, तथा नव्यरूपी कमलोने उहासित करता थका पूर्वाचलप्रते जेम सूर्य, तेम श्रीशत्रुजय पर्वतप्रते श्राव्या. कल्पवृक्ष, पारिजात, संतान, ह. रिचंदन, लवंग, चारोली, श्रांबा, चंपक, अशोक, नालीएरी, नागरवेल, सोपारी, केल, सालरी, शाल्मली, तथा शाल आदिक वृदोथी शोजता, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः २६३ सर्व पर्वतोनां खामिपणाथी चमरी गायोनां घुबडांरूपी चामरोथी वीजाता, जिनमंदिरोरूपी त्रो श्रने उंचां कलशोथी वीटाएला, हजारो उंचां शिखरोथी प्रगट रीते मुकुटयुक्त थएला, विचित्र प्रकारनां मणि श्रने रत्नोनां किरणोथी आकाशने पण देदीप्यमान करता, नदी, अहो, कुंडोनां समूहो, तथा वावोथी उत्तम शोनाने धारण करता, कमलोथी देवलोकनी पण हांसी करता, कल्पवृदोनी घाटी यामां नर्तारो सहित बेठेली किन्नरीउँथी गवाती , युगादीश प्रजुनां गुणोनी पंक्ति ज्यां एवा, दर्शनमात्रथी पण जगतने पवित्र करता, स्पर्शमात्रथी पण पापोनां समू. हने हरता, नेत्रप्रते एक रसांजन सरखा, मोदनी श्छावाला अनेक गांधों, विद्याधरो, मनुष्योनां समूहो, देवो, असुरो, नागकुमारो, तथा सिंहादिकोथी सेवाता, अनंत सिझोनां स्थानरूप, अनंत सुख देनारा, प्राणीउप्रते अनंत नवरूपी समुषमा बीपसरखा, एक लाख बत्रीस हजार गामोथी विनूषित थएला, हमेशां समुज्ना रत्नोथी बंधाएली मेखलावाला, उत्रसरखी बायावाला वृदोथी मध्याह्नकाले पण ताप विनाना, सौराष्ट्र देशनी स्त्रीउँनां गीतोनां ऊंकारोथी खुशी थएल जे देव, मनुष्य अने नागकुमारो ज्यां एवा, मूलमा पचाश योजनवाला, शिखरपर दश योजनवाला, तथा पाठ योजन ऊंचा, एवा ते पर्वतपर प्रजु चड्या. वली मोक्षनी नीसरणीनां पगथीयां सरखा ते ऊंचा पर्वतपर पुंडरिक प्रमुख मुनिर्ज, तथा सुंदरी प्रमुख साधवी विगेरे चड्या. पनी तीर्थंकर जेम तीर्थने, तेम श्रीयुगादीश प्रनु ते रायणने विशेषथी पवित्र करता थका, रात्रिए तेनी नीचे समोसर्या. हवे आसन कंपवाथी प्रनाते देवोए त्यां श्रावीने, नवनीरूजने शरणातुल्य समवसरण बनाव्यु. त्यां प्रजुए पोरसीसुधी धर्मदेशना थापी; तथा पली पुंडरिकजीये प्रजुनां पादपीउपर बेसीने धर्मदेशना आपी के, तीर्थ, जिन, अने गुरुमां नक्ति, धर्मशास्त्रनी रुचि, दया, सुपात्रेदान, प्रिय वचन अने विवेक एटलां सम्यक्त्वनां लक्षणो बे. वली आर्यदेश, मनुष्यपणुं, दीर्घ आयुष्य, उत्तम कुल तथा न्यायोपार्जित धन, एटलां माणसोनां पुण्योपार्जननां हेतु दे. वली आर्यदेशमां जो मनुष्य जव मलेलो होय, तोज पापकार्योथी लजा, धर्मना थागमोनुं सांजल, कत्याकृत्यनो विचार, दयालु बुद्धि, गुरुनी सेवा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ शत्रुजय माहात्म्य. अपयशनी बीक, पापनां नाशनी श्चा, तथा उत्तम धर्ममां प्रीति थाय . वली जे मनुष्यनवें करीने धर्म, अर्थ, काम अने मोद नामनां चारे पुरुषार्थो साधी शकाय , ते मनुष्य नवनी स्तुति करवाने कोण समर्थ ? वली उत्तम न्यायमार्गथी उपार्जन करेली संपदा पण दानेश्वरीने घेरज कृतार्थ थाय बे तथा थार्य देशमा विवेकी कुलमां जे मनुष्यपणुं मले बे, तेज प्रशंसवा लायक . वली जे उद्यमवंत माणसो पोतानां आयुष्यनां क्षणमात्रने पण प्रमादथी फोकट गुमावता नथी, एवा विवेकी माणसो था जगतमां धर्मकार्योप्रते लांबां थायुष्यवाला था ? वली जे माणस खांसी, श्वास, संग्रहणी, अर्श, रक्तपित्त, तथा ज्वर श्रादिक रोगोथी हमेशां पीडाएला बे, ते शी रीते पुण्योपार्जन करी शके ? वली प्रायें करीने पराक्रम दैन्यमाटे, शौर्यता परानवमाटे, उद्यमपणुं दरितामाटे, तथा उज्ज्वल कुल पापमाटे थतुं नथी. पडी ते देशनाने अंते प्रजु पुंडरिक महाराजने कहेवा लाग्य के, श्रा शत्रुजय पर्वत मोटुं तीर्थ डे, तथा मोदनां घररूप दे. वली या तीर्थपर श्राववाश्री प्राणी पुर्खन लोकाग्रने पण मेलवे बे, तेम था गिरिराज शाश्वतो . वली था तीर्थ अनादि बे; तथा अहीं अनंत तीर्थंकरो पोतानां कर्मसमूहनो नाश करीने सिक थया बे. वली था तीर्थपर जे पदिउँ, तथा बीजा पण कुछ अने हिंसक जंतु रहे , ते पण त्रण नवोमां मोदे जशे. वली जे जीवो अजव्य तथा पापी , ते या पर्वतने जो शकता नथी. वली राज्यादिक तो मली शके बे, पण था तीर्थ मली शकतुं नथी. वली तीर्थकरो मोदमां गए बते, तथा केवलझाननो लय थए बते, श्रा तीर्थ श्रश्रवणथी तथा स्तुतिथी पण लोकोने तारनारंबे, तेम था उःखम कालमां केवलज्ञाननो लय थवाथी, तथा धर्मनी पडती श्राववाथी आ तीर्थज जगतनुं हित करनारं . वली जिनोमा जेम हुं मुख्य दुं तथा पर्वतोमा जेम मेरु बे, तथा छीपोमां जेम जंबूहिप बे. तेम सघलां तीर्थोमां श्रा मुख्य तीर्थ . वली जे माणसोए पोतानी जींदगीमां ा तीर्थन दर्शन कयुं नथी, ते ने मनुष्यरूपधारी पशुउंज जाणवा. तेम था तीर्थप्रते अनंता तीर्थंकरो, तथा केवली आव्या बे, तेम मोदे गएला , तथा जशे. वली अतीतकालमां थ गएला तथा हवे थनारा तीर्थकरो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः २६५ था तीर्थमां रायणनां वृदतले समोसर्या , तथा समो सरशे. वली श्रा सुराष्ट्र देश, श्रा शत्रुजय गिरि, थारायण, तेम वर्तमान तीर्थंकर ए सघला तीर्थरूप . वली समुखमा रहेलो जेम वडवानल, तेम था फुःखम कालमां था तीर्थनो महिमा अधिक अधिक थशे, माटे या मोटामां मोटुं तीर्थ . था तीर्थमां श्री अरिहंत प्रजुनी पुष्प, श्रदत विगेरेथी पूजा करवाथी, तथा स्तुति करवाथी प्राणीउनु जन्मसुधि करे पाप नाश पामे . वली अन्य तीर्थ करता था तीर्थमां जिननी पूजा करवाथी अनंतगणुं फल मले बे. तेम थहीं फक्त एकज पुष्पथी अनुपूजा करवाथी वर्ग अने मोक्ष पर्खन थतां नयी. वली या तीर्थमां जे माणस प्रजुनी अष्टप्रकारी पूजा करे , ते नवे निधानो पामीने अरिहंत तुल्य थाय बे. वली पुण्यशाली माणसज अरिहंत प्रनुनी पूजा, सुगुरुनी नक्ति, शत्रुजय तीर्थनी सेवा, तथा चतुर्विध संघनो संगम करे . वली अहीं शुज गुरुनी त्रिकरणशुधिपूर्वक आराधना करवाथी ते तीर्थंकर पद आपे बे, तथा सामान्य मुनिनी श्राराधनाथी चक्रीनी लक्ष्मी मले बे. वली जेणे पोतानां धननां समूहथी गुरुनी सेवा करी नथी, तेनो जन्म, तथा तेनी सर्व सदमी पण निष्फलज . वली पूर्व जवमां तीर्थंकरोने पण बोधिबीजनां हेतुरूप गुरुज , माटे बुद्धिवाने तेवा गुरुनी यहीं विशेष पूजा करवी. वली अहीं सघली धर्मक्रीया पण गुरुनी साथे रहीने करवी; केम के गुरु विना ते सघली निष्फल . माटे पोतानां अनृण्यपणाने श्वनारा माणसे या तीर्थमां धर्म थापनार गुरुनी वस्त्र, अन्न, पाणी श्रादिकथी सेवा करवी. वली था शत्रंजय तीर्थमां गुरुने वस्त्र, अन्न, तथा जलनुं दान देवाथी, तथा तेनी जक्ति करवायी था लोक अने परलोकमां सर्व संपदा मले . या शत्रुजय तथा जिन, ए बन्ने स्थावर तीर्थों बे; पण गुरु तो जंगमतीर्थरूप , माटे तेमनी अहीं अत्यंत सेवा करवी. वलीथा तीर्थमां अजयदान, अनुकंपादान, सुपात्रदान, तथा कीर्त्यादिक मोटर्नु दान, तेम अन्नदान, ज्ञानदान, औषधदान, अते जलनुं दान देवू; एम जिनेश्वरोए कहेलु डे. वली जे माणस अहीं दीन, तथा अनाथादिकोने दान थापे बे; तेने घेर अटकाव रहित निरंतर लक्ष्मी नाच्या करे . माटे महा बुद्धिवाने मोक्ष देनारुं दान था तीर्थमां देवू; केम के, दान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ शत्रुंजय मादात्म्य. विना प्राणी जवसागरने तरी शकता नथी. वली श्रा तीर्थमां अत्यंत गुणवालुं तथा मोक्षसुख श्रापनारुं तथा सर्व दुःख हरनारुं शील त्रिकरशुद्धिथी पालकुं. पोतानुं श्रहित छनारा एवा जे माणसे या तीर्थमां शीलभंग कर्यु बे; तेनी क्यांए पण सिद्धि याय नहीं; तथा ते चांडालथी पण वधारे निंदनीक बे. वली या तीर्थमां तप करवाथी निकाचित कर्मों, तथा जन्मसुधिनुं पाप पण नाश पामे बे. वली ने अहमश्रा - दिक तपथी उत्तम फल मले बे; माटे सर्व इति आपनारो ते तप यहीं विशेष करीने करवो. वली अहीं श्रानो तप करवायी कर्मोंनो नाश क प्राणी स्वर्ग ने मोक्षनां सुख क्षणवारमां मेलवे बे. वली अहीं चैत्री पुनेमनो उपवास करवाथी सुवर्णनो चोर, तथा शुभ जावथी सात बेल करवायी वस्त्रनो चोर शुद्ध थाय बे. रत्ननी चोरी करनारो छाहीं अत्यंत उत्तम जावी दान देतो थको, कार्तिक मासनां सात दिवसनां तपथी शुद्ध थाय बे. वली रुपुं, कांसुं, त्रांबुं तथा पित्तलनी चोरी करनारो, ते पापथी अहीं सात दहाडा सुधी परमार्थ नामनो पृथक रीते तप करवाथी मुक्त याय बे. वली मोती तथा परवालांनो चोर, अहीं त्रिकाल | जन पूजाथी, तथा पंदर थांबेलोथी निर्मल थाय बे. वली धान्य तथा जलनो चोर यहीं सुपात्रे दान दीधाथी, तथा रसनो चोर महादानी शुद्ध थाय बे. वली वस्त्र ने श्राभूषणनो चोर यहीं जिनपूजन करवाथी पोतानां श्रात्मानो खाडा सरखा जवमांथी उद्धार करनारो थाय बे. वली देवद्रव्य तथा गुरुद्रव्यने चोरनारो माणस यहीं जिनपूजनयी शुद्ध थाय बे; तथा ध्यान अने सुपात्रे दान देवाथी ते अंतरंग शत्रुनो नाश करनारो थाय बे. वली जे माणसे कुमारिका, दीक्षित स्त्री, वटलेली, सधवा, विधवा, तथा गुरुस्त्री साथे गमन कर्यु होय, ते माणस पण मनने रोधीने जिननुं ध्यान धरतो थको वहीं जो उ माससुधी तप करे, तो शुद्ध थाय बे. वली गाय, जेंस, घोडा, हाथी, पृथ्वी तथा घरनो चोर, श्रने मंत्र तंत्र देनारो पण अहीं नक्तिथी जि ननुं ध्यान धरवायी शुद्ध थाय बे. वली अन्यनां चैत्य, घर, बगीचा, पुस्तक तथा प्रतिमादिक उपर जे दुष्ट बुद्धि " श्र मारुं बे" एम धारी पोतानुं नाम नाखे बे, ते माणस पण अहीं सामायिकथी पवित्र थइ ब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः १६० मास सुधि तप करवाश्री पापोने नाश करी शुद्ध थाय . वली अहीं परमेष्टिनुं ध्यान, तथा, देवार्चन थादिकथी समकीती श्रावक सर्व पापोथी मुकाय . एवं कोई पण पाप नथी, के जे अहीं अरिहंत प्रजुनां ध्यानथी नाश न पामे; तेम तेवू को पण पुण्य नथी, के जे यहीं श्र. रिहंत प्रजुनां ध्यानथी न मले. वली पोताना चित्तमां चिंतवेलां एवां नहीं करेलां पण पुण्यो अहीं उत्तम नावनाउँथी थाय बे, माटे अहीं उत्तम ध्यान धरई. सघला व्यापारोमां “ मनोव्यापार" मुख्य बे, अने तेज प्राणीउँने स्वर्ग, नरक तथा मनुष्य नवमां ले जाय बे; माटे श्रा तीर्थमां कृष्ण, नील,अने कापोत लेश्या चिंतववी नहीं; पण कर्मोनां क्षय माटे पन्न, सित विगेरे वेश्या चिंतववी, वली कुछ जंतु प्रते पण अहीं मनथी के वचनथी के शरीरथी पण हिंसा करवी नहीं; केम के, ते धर्मरूपी वृदने बालवाने दावानल सरखी जे. कंथुथा सरखा जीवने पण जे माणसो मारे , तेनुं सातमी नरक शिवाय बीजं स्थानक नथी. माटे नरकप्रते दूती सरखी हिंसा तो सर्वथा प्रकारे करवीज नहीं, केम के, जे माणस परने पीडा उपजावे , तेनी पासे धर्मरूपी राजा श्रा. वतो नथी. वली सघला जंतु अनंत नवोनी अपेदाए बंधुसरखाज बे; माटे तेउनुं पोताना आत्मानी पेठे रक्षण करवू; अने जाणवू के, कोश कोश्ना शत्रु नथी. वली. प्राण जाय तो पण उत्तम बुद्धिवाने जूतुं बोलवू नहीं; अने सत्य बोलनारो अपवित्र पण पवित्रज . असत्य बोलवाथी प्राणीउने मुखमां फोडा, परु, कीडा विगेरेनी व्याधि थाय बे. वली कोशए नहीं दीधेली पाणीनी अंजलि पण गृहण करवी नहीं; केम के श्रदत्तादानथी जीवो निर्धन तथा स्वल्प आयुष्यवाला थाय बे. डाह्या माणसे चोरी करवी नहीं, केम के धन ते जीवोने प्राणसमान , अने तेथी प्राण हरनार करतां पण धन हरनार वधारे नयंकर . वली श्रा तीर्थमां उत्तम माणसे पोतानी स्त्रीने पण सेववी नहीं; त्यारे बन्ने लोकनो नाश करनारी परस्त्रीनी तो वातज शी करवी? परधननी चोरी, चाडी तथा परनो वेषकरवाथी महा पाप थाय . था जयंकर संसाररूपी समुजमां परिग्रहनां नारथी प्राणी होडीनी पेठे डुबी जाय , माटे ते जेम बने तेम थल्प करवो; वली ते क्रमे क्रमे करीने तेवी रीते अल्प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ शत्रुंजय माहात्म्य. करवो, के जेथी लोजरूपी जयंकर पिशाच बली शके नहीं. वली सर्व प्रा. णीने विषे पोताना श्रात्मानी पेठे समपएं ( सामायिक ) चिंतव; केम के, तेवा समपणाविना सघली क्रिया निष्फल बे. वली जे माणस समतामां रहे बे, तेने त्रणे जगत वश थाय बे; तथा तेने देवो पण जरा पण पराजव करी शकता नथी. वली पौषधप्रतिमाने प्राप्त थलो माणस - Marरमांज कर्मोनो नाश करे बे, अने ते चारित्रधारीनी पेठे देव ने मनुष्योथी पण वंदाय बे. वली या तीर्थमां पौषधवृत करवायी मासपनुं पुण्य मले बे, तथा अतुल्य केवलज्ञान पण मले बे. वली तिथि. संविागत करवाथी नरक छाने तिर्यंच गतिनो नाश करी प्राणी मो. सुख मेलवे बे; जोजन वखते श्रावेला मुनिर्जने दान देवाथी मोहराज दूर रहेतुं नथी; त्यारे ( थालोक संबंधि) राज्यसुखनी तो वातज शी करवी ? जे माणस गुरुदेवप्रते आहार तथा नैवेद्य दइने जोजन कर बे, तेज खरं जोजन जावं; अने ते शिवायनुं तो देहने पोषण करनारुं फक्त पशुग्रास सरखं जोजन जाणवुं वली ग्रहण करेलुं देवद्रव्य तथा गुरुद्रव्य श्रंगारानी पेठे सात कुलोने बाली नांखे बे, माटे ते बुद्धिवानोए लेवुं लायक नथी. देवद्रव्य तथा गुरुव्यथी थएली धननी वृद्धि केरनी पेठे प्रथम स्वादिष्ट लागे बे, पण पालथी तीव्र वेदना आपे बे. जे माणसो हमेशां देवद्रव्य तथा गुरुद्रव्य नक्षण करे बे, तेजनी शुद्धि सर्व तीर्थोनां आश्रयोथी पण यती नथी. लोजांधचित्तथी देवद्रव्य तथा गुरुद्रव्य जो लेवामां आवे, तो ते नियंच तथा नरकादिक दुर्गति आपे बे. वली एर्केडिया दिक जीवने निरर्थक जे ताडन करवुं, ते " अनर्थदंड " कहेवाय; तेवा अनर्थदंडी यत्नपूर्वक विरति करवी अनर्थदंड करवाथी माणस शरणार हित थने याजवरूपी समुद्रमां मगरोसरखा कर्मोथी पीडाय बे. वली क ब्याना अर्थी माणसे विशेष करीने या तीर्थमां वृनां डालां, पांदडा, फल, कुरा विगेरे बेदवां नहीं. या शत्रुंजय तीर्थमां सर्व जगोए हमेशां देवोनो वास बे, माटे तेने बेदवां नहीं. वली यशरूप धनवालाईए प्राणोजी पण उपकार करवो; केम के, ते सर्वधर्मरूप, तथा मोक्षसुखनां कारणरूप बे. परोपकारथी उत्पन्न थएलुं पुण्य जवजवप्रते वृद्धि पामे बे; ने जे परोपकार करे बे, ते सर्व जगोए अटकाव रहित देवनी पेठे चाली शकेठे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ए पंचमःसर्गः वली ज्ञानी अने पुस्तकोनी अन्न वस्त्रादिकथी करेली सेवा सूर्यनी कांतिनी पेठे प्राणीउनी जडतानो नाश करे . ज्ञानपूजाश्री ज्ञानावरणीय कर्मोनो नाश थर, मुक्तिलक्ष्मीनां कारणरूप केवलज्ञान प्राप्त थाय बे. वली था शत्रुजय तीर्थपर जिननी पूजानी पेठे ज्ञाननी पूजा पण प्राणीउने बेक मोदसुधिनुं अधिक अधिक फल आपे . वली था तीर्थमां रात्रिजोजन करवाथी माणस गीध, घुबड, प्रमुख नवो पामीने अत्यंत पुःखी थयो थको नरकमां जाय . सदा रात्रिनोजनमां तत्पर रहेला एवा श्रपवित्र माणसे था तीर्थनो कोश् पण वखते स्पर्श पण करवो लायक नथी. वली था तीर्थमां रहीने जे माणसो सम्यक्त्वमूल बार व्रतोने पाले , तेनां तुख्य बीजो को धन्य नथी, तथा ते मोदमां जाय . वली अन्य तीर्थमां जप, तप, तथा दानथी जे फल थाय बे, तेथी क्रोडगणुं फल श्रा तीर्थनां स्मरणथी पण थाय . वली था तीर्थमां जे माणस रथ, घोडा, जमीन, हाथी, सुवर्ण तथा मणिनी नेट आपे , ते हर्ष सहित चक्री. पणाने तथा अपणाने नोगवे बे. वली जे माणस था तीर्थमां इंस्रोत्सवादि कार्य करे , ते सघला नोगो जोगवीने निश्चयें करी मोक्ष मेलवे बे. वली हे पुंडरिक ! सघला तीर्थोमां था तीर्थराज , तथा सघला पवतोमां ते उत्तम पर्वत बे; माटे जेम मने, तेम मोदनां कारणरूप था गिरिवरने तुं सेव ? वली हे मुनि! माराथी जेम था जगतनी स्थिति, तेम तारा नामथी आ अवसर पिणीमां या तीर्थ प्रसिद्धि पामशे. वली नहीं बलथी तेम नहीं अनन्यासथी, तेम इंजिउने तथा मनने रोधिने तुं यहीं रहे ? स्फटिकसरखा निर्मल श्रात्माने त्रण ध्यानोथी (पिंडस्थ, पदस्थ, श्रने रूपस्थथी) ध्यावतां थकां, अने कं पण चिंता रहित आश्रव परिणामने रोकीने, विकल्प रहित लयमां प्राप्त थर, पांच हख अक्षरोनां उच्चारनां परिमाणवाला कालमां शुजाशुजनो नाश करी, तथा घातिकोने बालीने, अने केवलज्ञान पामीने, श्राज तीर्थनां माहात्म्यश्री तुं मुक्तिरूपी स्त्रीनो खामी थश्श. एवी रीते पुंडरिक महामुनिने कहीने नगवान पण त्रिलोकनां हितनी श्वाथी बीजी जगोये विहार करी गया. पड़ी त्रणे लोकमां रहेनारा लोको पण तेवीरीतनां सर्वज्ञ प्रजुनां वचनने सांजलीने आनंद सहित, तीर्थमां अनुराग धरता थका पोतपोताने स्थानके गया, २२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० शत्रुजय माहात्म्य. हवे पुंडरिक महाराज पण त्यां पांच क्रोड मुनिउँथी वीटाया थका चं उनी पेठे समता धारीने रह्या. तथा ते मुनिउँने परम वैराग्यरूपी अमृत तथी जरेली वाणी कहेवा लाग्या के, क्षेत्रानुजावधी था गिरि मोक्षसुखनां स्थानकरूप बे; अने कषायरूपी शत्रुउने जीतवामाटे किरासमान . हवे श्रापणे श्रहीं मोदनां कारणरूप संलेखना करवी; ते संलेखना - व्यथी श्रने जावथी, एम बे प्रकारनी . सघला उन्माद, तथा महारो गनां कारणरूप एवी सर्व धातुउनुं चारे बाजुथी जे शोषवं; तेने अव्य संलेखना मानेली . मोह अने मात्सर्यवाला रागळेषादिक कषायोनो समताथी जे बेद करवो, तेने नाव संलेखना कहेली . एम कहीने पुंड. रिकजी महाराज ते साधु सहित सघला सूक्ष्म अने बादर अतिचारोने श्रालोचवा लाग्या. वली तेमणे फरीने पण पोतानां महाव्रतोने दृढ का; केम के, वारंवार अग्निनो ताप सुवर्णनी शुद्धिमाटे थाय ने. चोंत्रीस अ. तिशयोवाला, मोतीसरखी निर्मल कांतिवाला तथा त्रणे लोकनां खामी एवा सर्व जिनेश्वरो अमोने शरणारूप था ? अनंत अने अक्ष्य स्थानप्रते प्राप्त थयेला, परवालांसरखी कांतिवाला, अने पंदर नेदे सिक थएला सिको अमोने शरणारूप था? महाव्रतोने धरनारा, धीर, सावद्यनां श्राश्रयविनानां, इंसनीलमणिसरखी कांतिवाला एवा मुनि श्रमोने शरणारूप था? केवली प्रजुए कहेलो, सर्व दयामय, तथा स्फटिकोपल सरखो तंजारहित एवो धर्म अमोने शरणारूप था ? वली चोरासी लाख जीवायोनि मांहें जे कंई उष्कृत थयुं होय, ते सघg श्रमारं अपुनःक्रिया पूर्वक मिथ्या था ? वली अज्ञानताश्री जेअढार पापस्थानको सेव्यां होय, ते सघलांउने त्रिकरणशुद्धिथी वोसरा, बु. वली एकेडियादिक सर्व जंतुउने हुँ खमाबु ढुं; अने ते पण वैररहित एवा हुं प्रते दमा करो ? वली कर्मोथी था संसारमा नमता एवा सर्व प्राणी प्रते मने मित्रा ; हूं एकलोज ९; मारु कोश्नथी; अने था मारा आत्माने अरिहंत प्रजुनुं श. रणुं बे. एटबुं कहीने पुंडरिकजी महाराजे सघला साधुउनी साथे पु. कर निराकार अनशन अंगीकार कर्यु. एवी रीते ते दपकश्रेणिपर च. ड्या; अने त्यां जीर्ण दोरडांनी पेठे चारे बाजुएथी तेमनां तथा पांच कोड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः २७१ मुनिम्नां पण घातिको त्रुटी गयां; केम के, तप सर्वने सरखो . तपथी राज्य, स्वर्गनी संपदा, तथा मोदसुख मले में अने त्रणे लोक वश थाय . त्यां चैत्रसुदी पुनेमने दिवसे पुंडरिकजी महाराजने प्रथम के. वलज्ञान थयु; तथा पढ़ी ते मुनि ने थयु. पड़ी ते योगि क्षणवार चोथा शुक्लध्यानमा रहीने, सर्व कर्मो दीण थवाथी मोदे गया. ते वखते त्यां सर्व देवोए श्रावीने मरुदेवा मातानी पेठे, तेमनो निर्वाणमहोत्सव कों. जेम था श्रवसर्पिणीमां श्री षनदेव प्रजु पेहेला तीर्थंकर डे, तेम था पेहेबुं तीर्थ थयु; ज्यां एक मुनि पण सिक थाय , ते तीर्थ कहेवाय डे, त्यारे ज्यां श्राटला बधा मुनि सिझ थया, तेने तो मोटामां मोटुं तीर्थ जापवू. हवे श्रीशषनदेव प्रजु फागणसुदि थाउमने दिवसे था शत्रुजयपर श्राव्या, त्यारथी अष्टमीपर्व थयु. श्रापम, पाखी तथा पुर्णिमाने दिवसे प्राणीउँने शुजाशुन श्रायुनो बंध पडे बे. ते बन्ने पर्वने दिवसे आ तीर्थमा जक्तिथी अल्प श्रापेलु दान पण क्षेत्रमा रोपेला बीजनी पेठे बहु फल थापे . तप, दान तथा शीलादिकथी जिननक्तिनी पेठे आराधेवू अष्टमी पर्व प्रगट रीतेप्राणीऊना श्राठे कर्मोनो नाश करे . चैत्रसुदी पुनेमने दिवसे था तीर्थपर पुंडरिकजीमहाराज मोदे गया, त्यारथी चैत्रीपुनेमनुं पर्व थयु; तथा श्रापर्वतर्नु नाम पुंडरिकगिरि पड्युं जे माणससंघसहित चैत्री पुनेमने दिवसे या पुंडरिकगिरिपर रहेला पुंडरिक महाराजने पूजे , ते लोकोत्तर स्थितिवालो थाय . वली नंदीश्वरादिक छीपोमा रहेला शाश्वता प्रजुनां पूजनथी जे पुण्य थाय , तेथी पण श्रधिक पुण्य शत्रुजय गिरिनी चैत्रीनी यात्राथी थाय बे. वली बीजे वखते दान, शील, तप तथा पूजा प्रमुखथी जे पुण्य थाय बे, तेथी क्रोडगणुं पुण्य चैत्री पुनेमने दिवसे अहीं शत्रुजयपर जिनपूजनथी थाय बे. चारित्र, चंप्रन प्रजु, चैत्री पुनेम, शत्रुजय पर्वत, तथा शत्रुजयी नदी पुएय विना मली शकतां नथी. जे माणस था तीर्थपर चैत्री पुनेमने दिवसे जिनालयमां शांतिस्नात्र, ध्वजारोपण, तथा श्रारति करे ले, ते पोतानां निर्मल नवोने मेलवे . वली बीजी जगोये पण चैत्री पुनेमने दिवसे संघपूजन करवाथी माणस ज्यारे देवनां सुखोने मेलवे बे, त्यारे आ विमलाचलपरनी तो वातज शी करवी ? चैत्री पुनेमने दिवसे वस्त्र, अन्न अने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७‍ शत्रुंजय माहात्म्य. पाणीयादिकथी प्रतिलाभेला सुनि चक्रीनी ने इंद्रनी पदवी श्रापीने, बेवढे मोक्ष थापे बे. चैत्री पर्व सर्व पर्वोमां उत्तम बेः तथा सर्व पुण्योने वधारनारुं बे; तेनुं पुंडरिक गिरिपर आराधन करवाथी ते उत्कृष्ट फलने देनारुं बे. वली चैत्री पुनेमनी अाइ श्रष्ट सिद्धिउने पनारी ठे वली सघला देवो पण या चैत्री पर्वने नंदीश्वर द्वीपमां जइ जिनपूजादिकथी जति पूर्वक राधे बे. माटे धर्ममां प्रीतिवाला माणसे प्रमादनां हेतुरूप कलह, क्रीडा तथा अनर्थदंडादिक तजीने चैत्री पर्वने नजवुं वली अक्षय सिद्धिमाटे चैत्री पुनेमने दिवसे प्रजावना, जिन, चैत्य, सिद्धांत, गुरु ने मुनि प्रते नक्ति करवी. हवे श्री देव प्रभु विहार करी पृथ्वीने पावन करता थका वि नीता नगरीनी पासे रहेला सिद्धार्थ नामनां उद्यानमां पहोंच्या. त्यां इंद्रादिक देवो प्रजुनी तिथी आकाशमांधी उतरीने श्राव्या; तथा तेए त्यां योजन सुधिनी भूमिमां त्रण गढोवालुं प्रभुनुं समवसरण रच्युं. त्यारे उद्यानपालके तेनी जरत महाराजने वधामणी श्रापी; त्यारे नरतजीए पण तेने हर्षथी बार कोड सोनामोहोरोनुं इनाम प्राप्युं पढ़ी पाला, घोडा, हाथी, रथो, पुत्रो, सामंतो, सेनापतिर्ज, राजा, राणी तथा माणसोथी वीटाएला, तथा साहुकारो, सार्थवाहो, चारणो, बंदि, गांधर्वो ने सघलां लश्करोथी सेवाएला जरत महाराज थकाशने त्रमय करता थका, दिशाउने चामरो तथा धजार्ज सहित करता थका, अने सैन्योथी पृथ्वीने पूरता थका त्यां चालवा लाग्या. पढी त्यां पूर्व तरफनां द्वारथी समवसरणमां घ्यावीने, तथा प्रजुने प्रदक्षिणा दे इने चक्री नीचे प्रमाणे तेमनी स्तुति करवा लाग्या के हे स्वामी ! हे जिनाधीश ! हे करुणासमुद्र ! हे संसार रूपी वनमांथी तारनारा ! तथा दे वत्सल प्रभु ! तमो जय पामो ? घणां कालथी उत्कंठा करता एवा मने जे पनुं दर्शन युं बे, छाने तेथी मने एम लागे बे के, श्राजे मारुं पूर्वनुं करेलुं शुभ कर्म फलीभूत थयुं वली हे प्रभु! आप वीतरागनां चित्तमां हुं वसुं बुं, एम केम कहेवाय ? पण याप मारा चित्तमां वसी रह्या बो, माटे हवे मारे बीजा कोइनी पण जरुर नथी. सुखमां, दुःखमां, नगरमां, अरण्यमां, जलमां, श्रग्निमां, रणसंग्राममां, दिवसमां ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः १७३ रात्रिमा पण मारा चित्तमां आपना चरणोनुं ध्यान रहेजो ? एवी रीते प्रजुनी स्तुति करीने तथा पंचांगथी प्रजुने नमीने चक्री इंजनां नाना नाश्नी पेठे तेमनी पाउल बेग. त्यारे प्रनु पण सर्व नाषारूप, तथा एक योजनसुधि संचलाय एवी वाणीथी देशना देवा लाग्या के, सुपात्रे दान, श्री संघनी पूजा, उत्तम प्रजावना, महोत्सव पूर्वक तीर्थयात्रा, सिद्धांतोनुं लखाव, स्वामीवात्सल्य, गुरु तथा अगमोनो महोत्सव, समता, श्रने शुजध्यान एटलां पूण्यनां स्थानको . ते देशनाने अंते जरत महाराजा प्रजुने मस्तकथी नमस्कार करीने, तथा पोतानां शब्दोथी समुज्ने पण ललित करता थका पुरवा लाग्या के, हे खामी ! श्रापे संघाधिपनां पदनुं बहु वर्णन कर्यु बे; ते शी रीते उत्तम प्रकारे प्राप्त कराय ? तथा तेथी झुं फल मले ? त्यारे श्री युगादीश प्रजुए कह्यु के, दे राजन् ! जेवू तीर्थंकर पद , तेवुज संघाधिपर्नु पद . वली बती संपदाए पण पुंडरिकगिरिनी पेठे जाग्यविना संघाधिपतिनुं पद मली शकतुं नथी. इंजपद तथा चक्रीपद पण प्रशंसवा लायक ; श्रने ते बन्नेश्री पण संधाधिपर्नु पद पुण्योत्पादक होवाथी वधारे प्रशंसनीक . संघपति उत्तम दर्शनशुकि पामीने फुर्लन तीर्थंकरनामगोत्रने पण मेलवे डे. संघ तो अरिहंतोने पण हमेशां माननीक तथा पूजनीक बे; अने तेवा संघनो जे अधिपति थाय, ते तो लोकोत्तर स्थितिवालो थाय. चतुविध संघ सहित, शुज नाव सहित महोत्सव पूर्वक जिनबिंबने रथमां स्थापन करीने, पंचविध दान देतां थकां, दीनोनो उद्धार करता थकां, नगर नगर प्रते जिनमंदिरोपर ध्वजारोपण करतां थकां, शत्रुजयपर, गिरनारपर, वैनार पर्वतपर, अष्टापद पर्वतपर, तथा सम्मेतशिखरपर शुभ सम्यक्त्वश्री देवपूजन करतां थकां, तथा गुरुनी श्राझा प्रमाणे ते सर्व तीर्थोमां अथवा एक तीर्थमां पण इंशोत्सवादिक कार्य करतां थकां संघपति थवाय बे. वली हमेशां पूजनिक एवा गुरु पुण्यकार्यमाटे जे धाराधाय , ते सुवर्णमां सुगंध मलवा बरोबर बे. वली उत्तम यात्रानुं फल श्वनार माणसे, मिथ्यात्विऊनो संग, तथा तेनां वाक्योमा आदर करवो नहीं. वली परतीर्थनी निंदा के स्तुति करवी नहीं; पण त्रिकरण शुद्धिथी जीवित पर्यंत सम्यक्त्व पालवू. वली संघयात्रा करनारे साधु तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ शत्रुजय माहात्म्य. साधर्मीउने वस्त्र, अन्न, तथा नमन श्रादिकथी प्रत्यक्ष रीते पूजवा. वली थार्जवयुक्त संघपतिए पाक्षिकादिक पर्वो, दानादिक धर्मो, तथा श्री संघनी पूजा करवी. एवो संघपति देवोने पण पूजनीक थाय बे, तथा को संघपति तो तेज नवमां अने कोश्क त्रण नवोमां सिद्ध थाय डे. एवीरीतनो व्रतांत प्रनु पासेथी तथा इंछ पासेथी पण सांजलीने श्री जरत महाराजा प्रजुनां चरणोने नमीने नक्तिथी कहेवा लाग्या के, हे त्रणे जगतोने आराधवालायक प्रनु ! मारापर आप कृपा करो ? के जेथी हुँ निर्मल संघपतिपद मेलवं. पली प्रजुए इंसांदिक देवो तथा संघ सहित उठीने, नरत महाराज उपर अक्षत तथा वासदेप नाख्यो. ते वखते इंजे पण दीव्य माला लावीने चक्रीना तथा तेमनी पटराणी सुजनानां कंठमां ते नांखी. पठी चक्री मार्गे राजाउथी पूजाता थका सघला सामंतो सहित अयोध्यामां श्राव्या. पली त्यां तेमणे बहुमान पू. र्वक संघनां लोकोने बोलाव्या, तथा पापरूपी शत्रुठने नसाडवा माटे उंचे प्रकारे जंजा वाजिब वगाडाव्यु. पनी चक्रीए त्यां आवेला संघनां लोकोने सन्मान देवा पूर्वक नगरमा रहेलां जिनचैत्योमा अहा महोत्सव कराव्यो. पळी तेमणे गणधरोने बोलावीने पोतानां घरमां सर्व विनोने नाश करवा माटे शांतिस्नात्र कराव्यु. ते वखते गणधरोनां मंत्रोथी सघला देवोए प्रत्यक्ष थश्ने निर्विघ्न यात्रा करवा माटे पोतानी गति अंगीकार करी, एटलामां इंजे वर्णनां देवालयवाली श्री युगादीश प्रजुनी प्रतिमा चक्रीने आपी. ते वखते जरत राजाए इंजने पूज्युं के, हे इंजराज ! सर्वज्ञ प्रजु तो सर्व सावध रहित तथा सर्व कार्योमा मूकपणाने जजनारा दे, तो सावद्यमय एवा था संघाधिपपणामाटे मने तेमणे केम उपदेश कर्यो ? त्यारे इंजे का के, हे चक्रीश्वर ! जेमां बहु पुण्य तथा अल्प पाप थाय, तेवं कार्य कोण श्रादरता नथी ? वली प्रायें करीने ग्रहस्थीनुं पुण्यकार्य तो सावध होय बे, अने साधुउँनुं कार्य निरवद्य होय . वली माटी सहित जेम सुवर्ण, तथा औषधि, तेम सावध धर्म परिणामे हितकारी . वली सावद्यना अंशवाला दान, शील तथा अजयदान आदिकथी पण महान पुण्य थाय . वली जे सरलखजावी माणस सर्व श्रारंजोषी पण शासननी प्रजावना करे बे, ते खर्ग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचम सर्गः २७५ तथा मोदनुं सुख मेलवे बे. वली तीर्थयात्रा तथा प्रतिष्ठादिक कार्य पण सावद्यथी थाय , पण तेवी रीतनो सावधनो खेश पण बहु पुण्य माटे थाय ने. एवी रीते नरत संघपतिने शिखामण देश्ने, तेनी रजा लेश शंख पोताने स्थानके गयो. ___ हवे चक्री शुज दिवसे वार्धकीए बनावेला मणि, रत्न तथा सुवर्णमय श्रावासमां संघसहित नगरनी बहार रह्या. ते संघावासमा रहेढुं सुवर्णमय जिनमंदिर जंबूद्वीपमा रहेला, तथा नक्षत्रोथी शोजता मेरु सर शोजवा लाग्युं. तेज आवासना दक्षिण जागमां कणवारमा वार्धकीए बनावेली पौषधशालामां गणो सहित गणधरो रह्या. तेथी डाबी बाजुए चक्रीनो अमृत श्रावास हतो, तथा तेनी चारे बाजुए बीजा संघमाटेनां श्रावासो हता. एवी रीते मार्गमां सर्व मुकामे नक्तिवंत वार्धकीए संघनां श्रावासो बनाव्या. वली त्यां सुवर्णमय जिनमंदिरमा रत्नमय प्रजुनी मूर्ति शोजती हती; वली त्यां गणधरोए ते जिनालयमां बाहुबलिनां पुत्र चंऽयशाने, विनमि विद्याधरनां पुत्र गगनवबनने, पूर्व दिशानां राजा वज्रनामने, तथा कल्याणकेतुने सूरिमंत्रोथी प्रतिष्ठित कर्या. वली जरत चक्रीनां ते संघमां धर्मनां नारनी धोसरीने धरनारा बीजा पण हजारो राजा हता. ते वखते विकखर पुष्पमालावाली सुजमाथी चक्री, वनमालाथी नूषित थएला जंगम वसंत ऋतु सरखा शोजता हता. साधर्मीउनु वात्सल्य करीने, संघनी पूजा करीने, तथा जिननी सेवा करीने करेल डे प्रस्थानमंगल जेणे एवा, तथा शुन्न दिवसे हाथीपर चडेला, बत्र चामरथी शोजता, चारण श्रमणोए करेल ले प्र. थम मांगल्य जेमनुं एवा, तथा इंज जेम सामानिकोथी तेम चारे दिशाउमां राजाउँथी विटाएला, अप्स. उन संगीत जोता थका, तथा हे जरत महाराजा ! तमो " जय पामो ? लांबा काल सुधि जीवो ? थानंद पामो ?” एवी रीते देवोथी जेम तेम बंदीथी स्तुति कराता, सामंतोथी, मंडलीकोथी, कुमारोथी, राजाउँथी, मंत्रीउथी, संघपुरुषोथी, तथा चतुरंगी सेनाना समूहोथी, पर्वत सरखा हाथीउथी, समुजनां मोजां सरखा घोडाउथी, (जंगम) घर सरखा रथोथी, पोतानां उत्साह सरखा पालाउंथी, अणुव्रत धरनारा श्रावक श्राविकाउँथी, श्रीनाज प्रमुख कोडो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ शत्रुजय माहात्म्य. गमे साधुउथी, नमि विन मिथी, ज्ञानी गणधरोथी, शील रुपी अलंकारोवाली साधवीउथी, गायन करनारा गांधर्वोथी, बंदिउँनां समूहोथी, कोतुकी नटोथी, तथा नाचती नायिकाउँथी वीटाएला, एवा जरत महाराज चालवा लाग्या. त्यां सोनानां रथपर रहेऱ्या मणिनुं देवायलय, श्राकाशमां जिनेश्वर प्रजुनां शरीरथी नामंडलनी पेठे शोजतुं हतुं. तेनापर चामरोनां वीजावा सहित त्रणे लोकनां ऐश्वर्यने सूचवनाएं पूर्णिमानां चंड सरखं त्रत्रय शोजतुंहतुं. सैन्यनां चालवाथी उडती रजोए करीने सूर्यमंडलने बालादित करता,तथा संघनां चरणन्यासथी पृथ्वीतलने पवित्र करता, अंतःपुरनी स्त्रीउथीधवलध्वनियें करीने गवाता, मोटी स्त्रीउथी लवण उताराता,जगोए जगोए अने नगरेनगरे गुरुनी पूजा करता, तथा जिनचैत्योनो उझार करता थका जरत राजा प्रयाण करवा लाग्या. पोते वावेला वृदोप्रतेथी जेम, तेम देशो देशनां राजा पासेथी रत्नो अने सुवर्णनी अमूल्य नेटोने लेता थका, योजनप्रमाण प्रयाणथी विविध देशोने उलंगीने श्रनुक्रमे जरत राजा सौराष्ट्र देशमां पहोंच्या. ते वखते सुराष्ट्रनो पुत्र, तथा जरतजीनो नत्रीजो, अने सौराष्ट्र देशनो राजा शक्तिसिंह तेमनी स. न्मुख श्राव्यो. पृथ्वीतलपर पडीने नमता एवा तेने चक्रीए पोताने हाथे उगडीने तथा आलिंगन करीने कर्वा के, हे पुत्र ! था देशनुं सुराष्ट्र नाम सफल थयु के केम के,यहीं परदेशीउने कुष्प्राप्य एवं शत्रुजय तीर्थ बे. वली हे पुत्र! तुं धन्य , के श्रा तीर्थनी हन्नेशां सेवा करे . दूर रहेनारा श्रमो तो थहीं रहीने तेने जो शकता नथी. एवी रीते प्रीति पूर्वक तेने बोलावीने, श्राजूषण आदिकथी तेनुं चक्रिए सन्मान कयु. पली शिखरोथी स्पर्श करेल आकाशने जेणे, तथा यात्रिकोनां यशनां जंडार सरखा, तथा संसारथी नयनीत थएला प्राणी प्रते किदा सरखा, तथा पृथ्वीरूपी स्त्रीनां अमुख्य मुकुट सरखा, तथा मोक्षरूपी स्त्रीने रमवानां दडासरखा, तथा रलोनी कांतिथी यत्न विनां श्राकाशने चित्रित करता, एवा ते पुंडरिक गिरिने जोश्ने रोमांचने धारण करता थका तथा आदरथी मस्तकने धुणावता थका जरत महाराजा सोमयशाने कहेवा लाग्या के, था सौराष्ट्र देशनां पुण्यशाली लोकोने धन्य , के जेजे हमेशां नजदीक रहीने या पुंडरिक गिरिने सेवे . आ पर्वतनी बाया, तथा वायु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः १७७ पण चंजनां किरणोनी पेठे जगतने तापरहित करे . कमल सरखा उज्वल एवा आ पुंडरिक गिरिनुं जेठ दर्शन करे , ते पुण्यरूपी अमृतथी पवित्र थश्ने पापरूपी कादवथी मुकाय . वली था गिरिराजने जोश्ने माझं मन एटलुं तो आनंद पामे डे के, जाणे हुं पापरूपी मेलथी मुकाश्ने निर्मल थयो हो नहीं, तेम लागे बे. वलीमारा पोतानांज थात्मानी खातरीथी था तीर्थने हुँ पंकरहित धारुं बुं, केम के, कार्य कारणनी अपेक्षाथीज थाय . वली पवनथी कंपता मस्तकोये करीने श्रा वृदो तीर्थनां वासथी जाणे नाचतांज होय नहीं, तेम मारीश्रांखोने अत्यंत श्रानंद श्रापे . वली जे पदिउँ था तीर्थपर वसे, तेउने पण धन्य बे; पण चक्रीनी लक्ष्मीवाला, एवा पण अमो दूर होवाश्री धन्य नथी. एम कहीने चक्रीए हस्ती स्कंधथी उतरीने गणधरोने तथा मुनिने हर्षथी नमस्कार कों; तथा धर्ममार्गने देखाडनारा ते गुरुजने तेमणे पुब्यु के, हे जगवन् ! था पर्वतने शी रीते पूजवो? तथा अहीं शुं क्रिया करवी ? त्यारे श्रीनान नामनां मुख्य गणधर अवधिज्ञानथी जाणीने कदेवा लाग्या के, हे चक्री! जोवामात्रथीज था पर्वतने नमस्कार करवो; वली था गिरिनां प्रथम दर्शननी जे माणस वार्ता पण निवेदन करे, तेना प्रते जे कंई देवाय, ते पुण्यनी वृद्धिमाटे थाय बे. वली उगता चंजने जेम तंतुउथी तेम, पुण्यलाल माटे प्रथम श्रा पर्वतने सुवर्ण, मणि, रत्न विगेरेथी वधाववो. पली वाहनो तजीने, तथा पृथ्वीतलपर लोटीने जिननां चरणनी पेठे, तेनुं पंचांगी नमस्कारथी सेवन कर. पठी त्यांज आवास करीने, तेज दिवसे उपवास सहित संघपतिए महाधरोनी साथे, जक्ति पूर्वक स्नान करीने तथा शुछ वस्त्रो पेहेरीने, स्त्रीसहित देवालयमां जिननी मनोहर स्नात्रपूजा करवी. संघनी बहार शुरु देशमां श्री शत्रुजयनी सन्मुख पोतानां चित्तसरखो (संघपतिए) उंचो आवास करवो. पड़ी उत्तम धूप उखेवीने, संघसहित मंगलध्वनिम्नो उच्चार थाते बते, याचको प्रते नावसहित दान देतां थकां, उत्तम यक्षकर्दमथी पृथ्वीतलने लींपतां थकां, कुंकुमनां मंडलपर संघने कल्याणकारी एवो मोति अथवा तंडुलोथी खस्तिक करवो. पनी सघलो घोंघाट मटाडीने, तथा गणधरजीने अगाडी करीने, तेनी पाबल संघपतिए रहीने पूजानो उत्सव करवो. त्यांलुंजेलां, २३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ श→जय मादात्म्य. रांधेला, तथा सिझ करेलां नैवेद्योधी, रुपाथी, सुवर्णश्री, वस्त्रोथी तथा पुष्पमालाउँथी प्रथम प्रजाकरवी; तथा नक्तिथी स्वामीवत्सल, अने संघप्रजा करवी; तथा अनंत फल देनारं संगीत जिनमंदिरमा करवू. पडी त्यां महाधरोए तथा बीजा शुन्न श्राशयवालाउँये संघपतिनी स्त्री सहित, आलूषण, वस्त्र, तथा पुष्पमालाउथी पूजा करवी. पठी त्यां गुरुनक्ति करतां थकां संघवासीईए धर्मकथा सांजलवा पूर्वक रहे,. एवी रीते गुरुनी वाणी सांजली अत्यंत आनंद थएला चक्रीए विमलाचलनी पासे श्रावास को. पड़ी स्नान करी पवित्र थश, श्वेत वस्त्रो पहेरी, महाधरो तथा स्त्री सहित ते जिनमंदिरमां गया. त्यां अष्टापदनां (सुवर्णनां) पात्रोमांरहेलो पक्वानो, जाणे जरत पासे अष्टापद पर्वतनां शिखरो श्राव्यां होय नहीं, तेम शोजतां हता. पनी त्यां चक्रीए गणधर महाराजनी सादिये पुष्प, अक्षत, स्तुति विगेरेथी प्रनुनी पूजा करीने संगीत कयु. पबी गुरुए बतावेली विधिपूर्व पवित्र जगोपर यदकर्दमयी मंडल करीने तेमणे मोतीनो साथी पूर्यो. ते वखते त्यां रत्नाकर तथा रोहणाचल पर्वतनां जाणे चोरोज होय नहीं, तेवा मेरु पर्वतनां ककडा सरखा सुवर्णनां ढगला हता. एवी रीते गुरुए बतावेला विधिमार्गमा रहीने चक्रीए पुंडरिक गिरिनी संघ सहित पूजा करी. पडी पृथ्वीपर पंचांग नमस्कार करीने तेमणे नीचे प्रमाणे तीर्थनी स्तुति करवा मांडी.जे तीर्थने पातालमां रहेनारा धरणे प्रमुख नागकुमारो सेवे डे, एवा था तीर्थप्रते नमस्कार था ? वली जेने चमरेंड तथा बलीमादिक सर्वे जुवनवासि सेवे , एवा था तीर्थराज प्रते नमस्कार था? जेने किन्नरो किंपुरुषो, तथा किनरोनां इंडो सेवे , एवा था तीर्थराज प्रते नमस्कार था ? वली जे तीर्थने राक्षसोनां अधिपो तथा यदेश्वरो परिवार सहित सेवेने, एवा श्रा तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? वली जेने अणपन्नी पणपन्नी प्रमुख व्यतरेंजो सेवे डे, एवा था तीर्थप्रते नमस्कार था ? वली जेने चंबसूर्य नामनां ज्योतिषनां इंस्रो, तथा बीजा खेचरो पण सेवे बे, एवा था तीर्थराज प्रते नमस्कार था ? वली जेने मनुष्य लोकमां रहेनारा वासुदेवो तथा चक्री पण सेवे , एवा था तीर्थराजपते नमस्कार था? वली जेने इंस्रो, उसो तथा सिको भने विद्याधरनां खामी पण सेवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमः सर्गः १७ बे, एवा श्रा तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? वली जेने ग्रैवेयक तथा अनुत्तर विमाननां देवो पण सेवे बे, एवा श्र तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? एवी तेणे लोकमां रहेनारा भुवनपति, मनुष्यो, तथा देवो जेने नमस्कार करे बे, एवा या तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? वली अनंत, अक्षय, नित्य, तथा अनंत फलने देनारुं श्र तीर्थ जय पामो ? तथा ते प्रते नमस्कार था ? वली जेपर अनंता तीर्थंकरो सिद्ध थया बे, तथा यशे, तथा जे मुक्तिरूपी स्त्रीनुं क्रीडाग्रह बे, एवा श्र तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? एवी रीतनी या पुंडरिक गिरिनी स्तुति जे माणस हमेशां जणे ठे; ते मास घेर बेगं पण यात्रानुं उत्तम फल मेलवे बे. एवी रीते चक्रीए श्री शत्रुंजय पर्वतनी स्तुति करीने गणसहित श्रीनाज गणधर महाराजने नमस्कार कर्यो. नमता एवा चक्रीनी पीठपर गणधर महाराजनो हाथ, जाणे कर्मरूपी हाथीने मारवाने मेरुपर सिंह चड्यो होय नहीं, तेम शोजतो हतो. पढी धर्मध्यानमां तत्पर रहीने, तथा गुरुनां वचनरूपी अमृतथी सिंचायां थकां आनंद सहित चक्रीए दिवस व्यतीत कर्यो. पढी प्रजाते चक्री संघसहित चैत्यमां रडेला प्रजुने तथा गुरुने नमीने पुण्यकारी पारणं कर्यु. पठी तेमणे त्यां पुंडरिक गिरिनी समीपमां वार्धकीरत्न मारफते विनिता नगरी सरखुं नगर वसाव्युं. त्यां मोटा मेहेलोनां त्रण क्रोड ऊरखा, जाणे ते पर्वतने जोवा माटे निमेष रहित थएला नेत्रोनां समूहो होय नहीं, तेम शोजता हता. त्यां मेहेलोपर रहेली मणीमय आगासीषी श्रमावास्याने दिवसे पण माणसोने हजारो चंडोनी चांति यती हती. त्यां सोनानां मेहेलोनां शिखरोने जोइ जोइने, लोको मेरुने तो तेनां कचरानां ढगलासरखो मानवा लाग्या. वली त्यां समुद्रोमा जेम पाणीने तेम समस्त देशोनी वस्तुर्जने लोको जोता हता. वली त्यांना मोहोटा गढनी आकाशमां अडती शिखार्ज कृणवारसुधि, चालता एवा सूर्यनां घोडाउने पण विघ्नकारी यती हती. वली निकलती रत्ननी कांति जेमांथी एवां द्वाररुपी मुखोयें करीने, शोजाथी जाणे देवनगरीनी पण हांसी करती होय नहीं, तेम ते नगरी शोजती इती. तेनी अंदर निर्मल कांतिवालुं श्री युगादीशप्रभुनुं मंदिर, जाणे जरतनो अक्षय यशनो कंद उंचो जतो होय नहीं, तेम शोजतुं हतुं; ते कंद व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० शQजय माहात्म्य. धिने शिखरोथी शाखावालो, धजाउंथी पांदडावालो, कलशोथी फलोवालो तथा मोक्षरूपी श्रद्भुत रसने उत्पन्न करनारो हतो. वली त्यां वावो, कुवा, तलावो, दी(कार्ड, पटवलो, तथा बगीचा उंचे प्रकारे शोजता हताः एवी रीते सौराष्ट्र देशनी सीमामां आनंद आपनारुं ते श्रानंदपुर नामर्नु नगर वसावीने, ते शक्तिसिंहने चक्रीए सोंप्यु. पड़ी तीर्थयात्रामा उ. त्सुक थयेला चक्री श्रीनान गणधरपासे श्राव्या, त्यारे ते पण गणो सहित साथे चालवा लाग्या. पडी पुण्यनी सेना सरखो संघ पण उंचं मुख राखी पर्वतने जोतो थको हर्षथीलरतजीनी पनवाडे चालवालाग्यो. ते व. खते पोतानां कसुंबी वस्त्रोथी जाणे प्राणीउँने राग देखाडती होय नहीं, तेम स्त्री धवलमंगलो गावा लागी. वली ते वखते चारे कोरे आकाशामां गंजा, निशान, कंसाल, ताल, वीणा, तथा मृदंगोनां थवाजो संनसावा लाग्या. ते वखते उंचां मुख करी पर्वतपर चडता संघनां लोको जाणे प्रगट रीते मुक्तिनां घरनी मनोहरताने जोता होय नहीं, तेम शोजता हता. चक्री उत्तर दिशाएथी चडता हता, अने बीजा कौतुकथी सर्व मागेंथी ते पर चडता हता. सुधर्म गणधरनां महा तपस्वी चित्रण नामनां शिष्य लोकोथी वींटाया थका पश्चिम मार्गेथी ते विमलाचलपर चडवा लाग्या. एवी रीते दश योजन चड्या बाद तृषातुर थएला श्रावको ते मुनिने कहेवा लाग्या के, अमोने प्राण जाय तेवी तृषा पीडा करे ; श्रने तेथी प्रजुनां चरणकमलोने जोया विनांज अमारां प्राणो पाणीविनां फोकट जता रहेशे. एवी रीते तेउने पीडित जोश्ने मुनिए तेमने पाणी देखाड्युं. त्यारे तेजेए कह्यु के, हे मुनिराज! आटला पाणीथी श्रमारी तृषा जाय तेम नथी, माटे तपलब्धिथी एवं करो के, जेथी अमो सघला सुखी थश्य. पली संघना लोकनुं सानिध्य श्छता ते मुनिए, तपलब्धिथी ते पाणीयें करीने मोटुं तलाव बनाव्यु. मंद मंद पवननी लेहेरो. थी हालतां मोजांजए करीने मनोहर ले पाणी जेमां एवा ते तलावधी लोकोनुं मन विश्राम पाम्युं. ते पाणी पी पीने लोकोनां मनो अमृत रसनां पानथी पण अधिक आनंद पाम्यां. एवी रीते संघनां लोकनां उपरोधथी चिसण मुनिए तपनां प्रजावधी ते तलाव बनाव्यु; तेथी ते “चिक्षण" नामर्नु तलाव कहेवावा लाग्यु. आ तीर्थमां प्रौढ तपनां प्रजावथी' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः ११ मुनिए संघनां वाक्यथी सर्वने उपकार करनारुं ते तलाव बनाव्यु, माटे ते पवित्र जाणवू. तेनां पाणीनां स्नानश्री, पानथी, तथा जिननां अनिषेकथी पापनी शुद्धिथाय . ते तलावनां पाणीथी स्नान करीने, तथा जिनचरणोने पखालीने माणस एकावतारी थक्ष मोक्षमां जायडे. हवे संघनो समूह पाणीथी तृप्त थश्ने, तथा तेनां वायुथी विश्रांत थश्ने सुखेथी प्रथम शिखरपर चडवा लाग्यो. हवे चक्रीए त्यां जतां थकां, वृदोथी पंथिनां थाकने दूर करनारं एक वन जोयु. ते लक्ष्मी विलास नामनुं वन एक योजननां विस्तारवाएं, वावो तथा कुंडोथी शोजतुं, तथा नंदनवन सरखं हतुं. उत्तर दिशारूपी स्त्रीनां मुखपर तिलक सरखा ते मनोहर वनने जोश्ने शक्तिसिंह चक्रीने कहेवा लाग्यो के, हे खामी ! था तमाल वृदोनी लीली श्रेणि अगाडी देखाय , ते जाणे पर्वतनी मेखलापर इंजनील मणिनी कांची (कंदोरो) होय नहीं तेम शोने जे. वली श्रा वृदोनी पंक्ति, था पुष्पोने गुण योग्य (दोरीमा परोववा लायक) जाणीनेज जेम, तेम पोतानां मस्तकोपर धारण करे बे. वली वर्षाकालनां मेघ सरलुं श्याम, तथा बगली सरखी पुष्पोनी श्रेणिउँथी मंडित थएटुं श्रावन कोना तापने ह. रनारं नथी ? वली श्रा वन श्वेत पुष्पोनां गुडाउँथी, श्राकाशने सेंकडो चंजोवालु करे बे; तथा तेमां रहेला नमरो तेऊना कलंकपणाने धारण करे . वली श्वेत पुष्पोनां समूहोथी, सर्व जगोए लीलृ एवू था उद्यान, पर्वतरूपी लक्ष्मीना मोतीथी गुंथेला केशपाश (चोटला) सर शोने दे. वली अहींया कल्पवृदो पंथि प्रते इडित दान आपीने पोतानां नामनी सफलता करे . वली या बाजुए केलनां वृदो करता पाणीवाला पोताना पांदडांउश्री, सूर्यनां किरणोथी तप्त थएला प्राणीउने पवन नांखे . वली बेक मूलथी ते शाखा सुधि फलप थएलां था फणसनां वृदो, जाणे लोकोने तीर्थसेवाथी उत्पन्न थएलां फलोनेज कहेतां होय नहीं, तेम लागे . चारे कोरेथीनागरवसीउथी वीटाएला सोपारीनां वृदो किन्नरोने \"लतावेष्टिक" नामनां नृत्यने शिखवी रह्यां !!! वली अहीं अशोक, आंबा, चंपक, गुलाब, लवंग, चंग, नारंग विगेरे बीजां वृदो पण शोजी रह्यां . वली अहीं किन्नर, गांधर्व तथा विद्याधरोनी था कुलीन स्त्री, श्री युगादीश प्रजुनां गुणोने गाती थकी पोतानां पापोनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ श@जय माहात्म्य. नाश करे . वली तमाल, हिंताल, तथा तालोनी श्रेणिउथी व्याप्त थएला था वनमा संघनां लोकोनुं मन क्षणवार विश्राम पामे बे. माटे नदीनां चपल मोजांनां समूहथी व्याप्त थएला था किनारापर संघ जले पोतानो पसिनो तथा थाक उतारे; तेम मधुपानमां श्रानंद पामता नमराऊनां ऊंकारथी मनोहर लागता एवा था पर्वतपर, दण वार सुधि हरिणादी स्त्री जले आपने पण आनंद आपे; वली हे राजन् ! श्रा वखते सूर्य पण आकाशनां मध्य नागमां श्रावेल ने, माटे अहीं तापनी पीडाने नाश करनारो शितल पवन श्राप पण सेवो ? वली हे खामी ! चित्तने स्थिर करीने यहीं विश्राम करो ? केम के, विश्राम पण पंथिनी व्यथानो नाश करे . एवी रीतनां तेना वचनथी चक्रीए पण मनथी विचारिने वार्धकी मारफते हर्षथी त्यां श्रावास कयों. ___ त्यां केटलाको स्त्री सहित पुष्पोनी श्रेणि लेवा लाग्या; तथा केटलाको वांदराऊनी तुलना करीने अांबानां फलो तोडवा लाग्या. केटलाको तो हरिणादी स्त्रीनां नयननां बेडा सरखा चंचल, तथा मार्गनो थाक उतारनारा, एवा नदीनां पाणीमां स्नान करवा लाग्या. केटलाको तो त्यां पुष्पोथी बिडानां करवा लाग्या, तथा केटलाको वननां मनोहर पणाने तुरत वर्णववा लाग्या. चंपा सरखा गौर अंगवाली, तथा हरिण सरखी आंखोवाली, केटलीक स्त्री त्यां गोलाकार थश्ने रंग सदित रास रमवा लागी. केटलीक स्त्री हींचका खाती थकी नजदीक उन्नेला पोतानां जरतारने, दिवसे पण पोतानां मुखथी तेजस्वी चंछनो ज्रम उपजाववा लागी. एवी रीते सघला लोको ज्यारे हर्षथी क्रीडा करवा लाग्या, त्यारे जरत राजा पण शक्तिसिंहनी साथे ते. उद्यानमां गया. त्यांनी सघली वातोने जाणनार शक्तिसिंह पण चक्रीने नाम से बेश्ने दरेक पगले ते वननी चारुता देखाडवा लाग्यो. त्यां चक्रीए मो. तीनां चूर्ण सरखा पाणीश्री नरेला, तथा थांखोने आनंद आपनारा एक कुंडने जोयो. ते कुंड शतपत्रादिक सोनेरी कमलोथी, तथा कलहंस पदिना शब्दोथी मनोहर लागतो हतो. हवे चक्रीए मंद गर्जारववाला मेघने पण जीती जाय एवी वाणीथी हर्षपूर्वक शक्तिसिंहने कडं के, हे पुत्र ! तुं श्रहींनो जाणीतो , माटे श्रा कुंडनां प्रनावनी वार्तारूपी अमृ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः २०३ तनां सेचनथी मारा कर्णने पवित्र कर ? एवी रीतनुं चक्रीन वचन सांजलीने शक्ति सिंह कहेवा लाग्यो के, हे चक्री ! ज्यारे श्रहीं पिताजी (श्री युगादीश प्रजु) पधार्या हता, त्यारे हुं तेमने वांदवा गयो हतो; त्यां में प्रजुने पुरवाथी इंछे मने, ते ते पापोरूपी शत्रुर्जने नाश करवामां शस्त्र सरखी, तथा पवित्र करनारी आ पर्वतनी कथा कही; अने ते वखते तेणे मने था कुंडनुं जे महात्म्य का बे, ते आप सांजलो ? था मोटा कुंडनुं नाम " सर्वतीर्थावतार" . था तीर्थमां उत्सर्पिणी कालमां केवलनाणी प्रजुनां मंदिरमा सौधर्मे श्राव्या हता. तेमणे तीर्थंकर प्र. जुनां स्नात्रमाटे था कुंडमां गंगा, सिंधु, पन्नाह श्रादिक तीर्थोनां जलाशयो कर्यां. आ कुंडमां स्नान करवाथी सर्व तीर्थोनुं फल मले बे; तथा आना पाणीथी स्नपित करेला प्रनु मुक्ति आपे . वली जिननां चरणनां प्रक्षालनथी पवित्र थएला श्रा कुंडनां पाणीथी त्रण प्रकारनी विषनी जयंकर पीडा पण नाश पामे . वली श्रा जलनां स्नानथी कुष्टादिक संघली थाधिव्याधि नाश पामे बे, तथा कांति, कीर्ति अने बुद्धि प्राप्त थाय . घणा कालथी तथा पडता पत्थरोनां समूहथी आ कुंड जी. र्ण थएलो , तो पण तेनो प्रनाव तो हमणा वृद्धि पामेलो . एवी रीते शक्तिसिंहनां मुखथी ते कुंडनो प्रजाव जाणीने चक्री उत्तम नावसहित अत्यंत श्रानंद पाम्या. पळी चक्रीए वार्धकीने कहीने ते कुंडने दृढ कराव्यो, तथा तेथी उत्पन्न भएला पुण्यनां समूहोथी तेणे पोतानां नवपंजरने जर्जरित कर्यु !! पली वैडुर्य, हीरा, माणिक्य, पुखराज विगेरेनी कांतिथी मंडित थएलो ते कुंड, विचित्र प्रकारनां पाणीनां मोजांउंयुक्त शोजवा लाग्यो, तथा त्यारथी ते नारतकुंडनां नामश्री प्रसिद्ध थयो. पड़ी ते त्रियामाने (रात्रिने) एक यामनी (पहोरनी) पेठे त्यां गालीने चक्रीए प्रस्थान करनारनी दूती सरखी नंना वगडावी. पड़ी चक्री ते कुंडमां सुजनापटराणी सहित स्नान करीने, तथा मनोहर वस्त्रो पेहेरीने, पेहेला शिखरपर चड्या. ते वखते त्यां सौधर्मे पण नक्तिना रंगथी प्रेरायो थको, स्नेहथी तेने जोवानी श्वाथी विमानमां बेसी श्राव्यो. पबी ते चक्री तथा इंड जाणे पोताना शरीरनुं वैक्यपणुं करता होय नहीं, तेम त्यां थानंदधी नेव्या. पडी ते इंज तथा चक्रीए श्रीनाज गु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ शत्रुजय माहात्म्य. रुसहित सूर्यचंनी पेठे मुख्य शिखरने हर्षथी स्पर्श कयों. पडी चक्रीए इंड सहित रायणने प्रदक्षिणा करी; त्यारे ते रायण पण पुष्करावर्त मेघनी पेठे तेमनापर तुरत हीर करवा लागी. पड़ी चक्रीए तेनी नीचे रहेलां, तथा इंछे बनावेलां अने देखाडेलां श्री युगादीश प्रजुनां पगलांउने नमस्कार कयों. पड़ी तेमणे महान नक्तिथी ते पाडकापर यक्षकईमथी लेपन करीने, तेनुं गुलाब श्रादिक पुष्पोथी पूजन कयु. पड़ी ज्ञानथी उज्ज्वल एवा प्रजुनेज सादात मनमां चिंतवीने तेणे ते पगलांने नमस्कार कर्यो. पडी इंड आनंद सहित अमृतने पण दूर करनारी वापीथी चंड सरखा चक्रीने कहेवा लाग्यो के, हे चक्री! कालनां दोषथी प्रायें करीने हीन गुणोने जजनारा माणसो मूर्ति विनां था पर्वतप्रते श्रद्धा करशे नहीं; वली तीर्थंकरोनां चरणोथी पवित्र थएलो श्रा पर्वतज तीर्थरूप में; तो पण विशेष श्रझामाटे अहीं प्रजुनुं मंदिर जले थाय. वली जे जे काले जे जे तीर्थंकरोनी अहीं स्थिति थाय , ते ते काले ते ते तीर्थंकरोनी अहीं मूर्ति थाय . माटे श्रा वखते श्री षनदेव प्रजु प्रथम तीर्थंकर विचरे बे, तेथी तमारां नगरनी पेठे अहीं पण तेमनी मूर्ति अने तेमनुं मंदिर बनावो? वली जेम बाहुबलिए पोतानी तक्षशिला नगरीमा चोरासी मंडपनो प्रासाद बंधाव्यो बे, तेवो प्रासाद तमो पण अहीं बनावो ? एवी रीतनां इंजनां वचनथी विशेष थएली ने सुवासना जेनी, एवा चक्रीए वार्धकीने सोमयशानां कहेवा मुजब चैत्य बनाववानो हुकम कयों. त्यारे दिव्य शक्तिवाला वार्धकीए पण जरत म. हाराजनी आज्ञाथी मणि अने रत्नोए करीने “ त्रैलोक्यविन्रम” नामनो प्रासाद बनाव्यो. ते प्रासादमां पूर्व दिशा तरफ जुवनाजोगनां बत्र सरखा सिंहनाद प्रमुख एकविश मंडपो शोजता हता; तेम दक्षिण दिशामां जमशाल प्रमुख एकवीश, तथा पश्चिम दिशामां मेघनाद प्रमुख एकवीश मंडपो, अने उत्तर दिशामां श्रीविलास प्रमुख एकवीश मंडपो शोजता हता; तथा ते सघला माणिक्यनां किरणोथी आकाशने पण चित्रित करता हता. ते प्रासाद' एक गाउ उंचो, अढी गाउ लांबो, तथा एक हजार धनुष्य पोहोलो हतो. वली त्यां चक्रीनां यशथी पूर्ण थएली दिशा उनां जाणे हास्यो होय नहीं, तेवी मणिनां तोरणोनी श्रेणि चारे दि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमः सर्गः १८५ शार्जमां शोजती हती. वली तेमां लाखो गमे ऊरुखार्ड, रत्नमय वेदीकार्ड, जाली तथा कटेरार्ड शोजता हता. वली तेमां सेंकडो सूर्यनी कांतिना ढगला सरखी कांतिवाली, श्री युगादीश प्रजुनी रत्नमय चतुमुखी मूर्ति शोजती हती. तेनी बन्ने बाजुर्जए अत्यंत कांतिवाली श्री पुंडरिक महाराजनी मूर्ति शोजती हती. वली त्यां चक्रीए कायोत्सर्गमां रहेला प्रजुनी मूर्ति पण करावी; तथा तेनी बन्ने बाजुए हाथमां खेंचेली तलवारवाली नमिविन मिनी मूर्ति पण करावी. वली त्रगडा गढमां रहेला, केवलज्ञानी तथा धर्मतत्व कड़ेता एवा प्रजुनी, एवी रीतनी चतुमुखी मूर्ति पण तेमणे करावी. वली तेमणे हाथ जोडेली, तथा प्रभुसन्मुख दृष्टिवाली, पोतानी मूर्ति पण कारिगरपासे करावी. वली तेमणे हथी श्री नाजिराजानी, तथा मरुदेवा मातानी, अने बीजा पूर्वजोनी प प्रासादसहित मूर्ति करावी. वली ते चैत्यमां रत्न तथा मणिनी बनावेली सुनंदा तथा सुमंगलानी मूर्ति पण शोजती हती; तेम त्यां सर्वज्ञानमय ब्राह्मीनी शुज मूर्ति, तथा सर्व संपदा देनारी निधानपर रहेली सुंदरीनी मूर्ति पण शोजती हती. वली त्यां पोतपोतानां वर्ण, खांबन, छाने मानवाली जावि तीर्थंकरोनी मूर्ति पण नवघरमां रही थकी, शासन देवता सहित शोजती हती. वली त्यां जरत महाराजाए करावेली पोतानां बीजा जाइनी पण मणि श्रने रत्नोनी प्रासादसहित मूर्ति अत्यंत शोजती हती. एवी रीते विचित्र प्रकारनी चैत्योनी श्रेणि ते ती मां बनावीने, चक्रीए त्यां कारिगरो, चितारा, रखेवालो, तथा पूजारीने राख्या, तेम त्यां जिनपूजामाटे तेमणे कारी, थाल, कलश, छत्र, चामर, दीपक, आभूषण, श्रारतिप्रमुख उपकरणो मुक्यां. वली ते तीर्थमां हाथीनां श्रासनवालो, बन्ने जमणा हाथोमां वरदाम तथा श्रमाला धरना, अने बन्ने डाबा हाथोमां बीजोरुं तथा नागपाश धरनारो, तथा तपेला सुवर्ण सरखी उत्तम कांतिवालो गोमुख नामनो यह पोतानी इछाथीज रक्षक थयो. वली सोनेरी कांतिवाली, गरुडनां श्रसनवाली, जमणा हाथोमां वरदाम, अक्षमाला, चक्री, तथा पाशने धरनारी, डाबा हाथोमां धनुष्य, वज्र, चक्र तथा अंकुशने धरनारी, अने दक्ष एवी - प्रतिचका नामनी शासनदेवी ते तीर्थमां रक्षक थ. २४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ शत्रुजय माहात्म्य. हवे शुज दिवसे बाहुबलि, श्रीनाज, नमि, विनमि श्रादिक सूरिज, तथा सो आदिक देवो पण त्यां एकठा थया. ते वखते इंजना हुकमथी जक्तिवंत आलियोगिक देवो, गुरुए कहेलो पूजानो सामन तुरत लाव्या. पठी त्यां ते शषिए शांतिस्नात्रसहित द्वादशांगोमां कहेली विधिपूर्वक चैत्योनी तथा प्रतिमाऊनी प्रतिष्ठा करी; तथा संघसहित सूरिमंत्रथी पवित्र करेला वास अने श्रदतोने ध्वजदंडोपर तथा मूर्तिउपर तेए नांख्या. ते वखते त्या सर्व वाजिनोनो मंगलिक ध्वनि सर्वना कोंने पवित्र करवा लाग्यो. एवी रीते चक्रीए करेलो प्रतिष्ठा महोत्सव त्यां थयो, तथा अधिष्टायक देवो पण त्यां प्रत्यक्ष थया. पनी चक्रीए त्यां उत्तम मंत्रना उच्चारपूर्वक सुवर्णनां कलशोथी जन्मोत्सवनी पेठे प्रजुनुं स्नात्र कयु. पनी तेमणे कर्पूर, अगर, कंकोल, कस्तुरी, चंदन श्रादिकथी प्रजुनी प्रतिमाने लेपन कयु तथा साथे पोतानी कीर्तिथी जगतने पण लिप्त कर्यु: पनी चक्रीए ज्ञानी गुरुऊने जमणी बाजुए बेसाड्या, तथा साधवीउने अंतःपुरनी स्त्रीसहीत डाबी बाजुए बेसाडी. पली चंदन, मंदार, संतान, हरिचंदन, पारिजात, कल्पवृक्ष, मसी, बकुल, कमल, केतकी, मालती, जुझ, करवीर, शतपत्र, जासुद, तथा कल्हार प्रमुखना, तथा विचित्र प्रकारनी सुगंधिनां उदासथी खेंचाएला जमराए करेबुं ने स्पष्ट नृत्य ज्यां, एवां पुष्पोएं करीने, इंश तथा चक्री प्रमुखोए प्रजुनी पूजा करी. पढ़ी सर्व जनोए श्रदत, फल, धूप, दीपक, नैवेद्य, जल विगेरेथी पूजा करी. पठी हाथमां श्रारती धारण करता, तथा स्फुरायमान मुखवाला शुजारंजी चक्री, दिवसे उगता सूर्यसरखा शोजवा लाग्या. पडी इंड प्रमुखोए नवतापने बेदनारी तिलकनी श्रेणि करी. सर्व (श्रज्ञानरूपी) अंधकारने नाश करनारी श्रारतिने जमणी बाजुथी फेरवता चक्रीपर पुष्पोनी वृष्टि पडवा लागी,अने तेथी ते अत्यंत शोजवा लाग्या. वली तेनां हाथमा रहेलो, तथा एक शिखावालो मंगलदीवो, जगतमां दीपकसमान एकज था प्रजु बे, एम जाणे कहेतो होय नहीं, तेम शोजवा लाग्यो. ते वखते हर्षित थश्ने चक्रीए जे जे कार्य कर्यु, तेनुं फल तो चक्रीज जाणी शके तेम बे. पली कर्मोनी साथेज शरीरने नमावीने चक्रीए श्रीयुगादीश प्रजुने नमस्कार को. पड़ी रोमांचरूपी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः १७ कंचुकने धारण करीने, तथा करता हर्षाश्रुश्री जीजाश्ने, अने पोताना हाथोने मस्तकपर जोडीने चक्री नीचे प्रमाणे स्तुति करवा लाग्या के, हे प्रनु ! बुद्धिरूपी धनथी हीन थएलो हुं क्या ? अने गुणोना समुजतुल्य श्राप क्या ? पण आपनी जक्तिथी वाचाल थएलो हुँ आपनी स्तुति करुं . हे प्रजु ! तमो अनंत, तथा जगत्पूज्य बो, तेम अनादिरूपने जजनारा बो भने श्रापनां यथावस्थित स्वरूपने तो योगि पण जाणी शकता नथी. वली हे प्रनु ! श्रापे अन्योथी सर्वथा उर्जय तथा श्रात्मार्थनो नाश करनारा एवा रागादिक शत्रुउने तपरूपी हथीयारथी हण्या बे; वली बीजा नामधारी देवो तो रागादिकथी विडंबना पामेला बे; ते अंतरंग शत्रुठने नहीं मारतां बहारना शत्रुउँने मारे बे. वली हे अनंत ज्ञाननां माहात्म्यवाला एवा चारित्रमा चतुर ! तथा जगतमा प्रदीप समान; एवा हे नान्नेय जगवन् ! श्रापनाप्रते नमस्कार था ? वली हे प्रजु! थापे योगनां आवे अंगो एवीरीतें बनाव्यां ले के, ते आठे कर्मोनो नाश करे . वली श्रीशत्रुजय पर्वतप्रते रत्नसरखा, तथा श्री नाजिराजानां कुलमां सूर्यसरखा, तथा स्वर्ग अने मोदनां व्यापारवाला एवा आपनी हुं स्तुति करुं बु. वली हे प्रजु ! रत्नश्री जेम सुवर्ण, तथा तेजथी जेम सूर्य, तेम आपनाथी था शत्रुजय पर्वत अलंकृत थयो . वली हे प्रजु ! हुँथापनी पासेथी स्वर्गसुख, के मोद, के लक्ष्मी मागतो नथी; पण फक्त आपनां चरणकमलो मारा मनमां वसो ? एवी रीते स्तुति करीने चक्रीए मुकुटथी पृथ्वीतलने स्पर्श करीने श्रीयुगादीश प्रजुने पंचांग नमस्कार कर्यो. पनी श्री प्रथम प्रजुनी माता, तथा प्रथम सिक एवां मरुदेवी मातानी पूजा करीने चक्रीए तेमनी नीचे प्रमाणे स्तुति करवा मांडी के, श्रा जगतने शत्रुथी पराजव पामतुं जोश्ने, दया लावी जेणीए, अजयदान देनार प्रथम प्रजुने पोतानी कुदिमां धारण कर्या, एवां मरुदेवी माताने हुं बहुवार नमस्कार करुं बु. वली जेणीए अक्षय सुखवाला मोक्षमा वास करेलो , तथा चियूपपणाथी जगतनो स्वनाव जाण्यो बे, तथा महा अतिशयवंत, एवां ते मरुदेवी माताने हुँ त्रिविधे त्रिविधे नमस्कार करुं बु. वली तेणीना समान परम योगने धरनारी को पण स्त्री नथी; केम के, तेमणे हाथीना कुंजस्थलपर रहीने पण पोतानां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एनन शत्रुजयमाहात्म्य. अंतरंग शत्रु ने हण्या; वली पुत्रपर बहु प्रेमवालांज होय नहीं जेम, तेम ते पोतानां पुत्रने थनारूं सुख जोवा माटे प्रथमथीज मोदमां गयां. वली हे माता ! जगतमां नूषण समान, योगीश्वरी, तथा समस्त जावोने जाणनारां एवां जो तमोन होत,तो आ युगादीश प्रजु,जगत, बोधिलाज, ज्ञान, मोद, तथा (अंतरंग) वैरीनो नाश क्याथी होत ? वली हे माता! थापनां चरणोनां नखोनां संगथी माझं निबिड अज्ञानरूपी सर्व अंधकार नाश पामो ? वली श्राप जगतनां प्रथम गुरुना कारणरूप बो, तेथी हुं श्रापनी स्तुति करुं हुं, तथा आपने नमुं बुं, अने चिंतबुं बुं. जगतनां इश्वरनी माता, योगिनी तथा जगतनी इश्वरी, अने देवोथी पण सेवाएलां एवां मरुदेवी माता माराप्रते मंगल करो? एवी रीते मरुदेवी मातानी स्तुति करीने चक्री ब्राह्मीनी मूर्तिने पूजीने तेनी स्तुति करवा लाग्या के, जे सर्व विश्वनी स्थितिरूप दे, तथा योगिउने पण ध्यान ध. रवा लायक डे, नवजयने हरनारी , माणसोने तारनारी बे, दिव्य शक्तिवाली , मनुष्य श्रने देवोथी पूजाएली , तथा जे मंत्ररूप वरूपवाली बे, एवी युगादीश प्रजुनी पुत्री श्री ब्राह्मी माता मने सुख श्रापो? वली डोलरसरखी निर्मल एवी जे ब्राह्मी माताने, उत्कृष्ट समाधिमां र. देला योगी पोतानां हृदयकमलमां धारण करीने स्मरण करता थका पा. पोनां समूहने तजीने परम तत्व जाणे , एवी निर्मल शीलने धरनारी ते ब्राह्मी माताने हुं नमस्कार करुं बु. सुर, असुर अने मनुष्योने जाणवालायक, तथा श्री युगादीश प्रजुनी पुत्री, अने ब्रह्म शब्दने उत्पन्न करनारी ते ब्राह्मी माता विनोनी शांतिमाटे था ? एवी रीते तेमनी स्तुति करीने, तथा तेमने नमीने, चक्री सुंदरीनां चैत्यमा जश्, तेने पू. जीने स्तुति करवा लाग्या के, हे सुंदरी बेहेन ! तमो आ पृथ्वीनां नू. षणरूप लक्ष्मी बो, तथा शुज लक्षणवालाप्रते तमो नित्यरूपे बो, वली तमारे माटे प्रायें करीने श्रा जगत तपो करे , तथा तमोने माने बे; वली था जगतमां कांकरा, तथा हाडकारूप पदार्थों पण जे रत्न श्रने शंखरूप थाय बे, ते तमारी दृष्टिनां प्रजावथी थाय . वली हे जगवती! नीच वंशमां उत्पन्न थएलो माणस पण श्रापनां श्राश्रयथी कुलीन श्रने पंडितोने पण सेवनीक थाय ने. वली हे देवी! तमारा प्रसादथी श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नए पंचमःसर्गः त्रणे जगत पण सघला लोकोने सेवनीक थाय . वली लक्ष्मीने लीधे लोकोना मनमां धर्मनो पण आदर थाय , माटे लोको तमारी सेवा करे . वली हे जगतनुं हित करनारी सुंदरी ! तुज बुद्धि, धृति तथा मति ; तथा हे श्रादि देवनां कुलरूपी समुप्रते लक्ष्मी समान देवी! हुं तारी स्तुति करुं . एवी रीते नक्तिनां समूहथीं उन्नत थया थका चक्रीए सुं. दरीनी स्तुति करीने, तथा नमीने उत्कृष्ट रीते प्रजुनी पूजा करी. पली तेमणे सुवर्ण, रू', तथा वस्त्रोथी, गणधरोए प्रतिष्ठित करेला महाध्वजो सघला प्रासादोपर चडाव्या. पळी चक्रीए उत्तरासंग करीने,गुरुपासे श्रावी, तथा प्रदक्षिणा देश्ने, तेमनां चरणोनुं चंदनथी पूजन कर्यु.पली श्रीनाल गणधरे “ सूरिमंत्रथी प्रतिष्ठित थएटुं, दृष्टिदोषने नाश करनारु तथा गुरुनां हाथरूपी कमलोथी उत्पन्न थएवं, तिलक तमोने मंगल श्रापो?" एवी रीते कहीने हर्षथी मुक्तिने वश करवामां औषधसरखं तिलक नरत महाराजना कपालमां कर्यु. पडी चक्रीए हे क्षमाश्रमण ! हुँ बापने वांदवाने टुं बुं, एम कहीने तेमनी श्रनुज्ञा मल्या बाद, तेमणे श्रीनान गपधरने नमस्कार कयों. त्यारे गुरुए पण सर्व लक्ष्मीने वश करवामां औषधरूप, आपदारूपी सर्पप्रते गरुड समान, तथा संसारने तारनारो धर्मलान तेमने श्राप्यो. पड़ी चक्री हर्षपूर्वक तेमनां मुखरूपी चंजमांथी निकलती वाणीरूपी अमृतने पीवाने चकरोनी पेठे तेमनी पासे बेग. तेवखते ते चक्रीनां मुखरूपी चंनां उदयथी गुरुनो ज्ञानरूपी समुल जाणे अंदरथी उनरायो होय नहीं, तेम देशनाना मिशथी बहार निकल्यो. जे माणसो था तीर्थमां जिनने पूजे बे, तेज धन्य, तथा कृतार्थ डे, श्रने तेथीज था पृथ्वी नूषित थएली जे. जे राज्यमां वेगवाला घोडा, मदोन्त हाथी, सर्व संपदा, अनुरक्त सेवको, चामर सहित श्वेत बत्र, सिंहा. सन, उत्तम शय्या, शुरु राणी, संगीत, सुगंधि वस्तु वारांगनाउँनां विलास, बत्रीस जातनां नाटको तथा तेजेनां विनोदो, मले बे; ते राज्य जिनपूजाथी मले बे. जे माणस दही, दूध, घी, साकर, तथा चंदन, एवी रीते पंचामृतथी जिननी पूजा करे , ते देवरूप थाय . वली जे माणसो हमेशां प्रजुने पोताने हाथे पूजे जे, ते मोदमां जाय दिवसमां एकवार पण जो जिननी पूजा करवामां श्रावे, तो अनेक नवोनुं उपा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० शत्रुजय माहात्म्य. र्जन करेलुं पाप पण नाश पामे . वली जे माणस प्रजुनी तीर्थोदकथी. स्नात्र करीने चारवार कुसुमांजलि मुके , ते चारे गतिने नजनारो थतो नथी; (अर्थात् मोद पामे बे.) वली जल, पुष्प, अक्षत, धूप, फल, नैवेद्य, दीपक, स्तुति, अने पत्रादिकथी पण नक्तिपूर्वक प्रजुने पूजवा. एवी रीते जिनाझा पूर्वक जे माणस अष्टांगथी प्रजुनी पूजा करे , तेनी पासे पाठे सिकिर्ज प्रगट थश्ने आवे बे. वली जे गुज नाववाला माणसो साते क्षेत्रोमां उत्तम अव्य वावीने समय श्राव्ये तेने लावनारूपी पाणीथी सिंचे जे; ते था चौद रअ प्रमाण लोकने नेदीने समाधिथी अनंत ज्ञान तथा अनंत सुखमय मोदने मेलवे . तेमां प्रथम मणि, रत्नादिक, सुवर्ण, रू, पत्थर, अथवा काष्टर्नु जिनमंदिर बंधावq; वली जेठ फक्त घासनां पण जिनालयो बंधावे , ते पण देवलोकमां अखंडित विमानोने मेलवे . वली तमारी पेठे जे उत्तम रत्न श्रने सुवर्ण श्रादिकथी जिनमंदिरो बंधावे , तेवा पुण्यशालीउनां उत्तम फलने तो कोण जाणी शके तेम ? जिनमंदिरमा जेटलां काष्टादिकनां परमाणु होय बे, तेटला लाख पट्योपम सुधि, तेनो बनावनार वर्गसुख जोगवे . वली नवु जिनमंदिर बंधाववामां जेटलुं फल थाय बे, तेथी श्रागणुं फल तेनो जिर्णोद्धार करवाथी विवेकीने थाय . वली शत्रुजयादिक तीर्थोमां जेउ प्रासादो तथा प्रतिमा करावे , तेजेनां पुण्यने तो ज्ञानीज जाणी शके माटे मणि, रत्न, सुवर्ण, रुघु काष्ट, पत्थर अने माटीनां पण एक अंगु. गनां प्रमाणथी मांडीने एकसोने सात अंगुठानां प्रमाणसुधिनां, जे शुभ जावथी जिनबिंबो करावे बे, ते ने मुक्तिरूपी लक्ष्मी वश थाय ने. वली जे माणस एक आंगुलनां प्रमाणवालुं पण जिनबिंब बनावे , ते जवांतरमा एक बत्रवालु (समस्तपृथ्वीन) राज्य मेलवे . वली जेम मेरुथी को बीजो पर्वत मोटो नथी, तथा जेम कल्पवृदयी बीजं को वृक्ष श्रेष्ट नथी, तेम जिनबिंब कराववा समान बीजो को धर्म नथी. जिनबिंबो बनावीने पुर्गतिथी कोने जय जे? केम के,जे सिंहपर चडेला बे, ते ने शियाल क्याथी पराजव करी शके तेम डे ? जेठये गुरुनी श्राझा प्रमाणे जिनबिंबो जराव्यां , तेजेनां घरनां श्रांगणामांत्रणेलोकोनी संपदा दा. सी थर रहे . वली जे माणस सूरिमंत्रथी अरिहंत प्रजुनी प्रतिष्ठा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमः सर्गः १०१ करावे, ते अरिहंतपदवी पामे बे; केम के, वाव्याप्रमाणे फल निपजे बे. जेटला हजार वर्षो सुधि लोको जिननी पूजा करे बे, तेटला कालसुधि ते बिंबनां करनारने तेनां फलनो अंश मले बे. वली बिंबोनी प्रतिष्ठा करवाथी बन्ने लोकमां हितकारी एवं जे फल प्राणीने थाय छे, ते तो केवलीज जाणी शके. वली (दरेक कार्यमां) करनारने, करावनारने, अनुमोदन करनारने तथा सहाय करनारने शुभाशुभ बन्ने तुल्य फल थाय बे, एम श्री जिनेश्वर प्रभु कहेलुं बे. वली जे देशमां अथवा जे नगरमां अरिहंत प्रजुनां बिंबनी प्रतिष्ठा याय बे, त्यां रोग, डुकाल के, वैर होतां नयी. वली जे शुभ चित्तवाली स्त्री जिनेश्वर प्रजुनां स्नात्र माटे पाणीथी नरेली गागर पोतानां मस्तकपर उपाडे बे, ते चक्रवर्तीनी पटराणी यइने, मोदे जाय बे. वली जीवविनानुं जेम शरीर, विद्याविनानो उत्तम पुत्र, यांखोविनानुं उत्तम मुख, पुत्र विनानुं उत्तम कुल, पाणी विनानुं तलाव, तथा सूर्य विनानुं जेम श्राकाश तेम प्रतिष्ठा विनानुं बिंब शोजतुं नथी. वली ज्ञानविना संसार मण थाय बे, अने ज्ञानथी मोनो संगम थाय बे. सि. द्धांतनां श्राराधनरूप ज्ञान, द्रव्यथी अने जावयी एम बे प्रकारनुं . ज्ञाननां पुस्तकोनी रक्षामाटे कवली, पाठां, रूमाल विगेरे पवां; तेनीपासे, दीपक ने धूप करवो, तेपर वासक्षेप नाखवो, तेनी पासे संगीत कर, अष्टमंगल श्रालेखवां, तथा तेनुं फल, पुष्प, अक्षत विगेरेथी पूजन क खुं. ए ज्ञाननुं द्रव्याराधन बे. ज्ञानने सांजलकुं, तेपर श्रद्धा राखवी, जपाव, तेम ते ज्ञाननां जाणनारनी जक्ति करवी, ते ज्ञाननुं जावाराधन बे. हे राजन् ! एवी रीते करेली आगमनी पूजा जवरूपि जडतानो नाश करनारी, तथा केवलज्ञानने उत्पन्न करनारी बे. ज्ञाननी पूजा करवाथी माणसो चक्रीना तथा इंद्रादिकनां जवने मेलवीने मोके जाय बे. चतुर्विध संघनी पूजा छाने उपासना करवी; ते चारे क्षेत्रो लोकोत्तर सुख देनारां a. जेने घेर संघ यावे बे, तेना हाथमां चिंतामणि रत्न, तेना थांगणामां कल्पवृक्ष, तथा तेनीपासे कामधेनुं घ्यावी जाणवी; तेम तेनुं कुल कलंकरहित जाणवुं वली जेनां मस्तकने संघनां चरणोनी रज स्पर्श करे बे, ते पवित्र माणसने तीर्थ सेवानुं फल थाय छे. पापोनां समूहरूपी गर्मीने दूर करवामां मेघनी श्रेणि सरखो, दारिद्ररूपी रात्रिने नाश करवामां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. सूर्यसरखो, तथा कर्मरूपी हाथीने मारवामां सिंहसरखो सनातन संघ जयवंतो वर्तो ? जेणे फल, तांबुल, वस्त्र, जोजन, चंदन तथा पुष्पोथी श्री संपनी सेवा करी , तेने सर्व उत्तम फल मव्युं . एवी रीते हे चक्री! जैन राज्यमा रहेलां था साते क्षेत्रो हमेशां फलदायक बे; अने तेमां वावेलुं धनरूपी बीज विघ्नरहित उदय पामे बे. एवी रीते मुनिना वचनरूपी अमृतने पीपीने पण जाणे अतृप्त थया होय नहीं, तेम मनमा आश्चर्य थश्ने ते चक्री मस्तक धुणाववा लाग्या. पनी गुरुनां चरणोने तथा बीजा मुनिउँने पण नमस्कार करीने, मुनिनी वाणीनुं स्मरण करता थका चक्री पोताने स्थानके श्राव्या. त्यां तेमणे अत्यंत रसवाली षट रसनी रसवती जमीने, आनंदित थ दणवार उत्तम नासन पर निखा करी. पनी चक्री सोमयशा, शक्तिसिंह, तथा सुषेण श्रादिकथी वीटाया थका इंजना आवासे श्राव्या. ते वखते इंउ पण पोतानां श्रावास प्रते चक्रीने श्रावता जोश्ने श्रानंद पामतो थको पोतानां श्रासनथी उठ्यो. पड़ी महोदयवाला तेउँ बन्ने एक आसनपर बेठा थका अत्यंत शोजवा लाग्या. पनी त्यां परस्पर केटलीक कथा कर्या बाद, चक्री. ने कहेवा लाग्या के, हे चक्री! श्री युगादीश प्रजु अमारे पूजवा योग्य बे, केम के, अमो तेउनां चाकरो बीयें; अने तमो तेमना चरमशरीरी पुत्र बो; वली तमो संघपति तथा तीर्थनो उकार करनारा बो, तेथी स. र्वथा प्रकारे पूजनिक डो; वली तमोए करेली आ पूजानां अनुवर्तनथी लोको पण तेम करशे; तेम वली जो हुँ तेम करीश, तो वली विशेषथी तेनुं अनुकरण थशे; पड़ी चक्रीए पण तेम करवू अंगीकार कर्याथी इंजे देवो सहित विधिपूर्वक कुसुमादिकथी पूजा करी; अरिहंत प्रजुनी थाशिषथी, विविध प्रकारनां व्योवाला पुष्पनी माला हर्षथी तेणे पोतानां कंठमां स्थापन करी. पनी देवोसहित वीरसमुझे जश्त्यांथी कलशोमां उत्सवसहित जल नरी, पाठा श्रावी तीर्थंकरनां चरणोनुं तेणे हर्षथी स्नात्र कर्यु; तथा त्यां सुपात्रोने दान थाप्यु. ते दिवसथी लोकोमा ते म. हान इंसोत्सव प्रसिद्ध थयो, केम के, जेम महान पुरुषो वर्ते , तेम लोको पण ते करे . एवी रीते जरत चक्रीए, तथा इंजे पूजा करी, त्यारथी, विविधोदयवाली बहुविध जिनपूजा प्रचलित थश्. पड़ी इंजनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः २५३ शाज्ञाथी त्यां अप्सराए, तथा हाहा हुहु विगेरे गांधर्वोए लोकोने हर्ष थापनारं संगीत कयु. संगीत त्रणे लोकोने वश करनारु, खर्गादिक सुख थापनालं, तथा सर्व लोकोनां सर्व अर्थाने साधनाएं बे; संगीत सुखपु:खमां सर जे; तथा ते साद श्रने शेलडीना रसथी पण अधिक (मिगशवालु), तेम जिन पूजामां ते संगीत पापने हरनारूं जे; वली तेणे सुवर्ण प्रते जाणे सुगंध लाववानी श्वाथीज होय नहीं तेम, ते तीर्थमां विशेषे करीने मुनिउनी त्रिविधं पूजा करी. वलि त्यां तेणे सुवर्ण, रत्न, रूपुं, जल, अन्न तथा वस्त्रोथी, फरीने न आवे एवं याचकोनुं दारिज दूर कयु. वली नरत राजाए ते तीर्थनी पूजा माटे ते सुराष्ट्र देश थापी दीधो; अने त्यारथी ते पृथ्वीमा “देवदेश" तरिके प्रसिद्ध थयो. हले एक दिवसे ते चक्री अने इं एक श्रासनपर बेसीने परस्पर कथा रूपी अमृतरसने पीता हता. तेटलामां मोटा हृदोनां श्रावोरूपी नानिवाली, विकखर कमलरूपी मुखवाली, कांग रूपी जघनथी मनोहर, रसवली, (पाणीवाली) अंदर रहेला वेटोरूपी स्तनोथी मनोहर लागती, हंसोरूपी वस्त्रवाली, लावण्यने धरनारी, वृदोनी घटाथी सूर्यने न जोती, शुजने धारण करनारी, पुण्यनी सोबतवाली, पूर्वाब्धिरूपी पर तिना संगवाली, पोताना तरंगोथी नाचती, चकोररूपी आंखोवाली, खस्थ, तथा उत्तम पर्वतथी (राजाथी) उप्तन्न थएली एवी कुलस्त्री सरखी शत्रुजयी नदीने जरत महाराजे आगल रहेली दीठी. चकोर, चातक, चक्रवाक, हंस, तथा सारसथी शोजीती थएली, मोजांउथी चपल कमलोवाली, जमराउना गायनोवाली, तथा बन्ने शिखरो वच्चे मर्यादानी पेठे रहेली, एवी ते शत्रुजयी नदीने जोश्ने जरत राजाए इंजने पूज्युं के हे इं! श्रा नदी कर ले ? त्यारे इंडे पण कयु के, हे चक्री! था शत्रुजयी नामनी नदी बे, अने ते शत्रुजय पर्वतनां आश्रयथी गंगाथी पण अधिक फल देनारी .श्रा नदीमा रहेला हृदोनुं जो जुडं जुडं माहात्म्य कहेवामां आवे, तो खरेखर बृहस्पतिना पण सेंकडो वर्षों वीती जाय. पूर्वे केवलनाणी नामना तीर्थकरनां स्नात्र माटे अहीं श्शानें गंगाने उतारी हती. ते नदी वैताढ्य पर्वतथी जमीननी अंदरज वहे , तथा था शत्रुजय पासे ते प्रगट थाय डे, श्रने तेथी तेनुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९४ शत्रुंजय माहात्म्य. शत्रुंजयी " नाम पडेलुं बे. या नदीनां जलनां स्पर्शथी कांति, कीर्ति, लक्ष्मी, बुद्धि, धृति, तथा समाधि धाय बे, अने सिद्धिर्ज वश थाय छे. वली हंस, सारस, चक्रवाक श्रादिक जे पहि पण या नदीना पाणीने स्पर्श करे बे, तेर्जने पापरूपी मेल चोंटतो नथी. वली या नदीनां पापीथी सर्व महारोगो नाश पामे बे; वली जे माणसो या नदीना कांठापर उगेलां वृक्षोना फलो खाय बे, तथा व माससुधि जे खानुं पाणी पीए बे, ते वात, पित्त, कुष्ट आदिक रोगोने क्रिडामात्रमां जीतीने सुवर्ण सरखी कांतिवाला थाय बे; वली या नदीनां जलनां स्नानथी शरी रमांथी पापो पण चाल्या जाय बे, त्यारे औषधोथी साध्य एवा वातपितादिकनी तो वातज शी करवी ? या शत्रुंजयी नदी स्पर्शथी पण सर्व तीर्थोनां फल देनारी, तथा सर्व पापोने हरनारी बे; वली हे चक्री ! जेनां पाणीनां स्पर्शथी शांतनु राजानां पुत्रो सुख पाम्या, एवा या नदीना हनुं तमो माहात्म्य सांजलो ? श्रा जरत खंडमां श्रीपुर नामनुं नगर बे, त्यां शत्रुने नाश करनारो शांतनु नामे राजा दतो; तेनी सुशीला नामनी स्त्रीए एक दहाडो स्वमां ति धूसर धूमकेतुने जोइने, ते वात पोताना स्वामीने तुरत क ही. अनुक्रमे ते स्वप्नने अनुसारे तेणीने कुलक्षणो पुत्र थयो; श्रने तेज वखते राज्यलक्ष्मीना मुख्य अंगरूप हाथीउनुं सैन्य नाश पाम्यु: वली फरीने पण तेणीने दुष्ट खप्तथी सूचित हीन पुत्र थयो, अने ते वखते घोडाउनुं सैन्य नाश पाम्युं. तेवीज रीते त्रीजो पुत्र थवाथी, जीवहिंसाथी जेम धर्म, तथा लोजयी जेम सर्व गुणो, तेम राजानी सर्व संप दा नाश पामी. चोथा पुत्रनी जन्मवार्ता सांजलतांज शत्रुर्जए सैन्य सहित श्रवीने ते श्रीपुर नगरने घेरो घाल्यो. त्यारे सघलो भंडार विगेरे क्षीण वाथी ते शांतनु राजा पोतानी स्त्री सुशीलाने तथा पुत्रोने लेइने रात्रि कंक नासी गयो. तेनां नील, महानील, काल, तथा महाकाल नामना ते चारे पुत्रो साते व्यसनोमां लीन थया. जुगार, मांसजोजन, मदिरापान, वेश्यागमन, चोरी, शिकार, तथा परस्त्रीगमन, ए नामनां सात व्यसनो उत्तम जनोए कडेलां बे. जुगारथी बीजां व्यसनो पण याय बे, माटे बन्ने लोकमां हितकारी जुगारनो त्याग करवो. वली 66 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः २५ जे मांस, पोतानां शब्दयीज कहे जे के, “ जेने तुरत नरकमां जq होय, ते मने लक्षण करे" माटे ते मांस भक्षणनो त्याग करवो.जुगारथी धन, यश, धर्म, बंधुवर्ग तथा कुलनो क्षय थाय , तथा तेथी फुःखनां समूहो देनारी नरक अने तिर्यंचनी गति मले . जे उर्बुकि जीजनां खादयी मांस खाय , तेउने शीयाल, अने पिशाच सरखा नरकगामी जाणवा. जे मदिरापान अनर्थोनुं मूल, बुद्धि, कांति श्रने यशनो नाश करनालं, तथा पोतानी माता अने पोतानी स्त्री वच्चेना अंतरने पण नहीं जणावनारुं बे, ते मदिरापान कोण अंगीकार करे ? वली बन्ने लोकनो विघात करनारुं परस्त्रीगमन तजवू; तेम पापरूप वेश्या प्रते जरा पण प्रीति करवी नहीं. जे चोरी लोकमां पण प्रत्यक्ष रीते वध, बंधनादिक उःखो करनारी बे, तेम परलोकमां पण उखदायी , एम धारी उत्तम बुद्धिवाने तेनो त्याग करवो. चोरीथी था लोकमां पण कर्ण, नाक, आंख, हाथ, पग विगेरेने पीडा थाय , तथा परलोकमां चांडालकुलमां उप्तत्ति थाय . धर्म रूपी वृदनां मूलमां अग्नि सरखा, कीर्तिरूपी महेलपर मशीना लेप सरखा, एवा शिकारने सर्वज्ञ प्रजुए धिक्कारेल , माटे तेनी वार्ता पण सांजलवी नहीं. जे शिकारना व्यसनी मा. सो प्राणीउने मारे , ते पुःख, दरिता, तथा इष्ट पीडानां जोगवनारा थाय . एवी रीतना साते व्यसनो सेवनारा ते चारे पुत्रो कुष्टी थया. कदरूपा, क्रूर, वेषी, तथा कुसंगमां पडेला ते पुत्रो, कुनहो जेम चंजने, तेम राजाने वींटीने रहेता हता. एवी रीते ते पुत्रो सहित ते राजा एक देशमांथी वीजा देशमां, तथा एक वनमांथी बीजा वनमां जमवा लाग्यो, पण कोश् जगोए सुख पाम्यो नहीं. हमेशां अत्यंत लोजन करतां बतां पण रोगथी ग्रस्त थएला ते पुत्रो राजाना मनमां एवी चिंता उप्तन्न करवा लाग्या के, दारिखपणामां पण वैरी विगेरेश्री डरीने जे जीविताशा प्राणी करे बे, ते केवल क्लेशमाटेज थाय डे; माटे हवे तो बाजे गमे तेम करीने पण था स्त्री तथा पुत्रोने बेतरीने, तुरत ढुं आपघात करीश. एम विचारिने ते कोश्क मोटा पर्वतपर चड्यो; त्यां तेणे एक उंचुं जिनमंदिर जोयु. प्राण प्रयाणना प्रस्थान समये जाणे ते जातुं बेवानी श्छा करतो होय नहीं, तेम ते, कुटुंब सहित ते जिनमं.. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .Sanilivenesiantisinusiasmbatainyuriwarimanisairat २९६ शत्रुजय माहात्म्य. दिरमा गयो. त्यां तेणे अद्भूत श्राकारवाला, तथा सर्व तेजोनां साररूप, धने जिननां चरणोने नमता एक पुरुषने जोयो. तेने जोवाश्री अधिक जाववालो थएलो ते राजा, पोताना श्रात्माने जिननी साये ऐक्य करतो थको तेमने नमस्कार करवा लाग्यो, (मनशुद्धिथी करेली बल्प जिनसक्ति पण परलोकनी पेठे था लोकमां पण उत्तम सुख देनारी .) पड़ी ते पुरुषे ते राजाने कर्वा के, हे लाकृति ! हुं नागकुमारोनो खामी घरणे ; तथा तारी जिननक्तिथी हुँ तारापर युष्टमान थएलो ९, माटे कं वर माग ? तेनां वचनथी खुशी थएलो ते राजा तेने नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के, थापर्नु दर्शन खरेखर मने संपदा देखाडनारं . वली हे धरणे! हुं आपनी पासेथी वर तो पड़ी मागीश; पण मने प्रथम ते वात कहो के, मारा था पुत्रोनो जन्म थते बते, अनु. क्रमे मारी संपदानो नाश केम थयो ? त्यारे धरणे ज्ञानयी तेनां जवोने जाणीने कयुं के, महा वनमां था नील क्षय नामनो पूर्व नवे जीवं हतो. क्रूर श्राशयवालो, तथा लोकोने मारनारो ते जिस एक दहाडो यात्रिक लोकोने लुटीने मार्गे पालो वव्यो; त्यां ते धनुष्य चडावीने व. नमा हरिणने शोधतो इतो, तेटलामां तेणे ध्यानमा रहेला एक मुनिने जोया. त्यारे तेणे मुनिने हरिण विषे पुरवाथी मुनि ज्यारे बोल्या नहीं, त्यारे ते निढे ते मुनिनेज बाणथी मार्या; त्यारे मुनि पण "नमोऽई नयः" एम कहेता थका मृत्यु पाम्या; अने तेज दिवसे ते निबने पण एक सिंहे मारी नांख्यो; त्यारे ते जिल्ब मरतां थकां चिंतववा लाग्यो के, अरे ! में उष्टे श्रा निरपराधि मुनिने मार्या, तेनुं खरेखर मने था फल मब्यु. पठी ते नि त्यांथी मरीने मुनिहिंसानां पापथी सातमी नरके गयो, श्रने त्यां तेणे तेत्रीस सागरोपम सुधि अधिक अधिक फुःख स. इन कयु. पठी बीजा पण सिंह, वाघ आदिकनां बहु जवो करीने पागे ते नरकमां गयो; माटे हे राजन् ! मुनिनी हिंसा महा जयंकर ; तेम मुनिनी निंदा पण महा उस्तर बे, अने मुनिठनी उपेक्षा पण महा पापोनी करनारी . हवे अंत समये तेणे मुनिहिंसानां पापनी जे गर्हणा करी हती, तेथी ते नरकमांथी उपरीने श्रा तारो नील नामनो पुत्र थयो अने हजु पण तेनुं केटलुक पाप बा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रए पंचमःसर्गः की रघु जे हवे श्रा तारो महानील पुत्र पूर्वे कंका नामनी नगरीना नीम राजानो खल्प धनवालो शूर नामनो क्षत्रीय सेवक हतो. एक दहाडो राजानो प्रधान बदलाइ जवाथी पोतानो गरास पोताने नहीं मलवाथी, दरिजपणाथी पुःखित थर, पोताने घेर गयो. त्यां ते रसोश्ने सारी नरती करवा लाग्यो, त्यारे तेनी स्त्रीए तेने कयु के, हे प्राणेश ! सारी वस्तु मारी पासे नथी, माटे हुं हुं करूं ? स्त्रीनां ते वचनथी कोधायमान थश्ने तेणे तेणीने पर मार्यो, त्यारे ते मुळ खाइ मृत्यु पामी. त्यारे तेनी पुत्रीए त्यां कोलाहल करवायी, त्यां जमतो कोटवाल, ते सांजली श्रावी पहोंच्यो, पढी कोटवाल तेने बांधीने राजापासे लेइ गयो; त्यारे राजाए तेने शूलीए चडाववानो हुकम कर्यो. त्यां को मुनि पासेथी पंच नमस्कार सांजलीने, तथा तेमां श्रादरयुक्त थश्ने, ते शूलिनी वेदना सहन करी, मृत्यु पामी ते नरके गयो. त्यां स्त्रीवधथी उत्पन्न थयेलु कर्म जोगवीने, हे राजन् ! नमस्कारनां स्मरणथी ते था तारा पुत्रपणे उपज्यो . माटे शरण विनानी तथा हमेशां बीकण एवी स्त्रीने मारवी नहीं, केम के कुपित थएली स्त्री बन्ने लोकनां घातमाटे थाय . हवे था तारो त्रीजो पुत्र पूर्वे कोश् महाकामी, तथा वेश्या श्रादिकनुं गमन करनारो शेठनो पुत्र हतो, ते हमेशां देवगुरुनी निंदा करनारो तथा धर्मनो नाश करनारो हतो, तेम अव्य अने यौवननां मदथी मा. तापितानी पण ते श्राझा मानतो नहीं. देव, धर्म अने तत्वोनां कारणरूप सुगुरुज बे; माटे जेणे सुगुरुनी निंदा करेली डे, तेणे ते त्रणेनो नाश कर्यो बे. वली हे राजन् ! जे देव, धर्म अने गुरुनी निंदा करे , ते चांडालोमां नव करी, खरेखर नरकमां जाय . देवनिंदा करनारने बोधिबिज, मोद, स्वर्ग, उत्तमकुल, के शुद्ध अव्यनी प्राप्ति थती नथी. जिननी निंदाथी, मुंगापणुं, गुंगलापणुं, पित्त, कोढ श्रादिक रोगो थाय बे, तेम गुरुनिंदा करवायी अपयश, अकालमृत्यु, फुःख, सुगंधिपणुं, तथा पागं श्रादिक रोगो पण थाय . धर्मनी निंदा करनार माणस वारंवार नरक श्रने तिर्यंच योनिमां जाय , तथा तेने मनुष्य जव मली शकतो नथी. वली ते त्रणेनी निंदा करनार घोर पापी डे, श्रने तेना संगथी बीजा पण मलीन थाय . पड़ी ते पुत्रने एवो जाणीने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ए शत्रुंजय माहात्म्य. शेठे विचायुं के, श्र दुराचारी आपणा कुलने कलंक लगाडनारो बे, माटे तेने कचरानी पेठे घरमांधी कहाडी मेलवो: एम विचारि ते शेठे तेने क्रोधथी नगरमांथी कहाडी मेल्यो, त्यारे ते ( टोलांची ) ष्ट एला हरिणानी पेठे वनमां जमवा लाग्यो पढी ते लूताप्रमुख मुखनां रोगनी पीडाथी मृत्यु पामीने बही नरके जइ श्र तारो काल नामनो पुत्र थयो बे. वली या तारो चोथो महाकाल नामनो पुत्र पूर्वनवे ब्राह्मणनो पुत्र इतो, तथा ते निक्षा मागी आजीविका चलावनारो तथा दुःखी हतो. दुःखें जरी शकाय एवा उदरने नरवामाटे ते देशोदेशमां जमतो हतो; बेवढे ते कोइक जिननां पूजाराने घेर चाकरी रह्यो. एक दहाडो ते देवनां आभूषणो तथा मुनिनां उपकरणो चोरीने, एक वेश्याने द आव्यो, केम के ते, ते व्यसनमां अनुरक्त थयो हतो. देवद्रव्य ग्रहण करवाथी सात पेढेडी उनो दाह थाय छे; वली देवद्रव्यनां विनाशयी प्राणी सात वार अत्यंत दुःखदायी नरकमां जाय बे; तेम गुरुद्रव्य विषसहित जोजन सरखं बे. देवद्रव्य तथा गुरुद्रव्यथी जीवितनी जे आशा राखवी, ते धतुरायी तथा विषथी मिश्रित अन्ननां जोजन सरखुं बे पढी बेवढे कुष्टना रोगी पीडित यइने केटलेक दिवसे मृत्यु पामीने, नरकमां जइ यावी, ते चांडाल कुलमां उत्पन्न थयो. धने त्यांची मरीने या तारो पुत्र थयो d. एवी रीते ते मुनिहिंसाथी, स्त्रीहिंसाथी, देवगुरुनी निंदायी, तथा देवद्रव्यनुं छाने गुरुद्रव्यनुं जण करवाथी, तारा कुलमां उत्पन्न यया बे; वली ते जिल्ह्न अंतकाले मुनिस्मरणथी, क्षत्री परमेष्टीनां स्मरणथी, देवगुरुनो निंदक सत्कुलनी उत्पत्तिथी तथा चोर जिनदर्शनथी श्रा म नुष्यपणे उपन्या बे. वली तेज॑नां बाकी रहेलां पापथी तुं राज्यष्ट थयो बे, अने तेथी तुं दवे श्रापघातनी इछा कर नहीं. हवे तुं सुराष्ट्र देशमां ज, शत्रुंजय गिरिपासे रहेली शत्रुंजया नदीने सेव ? केम के, ते सर्व पापोने नाश करनारी बे. वली ते नदीनां कांठापर रहेलां वृक्षोनां फलोने खाजे, ने तारा पुत्रोने पण खवरावजे, तथा ते शत्रुंजी नदीनां जलथी श्री जिनेश्वरप्रजुनुं स्नात्र करजे. वली तेज नदीनां कांठापर प्राणीनां सर्व पापोने हरनारुं तथा पूर्वे सूर्ये बनावेलुं जिनमंदिर बे. वली ते पापोनी शांतिमाटे विधिपूर्वक त्रिकरणशुद्धियी जिनपूजन कर, तथा " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमः सर्गः १ जीवोनी रक्षा करवी. वली त्यां रहीने शुद्ध मनथी, टाढतडका यादिकने सहन करीने बघ, श्रम यादिक तप करजे, एम करतां थकां त्रण, चार, पांच अथवा मासमां ते तारा पुत्रो निरोगी थइने सुखी यशे. एव ते कुकर्मोथी मुकाइने देवसरखा शरीरवाला थने ते पोतानुं राज्य जोगवशे, तथा बेवटे स्वर्गनुं राज्य पण जोगवशे एवी रीतनां धरणेंद्रनां वचनो सांजलीने, ते राजाए स्त्री तथा पुत्रोसहित तेने नमस्कार कर्यो. पठी धरणेंद्रे तेने कह्युं के, हे राजन् ! ब मास पढी ते नदीने किनारे तुं मारुं स्मरण करजे, जेथी हुं तारा शत्रुर्जने जीती तने तारुं राज्य छापावी देश. एम कहीने धरणेंद्र गयो. पढ़ी राजा पण त्यां प्रभुने नमीने, मनमां ते धरणेंद्रनुं वचन स्मरण करतो थको चालवा लाग्यो. पढी घणा देशोने उलंगीने ते सौराष्ट्र देशमां पहोंच्यो, तथा आश्चर्यसहित समताथी ते शत्रुंजय गिरिने जोवा लाग्यो पढी त्यां ते शत्रुंजयी नदीने कांठे तृणनी कुटीर ( कुंपडी ) करीने कुटुंबसहित समतायी रह्यो . हवे त्यां ते सघला ते नदीना किनारापरनां वृक्षोनां फलो खाता था, तथा हमेशां त्रिकाल जिनस्नात्र करता थका, तथा प्रजुने नमता थका रहेवा लाग्या. त्यां एक मासमांज तेणे पोतानां पुत्रोने सुवर्णसरखी कांतिवाला जोया, तो पण धरणेंनी आज्ञाथी ते त्यां ब माससुधी रह्यो पढी छ मासने ते धरणेंडनुं स्मरण करवायी, ते विमानमा बेसाडी तेनां राज्यपर तेने बेसाड्यो. पढी ते शांतनु राजा त्यां पुत्रसहित जिनमंदिरमां रहेली प्रजुनी पूजा करवा लाग्यो. एवी रीते चोसठ लाख वर्षो सुधि सुखमां रद्दीने, तेणे स्त्री तथा पुत्रोसहित संयम लीधुं. पढी शत्रुंजयपर अनशन करीने, ते सघला सर्व कर्मबंधोनो क्षय थवा केवलज्ञान पामी मोदें गया. एवी रीते अनेक प्रजावोवाली श्रा शत्रुंजय नदी ने सेववाथी राज्यष्टने राज्य, सुखचष्टने सुख, विद्याचष्टने विद्या, तथा कांति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी ने स्वर्ग सुख पण क्रीडामात्रमांज पे बे. वली हे चक्री ! जेम सघला देवोमां श्री युगादीश प्रभु मुख्य बे, तथा सघला तीर्थोमां जेम श्रा शत्रुंजय तीर्थ मुघय बे, तेम सर्व तीर्थभूत नदीमां या शत्रुंजयी नदी मुख्य बे, एम श्री जिनेश्वर प्रभु कहेलुं छे. तेम था उत्तर दिशामां मनोहर अने पवित्र जलोची Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० शत्रुजय माहात्म्य. जरेली, तथा संपूर्ण वैजववाली था “ऐंजी” नदी देखाय . ते नदी श्शानेंनी स्पर्धाथी सौधर्मे जिनजतिथी पनजहमांथी लावेला . जिननक्तिनी स्पर्धाथी श्रा नदी आणेली , माटे ते पण शत्रुजयी सरखीज प्रनाववाली, तथा पुष्ट दोषोने हरनारी . आ नदीनीज माटीना बनावेला कुंजमां श्रानुज पाणी जरीने जे माणस जिननां अंगपर नामे बे, तेने मुक्ति वश थाय जे. वली था पूर्व दिशाने शणगार करनारी न. दीने, जिननक्तिथी धरणे पातालनां मूलमाथी लाव्यो बे, ते नदी उत्तरदिशामांथी निकलीने सूर्योद्यानमां थर दक्षिणमा जाय , ते नदीने जिनस्नात्रमाटे अहीं नागें लावेल , माटे ते सर्व पापोने हरनारी " नागेंडी" नां नामथी प्रसिद्ध थएली बे. वली श्रीप्रथम प्रजुनां स्नात्रमाटे सर्व सुरासुरोए मलीने, अहोथी शोनिती श्रा यमलहदा नदी बनावेली . जे माणसे था नदीनां पाणीनां समूहोथी श्री जिनेश्वर प्रजुनु स्नात्र करे , तेणे था मनुष्यनवरूपी वृदनां सर्व फलो मेलव्यां . हे चक्री! एवी रीते जिनस्नात्रमाटे बनावेली चौद मोटी नदी श्रा शत्रुजयपासे शोने . ए सघली नदीमांथी, तथा कुंडो, समुज अने अहोमांधी जल वेश्ने प्रजुर्नु स्नात्र करवं, एवो संघपति श्रावकोनो हमेशनो श्राचार , तथा ते चक्रीनी अने इंडनी लक्ष्मी आपीने मोक्ष आपे बे. पवित्र जलवाली, कल्याण करनारी, नाना प्रकारना प्रजावोथी जरेली, तथा सर्व तीर्थोनां अंशथी नूषित थयेली था सघली नदीउने जे प्राणी स्पर्श करे , तेने उत्तम कीर्ति, फुःखनो नाश, तथा शुजनो उदय थाय डे, तेम खर्गादिकनी संपदा तो तेनी हथेलीमांज थावे जे तेम सघला निधानो तेनी समीपे श्रावे , तेना श्रांगणामां कामधेनुं आवे बे, त्रणे खोको तेने वश थाय , तथा ते प्राणी पवित्र थाय डे; वली तेने जूत, प्रेत के पिशाचादिको पराजव करी शकता नथी, तेम कुष्टादिक दुष्ट दोषो पण तेने कोई पण वखते थता नथी; वली स्नान अने ( जिननां) स्नानादिकथी जे प्राणी तेउनुं आराधन करे , तेने देवो तो चाकररूप थाय , तथा तेने घेर सर्व संपदा श्रावे , वली हे सरतेश्वर! था जगोए चंड, सूर्य तथा व्यंतरेजनां करेनां बीजां पण घणां जलाशयो . ते वचनो सांजलीने हर्षित थएन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः चक्रीए इंज सहित ते नदीउमा स्नान कर्यु. वली ते नदीनां कांगपरनां पुष्पो, तथा कमलो लेश्ने, अने तेना पाणीथी कलशो नरीने तेणे प्रजुनु पूजन कयु. पनी त्यां तेणे पूर्व तथा दक्षिण दिशामां ईजनी नगरी सरखां नगरो वसाव्यां; तथा वार्धकीने कहीने तेणे त्यां अनेक तलावो, तथा बगीचाउथी शोनितुं श्री युगादीश प्रजुनुं मोटुं मंदिर बं. धाव्यु. ज्यां चक्रीनां पुत्र ब्रह्मर्षि मुनिउँनां समूहोनी साथे सिद्ध थया, तेथी ते "ब्रह्मगिरि” नामनुं महान तीर्थ प्रसिक थयु. वली त्यां पण चक्रीए पापोर्नु नाश करनारूं "सुरविश्राम" नामनुं श्री युगादीश प्रजुनु मंदिर बंधाव्युं. पली चक्री दुंदुनि तथा वाजांनां मंगलध्वनि पूर्वक गुरूने अगाडी करीने, इंक तथा राजा सहित, तथा सघलां पायदल अने संघनां लोको सहित जुदां जुदां शिखरोनी नूमिपर चैत्यप्रवाडी माटे चाल्या. या शिखरपर कपर्दीयद अधिष्ठाता थनार , माटे तेनां नामनां शिखरपर इंजे ते यक्षनी मूर्ति सहित प्रचु मंदिर बनाव्यु. वली ते शिखरपर इंजनां वचनथी माहासुदि पुनेमने दिवसे चक्रीए श्री युगादीश प्रजुनी माता मरूदेवानी स्थापना करी; तेथी ते मरूदेवा नामनां शिखरपर लोको, नाम लीधाथी पण पापोने हरनारां मरूदेवा माताने पूजवा लाग्या. ते माहासुदी पुनेमने दिवसे जे माणसो प्रथम सिक एवा श्री मरूदेवा मातानी पूजा करे बे, ते स्वर्गनुं राज्य पामी मोक्ष जाय . वली स्त्री पण तेमनी पूजा करीने चक्री, तथा इंधनी पटराणी थई, पुत्रवाली तथा सौजाग्यवंती थर्शने अनुक्रमे मोके जाय . पठी त्यांथी बे योजन बेटे एक योजननां प्रमाणवाला, अने तीर्यचोने पण देवसुख श्रापनारां स्वर्ग नामनां शिखरने चक्रीए नमस्कार कयों. तथा त्यां पण तेमणे अधिष्टायक सहित, महान नक्तिथी श्री युगादीश प्रजुनुं मंदिर बंधाव्यु. श्रा उत्कृष्ट शिखरपर ज्ञाननां समुन सरखा बाहुबलि मुनिराजे मुनिरूप थएला पोतानां एक हजारने श्राप पुत्रोने कह्यु के, श्रा तीर्थनां माहात्म्यथी तमोने पुंडरिकजीनी पेठे केवलशान थई, कर्मोनां क्षयथी मोद था ? माटे हे सुव्रतो! अहीं रही तमो निर्यामणा करो ? ते सांजली ते तेमनी साथे त्यांज समाविधी रह्या; पड़ी ते सघला अनुक्रमे केवलज्ञान पामी मोदे गया, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ शत्रुजय माहात्म्य. तेथी ते बाहुबली नामना शिखरपर पण जरते प्रासाद कराव्यो. पड़ी चक्रीए इंजने प्रीतिथी पूबयुंके, हे इं! श्रा सघलो पर्वत तीर्थमय में, माटे था मुनिउँनो अग्निसंस्कार क्या करवो.? त्यारे तेणे पण पोतानां ज्ञानथी जाणीने, जाणे सर्व लोकोनी प्रवृत्ति कराववा माटेज होय नहीं, तेम कह्यु के, हे चक्री! मरूदेवाथी मांडीने पुमरिकजी सुधि सिक थएखाउनां शरीरो में क्षीरसमुपमां पधराव्यां ; केमके ते अमारो श्राचार . हवे था तीर्थमां शत्रुजयनुं शिखर मुख्य , केमके, ते सर्व तीर्थमय तथा युगादीश प्रजुनां चरणोथी सेवित थएटुंबे, तेम सर्व दे. वोनां समूहोथी ते शोनितुं थएबुं जे. माटे ते शिखरपर दादादिक दु. कार्य करवू लायक नथी, केमके, तेथी तीर्थनो लोप तथा जिनाज्ञानुं खंडन थाय, माटे श्रा मुख्य तीर्थनी सर्व बाजुनी बेयोजन नूमि बोडीने, स्वर्ग नामनां शिखरपर अग्निसंस्कार करवो. तथा त्यां ते सर्वनी पत्थरमय मूर्ति कराववी, केमके तेम करवाथी हवे पड़ी बीजा पण तेम करशे. एवी रीतनुं इंजनुं युक्तिवालुं वचन सांजलीने चक्रीए तेवी रीतनो तेमनो पुण्यनां समूह सरखो अग्निसंस्कार कयों; तथा तेज शिखरपर तेमणे पूर्व दिशारूपी स्त्रीनां मुखपर रत्ननां तिलक सरखं प्रजुन मंदिर बनाव्यु. वली त्यां वार्धकी मारफते सोमयशाए पण पोतानां पितार्नु, तथा बंधुऊनां हर्षथी प्रासादो कराव्या. पळी चक्रीए तालध्वजनां ( तलाजानां) शिखरपर, हाथमा खड्ग, ढाल, शूल, तथा सर्पवाला तालध्वज देवनी स्थापना करी. पडी कदंब गिरिपर जईने चक्रीए श्रीनाज गणधरजीने पूब्युं के, हे जगवन् ! आ शिखरनो शुं प्रजाव . ? त्यारे गणधर महाराज पण कहेवा लाग्या के, हे चक्री! तेनी कथा तमो सांजलो ? गइ उत्सर्पिणीमा चोवीसमा संप्रति नामना तीर्थकरना कदंब नामनां गणधर क्रोड मुनि सहित अहीं मोदे गएला बे, माटे ते “ कदंबगिरि" कहेवाय . यहीं महा प्रजाविक औषधिउँ, रसकुंपिका, रत्ननी खाणो, तथा कल्पवृदो . दीवालीने दिवसे, शुजवारे, उत्तरायन संक्रांत होते बते, अहीं मंडल करवाथी देवो प्रत्यक्ष थाय डे. वली एवी को पण औषधिउँ, के रसकुंपिकाउँ, के सिकि आ पृथ्वीमां नथी, के जे था पर्वतपर न होय. जे सौराष्ट्र देशमा सिझनां स्थानक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः २०३ सरखो श्रा कदंबगिरि बे, त्यांना लाको ते दारिअथी पीडायज केम ? वली जेनापर था पर्वत तुष्टमान थएल , तेने कामधेनु, कल्पवृक्षो, तथा चिंतामणि श्रादिक सर्वे तुष्टमान थएला जाणवां. वहीं रात्रिए औषधिळ पोतानी कांतिरूपी दीपकोनां समूहोथी, निर्जाग्यनां मंदिरथी जेम दारिजनो तेम अंधकारनो नाश करे . वली श्रहीं रू. चकाजिनी पेठेज हमेशां कल्पवृदो बहु वांडित अर्थाने श्रापे . वली वर्षा ऋतुमा वादलांउथी अवाएला सूर्यकिरणोनी पेठे हीन कालनां प्रसंगी ते माणसोने गोचर थशे नहीं. वली मुख्य शिखरनी पेठे था शिखर पण पापोने नाश करनालं, तथा बन्ने जवोनो उपकार करनालं होवाथी अत्यंत प्रख्याति पामशे. एवी रीतनो तेनो महिमा सांजलीने चक्रीए, ते अनेक वृदोवालां धर्मोद्यानमां, इंजनी सम्मति पूर्वक वार्धकी मारफते चोवीसमा जावि तीर्थकर श्री वर्धमानखामीन मंदिर बनाव्युं. हवे ते कदंब गिरिथी पश्चिम दिशा तरफ शत्रुजयी नदीने कांठे चक्रीए पोतानी सेनानो पडाव नांख्यो.त्यां केटलाक हाथी, घोडा, बलद विगेरे अविवेकी प्राणी पण रोगनी पीडावीनां तीर्थनां योगथी खर्गमां गया. पड़ी ते पण स्वर्गमांथी त्यां श्रावीने चक्रीने नमीने पोतानी स्वर्गप्राप्ति तुरत कहेवा लाग्या. तथा तेए त्यां पोतानी मूर्तिवाला प्रासादो बंधाव्या, अने त्यारथी ते "हस्तिसेना" (दस्तिगिरि ) नामनो महान पर्वत प्रख्यात थयो. एवी रीते चक्रीए शत्रुजय गिरिना सर्व शिखरोपर हर्षनां श्रावेशथी जिनालयो बंधाव्यां. वली मुख्य शिखरनी प्रदक्षिणा देश्ने चक्रीए पोताने स्थानके पाबा फरीने श्री युगादीश प्रजुने नमस्कार कर्यो. पड़ी चक्रीए मुख्य शिखरनी नीचे सुवर्ण गुफामां थएला, थनारा तथा विचरता तीर्थंकरोनी रत्नमय मूर्ति स्थापी. हवे गिरनार प्रते जवानी तैयारी करता चक्रीने, नमि अने विनमि मुनिए मधुर वचनोथी कडं के, हे नृपेश ! अमो बे कोड मुनि साथे वहींज रहीशु. केम के, अहींज अमोने मोक्ष थवानो डे. ते सांजलीने चक्रीये तेउने, तथा बीजामुनिउँने नमस्कार कर्यो, त्यारे ते तरफथी तेने धर्मलाननी वाशिष मली. एवी रीते ते नमि विनमि, ते मुनिउनी साथे फागणसुदी दशमीने दिवसे पुंडरिकजीनी पेठेज मोदे गया.माटे फागण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ श@जय मादात्म्य. सुदी दशमीने दिवसे जे विमलाचलनो स्पर्श करे बे, ते सघला पापोनो नाश करीने मोक्षने जजनारा थाय . पनी त्यां चक्रीए तथा देवोए तेमनो निर्वाणमहोत्सव कर्यो, तथा तेमनी त्यां रत्नमय मूर्ति स्थापीने बे मास पड़ी ते चालवा लाग्या. त्यां पश्चिम दिशापरनां चोथा शिखरपर राजाए तीर्थनी रक्षामाटे नंदी नामनां मदा बलवान देवने स्थाप्यो; श्रने तेथी ते पर्वत पण नंदीना नामथीज प्रसिद्ध थयो, केम के ज्यां जे खामी होय, त्यां तेनुं नाम थाय . आ शिखरपर नमि राजानी वर्चादिक चोसठ व्रतधारी पुत्री चैत्र वदी चौदशने दिवसे निशिथ समये एकी वखते खर्गे गर्छ, तेथी ते “ वर्च" नामनो पर्वत प्रसिद्ध थयो. त्यां रहेली ते श्री युगादीश प्रजुनां चरणकमलो सेवनाराऊनां वांडितो पूरे बे, तथा विघ्नोने हरे . पली सघला यात्रिको वारुणी दिशामां चालता थका, विस्तार पामेली शाखाउँनां अग्र नागोथी रोकाएलो , सूर्यनां किरणोनो समूह ज्यां, एवा चंडोद्यानमां श्राव्या. त्यां लोकोए वृक्षोनी गयामां बेठेली किन्नरीउथी गवाता अरिहंत प्रजुनां गुणोनां ऊंकार शब्दो सांजव्या. वली त्यां वृक्षोनी बगयाथी श्रमनो नाश करीने, लोको मनोहर स्वादिष्ट फलो खाता थका तथा निर्मल पाणी पीता थका रह्या. वली त्यां ब्राह्मी नदीनां अहोनां कबोलोथी लालीत थएला किनारापर संघना लोकोने मनमां थानंद थयो. हवे त्यां सोमयशा कुमार पोताना सरखी उमरवाला कुमारोनी साथे ते वननी शोजाने जोवा गयो. “ था मनोहर बे, श्रा मनोहर ” एम जोतो थको ते ब्राह्मी नदीना किनाराने जोवा लाग्यो. एम जोतां जोतां ते उद्यानमां गयो, त्यां तेणे जटाधारी, तथा अंगे जनुती चोलेला केटलाक जितेंडि तपखीउने जोया. मूर्तिथी शांत हृदयवाला तथा शरीरनां तेजथी अमृत वैनववाला ते योगीउने जोश्ने सोमयशाए तेमनो श्राचार पूज्यो. त्यारे ते कदेवा लाग्या के, अमो वैताढ्यपर रहेनारा विद्याधरो बीए, तथा अज्ञानपणाथी करेली मुनिहत्यादिकनां पापोथी नीरु थएला बीए; श्रमोए वैराग्यथी तापसी दीक्षा लीधी हती; पण एक दहाडो कर्मयोगे अमोए श्री युगादीश प्रजुने वांद्या; अने तेमने पुज्युं के, हे जगवन् ! श्रमारो मोक्ष क्यारे थशे ? त्यारे तेमणे कयुं के, श्री चंप्रन तीर्थंकरनां तीर्थमां श Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमः सर्गः २०५ श्रुंजय नजदीक तमारो मोक्ष यशे. ते सांजली श्रमो श्री चंद्रप्रन प्रभुनीमूर्ति करावी, या मोक्ष स्थानकमां श्रावी हमेशां तेनी पूजा करीए बीए. वली हे राजन् ! यहीं ते आठमा तीर्थंकरनं समवसरण थवानुं , तेथे विशेष करीने श्रमो अहीं रह्या बीए. ते सांजलीने सोमयशाए दर्षित य, चक्री पासे श्रावी, ते वृतांत कह्यो, तेथी ते पण आनंदित थया. पढी तेमणे त्यां चंद्रप्रन प्रभुनुं समवसरण यनारुं जाणीने, वाकी मारफते जिप्रासाद सहित एक मोटुं नगर वसायुं. एवी रीते त्यां तीर्थनी प्रतिष्ठा करीने, चक्री विशेष पुण्यनी इछाथी संघसहित रेवताचलप्रते चाल्या. पढी तेमणे सुवर्ण, रत्न, तथा माणिक्यनी कांतिथी प्रकाशने देदीप्यमान करता, तथा पृथ्वीरूपी स्त्रीना, इंद्रनीलमणि साथै परोवेल स्फटिक रत्नोवाला, अने मालतीनां पुष्पोवाला वेपिदंड ( चोटला ) सरखा, तथा स्फुरायमान यती वीजली उनी शिखावाला श्याम मेघनी पेठे, वच्चे वच्चे सुवर्णनी रेखावाला, अने लीलमनी शिलामय, एवा उंचा रेवताचलने जोयो. त्यां क्रिडा करता किन्नरोनां बालकोए उंचा उठालेला रत्ननां कंडुको ( दडा ) दिवसे पण थकाशमां तारार्जुनी चांति उपजावता हता. वली वहीं रात्रिए चंद्रकांत मपिनां शिखरोमांथी करतां अमृत सरखां करणो यत्तविनाज वननां वृक्षोनुं पोषण करतां तां वली यहीं पचरंगी मणिनां किरणोवालां विचित्र वृो पवनथी प्रेरायां थकां त्यां यवनाराउने मयूरनां नृत्यनो म उपजावतां हतां वली कोइ जगोए तो ते पर्वत चारे बाजुथी लीलमनी शिलावालो, तथा मध्यमध्यमां स्फटिकनी शिला वालो थयो थको, स्फुरायमान तारा सहित श्राकाशवालो शोजतो हतो. वली चारे बाजुथी वृक्षोथी वीटाएलां सुर्णनां शिखरवालो ते पर्वत पृथ्वीरूपीना रक्षामणि (राखडी ) नी पेठे शोजतो हतो. वली त्यां र कुंपिका तो एमज बोल्या करे बे के, धर्म कोने साक्षिरूप वे ? तथा श्रम कोना दारिद्र लक्ष्मीथी हणीयें ? वली ते पर्वत फल सहित केनां वृक्षोथी तथा बाउंथी तोरणोवालो, अने विद्याधरनी स्त्रीजनां गायनोथी जाणे महोत्सववालो होय नहीं, तेम लागे छे. वली ते पर्वत दिवसे बलता सूर्यकांत मणिवालो, तथा रात्रिए औषधिनां तेजं " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ शत्रुजय मादात्म्य. वालो, अने केलरूपी ध्वजावालो जाणे अनलाधिपति (अग्निदेव) होय नहीं, तेवो लागे . वली पोतानां शिखरोनां श्रय नागोपर रहेला मणिनां समूहोथी दिवसे पण ते आकाशने सेंकडो चंसोवायूँ बनावे बे. वली शेषनागपर तथा चंपर जेम चंदननुं लेपन, तेम अहीं स्फटिकनी बांधेली नेहेरोमा फरणानुं जल शोने दे. वली ते नीचाण नूमिपर क्रीडा करता हाथीउनां गर्जारवोथी, तथा हमेशां करता करणाऊनां शब्दोधी सर्व जगोए वाचाल थएलो देखाय जे. वली कस्तूरी मृगोनी कस्तूरीथी लेपन करातो, तथा चमरी गायोनां चाम: रोपी वीफातो ते पर्वत गिरिराज सरखो देखाय . वली अहीं अंदर पवनना जरावाथी वांसो वागते इते, नदीनां फरणोनां शब्दो तथा दे. वांगनानां गायनो संजलाते बते, मयूरो तेमां रक्त थ नाचे . वली श्रही श्वास रोकीने स्थिर वृत्तिवाला मुनि गुफामा रही आत्मसंबंधि ते. जने ध्यावे . वली हमेशां देवोथी, यदोथी, अप्सरानां समूहोथी, विद्याधरोथी तथा गांधर्वोथी या पर्वत खार्थ सिद्धने माटे हमेशां सेवाय बे. वली अहीं सूर्य तथा चंग पण क्षणवार पोतानां वाहनो थोनावीने तेनी स्तुति करता थका आनंद पामे . वली था पर्वतपर रहेला, लवंग, चारोली, नागरवसी, मालती, तमाल, कदंब, जांबु, आंबा, लींबडा, चंपक, बिंबिक, नालीएरी, ताडी, तिलक, लोदर, वड, चंपक, बकुल, अशोक, अश्वत्थ, पलाश, आंबली, पीपला, माधवी, केल, चंदन, कल्पवृक्ष, कणेर, बीजोरां, देवदार, गुलाब, अंकुश, जासुद, तथा कुरबक श्रादिक वृदो, बाया, फल, पत्र, तथा पुष्पोथी लोकोनां समूहोने आनंद आपे . एवी रीतना, रोहणाचल, वैताढ्य, तथा मेरुनी संपदाने हरनारा ते रैवताचलने जोश्ने चक्रीए उपवास सहित त्यां श्रावास कों, पनी त्यां चक्रीए संघसहित हर्षे करीने, गुरुनी आज्ञा प्रमाणे शत्रुजयनी पेठे ते पर्वतनी पण पूजा करी. त्यां शक्तिसिंहे मनोहर रसथी अमृतने पण तुकारनारी रसवती संघसहित चक्रीने जमाडी. ते रेवताचलने मोक्षनी पेठे कुर्गम जाणीने तेपर सुखें चडवामाटे केवली सिकांतथी जेम, तेम चक्रीए हजार यदो मारफते दान, शील, तप अने नावसरखी चार पावडी बनावी. वली त्यां ते ते पावडीउनां मुखोपर चक्रीए यात्राबुर्जनां सुखमाटे, वावो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमः सर्गः २०७ बगीचा, नदी, चैत्यो, विसामा विगेरे बनाव्या. ते पावडी मारफते, पोतानां मनोरथपर जेम तेम संघना लोको ते रेवताचलपर चड्या. त्यां हवे घनारा नेमिनाथ प्रजुनां त्रण कल्याणकोने जाणीने चक्रीए शिल्पी (वार्धकी) मारफते एक उंचं जिनमंदिर बंधाव्यं ते जिनमंदिरमां रेवताचलनां श्रमूल्य पचरंगी मणि ने रलोना किरणोtat a विनां चित्रामण थइ रघुं. ते सुरसुंदर नामनो प्रासाद दरेक दिशा प्रते ग्यार अग्यार मंडपोवालो, चार द्वारोवालो, तथा अत्यंत उंचो शोजतो हतो. वली ते जिनप्रासाद जाली, ऊरुखार्ट, तथा तोरणोथी, ने सर्व कतुर्जनां बगीचायी मंडित थयो थको देदीप्यमान लागतो हतो. स्फटिकनां बनावेला ते प्रासादमां लीलमनी बनावेली श्रीनेमनाथ प्रजुनी मूर्ति नेत्रनां पांडुर जागमां रहेली कनीकी ( की की ) सरखी शोजती इती. जगतनां खेदने नाश करनारो ते जिनप्रासाद मुख्य शिखरनी नीचे पश्चिम दिशामां एक योजन दूर हतो. वली नाश करेल वे ज्ञानना समूह जेणे, एवो " स्वस्तिकावर्तिक " नामनो श्री श्रादिदेव प्रजुनो प्रासाद पण त्यांज चक्रीए कराव्यो. त्यां पण विमलाचलनी पेठेज सुवर्ण, रूपुं, माणिक्य, रत्न तथा धातुर्जनी बनावेली घणी मूर्ति शोजती हती. पछी त्यां पण चक्रीए अरिहंत प्रजुनी जक्तिनां समूहथी, गणधरोए कहेली विधिपूर्वक विविध प्रकारनी नेटो सहित प्रतिष्ठा करी. हवे ते समये हर्षथी प्रेराएलो इंद्र पण पोतानां ऐरावण हाथी पर चडीने, नेमनाथ प्रजुने वांदवा माटे त्यां आव्यो. त्यां ऐरावणे पोतानो बलवान पग मुकीने, पृथ्वीने दबावी, अने तेथी त्यां कुंड थयो, तेनुं पाणी अरिहंत प्रजुनी पूजामां उपयोगी थयुं, अने ते कुंड गजपगलांना ( हाथी पगलांनां ) नामथी प्रसिद्ध थयो. तेनी छंदर त्रणे जगतनी पवित्र नदीनां प्रवाहो पड्या, तथा तेनी फेलाती दीव्य सुगंधिथी जमरा त्यां गुंजारव करवा लाग्या. तेना पाणीनी गल अमृत तो फोकट थयुं, साकर तो कांकरारूप थइ, अगर तो दलको थयो, तथा कस्तुरीने तो कोइ संजालवा पण लाग्युं नहीं; वली तेनां पाणी आगल चंदन तो तेनां एक टुकडा सरखुं अयुं, तथा सरस्वती ने सिंधु नदी तो रसविनानी थ; तेम तेना पाणी श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ q០០ शत्रुजय माहात्म्य. गल गंगा श्रने दीरसमुज्नु पाणी पण कंई हिसाबमा रह्यं नहीं. वली बीजां तीर्थोने जोवाथी, सांजलवाथी, स्पर्श करवाथी, तथा सेववाथी जे फल थाय , ते फल फक्त था कुंडनुं पाणी जोवाथीज थाय . वली देवो जेने अमृतकुंडो कहे , ते तो फोकट कहे , केम के, था कुंडज अजरामरपणुं श्रापे बे, पण बीजा कुंडो आपता नथी. ते कुंड. दीव्य ती. थोनां जलोथी जरेलो , तथा दोषोए करीने रहित , तेनां पाणीनां स्पर्शश्री श्राधि तथा व्याधि नाश पामे . वली अहीं नागेंडे नेमनाथ प्रजुनी नक्तिथी पोतानां वाहन सर्प मारफते जे कुंड बनाव्यो, ते "नागकर" नामथी पृथ्वीमां प्रसिक थयो, अने तेनुं पाणी पण घणुंज पवित्र थयु. वली मयूरनां पगनां श्राक्रमणथी जे ऊरणुं वहेवा मांड्यु, ते “मयूरनिर्फर" नां नामथी पृथ्वीमां प्रसिद्ध थयु; अने ते चमरें प्रजुनी नक्तिथी पोतानां वाहन मयूर मारफते कराव्युं हतुं. वली नहीं रहेला चंडकुंड, सूर्यकुंड विगेरेनो प्रजाव पण वचनथी न वर्णव्यो जाय तेवो , केम के, तेनां पाणीनां स्पर्शथी पापो अने कुष्टो पण नाश पामे बे. वली श्रहीं अंबाकुंड नामनो जे महाप्रजाविक कुंड , तेनां पाणीनी सेवाथी इत्यादीक जयंकर पापो पण नाश पामे . वली अहीं बीजा देवोए पण घणा कुंडो बनाव्या बे, तेऊनां प्रनावनी स्थिति तो तेज जाणे .. . हवे अहीं देवता “ हुँ पेहेलां प्रजुने पूजु, हुं पेहेलां प्रजुने पूजें" एवी रीते परस्पर स्पर्धा करता थका, पोतानी शक्तिथी लावेलां पुष्पोथी ते नेमनाथ प्रजुने पूजवा लाग्या, पळी जरत महाराजे पण ते गजेंपद कुंडमां स्नान करीने, तथा शुभ वस्त्रो पहेरीने नेमनाथ प्रनुनी पूजा करी. पड़ी तेमणे पूर्वनी पेठेज अहीं पण प्रजुनी थारति उतारीने, ज. मणी बाजुथी मंगलदीवो पण उतार्यो. पडी हृदयमांथी उन्नराश जती हर्षनी संपदाने जाणे बहार कहाडता होय नहीं, तेम चक्री प्रजुनां च. रणतरफ दृष्टि राखीने नीचे प्रमाणे स्तुति करवा लाग्या. हे श्री शिवा. देवीनां पुत्र ! अनंत गुणोरूपी रत्नोनां महासागर सरखा, संसारनो पार पहोंचवामां आधारजूत, तथा अपार संसारथी तारनारा एवा तमो जयवंता वर्तो ? हे कृपालु श्री नेमिनाथ प्रनु ! अज्ञानमां मन्न, तथा जवयी जहिम श्रएला, एवा मने थापनां स्वाजाविक तेजथी मारो उकार करो? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०॥ पंचमःसर्गः वली हे देव ! था पूर्वे जे रागादिक शत्रुऊने जीत्या , तेज शत्रु श्रापनां विरोधथी मने पुःख श्रापे . आपे तो सर्व जावोमां सामान्यपणारूप उ. दासीनपणुं धारेलुं , अने तेथी जो मारातरफ आप उपेक्षा करशो, तो श्रापर्नु उत्तम स्वामिपणुं शीरीते रही शकशे ? श्रा संसाररूपी समुज्नी अंदर मोहरूपी श्रावर्तमां (घुमरीमां) पडेलो हुँ, थापनां ध्यानरूपी वहाणनो क्यारे आश्रय करीश ? वली हे जगत्प्रजु ! था मारु मदोत, तथा कदाग्रहमां लीन थएवं चित्त फुःखाय नहीं, तेवी श्राप कंश्क मारापर कृपा करो. वली हे स्वामी ! तृष्णाथी चपल थएबुं, तथा कामदेवनां तापथी विव्हल थएबुं माझं चित्त श्रापनां ध्यानरूपी अमृतनां सेवनथी शांति पामे . वली हे प्रजु ! आपनां समतानां साररूप मार्गमा जे माणस क्षणवार पण गमन करे , ते कोइ पण वखते क्रोधरूपी खराब मार्गे चडता नथी. हे खामी! पार्थिव्यादिक स्फरायमान थती श्रापनी पिंडस्थ धारणाने उत्कृष्ट ज्ञानवंत योगी ध्यावे . ज्यारे प्रजु लोको उपदेश थापे , ते वखतनुं प्रजु, जे ध्यान धरतुं तेने पदस्थध्यान हीए. तथा रागद्वेषरहित, योगयुक्त, निराश्रय, स्फुरायमान घातिकमा विनानां करुणामां तत्पर, केवलज्ञानवाला श्रात्माने जे तन्मयपणी ध्यावे, ते मुनि रूपस्थ ध्यानने जाणनारो बे. नाना श्रुतविचारथी, ऐकाय श्रुतविचारमां, तथा तेथी सूक्ष्म क्रियामां, अने तेथी संमुछिन्नक्रियामा एवी रीते श्रात्मसंवेदनथी चार प्रकारनां शुक्ल ध्यानप्रते चडीने योगी चिन्मयपणाने जुए . वली हे प्रजु ! पेहेलेथीज नाना प्रकारनां ध्यानोथी में श्राप, आराधन करेलुं , पण अनुक्रमे आत्मासाथे श्रात्माने मेलववानी मारी हवे श्छा . वली हे देव ! तत्वनां जाणनारा आपने परमार्थथी निराकार, निराधार, निराहार, तथा निरंजन कहे . वली हे प्रजु ! तमाएं परम ब्रह्ममय तेज, सर्वव्यापी बतां पण मारा मोहरूपी अंधकारनो नाश केम करतुं नथी? वली हे खामी ! ज्यारे लोको श्रापनां चिदानंदमय चरणकमलोने वांदे , त्यारेज तेमनो नवरुपी ग्रीष्मरुतुनो ताप नाश पामे . निजामां शून्य चित्तपणुं, तथा जागृत अवस्थामां अत्यंत कल्पना थाय दे, पण ते बन्नेथी अलगा एवा तमो को दूर रहेला चंड बो. वली हे प्रनु ! आप ध्येयरूप होते बते, ध्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० शत्रुजय मादात्म्य. ता ध्यानमां लय थाय बे, अने तेथी बीजा लोको थापना ध्यानमा विमुख रहे . वली तत्वनां जाणनाराज, तथा कल्पनारहित चित्तवाला ध्येयादिक त्रणे नेदोने बिलकुल पण जाणी शकता नथी. जेनुं मन उदासीन अने पदातीत नथी, तेने ध्येय, ध्यान,अने ध्यातानी बुद्धि थाय. वली हे प्रजु ! कर्मथी रहित, निःसंग, स्वरुपताने प्राप्त थएला, निरंजन तथा सदा श्रानंदमय श्रापज बो, एम हुं मानुं बुं. वली हे नाथ ! आपने जाणनारा शत्रु अने मित्रमां, मूर्ख अने विधानमां, तथा सुख अने पुःखमां पण समजाववाला होय . वली हे प्रज्जु ! जेथी आपनुं जाणपणुं न थाय, तेवा तप, ज्ञान, विनय, तथा जपर्नु पण शुं प्रयोजन ? वली हे खामी! जेथी मारां पापकार्योनो नाश थाय, तथा विषयोनी वासनारुप मारा संकल्पो उठा थाय, एवो कंक उपाय श्राप कहो ? वली हे प्रनु! उत्कृष्ट श्रानंदरुपी जहमां बुडेला एवा मने, श्रापनी कृपाथी वेद्यवेदकना नेदनीज एक शून्यता था ? वली हे खामी! हुं आपनी पासेथी कंई धननी याचना करतो नथी, फक्त आपनी कृपाथी मारा मनमा परमात्मसंबंधि तेज स्फुरायमान था ? एवी रीतनां कर्णने अमृतसरखा था स्तोत्रने जे पुण्यशाली हमेशां त्रिकाल जणे बे, ते आपना खरूपने जाणनारो थाय . हे खामी! ज्यांसुधि आ उनियामां सूर्यचं तपी रह्या बे, त्यांसुधि आपनुं आ स्तवन समृद्धि पामो ? एवी रीते चक्रीए स्तुति करीने, नेमिनाथ प्रजुने, पोतानां कर्मोनी साथे शरी. रने पण नमावीने, वंदना करी. पली गुरुनक्तिथी पवित्र अंगवाला, ते चक्रीए स्वर्ग संपदाना निदानरुप दान मागण लोकोने थाप्यु. पनी तेणे परिवार सहित जोजन कर्यु, तथा क्षणवार निझा करी; “था निना तो तमोरुप (अज्ञानरुप) बे," एम विचारि, तेमणे निशानो त्याग कर्यो; अने तुरतज तेमना चित्तमां विवेकरुपी दीपक प्रकट थयो. वली ते समये पोतानां नेत्रकमलोने जरामुकुलित थयेला जाणीने, तेमणे तेउने शुद्ध पाणी बांटी प्रफुलित काँ. पली अंतरमा स्फुरायमान थता रंगनी वर्णिका जाणे देखाडता होय नहीं तेम, तेमणे मुखशोनामाटे तांबुल ग्रहण कर्यु; पढ़ी दानशालामां जश् तेमणे दरिजीउने दान आप्यु. पनी तेमणे रत्नोनां निबिड रंगोथी आकाशपातालने पण चित्रित करती,एवी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः २११ आश्चर्यकारी ते पर्वतनी शोजा जोत्यारे चक्री तेनुं वर्णन करवा लाग्या के, आ रेवताचलनी आगल मेरु तो बिलकुल आल्हाद करनारो नथी, तेम विंध्याचल तो वंध्यरूप , तेम हिमाचल पण फोकटज बे, केम के, ते श्रा पर्वतनी शोनाने पामता नथी. वली था गिरि लक्ष्मीनो खरेखर क्रीडापर्वत बे केम के, ते महासिकिनुं स्थानक , तथा अहीं रत्नो, रसकुंपीका श्रने कल्पवृक्षो . वली था पर्वत समवसरणनी शोनाने सर्व जगोएथी धारण करे , केम के, तेनुं था मुख्य शिखर मध्यमां रहेला चैत्यवृक्ष सरखं शोने .वली तेनी चारे बाजुए चार छाररूप करणावाला था पर्वतो गढनी श्रेपिउने धारण करे ; वली अहीं हमेशां जातिवैरवाला प्राणी पण पोतानुं वैर तजीने परस्पर मित्रनी पेठे रहे . वली था पर्वतने जोवाथी माझं मन आनंद पामे , थने तेथी हुँ एम धारुं बुं के, ते विशेषे करीने अज्ञानयी मुकाएदुं थयुं . एटलुं कहीने चक्री मौन रहेते थके, शक्तिसिंह मस्तक नमावतो थको, तथा पडलंदाथी गुफाउँने पण गजावतो थको, कहेवा लाग्यो के, हे खामी ! श्री जिनेश्वर प्रजुए शत्रुजय पर्वतर्नु श्रा पांचमुं रेवताचल, शिखर केवलज्ञान आपनाएं कडं . था पर्वतनी जंचा उत्सर्पिणीमां चडती चडती हती, तथा था श्रवसर्पिणीमां घटती घटती , पण प्रायें करीने ते पर्वत शाश्वतो . श्रा श्रारामां तेनां कैलास, उजयंत, रेवत, वर्णपर्वत, गिरनार, तथा नंदन नाम थयां . वली दीव्य औषधिउथी जरेलो था पर्वत कोने अधिक प्रीति नथी उपजावतो ? अहीं अनंता तीर्थंकरो श्राव्या बे, अने श्रावशे; अहीं रसकुंपिकाउँ, दिव्य रत्नो, कल्पवृदो, तथा चित्रावेली ; अने तेथी ते बन्ने जवोमां सुख आपनारो बे. अहीं ऊरणानां पाणीथी सिंचाएलां उद्याननां वृदो श्रा तीर्थनी शिखामणथीज जेमतेम सर्वे शतुमा फले बे. वली श्रहीं श्रीद, सिझगिरि, विद्याधर, अने देवगिरिनामनां चारे पर्वतो चारे बाजुए रह्या थका शोने दे. मोदरूपी सुखने देनारा था पर्वतने, ते सघला पर्वतो उत्तम स्वामिने जेम तेम सेवी रह्या . वली अहींथी पवित्र अहोवाली, तथा प्रजाविक नदी जिन स्नात्र माटेवहे . श्शान दिशामां श्रीद अने सिझगिरि पर्वतनी वच्चे क्रीडा करता ले देवोनां समूहो जेमां एवी उदयंती नामनी प्रख्यात नदी वहे . वली दक्षिण दि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. शामा अहोथी शोजिती प्रनाविक, तथा इष्ट दोषोने नाश करनारी उआयंती नामनी नदी वहे डे, नैऋत्य दिशामां निर्मल पाणीवाली, तथा पवित्र करनारी सुवर्णरेखा नामनी नदी वहे . वली उत्तर दिशामां मोजांउथी चलित कमलोवाली लोला नदी, तीर्थना संगथी दीन माणसोनी दीनतानो नाश करे . एवी रीते श्रा पर्वतमांथी निकलती बीजी पण . होथी शोजती घणी नदी, तथा घणां ऊरणो . वली अहीं पोतपोतानी सिधिनी वृद्धिमा तत्पर घणां विद्याधरो, देवो, किन्नरो,अप्सरानां समूहो, तथा यदो वसे बे. पळी चक्रीए शक्तिसिंहने पुज्युं के, था वायव्य दि. शामां कयो पर्वत शोजी रह्यो बे ? त्यारे शक्तिसिंह कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! बरट नामनां को कुबुद्धि विद्याधरे राक्षसी विद्या साधीने श्रहीं वास कयों ने. ते क्रूर राक्षसथी अधिष्ठित थश्ने था पर्वत तेनाज नामथी प्रसिक थयो जे. जयंकर रादसोथी वीटाएलोतथा श्राकाश विद्या. थी आकाशमां गमन करनारो ते उष्ट, आज्ञा पण मानतो नथी; एवी रीते तेने देशमा उद्वेग करनारो जाणीने, चक्रीए क्रोधातुर थर, तेने जीतवाने सुषेणने विमान मारफते जवानी श्राज्ञा आपी. त्यारे चक्रीनां हुकमने माथे चडावीने सेनापति विमान मार्गे त्यां पहोंच्यो, त्यारे तेने श्रावतो जोश बरट राक्षस पण घणां राक्षसो सहित युद्ध करवाने सज थयो. पली त्यां सुषेणे क्षणवार ते राक्षसो साथे लडी, तथा जीतीने, ते बरट राक्षसने पोताना विमानमां नाखी लाव्यो; अने चक्रीनां चरण समीपे तेने लोटतो कर्यो. ते वखते तेने दीन,तथाम्लान मुखवालो, जोश्ने दया: श्राववाथी शक्तिसिंहे तेने कह्यु के, हे असुर ! तें जीवहिंसारूप जे कंदनुं थारोपण कयुं बे, तेनां पुष्पसर हजु था थयुं बे, अने तेनुं फल । तो हजु तने नरकमां मलशे. माटे हजु पण जो तुं जीवहिंसा तजीने . मारी श्राझा मानशे तो तने अजयदान थापी हुँ बोडावं. त्यारे राक्षसे कडं के, हे स्वामी! हुं श्रापनी आज्ञा मारा मस्तकपर चडावीश, तेम: कहेवाथी शक्तिसिंहे चक्रीने कही तेने गेडाव्यो. पठी ते रादसे त्यां : खुशी थश्ने युगादीश प्रनु तथा अरिष्टनेमि प्रज्जुनु, एम बे जिनमंदिरो। बंधाव्यां. वली ते शिखरनां तट पासे तेणे प्रजावधी शत्रुजयीनी स्पर्धा क- 1 रनारी तथा पूर्व दिशामां गमन करनारी एक शुज नदी बनावी. जे मा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमः सर्गः १३ "कामद सत्यां श्री युगादीश प्रजुने, तथा श्री नेमिनाथ प्रभुने नमस्कार करे बे, तेनां इतिने ते शुभ मनवालो राक्षस थापे बे. वली त्यारथी ते तीर्थ " नामथी पण प्रसिद्ध थयुं, वली बीजी वस्तुर्जने नहीं बता माणसाने ते नोपम मोक्षसुख पण थापे बे. पबी चक्री ते राक्षसने त्यां स्थापने पोते ने मिजिननी पूजा माटे मंदिरमां श्राव्या. पढी त्यां पांचमा देवलोकनो खामी ब्रह्मेद्र कोडो देवोसहित जरते बनावेला ते नेमि प्रजुनां प्रासादमां श्राव्यो. त्यां नेमी प्रभुनी जक्तिथी जासुर थएला चक्रीने जोइने ते ब्रह्मे स्नेही तेने कहेवा लाग्यो के, हे श्री युगादीश प्रजुना पुत्र ! तथा जरतखंडमां भूषण समान ! चक्री अने चरम शरीरी, एवा तमो शाश्वती रीते जयवंता वर्तो ? वली हे चक्री ! जेम श्री कृषनस्वामी प्रथम तीर्थंकर थया ठे, तेम तमोए प्रथम संघपति थइने जिनशासनने दीपा बे. समस्त पृथ्वीने पूरतो एवो तमारो यशरूपी क्षीरसमुद्र पोताri कोलो मोने पण तमारी प्रशंसा करवाने त्वरा करे बे. वली पवन जेम जगतनां उपकारी वरसादने प्रगट करे बे, तेम तमोये या शत्रुंजय तीर्थने प्रकट क बे. वली या रेवताचलपर तमोए जे या नेमिनाथ प्रनुं न मंदिर बंधाव्यं, तेथी तमो मने विशेष करीने माननीक बो. वली गइ उत्सर्पिणीमां सागर नामना तीर्थंकरनां मुखथी ( ते वखतनां ) ब्र पोता संबंधि एम सांजल्युं हतुं के, अवसर्पिणीमां घनारा बावीसमा तीर्थंकर श्री नेमिनाथ प्रजुनां गणधरपदने पामीने तुं मोदे जश्श; ते सांजली हर्षित थ ते बोंडे पोतानां देवलोकमां श्री नेमिनाथ प्रजुनी मूर्ति करावी; अने त्यारथी तेनुं श्रमो पण पूजन करीए बीयें. वली या पर्वत पर श्री नेमिनाथ प्रजुनां त्रण कल्याणको थवानां बे, तेथी कुलपरंपरा श्रमो हीं हमेशां श्राविए बीए. श्रमो सघला जैनी, तथा विशेषे श्री नेमिनाथ प्रजुनां सेवको बीयें; वली तमो अरिहंत प्रजुना पुत्र, तथा चक्री बो, तेथी श्रापना दर्शनथी अमोने मंगल थयुं. एवी रीते चक्री साथै वात करीने, तथा जक्तिथी नेमिनाथजीने नमीने, अने संधनुं पण आराधन करीने ते ब्रह्मेद्र पोताने स्थानके गयो . हवे सौधर्मेंद्र पण जरतनी रजा लेइने, तेनां गुणोने तथा तीर्थने स्मरतो थको पोताने स्थान गयो. एवी रीते अहीं जरत चक्रीए तीर्थनो उद्धार करीने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ शत्रुजय मादात्म्य. तथा पूजीने, अने इंशोत्सवादिक कार्य करीने अत्यंत आनंद मेलव्यो. वली ते वखते चक्रीए याचको प्रते जे दान दीधुं, ते दान तो नवे निधानो विना बीजो को पूरी शके नही. पड़ी एक मासने अंते देवो तथा मनुष्योथी वीटाएला चक्री, पोतानुं मन त्यां मुकीने ते परथी उतर्या. त्यारे शक्तिसिंहे अगाडी आवी, हाथ जोडी नमस्कार करीने विनयथी चक्रीने विनंति करी के, हे स्वामी ! श्राजे आपना था दासनी विनंति अवधारीने था गिरिर्गपूरने पवित्र करो ? एवी रीतनां तेना आग्रहथी चक्रीए नाना प्रकारनां लोकोथी नरेला, तथा छियी स्वर्ग नगरसरखा ते शेहेरमा प्रवेश कयों. त्यां तेमणे जिनमंदिरमा श्री ऋषन प्रजुनी सेवा करी, तथा नत्रिजानी नक्तिथी हा महोत्सव पण कयों. पली बहारना अने अंतरंगनां शत्रुउँने एकी वखते जीतवाने उद्यमी थएला चक्री चतुरंगी सेनाथी वीटाया थका प्रस्थान करवा लाग्या. ते वखते हाथीउँनी गर्जनाथी, घोडानां हेषारवोथी, रथोनां चित्कारोथी, तथा सुनटोनां सिंहनादोथी सघटुं जगत शब्दमय थयु; तथा सैन्यनां जारथी पर्वतो पण कंपवा लाग्या; एवी रीते मार्गे चालतां पण चक्री पाडं वालीने मस्तक धुणावता थका जाणे स्तुति करता होय नहीं तेम ते रैवताचलने जोवा लाग्या, तथा विचारवा लाग्या के, सर्व जगोएथी सुवर्ण, रत्न, तथा रूपामय एवो था पर्वत मेरु, रोहणाजि, तथा वैताढ्यनां सारथीज बनावेलो लागे . वली था पर्वतनां शिखरनां अपनागपर रहेलां कल्पवृदो लोकोने चित दान थापे , वली था देशनुं सुराष्ट्र नाम खरेखर युक्तियुक्त डे, केम के, अहीं शत्रुजय, तथा गिरनार आदिक तीर्थो रहेला ने. वली अहीनां पर्वतो, नदी, वृदो, कुंडो, अने नूमि सर्व तीर्थपणाने पामे बे. वली श्रा सुराष्ट्र देश सघला देशोमां उत्तम देश , तथा शत्रुजय तीर्थ सर्व तीर्थोमां उत्तम तीर्थ . वली उखंड पृथ्वीमां पण, हमेशां सर्व शतुथी शोजतो सौराष्ट्र समान सर्व तीर्थमय कोश पण देश नथी. सुराष्ट्र देशमा रहेनारा जे लोको परदेशमां रदेवानी श्वा करे , ते कल्पवृक्ष बोडीने धत्तुरो खेवानी श्छा करे . वली जे माणसो आ देशमां पण हत्यादिक दोषोथी मुक्त थता नथी, ते अन्य तीर्थोमां पण तपथी केम शुझ थर शके ? श्रा सुराष्ट्र देशमा उकाल के पापोनो संचय होतो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमःसर्गः नथी, खराब बुद्धि, के मोह पण होतो नथी, सघला लोको सरल खजावी होय . एवी रीते कहेता थका, शत्रुजय गिरिनी प्रदक्षिणा देश्ने चक्री केटलेक दिवसे आनंदपुर नगरमां आव्या. त्यां चक्रीए शक्तिसिंहने बोलावी, पासे बेसाड्यो; त्यारे तेणे पण तेमने नमस्कार कयो, त्यारे चक्रीए पण तेनी पीउपर पोतानो हाथ स्थाप्यो; अने तेने कयु के, हे वत्स ! मारी आज्ञाथी तारे अहीं रही, राज्य पालतां थकां बन्ने तीर्थोनी रक्षा करवी. वली पवित्र, तथा तीर्थरूप एवा था सुराष्ट्र देशनोतुं राजा बे, तेथी मारां रत्नोथी पण तुं अधिक धन्य, तथा बीजा राजाउँने पूजवा लायक बे. जे माणस शत्रुजयने सेवे , ते तातनेज सेवे बे, केम के, जे तीर्थ तातेअधिष्ठित करे , ते तीर्थ तात तुल्यज बे. एम कहीने बन्ने तीर्थनी रक्षानी निशानी माटे चक्रीए तेने बे बनो श्राप्यां. पड़ी तेमणे हारादिक भाषणोथी, हाथी, घोडा, रथ, रत्न, अव्य विगेरेथी तेनुं सन्मान करी तेने विसर्जन कर्यो. शक्तिसिंह पण पुण्यानुबंधि पुण्यने उपार्जन करतो थकों, तथा जिननी पूजा करतो थको सुराष्ट्र देशनां लोकोने पालवा लाग्यो. पळी चक्रीए अर्बुदगिरिपर (श्राबुपर) जश्ने गुरुनी श्राझाथी नूत, नविष्य तथा विचरता तीर्थंकरोनां प्रासादो बंधाव्यां. वली चक्रीए सर्व जगोए हर्षथी आवेला पोतानां जत्रिजाउँने अत्यंत दानथी खुशी कर्या. एवी रीते अनवछिन प्रयाणोथी चालता थका चक्री मार्गमा ठेकाणे ठेकाणे सर्व तीर्थोने उत्सव सहित नमता हता. एवी रीतें दीनोनां समूहोनो उधार करता थका, मुनिउँने पूजता थका, तथा तेजेनी आशिष ग्रहण करता थका अनुक्रमे चक्री मगध देशमां श्राव्या. त्यां पण मगधनो पुत्र तथा चक्रीनो नतीजो मागध सर्व कि सहित तेमनी सन्मुख आव्यो. त्यारे चक्रीए पण, सूर्य पोताना रथपर जेम अरुणने, तेम तेने पोतानी पासे हाथीपर चडाव्यो. पली उलसायमान थता मंगलीक शब्दोवाला, तथा उबलती धजावाला, राजगृही नगरमा तेमणे प्रवेश कर्यो, पढी त्यां ते मागध कुमार तरफथी सत्कार तथा जोजनादिक ग्रहण करीने चक्री वैजार पर्वतपर तीर्थयात्रा माटे गया; तथा त्यां पण तेमणे शत्रुजयनी पेठेज नावि तीर्थंकर श्री महावीर प्रजु मंदिर वार्धकी मारफते बंघाव्यु. एवी रीते शत्रुजय, गि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. रनार, सम्मेतशिखर, तथा वैज्ञारपर तीर्थंकरोनां मंदिरो थयां. एवी रीते त्यां पण चक्रीए तीर्थ स्थापीने, पूजा, उत्सव तथा दानादिक पूर्व पेठेज कर्यु. वैजार पर्वतनी यात्रा करनाराउने चक्रीनी, तथा इंशनी लमी दासी थ तेऊनां घरनां श्रांगणामां रहे , तेम तेने मोद सुख पण दूर रहेतुं नथी. वैजार गिरिनुं तीर्थ करज श्रादिक अनर्थोने हरनारु, जवरूपी समुथी तारनारु तथा बहु तीर्थनां फलो देनारं . ए. वी रीते संघपतिने लायकनुं सर्व कार्य करीने चक्रीए मागधेशने विसर्जन को. पठी संघ सहित प्रयाण करता थका चक्री अनुक्रमे केटलेक दिवसे सम्मेतशिखरपर थाव्या. त्यां पण चक्रीनी याज्ञाथी वार्धकीए वीश तीर्थंकरोनां प्रासादो बांध्यां तथा त्यां पण चक्रीए पूर्वनी पेठेज प्रनु अने गणधर विगेरेने पूजीने याचको प्रतेइबित दान आप्यु. सर्व पापोने नाश करनारुं सम्मेर शिखर तीर्थ एकवार पूजवाथी पण मोक्षपद श्रापे बे. त्यां श्राप दिवसो सुधि रहीने पवित्र दिवसे चक्री सेना सहित पोतानी नगरी तरफ जवा लाग्या; एवी रीते केटलेक दिवसे ते अयोध्या नजदीकनां नंदनवन सरखा उद्यानमांथाव्या. पली सूर्ययशा कुमार जरत महाराजने श्रावेला जाणीने वर्षथी वेग सहित त्यां श्राव्यो; तथा चक्रीनां चरणोने तेणे नमस्कार कर्यो, त्यारे चक्रीए पण तेने उगडीने श्रानंदथी थालिंगन कर्यु. पठी त्यां तेमणे केटलाकोने स्मरणथी, तो के. टलाकोने वचनथी, तो केटलाकोने दृष्टिथी एम नगरना लोकोने थानंदित कर्या. हवे नगरमां चंदन अने केसरना पाणीना बंटकावो थया, तथा पुष्पोनां समूहो पथराणा. दरेक घरे फलकूप केलोना स्तंनो खोडाया, तथा कल्पवृदोनां मनोहर पांनोनां तोरणो बंधायां. वली मेहेलोनां शिखरोपर, जाणे पोतानां खामी पासे निधानो श्राव्यां होय नही, तेम सुवर्णनां कलशो शोजता हता. अगासीउपर रहेला चंप्रमंडल सरखा सूर्यकांत मणीनां वारिसाउँथी ते विनीता नगरी जाणे पोतानां खामिने हजारो आंखोथी जोती होय नहीं, तेम शोजती हती. वली ते समये आश्चर्यकारक चंडवा, मांचा, तथा फुवाराउँथी ते विनीता नगरी खर्गपुरी सरखी शोजती हती. पड़ी उत्साहवंत चक्री पूर्वाचल प्रते जेम सूर्य, तेम हस्तीरत्नपर चड्या. ते वखते देहधारी पुण्यना अं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्टःसर्गः कुरा सरखं, तथा पूर्णिमाना चंड सरखं तेमना मस्तकपर बत्र शोजतुं हतुं. वली तेनां मुखरूपी चंनी सेवा माटे जाणे बे चकोरोज प्राप्त थया होय नहीं, तेम तेने वीजातां गंगानां मोजां सरखां बे चामरो शोजतां हता. हवे अगाडी चालता सुनटोथी जय जय शब्द उच्चारण कराते बते, गवैया रागरागणी गाते बते, पाबल कुलस्त्री धवलमंगल गाते बते, पुण्योथी जेमतेम गणधरोथी, संगत थएला, तथा सर्व शोजावाला देवालयनी पाउल चालता चक्रीए संघ, देव, श्रने असुरो सहित नगरीमा प्रवेश कर्यो. पड़ी नगरनां मुख्य चैत्योमा श्री युगादीश प्रजुने नमीने, तथा गुरुजने पण वांदीने चक्री पोताने स्थानके गया. पली देह प्रते जेम श्रात्मा, वादलांप्रते जेम चंड, मेघप्रते जेम पाणी, खर्गप्रते जेम इंस, दिवसप्रते जेम सूर्य, देवालय प्रते जेम देव, पुष्पप्रते जेम सुगंधि, तथा कुलीनप्रते जेम सगुणो तेम चक्री उत्सवयुक्त मेहेलमां दाखल थया. पनी यदो, राजा, विद्याधरो, तथा शेठ शाहुकार श्रादिको, मेहेलमा रहेला चंद्रकांत मणिनां किरणोथी स्फुरायमान मुखरूपी चंजनी कलावाला तथा हारमा रहेला मोती रूपी ताराउँवाला ते चकीने हर्षथी पोतानां कल्याण माटे, देवोनां समूहो जेम इंजने तेम ह. मेशां नमस्कार करवा लाग्या. एवी रीते श्राचार्य महाराज श्री धनेश्वर सूरिजीए बनावेला महा तीर्थ श्री शत्रुजयनां महात्म्यमां श्री जरत चक्रीनी तीर्थयात्रा, तथा तीर्थोझारनां वर्णननो पांचमो सर्ग समाप्त थयो. श्रीरस्तु. षष्टः सर्गः प्रारभ्यते. अनंत, अप्रकट मूर्तिवाला, जगतनां सकल विद्यमान, जावी, तथा चूत अर्थोथी मुकाएला, सर्वज्ञ, सर्व जोनारा, सघला लोकोथी नमाएला, साधुऊनां समूहोथी स्तुति कराएला, अक्षय, कर्मोथी रहित,वचन मार्गने उलंगीने मोक्षमा रहेनारा, तथा पुण्यथी मली शके एवा श्री युगादीश प्रजु तमोने हमेशां मंगल आपो? ___ श्री वीरप्रजु इंजने कहे जे के, हे इं! कोंने अमृत सर, तथा मोक्ष प्राप्त करावनारुं तेज चक्रीनुं हजु तुं चरित्र सांजल ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. हवे ते मायालु चक्रीए सोमयशा श्रादिक पुण्यशालीउने देश श्रादिकोनुं दान देश्ने केटलीक मेहेनते विसर्जन कर्या. पनी तेमणे सघला संघनां लोकोने नोजन श्राबादन आदिकथी सन्मान आपीने, सघली पृथ्वी पीताने वश करी. हवे जगवान पण विहार करता थका श्रष्टापदप्रते आवीने समोसर्या; ते वात उद्यानपालक पासेथी सांजलीने चक्री तेमने वांदवा माटे त्यां श्राव्या. ते वखते प्रजुनां मुखथी दान- मोटुं फल सांजलीने, चक्रीए कह्यु के, हे जगवन् ! था साधु माझं दान ग्रहण करे तो ठीक, त्यारे प्रजुए कह्यु के, हे राजन् ! निरवद्य राजपिंड पण मुनिने लेवो कल्पे नहीं. त्यारे फरीने चक्रीए पुज्युं के, हे स्वामी ! महान सुपात्र तो था मुनि , अने तेने तो मारुं दान करपे नहीं, माटे शें करवू ? त्यारे इंजे तेमने कयु के, हे चक्री ! था उत्तरगुणोने धरनारा साधर्मीकोने तुं दान दे ? एवी रीतनुं वचन प्रजुए प्रतिषेध्युं नहीं, तेथी ते चक्री अयोध्यामां श्रावी हमेशां नक्तिथी साधर्मीकोने जमाडवा लाग्या. पली लोको मुग्ध हो. वाथी ते नोजनशालामा संख्याबंध श्राववा लाग्या, त्यारे रसोश्याए राजाने जश् कह्यु के, हे खामी ! था समुदायमा श्रमोने श्रावक अश्रावकनी उलखाण रहेती नथी. ते सांजली चक्रीए काकिणी रत्नथी श्राव. कोना कंठमां त्रण रत्नोनी एंधाणीरूप त्रण रेखा करी; तथा ते ने चकीए कह्यु के, तमारे प्रजातमां मारा मेहेलनां द्वारपासे कहे, के, "त. मो जीताएला डो, जय , माटे हणो नहीं, हणो नहीं" एवी रीते तमारे हमेशां बोलवू. हवे तेजेनां ते वचनो सांजलीने चक्री हमेशां आनंद पामता हता, तथा ते त्रण रेखाउँवाला श्रावको "माहन" नामश्री पृथ्वीमां उलखावा लाग्या. पळी चक्रीए तेउने अरिहंत, मुनि,श्रावक अने धर्मनां गुणोनां स्वरूपवाला चार वेदो नणाव्या. एवी रीते प्रजुश्री जेम धर्मनी प्रवृत्ति थर, तेम चक्रीथी साधर्मीवात्सल्यनी प्रवृत्ति थ. हवे श्रीषजदेव प्रजुये पृथ्वीपर विहार करतां थकां नीचे प्रमाणे चतुर्विध संघनी स्थापना करी. प्रजुनां परिवारमा एक लाख पञ्चाशी हजारने सो पञ्चास मुनि, त्रण लाख साधवी, तथा शुछ समकीती त्रण लाखने पञ्चास हजार श्रावको हता; तथा पांच लाखने साडा चार हजार श्राविक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्टःसर्गः २ए का हती; एवी रीते त्रण लाख पूर्व दीदा पालीने प्रजु पोतानो मोदकाल जाणीने श्रष्टापद पर्वत प्रते श्राव्या. त्यां शुद्ध प्रदेशमा प्रजुए दश हजार मुनिउनी साथे अनशन लीधुं. ते वखते उद्यानपालके, कंठ रंधाश् जवाथी अप्रकट शब्दथी ते व्रतांत जरतजीने श्रावीने कह्यो; ते सांजली पुःखित थएला चक्री परिवार विनांज पगे चालीने त्यां जवा लाग्या, पाउल श्रावताउँने दूर मूकता, अश्रुउने करता, कांटा थादिकथी पण पुःख नही गणकारता, स्त्री सहित शोकातुर थया थका ते तुरत अष्टापदपर चड्या. त्यां सर्व इंजिउनां आश्रवोने रोकीने पर्यंकासने बेठेला, प्रजुने जोश चक्रीए अश्रुजलथी नीजातां थकां तेमने नमस्कार कयों. ते वखते श्रासनो चलवाथी सघला इंसोए त्यां श्रावी प्रदक्षिणा देश शोकातुर थश्ने प्रजुने नमस्कार कर्यो. आ श्रवसर्पिणीनां सुखम पुःखम श्रारानां नेव्यासी पखवाडीयां बाकी रह्यां त्यारे, महावदी तेरसने दिवहे, पहेले पहोरे, चंड थनिचित नक्षत्रमा श्रावते बते, पर्यकासनपर रहेला, स्थूल मन, वचन अने कायानां योगथी मुकाएला, सूक्ष्म कायनां योगथी बादर योगने रंधीने, प्रज्जु सूक्ष्म क्रिय नामनां त्रीजा शुक्ल ध्यानपर चड्या. पठी सूक्ष्म कायनां योगपर तथा पनी उबिन्नक्रिय नामनां चोथा शुक्त ध्यानपर चडीने प्रजु मोदे गया. वली ते ध्यानांतरमां रहेला बाहुबलि श्रादिक मुनि पण प्रजुनी पेठेज क्षणवारमा मोक्ष पाम्या. ते वखते नारकीने पण सुख थयु, तथा त्रणे जगतमा उद्योत थयो.अने एवी रीते प्रजुनुं निर्वाण कल्याणक थयु. एवीरीते प्रजुनो मोद जोश, अत्यंत पुःखित थ चक्री मूर्ना खाइपृथ्वीपर पड्या. पड़ी ते श्राक्रंद करवा लाग्या के, त्रणे जगतनां त्राणनूत प्रजु, बाहुबलि श्रादिक जाज, ब्राह्मीसुंदरी बेहेनो; पुंडरीक श्रादिक पुत्रो, तथा श्रेयांस आदिक नतिजा पण कर्मक्षय करीने मोदे गया, अने हुँ हजु जीवितने प्रिय करीने बेठेलो !! एवी रीते थाक्रंद करता चक्रीने जोर शोकथी इंस पण रुदन करवा लाग्या; ते जो बीजा देवो, अने तेमने जोश चक्री पण रुदन करवा लाग्या. अने ते दिवसथी शोकरुपी गांठने दूर करनारो तथा नेत्रनुं शोधन करनारो रुदननो व्यवहार चालु थयो. पनी छे च. क्रीने कयु के, हे चक्री ! तमो त्रण जगतनां खामीनां पुत्र थश्ने, शो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० शत्रुजय माहात्म्य. कथी प्रेराया थका धैर्य बोडीने बालकनी पेठे केम रडोडो ? जे प्रनु जगतनां श्राधारनूत, जगतनी स्थिति करनारा, तथा जगतथी नमवा लायक हता, ते प्रजुनो शामाटे शोक करवो जोए ? अन्य कार्यो विनाना, बंधन कर्मरहित, एवा मुमुकुठुनो तो था अक्षीण महोत्सव . हर्ष अने शोक खार्थनो नाश करनारा, तथा पातकरुप , माटे तेने तजीने फरीने तमो धैर्य धारण करो? एवी रीते चक्रीने शांत करीने छ देवो मारफते गोशीर्ष चंदन विगेरे मगाव्यु. पनी त्यां देवोए प्रजुमाटे ऐंडी दिशामां गोल चित्ता बनावी, तथा बीजा इक्ष्वाकुनी दक्षिण दिशामां त्रिखुणी अने बीजानी चोखुणी चित्ता बनावी. पड़ी इक्ष्वाकुर्डनां तथा बीजा मुनिउँनां शरीरो देवोए शिविकामां पधराव्या. पडी वाजित्रो वागते बते, पुष्पो फेंकाते बते, तथा नृत्य अने गायन होते बते तेए ते शरीरो चित्ताउँमां पधराव्यां. पनी अग्नि अने वायु कुमारोए ते चित्ताउने सलगावी; तथा अस्थिशेष रह्यां, त्यारे मेघकुमारोए ते गरी नांखी. पली प्रजुनां अने बीजा मुनिनां पण दांत, अस्थि विगेरे सर्व देवोए पोत. पोतानी सनामां पूजवा माटे यथायोग्य ग्रहण काँ. पली त्यां केटलाक श्रावकोए ते अग्नि मागवाथी देवोए ते त्रणे कुंडनो अग्नि ते ने दीधो, श्रने त्यारथी ते अग्निहोत्री ब्राह्मणो कहेवावा लाग्या. केटलाक माणसोए नक्तिथी तेनी राखने लेश नमस्कार कर्यो, अने तेथी ते नजुति चोलनारा तापसो थया. पडी ते देवो प्रजुने हृदयमां स्मरता थका पोताने स्थानके गया, तथा विनोनी शांतिमाटे ते प्रजुना अस्थिउने पू. जवा लाग्या. पनी चक्रीए प्रजुना अग्निदाहनी जगोए वार्धकी मारफते प्रजुनो प्रासाद कराव्यो. ते प्रासाद गाज ऊंचो, एक योजननां विस्तारवालो, अने तोरणसहित चार छारोवालो हतो. तेनी आगल वर्गमंडप सरखा मंडपो हता, तथा तेनी अंदर पीलिका, देवबंद, अने वेदिका पण हती. त्यां उत्तम पिठिकावाली, श्राप प्रतिहारोसहित, चौमुखी कमलना श्रासनपर बेठेली रत्नमय शाश्वती प्रतिमा हती. वली त्यां पोतपोतानां परिमाण तथा चिन्होवाली मणि अने रत्नोनी बनावेली चो. वीसे तीर्थंकरोनी प्रतिमा शोजती हती. वली ते प्रत्येकपर त्रण बत्रो चामरो अने ध्वजो शोजतो हता, तथा तेनां अधिष्टायक यक्षो पण त्यां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्टःसर्गः शश हता. वली तेउनी श्रासपास कल्पवृदो, तलावो, वावो, मगे विगेरे हता. वली चैत्योनी बहार प्रजुनो एक महोटो स्थुन तेमणे कराव्यो, तथा बीजा जाऊनो पण मणिऊनो स्थुज बनाव्यो. त्यां पुर्नेद्य राक्षस सरखा लोखंडना पुरुषो शोजता हता, तथा जरतनी श्राशाथी तेनां श्रधिष्टायक देवो पण थया. एवी रीते चक्रीए “सिंह निषिक” नामर्नु मंदिर विधिपूर्वक बनावीने, मुनि मारफते तेनी प्रतिष्ठा पण करावी. पड़ी पवित्र थश, श्वेत वस्त्रो पहेरी चक्रीए नैषेधिकी करीने, त्यां जश त्रण प्रदक्षिणा दीधी. पडी पवित्र जलोथी चक्रीए प्रतिमाउने स्नान करावी, कोमल वस्त्रधी प्रमार्जन कर्यु, पड़ी यशथी जेम पृथ्वीने तेम चक्रीए चांदनीनां समूहसरखा चंदनथी तेपर लेपन कयु; तथा पळी तेमणे सुगंधि पुष्पोथी लेपन करीने, जाणे कस्तूरीनी वबरी करता होय नहीं, तेम तेमणे धूप को. पनी जरा पाग हठीने तेणे मणिपीठपर शुभ तंफुलोथी अष्ट मंगलो आलेख्यां, तथा फलो मूक्यां. पली सर्व बाजुथी जाणे संघनां (अज्ञानरुपी) अंधकारने हरता होय नहीं, तेम तेमणे मंगलदीपकसहित श्रारति करी. पनी हर्षाश्रुसहित उलसायमान जावधी स्तुति करवा लाग्या के, हे त्रण जगतना थाधारनूत स्वामी! श्राप था त्रणे जगतने तजीने जो के गया गे,तो पण ते त्रणे जगत थापनेज चित्तमां ध्यावे .वली आपनां ध्यानरुपी रज्जुनां श्रालंबनथी मारा सरखा दूर रहेनारा पण श्रापनी पासेज , माटे श्राप प्रथमश्री केम चाख्या गया? वली हे प्रज्जु ! आप जेम अमो निराधारोने तजीने गया डो, तेम हवे अमारां चित्तमांथी जशो नहीं. एवी रीते प्रजुनी स्तुति करीने, तथा बीजाउँने पण नक्तिश्री नमीने, चक्रीए विचार्यु के, श्रा पडता कालनां अटप सत्ववाला लोकोथी या प्रासादनी श्रासातना न थाय तो सारु, एम विचारि तेमणे पर्वतनी मेखला तोडीने दंड रत्नथी योजनयोजनने अंतरे श्राउ पावडी करी, अने तेथी ते पर्वत " अष्टापद" नां नामथी प्रसिक थयो. पडी चक्री मनने ते पर्वतपर बोडीने फुःख पामता थका नीचे उतर्या. पनी पृथ्वीनां लोकोने दिलगिर करता थका चक्री विनीता नगरीमां श्राव्या. त्यां तेमने, गीत, नाटक, कवितारस, मनोहर स्त्री, वावो, नंदनवन, चंदन, मनोहर हार, नोजन, जल, आसन, शयन तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श@जय मादात्म्य. पान विगेरेमा चेन पड्यं नहीं; पण फक्त तेमनुं ध्यान प्रजुमांज लाग्यु, त्यारे मंत्री तेमने समजाववा लाग्या के, हे खामी! जेमने मेरंउपरे देवोए स्नान कराव्यु, जे इक्ष्वाकुवंशमां थया, जेणे राजानो आचार दे. खाड्यो, तथा जेनाप्रते प्रजा संतुष्ट थर, जेनाथी धर्म प्रगट थयो, जेमनुं उज्ज्वल चारित्र हतुं, तथा जे केवलज्ञानना धणी हता, एवा प्रजुप्रते शामाटे थापे शोक करवो जोए ? वली ते प्रनु स्तुति करवा लायक डे, माटे तेमनी नक्तिथी सेवा करो? तथा तेमां चित्त जोडो? वली ते मोक्षमा पधार्या , माटे ते प्रते मोह करो नहीं ? ते सांजली केटलाक प्रयत्ने चक्रीए ते नयंकर शोकने तजीने पोतानुं चित्त राजकार्यमा जोड्यु. पड़ी ते को वखते मेहेलमां, तो कोई वखते सनामां, एवी रीते क्रीडा करता थका आनंद पामवा लाग्या; वली ते को वखते स्त्रीसहित वनहस्तीनी पेठे वनमां जलक्रीडा करता, तथा त्यां तलावमां जलक्रीडा करी आनंद पामता; वली को वखते मनोहर स्त्री साथे हींचोलेथी पण रमवा लाग्या, तथा पोतानां शरीरपर नूषणो पण पहेरवा लाग्या. वली को वखते सर्व अंगे पुष्पोनी मालासहित वनमां कामदेव सरखा शोजता हता. तेम को वखते घोडा तथा रथ श्रादिकनी क्रीडा करता. वली को वखते संगीतमां, काव्यरसमां, तथा नाटकमां मग्न थया थका सर्व रसनां श्राश्रयवाला ते थता. वली को वखते ते स्त्री साथे क्रीडा करता थका काम उपजावता हता. एवी रीते अनंत रसमां मन थया थका, पुण्ययुक्त सुखथी काल निर्गमन करवा लाग्या. __ हवे एक दहाडो स्नान करीने, सर्व अंगपर श्रानूषणो पहेरीने ते श्रारिसाजुवनमां गया. त्यां रत्नना था रिसामा क्रीडाथी पोतानुं रुप जोवा लाग्या. एवी रीते जोतां थकां पोतानी एक अंगुली तेमणे हिमयी दग्ध थएला चंनी पेठे वींटीरहित जोश, त्यारे विचारवा लाग्या के, जेम वींटीथी मारी आंगलीमां कृत्रिम शोजा हती, तेम मस्तक आदिकपर पण नूषणोथीज शोना बे. पडी तेमणे मस्तकपरथी मुकुटने, कानमांथी कुंडलोने, कंठमांथी कंगने, हृदयपरथी हारने, तथा बन्ने हाथोथी बाजुबंधने दूर कर्या; तेमज वली वीरवलयो, तथा वींटी पण कहाडी नाखी. तथा शांत मनथी वैराग्यने जजवा लाग्या, पनी फागण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३ षष्टःसर्गः मासमां फलफुलविनानां थएलां वृदनी पेठे पोतानां शरीरने श्रानूषणोरहित जोश्ने ते मनमां विचारवा लाग्या के, श्रा असार कायारुपी जीत थाजूषणोरूपी रंगथी उपरथी चित्रेली बे, पण अनित्यतारुपी पाणीथी जीजाश्ने ते पडी जाय तेवी . वली रोगरुपी पवनथी चलायमान थतां पाका पांदडांनी पेठे पतनखजाववाला था शरीरनो मोह प्राणी तजी शकता नथी. वली शरीरने शोजावनारी था चांबडीपर चंदन श्रादिकनुं खेपन कराय, तो पण ते पोतानुं गंदापणुं तो बोडती नथी. वली जे श्रा शरीरने माटे लोको अकार्योमां रक्त थश्ने पण पापो बांधे , ते शरीर तो कमलनीनां पत्र पर रहेला जलबिंडुनी पेठे चपल खजाववालुं बे. वली पुगंधवाली, तथा श्रृंगाररसथी गंदी थएली आ संसाररुपी खालमां डुकरो जेम खाबोचीयामां तेम प्राणी निमज्जन कर्या करे . वली में साठ हजार वर्षोंसुधि पृथ्वीपर जमीनमीने पण आ शरीरमाटे अकार्यों काँ, माटे मने धिक्कार !! वली धन्य , ते बाहुबलि श्रादिक अन्य बांधवोने, के जेए था असार संसार तजीने मोक्ष मेलव्यो बे. वली जे संसारमा राज्य, यौवन तथा लक्ष्मी चपल , तेवा श्रा संसारमा स्थिर शुं कहेवाय ? वली श्रा संसाररुपी कुवामां पडता प्राणीने माता, पिता, स्त्री, बांधवो, पुत्र, संपदा विगेरे को पण रक्षण करवाने समर्थ नथी. माटे हे जगतनुं रक्षण करनारा तात ! जेम बीजा पुत्रोने आपे तार्या, तेम मने पण तारो ? वली तेमणे विचार्यु के, हवे ते उपालंनथी सयु. केम के हं कुपुत्र होवाथी तेए मारुं स्मरण कयु नथी. हुं नथी, मारे लक्ष्मी, शरीर, घर, तथा स्त्री विगेरे कंश नथी, आनंदरूपी अमृतसमुज्मा नावावालो हुँ एकज बु. एवी रीते उपाधिरहित शांत, तथा चिदानंदमय परमतत्वमां ते लीन थया. (रौप्रध्यानश्री, असत्यथी, परखोहथी, तथा कुकर्मथी जे उग्र पाप बांध्यु होय,ते नावनाथी शांत थाय .) पळी ते नरत योगीराजे देहरुपी मूषमा ध्यानरुपी अग्निथी मोद माटे (सुवर्णमाटे) मनरुपी पाराने स्थिर को. एवी रीते दपकश्रेणिपर चडीने, उपशम क्रमना योगथी, जरतयोगीराज केवलज्ञान पाम्या. पनी ईजना हुकमथी देवोए तेमने साधुनो वेष थाप्यो, तथा चक्रीए पण सर्व विरतिरुप सामायिक अंगीकार कर्यु. ते वखते त्यां तेमनी साये दश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. हजार राजाए पण दीक्षा लीधी; अहो! आवा स्वामीनी सेवा परलोकमां पण सुखकारी निवडे !! पढ़ी बीजाने नहीं वांदता एवा ते चक्री देव, असुर तथा माणसोथी वंदावा लाग्या. हवे अहीं इंजे पृथ्वीनां नारमाटे सूर्ययशानो राज्याभिषेक कर्यो. हवे जरतमुनिराजे केवलज्ञानथी मांडीने लाख पूर्वसुधि पृथ्वीपर परिवार सहित ग्राम, नगर विगेरेमां विहार करीने युगादीश प्रजुनी पेठेज धर्म देशनाथी जव्य लोकोने उपदेश कर्यो, पढी श्रष्टापदपर जश् तेमणे विधिपूर्वक चतुर्विध थाहारना पच्चखाण कां. ते वखते इंजोए प्रजुनी पेठेज प्रजुना ते पुत्रनो निर्वाण महोत्सव कों, तथा त्यां मंदिरो पण बंधाव्या. पड़ी एक मासने अंते चंछ श्रवण नक्षत्रमा श्रावते बते, अनंत चतुष्टयसहित ते मोदे गया; तथा अनुक्रमे बीजा साधुजे पण त्यां मोदे गया. जरत महाराजे सीतोतेर लाख पूर्व कुमार अवस्थामां गाल्यां, तथा एक हजार वर्षसुधी मंडलीकपणे रह्या; उ लाख पूर्वमा एक हजार वर्ष उबां चक्रवर्तीपणामां रह्या; तथा एक लाख पर्व केवलज्ञानी रह्या. एवी रीते चोरासी लाख पूर्वनुं आयुष्य पुरुं करी ते मोदे गया. उत्तम नाववालो माणस अष्टापद उपरें आठे कर्मोनो नाश करी मोद पामे बे. श्राप प्रतिहार्यवाला प्राजुनी अष्टापदपर पूजा करवाथी आठे कमोनो नाश थाय बे. ___ हवे शोकातुर थएला सूर्ययशाए त्यां श्रावीने, जरतजीनो निर्वाण महोत्सव तथा प्रासादो कराव्यां. पली मंत्रीए न्यायनां वचनोथी समजाव्या बाद शोक मुकीने सूर्ययशा राज्यनुं कार्य करवा लाग्या. पडी ते सूर्ययशा प्रतापथी शत्रुउँने जीतीने, पोताना चंछ सरखा उज्ज्वल यशथी पृथ्वीप्रते उदय करवा लाग्या. ते त्रण खंडनां स्वामी थया थका नीतिपूर्वक पोतानां श्रखंड शासनश्री पुष्टोनो नाश करवा लाग्या. श्राकाशमां सूर्य अने चंड बन्नेनो जेवो प्रताप हतो, तेवोज एक था सूर्ययशानो पृथ्वीपर प्रताप हतो, राज्यसमये इंजे दीधेलो प्रजुनो मुकुट सूर्ययशा पहेरता हता, तेनो प्रताप शत्रुऊना मेहेलोमां जर तेनां यशरुपी पाणीने सूकावतो हतो. राधावेधथी प्राप्त थएली, कनकविद्याधरनी पुत्री, तथा सघली स्त्रीउमां मुकुट समान तेमनी जयश्री नामनी राणी हती. वली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्टःसर्गः तेमने बीजी विद्याधरोअने राजानी पुत्रीरुप बत्रीस हजार पवित्र राणी हती. ते चतुःपर्वीमां अने विशेषे करी बापम अने चौदसे पौषधप्रत्याख्यान थादिक तप करता. ते पर्वो तेमने जीवित सरखां प्यारां हतां, अने तेथी तेनी ते जीवनी पेठे रक्षा करता. जैनधर्म धारण करनारा बालक थने स्त्री तथा वनना पशुढ पण ते दिवसे थाहार करतां नथी. __ हवे एक दहाडो सौधर्मा सनामां बेठेला इंऽ ज्ञानथी ते सूर्ययशानी धर्मपरनी दृढता जो आश्चर्य पाम्या; अने मस्तक धुणाव्यु, ते वखते जगतने वश करवामां प्रथम औषधरूप उर्वसी नामनी अप्सरा शंसने मस्तक धुणावता जोश कहेवा लागी के, हे खामी ! था वखते को कवि काव्यो बोलता नथी, तेम को गुरु मनोहर पदो पण बोलता नथी, तेम जरते कहेलु नाटिक पण रंजा करती नथी, तेम बीजा हाहा हुहु थादिक गांधर्वो पण गायनो करता नथी, तेम बीजुं पण हपने उत्पन्न करनाऊं आ समये अत्रे कंज्ञ पण कारण नथी, त्यारे श्रापे श्रानंदथी मस्तक केम धुणाव्यु ? त्यारे इंज कहेवा लाग्या के, हे उर्वशी! हमणा में पृथ्वीपर शाननो उपयोग दीधो, तो मने मालुम पड्यु के,श्रा समये श्री युगादीश प्रजुना पौत्र, अने जरत चक्रीना पुत्र, महा पराक्रमी सूर्ययशा अयोध्या नगरीमां राज्य चलावे . ते अष्टमी श्रने चतुर्दशी पर्वने दिवसे जे तप करे , ते तपथी तेने देवो पण चलावी शके तेम नथी. कदाच सूर्य पूर्व दिशा तजीने पश्चिममां उगे, अथवा पवनथी मेरु कंपायमान थाय, अथवा समुष मर्यादा मुके, अथवा कपवृक्ष निष्फल थाय, तो पण पोताना प्राण जतां सुधी पण ते जिननी थाझाने अने तेपरनां पोतानां निश्चयने तजे तेम नथी. ते सांजली पोतानां खामिने प्रत्युत्तर देवाने अशक्त होवाथी, मनमां जरा हसीने विचारवा लागी के, अहो ! था खामीपणुं केवु ? के था इंऽ मनुष्यमां पण थाईं निश्चयपणुं कहे . सात धातुऊनां शरीरवालो, अन्नपर श्राजिविका चलावनारो एवो मनुष्य देवधी पण चलायमान न थाय, तेवी वातनी श्रद्धा पण कोने थाय ? वली मारा गायन रूपी रसथी कया मापसना विवेक श्रादिक गुणो रजना कणीश्राऊनी पेठे दबाजतां नथी? माटे हवे पर्वतपरथी नदी जेम खडकने तेम ते सूर्ययशाने व्रतथी च Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ शत्रुजय माहात्म्य. लावीने ढुं मारा स्वामिना था साहसिक वचनने जुलु करी थापीश. एवी प्रतिज्ञा करीने ते उर्वसी, रंजा सहित हाथमां वीणा वेश्ने पृथ्वीपर श्रावी. पड़ी अयोध्यानी नजदीकनां बगीचामा रहेला श्री युगादीश प्र. जुना मंदीरमां श्रावीने, मोहनीय रूप करीने ते गायन करवा लागी. ते गायनथी मूर्छित थएला वृक्षपरनां पदिउँ पण कण वार सुधि पो. ताना थात्माने पण जाणवा न लाग्या. वली ते वखते चंदनघो, सर्प, नो. लीयां विगेरे पण पोताना बिलोमांथी निकलीने चित्रितनी पेठे निश्चल थ रह्या. वली ते समये मुखमां अर्ध चावेलां घांसवाला हरिणो पण, ते गायनथी मोहित थश्ने पुतलांनी पेठे स्थिर रह्या. हवे त्यां क्रीडा माटे रस्तेथी पाग वलतां सूर्ययशाए ते गायन सांजल्यु. ते वखते हाथी, घोडा, पाला विगेरे पण ते गायनमां आसक्त थ स्थिर थर गया. एवी रीते पोतानां लश्करने पोतानां कार्यमां पण असमर्थ जोश्ने राजा मंत्रिने कहेवा लाग्या के, अहो ! मोहरूपी समुपनी वेलाथी अटका गएला थापणा सैनीकोनी पेठे पदिउँ पण निश्चल यश् गयां बे, तेम बालको, स्त्री, बिलवासी, हरिणो तथा वृदो विगेरे पण मुर्छित थश्ने निश्चल थर गयां बे. माटे गायन, सुखना आधाररूप, तथा दुःखोने नाश करनारंबे, तेम जेनी पासे गायन , ते पवित्र थयो थको जगतथी पण पूजाय . जे हरिण प्राणने साटे पण गायनने अंगीकार करे बे, ते मृगने चं पण पोतानां खोलामां लीधेलो . गायनथी देवो संतुष्ट थाय , धर्म थाय , राजा पासेथी धन मले , तथा स्त्री पण वश थाय . गुरुनां योगथी प्राप्त थएवँ गायन क्रीडामात्रमांज परमा. नंद सुख श्रापे . माटे हवे आपणे या मंदिरमा जश् श्री युगादीश प्र. जुने नमीयें, अने त्यां था गायननो रस पण मेलवीशु. एम कहीने रा. जा,मंत्री तथा सैनिको सहित, ते गायनथी मोहित थया थका ते जिनमंदिरमा गया. त्यां तेमणे मनोहर कांतिवाली, तथा गायनरूपी अमृतनी नदी सरखी, अने हाथमां वीणावाली बे कुमारिकार्डने जोइ. कामदेवनी स्त्री सरखी, ते बन्ने कन्याउँने जोश, कामना बाणथी वींधाया थका राजा मनमां चिंतववा लाग्या के, शुं था स्त्रीउँनां कंठरूपी अमृ. तनां कुंडमांधी गायननी उत्पत्ति थ ? के विश्वकर्माए गायनरूपी श्र For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्टःसर्गः २२७ मृतथी श्राने बनावी ? थावा निरुपम रूप तथा गायनवाली था कन्याउँने जोगवनार कोण पुण्यशाली थशे ? एम विचारि वारंवार ते तरफ दृष्टि करीने राजाए शछित देनारा प्रजुनां चरणोने नमस्कार कयो. पनी राजाए बहार फरुखामां बेसीने मंत्रीने तेनां कुलादिक जापवाने श्राज्ञा श्रापी. पठी राजानी आज्ञाथी मंत्री तेमनी पासे श्रावीने अमृत सरखी वाणीथी कहेवा लाग्यो के, हे स्त्री ! तमो था त्रणे लोकोमांथी कोण बो ? तमारो खामी कोण जे ? तथा तमो श्रहीं शा माटे श्रावी डो? ते सघलु कहो ? त्यारे तेठमांथी एक कड़वा लागी के, अमो बन्ने मणिचूड विद्याधरोनी दीकरी बीए. वली श्रमो बालपणाथीज श्रा कलाना अन्यासमां बीए. अमो यौवनवंती थर्ज, त्यारे "श्रमोने कोने थापवी?" एवी अमारा पिताने चिंता थ. पण अमारा योग्य पति नहीं मलवाथी अमो जगो जगोए अरिहंत प्रजुनां चैत्योने नमीए बीए; केम के श्रा मनुष्य जन्म फरीने क्यां मलवानो डे ? वली जिनचरणोथी पवित्र थएलीश्रा अयोध्या नगरी पण तीर्थरूप , तेथी या नररतेश्वरे बनावेला चैत्यमां श्रमो श्री युगादीश प्रजुने नमीए बीए. त्यारे मंत्रीए कह्यु के श्रा सूर्ययशा साथे मने तमारो संगम उत्कृष्ट लागे . ते श्री युगादीश प्रजुना पौत्र, जरत चक्रीनां पुत्र, तथा महा कलावान, शांत, गुणी अने बलवान . वली खरेखर तमारापर श्री युगादीश प्रजु सुष्टमान थया ने, केम के, तमोने तुरत था सूर्ययशा सरखा स्वामी मव्या. जेम चंऽथी ज्योत्स्ना तथा रात्री शोने , तेम तमो पण था सूर्ययशाथी शोजशो. ते सांजली तेए कह्यु के, अमो खाधिन पति शिवाय बीजाने वरशुं नहीं. पडी ते वात राजाए पण कबुल करवायी त्यां युगादीश प्रजुनी समाज तेमनो विवाह महोत्सव थयो. पड़ी तेजेना प्रीतिरसमां खेंचाएला राजा संसारने सारजूत मानवा लाग्या; एवी रीते धर्म, अने अर्थने बाधा करता थका, ते फक्त एक कामपुरुषार्थनेज साधवा लाग्या. एक दहाडो बन्ने संध्याउँथी जेम दिवस, तेम ते सूर्ययशा ते बन्ने स्त्री सहित फरुखामां गया. ते वखते नगरमां एवो पटह वागतो संजलायो के, " हे लोको ! अष्टमीनू पर्व श्राव्युं बे, माटे सावध थजो ? ते उद्घोषणा पेली कपटस्त्रीए पण सांजली. त्यारे रंजा जाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्शन शत्रुजयमाहात्म्य. तेनुं कारण नज जाणती होय नहीं, तेम अवसर जाणीने राजाने पुढवा लागी के, आशुं ? त्यारे राजाए कडं के, तातजीए अष्टमी श्रने चतुर्दशी बन्ने मोटां पर्वो कहेला . तेम बे श्रहार पर्वो, त्रण चतुर्मासी पर्वो, तथा एक वर्षनां पापोने नाश करनालं, प!षणा पर्व कहेडं डे; वली पंचमीने दिवसे ज्ञानरूपी प्रथम रत्ननुं आराधन कराय . ते सघलां पर्वो जिननी आज्ञाथी महा प्रजाववालां, तथा पुण्यनां कारणो . जो अष्टमी तथा पाखीनी विराधना न करवामां आवे, तो हमेश करातुं पुण्य मोक्षसुख आपे . वली हे प्रिये ! जीवो जे शुजाशुज कर्मो बांधे , अने तेथी पूर्वनवनुं जे आयुष्य बंधाय बे, ते प्रायें पर्वने दिवसे बंधाय बे. पवने दिवसे स्नान, स्त्रीसेवन, क्लेश, जुगार, हास्य, मात्सर्य, क्रोधादि कपायो, प्रियोने विषे ममता, क्रीडा तथा प्रमाद सेववो नहीं; ते दिवसे तो परमेष्टीनुं स्मरण करी त्रिविधं त्रिविधं शुज ध्यानमा रहे. पर्वने दिवसे सामायिक, पौषध, तथा बळ, अधम प्रमुख तप अने जिननी पूजा करीने, प्राणी उत्तम संयमी थाय . वली ते दिवसे गुरुनां चरण समी परमेष्टीनी स्तुतिनुं स्मरण करतो थको, प्राणी निबिड थावे कर्मोनो नाश करीने पुण्य उपार्जन करे . वली हे स्त्री ! मारी थाहाथी तेरस तथा सातेमने दिवसे लोकोने चेताववामाटे श्रावी रीतनी पटहोद्घोषणा थाय . वली ते चतुर्दशी, तथा अष्टमी पर्व त्रणे लोकमां उर्लन , माटे तेनुं श्राराधन जे जिननक्तिथी करे , ते मोदें जाय . ते सांजली प्रपंचमां चतुर एवी उर्वशी कपटथी कहेवा लागी के, हे नाथ ! तपनां क्लेशादिकथी, तमो था मनुष्यपणाने, रुपने, तथा अखंड राज्यने शा माटे विडं. बना पमाडो बो ? माटे जेम पाउलथी पश्चाताप न थाय तेम, इडित सुख जोगवो ? फरी फरीने श्रा मनुष्य जव, राज्य, तथा श्रावा नोगो क्या म. लवाना ने ? ते सांजली कानमां उकालेबुं सीसुं जेम पडे, तेम अंतःकरणमां दागीने राजाए कह्यु के, अरे ! अधम ! तथा धर्म निंदाथी मलीन स्त्री! श्रा तारी वाणी विद्याधरनां कुलने बिलकुल उचित नथी. वली जेथी आ जिनपूजा तथा तप आदिक अंगीकार करातुं नथी, एवा था तारा रूप, कुल, तथा डाहापणने पण धिक्कार !! वली आ मनुष्यपणुं, रूप, श्रारोग्यता तथा राज्य विगेरे तपथीज मले , माटे कुलीन अने कृतज्ञ माण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्टःसर्गः शशए स तेनुंज आराधन करे . वली धर्माराधनथी शरीरने विडंबना थती नथी, पण धर्म विना केवल विषयोथीज विडंबना थाय . माटे यथेष्ठ रीते धर्मज करवो, केम के फरी फरीने मनुष्य जव मलतो नथी. वली आठम अने पाखीने दिवसे पविजे, हरियो, तथा सिंहादिको पण श्राहार करता नथी, तो हुं ते केमज करूं ? माटे सर्व धर्मना कारण रूप पर्वतुं जेणे आराधन कयुं नथी, तेउनुं ज्ञान अने मनुष्यपणुं वृथाज . वली प्राण जाय तो पण श्री युगादीश प्रजुए कहेला पर्वने हुं तपविना वृथा गुमावीश नहीं. वली कदाच आ राज्य, तथा प्राण जाय तो पण जसे, पण हुं ते पर्वथी ब्रष्ट थश्श नहीं. एवी रीतनां राजानां कोधयुक्त वचनो सांजलीने उर्वसी कपटवचनो कहेवा लागी के, हे स्वामि! आपनां शरीरने क्लेश न थाय, तेटला माटे में आ प्रेमरसना श्रावेशथी कडं बे, तेथी थापे गुस्से थq नहीं. वली श्रमोए पिताना वाक्यने उलंघीने खबंदचारी राजाने वरी अमारो नव बगाड्यो. वली पूर्व कर्मना परिपाकथी श्रमो तमोने वरी, माटे संसारनुं सुख अने शील सघ_ एक पदमांज समायु. स्वाधिन स्त्रीपुरुषनो योग विषयसुखनो श्रानंद आपे , नहींतर तो दिवस अने रात्रिना योगनी पेठे विडंबनारुपज . वली हे खामी! थापे श्री युगादीश प्रजुनी सन्मुखज मारु कयुं करवाने क. बुल्यु डे अने तेनी परीक्षा माटेज में था श्राजे अल्प मागणी करी, तेमां अरेरे ! श्राप तो गुस्सेज थ गया !! वली हे नाथ ! हुँ तो शील अने सुख बन्नेथी ज्रष्ट थ!! माटे हवे तो अग्निमां पड़ी हुँ थापघात करीश. त्यारे राजा तेनुं प्रीतियुक्त वचन सांजली तेमां लीन थर, तथा पोते आपेलां वचननुं स्मरण करी कहेवा लाग्या के, हे जामिनी ! जे पर्व तातश्रीए कहेलु तथा करेलुं , तेनो हुँ पुत्र थश्ने तेनी विराधना केम करूं ? वली हे स्त्री ! सघलु सुवर्ण, पृथ्वी, हाथी, घोडा, तथा भंडार विगेरे तुं ग्रहण कर ? पण जेथी धर्मनो विघात थाय, तेवं कार्य तुं मारी पासें कराव नहीं ? त्यारे जरा हसीने ते अप्सरा कोमल वाणीधी कहेवा लागी के, हे राजन् ! तमारं ते कहेतुं तो सत्य बे; पण हे स्वामी! जे पापीए पोतानां वचननो विघात कयों , ते अपवित्र बे, तथा तेना जारथी था पृथ्वी पण विषाद पामे . वली हे नाथ !जेनाथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० शत्रुंजय माहात्म्य. लुं अल्प कार्य पण थतुं नयी, ते राज्यादिक शीरीते यापी शकशे? वली आपने माटे में पितानुं ( विद्याधरनुं ) ऐश्वर्य पण तजी दीधुं, तो हवे या तमारां राज्यनुं शुं प्रयोजन बे ? हवे बेवढे कहुं हुं के, दे रा जन्! जो तमारे पर्वनो जंग करवो न होय तो मारी समीप था श्री युगादीश प्रजुनो प्रासाद तोडी पाडो ? ते वाक्य सांजलतांज जाणे हृदयमां वज्र लाग्युं दोय नहीं, तेम राजा मूर्तित यइने चैतन्यरहित पृथ्वीपर पड्या. तेज वखते मंत्रीनी श्रज्ञाथी श्राकुल थएला परिवारे राजाने चंदन यादिकथी चैतन्यसहित कर्या. पढी तेमणे ते स्त्रीने कथं के, अरे नीच ! या तारा वचनो तारुं नीच कुलपएं प्रगट करे बे, तुं विद्याधरनी पुत्री नथी, पण कोइ चांडालनी पुत्री बे, खरेखर में रत्नना चमथी काचनो टुकडो ग्रहण करेलो बें. जे प्रभु त्रण लोकनां नाथ, तथा त्रण लोकधी पूजित बे; तेनां पर्व, तथा प्रासादने जांगनारो शुं कोइ पण यात बे ? माटे हे स्त्री ! तारा वचनथी बंधाएला एवा मने अनृणी करवाने धर्मनो लोपशिवाय बीजुं कंक मागी ले ? वली हे प्रिये ! राज्य, घोडा, हाथी, रत्नो विगेरे सघलुं जले चाल्युं जाय, तो पण हुं प्राण जातां पण पर्वजंग करीश नहीं. ते सांजली ते अप्सराए कह्युं के, जो एम बे तो, तमो तमारा पुत्रनुं माधुं बेदीने मने श्रापो ? त्यारे राजाए विश्चारिने कयुं के हे सुलोचने ! ते पुत्र माराथीज थएल बे, माटे मारुं माथुज तुं ग्रहण कर ? एम कहीने पोतानुं मस्तक बेदवामाटे तलवार लेइ जेवा ते प्रारंभ करे बे, तेटलामांज तेणीए ते तलवारनी धारा बांधी लीधी; त्यारे राजा विलखा थइने नवी नवी तलवारो लेवा मांडी; एवी रीते जरा पण पोतानां सत्वथी ते डरता नथी, तेटलामां ते पोतानां रुपो प्र गट करीने आदरथी जय जय शब्द करवा लागी ; हे वृषनस्वामिना कुलप्रते चंद्रसरखा, तथा पराक्रमीमां अग्रेसर, छाने चक्रीना पुत्र तमो जय पामो ? अहो ! तमारां सत्व, धैर्य, तथा मननां निश्चयने शाबाश बे ! केम के, तमोए आत्मघात अंगीकार करीने पण धैर्य तज्युं नहीं !! देव - सामां इंद्रे देवोनी समक्ष श्रापना सत्वमाहात्म्यनी प्रशंसा करी; पण अमोए तेपर श्रद्धा नहीं राखीने आपने, नदी जेम मेरुने, तेम दोजाववाने इब्युं; पण उबलता समुद्रने जो रोकी शकाय, पवनने जो बांधी शकाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ षष्ठःसर्गः तथा जो मेरुने चलावी शकाय, तोज आपना सत्वनो निर्णय थाय. वली हे जगत्प्रनु ! तथा हे कुलोत्तंस! पापनाश्रीज था पृथ्वी “ रत्नने उत्पन्न करनारी" एवं पोतानुं नाम धारण करे . एवी रीते ते जेटलामां स्तुति करे , तेटलामां हर्ष सहित पुष्पोनो वरसाद वरसावतो, तथा जय जय शब्द करतो इंध त्यां श्रावी पहोंच्यो. त्यां प्रतिज्ञाथी व्रष्ट थएली ते उर्वशीने तेणे उपहास सहित जोइ, थने ते पण रोमांचित थश्ने इंश बागल सूर्ययशाना गुणो गावा लागी. पनी इंज पण राजाने मुकुट, कुंडल, बाजुबंध, तथा हार दश्ने देवोसहित पोताने स्थानके गयो. हवे अनीतिरुपी अंधकारनो नाश करनारा, तथा शत्रुरुपी ताराउँने अदृश्य करनारा,अने सत्यशाली एवा ते सूर्ययशा पृथ्वीने पालवा लाग्या. तेमणे पण जरतजीनी पेठेज पृथ्वीने जिनप्रासोदोथी मंडित करी, तथा संघयात्रा करीने पोतानो जन्म पवित्र कों; वली प्रजुना चरणनी पेठेज तेमणे हमेशां चतुर्दशी,तथा अष्टमी पर्व- श्राराधन कयु. वली शान,दर्शन अने चारित्रने धरनारा श्रावकोने उलखी उलखीने तेमने ते पोताने घेर जोजन करावता. जरते जेम काकिणी रत्नथी श्रावकोने अंकित कर्या हता, तेम सूर्ययशाए तेमने सुवर्णनी यज्ञोपवितथी अंकित कर्या हता. महायशा श्रादिक केटलाक राजाउँए रुपानी यज्ञोपवितथी, तथा पली बीजाउए रेशमनी दोरीथी, तथा सुतरनी दोरीथी अंकित कर्या. सूर्ययशा रा. जाने उत्तम चरित्रवाला, तथा महापराक्रमी महायशा प्रमुख सवा लाख पुत्रो हता. जेम वृषनखामीथी इक्ष्वाकुवंश चाल्यो हतो, तेम सूर्ययशाथी सूर्यवंश पृथ्वीपर चालवा लाग्यो. हवे ते सूर्ययशा पण जरतजीनी पेठे आरिसाजुवनमां पोतार्नु रुप जोता थका, तथा संसारनी असारताने ध्यावता थका केवलज्ञान पाम्या. पडी ते सूर्ययशा मुनीश्वर पृथ्वीपर विहार करता थका लोकोने बोध देवा लाग्या, तथा पली कर्मोने जीती मोदे गया. तेमना पड़ी महायशा, अतिबल, बलज, बलवीर्य, कीर्तिवीर्य, जलवीर्य, तथा दंडवीर्य नामना अनुक्रमे राजा थया, तथा ते सघला श्रावकोनी पूर्वनी पेठेज पूजा करता हता; वली ते सघला श्रनुक्रमे आरिसाजुवनमांज पोताना रूपने जोश, वैराग्यथी केवलज्ञान पामी मोके गया. ते सघलाए जरतार्धनुं राज्य कर्यु, तथा इंजे आपेलो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ शत्रुजय माहात्म्य. प्रजुनो मुकुट पेहेर्यो हतो, ते पबीना राजा ते मुकुट मोटो होवाची धारण करी शक्या नहीं; केमके, हाथीनो नार हाथीज उपाडी शके डे, बीजा उपाडी शकता नथी. ते पसीना जरतना वंशना सघला राजा अजितप्रजुसुधि सर्वार्थसिकें तथा मोदे गया. ते सघला संघपति, चैत्यो करनारा, तीर्थोनो उझार करनारा, तथा अखंड प्रतापवाला हता. वली श्री युगादीश प्रजुना धर्मथी ते सूर्ययशानी पेठे अंशमात्र पण चलायमान थया नहीं, तथा ते धर्म पण उत्कृष्ट वृद्धिने पाम्यो; एवी रीते कोडो शाखाउँवालो, तथा लक्ष्मी अने कीर्तिना आधारचूत, निर्मल अने उत्तम चरित्रवाला संतानरूपी मोतीनां निवासरुप, श्री युगादीश प्रजुनो वंश, त्रणे लोकोने बालंबनरूप यष्टि ( लाकडी) सरखो थयो, एवो ते वंश लक्ष्मी श्रने सुखना विलासरूप आनंदमाटे था? एवी रीते श्राचार्य महाराज श्रीधनेश्वरसूरिए बनावेला श्री शत्रुजय माहात्म्यमा श्री जरतेश- निर्वाण, श्रष्टापदनो उकार तथा श्री सूर्ययशानां चरित्रनां वर्णन नामनो को सर्ग संपूर्ण थयो. श्रीरस्तु. सप्तमः सर्गः हवे श्री वृषजस्वामिना प्रविम नामनां पुत्र हता, जेनां नामथी बहु धान्यने उत्पन्न करनारो अविड देश प्रसिक थयो. तेमना विनीत, परस्पर स्नेहवाला, तथा यशस्वी प्राविड अने वालखित नामना बे पूत्रो हता. मिथिलानगरीनुं राज्य प्राविडने दश्ने अविड राजाए शुन जा. वधी प्रजुपासे दीक्षा लीधी हती. " एक राज्यथी बन्ने पुत्रो प्रते वैरनाव न थाय तो सारूं" एम विचार तेमणे वाल खिलने एक लाख गामो थाप्यां हता. अनुक्रमे लक्ष्मी अने कीर्तिथी वाल खिखने वृद्धि पामतो जोश जाविडने जरा अदेखाश् श्रावी. त्यारे वालखिल्वे पण पोताना ना. इने क्रोधित थएलो जोश्ने, विचायु के, मारा जाश्ने मारा राज्यनो पण सोज थयो, माटे ते फुःखदायी लोजने धिक्कार !! खोजी माणसोनू. तथी पीडाएलानी पेठे पिता, माता, बंधु, मित्र, स्त्री, पुत्र, तथा गुरुनी षण अवज्ञा करे . एवी रीते बन्ने जणा परस्पर वेषी थया. वली 5. जनोधी प्रेराया थका अविश्वासी थश्ने ते एक बीजानां बलो जोवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमःसर्गः २३३ लाग्या. हवे एक दहाडो प्राविड राजाये पोताना नाना नाश्ने दावानल सरखं वचन कह्यु के, तारे तारां स्थानमा रहेवू, तथा मारुं नगर तजवू. एवी रीते मोटा जानुं वचन सांजली गुस्से थश्ने वालखीझ शस्य स. हित पोताने नगरे गयो. त्यां ते पोतानां पालाउँने तथा गाम अने दे. शना घणा अधिपतिउने एका करी, अहंकारथी मोटा नाश्पर वेष करवा लाग्यो. पडी प्राविडे पोताना नाश्नो वृत्तांत जाणीने लडाइ माटे नंजा वगडावी. हाथी, घोडा, रथ, तथा पालाउँथी विटाएलो प्राविड राजा पृथ्वीने पण संकोचित करतो थको चालवालाग्यो. तेना प्रयाणथी पृथ्वी एवी तो कंपवा लागी के, हजुसुधि पण को वखते ते कंप्या करे डे. तेना सैन्यना नारथी समुष दोलायमान थयो, अने ते अभ्यासथी बाजे पण ते उबट्या करे . वली तेना सैन्योथी उडेली रजे आकाश अने पृथ्वीने एवी रीते श्रान्छादित कर्यां के, निगोदना गोलाना नावने ते जजवा लाग्यां. वली ते वखते लगामश्री खेंचाएला घोडार्ड, गुरुए कहेला धर्मथी खेश्राएला अहंकारी जडोनी पेठे, स्थानमा रहेवा न लाग्या. एवी रीते पृथ्वीने आक्रमण करतो समुसोने दोजावतो, तथा दिग्गजोने फुःख देतो ते सेना सहित चालवा लाग्यो. ते वखते वालखिल्ब पण तेने पोताना देशमां श्रावेलो जाणी वेगथी लश्करसहित सामो श्राव्यो. पडी युङनी श्वाथी पांच योजननो अंतर करीने, बन्नेए सैन्यनो पडाव नांख्यो. ते वखते बन्ने राजाना प्रधान पुरुषोए राजाउँने पुब्याविना सझाद माटे दूतो मोकल्या. पण साम, दाम, नेद श्रादिकना वाक्योथी बन्नेमां समजावट नहीं थवाथी रणसंग्राम माटे ते तैयार थया. पढ़ी वाल खिले जाविडना केटलाक राजा तथा लश्करी ने दान आदिकथी पोताना पक्षमा कर्या, केम के दान सर्वने वश करनारं . ते दरेक सैन्यमां दश कोड पालार्ज, तथा दश लाख रथो, तथा हाथी, श्रने पंदर लाख घोडा हता; पली बन्ने सैन्योनुं त्रणे लोकने जय श्रापनारं युद्ध थयु. हवे युद्धने दिवसे कुलीन शूरवीरो रोमांच धारण करता थका एकग थया; तथा पड़ी उदार, स्वामिना जक्त, करेल डे अनेक महा संग्राम जेजेए एवा, शरीरनी अने घरनी दरकारविना यश अने रणमां उत्सुक, क्षणे दणे वाजिंत्रना नादथी उलसायमान वीर्यवाला, तथा पोतानां बलथी जगतने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ शत्रुजय मादात्म्य. पण तृण समान गणता, एवा ते लश्करी चालवा लाग्या. सात जगोएथी मदने करता, सर्व लक्षणोथी लक्षित थएला, जलसायमान शुंडदंडवाला, तथा मोटेथी गर्जना करता, तथा तीक्ष्ण अग्र नागवाला दांतोरूपी मूशलोथी शत्रुने मारवामां कुशल, तथा पाखरोवाला एवा हाथी पण योछार्ड सहित अग्र नागमां श्राव्या. तेजी, विस्तारवाली गरदनोवाला, पोताना अंगने कंश्क लागवाथी पण वेषथी चमकता, वायुसरखा वेगवाला, तथा दरेक अंगप्रते प्रगट लक्षणोवाला, घोडा पण वेगथी चालवा लाग्या. सीमंतिनीनी पेठे चक्रोनी नेमीथी पृथ्वीपर गर्जारव करता, तथा सुवर्णनी नाराचथी मुषितथएला, दोडता घोडाउँथी खेंचाता, जंगम घर सरखा, तथा बख्तर सहित महा योझावाला रथो पण चा. लवा लाग्या. पली बन्ने सैन्योमां लश्करीनां गुणो गाश, तेमने शूर चडावता थका बडिदारो जमवा लाग्या; अने कहेवा लाग्या के, हे वीरो! तमोने अमारा मुखथी तमारा खामी कहेवरावे जे के, आजे तमो रणसंग्राममांधी जयलक्ष्मीने खेंची लावजो; वली तमो खरेखर अत्यंत पराक्रमवाला, गुणी, कुलीन, तथा जयलक्ष्मीवाला डो, एम हुँ जाणुं बु. ते सांजली केटलाट वीरपुरुषो तो पोतानी मेलेज उत्सुक थश्ने, समुजनां दोन सरखी गर्जना करवा लाग्या; वली केटलाकोए तो ब्रह्मांड पण फाटी जाय तेवो जुजास्फोट कर्यो; केटलाको तो कोपरूपी अग्निना खीलासरखा शस्त्रो आकाशमां उबालवा लाग्या; केटलाको तो बख्तरसहित घोडापर, हाथीपर, रथोपर, तथा जंटोपर, चड्या. ते वखते धनुष्यधारी धनुष्यना टंकारो करता थका संचार करवा लाग्या. ते वखते पायदलनी सेना पण एवी मली गश् के, तेमां एक तल पण पृथ्वीपर पडी शके नहीं. वली त्यां अश्वो पण पोतार्नु नाम सफल करीने रथोने अगाडी अगाडी धसाववा लाग्या. ते वखते प्राणीऊना घातथी क्रोधे करी लाल आंखो. वाला पाखरवाला मदोन्मत्त हाथी, पांखोसहित पर्वतोज होय नहीं जेम तेम चालवा लाग्या. वली ते वखते रणनी श्वावाला वीर पुरुषोनां हृदयमां नवसायमान करनारां रणवा जित्रो वागवा लाग्यां. ते वखते तेऊनां नादरूपी समुप एवो तो उबस्यो के, आकाश अने पृथ्वीरूपी पोतानी मर्यादाने ते जलंधी गयो. ते नादथी वीर पुरुषोने शूर चड्यु, बीकणो जय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमःसर्गः ३३५ पामवा लाग्या, तथा घोडा चपल थया. ते वाजित्रोना नादोथी, तथा लश्करनां पदघातोथी थाकाश श्रने पाताल त्रुटुं त्रुटुं थइ रह्यं. घणा प्र. कारे लालन थएली पृथ्वी, ते वखते रेणुपणाने प्राप्त थर, तथा घोडाऊना फुफाटाथी आकाशमां गश्, अने त्यां पण न मावाथी जगतनी शांखोने ते श्राहादित करवा लागी. पठी अग्रेसरी वीरो पोतपोतानां गोत्र, पदवी, तथा बलनुं वर्णन करता थका बाणोथी लडवा लाग्या; तथा तेवी रीते सघला सैनिको सर्व बलथी रणवा जिन वागते ते लडवा लाग्या. ते वखते कोश्क घोडेस्वार शत्रुने हाथीपर चडेलो जोश, त्यां वेगथी घोडाने ले जश्, हाथीनां दांतोपर घोडाना पगो रखावीने, तलवार खेंची वीरवृदनां फल सरखं शत्रुनुं माथु कापवा लाग्यो; तलवारने धारण करनारो कोश्क पालो बाणथी श्राकुल थश्ने आडी ढाल धरवा लाग्यो, तथा बोलतो थको, पांजरामा रहेला पोपटनी तुलना करवा लाग्यो. कोश्क सुलट तो कमलनालनी पेठे बाणोने पण नहीं गणकारीने, पोताना खामीना देखतां शत्रुने मारतो हवो. हथीयार रहित थएला कोश्क सुनटे तो हाथीना मुखमांथी दांतो खेंचीने, तेनाथी शत्रुने हणीने पोताना खामीनी कृपा मेलवी. कोश्क तो पडता शत्रुना शरीरथी उडेला लोहीना बिउँथी, पोताना शरीरपर जयलक्ष्मीए बांटेला बांटणावालो देखावा लाग्यो. कोश् सुनटे तो शत्रुना मांसोथी, गीध, शीयाल, वेताल, शाकिनी, प्रेत श्रने राक्षसोने परिवार सहित नोजन कराव्यु. ते वखते त्यां स्थलपर पण, उबलता घोडा रूपी मोजांउवालो तथा हाथी रूपी खराबा वालो रुधिरनो समुफ थयो; एवी रीते सात मास सुधि ते रणसंग्राम थयो, अने तेमां बन्ने सैन्योना दश क्रोड माणसोनो क्षय थयो. ते वखते गर्जारवथी हाथीना मदोने उतारनारो, तथा काजल सरखो श्याम वर्षाकाल श्राव्यो. वरसाद थवाथी, जे शूरा सुनटो कदापि पण रणसंग्रामथी पाना हव्या न होता, ते पण पाना हव्या. मूशल सरखी मेघनी धाराथी पीडाएला सुनटो, त्राणरहित थवाथी, पोतानुं रक्षण करवा माटे ढालो तैयार करवा लाग्या. ते वखते राजानी थाझाथी बन्ने लश्करो हीने उंच प्रदेशमां कुंपडां करी रह्या. ते समये समस्त पृथ्वीपरथी कचरो धोवाइ गयो, तथा त्यां फरीने घास श्रादिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. उगी निकल्यु. वरसाद रूपी पोतानो स्वामी श्राव्याथी पृथ्वीरूपी स्त्रीए रागथी रोमांचित थश्ने जाणे घासना मिशथी लीली साडी पेहेरी होय नहीं, तेम ते देखावा लागी. ते वखते वरसादे चालतां पाणीउथी खाडा, खीणो, नदी, अहो, तलावो विगेरे जरी दीधां. वली ते वखते राग वेष रूपी शत्रु जेम धर्मने, तथा उर्जनो जेम सऊनने, तेम मबरो तथा डांसो सैन्यने उपजव करवा लाग्या, जेम जेम रात्रि साये मेघ गर्जारव करवा लाग्यो, तेम तेम स्त्रीनां वियोगी प्रते कामदेव कोपवा लाग्यो. तेऊना मनमां सिंचाएलो पण कामरूपी अग्नि, तपेला तेलनी पेठे फुत्कारोथी जाज्वल्यमान थयो. ते वखते कोश्क सुजट तो पोतानी वहाली स्त्रीने मनमां याद लावीने लोकोवच्चे पण रडवा लाग्यो, पण मेघनी अत्यंत गर्जनामां तेने कोए बोलाव्यो नहीं. जे सुनटो तीदण शस्त्रोना घाने पण कमलनाल सरखा लेखता हता, ते पण कामदेवना बाणोने श्रा समये सहन करी शक्या नहीं. वली ते समये कोश्क सुनटे नीला कंचुकवाली (कमखावाली) तथा ऊंचां पयोधरवाली (स्तनवासी) द्याने (आकाशने) जोश्ने, एवी रीतनां ऊंचां (अकड) स्तन. वाली पोतानी स्त्रीने याद करवा लाग्यो. वली ते वखते कोश्क सुजट तो स्वप्नमां आवेली पोतानी स्त्रीने, पगे पडीने, तथा शांखोमां आंसु लावीने विषयसुखमाटे समजाववा लाग्यो के, हे प्रिये! जेम जेम था वरसाद गाजे , तेम तेम मारे विषे कामदेव स्फुरायमान थाय बे, तथा था तोफानी पवन अग्निनी पेठे पुःसह थश्ने माझं जीवित हरे डे, तथा हे नामिनी ! था वीजली रूपी खगथी काल मनें बीवरावे , श्रा जलो मारां अंगोने बाले , कामदेव, पोतानां बाणोथी मने घायाल करे बे; माटे हे चंडे ! तुं निर्दय थर थकी मारापर केम गुस्से थाय ? वली ते समये कोश् वियोगी सुजट तो बपैयाना “ पियु पियु" शब्दो सांजलीने पोतानी स्त्रीनां ते वचनो संजालवा लाग्यो. ए. वीरीते वरसाद गाजते ते सघला वियोगी सुनटो तेवी दशाने प्राप्त थया, माटे कर्मनी तेवी चेष्टाने धिक्कार !! पली एटलामां पृथ्वीने कमलो सहित करती, अने उत्तम माणसोना चित्तनी पेठे जडोने (ज. लोने) पण प्रसन्न (निर्मल) करती थकी शरद ऋतु श्रावी. ते वखते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमः सर्गः २३७ सर्व बाजुए धान्यो फलद्रूप ने उत्तम कर्मोनी पेठे सर्वने यानंद पतां हतां. अंदर प्रसन्न थली, ( मध्य जागमां निर्मल बनेली ) उत्तम मार्गप्रते जनारी, तथा बन्ने कुलोयी उज्ज्वल ( बन्ने कांगथी शोजिती) एवी नदी कुलीन स्त्रीउनी पेठे बढेवा लागी वली ते समये चंदन, चंद्रना किरणो, मनोहर चिनाइ वस्त्र, गायोनुं दूध, तथा नदीनुं पाणी कोने सुखदायक न होतुं ? वली ते वखते वर्षा तुमां सिंचारलो कामदेव तेज॑नां शरीरोने बालवा लाग्यो. वली ते समये योगमार्गनी पेठे सघलो मार्ग शुद्ध थयो, तथा वीतरागनी दृष्टिर्जुनी पेठे सर्व जगोए दिशा प्रसन्न ( आनंददायक ) इ. ते वखते हाथीना मदसरखी सुगंधिवला सप्तदोथी जमरा मकरंद मेलववा लाग्या. ते समये जिन धर्मनी पेठे आकाश उंचे प्रकारे निर्मलपणाने पाम्युं; अने ते राजानुं मन कुवाना पाणीनी पेठे कलुषताने पाम्युं. एटलामां विमलबुद्धि नामनो मंत्री पोताना स्वामी द्राविड राजा पासे श्रावी नमीने कवा लाग्यो के हे खामी ! वहीं नजदीकमांज श्रीविलास नामना वनमा केटलाक तापसो पापोनी शांतिमाटे तप तपे बे. ते जी वक्लोने धारण करे बे, तथा कंदमूल खने फलो खाय बे, माटे जो अपनी आज्ञा होय, तो मो तेने वांदवा जइए. ते सांजलीने राजा पण उठीने सैन्य सहित तेमनी पासे गयो पछी त्यां तेणे बक्कलने धारण करता, पर्यकत्र्यासनपर रहेला, जपमाला फेरवता, ध्यानमां लीन थला, गंगानी माटीथी सर्व अंगे लेपन कराएला, जटामंडलथी मंडित थएला, युगादीश प्रजुनां चरण रूपी कमलपर राखेल बे दृष्टिरूपी चमर जेमणे एवा, तपस्वी तथा बीजा धर्मार्थी लोकोथी सेवाएला, तथा हाथरूपी पात्रमां आहार करनारा एवा तपस्वीने जोया पनी तेमनुं सुवल्गु नाम जाणीने, राजाए जक्तिथी नरेलां मनथी तेमनुं नाम लेइ तेमने नमस्कार कर्यो. त्यारे ते मुनिए पण ध्यान मुकीने, तथा हाथो उंचा करीने, तेमने आशिष आवी पछी राजा पण परिवार सहित तेमनी वाणी सांजलवानी इछाथी योग्य स्थानके त्यां बेठो. पबी सांजलेल बे, श्री युगादीश प्रजुपासेथी वचनो जेणे एवा ते तापसे धर्मने स्फुरायमान करनारां मध सरखां मिष्ट वचनो कहेवा मांड्यां. हे राजन् Jain Educationa International . For Personal and Private Use Only . Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ शत्रुजय मादात्म्य. चलाचल मोजांवाला था संसाररूपी समुद्रमां, विषयरूपी घुमरीमां लीन थएला माणसो डुब्या करे . शुज मार्गप्रते चालता प्राणीने उःखदायक विषयो पिशाचोनी पेठे बले . वली श्रा संसारमां विषयोथी जीताएलो प्राणी खछंद रीते संचरतो थको था लोक अने परलोकमां पण तीन मुखो सहन करे . माटे ते पांचे इंजिना विष सरखा विषयोने तजवाथी प्राणी कल्याणने प्राप्त थाय . वली उष्ट राक्षसो सरखा वि. षयो थोडा थोडा सुखमां प्राणीने ललचावीने वारंवार बले बे. कषायरूपी वैरी बलकपटमां हुशीयार थया थका प्राणीनां पूर्व संचित पुण्यने वेगथी जोतजोतामां हरी लीए बे. श्रात्मनावमा रहेला जीवने दूतावनारोको. धरूपी महायोको प्रकृतिमा संचरतो थको कोश्थी पण अटकावी शकातो नथी. शरीररूप घरमा लागेलो क्रोधरूपी अग्नि पुण्यरूपी सर्व धननो नाश करे . माटे ते सर्व कषायोमा मुख्य . दया, धर्मरूपी वृदनां बीज रूप बे, अने क्रोधथी तो पापबंधन थाय , माटे कोधातुरने दया, धर्म, ने शुज गति थतां नथी. प्रमादथी पण जीव हिंसा करवाथी नीच गति मले बे, अने क्रोधथी करेली जीव हिंसा तो नरकना कारणरूप ; माटे एकेजियनी पण हिंसा पंडितोए तजवी, श्रने क्रोधथी हींजियादिकनी हिंसा. तो नरकने देनारी . परनो जोह, धर्मरूपी वृदने बेदवामां कुहाडा सरखो, बोधिबीजने बालवामां दावानल सरखो, तथा नरकरूपी छारने उघाडवानी कुंची सरखो.मनथी स्मरण करेली हिंसा पण फुःखसमूहने देनारी , माटे ते कायादिकथी जो करवामां आवे, तो तो क्षणवारमांज नरकमां ले जाय . राज्यादिक सुखोमां लीन थश्ने जे मनुष्यादिकनी हिंसा करे , ते पोतानुंज (यात्मारूपी) घर बाले बे. माटे हे राजन! श्रा नरक आपनारा राज्यमाटे, तुं बंधु साथे वैर करीने, शामाटे कोडो माणसोनो नाश करावे ? वली था शरीर थनित्य , लक्ष्मी पाणीना परपोटा सरखी , तथा प्राणो तृणाग्नि सरखा डे, तो तेने माटे तुं पापाचरण कर नहीं ? वली को कार्य प्रसंगे अन्य वैरीसाथे तो वैर थर जाय, पण जाइ साथे जे वैर करवू , ते तो (पोतानी) एक आंखनो नाश करवा तुल्य . निर्गुणी, दरिजी, लोनी, तथा पुःखदेनारो, एवो पण सहोदर ना तो पीतानां जीव सरखोज . आकरा तथा क्रोधी, एवा पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमः सर्गः १३ तें नाइ साथे मित्राइ करवी श्रेष्ठ बे, केम के जेथी कमल विकखर न थाय, वो शीत चंद्र पण शुं कामनो बे ? वली जे दुष्टो राज्यादिक माटे क्रोधथी बंधुने पण मारे बे, ते पोतेज पोतानां ांगोने नांगीने अति लोलताथी जण करे बे. वली हे राजन् महा लोनरूपी पिशाचने वश थने बीजा बाहु सरखा जाइ साथे शुं रणसंग्राम श्रादर्यो बे ? माटे श्र रणसंग्रामथी तुं श्रटक ? के जेथी सैनिको सुख पामे, तथा दिग्गजो सर्पो सहित विश्रांति पामे. एवी रीतनी तापसना मुखनी वाणी सांजलीने दयात्री कोमल हृदयवालो थलो राजा, धर्मनी स्थिति सरखी वाणी कदेवा लाग्यो के, हे मुनिराज ! श्री जरत महाराजा, सूर्ययशा, बाहुबलि यादिक प्रजुना पुत्रोप पण कारणने लेइने मांहोमांहें युद्ध करेला बे तथा तेन ते युद्धमां हाथी, घोडा, मनुष्य, उंट वीगेरेने मारेला बे, पण तेथी ते दूषित थया नथी, तेने हेतु शुं बे ? वली मारो जाइ क्रोधित थइ खोटे मार्गे प्रवर्तीने पोतानी मेलेज पोताना सगार्डनो अनादर करीने संग्राम माटे तैयार यो बे. तो पण मारी श्राज्ञामां रही, संग्रामथी विरक्त थइने जले ते पोतानुं राज्य जोगवे, अने हुं पण सैन्यसहित मारे स्थानके जइश. त्यारे ते तापसे तेनुं वचन सांजलीने श्रादरसहित धर्मनां सर्वस्वरूप वचन कह्युं के हे राजन् ! तें श्री जरतादिकनुं जे दृष्टांत श्राप्यं ते या जगोए घटतुं नथी, तेनी कथा तुं सांजल ? एक जाइए तो मुनिने दान देवाथी चीनी लक्ष्मी मेलवी हती, ने बीजाए मुनिनी वैयावछथी फलरूपे बाहुनुं बल मेलव्युं हतुं. छाने बन्नेने संग्राम थवामां पण तेज़ कारण हतुं के, चक्रीनं चक्र श्रायुधशालामां प्रवेश करतुं न होतुं ने बाहुबलिने - हंकार हतो. वली ते वन्नेए देवोना कहेवाथी जगतने संहार करनारो रणसंग्राम तजीने द्वंद्वयुद्ध अंगीकार कर्यु हतुं. माटे हे राजन् ! जरते बाहुबलिए जे कार्य कयुं, ते तुं याद कर ? अने तेमां तेने दूषण शामाटे लगाडे बे ? वली श्री युगादीश प्रजुना ते बन्ने पुत्रो महा पराक्रमी तथा महा गुणवानो ने मनोहर चरित्रवाला हता, अने तेथी ते क्षपवार मांज केवलज्ञान पामी मोके गया बे. वली कृषन प्रजुना पौत्र ज्यारे एवं कार्य करे, त्यारे तारे तेनुं पण दृष्टांत देवं जोइये, अन्यथा न देवं जोइए. एवी रीतनी वाणी सांजलीने, जरा लजित थयेलो ते राजा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० शत्रुजय माहात्म्य. धर्मना रागथी मस्तक नमावीने कहेवा लाग्यो के, हे मुनि ! में श्रज्ञानपणाथी ते फोकट दृष्टांत दीधां, केम के, क्यां पामर एवो काच? अनेक्यां चिंतामणि रत्न ? ते बन्नेने शुं तुल्य गणाय ? माटे हे तापसराज ! कार्यमां तत्पर एवा अमोने हवे श्राप कहो के, था लोक अने परलोकमां सुख थाय, एवं कयुं कार्य करवू ? त्यारे तापसे कयु के, हे राजन् ! पापकार्यरूप था रणसंग्रामथी तुं विराम पाम ? तथा आ मारो नाइ,श्रा मारु राज्य इत्यादि ममत्व नावने तुं बोडी दे ? हमेशां पाबल लागेलुं एवं मृत्यु ज्यांसुधि श्रावी पहोंच्युं नथी, त्यांसुधिज था सघली अखंड संपदा तथा अखंड राज्य . प्राणो दणिक डे, तथा था शरीर रोगनां घररूप, अने चपल बे; तथा राज्य संध्याकालनां वादलां सर , माटे श्रात्महितने तुं चिंतव ? वली थात्मा शरीरने माटे सघलां कार्यों करे , पण पोता माटे कंश पण करतो नश्री; माटे विचक्षणे तो था असार देहथी श्रा. त्मार्थ साधवो. विष्टा, मुत्र, मांस, चरबी, हाडकां विगेरेथी सहित, वहेता छारोवावं, रोग अने मेलथी व्याकुल, अत्यंत चपल, तथा महा अपवित्र आ शरीर , तो तेने माटे कयो बुद्धिवान माणस उर्गति दे. नारूं पाप आचरे? वली या असार तथा अनित्य शरीरथी ज्यारे शाश्वतो धर्म मली शके, त्यारे बुधिवानो ते शामाटे ग्रहण न करे ? ते वाणी सां. जलीने उत्कृष्ट वैराग्यने धारण करतो ते बुद्धिनां नंडार सरखो राजा, ते सुवल्गु मुनिनां चरणोने नमीने कहेवा लाग्यो के, हे करुणासागर ! श्रापज मारा गुरु, देव, तथा नवसमुश्री तारनारा बो, माटे हवे कृपा करी मने दीक्षा श्रापो ? पड़ी मुनिना कहेवाथी राजा तुरत पोताना नाश्नी क्षमा मागवाने हर्षथी तेना सैन्यमां गयो. एकला पोताना नाश्ने श्रावतो जाणीने वाल खिव पण तुरत पोताना श्रासनपरथी उनो थयो; तथा पृथ्वीपर लोटीने मोटा नाश्ने नम्यो, तथा जाणे दोषोनेज दूर करतो होय नहीं, तेम ते पोताना केशोथी तेमना धूलिवाला चरणोनुं प्रमार्जन करवा लाग्यो, अने कहेवा लाग्यो के, के हे ना! श्राप मने पूजनिक बो, तथा पूर्व नवनां पुण्योधीज मारे घेर पधार्या बो, तो कृपा करीने श्रा राज्य ग्रहण करो ? एवी रीतनी नाना नाश्नी नक्तिथी खुशी थएलो, तथा मुनिना वचनने याद करतो ते प्राविड राजा पण पवित्र गुणोवाली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमःसर्गः २४१ वाणी कहेवा लाग्यो. के हे ना! सद्बोधनी प्राप्तिथी, नरकरूपी वृक्षप्रते वरसाद सरखा था मारां राज्यने पण मारे डोडवानी श्छा बे, तो हवे तारं राज्य ते शीरीते ग्रहण करुं? था सप्तांग राज्य खरेखर सात नरकोज , अने आ चतुरंगी सेना, उर्गतिरूप शय्यानो चौतरो ने. सुगतिप्रते गमन करता प्राणीने वचमा रहेली था राज्यलक्ष्मी बनना मि. शथी तेनुं आबादन करे . ( अर्थात् सुगतिमां जतां अटकावे .) वली चामरो तो तृष्णातुर राजानी देवपणानी इछाने हणीने तेने तिर्यंच गतिमां ले जाय बे. वली हाथी कानोथी, घोडा घुबडांउथी, कृपाणो पोतानां कंपनथी, अने वारांगनाउँ चामरोथी राज्यनुं चपलपणुंज जणावे . वली जे राज्यमां हमेशां बीक, जोह विगेरे बे, तेवां राज्यने धिक्कार . वली हे जार में तने कोपित को बे, तेथी हवे तने हुँ खमाववा माटे आवेलो इं; अने हुँ तो था राज्य बोडीने, दीदारूपी साम्राज्य ग्रहण करीश. एवी रीतनी पोताना मोटा नाश्नी वाणी सांजलीने, वालखिल्ले कंडं के, हे ज्येष्ट बंधु ! पूर्वनी परेंज त. मारो अनुचर थश्ने हुँ पण तुरत दीदाज लेश्श. एवी रीते ते बन्ने नाइल प्रीति पूर्वक विचार करीने सैन्यो सहित व्रतनी श्छाथी सुवगु मुनिनां चरण समीपे श्राव्या. पडी तेउये पोतानां राज्योपर मंत्रि सहित पुत्रोने स्थापीने दश क्रोड माणसोसहित दीक्षा लीधी. ते सघला जटाने धरनारा, कंदमूल अने फलोनुं लक्षण करनारा, गंगानी माटी शरीरपर चोलनारा, तथा सर्व बाबतोमा हितबुद्धिवाला थया; वली ते हमेशां मृगना बालको साथे रहीने (अर्थात जंगलमां वसीने) ध्यानमां आरूढ थर, जपमालाथी श्री युगादीश प्रजुने जपता हता. वली ते परस्पर दोष रहित थश्ने धर्मकथा करता हता, तथा आर्जव गुणमां रहीने एवी रीते तेये लाख वर्षों व्यतीत कर्यां. एटलामां त्यां नमिमुनिना बे विद्याधर शिष्यो शुत्र किरणोथी आकाशने दीपावता थका थाकाशमांथी उतर्या. मूर्तिवंत धर्म अने शांतरससरखा ते बन्नेने जोश्ने, सघला मुमुक्तु तापसोए अत्यंत नक्तिथी तेउँने नमस्कार कर्यो; तथा पु. ब्युं के, आप क्याथी यहीं पधार्या ? तथा हवे कश् जगोने जश् पवित्र करशो ? त्यारे मुनिए धर्मलाल देश्ने कयु के, श्रमो प्रजुनी सेवामाटे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ शत्रुजय माहात्म्य. पुंडरिक गिरिपर जश्शु. पड़ी ते तापसोए पुण्याथी ते मुनिए तेर्जना उझार माटे शत्रुजयनी कथा कहेवा मांडी. केम के तेवा माणसो जगतनुं हित श्वनारा होय . अनंत पुण्यनां श्राधाररूप, तथा संसाररूपी समुअमां वाहाण समान, एवो शाश्वतो श्री शत्रुजय पर्वत सुराष्ट्र देशमा जयवंतो वर्ते . ते शत्रुजय पर अनंता अरिहंत, मुनिप्रमुख माणसो तीर्थनां योगथी मोदे गएला , तथा हवे पण जशे. ते अभूत शत्रुजय गिरि सिमलक्ष्मीनो क्रीडा करवानो पर्वत , तथा त्यां गएला प्राणी तुरत मोक्षसुख मेलवे बे. त्यां शाश्वता तथा मुक्तिना खामी श्री युगादीश प्रजु बिराजे , तेथी त्यां गएला माणसो मोक्षसुखनो खाद अनुनवे . ते पर्वतरूपी किल्लामा रहेला प्राणीने अनंत नवोथी पाबल लागेला कुकर्म रुपी शत्रु परानव करी शकता नथी. ते पर्वतपर सूर्योदयश्री जेम अंधकारो, तथा सङनना संगथी जेम उर्गुणो, तेम, इत्यादिक पापो पण क्षणवारमा नाश पामे बे. एवीरीतनी शत्रुजय गिरिनी कथा सांजलीने ते तापसो पण ते मुनिउनी पाउल त्यां जवा लाग्या, एवी रीते ते जी. वयत्नाथी चालता हता, त्यां तेजेए अगाडी किनारापर उगेला वृदोथी व्याप्त थएला एक उत्तम सरोवरने जोयु. ग्रीष्म ऋतुना नयंकर सूर्यनां किरणोथी क्लिष्ट थएला, अने तेथी विस्तार पामती वृक्षोनी डायामां बेठेलां वनवासी पशुउँथी ते सरोवर सेवाएवं हतुं. वली ते निर्मल सरोवर प्रगट थती कमलोनां मकरंदनी सुगंधिथी, सर्व दिशाउँमांथी अवेला नमराउँथी पण सेवाएबुं हतुं. हवे ते तापसो पण पोताना तापनी शांति माटे त्यां जश् आनंदथी तेउनी बगयामां विश्राम लेवा बेग. त्यां तेजए किंचित धूर्णायमान आंखोवाला, शिथिल शरीरवाला, श्वासोश्वासथी नीचुं थएल डे पेट जेनुं एवा, खुला मूखवाला, पीला पगोने हलावता, गंगानां नीर सरखी उज्वल कांतिवाला, हंसोश्री वीटाएला, तथा मृत्युनी अणीपर रहेला एक हंसने जोयो. ते वखते माणसोना श्राववाथी, शत्रुजयनां श्राश्रयथी जेम प्राणीनां पापकर्मो, तेम बीजा हंसो त्यांथी तेने बोडीने चाल्या गया. हवे ते वखते एक दयालु मुनिए पात्रमा पाणी लावीने रसायननी पेठे ते हंसना मुखमां मेट्यु. ते जलथी ते हंसने ते सुख थयुं, के जे सुखे तेने जाणे मोदसुखज देखाड्युं होय नही, तेम थयु. “शरण र. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमःसर्गः २४३ हित तथा था उखदायी संसाररूपी कांतारमां जमता एवा तारा जीवने चार शरणार्ड था ? वली जेजे जवमां जे कोश् जीवने तें विराध्या होय, ते सघलाने तुं खमाव ? तथा ते पण ताराप्रते दमा करे. वली तुं शझुंजय गिरिने तथा श्री युगादीश प्रजुने स्मर ?” एम कहीने ते मुनीए तेने वारंवार नमस्कारो दीधा, ते नमस्कारथी पीडा रहित थश्ने, तथा पंच नमस्कारनुं स्मरण करतो थको ते हंस समाधिथी मृत्यु पामीने सुधर्मा देवलोकमां उत्तम देव थयो. हवे ते बे मुनिउँनां शुद्धोपदेशथी ते तापसोए पण त्यां मिथ्यात्वि क्रीया तजीने जिनव्रत अंगीकार कयु. तेजैनां जे केशो अगाज जटाबंधथी वृद्धि पामता दता, तेऊनो मूलमांथी लोच करीने ते पृथ्वीपर लोटवा लाग्या; पड़ी ते तेमनी पासे मिथ्यात्वने बालोचीने व्रतधारी थया थका नवसमुरुमां उर्लन एवा सम्यक्त्वने जजवा लाग्या. पेहेलेथीज जेम जिनप्रते नक्तिवाला हता, तेम व्रतमां पण नक्तिवाला थश्ने, ते बन्ने मुनिउँनी श्राझा वेश् शत्रुजयप्रतेजवा लाग्या.मार्गमां लोकोने बोध देता, पृथ्वीने पवित्र करता, तथा जीवयत्ना पूर्वक चालता थका तेउए सिझगिरिराजने जोया. श्री युगादीश प्रजुरूपी मुकुटें करीने मंडित थएला, नवा गुंथेला अंबोडावाला उत्तम वहुनां मस्तकसरखा, चोतरफथी दीपको सरखा रत्नोनां किरणोवाला एकसोने आठ सुवर्णनां शिखरोथी शोजता, तथा पुण्यना राशि सरखा अने मोदनी वेदिकासरखा ते विमलाचलने जोश्ने ते मुनि अत्यंत आनंद पाम्या. ते गिरिराजनां दर्शनथी हर्षित थएला, तथा कर्मरूप व्याधिनां नाशयी हलवा थएला ते मुनि मोद मेहेलना श्रांगणां सरखा ते पर्वतपर चडवा लाग्या. त्यां ते रायणने त्रण प्रदक्षिणा देश्ने हमेशां, मोगरा तथा कपूरसरखी उज्ज्वल कांतिवाला श्रीषनदेव प्रजुने नमता हता. वली ते जलसायमान नक्तिथी प्रेराया थका पोतानी शक्ति मुजब, श्री युगादीश प्रजुना अनंता गुणोने हर्षथी गाता हता. हवे मासक्षपणने अंते ते बन्ने ज्ञानी एवा विद्याधर मुनि, ते दश क्रोड साधुऊने कहेवा लाग्या के हे साधु ! तमोए था संसारमा अशुज ध्यानना योगथी नरक देनारुं अनंतुं कर्म पेहेलेथीज उपार्जन करेलुं बे, ते आ देवनां प्रनावथी नाश पामशे, माटे तमारे यहीं रहे, वली तमो अहीं अंते केव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ शत्रुजय मादात्म्य. लज्ञान पामीने मोदे जशो. एम ते सर्वने कहीने ते चारण मुनि पोतानी कांतिथी पृथ्वी तथा आकाशने दीपावता थकाआकाश मार्गे चाल्या गया. हवे ते आविड तथा वालखिल्सादिक तपस्वी, मासोपवास सहित त्यां जिनध्यानमां तत्पर थया थका रह्या. पली सघलां मोहनां अंगो क्षीण थवाथी, निर्यामणा करीने, तथा मन, वचन अने कायानां योगथी सघला जंतुर्डने खमावीने, तथा पुष्ट एवा श्रावे कर्मोनां दयथी अंतर्मुहुतमांज केवल पामी ते दश कोड मुनि त्यां मोदे गया. ते वखते ते हंसना जीवे देवलोकमांथी श्रावीने मोटी रूधिथी तेऊनो उंचे प्रकारे नि णमहोत्सव कयों, पड़ी ते देव जिनेश्वरो प्रते पोतानुं स्वरूप कहीने पवित्र थयो थको, ते तीर्थने हंसावतारनुं नाम आपीने, पोताने स्थानके गयो. एवी रीते ते दश क्रोड मुनि कार्तिक सुदि पुनेमने दिवसे चंड कृतिका नक्षत्रमा श्रावते बते त्यां शत्रुजयपर मोदे गया. जेम पुंडरिकजी चैत्री पुनेमने दिवसे, तेम आ मुनि कार्तिकी पुनेमने दिवसे त्यां मोदे गया, माटे ते बन्ने पर्वो कहेला बे. वली बीजी जगोए बीजे वखते यात्रा, तप, दान, तथा देवपूजनथी जे फल थाय बे, तेथीपण अधिक फल था तीर्थमां कार्तिकी पुनेमे ते कार्यों करवाथी थाय . वली अहीं सो सागरोपम रहेवाथी पण जे कर्म दय थतुं नथी, ते कर्म कार्तिक मासमांमासदपण करवाश्री क्षय थाय . वली विमलाचलपर कार्तिकी पुनेमनो एकज उपवास करवाथी, प्राणी, ब्रह्महत्या, स्त्रीहत्या, तथा बालहत्याना पापोथी मुक्त थाय जे. जे माणस अरिहंत प्रजुना ध्यानमा रहीने अहीं श@जयपर कार्तिकी पुनेम करे बे, ते सर्व सुखो जोगवीने मोक्ष मेलवे . जे माणसो वैसाक, कार्तिक, तथा चैत्र श्रादिक मासोमांपुर्णीमाने दिवसे संघसहित श्री पुंडरिकगिरिपर दान, तथा तप करे , ते मोद सुखने जजनारा थाय . हवे ते प्राविड, तथा वालखिल्बनां पुत्रोए त्यां श्रावीने, एवी तो प्रासादनी पंक्ति बनावी, के जेथी पुण्यना समूहोश्रीज जेम, तेम ते सिझगिरि पर्वत अत्यंत शोनवा लाग्यो. एवी रीते ते तीर्थमां कोडो मुनिए मोदसुख मेलव्यु , अने तेथी ते पवित्र तीर्थ त्रणे जगतोमा प्रख्यात थएडं . श्री नरत महाराजनां मोक्षपनी कोड पूर्व गया बाद ते प्राविड अने वालखिल्ल प्रमुख साधु मोके गया. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमःसर्गः २४५ श्री वीरप्रजु इंसने कहे जे के, हे इंछ ! एवी रीते था श्रवसर्पिणीमां श्रा शत्रुजय तीर्थनो प्रथम उझार श्रीजरत चक्रीश्वरे को; हवे ते पड़ी बाकीना उझारोनी स्थिति तुं सांजल ? श्री नरतमहाराजाना वंशमां अयोध्या नगरीमां, तेज अने यशनो खामी श्राठमो दंडवीर्य नामनो राजा थयो. ते त्रण खंड जरतनो अधिपति थयो थको तथा नरत महाराजनी पेठेज श्रावकोर्नु पूजन करतो थको राज्य पालतो हतो. एक दहाडो ते प्रगट नक्तिवंत एवा शोल हजार राजार्ड सहित उत्तम आसनपर बेठेलो हतो. जरत महाराज पठी न कोड पूर्व गया बाद एक दिवसे इंड सनामां बेठो थको प्रजुना गुणोनुं स्मरण करवा लाग्यो. पड़ी ते तेमनी सेंकडो शाखावाला वंशनी स्तुति करवा लाग्यो; आवटे तेणे पोतानां ज्ञानचकुश्री, स्फुरायमान यशवाला, पोताना वीर्यथी चंद्र अने सूर्यना तेजने पण हरता, हजार आंखोवालानी पेठे पोताना चकुथी अनेकोने जोता, हजार हाथवालानी पेठे दिशाउँमांथी सघली लक्ष्मीने खेंचता, हजार जीनवालानी पेठे सर्वने पोता. नां कार्योमा जोडता, पोतानां मस्तकपर श्री युगादीश प्रजुना मुकुटने धारण करता, सर्व बाजूषणोनां तेजोश्री जासुर थएला, मूर्तिश्रीज महा पराक्रमी, न्याय अने धर्ममां तत्पर, युगादीश प्रजु प्रते दृढ नक्तिवाला, जगतने पालवामां शक्तिवंत, घणा राजाश्री सेवाता, चामरोथी वीजाता, धर्मनुं माहात्म्य गृहण करता, तथा सनामां सुवर्णना सिंहासनपर बेठेला दंडवीर्य राजाने जोया. त्यारे खुशीथी पोतार्नु मस्तक धुणावीते, प्रजुना वंशमां नक्तिवालो ते इंअ श्रावकनो वेष लेइने अयोध्यामां श्राव्यो. देवपुष्य सरखी त्रेवडा सूत्रनी यज्ञोपवीतथी हृदयमां नूषित थएला, एक वस्त्रवाला ब्रह्मव्रतथी पवित्र थयेला, बार ब्रतधारी होवाथी बार तिलकोने धारण करता, तथा जरा पीली चोटटलीमात्र केशवाला, जरतजीए बनावेला अर्हत, मुनि, तथा श्रावक धमरूप, दूषण रहित चार वेदने गृहण करनारा, तथा पताका सरखा हाथथी शुद्ध जलें करी आचमन लेता एवा ते (अरूप) श्रावकने जो दंडवीर्य राजा तेमनापर आदरयुक्त मनवालो थयो. पती राजाए तेने जोजन कराववा माटे रसोइयाउने हुकम कर्यो, त्यारे ते पण या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ शत्रुजय माहात्म्य. पथिकीन स्मरण करतो थको तेउनी साथे दानशालामा गयो. त्यां केटलाको वेदना अंगो लणता हता, केटलाको शांतिपाठ करता हता, केटलाको परमब्रह्मनो जाप जपता हता, केटलाको ध्यानमां तत्पर हता, केटलाको त्रिकाल देवपूजा माटे त्रिकरण शुद्धिथी जलें करी स्नान करता हता, केटलाको मुनि ने वांदीने दान देता हता, केटलाको तपरूपी अग्निमां कर्मरूपी काष्टोथी अहिंसानी श्रादति करता हता, केटलाको आत्माराममां जावरूपी पाणीथी स्नान करी पवित्र मनवाला थया हता; एवा ते श्रावकोने त्यां जोश्ने इंश अत्यंत आनंद पाम्यो. हे श्रावक ! अमो तमोने वांदीए बीए, एम करीने उठेला एवा तेउनी साथे ते पवित्र पाणीथी आचमन करीने, जोजनशालामा दाखल थयो. हवे ते कपटथी श्रावक थएलो इंस कोडो श्रावकोने माटे पकावेबुं अन्न दिव्य प्रनावथी क्षणवारमां खा गयो; अने कहेवा लाग्यो के, अरे ! रसोश्या ! मने दुधातुरने अन्न पीरसो ? शा माटे तमो दंडवीर्य राजाना पुण्यने व्यर्थ करोडो ? पड़ी ते वात रसोश्याए राजाने कदेवाश्री, तेणे त्यां श्रावी, तेने जुख्यो, तथा शिथिल शरीरवालो जोयो. पडी ते कपटी श्रावके राजाने श्रमायुक्त श्रावक जाणीने दीननाव देखाडी कठिन वचन कह्यु के, हे राजन् ! तमोए था जे रसोश्वाउने राख्या बे, ते श्रावकोने उगनारा , केम के, मने एकने पण ते तृप्त करता नथी. वली श्रा पेटजरा तथा लालचु रसोश्या श्रावी रीते हमेशां बीजा श्रावकोने पण उगे . ते सांजली जरा क्रोधातुर थएला राजाए सो मूडा जेटबुं अन्न पोतानी नजरे पकावाव्यु. पडी ते कपटी श्रावक देवमायाथी, अनि जेम सर्व काष्टना समूहने तेम ते सघडं राजाना देखतां खा ग. यो; तथा पड़ी ते राजाने कहेवा लाग्यो के, हे जरतना कुलमां नूषण समान महाराजा ! शुं तमारे तमारा पूर्वजोनी कीर्ति वधारवी नथी ? वली दुधातुर एवा मने एकने पण ज्यारे तमो संतोषी शकता नथी, त्यारे नरतजीना पुण्यने तमो कुलीन पुत्र शुं श्रावीज रीते वधारशो ? वली जे माणस पोतानां पूर्वजोनां कुल, कीर्ति तथा पुण्यने वधारतो नथी, एवा माताने क्वेश करावनारा पुत्रो अ॒ कामनां डे ? वली ज्यारे तुं तारा पूर्वजो सरखं कार्य नथी करी शकतो, त्यारे तेना सिंहासनपर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमःसर्गः शा माटे बेसे ? तथा मस्तकपर तेमनो मुकुट पण शा माटे धारण करे ? वली था श्रावकोने नोजन कराववानां तारा कपटी डाकडमाकने बोडी दे ? अने तारी शक्तिमुजब कर ? फोकट माणसोने या दानशालानां डोलथी शा माटे तुं उगे ? तेवी रीतनी तेनी निष्टुर वाणी सांनलीने पण राजा गुस्से थयो नहीं, पण पोतानां पुण्यनी अपूर्णताने जाणीने उलटो ते पोताना आत्मानी निंदा करवा लाग्यो. पडी राजाना नावने जाणीने पवित्र वाणीवालो मंत्री कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! श्रा को देव कपटथी श्रावकनुं रूप लेश्ने अहीं श्राव्यो बे. वली श्रावकना वेषमां जो तमारी जक्ति होय, तो ते आचरो ? केमके तमारी नक्तिथी खुशी थश्ने कदाच ते पोतानुं स्वरूप प्रकट करशे. ते सांजली राजाए तेनी सपीपे चंदन अने अगुरुनो धूप करी पवित्र वचन कह्यु के, हे देव ! तमो श्रावकनो वेष लेश्ने मने प्रवित्र करवाने कोण श्रावेला बो ? तथा मारापर कृपा करीने श्राप प्रगट था ? वली हवे आपे मने खेद थापवो योग्य नथी, तथा हुं श्रावक वेषधारी मनुष्यने निश्चयथी नमुं बु. वली जिनमां, जिनधर्ममां, सुगुरुमां, तथा श्रापप्रते जो मारी खरेखरी नक्ति होय, तो श्रापर्नु खरूप प्रगट करीने, मारुं पुण्य सफल करो ? एवी रीतनां तेनां नक्तियुक्त वचनो सांजलीने अंतःकरणमां खुशी थएला के तेनी लोकोवच्चे वारंवार प्रशंसा करी. वली तेना मनने खेदयुक्त जाणीने इंजे तुरत कपटी रूप डोडीने, पोतानुं मूलरूप धारण कयु. त्यारे तेने इंश जाणी दंडवीर्य आश्चर्य सहित दर्षथी तेने नम्यो, तथा इंजे पण तेने हाथथी जंचकीने आलिंगन कयु, तथा तेने ते कहेवा लाग्यो के, हे चरमशरीरी महासत्व ! तमोने धन्य बे, प्रजुना कुलमां उत्पन्न थएला तमोने जोश, हुं श्री युगादीश प्रजुने याद करुं बुं. वली श्राजे में सुधर्मा सनामां बेगं थकां प्रजुना तेवा गुणयुक्त वंश- स्मरण कयु; तेमां पूर्वजोए अंगीकार करेलुं कार्य करनार, तथा अधिक गुणवान तमो बो, तथा तमो कुलीन पुत्रथी प्रजुनो वंश बाजे पण शोनी रह्यो .जे पुत्रो वंशनी स्थिति, गुणो, धर्म, कीर्ति तथा अखंड राज्यनी । वृद्धि करे , तेज खरा पुत्रो. वली हे राजन् ! तमो नरतना कुलमां उत्पन्न थया, माटे तमारे पण तेना सरझुंज कार्य करवू जोश्यें; अने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ शत्रुजय माहात्म्य. तेथी तमो शत्रुजयनी यात्रा तथा तीर्थोझार करो ? वली टुं तमोने देवोसहित त्यां श्रावी ते कार्यमां मदद करीश; माटे आ खामीवत्सलनी पेठे ते कार्य माटे पण तमो त्वरा करो ? ते सांजली राजाए कह्यु के, हे ! श्रापे मने ठीक ते चेताव्यु, अने तेथी श्राप मने तो जरत तुल्यज बो. वली श्री युगादीश प्रजुना नक्त आप समान बीजा कोश्ने पण डं जाणतो नथी, केम के, जरत महाराजना स्नेहथी आपे श्रहीं श्रावी मारापर कृपा करी. हवे हुँ तो जाणे संघसहित हवडेज यात्रामाटे प्रयाण करुं बुं, अने हवे आपणो पालो मेलाप पुंडरिक गिरिपर थशे. पड़ी खुशी थएला इंजे तेमने बाण सहित धनुष्य, दिव्य रथ, हार, तथा कुंडलो आप्यां. पडी इंड तो जगतमां उद्योत करता थका खर्गे गया, अने दंडवीर्य राजाए यात्राना प्रयाण माटे नंना वगडावी. ते ना. दथी, ते जाणे दूतथीज खेंचाया होय नहीं, तेम लोकोना समूहो वे. गथी पोतपोताना वाहनो सहित त्यां एकग थया. पली शुन दिवसे स्नानथी पवित्र थर, तथा पवित्र वस्त्रो पेहेरीने, श्रने जिनबिंबने न. मीने राजाए लोको सहित प्रयाण कयु. घणां सैन्यथी पृथ्वीना विस्तारने हरतो, उडती रजोथी तेजखीउँना तेजने हरतो, चार प्रकारनां ध. मनी वृद्धि माटे चतुर्विध संघ सहित, चतुरंगी सेना सहित, चार प्रकारनी बुद्धिवालो, चारे गतिऊना नाश माटे चारे कषायोने तजतो, चार लोकपालोपर पांचमो लोकपाल, चार महाधरो, चार सामंतो, चार मंत्री, तथा चार सेनापतिथी वींटाइने मार्गे चालतो थको ते रा. जा शोजतो हतो. वली श्रागल रहेला देवालयमा बिराजेला जिनबि. बना प्रजावथी कोइ पण देवो तेमने परालव करी शक्या नहीं. एवी रीते घणां देशोने उलंगीने, तथा ते देशोनां राजा पासेथी नेटो खेश्ने केटलेक दिवसे ते काश्मीर देशमां श्राव्यो. पडी प्रजातमां जेवो ते राजा सैन्य सहित प्रयाणनी श्वा करे , तेटलामां बे पर्वतोए तेनो मार्ग रोक्यो. त्यारे अग्र सैनिके श्रावी ते व्रतांत राजाने कह्यो. त्यारे राजा पण आश्रर्यथी तेमनी समीप श्राव्यो, त्यारे ते बन्ने पर्वतो प्रलयकालना पर्वतोनी पेठे अरसपरस आफल्या. ते बन्नेना श्राफलवाथी तणखाऊनो समूह एवो तो उबस्यो के, जाणे वन सरखो तेजखी ते वड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमःसर्गः भए वनलज होय नहीं, तेम देखावा लाग्यो, पढी तेमांथी त्रणे जगतोने बालवामां समर्थ, एवो अग्नि निकल्यो, तथा ते उत्तम मुनि तरफथी श्रावेली तेजोलेश्यानी पेठे कोश्थी पण सहन थ शक्यो नहीं. ते जोश सुमति प्रधान राजाने कहेवा लाग्यो के, हे खामी ! श्रा उपजव कोश उष्ट देवनो करेलो बे; आप तेने शांत करवा माटे पूजादिक कार्यों करो? के जेथी ते संतोष पामी पोतानुं स्वरूप प्रगट करशे. एवीरीतनां मंत्रिनां वचनथी राजाए पोते पवित्र पूजादिक कार्य कर्यु, केम के संत पुरुषो प्रायें करीने परने तुष्टमान करनारा होय . पड़ी ते शांति उपायोथी पण ते देव जरा पण संतुष्ट थयो नहीं, केम के वडवानलने जलथी सीच्याथी ते उलटो विशेष रीते बलवा लागे . पठी राजाए स्मरण करवाथीज इंजे आपेलुं शत्रुने नाश करनारं धनुष्य श्राव्यु, तथा तेने पूजी तेणे ते हाथमां धारण कयु. ते धनुष्यनां तेजश्री राजा बखतर पेहेरेलानी पेठे शोनवा लाग्यो. पड़ी राजाए तेने जरा खेंचीने तेनो टंकार कयों के, तुरत ते वज्रपातनी बीकधीज जेम, तेम दूर थया. पळी राजाये वजयी तथा देवोथी पण न वारी शकाय, तेवा ते बाणने धनुष्य साथे जोड्यु. ते वखते नजदीक रहेला लोको शंका करवा लाग्या के, शुं श्रा सूर्यने जीर्ण पत्रनी पेठे नेदी नाखशे? के कपासीनी पेठे ताराउने उडाडी नाखशे? के श्राकडाना फुलनी पेठे चंद्रने फेंकी देशे ? के कीर्ति नहीं मावाथी ब्राह्मांडने तोडी नाखशे ? तेटलामां तेजस्वी आंखोवालो, जयंकर, विंध्याचलपर रहेला श्रमिनी पेठे मस्तकपर पीला केशोवालो, गुफा सरखां नस्कोरांवालो, वायुथी वृदोने नांगतो, दांतोनापीसवाथी उत्पन्न थती श्रग्निनी ज्वालाथी जयंकर देखातो, तालवृद सरखा उदंड बाहुवालो, शीला सरखा दृढ हृदयवालो, अंकुशसरखा नखोना समूहथी फाडेला बे, सिंहोने जेणे एवो, चपल कीजयी नजदीक रहेला हाथी श्रादिकोने गृहण करतो, तथा माझं रक्षण करो ? मारुं रक्षण करो? एवां वचनो बोलतो एक वेताल प्रगट थयो. तेनां ते वचनथी राजा धनुष्य खेंचीने कल्पांतकालना सूर्यनी पेठे स्थिर रह्यो; तथा तेणे तेने कडं के, अरे नीच ! तें था मार्ग शामाटे रुंध्यो ? तथा तारी पासे कोनुं बल ? अने तुं कोण ? ते सघj कहे ? त्यारे ते वेताल कहेवा लाग्यो के, हे दयालु दंडवीर्य Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० शत्रुजयमाहात्म्य. राजा ! था तमारा सेवकपर कोप नहीं करो ? वली हे राजन् ! जीर्ण वस्त्रथी जेम सूर्यने, तथा तृणथी जेम अग्निने, तेम में जे तमोने रोध्या डे तेनुं कारण तमो सांगलो? हुं प्रथम वियजति नामनो एक विद्याधरोनो खामी हतो; अने तमोए मने संग्राममां जीत्यो हतो. तेनी पीडाथी मरीने खल्प आयुष्यथी, धणा नवोमां जटकीने, कोश्क पुण्यने योगे था वनना पर्वतमा ढुं वैताल थयो. पनी विनंगानथी इक्ष्वाकु वंशमां नूषण समान एवा तमोने अहीं थावेला जाणीने तमारो मार्ग रोकीने हुँ बेठो. गरुडना पदाघातथी जेम नागपाशो तेम तमारा धनुष्यना टंकारथी था पर्वतो फाटी गया; वली अगाउ हुँ को राक्षस, दानव, के मनुष्योथी पण जी. तायो न होतो. पण हवे तो तमारां बलने सहन करवाने हुं शक्तिवान नहीं होवाथी आपनाथी हुँ जीतायो बुं. अने हे स्वामी ! हवे हुँ श्रापनी आज्ञाथी अहीं चाकारनी पेठे रहीश; पनी राजाए पण तेने त्यांज स्थाप्यो. पडी राजाए क्रोध रहित थक्ष, स्नान करी, तथा प्रजुने पूजीने, अने जोजन करीने परिवार सहित त्यांश्री प्रयाण कयु. एवी रीते श्रखंड प्रयाणथी केटलेक दिवसे ते जरतजीनी पेठे शत्रुजय नजदीक पहोंच्यो. पडी त्यां आनंदपूरमां नरतनी पेठेज तेमणे जिनपूजा, तीर्थपूजा, संघपूजा, थादिक सर्व कार्य कर्यु. पठी ते शत्रुजयी, जरतकुंड, तथा बीजा कुंडोमांधी पण तीर्थोदक लेश्ने शत्रुजय पर्वतपर चड्यो; तथा वटे मुख्य शिखरपर चडीने, तेणे तेने त्रण प्रदक्षिणा दीधी. त्यां जरत चक्री. ए बनावेलां तेमनी कीर्तिरूपी वृदसरखां प्रज्जुनां प्रासादोने जोश्ने ते अत्यंत श्रानंद पाम्यो. हवे ते वखते अवधिज्ञानथी त्यां दंडवीर्य रा. जाने श्रावेला जाणीने इंश पण देवोनी साथे श्राव्यो; तथा तेणे मुख्य शिखरने, चैत्यने, रायणने, समवसरणने, तथा प्रजुनां पगलांने पूज्यां; पनी त्यां ते राजाए से कहेली विधिपूर्वक, दारिजरूपी वृदने बालवामां दावानलसरलुं संघपूजा, उत्सव आदिक शुज कार्य कयु. वली त्यां मुनिए कहेला ते गिरिना माहात्म्यने सांजलतां थकां तेणे त्रण अगर महोत्सव पूर्वक तीर्थोत्सव कर्यो. पड़ी त्यां प्रजुना मंदिरोने जीर्ण थएला जोश्ने ऊःखित थर, इंजनी अनुमतिथी तेऊनो तेणे उधार कयों. पनी तेणे रैवताचलपर पण उत्सवपूर्वक इंजनी अनुमतिथी मंदिरादिकोनो उ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमःसर्गः कार कर्यो. पड़ी तेमणे बाबु, वैचार, अष्टापद तथा सम्मेतशिखरपर पण संघ सहित यात्रा करीने उझार को. पड़ी तेणे पोतानां राज्यमां श्रावीने, त्यां पण क्रोडोगमे जिनमंदिरो कराव्यां, तथा तीर्थयात्रा करी. पनी एक दहाडो जरतनी पेठेज आरिसा जुवनमा पोतानां शरीरने जोता थका, अने संसारनी असारताने मनमां धारता थका ते दंडवीर्य राजा केवलझाननी संपदा पाम्या. पनी व्रत पालता थका, अने परनो उपकार करता थका ते दंडवीर्य महामुनि मोदे गया. एवी रीते था शत्रुजय तीर्थनो बीजो उझार करीने जरतना वंशमां थएला दंडवीर्य राजा मोद पाम्या. ___एवी रीते बीजो उद्धार जाणवो. हवे एक दहाडो ईशानें, ज्यां हेमेशां केवली अरिहंत विचरे , एवां महाविदेह क्षेत्रमा क्तिथी जिनेश्वरोने नमवा माटे गयो. त्यां सिंहासनपर बेठेला, तथा त्रण उत्थी शोजता प्रजुने स्तवीने, तथा नमीने ते तेमनी पासे बेठो. पडी प्रजु लोकोने आनंदकारी देशना देवा लाग्या के, जेम नवोमां मनुष्य नव, तथा घरोमां दीपक तेम सघला छीपोमां जंबूडीप श्रेष्ट बे. वली सर्व देशोमां सुराष्ट्र देश, तथा सर्व पर्वतोमां पुंडरिक गिरि उत्तम बे, केम के त्यां कीर्तनथी पण पापोने हरनारा श्री षनदेव प्रनु बिराजे . वली ते जरतदेत्र, तथा त्यांना मनुष्योने पण धन्य बे, केम के त्यां रहेला शत्रुजय तीर्थमां ते प्रजुने पूजे . वली हमेशां विमलाचल तीर्थने ध्याववाथी पापोनी शांति थाय बे, केम के, जो सूर्य नजदीक होय, तो शुं अंधकारनी प्रवृत्ति होय ? कोडो नवोमां पण पुलज एवं बोधिबीज शत्रुजय तीर्थमा प्रजुनुं ध्यान धरवाथी ततक्षण प्राणीने प्राप्त थाय . सर्व तत्वोमां जेम सम्यक्त्व तथा सर्व देवोमां जेम जिन, तेम सर्व तीर्थोमां उत्तम एवो शत्रुजय गिरि उर्लज डे. एवी रीतनी प्रजुनी देशना सांजलीने, ते तीर्थने जोवानी श्वाथी ईशाने शत्रुजय गिरिप्रते श्राव्यो. त्यां प्रजुने जोतां थकां, स्तवतां थकां, तथा जिनवाणीनुं समर्थन करतां थकां तेणे देवो सहित हा महोत्सव कर्यो. वली त्यां जिननक्तिनी पेठे, किंचित जीर्ण थएलां जिनमंदिरोनो तेणे दीव्य शक्तिथी उकार को. एवी रीते दंडवीर्य राजा पडी सो सा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजयमाहात्म्य. गरोपम गया बाद ईशानेनो करेलो पुंडरिक गिरिपर त्रीजो उकार थयो. एवी रीते त्रीजो उद्धार जाणवो. हवे एक दहाडो चैत्री पुनमने दिवसे देवो श्री पुंडरिकगिरिप्रते - षनदेव प्रजुने नमवा माटे श्राव्या. ते वखते हस्तीसेन नामना नगरमां सुहस्तिनी नामनी देवी कालनां वशथी कोडो देवीउथी वीटायी थकी मिथ्यादृष्टि थर हती. ते महा बलवान, तथा जैनधर्मनो वेष करनारी हती, श्रने तेणीए तालध्वज प्रमुख देत्रदेवोने पोताने वश करी लीधा. ते देवी स्वेबाचारी थश्ने, परखोह, मद्य तथा मांसमां बासक्त थ थकी पोतानां गर्वथी उडत थश्ने तीर्थने नुकशान करवा लागी. वली ते देवी देवोनां नहीं श्राववाथी, कपटथी, घणां बीजा पर्वतोने शत्रुजय सरखा करीने लोकोने उगती हती. हवे त्यां तेवा घणां पर्वतोने जो आश्चर्यथी एकबीजानां मुखो जोता थका ते देवो विचारवा लाग्या के, शुंश्रा पृथ्वीपर घणा शत्रुजय पर्वतो ? अथवा अमारी जक्तिथी तेणे घणां रूपो काँ जे.अथवा एक पर्वतपर अमो सघलाने नहीं माता जोश्ने, श्रा प्रनाविक पर्वत हजारो रूपपणाने झुं प्राप्त थयो ? एवी रीते चिंतातुर थएला देवोए अवधिज्ञाननो उपयोग दीधा विनाज ते सर्व जगोए स्नात्रपूजादिक कार्य कर्यु. पनी अहाश्महोत्सव करीने जेटलामां ते जवाने श् , तेटमा तेये विमलाचलपर एके शिखर जोयुं नहीं. त्यारे तेजए संत्रांत थर एवो तर्क बांध्यो के, श्रापणी कुनक्तिथी शुं था विमलाचल अदृश्य थयो ? वली जगतने पावन करनारा ते तीर्थने आपणे हमणाज अनेक प्रकारनुं जोयुं हतुं. अने हवे तो ते एक पण नजरे पडतुं नथी! पड़ी तेउए अवधिज्ञानथी ते देवीन कपट प्रगट रीते जोयु. त्यारे सर्व देवोए क्रोधातुर थइ प्रक्षयकालनां सूर्यनी पेठे तेणीतरफ जयंकर कोपज्वाला मुकी. ते कोपज्वालाथी अत्यंत बलती थकी परिवार सहित श्रावीने ते देवी तेजने नमवा लागी, तथा दीनवाणी बोलवा लागी के, हे देवो! तमो अमारा खामी बो, अने श्रमो तमारी दासी बीयें, माटे तृण समान एवी श्रमोपर क्रोध करवो उचित नथी. अमोए अज्ञानताथी था कार्य कर्यु , हवे पड़ी तेम नहीं करीयें, माटे अमारो थाटलो श्रपराध श्राप दमा करो? त्यारे देवो कहेवा लाग्या के, अरे ! पुष्ट ! Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमः सर्गः १५३ तीर्थनो घात करनारी ! तुं श्रमारी पेठे बीजा लोकोने पण श्रवी ते ठगे बे !! वली हे मांसजणी! तें या तीर्थनी सातना करी ! तने तीर्थनी रक्षा मा राखेली हती, अने तें उलटो तीर्थनो नाश करवा मांड्यो ! वली तें जरतप्रते दासनाव राखीने श्रावुं कार्य कर्यु ? माटे हमणाज तारो श्रमो नाश करीशुं. ते वचन सांजली जयजीत ली ते इस्तिनी देवी प्रजुने शरणे गर, केम के, तेम कर्याविनां जवथी जेम तेम देवानां क्रोधथी तेणीनो बुटकारो न होतो. पढी तेणीने श्री युगादीश प्रजुने शरणे गएली जोइने, देवो दूर उनी थका कड़ेवा लाग्या के, अरे दुष्ट ! या तें शुं कर्यु ? त्यारे दांतोथी यांगलीनां देवां 'चावती थकी ते देवी कहेवा लागी के, हे दयालु देवो ! तमो कृपा करी क्रोधने तजो ? वली हुं हवेथी कोइ पण दिवसे मनथी पण जो या कार्य चिंतनुं, तो मने या जगतथी नमाएला युगादीश प्रजुना चरणोना सोगंद बे; वली या बाबतमां जगतनां जावोने जोनारा तमो साक्षी बो; तेथी हवे कृपा करीने मारा था एक अपराध माटे तमो क्षमा करो ? एवी तनां दीन वचनोवाली एवी तेणीने देवोर्ड विसर्जन करी, केम के, उत्तम माणसो नमता अपराधी पर गुस्से यता नथी. पढी त्यारथी ते हस्तिनी देवी हस्तिसेन नगरमा रही ने संघनी जक्ति करती थकी तीर्थनी रक्षा करवा लागी. हवे ते वखते चोथा देवलोकना माहेंद्र नामना जक्तिवान इंद्रे ते शत्रुंजयपर जरा जीर्ण थपलां प्रजुना मंदिरोने जोयां. त्यारे ते विचारवा लाग्यो के, श्रहो ! जगतने हितकारी एवा या तीर्थमां श्रा शुं ययुं ? खरेखर ते या देवीनं चेष्टित बे. एम विचारि दीव्य शक्तिथी वार्धकी मा रफते ते ते प्रासादो नवाजेवां समराव्यां. वली एवीज रीते तेथे बा - हुबलि, तालध्वज, कदंब गिरि, तथा रेवताचल आदिक शिखरोपर पण उद्धार कर्यो. एवी रीते इशानेंद्रे करेला उद्धार पढी क्रोड सागरोपम गया बाद विमलाचलपर माहेंद्रनो करेलो चोथो उद्धार जाणवो. एवी रीते चोथो उद्धार जाणवो. हवे एक दहाडो महाविदेह क्षेत्रमां जिननो जन्मोत्सव करीने देवो आवमा नंदीश्वर द्वीपमां गया. त्यां श्राव दिवसो सुधि जिनार्चन तथा महोत्सव करीने श्री शषन प्रजुने नमवाने विमलाचलपर श्राव्या. त्यां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ शत्रुजय माहात्म्य. तेमणे नक्तिथी आठ दिवसो सुधि प्रजुनी पूजा करी, तथा पुण्यनां मंदिर सरखां ते जिनप्रासादोने किंचित जीर्ण थएलां जोयां. तेथी महा जक्तिवान ब्रौंजे सर्व देवोनी अनुमोदना पूर्वक दिव्य शक्तिथी विमलाचलपर उकार को. एवी रीते मांहेंडे करेला उकार पड़ी दश कोड सागरोपम गया बाद था शत्रुजयपर ब्राँडे करेलो पांचमो उकार थयो. एवी रीते पांचमो उकार जाणवो. हवे एक दहाडो चमरेंज आदिक जुवनेंसो स्वेबाथी तथा नक्तिथी नंदीश्वर द्वीपे गया. त्यां तीर्थयात्रा माटे निकलेला, तथा कामदेवने जीतनारा बे विद्याधर मुनि श्राव्या. ते मुनिए ते देवोने, सांजलवाथी पण पवित्र करनारो श्री पुंडरिक गिरिनो महिमा कह्यो. एवी रीते ते मुनिउँथी प्रेराएला ते देवो शत्रुजय तीर्थप्रते तेउनी साथे श्राव्या. पड़ी त्यां तथा सर्व तीर्थोमां यात्रा, दान, पूजा तथा नक्तिथी मंदिरोनो जकार करीने, ते पोताने स्थानके गया. एवी रीते ब्रह्मजे करेला उझार पडी लाख कोड सागरोपम गया बाद विमलाचलपर जुवनें करेलो हो उझार थयो. . एवी रीते हो उझार जाणवो. वली वच्चे पण श्री शत्रुजय पर्वतपर माणसो, तथा देवोनां करेला घणा पवित्र उधारो थया . एवी रीते श्री जरतथी मांडीने सगर चक्री सुधिनां कल्याणना निधान सरखा, तथा तीर्थनो उधार करनारा, अने इंसोथी पण वखणाएला श्राशयवाला राजा थया; तथा ते अंतरंग ब शत्रुने, जीतीने, शानी थया थका अनुक्रमे मोदे गया. एवी रीते श्री वर्धमान प्रजुनां मुखरूपी कमलमांधी निकलेला वचननां सारने मेलवीने इंसो निर्मल आनंद पाम्या, के जेथी तेमने जाणे मोक्षसुखज मत्यु होय नहीं तेवा ते थया. एवी रीते श्राचार्य महाराज श्री धनेश्वर सूरिए बनावेला महातीर्थ श्री शत्रुजयना महात्म्यमा प्राविड तथा वालखिल्बर्नु चरित्र, तथा तीर्थोझारनां वर्णननो सातमो सर्ग संपूर्ण थयो. श्रीरस्तु. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः अष्टमः सर्गः जेमचें चरित्र *चार मनोहर श्राश्चर्योथी श्राश्रित थएबुं बे, एवा श्रीमान् नाजि रोजनां पुत्र (युगादीश प्रजु) वांबित अर्थने आपो ? श्री वीर प्रनु इंडने कहे जे के, हे छ ! तीर्थकरना मनोहर चरित्रवाला बाकीनां उझारोनी स्थिति पण तुं सांजल ? कर्मरूपी शत्रुथी नहीं जीताएला, तथा कामदेव रूपी शत्रने जीतनारा, एवा अजितनाथ प्रजुने नमस्कार करीने, तेमनाज गुणोनुं हुं वर्णन करुं बुं. जंबूहीपना जरतक्षेत्रमां, शत्रु जेनी साथे लडी नथी शकता एवी, तथा पृथ्वीमा प्रख्यात, अने निर्भय अयोध्या नामनी नगरी जे. जे नगरीप्रते श्रावेला शत्रु मणिना कोटमा प्रतिबिंबित थएलां पोतानांज शरीरोने जोश, सन्मुख श्रावेला शत्रुठनी बीकथी नाशी जता हता. वली ज्यां हमेशां अरिहंत प्रजुना मंदिरोमां वागता घंटानां मूर्तिवंत धर्मराजा सरखा नादोथी पापरूप राजा तो नाशीज जतो हतो. त्यां श्री षनदेव प्रजुना वंशमां बीजा अजितनाथ प्रनु सुधिमां असंख्याता राजा मोदे गया, तथा एक सर्वार्थसि गया. अनुक्रमे ते वंशमां ते नगरीमां जिनध्यानथी शुद्ध बुद्धिवाला, शत्रुउँने जीतनारा, महा प्रजाववाला, तथा गुणरूपी माणिक्यनां रोहणाचल सरखा जितशत्रु नामे राजा थया. तेणे शत्रुनां, तथा याचकोनां ललाटपर रहेली कर्मनिमित अक्षरोनी पंक्ति लोपी हती. तेमने उत्तम गुणोवालो, तथा महा नक्तिवंत सुमित्र नामे नानो युवराज नाश हतो. हवे ते जितशत्रु राजाने, मुखथी दासरूप करेल ने चंने पण जेणीए, तथा विजयना था. ख्यानमां दृष्टांत सरखी विजया नामे राणी हती. शीलरूपी पर्वतपर च. डेली, तथा असंख्य गुणोवाली ते राणी पतिना हृदयने पोता तरफ खेंचती हती. वली वन्ने पक्षोथी (पांखोथी) शुक, तथा विवेकवाली ते राणी हंसीनी पेठे पतिनां निर्मल मनमां (मानस सरोवरमां) वास करीने रहेती हती. वली जगतने मित्र सरखा ते सुमित्र युवराजनी उत्तम च *(१) युगलीआंउनी नहीं शिखवेली पण विवेकनी लक्ष्मी. (२) श्रेयांस कुमारनी दाननी वासना. (३) चक्रीथी पण बाहुबलिनुं अधिक बल. (४) लोगो जोगवतां थकां पण जरत महाराजने थएलुं केवलज्ञान. ए चारे आश्चर्यो जाणवां. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ शत्रुजय माहात्म्य. रित्रोथी यशवाली यशोमती नामे स्त्री हती. ते गजगामिनी स्त्रीए पोतानां गुणोथी (दोरीथी) तारुण्यरूपी वनमां संचार करनारां, तथा कामतृष्णाथी व्याकुल थएलां पोतानां स्वामिना मनरूपी हरिणने बांधी ली, हतुं. हवे एक दहाडो चंखशालामा सुतेली, तथा थोडी जागती अने थोडी ऊंघती, एवी विजया राणीए पाडली रात्रिए, हाथी, सिंह, वृषन, लक्ष्मी, पुष्पमाला, चंड, सूर्य, ध्वजा, कलश, वीरसमुफ, पन्नसरोवर, देव विमान, रत्नोनो राशि, तथा अग्नि, एवी रीते चौद खप्नोने पोतानां मुखमां प्रवेश करतां जोयां, अने तेथी ते अत्यंत श्रानंद तथा सुख पामी. वैसाक सुदी तेरसने दिवसे चंछ रोहिणी नदात्रमा श्रावते बते जवनां दयथी अनुत्तर विमानथी चवीने, कोश्क देव निशीथ समये समाधि पूर्वक तेणीनी कुदिमां श्रावी अवतयों; ते वखते जगतमां मोहोटो उद्योत थयो, तथा नार किउँने पण सुख थयु. हवे सुमित्रनी स्त्री यशोमती पण रात्रीए तेज स्वप्नोने जो अत्यंत आनंद पामी. पठी प्रजाते ते बन्नेए हर्षथी पोतपोतानां स्वामिउँने ते व्रतांत कह्यो, त्यारे तेजए पण स्वप्नवेत्ताउँने ते संबंधि फल पुब्युं. त्यारे ते खप्नवेत्ताए पण विजया राणीथी जिननी उत्पत्ति, तथा यशोमतीथी चक्रीनी उत्पत्ति थवानी कही, त्यारे तेए ते स्वप्नवेत्ताउँने धनश्री हर्षे करीने खुशी कर्या. हवे उत्तम गर्जना अनुनावथी, जीवोनी अनुकंपाथी, तथा स्वनावधी मंद गतिवाली थने उत्तम दोहलावाली ते बन्ने थश्. हवे नव मासो श्रने साडा श्राप दिवसो संपूर्ण थया बाद महासुदी थामने दिवसे चंड रोहीणी नदात्रमा श्रावते बते विजया राणीए निशीथ समये सो. नेरी कांतिवाला, तथा हाथीना चिन्हवाला, अने जगतमां उद्योत करनारा पुत्रने जन्म प्राप्यो. ते वखते श्रासनो कंपवाथी उपन्न दिक्कुमारीनए श्रावीने जक्तिथी सर्व सूतिकर्म कयु. वली ते समये चोसठ इंस्रो पोताना श्रासनो कंपवाथी प्रजुनो जन्म जाणीने हर्षित थया थका शोजनिक विमानोथी, तथा उत्तम परिवारोथी, घणा बीपोने उलंगीने वि. निता नगरीमा श्राव्या. पडी सौधर्मे जिनमाताने श्रवस्वापिनी निडा देश्ने, तथा तेमना पडखामां प्रजुनुं प्रतिबिंब मेलीने प्रजुने ग्रहण कर्या. चंदनथी लीप्त करेला तथा कुजलरूप करेला हाथमां प्रजुने वेश्ने इंस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमः सर्गः श्य क्षणवारमां मेरुप्रते पहोंच्यो. त्यां पांडुक वनमां अर्ध चंद्रना आकारवाली शाश्वती ने स्फटिकनी अतिपांडुकंबला नामनी शिला बे. त्यां पूर्वाचल जेम सूर्यने, तेम इंडे मनोहर सिंहासनपर बेसीने प्रजुने खोलामां धा. त्यां वली एक रूपथी इंद्रे छत्र, वे रूपथी चामर, तथा एक रू पथी वज्र धारण कर्यु. एवी रीते जक्तिवंत इंडे पांच रूपो धारीने बी - जाउने स्नात्र माटे आज्ञा करी. पढी एक हजारने आठ माटीनां, सुवर्णनां, रूपनां, मणि अने रत्नोनां, सोना अने रूपानां, तथा मणि सोनानां, तीर्थोदकथी नरेला कलशोथी प्रजुने दरेके छाजिषेक कय. वली ते प्रजुने गोशीर्ष चंदनथी, दीव्य सुगंधिवाली वस्तुथी, पुष्पोथी, फलोथी, तथा पत्रोथी जक्तिथी पूज्या पढी उत्तम जाववालो सौधर्मेंद्र जरा हवीने तेमनी मनोहर स्तुति करवा लाग्यो के, त्रण लोकनां नायक! देवाधिदेव ! जगवन् ! तथा सर्व जनोमां उत्तम ! अजितनाथ प्रभु तमो जय पामो ? वली हे प्रभु श्री युगादीश प्रभु पी पचीस लाख क्रोड पूर्व गया बाद मारां जाग्यथी आपनो जन्म थयो बेवली आपना अवतारथी, मने (मलनारी ) पूजा ने देशनाना श्रवणयी हुं मारा जन्मने पण सफल मानुं हुं. वली हे स्वामी श्राजे या जरतखंड, हुँ यदि देवो, नागकुमारो तथा मनुष्यो पण पवित्र थया. वली आप वरूपी समुद्रमां बुडता प्राणीउने तारनारा बो. वली हे कृपालु खामी ! सुवामां, बेसवामां, चालवामां, ध्यानमां तथा सर्व कार्योंमां आप मारा चित्तमां वसो ? वली हे गुणोना आधारभूत, अनंत, अव्यक्त, तथा जगत्स्वामी एवा बीजा अरिहंत, तमो धर्मोपदेश देवा माटे वर्या बो. वली हे जगवन्! आपनी सेवा, स्तुति तथा ध्याननां पुएयथी जवजवते आपना चरणकमलो मारा मनमां रहेजो ? एवी रीते पंचांग प्रणामपूर्वक प्रजुनी स्तुति करीने ते इंद्र प्रीतिथी तेमने पूर्वनी पेठे लेने वारंवार जोवा लाग्यो. पढी ते पोताने धन्य मानतो थको देवोस हित तुरत हर्षथी जितशत्रु राजाने घेर श्राव्यो, पढी त्यां मातानी निद्राने, तथा प्रजुना प्रतिबिंबने खेंची लेइ, तथा प्रजुने पलंगपर मुकीने ते नंदीश्वर द्वीपे गयो. त्यां सघला देवो श्राव दिवसोसुधि जिननो जन्मोत्सव करीने, प्रभुनुंज ध्यान धरता थकां पोतपोताने स्थानके गया. ३३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्य शत्रुंजय माहात्म्य. हवे तेज रात्रिए संपूर्ण दोलावाली यशोमतीए पण संपूर्ण समये एक पवित्र पुत्रने जन्म श्राप्यो पढी स्नात्रोत्सव समये नहीं जोएला प्रजोवा माटे जाणे उत्सुक थयो होय नहीं, तेम सूर्य उदयाचलपर चढ्यो . ते वखते सूर्यनां किरणोनी श्रेणि जिनवाणीनी पेठे जगतमां - धकारने हणती थकी कमलोनो उदय करवा लागी प्रजातमां राजाए पुत्रना जन्मनी वधामणी श्रापनारने बहु दान श्रापी ने तेनुं जन्मनुं दारिद्र हर्षी दूर कर्यु. वली ते वखते धनदे इंद्रनी आज्ञाथी आषाढ मासना मेघनी पेठे नगरमा सर्व जगोए सुवर्ण रत्न तथा वस्त्रोनी वृष्टि करी. ते वखते नगरमां ध्वजा, तोरणो, माणिक्यनां वस्तिको, पुष्पमालाई विगेरेथी मोटो उत्सव थर रह्यो. दवे बीजे दिवसे राजाए स्थिति प्रतिस्थिति करी, तथा त्री जे दिवसे बन्ने पुत्रोने सूर्यचंद्रनुं दर्शन कराव्यं. बठे दिवसे उत्सवपूर्वक गोत्रीनी अनुमतिथी राजाए पोताना पुत्रनुं श्रजित, तथा यशोमतीना पुत्रनुं सगर नाम पाड्युं. हवे श्री अजितनाथ प्रभु इंडे मुकेली पांच धावोथी, ते जाणे पांच समितिथीज होय नहीं तेम, लालन कराता था वृद्धि पामवा लाग्या. पढी जगतना श्रालंबनरूप प्रभु लाकडी कालीने पृथ्वी पर धीमे धीमे चालवा लाग्या. ते वखते इंद्रनी श्राज्ञाथी देवो, मयूरो थने, घोडा थइने, तथा हाथी थइने प्रजुने रमा - डवा लाग्या. एवी रीते संसारथी विरक्त थरला पण प्रभु, मातपिताना तथा देवोना आनंद माटे बालोचित क्रीडा करवा लाग्या. हवे सगरकुमार पण समय श्राव्याथी अत्यंत हर्षित थथा थका मातपितानी खुशी माटे गुरुपासेथी सर्व कलाउंनो अभ्यास अनुक्रमे करवा लाग्या. सुवर्ण सरखी कांतिवाला, तथा उत्तम लक्षणोवाला ते बन्ने - नुक्रमे मध्यम वयने पाम्या. साडा चारसो धनुष्यनी उंचाश्वाला तथा अत्यंत रूपाने लावण्यवाला ते बन्ने जगतने श्रानंद पवा लाग्या. पोतानां जोगावली कर्मोने जाणता एवा प्रभु मातपिताना हर्ष माटे राजकन्या परया, केम के कर्मोनुं फल बलवान डे वली सगरे पण मात - पिताना हर्ष माटे घणी राजकन्यासाथे लग्न कर्यु. तेथी ते ताराउंमां जेम चंद्र तेम शोजवा लाग्या. दवे प्रजुए देवोथी सेवातां थकां अढार लाख पूर्व कुमारपणामां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः गाख्या. पड़ी जितशत्रु राजाए पोताना वहाला पुत्रने अत्यंत गुणवान जाणीने, तेमनी श्छा नहीं उतां पण पराणे राज्यपर स्थापन कर्या. सुमित्र युवराजे पण जितशत्रु राजानी अनुज्ञाथी पोताना स्थानके पोताना पुत्र सगरने स्थापन कर्यो. पनी जितशत्रु, सुमित्र, तथा बीजा राजाए पण धर्मघोष गुरुपासेथी दीक्षा लीधी. हवे सुरासुरोथी पण नहीं जीताता प्रजु देवोथी सेवाया थका राज्य पालवा लाग्या. ते वखते सगर युवराज पण राजानी (प्रनुनी) श्राशाथी घणा देशोने साधीने जयवान थया थका पागा श्राव्या. एवी रीते प्रजु ज्यारे राज्य करता हता त्यारे, देशमां इति के नय न होतो, तथा सुखम कालनी पेठे लोको हमेशा सुखीया हता. एवी रीते प्रजुए त्रेपन लाख पूर्व सुधि राज्य पालीने पोतानुं नोगावली कर्म खपाव्यु. हवे एक दहाडो उद्यानमां वसंत ऋतु आव्याथी प्रजु लोकोना उपरोधथी राणी सहित त्यां चालवा लाग्या. पली कोकिलोनां कोलाहलोथी, तथा जमराऊना ऊंकारोथी पोतानी शोना देखाडता, तथा वृदोरूपी जंचां मस्तकोथी प्रजुने जोता, अने तेउनी शाखारूपी हाथोथी प्रजुने बोलावता एवा ते वनमा प्रनु पहोंच्या. विकखर थएला पुष्पोनी सुगंधवाला, तथा बायाथी ताप विनाना, एवा ते वनमा प्रचुलोकोनी साये क्रीडा करवानी श्छा करवा लाग्या. ते वखते कोश्क स्त्री पगना अग्र नागपर उनीने वृदोपरथी फलो तोडवा लागी, त्यारे ते पोतानां स्तनोरूपी गुडाउँथी शोजती थकी जंगम वेलडी सरखी देखावा लागी. वली ते वखते कोश्क स्त्रीनुं समस्त शरीर तो वृदोथी बवाएवं हतुं, अने फक्त मुख देखातुं हतुं, तेथी लोकोने अन्य जातिनां वृक्षमां अन्य जातिनां पुष्पनी उत्पत्तिनी शंका थती हती. वली ते वखते कोश्क स्त्री तो एवी रीतना क्रोधथी नखोयें करीने पुष्पोने दवा लागी के, मारी आ ांगलीज कामदेवना पांच बाणो बे, श्रा पुष्पो तो कंई हिसाबमां पण नथी. वली ते वखते कोश्क स्त्री तो पोतानां स्तनोथी हाथीना कुंजस्थलोने जीतवाथी त्यांची मलेला मोतीथीज होय नहीं जेम तेम मालतीना पुष्पोनी माला गुंथीने पोतानां स्तनोपर पेहेरवा लागी. वली ते समये त्यां कोश्क स्त्री वसंत रागनी साथे पंचमखर गाती थकी (स्त्रीथी) विरही पुरुषोने कामानि उ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० श→जय माहात्म्य. पजाववा लागी. वली कोश्क स्त्री तो कामदेवरूपी चक्रीनां चक्रोसरखां बकुलनां पुष्पोने मजाकथी पोतानां खामिपर फेंकवा लागी. वली श्वेत वस्त्रोवाली कोश्क स्त्री तो ते समये पोतानां मुखरूपी चंथी पुनेमनी रात्रिनी शोजाने धारण करती हती. ते वखते प्रनु पण सर्व अंगोपर पु. पोनां श्रानूषणो पेहेरीने, तथा हाथमां पुष्पोनो दडो लेश्ने पुष्पनांज बीलानापर बेठग. ते वखते स्त्री प्रजुनी पासे नाचती थकी रासलीला करवा लागी. एवी रीते कामी लोको कामविलासमां थासक्त थए बते प्रनु अवधिज्ञानथी पोतानां पूर्व जवोनुं स्मरण करवा लाग्या, थने तेथी तेमणे अनुत्तर विमान आदिकनां सुखोने याद कर्यां. ते वखते साकर खानारो जेम लींबडानां खादथी, तेम प्रजु तुरत ते कामरसथी दूर थया; अने विचारवा लाग्या के, अहो (पूर्व जवोमां) तेवी रीतना सुखो लोगव्या उतां, हजु अहीं पण कामविलासमां माझं मन चोटेj !! माटे ते कामना चेष्टितने धिक्कार !! प्राणी अज्ञानदशाथी अनंता जवोमां घणां सुखो जोगव्या बतां पण नवनवप्रते नवां नवां सुखोनेज श्छे बे. वली प्राणी अनंत सुखोने जोगवतां उतां पण ते तृप्ति पामतो नथी, अने फुःखनो तो एक लेशमात्र श्राव्याथी पण ते कंटाली जाय . वली पुएयथी सुखो मले बे, उतां पण ते पुण्यमां प्राणी श्रादरवालो थतो नथी, अने जे प्रमादथी कुःख मले , तेमां तो ते श्रादरवालो थाय . वली पापकार्यों करीने उत्तम फलनी प्राप्ति क्याथी थाय ? केम के, लींबोडी वाव्याथी कंश कल्पवृदनो अंकुरो ते उगे? वली श्रा संसाररूपी समु. अमां बुकिवानो पण (मडीमारो पण ) विषयरूपी मांसनां लोनथी मस्योनी पेठे दुःखरूपी जालमा फसाइ पडे बे. खेछाचारी विषयरूपी वै. री था जवरूपी चौटामा मूल्नां पुण्यरूपी चैतन्यने लुंटी लीए . वली पुत्र, मित्र तथा स्त्री आदिकरूपी पाशोथी दरेक नवमां बंधाएलो मनुष्य पदिनी पेठे स्वेबाथी धर्मने विषे रमी शकतो नथी. वली जे माणसो तुब सुखना लोनयी पोतानुं पुण्य हारी जाय , ते अमृतनो पोताना पगो धोवामा उपयोग करवा जेवू करे . हवे प्रजुजेटलामां एवी रीते चिंतवता हता, तेटलामां लोकांतिक देवो "जय जय" शब्द करता थका तेमनी पासे श्राव्या; तथा तेमने कहेवा लाग्या के, हे प्रजु ! श्राप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१ अमष्टःसर्गः अज्ञानीनी पेठे मोहने धारण नहीं करो? पण तीर्थ प्रवर्तावो? एम कही ते विनयवंत देवो पोताने स्थानके गया. पठी तेज वखते प्रजु तुरत ते क्रीडादिकने विसर्जन करीने, कामधेनुने पण जीतता का वार्षिकदान देवा लाग्या. एवी रीते हाथी, घोडा, रथो, रत्नो, माणिक्यो, तथा वस्त्रोनुं एक वर्ष दरम्यान प्रजुए जे दान प्राप्युं, तेनी संख्या तो ते प्रजुज जाणी शके, बीजो जाणी शके नहीं. प्रजुए सगर कुमारने चक्री थनारा जाणीने तेनी श्वाविना पण बलात्कारे तेमने राज्यपर बेसाड्या. हवे ते वखते श्रासनो चालवाथी सघला इंघो प्रजुनुं दीक्षाकट्याणक जाणीने आकाशने शोजावता थका पोतपोताना स्थानकोथी आव्या. पबी प्रनु पण स्नान करीने, तथा दीव्य वस्त्रो अने थानूषणो पेहेरीने, अने घरदेरासरमा रहेलां अरिहंत प्रजुना बिंबोने पूजीने अ जेम पा. लक विमानमा तेम सुरासुरोए बनावेली सुप्रजा नामनी पालखीमां बेग. पली वृक्ष स्त्रीउँथी वधावाता, तथा तेऊना हाथोथी बुंबन कराता प्रजु हजारोथी वहन कराती ते पालखीमां बेग थका वनमां गया. त्यां सहस्राम्र वनमां अशोक वृक्षनी नीचे तेउँए ते पालखी उतारी, त्यारे प्र. नु पण उदयाचलथी जेम सूर्य, तेम तेमांथी तुरत नीचे उता. हवे त्यां प्रजुए उतारेलां वस्त्र, बाजरण, पुष्पमाला, तथा मोतीने इंजे पोताना वस्त्रना बेडामां ग्रहण काँ. पडी प्रजुए कुकर्मोथी उत्पन्न थएला केशोने जेम, तेम पोताना केशोने पंचमुष्टिथी उखेडी नाख्या, तथा इंजे ते केशोने वीरसमुअमां पधराव्या. पठी इंजे संज्ञाथी घोंघाट बंध कराव्यो, एटले प्रजुए पण त्रिविधे त्रिविध सामायिक अंगीकार कर्यु. ए. वीरीते प्रजुए एक हजार राजउनी साथे दीदा लीधी, अने इंडे पण प्रजुना स्कंधपर उज्ज्वल देवपुष्य वस्त्र धारण कयु. एवी रीते माहा. सुदी नवमीने दिवसे चंड रोहिणी नदात्रमा श्रावते बते, पाबले पोहोरे बहना तपपूर्वक प्रजुने चोथु (मनःपर्यय) ज्ञान उत्पन्न थयु. हवे मौनधारी प्रनु पण निःसंग थया थका पृथ्वीपर विहार करवा लाग्या, तथा इंसादिक देवो नंदीश्वर छीपे गया. पनी बीजे दिवसे प्रजुए थयोध्यामां ब्रह्मदत्तने धेर दूधपाकथी कल्याणकारी पारणुं कर्यु. ते वखते तेना श्रांगणामां आकाशश्री साडाबार कोड सोनैयानी, तथा पुष्पो अने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ शत्रुजय मादात्म्य. देवदूष्योनी वृष्टि थक्ष, तथा श्राकाशमां देवकुंकुनी वागवा लागी, चेलोज्य थयो, तथा देवो ब्रह्मदत्तनी प्रशंसा करता थका " जय जय" शब्द करवा लाग्या. “श्रा प्रजुए स्पर्श करेली नूमिने, तथा तेमना पगलांने को स्पर्श न करे तो सारं " एम विचारि ब्रह्मदत्ते त्यां धर्मचक्र बनाव्यु. पड़ी ते निर्मम प्रनु आर्य तथा अनार्य देशोमां विहार करता थका ध्यानरूपी अग्निथी पोताना घतिकोने बालवा लाग्या. मोतीना हारमा भने सर्पमां, मणिमां अने ढेफामां, तृणमां अने स्त्रीमां, शत्रुमां अने पुत्रमां, सुवर्णमां श्रने काचमां, सुखमां अने पुःखमां, नवमां अने मोक्षमा, उजाडमां अने वस्तीवाला नागमां, तथा दिवस, रात्रि अने संध्यामां पण प्रजु समदृष्टिवाला थया. वली ते प्रनु काचबानी पेठे गुप्तेंजिय, श्राकाशनी पेठे निर्लेप, पृथ्वीनी पेठे दमावंत, तथा सूर्यनी पेठे श्रद्भूत तेजवाला थया. एवी रीते ते प्रजु बार वर्षोसुधि सघला देशोमां विहार करीने फरीने अयोध्यामां श्राव्या. त्यां सहस्राम्र वनमां सप्तबद वृदनी नीचे ध्यानांतरने प्राप्त थर, गोदोहिकासनमा रह्यां थकां, पोस सुदी बारसने दिवसे चंछ रोहिणी नक्षत्रमा श्रावते बते, पाबले पहोरे, कोंना यथी प्रजुने केवलज्ञान उत्पन्न थयु; अने तेथी चौदरअप्रमाण लोकने, गतागतिने, तथा कर्मोना विपाकने ते हाथमा रहेला मणिनी पेठे जोवा लाग्या. हवे ते वखते श्रासनो कंपवाथी सो नक्तियें करीने, विमानोथी सूर्यबिंबनी स्पर्धा करता थका त्यां श्रावी पहोंच्या. पबी त्यां देवोए योजनना प्रमाणवालुं, सोना, रूपा, अने मणिना त्रण गढोवाटुं तथा चार छारोवावु समवसरण बनाव्यु. हवे ते वखते सनामां श्रासनपर बेठेला सगर राजाने बडीदार नमस्कार करी कदेवा लाग्यो के, हे स्वामी! कोश्क बे पुरुषो बारणे थावी उना . पली राजानी थाज्ञाथी बडीदारे त्यां प्रवेश करावेला एवा ते पुरुषोमांथी एक राजाने नमस्कार करी कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी! हुँ वधामणी श्रापुं हुं के, प्रजुने केवलज्ञान उत्पन्न थयुं . पडी बीजो पुरुष पण नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! थाप जय पामो ? हुँ हर्षदायक वधामणी थापुं हुं के, श्रायुधशालामां चक्ररत्न उत्पन्न थयु ३. ते सांजली सगर राजानुं मन हिंचोला खावा लाग्युं के, श्रा बन्ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमः सर्गः २६३ कार्यो मारे करवा लायक बे, तो हवे प्रथम चक्रनो उत्सव करूं ? के प्रजुना केवलज्ञाननो उत्सव करूं ? पढी तेथे निश्चय कर्यों के, त्रणे लोकोने अजयदान देनारा आ प्रभु क्यों ? अने जगतने जय करनारुं sar क्या ? एम विचारि ते तुरत आसनपरथी उठ्यो. पठी ते हाथी घोडा, रथो, पुत्रो, पालार्ज, तथा व्यापारी ने बीजा लोकोथी वींटायो को स्त्री सहित वनमां गयो. त्यां ते प्रजुने त्रण प्रदक्षिणा देने, स्तवीने, तथा नमीने तेमना मुखनी, नीचे प्रमाणे देशना सांजलवा लाग्यो. स्वर्ग ने मोहना कारणरूप धर्मनेज हमेशां सेववो, केम के धर्मविना दुःख दौर्भाग्य, तथा जवज्रमण थाय बे. उत्तम बुद्धिवालो माएस या सार शरीरथी धर्मने गृहण करे बे, वली बीजुं सघलुं मली शके, पण धर्म दुर्लन बे पढी सगर राजाए अयोध्यामां जइ चक्रनो महोत्सव कर्यो, केम के, क्षत्रीयोनो ते क्रम बे. हवे ते कृपालु प्रभु पण चतुर्विध संघने स्थापीने सर्व देवोथी नमस्कार करता था विहार करवा लाग्या . हवे ते सूर्य सरखं चरत्न श्रायुधशालामांथी बहार निकल्युं, त्यारे तेज दिवसे सगर चक्रीए पण प्रयाणनी तैयारी करी. पढी चोरासी लाख हाथी, रथो, तथा घोडार्ड सहित अने बन्नु कोड पालार्ड सहित ते ची प्रथम पूर्व दिशा तरफ चाल्या. वली ते इथी, घोडो, छत्र, दंड, मणि, काकिणी, वार्धकी, पुरोहित, गाथापति, तथा चर्म प्रमुख रखोने पण साथ लेने लाख योथी अधिष्ठित थया थका चालवा लाग्या. पबीतेमणे पूर्वाब्धिमां मागध देवप्रते अमनो तप करीने दश योजन जनारा बाणथी तेने बोलाव्यो. पढी तेनी पासेथी रत्नोविगेरे लेइने, तेने त्यां स्थाप्यो, अने पोते पारणं करीने अाइ महोत्सव कर्यो. पढी त्यांश्री चक्रनी पाउल अविछिन्न प्रयाणथी चालतां थकां दक्षिण समुद्रने कांठे जइ तेमणे सैन्यनो पडाव नांख्यो. त्यां वार्धकीए सैन्यमाटे - वासो, तथा एक पौषधशाला बनावी, अने तेमां चक्रीए पौषधवत लीधुं. पी वरदाम देवने मनमां धारीने तेणे बाण मुक्युं, त्यारे ते पण चक्रीपासे तुरत श्राव्यो पढी तेनी पासेथी मणि, स्वर्ण, मोती तथा रत्नादिक लेइने, तेने त्यां तेमणे स्थाप्यो पछी पश्चिम दिशामा रहेला प्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ शत्रुजय माहात्म्य. जासेशने पण अहम तपथी श्राराधिने तेने त्यां स्थाप्यो. पड़ी तेमणे सिंधु तथा महासिंधुना अधिकारीने साधीने पण तेने त्यां स्थाप्यो. पड़ी उतर दिशामां श्रावी जरतजीनी पेठेज तेमणे वैताठ्याजिकुमारने पण वश कर्यो. पली राजानी आझाथी सेनापति सिंधुसागर, तथा वैताढ्यनी सीमाने साधीने त्यां पाला श्राव्या. पड़ी तमिस्रा गुफानां छारोने दंडरत्नथी उघाडीने, तथा पुलथी निम्नगा अने उनिम्नगा नदीने उलंगीने ते बहार निकल्या. त्यां महा क्रूर म्लेडोने जीतीने कुहिमाजिना दक्षिण नितंबपर ते थाव्या. त्यां रथपर त्रण ताडना करीने तेमणे बाण फेंक्युं, त्यारे ते बाण पण बहोतेर योजन जश्ने तेना स्वामिने बोलावी साव्यु. तेनी पासेथी रत्नो लेश्ने तेने तेमणे त्यां स्थाप्यो, तथा पड़ी शषजफूट पर्वतपर जश्ने, तेमणे पोतार्नु काकिणी रत्नथी नाम लख्यु. पड़ी वैताढ्यनी दक्षिण अने उत्तर श्रेणिना विद्याधर स्वामिउँने, जीतीने, ते. मने पण तेणे त्यां चाकरोनी पेठे स्थाप्या. पनी गंगाना किनारापर सैन्यने स्थापीने चक्रीनी आज्ञाथी सेनापतिए चर्मरत्नथी ते गंगाने उतरीने राजाउने जीत्या. पनी अहम तपथी चक्रीए गंगादेवीने वश करी; तथा पनी तेमणे तमिस्त्रानी पेठेज खंडप्रपात गुफानुं धार उघाड्यु. त्यां काकिणी रत्नथी योजन योजनने अंतरे तेमणे मांडलां कां, तथा पबी पचाश योजननी ते गुफाने अने बन्ने नदीने पण ते उलंगी गया. पबीते गुफाना झारथी निकलीने,गंगाना पश्चिम किनारापर तेमणे अठमनो तप करीने नवे निधानो मेलव्यां. त्यां चक्रीनी श्राज्ञाथी सेनापति गंगाना दक्षिण निष्कुटने लीलामात्रमांज साधीने पालो चक्रीनी पासे श्राव्यो. एवी रीते पांत्रिस हजार वर्षों सुधि दिग्जय करीने, जरतनी पेठे ते चक्री चक्रनी पाउल चालता थका अयोध्यामां श्राव्या. पली त्यां बत्रीस हजार राजाए, यदोए, तथा बीजाए पण ते चक्रीनो राज्यानिषेक कर्यो. एवी रीते जरतनी पेठे पचीस हजार यदोथी सेवाएला ते चक्रीए बखंड जरतने साध्यो. हवे केवलज्ञानरूपी सूर्यवाला प्रजु विहार करता थका देशनारूपी किरणोथी जव्यरूपी कमलोने विकखर करता हता. पडी पुंडरिक गिरिने युगादीश प्रजुश्री पवित्र थएलो जाणीने श्री अजितनाथ प्रजु ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः २६५ तरफ विहार करवा लाग्या. त्यां मार्गमां जगतनुं हित करनारा प्रजु सर्व नाषावाली वाणीथी सिंह, हरिण, लुंड, तथा सर्प विगेरेने पण बोध देता हता. पनी अनुक्रमे सुराष्ट्र देशमा रहेला, तथा सर्व जगोए श्री षनदेव प्रजुना गुणोत्कीर्तनथी गर्वित थएला, अने रत्नोनां शिखरोथी शोजता एवा शत्रुजयप्रते प्रजु श्राव्या. पली त्यां प्रनु ध्यानमा रहेते बते कोइक मयूर बीजा मयूरोथी वीटायो थको त्यां श्राव्यो, तथा पोतानी कलाथी नक्तियें करीने प्रजुपर उत्र धरवा लाग्यो. त्यां प्रजुए ध्यान धर्या बाद ते मयूरोने बोध थाप्यो. पली प्रजु ते मयूरोसहित रायणप्रते थाव्या, तथा त्यां देवोथी सेवाया थका ते त्रण दिवस रह्या. पडी प्रजातमां ते वृक्ष मयुरने मृत्युनी अणीपर जोश्ने, प्रजुए तेने अनशनपूर्वक संलेखना करावी. पडी प्रनु त्यांथी उतरीने दक्षिण पश्चिम दिशामा रहेला सुना नामना शिखरपर श्राव्या. त्यां देवोए एकग थश्ने प्रजु माटे समवसरण रच्यु, श्रने प्रनु पण त्यां सिंहासनपर बेग. हवे ते मयूर उत्तम ध्यानयी त्यां पोतानुं श्रायुष्य अनशन पूर्वक संपूर्ण करीने चोथे देवलोके गयो. त्यां अवधिज्ञानथी ते शत्रुजय तीर्थने पोतानी देवगतिनुं कारण जाणीने, ते तीर्थने जोवा माटे तथा प्रजुने नमवा माटे वेगथी ते त्यां श्राव्यो. त्यारे प्रजुए तेने बोलाव्यो के, “दे मयूरदेव !" श्रावो ? पड़ी ते पण कांतिथी पर्वतने शोजावतो थको प्रजुनी पासे बेठगे. त्यारे सुधर्मेद्रे प्रजुने पुब्युं के हे खामी ! थापे था कोणने बोलाव्यो ? त्यारे प्रजुए कह्यु के, ते था पर्वतपर मयूरराजा हतो. तेणे मारा मुखथी देशना सांजलीने समतामां रही जीव हिंसानो त्याग कयों, तथा मारीज साये था पर्वतपर आवी तेणे अनशन कर्यु. वली श्रा तीर्थना प्रत्नावथी पोतानुं सघj पाप दूर करीने, तीर्यच नवमांथी निकलीने ते चोथे देवलोकें गयो. वली ते एकावतारी थश्ने, व्रत लेश, तथा केवलज्ञान पामी अवश्य मोदें जशे. ते सांजली ते देवे ते वृदनी नीचे पोतानी मयूरमूर्ति स्थापी, तथा आनंदसहित तेणे तीर्थपूजा करी. अने त्यारथी ते वृदनी नीचे रहेली तेनी पवित्र मूर्ति सर्व मनुष्योने बोधवा माटे पूजाय . हवे श्री अजितनाथ प्रनु पण सिंहासनपर बेग थका जगतना प्रा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ शत्रुजयमाहात्म्य. णीने बोध देवामाटे देशना देवा लाग्या के, सर्व प्राणीउमां समता, नक्ति पूर्वक संघपूजा, तथा शत्रुजयनी सेवा, अल्प पुण्यवालाउँने मलती नथी. सूक्ष्म, बादर श्रादिक सर्व प्राणीमा पोतानी पेठेज जोकुं ते, तथा रागद्वेषविनानुं जे चित्त, ते समता कहेवाय. साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविकारूप चतुर्विध संघ चार शाखावाला धर्मनी पेठे त्रणे जग तोथी पूजाय बे. वली हे देवो! जेने घेर पापोने हरनारो ते संघ श्रावे बे, ते पूजनीक थाय , तथा तेनुं घर पण तीर्थरूप थाय . हवे था शत्रुजय पर्वत पण शाश्वतो तथा नवरुपी समुषमा डुबता प्राणीउने छीप समान . वली जे प्राणी था पर्वतप्रते श्रावे बे, ते कुकर्मोने प्राप्त थता नथी, केम के, ते पापना जारने नीचे मूकीनेज चडे बे. वली जे माणसे जिननी अने जिने कहेला धर्मनी आराधना करी , तथा था पर्वतने सेव्यो , तेने पुर्गतिनी बीक तो क्याथीज होय ? वली श्रा पर्वत श्रने शीलनी सेवाथी उत्तम फल मले बे: वली शीलसेवाथी तो मो. दनो संदेह पण होय, पण था पर्वतनी सेवाथी तो ते मोक्ष प्रगट रीते मले बे. उत्तम बुद्धिवालो माणस था तीर्थमां जेटलां शुज कार्यों करे बे, ते सघलां आ नवमां तथा परनवमां पण तेना कर्मक्षय माटे थाय बे. श्रा तीर्थमां जे सिको थया , तथा हवे पड़ी हमेशां जे सिको थशे, तेने केवली जाणतां बतां पण एक जीजथी कहेवाने समर्थ नथी. श्रा तीर्थनां सर्व शिखरोमां जे महिमा रहेलो , तेने प्रन्नु पण क्रोडो वर्षसुधि पण कही शके तेम नथी. शीलरूपी बख्तरवाला था पर्वतपर रहेला प्राणी क्षणमात्रमांज पोताना रागादिक शत्रुठनो नाश करे . निधान, रत्न, तथा रसकुंपिकाथी आश्रित थएला था सुननशिखरपर रहेला पुण्यशाली प्राणीने बन्ने जवोमां सुख थाय . वली प्रथम प्रजुना श्राश्रयथी जेम शत्रुजयनुं मुख्य शिखर पूजाय , तेम अमारा श्राश्रयथी था सुना शिखर पण उंचे प्रकारे पूजाशे. एवी रीते प्रजुनी देशना सांजलीने हर्षित थएला देवो त्यां यहा महोत्सव करीने पोतपोताने स्थानके गया, ... हवे ते समये आकाशने श्याम करती, तथा वायुथी उन्नति पामतां वादलांवाली वर्षाऋतु श्रावी. ते वखते वादलांरूपी सुनटो आकाशरूपी रणांगणमां मधुर गर्जना करता थका वीजलीरूपी खड्गयी पोताना शत्रु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः ១១ ग्रीष्म साथे युद्ध करवा लाग्या. वत्री ते वखते श्रमासनी रात्रिए जेमताराउनीश्रेणि, तेमाकाशमांशंखसरखी उज्वल बगली देखावा लागी. वादलां प्रथमोदय वखते जे थोडी थोडी गर्जना करे , तेथी एम अनुमान थाय ने के, बलवान ग्रीष्म ऋतुना जयमाटे ते अप्रगट रीते विचार चलावे .ते वखते विरहित वादलांउरूपी बख्तरने पेहेरीने वायु, सेनापतिनी पेठे वारंवार अगाडीना नागमां स्फुरायमान थवा लाग्यो. वली ते समये ग्रीष्मने वीजलीरूपी खगथी उर्जय जाणीने, मेघोए तेने जीतनारुं धनुष्य धारण कर्यु. वली त्यां प्रथम तो ते वर्षा ऋतुये ग्रीष्म रुतुना राजा सूर्यने वादलांउथी एकदमथाठादित कर्यो. पड़ी तेजेए पूर्वे ग्रीष्मप्रते श्रादरवाली थएली पृथ्वीने बुटा बुटा तथा जाडा जलबिउरूपी पत्थरोथी ताडना करवा मांडी. ते वखते आकाशरूपी स्त्री बगलीरूपी हारवाली, वीजलीरूपी स्फुरायमान हास्यवाली, अने पुष्ट स्तनोवाली (वादलांउवाली) थर थकी लोकोने प्रिय थ पडी. ते वखते मेघरूपी स्वामी पोतानी पृथ्वीरूपी स्त्रीने जलधारारूपी दारो देवा लाग्यो, अने तेथी ते पण अत्यंत तृप्त थवा लागी. ते वखते जिनस्नात्र वखते जेम मेरु, तेम था शत्रुजय पर्वत दरेक मार्गोथी वहेता जलप्रवाहोथी व्यापी रह्यो. वली ते वखते मेघरूपी पोतानो खामी उपर चडवाश्री पृथ्वीरूपी नितंबिनी स्त्री ( विस्तारवाला कटीना पालना नागवाली स्त्री) उगेला (घासना) अंकुराउरूपी रोमांचने धारण करती थकी, अत्यंत पसीनावाली (पाणीउनां प्रवाहोवाली) थश्. एवी रीते वर्षा ऋतुने श्रावेली जाणीने प्रनु ते मुनि सहित देवोथी वींटाया थका तेज सुन शिखरपर रह्या. ते वखते केटलाक मुनि गुफाउंमां, केटलाको सिंहगुफाउँमां, तथा केटलाको सर्पना बिलना अग्रनागपर नियमो लेश्ने रह्या. त्यां इंजोए प्रजु माटे एक मंडप रच्यो, ते तेमां चतुर्मास रह्या. त्यां प्रजुनी सेवाथी केटलाक जीवो सम्यक्त्व पाम्या, केटलाको नजकनाव पाम्या, तथा केटलाकोए जीव हिंसा तजी. पली बहु उन्नति पामेलो वरसाद पण (मंद थ२) बंध पड्यो, केम के जडना (जलना) संगथी हलका थवी कंई उर्लज नथी ! पनी कादवोना समूहने सुकावती, आकाशने निर्मल करती, तथा कास श्रादिकनां पुष्पोने विकस्वर करती थकी शरद ऋतु श्रावी. ते श Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० शत्रुजय माहात्म्य. रद ऋतुमां नदी (नीचप्रते गमन करनारी स्त्री) जलोने पण (मूखोंने पण) निर्मल करती करती थकी, तथा कमलोने पण (मलीन पुरुषोने पण) जलसायमान करती थकी सीके मार्गे जवा लागी. वली ते वखते मलीन एवां पण वादलां जगतने जीवितदान (जलनुं दान) देवाथी निर्मलपणाने ( श्वेतपणाने) पाम्या. माटे अहो! दाननो प्रनाव केवो डे !! . __ एटलामा हवे सुव्रत नामना श्राचार्य नापुरस्त होवाथी हाथमा नातपाणी लेश्ने मुनियी शोजता थका ( शत्रुजय नामना) प्रथम शिखरपर चडवा लाग्या. त्यां वच्चे को खीणमां कोश्क वृदनी नीचे विश्राम माटे ते बेग; एटलामां को तृषातुर कागडाए श्रावीने तेमनुं जलपात्र ढोली नाख्यु. ते समये जल विना सुकातुं , तालबुं जेमनु, तथा जयं. कर सूर्यनां किरणोथी व्याकुल थएला ते मुनि क्रोधयुक्त वचन बोलवा लाग्या के, अरे कागडा ! अमारां प्राणनां रक्षणरूप जेथा पाणी तें ढोली नाख्युं, ते अकार्यथी तारी जातिनी था तीर्थपर गति थशे नहीं. वली अहीं मारा तपना प्रनावथी सर्व मुनिउँना संतोष माटे, जंतुविनानुं तथा प्रासुक पाणी हमेशां थशे, पनी तेज वखते सघला कागडा दीनताथी कोलाहल करता थका त्यांथी चाख्या गया, अने त्यारथी मांडीने श्रा सिझगिरिपर कागडानुं आगमन थतुं नथी; कदाच फुकालनो मार्यों को कागडो जो अहीं श्रावी चडे, तो अहीं विनोने नाश करनारुं शांतिकार्य करवं. वली पूर्वे पण क्रोडो विनोने नाश करनारुं शांतिकार्य जैनमुनिये अहीं श्री युगादीश प्रजुनी पासे तथा रायणपासे करे . एवी रीते नैऋत्य दिशामां पर्वतनी खीणमां ते मुनिना तपबलथी थएबुं पाणी निरंतर सुखोने श्रापे . ते पाणीना स्पर्शथी रोग, शोक, धार्ति,वेताल तथा ग्रहादिकथी यतां पुःखो, अने पापो पण नाश पामे , तेमां संशय नथी. हवे प्रजु पण मुख्य शिखरपर श्रावीने केटलाक मोदानिलाषी मुनिउंने कहेवा लाग्या के हे मुनि! तमो अहींज रहो ? केम के, तमोने अहीं पुंडरिकजीनी पेठे कर्मोना घातथी केवलझान थ शुज जावथी मोक्ष मलशे. एवी रीते ते मुनिउँने कही प्रजु विहार करी गया, तथा ते मुनि पण त्यां केवलज्ञान पामी मोदें गया. हवे यहीं सगरचक्री राजाऊना समूहोथी सेवाता थका उ खंड न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः २६ए रतने पालवा लाग्या. ते चक्रीने तारुण्यरूपी पुण्यथी संपूर्ण अंगवाला, तथा शस्त्रकला अने शास्त्रकलामां पारंगामी जहु थादिक साठ हजार पुत्रो हता. एक दहाडो ते सघला पोताना पूर्वजोनां तीर्थोने नमवा माटे पराणे पितानी थाझा मागी लश्कर तथा वाहनो सहित चाव्या. तेउए चक्रीनी श्राझाथी स्त्रीरत्नशिवाय तेर रत्नोने, यदोने, राजाउने तथा मोटां लश्करने साथे ली . पठी अनुक्रमे योजनना प्रयाणथी ते श्रष्टापद प्रते पहोंच्या. त्यां मणि अने रत्ननी कांतिना समूहथी श्राकाशने चित्रित करता, एवा ते श्रष्टापदने जोश्ने तेने ते पोताना पूर्वजोनी कीर्तिरूपी वृदना कंद तुल्य मानवा लाग्या. वली ते पर्वत कल्पवृक्ष, चंपक, अशोक, वड, पीपला, तमाल, गुलाब, श्रामली, आंबा तथा बकुल आदिक वृदोथी वीटाएलो हतो. पनी ते अत्यंत हर्षथी पाठ पावडीथा मारफते तेपर चड्या, तथा त्यां प्रजुना प्रासादोने त्रण प्रदक्षिणा करी. पड़ी तेमां दक्षिण छारथी प्रवेश करीने ते दिशामां चार, पश्चिममा श्राप, उत्तरमा दश, तथा पूर्वमां बे एवी रीते चोवीसे प्रजुनी तेजेए त्रिकरण शुद्धिथी पुष्प, अक्षत, तथा स्तवनोयें करीने स्तुति करी. पड़ी ते प्रजुना ते अत्यंत उंचा प्रासादने जोश्ने अत्यंत प्रीतिथी मांहोंमांहें कहेवा लाग्या के, आ चार छारोवालो प्रासाद चारे गतिनो नाश करीने चार प्रकारना ( दान, शील, तप श्रने नाव रूप) धर्मरूपी राजाने प्रवेश करवा माटे ! वली या प्रासाद जाणे मुक्तिरुपी नगरनी नागोलने खेंची लेतो होय नहीं, तेम कलश, ध्वज अने तोरणोथी आकाशजागने स्पर्श करे . वली तेपरना रत्नो अमावास्यानी राबिना अंधकारने पण नाश करे , तेम पुण्योथी ते आंतरना (श्रज्ञान रूपी) अंधकारने पण खरेखर हरनारां बे. वली था कल्याणथी (सुव थी) बनावेलो ने, माटे ते कल्याण श्रापे , तथा ते उंचो बे, तेथी तेमने श्राश्रय करीने रहेला बीजाउँने पण ते जंची गतिमां चडावे . वली था प्रासाद शुं जरतचक्रीना कीर्तिरूपी वृक्षनो कंद बे ? अथवा तेनी जक्तिना तपपणाने ते देखाडे ? वली शुं ते जगतना भ्रमणथी तप्त थएला लोकोना लोचनोने आनंद थापनारो चंग ? अथवा शुं मूर्तिवान धर्मज ? वली श्रहीं (अना) पालक विमानने पण विडं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय मादात्म्य. बना करनारा घणा पवित्र प्रासादो शोने . पड़ी ते विचारवा लाग्या के, चारे दिशामां, देवोथी पण न जीताय एवा था द्वारपालो, तथा मनुष्योथी न चडी शकाय एवां था आठ पावडी, हवे थनारा लो. कोने लोजी जाणीने या प्रासादोना रक्षण माटे जरत महाराजे खरेखर बनाव्यां . एम विचारि जढुकुमारे प्रीतिथी पोताना बांधवोने कडं के, केटलोक वखत गया बाद (बाथी तो) श्रापणा पूर्वजोनुं धमस्थान नाश पामे तेम बे, केम के लोनीने (पावडीउनो) आ सो जोजननो आंतरो कंशं दूर लागशे नहीं, मारे थानी रदामाटे श्रापणे एक (फरती) मजबूत खाश बनावीए. पड़ी तेमाटे सर्वे एकमत थश्ने परिवार सहित खार खोदवा लाग्या. एवी रीते तेए पृथ्वीना दलजेटली अत्यंत जंडी खाइ खोदी, थने तेथी नागलोकमां ध्रलिनी वृष्टि थश्. एवी रीते नागेंना मणिने मलीन करतो, तथा तेनी आंखोनु थाबादन करतो, धूलिनो समूह, तेना कोपनी वृधिनी विधिमां चूर्णनी पेठे पड्यो. ते वखते नागकुलोमां मोटो कोलाहल थयो,तथा तेना सर्वे स्वामी तेथी कोप पाम्या. पठी अत्यंत कोपायमान थएला नागें अवधिज्ञानथी ते कार्यने करनारा चक्रीना पुत्रोने जाण्या. त्यारे क्रोध तजीने, तथा वेगथी त्यां श्रावीने प्रीतिथी साम वचनोथी ते ने कहेवा लाग्यो के, हे वत्सो! तमो जरत महाराजना कुलमां थएला चक्रीना वेविकी पुत्रो , तो तमोए था शुं कार्य आरंन्युं ? तमारा था प्रयासथी श्राजे नागलोकने घणी पीडा थ, माटे हवे आपणा स्नेहनी खातर तमो था कार्य तजी द्यो? वली श्री युगादीश प्रजु अमारा खामी , अने अमो तेमना सेवक बीए, वली तमो पण तेमनाज कुलमां उत्पन्न थया बो, माटे आपणो स्नेह स्थिर रहे तो सारूं. एम कहीने नागें गया बाद, ते खाश्मांथी निकलीने उहत थया थका परस्पर सबाह करवा लाग्या के, केटलोक काल गया बाद जल विनानी था खाइ सुखेथी उलंघवा जेवी थशे, केम के, श्रात्रणे जगतमां लोजीउने शुं असाध्य ? एम विचारि जलकुमारे दंडरत्नथी समुप्रमाथी गंगाने खेंचीने तेना पाणीथी खाइ नरी दीधी. तेथी नाग लोकना घरोपर कादव पड्यो, तथा नांगी गयां, तेथी नागेंसने फरीने अत्यंत क्रोध चड्यो. अने तेथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः तेणे विचार्यु के, अरे ! था चक्रीना मूर्ख पुत्रोए राज्यथी गर्वित थश्ने अमारं युक्तियुक्त वचन पण मान्यु नहीं, माटे धिकार ते गर्वने!! एम विचारि बीजा नागेशो सहित फणो चडावीने, क्रोधथी फुत्कार करतो त्यां ते श्राव्यो. तथा केरनी शिखाउँथी तेणे ते साठ हजार चक्रीना पुत्रोने एकी वखते बाली नांख्या. एवी रीते मोटो दाह निपजावीने ते पालो पोताने स्थानके श्राव्यो, केम के, क्रोध शत्रुना नाशसुधिज होय . हवे तेवी रीतना विनाशश्री वनपातनी पेठे सैन्यमां मोटो हाहाकार थ रह्यो, तथा सर्व को व्याकुल थया. एवीरीते ते वखते देवना विपर्ययथी ते निर्नायक सैन्य सर्व उपायथी नृष्ट थश्ने दिङ्मूढ बनी गयु. (आत्मा दणे दणे जे जे कं, अने कर्म तेथी कंनुं कंकरी थापे बे.) एवी रीते उःखरूपी सर्पना फेरथी ग्रस्त थएला नायक विनाना सैनिको किंचित आंसु लोग्ने विचारवा लाग्या के, श्रापणी दृष्टिएज नागेंजोए था चक्रीना पुत्रोने एकी वखते हण्या, माटे आपणुं बल वृथा . वली राजा पोतानी रक्षामाटे सैन्यने राखे बे, अने ते सैन्य बतां पण था चक्रीपुत्रो मृत्यु पाम्या !! वली श्रापणे हवे नगरमां जश् शरमना मार्या चक्रीने मुख शुं बतावणुं ? वली त्यां जवाथी चक्री पण आपणने नाना प्रकारना उपायोथी मारी नांखशे. माटे हवे तो थापणे पण आपणा आ स्वामीऊनो मार्ग लेवो, (अर्थात् बली मर) केम के उत्तम सेवको स्वामिना मार्गनेज नजे . एम विचारि तेठए घोडा, रथ, हाथी विगेरेनी आसपास बार योजनी काष्टोथी चित्ता खडकी. पड़ी तेजे. जेटलामां बली मरवानी श्वाथी अग्मिने स्पर्श करवा मांडे , तेटलामां ते व्रतांत इंश अवधिज्ञानथी जाण्यो. त्यारे ते दयालु इंड ब्राह्मणनो वेष लेश तुरत त्यां आव्यो, अने तेउने कदेवा लाग्यो के, तमो मरो नहीं? मरो नहीं ? ते धैर्यवालां वचनथी ते सघला सैनिको स्थिर रह्या, त्यारे तेमनी नजदीक जश्ने ने इंब्राह्मण फरीने तेमने कहेवा लाग्यो के, हे ना! तमो को पराजवथी, के कंई कुःखथी, के शोकथी के कंश श्ष्टप्राप्ति माटे वली मरो को ? ते सांजली श्रादरथी ते कहेवा लाग्या के, हे परफुःखथी पुःखी एवा ब्राह्मण ! श्रमारां कुःखनो तुं व्रतांत सांजल? पोतानाज चेष्टितथी लश्मरूप थएला था सगरचक्रीना पुत्रोने तुं जो ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय माहात्म्य. श्रमो बेग उतां पण ते श्रमारा स्वामिना पुत्रोनी था दशा थर, श्रने तेथी अमो लजित थश्ने अग्निमां प्रवेश करीए बीए. त्यारे ते इंब्राह्मण तेउने फरीने कहेवा लाग्यो के,तमो था साहस, स्वामिनी नक्तिथी के जयथी, के दिलगिरिथी करो डो? त्यारे तेउँ कहेवा लाग्या के, श्रमारे मृत्युनी तो श्छा नथी, पणा तेमां चक्रीनी बीक कारणरूप , केम के, ते अमोने जुदा जुदा उपायोथी हणशे. त्यारे इंजे पोतानुं रूप प्रगट करीने तेउँने कह्यु के, आमां तमारो कंई दोष मने जणातो नथी. माटे तमो हवे श्रापघात करो नहीं, हुं तमारं चकीतरफनुं संकट दूर करीश, माटे हवे तमो प्रयाण करो? एवी रीते तेउने शांत करीने इंस अदृश्य थयो, पडी ते सैनिको पण शोक रहित थया थका धीरे धीरे अयोध्याप्रते चालवा लाग्या. आवटे लग्नपादनी पेठे प्रयाण करतां थकां अयोध्या नजदीक पहोंचीने, तेजेए इंजनुं स्मरण कर्यु, त्यारे ते दयालु इंछ पण त्यां श्राव्यो. पडी तेणे पांचसो वर्षना बुढा ब्राह्मण- रूप लीधुं, तथा एक मृत्यु पामेला बालकने वेश्ने ते राजापासे गयो. पनी त्यां राजाना छारपासे जश् पृथ्वी, कर्म विगेरेने निंदतो थको कठोर वाणीथी रडवा लाग्यो के, हे पृथ्वी ! तुं सर्व सहन करनारी बे, बतां तुं कठिन बे, केम के तुंरुषन प्रनु तथा जरतादिकनी पाउल गश्नहीं. वली हे दिग्पालो ! तमोने पण धिक्कार , केम के तमो पण कालनी अपेक्षाएज पृथ्वीने पालो नो, तथा सघला शुजाशुन व्यापारना पण तमोज सादी बो. वली हे दैव! तुं सर्वप्रते सुख करे बे, अने माराप्रतेज पराङ्मुख थश्ने मने दुःख थापे ने. वली मारी श्रा घडपणनी अवस्थामां तें मने पुत्रनी हानिनुं फुःख आप्युं, तो शुं मेंज एवं कंई तारुं बुरुं कर्यु हतुं ? वली दे देव ! मारापर क्रोध करीने मारा था बालकनुं हरण करीने मने ते मारवा जेवुज कयु बे. हे चक्री ! था कुदैवश्री मारु तथा पृथ्वीनुं रक्षण करो? तथा जरत महाराजनी स्थितिनुं स्मरण करीने तमो नगरमांथी पापने दूर करो? वली हे राजन् ! था दिक्पालो तो सुखशेलीश्रा , तथा था पृथ्वी चैतन्य रहित बे, तेथी सर्वदेवमय एवा तमो मारुं केम रक्षण करता नथी? वली था समये श्री अजितनाथ प्रनु तो दीक्षा ले गया , माटे रात्रिप्रते जेम सूर्य, तेम था लोकने पालनार हवो तमोज डो. एवी रीतना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः ०३ तेनां वचनो सांजलीने राजाए खेदयुक्त थर, तथा ते संबंधि पोतानोज दोष जाणी तेने बोलाव्यो. त्यां चक्रीने जो तेणे ते बालकने त्यां मुक्यु, तथा सजासदोने पण रोवरावतो थको ते अत्यंत रडवा लाग्यो. पळी चक्रीए पुज्याश्री तेणे कडं के, देखामी ! मारो श्रा एकनो एक पुत्र मृत्यु पाम्यो, माटे मारा उःखनी हुँ केटलीक वात कहुं ? आजे था मारो पुत्र संध्याकाले जंघतो हतो, त्यां तुरत महाकूर सोए तेने डंख मार्यो. वली श्राम सोनो के मारो पण दोष नथी; पण देशनी साचवण नहीं राखता एवा तमारोज दोष जे. माटे हवे मंत्रयंत्रादिकथी आ मारा पुत्रने तमो साजो करो? नहींतर तमोने तेनो दोष श्रावशे, श्रने मारां कुलनो क्षय थशे. ते सांजली चक्रीए वैद्यो तथा मांत्रिकोने बोलाव्या, पड़ी तेए ते बालकने मृत्यु पामेलो जाणीने कडं के हे राजन् ! था बालकने बीजुं को औषध लागु पडे तेम नथी, पण जे घरमांपूर्वे को मृत्यु पाम्युं न होय, ते घरनी जो लश्म मले, तो था जीवतो थाय. ते सांजली राजाए पोताना माणसोने तेवी जश्म लाववानो हुकम कर्यो, त्यारे इंजपण तेऊनी साथे वैक्रिय शरीरथी घरोघर फरवा लाग्यो. पनी समस्त नगरमां नम्या, पण तेवी जश्म नहीं मलवाथी ते तथा ते इंब्राह्मण पण फुःखित थयो थको राजापासे श्राव्यो.पली राजाए कह्यं के हे विप्र ! मृत्यु रहित एवा मारां घरना रसोडामांथी तुं जश्म लाव ? त्यांथी नश्म लेतां थकां चक्रीनी माता यशोमतीने तेणे पुण्याथी तेणीए कह्यु के, अहीं, चक्रिना पिता सुमित्रनुं मृत्यु थयुं बे. त्यारे राजापासे आवी तेणे ते व्रतांत जणाव्यो, त्यारे अवसर मलवाथी वैद्यो पण हर्षित थश्ने कहेवा लाग्या के, एवी रीतनी जश्म शिवायना बीजां औषधोथी बा बालकनो उपाय थक्ष शके तेम नथी, माटे ते मृत्यु पामशे, एमां अमारोअपराध नथी. ते सांजलीने ते इंअविप्र राजाना दयालु हृदयने स्मरतो थको अत्यंत रडवा लाग्यो. ए• टलामां चक्रीनुं सर्व लश्कर पण छारप्रते श्राव्यु, त्यारे चक्री ते पुःखी ब्राह्मणने साम वाक्यथी कहेवा लाग्या के, हे विष ! तुं शोक कर नहीं? संसारनी स्थिति एवीज बे, जेनो जन्म थयो, ते मृत्यु पामेज,अने तत्वथी जोएं तो कंपण स्थिर नथी.वली जगतने पूजनिक तथा वन सरखी कायावाला अनंता जिनेश्वरो पण तेज मार्गे गएला बे, त्यारे बीजा प्राणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ शत्रुंजय माहात्म्य. नी तो वातज शुंकरवी ? वली सातधातुयी बनेला शरीरमां कुधा, तृष्णा, टाढ, तडका यादिकथी पीडा थाय बे, माटे तेमां तो मूर्ख माएस स्थिरता माने वली जाई, पुत्र, स्त्री आदिक सर्वे स्वार्थ माटे श्रावे जाय बे, पण दुःख तो केवल आत्माज जोगवे बे. वली सर्व प्रकारे लाड लडावेलुं श्रा शरीर पण ज्यारे पोतानुं धतुं नयी, त्यारे माता, पिता, नाइ तथा पुत्रादिक तो केमज पोताना थाय ? एवी रीते राजा बोलते ते इंद्र प्रत्यक्ष ने कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! खरेखर तुं संसारनी स्थिति जाणे बे, वली तें जेम कयुं तेम संसार खरेखर दुःखदायी बे, एवा पण या संसारमां प्रमादांध माणसो जेम तेम प्रवर्ते बे !! या जगत कर्मथी उत्पन्न याय बे, तथा कर्मथीज नाश पामे बे, माटे एवा या संसारमां बंधु, पुत्र तथा द्रव्यना लाजनी शुं स्पृहा करवी ? वली हे चक्री ! तेनो प्रत्यक्ष दाखलोज तुं जो ? जेम पूर्वे तारा पूर्वजो मृत्यु पाम्या बे, तेमज तारा साठ हजार पुत्रो पण मृत्यु पाम्या बे. तेज वखते सर्व सैनिको पण सनामां श्रावी शोकातुर थया थकां तथा बाती फोडतां थकां चक्रीने तेमना कुलनो दय जणाव्यो. ते सांजली विह्वल थएला चक्रीने इंद्रे व्यजनना (वींऊणाना) पवनथी तथा गोशीर्ष चंदनथी शांत कर्यो. पढी केटलीक मेहेनते चैतन्य श्राव्या बाद चक्री पुत्रोने याद करी करीने शोकथी वारंवार मूर्छा पामवा लाग्यो. ते मुर्खाथी चक्रीभुं मरण धारीने इंद्र तेना कंठमां लागीने रडवा लाग्यो; तेर्जना रुदनना नादथी जगतना सचराचर लोको पण शोकसागरमां निमग्न थया पढी इंद्र चकीने कवा लाग्यो के, हे राजन् ! तुं पण अन्यनी पेठे दुःखयी आम शामाटे मोह पामे बे ? केम के, पोताना कर्मोथीज जीव अल्पायु तथा दीर्घायु थाय बे, माटे एवी अस्थिर वातमां चिंता शुं करवी ? वली दवडेज तमो मने वैराग्यथी बोध देता हता, तो हवे तमो पोते केम मो - हम पडो बो ? एवी रीते इंद्र वात करते ते द्वारपाले श्रावी राजाने विनंति करी के, हे स्वामी ! द्वारमां बे पुरुषो आपने नमवा माटे उनेला बे. त्यारे राजाए जुकुटी संज्ञाथी तेमने प्रवेश कराववानुं कहेवाथी द्वारपाले तेने त्यां प्रवेश कराव्यो; पढी ते मांथी एके नमीने प्रभुना श्राववानी वधामणी यापी, पढी बीजो माणस कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी! Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः आप जय पामो? आपना पुत्रोए अष्टापदप्रते लावेली गंगा, खाइ पुरीने पृथ्वीने प्लावन करवा लागी . तेना पूरथी श्रासपासनी जमीन समुउमा रहेला दीपसरखी थर गश् . वली आ नरतखंडने छीप सरखो करी मेले एवं लागे . माटे हे स्वामी! ते पाणीथी अमारं श्राप रक्षण करो ? नहींतर श्रमोअनाथो मृत्यु पामीशं. एवी रीते जिननुं श्रागमन, पुत्रोनो नाश, तथा देशमा श्रावती रेलथी गजराएला चक्रीने इंजे कयुं के हे राजन् ! था बाबतमां तमो तर्कवितर्क शुं करो डो? तमो पुत्रोनो शोक तजी द्यो? अने ते शोकने दूर करवामां वैद्य समान एवा प्रजुने जजो? तेम प्रजुना नमस्कारथी उत्पन्न थनारा पुण्यने शोकथी वृथा नहीं करो? वली जह्वना पुत्र जगीरथने तमो रेलने रोकवा माटे हुकम करो ? केम के ते नागकुलप्रते थएला पोताना पिताना दोषने दूर करशे. ते सांजली चक्रीए निश्वास मुकी तथा श्रांखोमां किंचित अश्रु लावी, जगीरथने बोलावी पोताना खोलामा बेसाड्यो. पड़ी तेना मुखपर चुंबन करीने चक्रीए तेने कडं के, हे वत्स! तुं जो ? के श्रा नारतवंशपर केवी श्राफत श्रावी पडी ? दावानलथी दग्ध थएल वृदो ज्यां एवा अरण्यमां बाकी रहेला एक अंकुरानी पेठे तुंज फक्त आपणा कुलमां बाकी रहेल . माटे हे वत्स! हवे तुं नागेंनी सेवाथी लोकोना रक्षणमाटे दंडरत्नथी गंगाने पाबी तेना मुख्य प्रवाहमां लाव ? एवी रीतनी चक्रीनी श्राज्ञा मस्तकपर चडावीने लगीरथ पृथ्वीने दोजावता थका तथा सैन्यनी रजोथी सूर्यने थाछादित करता थका सैन्य सहित चालवा लाग्या. पड़ी चक्री पण इंध तथा राणी सहित शोक दूर करवा माटे थादरसहित प्रजुने नमवा चाल्या. त्यां समवसरणमां बेठेला झानी प्रजुने तेजेए त्रण प्रदक्षिणा देश वंदन कर्यु; तथा पनी प्रजुनी स्तुति करी के, हे प्रजु ! तमो जय पामो ? अनंत कुःखोथी दुःखी थएला लोकोना शोकने दूर करनारा, तथा अंतरनी व्याधिने हरवामां प्रवीण एवा तमोप्रते न. मस्कार था ? एवी रीते नक्तिथी स्तुति करीने ते योग्य स्थानके बेग, त्यारे प्रनु पण क्लेशने हरनारी वाणी बोलवा लाग्या के, हे चक्री! श्रा संसार असार बे, राज्यसुख स्थिर नथी, पुत्र, मित्र,स्त्री श्रादिक दृढ बंधनो , शरीर, रोग अने शोकने करना , विषयो फेर सरखा बे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ शत्रुजयमाहात्म्य. जोगो सर्पनी फणासरखा , तथा था जीवित जलबिंदु सर . वली दणमां जे मनोहर लागे , तेज बीजी क्षणे जयंकर लागे . माटे तत्वथी आ संसारमा कं पण स्थिर वस्तु नथी. वली था संसाररूपी केदखानामां विछानो पण प्रमादथी कुटुंब, अव्य श्रादिक पाशोथी बंधाय . वली था जवरूपी समुजमां विषयरूपी वंटोलीयाथी चित्रावेलीनी पेठे को विरलाज बाधा पामता नथी. एवी रीते प्रजुनी देशनानी वाणीरूपी अमृतने पीने, तथा उःखरूपी विषने तजीने, चक्री हर्षथी प्रजुने कडेवा लाग्या के, हे खामी ! था समस्त जगत कर्मने आधिन , तो था साउ हजार पुत्रोए एकी वखते एवं कयुं कर्म बांध्यु हतुं ? के जेथी तेउनु एकी वखते मृत्यु थयुं ? एवी रीते चक्रीए पुरवायी ज्ञानथी दीठेल , चराचरनो खनाव जेणे एवा प्रनु, कर्मबंधनना कारणरूप एवा तेउना नवोनुं वर्णन करवा लाग्या के, कोश्क पसीमां ते सघला चोरीथी श्राजीविका चलावनारा, तथा उर्ध्यानमा रहेनारा निहोहता. एक दहाडो नदिलपुरथी कोश्क अव्यवान संघ शत्रुजयप्रते जतो हतो, तेने तेजेए जोयो. त्यारे ते बुंटाराउँए ठराव कयों के, श्राजे संध्याकाले श्रापणे श्रा संघने खुंटवो. ते ठराव ते साठ हजार निरोए कबुल राख्यो, त्यारे एक जक खनावी कुंजार कहेवा लाग्यो के, था तमारा विचारने धिक्कार !! केम के श्रापणी पासे सैन्य, धन विगेरे घणुं बे, बतां था यात्रालुउँने शामाटे थापणे खुंटवा जोशए? श्रापणने पूर्वजवना पापोथी श्रावो नगरो जन्म मलेलो ,अने वली पण आ संघनी लुटना पापथी थापणी कोण जाणे केवी गति थशे ? वली श्रा यात्रालु पुण्यानुबंधि पुण्यथी श्रा जन्ममां पण महा दानेश्वरी थया , तथा था तीर्थराजनी यात्राथी फरीने पण सुखीया थशे.वली हे ना! तमो मने सर्वथा कायर थने बी. कण जले कहो? तोपण हुं ते कार्य माटे तमारी साथे श्रावीश नहीं, तेम तमोने ते माटे सल्लाह पण थापीश नहीं. एवी रीते बोलता ते कुंजारने तेउये केदखानामांधी जेम, तेम पोताना स्थानकथी बहार कहाडी मेव्यो, पड़ी ते बुच्चाउँए एकग थश्ने संघ,नजदीक श्राववाथी तेने लुंटी लीधो. ते निहोना तुटी पडवाथी, उराचारथी जेम यशो, तथा चुगलीपणाथी जेम उत्तम गुणो, तेम संघना लोको दिशा दिशा प्रते नाशी गया. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः श एवी रीते ते उर्बुधि संघने लुंटीने नारकीनी पेठे पाडा पोताने स्थानके थाव्या. एटलामां ते नदिलपुरना राजाए ते वृतांत सांजलीने मोटी सेना सहित ते चोरोना स्थानकने घेरी लीधुं.ते समये ते राजाना सैन्यने मोटुं जोश्ने जयजीत थएला ते निहो निगोदना जीवोनी पेठे किदामां जरा रह्या. ते वखते तेउना कुकर्मोथीज होय नहीं जेम, तेम वायुउँथी प्रेराएलो अग्नि ते स्थानमां लोकोने बालतो थको सलगी उठ्यो. ते अग्निने पाणीथी अटकावतां बतां पण ते, क्रोध जेम पुण्यने, तथा उर्जन जेम सजानना गुणोने, तेम ते नगरने बालवा लाग्यो. ते वखते ते अग्निश्री बलता, तथा धुंवाडाथी व्याकुल थता एवा ते निरोए कुंजिपाकनु कुःख सहन कर्यु. वली ते वखने ते विचारवा लाग्या के, अमोए था संघने उपजव कर्यो ! माटे श्रमो पापीउने धिक्कार ! वली ते श्रमारं जयंकर कर्म अमोने फलीबुद्ध थयुं. वली ते वखते अमोने या अकार्यथी अटकावनारो ते निर्लोजी कुंजारज पुण्यवान बे, पण अमो पुष्टोए ते उत्तम माणसने कहाडी मेख्यो !! एवी रीतना ध्यानमां तत्पर रहेला ते सघला कुटुंब सहित अग्निथी बलीने एकी वखते मृत्यु पाम्या; माटे हे राजन् ! कर्मोनी गति एवीज !! संघ, के जे अरिहंतोने पण पूजनीक बे, तथा मोटामां मोटुं तीर्थ डे, तेवा संघनी पण जे विराधना करे , ते खरेखर नारकीज थाय बे. माटे संघनी हमेशां श्राराधना करवी, पण तेनी विराधना तो बिलकुल करवीज नहीं, केम के संघना थाराधनश्री मुक्ति मले बे, अने तेना विराधनथी नरक मले बे. वली जे माणसो मार्गे चालता यात्राबुर्डने पीडे , ते कुटुंब सहित नाश पामीने नीचगतिमा जाय जे. एवी रीते पश्चातापयुक्त पीडाथी मृत्यु पामीने ते नरके गया, तथा त्यांथी समुखमा मत्स्यो थया, अने त्यां पण एकी वखते मछीमारोथी जालमां बंधाया. त्यांथी ते शियालो थया, तथा पली घणा जवो जमीने हमेशां शिकारमा तत्पर थया थका निहो थया. त्यां एक दहाडो वनमां जमतां थकां तेउए एक शांतखनावी मुनिने जोश, तेमने शुज नावथी नमस्कार कर्यो. त्यारे ते ज्ञानी मुनिए तेमने धर्मोपदेश दीधो, तेथी तेउए शंकासहित जनकपणुं मेलव्यु. वली तेउँने विशेष धर्म पमाडवा माटे ते ज्ञानी मु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ शत्रुंजय माहात्म्य. नि त्यां तेमनी नजदीक चतुर्मास रह्या. त्यां प्रथम मासे तेर्जए साते व्यसनोनो त्याग कर्यो, बीजे मासे अनंतकायना जपनो, तथा त्रीजे मासे रात्रिजननो त्याग कर्यो. पछी चोथे मासे अनशन सहित विजली पडवाथी ते एकी वखते मृत्यु पामीने, हे चक्री ! श्र तारा पुत्रो था, माटे कर्म बलवान बे ! ! हवे जे कुंजारे संघनी लुंट कबुल राखी नहीं, तेने तेज जवे मोटी रिद्धिवालुं राज्य मन्युं पढी त्यांथी उत्तम उत्तम जवोमां जइने, ते या महान उदयवालो जह्नुनो पुत्र जगीरथ थयो बे. वली हे चक्री ! तेज कर्मयी या तारा पुत्रो हमणा पण एकीज वखते मृत्यु पाम्या बे. माटे पंडिते मनथी पण संघनी श्रवज्ञा करवी नहीं, केम के ते अवज्ञा बोधिबीजप्रते अमितुल्य थइने कुगति थापे ठे वली जे माणसो यात्रालु लोकोने वस्त्र, अन्न, पाणी विगेरेथी पूजे बे, तेने तीर्थयात्रानुं महान फल म बे. वली संघ बे ते प्रथम तीर्थ बे, माटे कल्याणनी इछावालाए तेने मार्गमां जती वेलाए हमेशां विशेष करीने पूजवो. माटे हे चक्री ! हवे तमारे धर्मनें व्याघात करनारो ते संबंधिनो शोक बिलकुल करवो नहीं, म के ते पोताना उपार्जन करेला कर्मोथी उत्पन्न थया हता, तेज कर्मोथी मृत्यु पाया. वली हे चक्री ! तमोने राज्य, पुत्र तथा स्त्री दिमां मोह, ते शुं लागी रह्यो बे ? माटे श्रात्मानुं दित करो ? केम के फरी फरीने मनुष्यजव क्यांथी मलशे ? एवी रीते प्रजुना मुखथी पुत्रोना नवोने जाणीने चक्री शोकनो त्याग करी हृदयमां परम वैराग्य पाया. एटलामां पठी इंद्र चक्रीने कड़ेवा लाग्या के हे चक्री ! जेम तमोए जरतजीनी पेठे बखंड साध्या, तेम हवे तमो तेमनी पेठे संघपति पण था ? ते सांजली चक्री तीर्थयात्रा माटे श्रादर सहित थया, त्यारे प्रहुए पण तेमनापर संघपतिनो वासक्षेप कर्यो; पढी ते पोताने घेर गया. पढी इंडे चक्रीने एक उत्तम जिनमंदिर आप्युं, तेमां श्री युगादीश प्र नुं रत्नमय बिंब शोजतुं हतुं, पढी स्नान करी, उत्तम वस्त्रो पेहेरी जाव सहित चतुर्विध संघनी साथे उत्तम दिवसे तेमणे प्रयाण कर्यु. एवी रीते ते चत्री गणधरो, मुनि, श्रावको, श्राविकार्ड, महाधरो, मंडलि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः जए को, चतुरंगी सेना, गांधर्वो, कौतुकी नृत्यकारो तथा चक्रसहित चालवा लाग्या. मार्गमां श्रावतां नगरोमां, गामोमां तथा तीर्थोमां प्रजुने पूजता थका, मुनिउँने नमता थका, तथा दान देता थका ते विमलाचलप्रते पहोंच्या. पनी त्यां आनंदपूरमां चक्रीए राजा सहित श्रादरथी प्रजुनी तथा संघनी पूजा करीने स्वामिवत्सलमहोत्सव कयों. वली तेमणे त्यां महोत्सवपूर्वक संघ सहित ते तीर्थने त्रण प्रदक्षिणा दीधी. पली चौदे नदीमांथी तीर्थोदक लेश्ने, ते संघसहित पर्वतपर सर्व जगोए मार्गने समरावता थका चडवा लाग्या. त्यां चक्री पूर्व मागैथी चड्या, तथा बीजा कुतुहल सहित पोतपोतानी शक्ति मुजब सर्व मार्गेथी चड्या. हवे ते वखते इं७ पण त्यां श्राव्यो, अने ते बन्ने रायणना वृदनीचे एका मल्या. हवे जळुनो पुत्र जगीरथ पण चक्रीना हुकमथी सैन्यसहित श्रष्ठापदप्रते श्राव्यो. त्यां पोताना पिता तथा काकाना दाहथी थएला नश्मना समूहने जोश, कुःखथी सैन्यसहित ते कणवारमांज मूळ पाम्यो. पड़ी चेतना आव्याबाद शोकनो त्याग करी तेणे नक्ति तथा पूजा सहित नागेंउनुं श्राराधन कर्यु. तेनी अतिशय जक्तिथी तुष्टमान थएलो नागेंड पण चलकतां सुवर्णकुंडलथी शोजतो थको नागलोको सहित त्यां श्राव्यो. त्यारे नगीरथे पण सुगंधि वस्तु तथा पुष्पोथी, अने स्तु. तिथी तेनी पूजा करी, त्यारे हर्षित थएला नागें जगीरथने कह्यु के, हे वत्स ! में तेने वार्या उतां पण ते मान्या नहीं, तेथी नागलोकना नाशनी बीकथी में तेज्ने जश्मरूप कर्या. वली हे वत्स ! तेए पण तेबुज कर्म उपार्जन कयुं हतुं ! माटे हवे तुं मारी आज्ञाथी तेउनी मृत्युक्रिया कर ? वली पृथ्वीपर रेल लावती एवी था गंगाने पण तुं तेना मूलप्रवाहमांज जोडी दे ? एवी रीते प्रीतिथी शिखामण देश्ने नागें पोताने स्थानके गयो. पडी नगीरथे पण ते पितृसंबंधि जश्मने नदीमा पधरावी; अने त्यारथी जगतमां पण पितृकार्यनो ते रिवाज दाखल थयो. एवी रीते पितृसंबंधि कार्य करीने कुमार्गे जनारी स्त्रीने जेम, तेम ते गंगाने तेणे दंडरत्नथी मूलमार्गप्रते वेहेती करी. वली लोकोना मुखथी चकीने शत्रुजयप्रते गएला जाणीने ते पण उत्तरोत्तर प्रयाणथी ते तरफ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० शत्रुजय मादात्म्य. चालवा लाग्यो. पनी त्यां रायणतले जश, तेणे चक्रीना तथा इंजना चरणोने नमस्कार कर्यो, त्यारे तेए पण तेने आलिंगन कर्यु. षबी तेजेए हर्षपूर्वक नक्तिथी त्यां जरतजीनी पेठेज श्री युगादीश प्रजुनुं स्नात्र,अने पूजादिक कार्य कर्यु. वली तेमणे त्यां गुरुना वचनपूर्वक मरुदेवाशिखरपर, बाहुबलि शिखरपर, तालध्वजपर, कदंबगिरिपर, तथा हस्तिसेन शिखरपर, इत्यादि सर्व शिखरोपर जिनपूजन करीने, मुनिठनी नक्ति, अन्नदान, श्रारात्रिक, महाध्वज, इंशोत्सव, तथा अपूजा करी; तेम त्यां बत्र, चामर, रथ, पृथ्वी, घोडा विगेरेनुं तीर्थदान कर्यु. __ पड़ी जरतजीए बनावेला (अमूल्य ) प्रासादोने जोश्ने धर्मने जगाडनारा सगर चक्रीने इंश स्नेहपूर्वक कर्वा के, हे चक्री ! तमारा पूर्वज जरत महाराजनुं श्रा शाश्वता तीर्थमां पुण्यना कारणरूप कार्य तमो जु. ? वली था पडता कालना माहात्म्यथी लोको निर्ववेकी, धर्म विनाना, तथा लोजांध थश्ने श्रा तीर्थमां आदर करशे नहीं. वली ते पुष्ट लोको मणि, रत्न श्रने सुवर्णना लोजथी कदाच था प्रासादोनी तथा प्र. तिमानी आसातना करशे.माटे हवे जहुनी पेठे तमो अत्रे कंक पण रक्षणनो उपाय करो? अने ते कार्यमां तमोने त्रणे जगतमाथी कोश पण उपभव करी शके तेम नथी. ते सांजली चक्रीए विचार्यु के, सागरमा रहेली गंगाने ज्यारे मारा पुत्रो लाव्या, त्यारे हवे “ हूं तो तेजेनो पिता बु" तेथी ते सागरनेज अहीं लावं, तोज मारी प्रतिष्ठा वधे, नहींतर तो मारुं मानहीनपणुं थाय. एवी रीतना थावेशथी, तथा इंजना हेतुयुक्त वचननुं स्मरण करीने, ते कणवारमांज यदो मारफते समुप्रने त्यां लाव्या. त्यारे टंकल, बर्बर, केश, चीन, नोट, सिंहल विगेरे वि. विध देशोने प्लावन करतो, मोटा मोटा पर्वतोने फाडतो, जयंकर रीते जुवनेंसोना जवनोने बुडाडतो, उबलता मगरादिक जलचरोथी थाकुल थएलो, नासता एवा विविध प्रकारना देवोथी पण जयथी जोवातो, वेगयी अनेक जंतुने उडालतो, मोटा मोजांउथी अपार गर्जना करतो, तथा पृथ्वीपर व्यापतो एवो ते समुख वेगथी शत्रुजयप्रते श्राव्यो. पनी ते लवण समुज्नो अधिष्ठाता देव श्रादरथी हाथ जोडीने तथा चक्रीने नमीने साम वचनथी कहेवा लाग्यो के, हे खामी ! सेवकने शुं फरमान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः शन् डे? एटलामां जाणेल ने अवधिज्ञानथी जिनवाणी जेणे एवा इंजेज च. क्रीने कयुं के, हे चक्री ! था कार्यथी तमो श्रटको ? केम के, सूर्यविना जेम दिवस, पुत्र विना जेम कुल, जीवविना जेम शरीर, विद्याविना जेम मनुष्य, दीपक विना जेम घर, आंखो विना जेम मुख, बायाविना जेम वृक्ष, दयाविना जेम धर्म, धर्म विना जेम जीव, तथा जल विना जेम जगत, तेम था तीर्थ विना सर्व सृष्टि निष्फल . वली श्रष्टापद तीर्थ निरुक थयाथी आ शत्रुजय तीर्थज लोकोने तारनार बे, तेथी था तीर्थनो रोध थवाथी पृथ्वीपर बीजु तारानारूं तीर्थ हुँ को जोतो नथी. वली ज्यारे तीर्थंकर महाराज, धर्म के जिनागम एमानुं कंश पण नथी होतुं, त्यारे आ शत्रुजय पर्वतज लोकोने वांडित श्रापनारो ( तारनारो) बे. एवी रीतना इंजना वचनथी चक्रीए लवणाधिपने कह्यु के, हवे एक एंधाणी दाखल तुं अहीं समुउने रहेवा दे ? एम कही तेने विसर्जन करी चक्रीए प्रीतिथी इंसने पुष्टोथी तीर्थनी रहामाटे प्रश्न कयों; त्यारे इंजे कयु के हे चक्री! तमो था रत्ननी अने मणिनी मूर्ति ने ज्यांदेवो पण न जश्शके एवी था सुवर्णगुफामां मुको ? तथा सर्व तीर्थंकरोनी सुवर्णनी मूर्ति करावो? अने प्रासादो पण सुवर्ण अने रुपानाज बनावो ? पनी प्रजुथी पश्चिम दिशामा रहेली रसकुंपिकावाली, तथा कल्पवृदोथी जरेली सु. वर्णगुफा इंजे चक्रीने बतावी; तेथी त्यां ज तेमणे, प्रजुनी ते मूर्ति ने राखी, अने हमेशां तेमनी पूजा माटे यदोने साझा करी. पडी चक्रीए इंनी साथे रहीने त्या रुपाना तथा पाषाणोना प्रासादो बंधाव्यां, अने तेमां सुवर्णनी मूर्ति पधरावी. पड़ी तेमणे सुजमशिखरपर बीजा तीर्थंकर श्रीश्रजितनाथ प्रजुनुं नावथी रुपानुं मंदिर बंधाव्यु. त्यां ज्ञानी घणधरो, श्रावको, तथा देवोए पूजापूर्वक प्रतिष्ठामहोत्सव को. एवी रीते शध्रुजयनो उकार करीने चक्री देवो तथा मनुष्यो सहित रेवताचल प्रते चाल्या. त्यां चंडप्रजासमां श्री चंदप्रन जिनेश्वरने नमस्कार करीने विमानोमारफते ते रेवताचलपर गया. त्यां श्रादरपूर्वक तीर्थने प्रदक्षिणा देश्ने, तथा गजेंअपदकुंडमांथी पाणी लेश्ने जिनालयमां गया. त्यां पण पूर्वनी परेंज तेमणे प्रजुनि पूजा, स्तुति विगेरे कर्यु, तथा पली नावथी सुप्रात्रोप्रते उचित दान थाप्यु. पड़ी श्रीद, सिकगिरि, विद्याधर गिरि, ३६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श@जय माहात्म्य. देवगिरि, अंबिकागिरि, उमागिरि,शंजुगिरि विगेरे त्यांना सर्व शिखरोपर गुरुसहित तेमणे प्रजुनी पूजा करी, केम के ते गुरुनी आज्ञाने आधिन हता. पली पाबा वलतां आबु, वैजार विगेरे तीर्थोमां प्रजुने तथा साधुऊने नमीने चक्री अयोध्यामां आव्या. ____ एटलामा त्यां पोताना चरणोथी पृथ्वीने पवित्र करता थका श्री श्रजितनाथ प्रनु पण जाणे ते चक्रीना पुण्यश्रीज खेंचाश्ने होय नहीं, तेम त्यां श्राव्या. प्रजुना श्रागमननी वधामणी आपनारने घणुं धन दे. श्ने, घणा कालथी उत्कंठित थएला चक्री प्रजुने वांदवा माटे गया. पडी त्यां नक्तिथी रोमांचित थश्ने, तथा प्रजुने नमीने चक्री प्रजुना मुखरुपी चंथी निकलता वचनरुपी अमृतने पीवा माटे तेमनी पासे बेग. त्यारे प्रनु पण तेमने बोध श्रापवा माटे क्रोधरुपी सर्पना फेरने (नाश करवाने ) गरुड सरखी तथा धर्मकार्यना प्रजाववाली वाणी कहेवा लाग्या के, था जवरुपी समुरुमां मोती, परवाला तथा रत्नोनी पेठे राज्य, पुत्र, स्त्री, बंधु, नगर, मेहेल, धन, तथा देवादिकनी शद्धि तो सुलज डे, पण चिंतामणि रत्ननी पेठे सर्व अर्थाने साधनारुं चारित्र पुर्खन डे. एक दिवस चारित्र पालवाथी पण मनुष्य निश्चयें करीने कर्मोना समूहने वीण करीने मोक्षमां जाय जे. एवी रीते चारित्रना मनोहर प्रनावने सांजलीने वैराग्ययुक्त थएला सगर चक्री नावथी प्रजुने नमता थका पोताने चारित्र श्रापवा माटे प्रार्थना करवा लाग्या. पळी चक्रीए पोता. नी पाटे गुणवान, तथा राज्यने योग्य एवा जगीरथने स्थापीने, प्रजुपा. सेश्री इंजे करेला महोत्सवपूर्वक चारित्र लीधुं. त्यारे प्रजुए तेमनी प्रशंसा करी के, हे चक्री ! तमो धन्य तथा पुण्यशाली बो, तथा तमारी मा. ताने अने कुलने पण धन्य , केम के तमोए आ संसाररुपी समुअमां फुःखदायक जलचरो सरखा कर्मोने नेदनालं, तथा पुष्कर एवं दांति श्रादिक दशविध गुणोवावं चारित्र लीधुं . पडी प्रजुनी नक्तिमां तत्पर रहीने ते सगर महामुनि पण विदार करवा लाग्या, श्री अजिनाथ प्रजुना सिंहसेन श्रादिक जिननी पेठे सत्यवादी पंचाणु गणधरो हता. वला तेमने एक लाख साधु तथा त्रण लाख नेत्रणसो साधवी हती; तेम बे लाखने एक हजार उत्तम श्रावको हता; तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ अष्टमःसर्गः पांच लाख श्राणु हजारने चारसो श्राविका हती. एवी रीते प्रजुना परिवारमा चतुर्विध संघनी स्थापना थ; वली शासननी रक्षा माटे महायद तथा अजिता नामनी यक्षिणी अधिष्ठाता थ. एवी रीते प्रनु श्रढारलाख पूर्व कुमारपणामां रह्या; त्रेपन लाख पूर्व तेमणे राज्य पादयु; बार वर्ष बन्नस्थ रह्या; तथा एक लाख पूर्व दीदा पाली; एवी रीते अजित प्रजुनुं श्रायुष्य बहोतेर लाख पूर्वनुं हतुं. हवे प्रजु अनुक्रमे विहार करता थका एक हजार मुनि साथे सम्मेतशिखरपर श्राव्या, तथा त्यां तेमणे अनशन ग्रहण कयु. पनी एक मासने अंते चैत्र सुदी पांचमने दिवसे, चंड रोहिणी नक्षत्रमा श्रावते बते, प्रनु ते मुनि सहित मोदे गया. ते वखते आसनो चलायमान थवाथी इंसादिक देवोए त्यां श्रावीने प्रजुनो निर्वाणमहोत्सव कर्यो. हवे सगर महामुनि पण प्रजुनी पेठे जगतने प्रतिबोध देता थका घातिकोना क्षयथी केवलज्ञान पाम्या. एवी रीते ते पण प्रजुनी पेठेज बहोतेर लाख वर्षोनु थायुष्य पालीने सम्मेतशिखरपर मोदे गया. एवी रीते बीजा तीर्थंकर श्री अजितनाथ प्रजुना बोधथी तथा इंजना उपदेशथी सगर चक्रीश्वरे जरतजीनी पेठेज संघ सहित शत्रुजय पर्वतपर सातमो उकार कों, तथा तेथी धातिकोनो नाश करीने ते मोदमां गया. एवी रीते सातमो उकार जाणवो. हवे एक दहाडो चोथा तीर्थंकर श्री अनिनंदन प्रजु देवोथी स्तुति कराता थका, तथा पोताना चरणोथी पृथ्वीने पवित्र करता थका शत्रुजय पर्वत प्रते आव्या. त्यां रायणनी तले देवोए बहु नक्तिथी प्रजु माटे समवसरण रच्युं. त्यां सिंहासनपर बेठेला, तथा त्रण उत्रोथी शोजता एवा प्रज्जु सर्वजाषामय वाणीथी कहेवा लाग्या के, श्रा शत्रुजय पर्वत अंतरंग शत्रुउँने नाश करनारो, सर्व पापोने हरनारो, तथा मुक्तिरुपी स्त्रीना क्रीडागृह सरखो शोने दे. अहीं सुवर्ण कलश सरखा, कव्याणना करनारा, तथा सुवर्ण सरखी कांतिवाला श्री युगादीश प्रजु सनातन रहेला . वली सर्व तीर्थंकरो मोदमां गया बाद, तथा केवलज्ञाननो लय थयाबाद था तीर्थज सर्वने कल्याणकारी थशे.जे प्राणी अ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ शत्रुंजय माहात्म्य. प्रजुने चिंतवता थका तेमने पूजे बे, ते पुण्योपार्जन करीने तुरतज मोक्षमां जाय बे. वली जे वहीं प्रासादो तथा प्रतिमा बनावीने दीनोप्रदान पेबे, ते तुरत बन्ने जवोमां सुखी थाय बे. ते सांजलीने अत्यंत क्तिवंत थरला व्यंतरेंझोए त्यांनां प्रासादोनो उत्साहथी उद्धार कर्यो. एवी रीते या शत्रुंजय तीर्थपर श्रमूल्य पुण्यना समूह सरखो व्यंतरेंद्रोनो करेलो आठमो उद्धर थयो. एवी रीते श्रमो उद्धार जाणवो. श्री वीर इंद्रने कड़े बे के, हे इंद्र ! मनोहर चंद्र सरखी कांतिवाला आठमा तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभुनुं व्रतांत हुं कहुं हुं. या जंबूहीपना भरत क्षेत्रमां चंद्रानना नामनुं मनोहर नगर बे; त्यां प्रजापते रागवालो, शत्रुने जीतनारो, तथा मोटी सेनावालो महासेन नामे राजा हतो. ते राजाने कलंक रहित चंद्र सरखा शीलने धरनारी, निर्दोष तथा परिवारपर प्रीति राखनारी लक्ष्मणा नामनी राणी हती. एक दहाडो ते श्रधिव्याधिथी रहीत घइ थकी सुखेथी शय्यामां सूति हती, त्यारे पाढली रात्रि तेी चौद महास्वप्नोने जोयां. चैत्र वदी पांचमने दिवसे, तथा चंद्र अनुराधा नक्षत्रमां यावते ते वैजयंत विमानथी चवीने प्रभु तेमनी कुक्षिमां श्रवतर्या. पढी समय संपूर्ण थयेथी पोसवदी बारसने दिव से चंद्र अनुराधा नक्षत्रमां यावते बते तेणीए पुत्ररत्नने जन्म श्राप्यो. पी उपन्न दिक्कुमारी तथा सुरेंद्रोथी थयेल बे जन्मोत्सव जेमनो एवा प्रभु अप्सराJयी लालन कराता थका यौवन पाम्या. चंद्रना चिन्हवाला, तथा दोढसो धनुष्यनी उंचाश्वाला ते प्रभु लोकोने श्रानंदकारक या पढी परण्याबाद प्रभु पितानुं राज्य पालवा जाग्या, एवी रीते तेमणे साडा लाख पूर्वसुधि राज्य पाल्युं; पढी पोशवदी तेरसने दिवसे चंद्र अनुराधा नक्षत्रमां श्रवते ते प्रभुए एक हजार राजा साथे दीक्षा ली. पण मास गया बाद फागण सुदी सातेमे चंद्र अनुराधा नक्षत्रमां यावते ते प्रभुने केवलज्ञान थयुं. ते वखते अवधिज्ञानथी जाणीने चार निकायना देवो प्रजुनो केवलज्ञाननो महोत्सव करवामाटे तुरत त्यां व्या. त्यां समवसरणमां प्रजुनी देशना सांजलीने ते सघला हर्षथी पोतपोताने स्थानके गया. पढी अतिशयो सहित प्रभु विहार क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमष्टः सर्गः श्य रता था सर्व रिहंतोथी परिशीलित थपला शत्रुंजय पर्वतप्रते श्रा व्या. त्यां रायणने प्रदक्षिणा देने मुनिर्ज सहित वाणीरुपी पवित्र जलने वर्षता का प्रभु समोसर्या. त्यां ते तीर्थना महान महिमा ने कहीने, तथा तेने प्रदक्षिणा देने प्रभु चंद्रोद्यानमां श्राव्या. त्यां सगर चक्रीए लावेला समुद्रनाकांठापासे ब्राह्मी नदीने तीरे प्रभु समोसर्या. त्यां देवोए समवसरण करवायी लोकोना समूहो त्यां खावीने, तथा प्रभुने नमीने तेमनी पासे बेठा. ते वखते त्यां शशिप्रभा नामनी नगरीनो शशिशेखर नामनो राजा पोतानी चंद्रप्रजा नामनी राणी सहित तुरत - व्यो. पढी चंद्रयशा नामना पुत्र सहित प्रभुने नमिने ते राजा, प्रजुनी वाणीरुपी अमृतनी श्रेणिने पीवा माटे त्यां बेठो त्यारे प्रभु पण कड़ेवा लाग्या के, स्थिर संसारमां श्री शत्रुंजयपर अरिहंत प्रजुनुं जे ध्यान धर, तेज एक सारभूत बे. वली देवोमां जेम जिनेश्वर, ध्यानोमां जेम शुक्लध्यान, तथा व्रतोमां जेम ब्रह्मचर्य व्रत, तेम सर्व तीर्थोंमां श्रा मुख्य तीर्थ डे वली सर्व धर्मोमां चारित्र मुख्य बे, केम के ते विना मुतिरुपी स्त्री प्राणीने वरती नथी. एवी रीतनी प्रभुना मुखनी वाणी सांलीने चंद्रशेखर राजाए राणी सहित चारित्र लीधुं. अ वे ना कायोत्सर्गनी जगोए समुद्र किनारे धरणेंद्रे चंद्रकांत नावा प्रनुं मंदिर वनान्युं पढी प्रभु पण तीर्थप्रते तत्पर था थका रैवताचलादिक शिखरोमां विहार करवा लाग्या. पढी त्यांथी विहार करीने जगतने तीर्थमय करता थका, हज़ार मुनि साथै प्रभु सम्मेतशिखरप्रतेाव्या. त्यां श्रावणवदी सातेमे, चंद्र श्रवण नक्ष मां ते ते प्रभु निष्कंप थया थका रह्या. एवी रीते साडा सात लाख पूर्वनुं श्रायुष्य संपूर्ण करीने प्रभु अनशनमां रह्या थका मोदे गया पछी त्यां सघला इंद्रो प्रजुनो निर्वाणमहोत्सव करीने पोतपोताने स्थानके गया. हवे ते चंद्रशेखर महा मुनि पण विहार करता थका प्रजुना वरपोथी पवित्र थली चंद्रप्रजा नगरीमां गया. त्यां तेमने आवेला जाणीने तेनो पुत्र चंद्रयशा पण वेगयी त्यां पांचसो राजाई सहित श्राव्यो. तथा तेणे चंद्रशेखर मुनिने नमस्कार कर्यो, त्यारे ते मुनि पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शन्६ शत्रुजय माहात्म्य. धर्मशाजनी श्राशिषपूर्वक तेने कहेवा लाग्या के, श्रहीं चंप्रन प्रजु श्राव्या हता, तेथी था चं प्रजास नामनुं तीर्थ पृथ्वीमा प्रख्यात थशे. वली अहीं समुना किनारापर ज्यां प्रनु प्रतिमाथी रह्या हता, त्यांथी लवणसमुजना अधिष्टायक देवे समुज्ने दूर को हतो. वली यहीं धरणे प्रजुनुं मंदिर बनावेल बे, जेथी ते तीर्थ वधारे पवित्र , तेम त्यांनो समुद्र पण पवित्र बे. वली अहीं पूर्वे चंडोद्याननी समीपे श्री युगादीश प्रजु श्राव्या हता, ते वखते तेमना पौत्र शशीकीर्तिए पोताना जावथी चंप्रजु, मंदिर नगर सहित बनाव्यु हतुं, तेथी ते तीर्थ अतुल्य तथा पवित्र . वली अहीं ज्यां योजनप्रमाण नूमिमां प्रजुनुं समवसरण थयु हतुं, ते जगाए मनुष्यने देवगति थाय जे. वली जिनना चरणथी पवित्र थएली ते नूमिपर मडदांउमा पुगंध, तथा कीडा पडशे नहीं. वली श्रही जे माणसोसावद्यनो त्याग करीने जिनना ध्यानमां तत्पर रही तप तपे , तेउने मुक्तिरूपी स्त्री दूर नथी. वली यहीं सगर चक्री तीर्थनी रदा माटे समुज्ने लाव्या बे, अने ते समुजनुं पाणी श्रापमा प्रजुना स्नात्र माटे उपयोगी होवाथी पवित्र बे. वली अहीं रहेली ब्राह्मी नदीने ब्रझेड जिनस्नात्र माटे लावेला बे, तेथी ते सर्वथा प्रकारे पवित्र . वली अहीं घणा तीर्थोनो संगम होवाथी सर्व पापोने नाश करनारं श्रा उत्तम तीर्थ .अहीं शुज नावथी चार शाखावालो धर्म थाराधवाथी, ते सेंकडो शाखाउँवालो थश्ने विस्तार पामशे. एवी रीते सर्वनो उपकार करनारा ते मुनि उपदेश दश्ने बीजी जगोए विहार करी गया. पनी त्यां चंज्यशाए चंपन प्रजुगें हर्षथी मणिमय मंदिर बनाव्युं. वली त्यां तेणे पोताना पिता चंडशेखरनी मणिमय मूर्ति बनावी, केम के उत्तम पुत्रनी पितातरफ एवीज नक्ति होय . वली त्यां तेणे गुरुनी श्रा. झापूर्वक केटलाक दिवसो सुधि विविध प्रकारचें दान दीधुं. वली त्यां तेणे केटलांक मंदिरोने जीर्ण थएलां जोश्ने श्रादरथी तेमनो उझार कयों. वली तेणे पुंडरिकगिरि, रैवताचल, बाबु तथा बाहुबलि विगेरे शिखरोपर पण नक्तिथी उकार को. एवी रीते तीर्थोनो उकार करीने, तथा यात्रा करीने चंअयशा राजाए शुज गुरुनी पासे मुक्तिस्त्रीनी सखी सरखी दीक्षा लीधी. पठी लाख पूर्वो सुधि दीदा पालीने, तथा आठे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः ចុចទ कर्मोनो दय थवाथी केवलज्ञान पामी अंते जे ते मोदमां गया, ते सघलो प्रनाव था तीर्थनो जाणवो. एवी रीते नवमो उद्धार जाणवो. मलीन चंजने तजीने हरिणे जे प्रजुना चरण कमलने सेव्यु बे, एवा देवोथी सेवाएला शांतिनाथ प्रनु संघप्रते शांति करनारा था ? जरत देत्रना गजपुर नामे नगरमां जगतनी सर्व सेनाने जीतनारो विश्वसेन नामे राजा हतो. तेने शीलनी लीलाथी उज्वल थएली अचिरा नामे राणी इती; एकदा समये तेणीए पाबली रात्रिए चौद महाखप्नो जोयां. हवे श्री शांतिनाथ प्रजुनो जीव सर्वार्थ सिझथी चवीने नादरवा मासनी सुद सामने दिवसे चंड जरणी नक्षत्रमा श्रावते ते तेनी कुक्षीमां श्रावी अवतो. स्वप्नना दर्शनथी अरिहंत अथवा चक्रीना ज. न्मनो निश्चय करती थकी रत्नगर्जानी (पृथ्वीनी) पेठे ते अचिरा माता शुज दोहदवालां थया थकां गर्जने धारण करवा लाग्या. पली संपूर्ण समये जेठ सुदी तेरसे चंड जरणी नक्षत्रमा श्रावते बते तेणीए पुत्ररत्नने जन्म थाप्यो. त्यारे उपन्न उकुमारिए तथा इंसादिक देवोए हर्षथी प्रजुनो जन्मोत्सव को. पढी खर्णकांतिवाला ते प्रजुए यौवन अवस्थाए पितानी याज्ञाथी राज्यनारने अंगीकार कर्यो. चक्ररत्नना अनुसारे ब खंड पृथ्वीने जीतीने, इं जेम देवलोकना राज्यने तेम ते पोतानुं राज्य चलाववा लाग्या. पडी जेठ सुदी चौदसने दिवसे चंब जरणी नदात्रमा श्रावते ते प्रजुए इंजना महोत्सव पूर्वक एक हजार राजा सहित दीक्षा लीधी. पडी बनस्थपणामांज सघला देशोमा विहार करीने एक दिवसे प्रजु गजपुर नजदीकना उद्यानमां श्रावी ध्यानमा रह्या. त्यां पोससुदी नवमीने दिवसे कर्मोना यथी लोकालोकने प्रकाशनारं प्रजुने निर्मल केवलज्ञान उत्पन्न थयुं. पठी ते ते अतिशयोथी युक्त थएला तथा देवोथी सेवाएला प्रन्नु शत्रुजय नजदीक सिंहोद्यानमां थाव्या. हवे प्रतिष्ठान नामे नगरमा एक मिथ्यात्वी ब्राह्मण हतो, ते पृष्ठबुद्धि यज्ञकार्यमां थासक्त थयो हतो. एक दहाडो वश करेला लोकोना समूहथी वीटाएला ते ब्राह्मणना यज्ञवाडामां कोश्क मुनि श्राव्या. त्यां (यज्ञमां थती) हिंसाने जोश्ने हृदयमा कुःखीत थएला ते मुनि जंचे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श@जय मादात्म्य. खरेथी कदेवा लाग्या के, शुद्ध सिद्धांतोने दूषित करनारा एवा था लोकोने धिक्कार ! पूर्वे श्री जरत महाराजे धर्मयुक्त वेदोने बनाव्या हता, ते वेदोने था ग्रासांध लोको दूषित करे . एवी रीतना ते मुनिना वच. नथी क्रोधातुर थएलो ते पुष्ट ब्राह्मण हथियार लेश्ने तेमने मारवाने दोड्यो; पण वचमा उन्ना करेला यज्ञस्तंनमां अथडावाथी तेणे तुरत पोताना अपराधि प्राणोनो त्याग कर्यो. एवी रीते थार्तध्यानथी मृत्यु पामीने ते ब्राह्मणनो जीव ते सिंहोद्यानमां सिंह थयो, एवी रीते मुनिदर्शनना पुण्यथी तेने ते उत्तम तीर्थ मल्यु. हवे ते सिंह त्यां वनवासी प्राणीउने त्रास आपतो थको जमवा लाग्यो; त्यां एक दहाडो तेणे श्री शांतिनाथ प्रजुने जोया, तेथी शीतोपचारथी जेम ज्वर, तथा साम वाक्यथी जेम पुर्जन तेम ते अत्यंत क्रोधातुर थयो; तथा पुंबडांथी पृथ्वीने श्रास्फालन करतो थको, अने क्रोधथी लाल आंखोवालो थयो थको ते पंजो उगामीने प्रजु तरफ दोड्यो. पण सिंहथी जेम हरिण तेम ते प्रनुथी जय पामीने सात धनुष्य दूर हठ्यो. एवी रीते वारंवार प्रजु तरफ दोडतो तथा पाडो हतो थको ते मनमां विचारवा लाग्यो के, मा. री थाडे तो कंई वस्तु श्रावती नथी, अने हुं फाल पण मारी शकतो नधी, माटे खरेखर था शांतशरीरी को असामान्य महात्मा बे; एम विचारतो थको, तथा प्रनु तरफ वारंवार जोतो थको ते पोताना पूर्व जवोने याद करवा लाग्यो. एवी रीते तेने क्रोधथी शांत थएलो जा. णीने प्रजु तेने कहेवा लाग्या; केम के ज्यांसुधि तपेढुं तेल होय, त्यांसुधि तेमां पाणी नाखवाथी ते जयंकर जडको ले उठे . प्रजुए तेने कडं के, हे सिंह ! तुं तारा ब्राह्मणना पूर्व जवने याद कर ? त्यां तेवी रीतना पुष्कार्यथी तुं था तीर्यचरूपे थयो बुं. वली था तीर्थराजनुं समीपपणुं पामीने पण हवे तुं क्रोधातुर थश्ने नरक श्रापनारी हिंसा शामाटे करे जे ? वली ते समये हितोपदेश देनारा मुनिप्रते पण ते जे कोध कयों, तो तने मृत्यु आदिक श्रावं फल जोगवई पड्युं . माटे हवे जीवहिंसा तजीने, तुं दयाने अंगीकार कर ? तथा धर्मने नजतो थको खेद पाम्या विना तीर्थने श्राराध ? एवी रीते धर्मवचनोथी तेने प्रतिबोधिने प्रजु श्रागल चाख्या, त्यारे ते सिंह पण शांत चित्तवालो थयो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः नए थको प्रजुनी पाउल चालवा लाग्यो. पठी प्रनु शत्रुजयपर चड्या, तथा पाउल श्रावता ते सिंहने तेमणे कडं के, तुं हवे प्राणीउप्रते समता धा. रीने अहींज रहेजे ? केम के अहींज तने था देवना प्रनावथी देवगति मलशे, तथा पढी एकावतारी थ तुं मोके जश्श, एवी रीतनी प्रजुनी थाज्ञामां तत्पर रहीने ते सिंह प्रजुनुं ध्यान धरतो थको मुनिनी पेठे दयाने तथा शांत मनने धारण करीने त्यां रह्यो. पठी त्यां शुजध्यानथी मृत्यु पामीने ते उत्तम देवगतिमा गयो; माटे तीर्थनो प्रनाव कदापि पण निष्फल जतो नथी हवे श्री शांतिनाथ प्रनु पण देवोना समूहोथी वींटाया थका अजितप्रजुनी पेठेज मरुदेवा शिखरपर चार माससुधि रह्या. त्यां गांधर्वो, विद्याधरो, देवो, जुवनपति तथा मनुष्यो प्रीतिपूर्वक प्रजुने हमेशां पूजता हता. एवी रीते त्यां चतुर्मास रहीने प्रनु सूर्यनी पेठे जगतने बोध था. पवामाटे त्यांथी विहार करी गया. दवे प्रजुथी पवित्र थएला ते शिखरपर ते सिंहदेवे स्वर्गमांथी थावीने मूर्ति सहित श्रीशांतिनाथ प्रजुनुं मं. दिर बंधाव्यु. वली पोतानी देवगतिना कारणरूप एवा ते शिखरपरते देवे बीजा पण प्रजुना मूर्ति सहित प्रासादो बंधाव्यां. एवी रीते सिंहदेवथी तथा तेना अनुचर एवा बीजा देवोथी अधिष्ठित थएवं ते शिखर शांतिजिननी जक्तिथी सर्वना इलितोने श्रापे . ते शिखरनी समीप श्शान खु. णामां पांचसो धनुष्य दूर यद बे, ते चिंतामणि रत्न आपे . त्यां कल्पवृक्षोपर रहेला कोडो अधिष्टायक देवो शांतिनाथ प्रजुनुं श्राराधन करनाराउने सर्व इनित वस्तु आपे . वली त्यां पुण्यशालीने अरिहंत प्रजुना श्राश्रयथी संशयरहित पारलौकिक सिकि मले बे. एवीरीते सर्व शिखरोपर विहार करीने, प्रजु पोताना चरणन्यासोथी पृथ्वीने पवित्र करता थका अनुक्रमे गजपुर नगरमां श्राव्या. त्यां शांतिनाथ प्रजुना चक्रधर नामना पुत्र प्रजुने श्रावेला जाणीने, तुरत परिवार सहित तेमने नमवा माटे श्राव्या. पली त्यां सर्व सभासदो प्रजुने नमीने तथा स्तवीने बेग बाद प्रनु पण पोताना मुखकलमांधी मकरंद सरखी देशना देवा लाग्या के, शील, शत्रुजय पर्वत, समता, जिननी सेवा, संघ, तथा संघाधिपपणुं ते सर्वे मोक्ष थापनारां जे. एवीरीतनी प्रजुनी देशना सांजलीने उत्तम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए शत्रुजयमादात्म्य. बुद्धिवाला चक्रधर राजा उठीने कहेवा लाग्या के, हे प्रजु ! मने आप संघाधिपपणुं श्रापो? त्यारे प्रजुए पण देवोए लावेलो वासक्षेप तेमना मस्तकपर नाख्यो. एवी रीते प्रजुनी ते आशिष लेश्ने, तथा इंजे दीधेला चैत्यने लेश्ने राजाए संघने निमंत्रण कर्यु. पडी कुलस्त्रीउए करेल ने मंगल जेनुं एवा ते चक्रधर राजा सैन्यना नारथी जगतनें चलायमान करता थका संघसहित चालवा लाग्या. पनी थनवछिन्न प्रयाणथी, गामोगाम प्रते जिनोने तथा मुनिउँने नमता थका ते सुराष्ट्र देशमां श्रावीने तीर्थ समीपे श्राव्या. त्यां एक दहाडो राजा ज्यारे देवालयमां बेग हता त्यारे, पोतानी कांतिथी आकाशने तेजस्वी करतो थको कोश्क विद्याधर श्राव्यो. तेने जोश् चक्रधर राजा श्रासनपरथी जरा उठ्या, तथा, तेने उत्तम आसनपर बेसाड्यो, पडी ते विद्याधर हाथ जोडीने राजाने कहेवा लाग्यो के, हे राजन् ! तमो अरिहंत प्रजुना पुत्र, तथा इक्ष्वाकु वं. शमां मुकुट समान बो. हुं खेटपुरना राजा मणिप्रिय विद्याधरनो कलाप्रिय नामे पुत्र बुं, तथा शत्रुथी बसें करीने पराजव पामेलो इं. हवे गोत्रदेवीनी श्राज्ञाथी आपनाथी ते मारा शत्रुनो क्षय जाणीने, श्रापने बोलाववा माटे हुँ अहीं श्राव्यो बुं, तेथी हे प्रजु! श्राप मारापर कृपा करो ? पड़ी चक्रधर राजानी श्राज्ञाथी ते विद्याधरे पोतानी अत्यंत शक्तिथी विमाननी रचना करी. पनी शत्रुने नाश करनार चक्रधर राजा पण विमानमां बेसीने दणवारमांज ते विद्याधर सहित खेटपुरमां श्राव्या. एवी रीते चक्रधरना त्यां श्राक्वाथी, तेना तेजने सहन नहीं करवायी जलकांत मणिमांथी करता पाणीनी पेठे शत्रु दूर चाख्या गया. एवी रीते शत्रुनो समूह नाशी गया बाद ते कलाप्रिय विद्याधर चक्रधर राजाने श्रादरसहित कहेवा लाग्यो के, हे प्रजु ! पोतानी मेलेज आपप्रते रक्त थएली मारी बेहेनने आप परणो? जो के तेथी पण हुं श्रापनो बदलो तो लेशमात्र पण वाली शकतो नथी. एम कहीने तेणे पोतानी गुणमाला नामनी बेहेन चक्रधरने श्रापी. तेना संगमथी चक्रधर कौमुदी सहित चंजनी पेठे शोजवा लाग्या. वली तेना रुपथी मोहित घएली बीजी विद्याधरनी कन्याउँने पण चक्री त्यां परण्या; केम के नाग्यवंतोनुं जाग्य सर्व जगोए उत्कृष्टज होय . पनी चक्रधर राजाने तीर्थपर जवानी - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः शएर वाला जाणीने ते विद्याधर तेमने स्त्री सहित विमानमां बेसाडी त्यां ले जवा लाग्यो. मार्गमा विमान चालते बते ते विद्याधरे तेमने खुशी करवा माटे स्त्री सहित नृत्य कर्यु. ते विमानना जरुखामा बेसी चक्रधर राजा जगतनी रचना जोता थका, एक मनोहर उद्यानने जो विद्याधरने कदेवा लाग्या के, हे कलाप्रिय! पुष्पोनी सुगंधिथी हर्षित थएल ने नमः राना समूह ज्यां, तथा श्रांबानी मांजरोथी आनंदित थएल के कोयलो ज्यां, एवा आ उद्यानने तुं जो ? था उद्यानमां मारुं चित्त क्रीडा करवाने श्छे बे, माटे तुं पण श्रहीं श्रानंदधी था विमानने उतार ? एवी रीतना राजाना प्रिय वचनने सांजलीने कलाप्रिये पण तेमनुं वचन स. फल करवा माटे आकाशमांशी त्यां विमान उतार्यु. वृक्षोथी उवाएला तथा शांखोप्रते अमृतना वरसाद सरखा ते उद्यानमां चक्रधर राजा स्त्री सहित क्रीडा करवाने श्छता हवा. त्यां तेमणे वृक्षोने जोतां थकां तथा पुष्पो अने फलोने एका करतां थकां अगाडी अमृतना कुंडसरखं एक तलाव जोयु. घणा अने निर्मल मोजांथी वीटाएला कमलोना चलायमान थतां पत्रोथी नमराउने उडाडी मेलता ते तलावने जो राजाए विद्याधरने कयु के, पालपर उगेलां वृदोनां पत्रोथी शांत करेल ने पंथीउनो श्रम जेणे, तथा गर्मीना तापने हरनार, पृथ्वीरूपी स्त्रीना कंकण सरखं, तथा चपल कबोलोथी चलित थएला कमलोपर खेली रह्या डे हंसो ज्यां, एवं था तलाव अत्यंत शोने जे. वली चपल कमलोपर यहीं जमरा लीलाथी नृत्य करी रह्या , तथा मयूरो टनकार करी रह्या , तथा चक्रवाक पक्षी पोतानी स्त्री सहित अहीं आनंद मेलवे . माटे हे विद्याधर! अहीं माझं मन अत्यंत आनंद पामे , अने तेथी था सरोवरनी प्रदक्षिणा देश्ने तेनी आसपासनी वस्तु थापणे जोश्य. एम कहीने ते विद्याधर सहित राजा तेनी आसपास फरवा लाग्या, त्यां तेमणे वृक्षोनी डालीउँमा श्रासादित थएवं एक चैत्य जोयु. ते चैत्यमा श्री युगादीश प्रजु, मणिर्नु बिंब जोश्ने हर्षित थया थका स्त्री सहित प्रजुने पुष्प, अक्षत, स्तवन श्रादिकथी पूजीने ते राजा प्रासादनी महान शोला जोवा लाग्या. पडी जेटलामां ते बहार आवे , तेटलामां तेउए वचित्र रूपवाली एक वांदरीने फरूखामां बेठेली जोश. तेणीने जोश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए शत्रुजय माहात्म्य. "अहो! आतो सुंदर वांदरी ने” एम कही जेवो चक्रधर राजाए तेणीने स्पर्श कर्यो, के तुरतज तेणीने दिव्यरूप धरनारी स्त्री तरिके जोश, तथा तेथी ते अत्यंत आश्चर्य पाम्या. पड़ी ते राजा जेटलामां कंक बोलवा जाय , तेटलामां तेणीनारखेवाल बे विद्याधरोत्यां श्रावीने हर्षथी राजाने कदेवा लाग्या के, हे स्वामी श्राना रूपना विपर्ययथी तमो आश्चर्य थशो नहीं ? श्रानी आश्चर्यकारक कथा सांजलवा माटे तमो अहीं बेसो? पडीराजा त्यां बेग बाद तेउमांथी एक विद्याधर कहेवालाग्यो के, हे स्वामी ! अमो वैताढ्यनी उत्तरश्रेणिमा रहीए बीए.था मारी मूर्तिवंत एवाशृंगार रसने जीवाडनारी श्रृंगारसुंदरी नामनी पुत्री अनुक्रमे यौवन अवस्थाने पामी. एक दहाडो देहधारी वसंतश्री सरखी श्रा मारी पुत्री सखीसहित क्रीडामाटे उ. यानमां गश् हती. त्यां स्वेछाथी पुष्पो, फलो, पत्रो विगेरे खेती थकी ते बीजा उद्यानमां गश्, तथा त्यांथी पण फलादिक लेवा लागी. त्यारे ते वननी चक्रेश्वरी नामनी अधिष्टायक देवीए पोताना चापल्यपणाथी तेणीने श्राप थाप्यो के तुं वांदरी थ जा? पड़ी तेणीए तेने नमस्कार करवाथी तथा श्राजीजी करवाथी ते देवी खुशी थर, केम के उत्तमोप्रायें करी अत्यंत क्रोधी होता नथी. पडी ते देवीए तेणीने कडं के, शांतिनाथ प्रजुना पुत्र चक्रधर राजाना करस्पर्शथी तुं पानी स्त्रीरूपे थश्श; तथा हे सुलोचने ! तारा हाथने पण ते ग्रहण करशे, (अर्थात तने परणशे.) एम कहीने ते देवी अंतान थ. हवे त्यारथी ते वांदरीरुप थश्ने श्रा वनमां रही बे, श्रने नाग्यना योगथी आजे आपर्नु पण श्रागमन थयुं. माटे हे स्वामी ! जेम थापे तेने मनुष्यदान थापीने पोतानी करी लीधी बे, तेम हवे तेणीने श्राप कामदेवरूपी समुत्थी पण उधारी कहाडो? . एवी रीतनी तेउनी प्रार्थनाथी कलाप्रिय विद्याधरे श्री युगादीश प्र. जुनी सादीए तेऊनो विवाह कर्यो. पठी त्यां कलाप्रिये तथा ते बन्ने वि. द्याधरोए तेमने केटलीक कला श्रापी, तथा देवीए पण प्रत्यक्ष थश्ने तेमने वरदान प्राप्यां. एवी रीते परणीने ते चक्रधर राजाए त्यांवनमां जमतां थकां नदीना किनारापर तपस्या करता एवा केटलाक ज. टाधारीजनो आश्रम जोयो. त्यां लक्षणोथी तेने राजा जाणीने ते तप. खीउए उठीने तेमनो अर्घ्यपादादिकथी आदरसत्कार कर्यो. पठी रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए३ अष्टमःसर्गः जाए बहु आदरमानथी तेउने पुब्युं के तमो कोण डो? तथा अहीं शा माटे एकठा थया को ? तथा तमो कोनुं ध्यान धरो बो ? त्यारे ते ए कडं के, हे राजन् ! श्रमो कलवंशी कंदमूल नक्षण करनारा जटाधारी तापसो बीए; वली श्रमो श्री युगादीश प्रजुने नमीए बीए, वल्कलो पेहेरीए बीए, ब्रह्मचर्य पालीए बीए, तथा नूमिपर शयन करीए बीए. ते सांजलीने चक्रधर राजा तेमने कहेवा लाग्या के, अरे ! तमो तो मिथ्यात्वथी मोहित थया थका शुरु धर्मथी उगाया बो ! केम के, ज्यारे तमो निःसंग थश् ब्रह्मचारी थया थका तपजपमा तत्पर रही श्री युगादीश प्र. जुने नजो डो, त्यारे अजय वस्तुना नोजनमां शा माटे रक्त थया डो? जेथी मिथ्यादृष्टि अज्ञानी रहेला बे, एवी गुप्त नसोवाली, जांगवाथी जेना सरखा नाग थाय तेवी, तथा पल्लवरूप वनस्पति अजय कहेली जे. जे वनस्पतिमा तीक्ष्ण सोश्ना मुखपर रहे एटला नागमां पण अनंता जीवो उपजे . तथा विनाश पामे , ते अनंतकायो कहेवाय जे. वली कीडाउँथी व्याप्त थएलां एवां उडुंबर, वड, पीपला, काकोडंबर, तथा अश्वन, नामना वृदना फलो पण खावां नहीं. वली मध, मांस, माखण तथा मय ए चार महा विगयोनो त्याग करवो. वली हिम, फेर, करा, सर्व ऋतुनां नवां फलो, रात्रिनोजन, बोरानुं श्राथj, वृंताक (रीगणां) अजाण्या फलफुलो, फुगाएल नोजन, बहुबीजां फलो, तथा काचा गोरससाथे द्विदलनुं नोजन, एटलानो पण त्याग करवो. एवी रीते प्रजुए बावीस वस्तु अजय कहेली , माटे तेने तज्याविना तमो श्री युगादीश प्रजुने शी रीते पूजी शको बो ? वली ते थजदयना जोजनथी हीन जाति, अज्ञानता, रोग, तथा दरिजपणुं मले, अने मृत्युबाद नरकगति मले . एवी रीतना प्रजुना वचनने जाणीने जे सुबुझि माणस ते अजयोनो त्याग करे, ते अनंत सुख नोगवीने पापरहित थर मोक्षमा जाय जे. एवी रीतना चक्रधर राजाना वचनोने सांजलीने ते तापसो वैराग्ययुक्त थर कहेवा लाग्या के, हे राजन् ! थापे अमोने शुद्ध मार्ग बताव्यो. वली हे महाराज ! आंधलाउँए जेम चिंतामणि रत्नने, तेम अमारां जीवितनो आटलो काल श्रमोए मिथ्यात्वपणाथी फोकट गुमाव्यो. त्यारे चक्रधर राजाए तेमने कह्यु के, हे महानुनावो! हवे तमो खेद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए। शत्रुजय माहात्म्य. नहीं करो? पण मारी साथे श्री रुपनदेव प्रजुने वांदवामाटे चालो ? तेम कहीने अति श्रादरथी राजा विमानमां चडीने लोकोनी दृष्टिने कोतुक थापता थका ज्यां संघ हतो त्यां श्राव्या. स्त्रीसहित तेमने श्रावेला जाणीने संघना लोको पण दर्षथी धवलध्वनि पूर्वक वाजित्रो वगाडवा लाग्या. हवे ते तापसो पण राजाए देखाडेला मार्गे चालता थका अनुक्रमे त्यां श्राव्या, तथा राजाए तेमने सन्मान श्रापवाथी ते अत्यंत हर्षित थया. पनी अनुक्रमे तीर्थपूजा तथा संघपूजा करीने इंजना उत्सवपूर्वक ते राजा पुंडरिक गिरिपर चड्या. पली त्यां तेमणे विधिपूर्वक पूजा, आरात्रिक, दान, तथा झोत्सवप्रमुख सर्व कार्य कर्यु. एटलामां ते सिंहसूर प्रत्यक्ष थश्ने राजाने कहेवा लाग्यो के आपना पिताजीनी कृपाथी हुँ तिर्यंच नवने तजीने श्रावी रीतनी छिवालो जे देव थयो बु, ते सर्व प्रनाव प्रजुनो तथा था तीर्थनो . वली श्री मरुदेवा नामना शिखरपर श्रापना पिताजी श्री शांतिनाथ प्रजुनुं मंदिर , माटे त्यां जश हर्षथी तेमनी तमो पूजा करो ? पढी तेना वचनथी चक्रधर राजाए त्यां जश् श्री शांतिनाथ प्रजुने बहु जतिथी पूज्या, तथा त्यां पण पूर्वनी पेठेज तेमणे सर्व कार्य कयु. हवे ते तपस्वी पण त्यां श्री षनप्रजुने जोश पोताना जन्मने कृतार्थ मानता थका आनंद पाम्या. पड़ी ते तापसो उत्तर दिशामां स्वर्ग• गिरिपर एक योजननी नीचाण नूमिमां केवली महाराजनी आसाथी रह्या. त्यां घातिकर्मोना यथी तेउने केवलज्ञान थयु, तथा पली प्रत्याख्यानमां तत्पर रह्यां थकां तेने मोद मल्यो. हवे जे जगोए इंजे करेल ने, संस्कार जेऊनो एवा ते तापसो ज्यां सिक थया, ते स्थान तापसगिरिना नामथी प्रसिक थयुं. पडी ते चक्रधर राजा आनंदथी ते मुक्तिगृह सरखा तीर्थने जोता हता, त्यारे इंजे तेने कडं के, हे चक्रधर राजन् ! तमारा पूर्वजोनुं था तीर्थ कालना माहात्म्यथी जीर्ण थएबुं , माटे तेनो उझार करवो तमोने योग्य . ते सांजली चक्रधर राजाए त्यांना सघला प्रासादोनो उझार कर्यो, अने तेथी पोताना नवपंजरने उलटुं तेमणे जीर्ण कर्यु! पड़ी इंजे चक्रधर राजाने “ तमो था तीर्थनो जीर्णोधार करनारा बो.” एम कहीने तेनी स्तुति करीने तेणे तेमने पु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमःसर्गः शए प्पोथी वधाव्या. पनी पोताना पूर्वजोनी पेठे ते चक्रधर राजाए पुंडरिक गिरिना सर्व शिखरोपर प्रासादोनो उद्धार को. पनी चंप्रजासक्षेत्रमा समुपासे रहेला चंपन प्रजुना मंदिरमां तेमणे अहार महोत्सव कयों. पड़ी ते संघना लोकोसहित संपदाना घर सरखा रैवताचलपर चड्या. त्यां कामदेवने जीतनारा श्री नेमिनाथ नामना नावितीर्थंकर म. हाराजने संघना लोकोए हर्षथी स्तवनोयें करीने पूज्या. त्यां पण चक्रधर राजाए प्रासादोनो जीर्णोधार कयों, तथा बीजा पण केटलाक नवीन प्रासादो बंधाव्या. पड़ी ते तीर्थनी प्रदक्षिणा देश्ने राजा संघसहित नंदिवर्धन शिखरपर चड्या. त्यां पण तेमणे पूजा, दान, खामिवत्सल थादिक करीने विधिपूर्वक जीर्णोकार कों. पड़ी एवी रीते सम्मेतशिखर थादिक तीर्थोमां पण नक्तिथी यात्रा तथा जीर्णोद्धार करीने अनुक्रमे चक्रधर राजा उत्सवपूर्वक हस्तिनापुरप्रते श्राव्या. त्यां तेमणे पूर्वनीपरेंज त्रणखंड बरतनुं राज्य पालवा मांड्यु. एटलामां हवे इंशोथी पूजाएला श्री शांतिनाथ प्रजु पण केटलाक मुनिसहित सम्मेतशिखरपर थाव्या. त्यां लाख वर्षोनुं पोतानुं श्रायुष्य पूर्ण थतुं जाणीने तेमणे नवसो मुनिउँसहित अनशन ग्रहण कयु. पनी अनुक्रमे चैत्रवदी तेरसने दिवसे पाबले पहोरे प्रजु ते मुनिउंसहित मोदे गया. त्यां सर्व देवोए पूर्वनी पेठेज तेमनो निर्वाण महोत्सव कर्यो, तथा त्यां तेमनुं मणिमय मंदिर बंधाव्यु. एवी रीते प्रजुना निर्वाणने सांजलीने वैराग्ययुक्त थ चक्रधर राजाए गुरु समीपे मनोहर चारित्र लीधुं. परी दश हजार वर्षोसुधि खड्गधारा सरखं चारित्र पालीने ते चक्रधर मुनि महाराजे केवलज्ञान मेलव्यु. एवी रीते केवलज्ञानरूपी सूर्यना किरणोधी समस्त जगतने हाथमा रहेला मणीनी पेठे जोता थका, तथा जव्यरूपी कमलना वनने विकवर करता थका, अने ध्यानथी बाहारना अने अंतरंगना सर्व अंधकारनो नाश करता थका ते श्री चक्रधर महा. मुनिराज सम्मेतशिखरपर रह्या थका, मोदनगरप्रते गया. एवी रीते दशमो उफार जाणवो, एवी रीते श्राचार्य महाराज श्री धनेश्वरसूरिए बनावेला महा तीर्थ श्री शत्रुजयना माहात्म्यमां श्रीअजितखामी, सगर चक्री, श्री शांतिप्रनु, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ शजय मादात्म्य. तथा चक्रधर राजादिक महापुरुषोए करेला तीर्थोकारना वर्णननो श्रावमो सर्ग संपूर्ण अयो. श्रीरस्तु. नवमः सर्गः त्रणे जगतोना खामी, तथा अनुत विनवना प्रजाववाला, तथा सघला माणसोना बन्ने नवोना हित माटे प्रकट करेल मार्ग जेणे एवा श्री युगादीश प्रजु जयवंता वर्ते . ___ श्री वीरप्रन्नु इंजने कहे डे के, हे इं! तेज इक्ष्वाकु वंशना पुरुषरननुं तथा था शत्रुजय गिरिनु, कर्णने अमृततुल्य चरित्र तुं हजु पण सांजल ? हे इं! हवे श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकर महाराजना तीर्थमां थएला वासुदेव, बलदेव तथा रावणर्नु चरित्र हुँ तने कडं बुं. श्री सूर्ययशाना वंशमां केटलाक राजा थयाबाद अयोध्या नगरी. मां विजय नामे राजा थया. तेनी हिमचूला नामनी राणीथी वज्रबाह अने पुरंदर नामे बे पुत्रो थया, तेर्डमांथी वज्रबाहुए पोताना शालानी हांसीथी दीक्षा लीधी. पली विजय राजा पण पुरंदरने राज्यपर बेसाडीने दीक्षा वेश मोदे गया. पुरंदरनो पुत्र कीर्तिधर, तथा कीर्तिधरनो पुत्र सुकोशल थयो; ते सुकोशल राजाए पोतानी गर्नवंती स्त्रीने तजीने दीदा लीधी. तेनी सहदेवी नामनी माता कुःखथी पीडित थ थकी मृत्यु पामीने वनमां वाघण थर, तेणीए पूर्वना क्रोधथी पोताना संयमधारी पुत्रने मारी नांख्यो. हवे ते सुकोशलनो हिरण्यगर्न नामे पुत्र थयो, तेनो पुत्र नघुष नामे थयो; ते नघुष एक वखते को बीजे स्थानके गयो इतो, त्यारे तेनी राणीए शत्रुने जीत्या हता. एक दहाडो तेणिना प. तिए पोतानी राणीनुं असतीपणु चिंतव्यु, थने तेथी ते ज्वरना व्याधियी मृत्यु पाम्यो. तेनो सोदास नामनो पुत्र राक्षसोनी पेठे मनुष्योनुं मांस भक्षण करवा लाग्यो, तेथी मंत्रिए तेने कहाडी मुकीने राज्यपर तेना पुत्र सिंदरथने बेसाड्यो. पठी सोदास पण कोश्क मुनिपासेथी धमैश्रवण करीने जीवदयामां तत्पर थयो थको महापुर. नगरमां, त्यांनो राजा मृत्यु पामवाथी पोते राजा थयो. पळी तेणे सिंहथने जीत्यो, तथा डेवटे बन्ने राज्यपर ते सिंदरथने बेसाडीने तेणे गुरु समीपे चारि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ नवमःसर्गः त्र ग्रहण कयु. सिंहरथनो पुत्र ब्रह्मरथ, तेनो पुत्र चतुर्मुख, तेनो पुत्र हेमरथ, तेनो पुत्र शतरथ, तेनो पुत्र उदयपृथु, तेनो पुत्र वारिरथ, तेनो पुत्र उरथ, तेनो पुत्र श्रादित्यरथ, तेनो पुत्र मांधात, तेनो पुत्र वीरसेन, तेनो पुत्र प्रतिमन्यु, तेनो पुत्र पनबंधु, तेनो पुत्र रविमन्यु, तेनो पुत्र वसंततिलक, तेनो पुत्र कुबेरदत्त, तेनो पुत्र कुंष्क, तेनो पुत्र शरज, तेनो पुत्र सिंहदशन तेनो पुत्र हिरण्यकशिपु, तेनो पुत्र पुंजस्थल, तेनो पुत्र ककुस्थ, तथा तेनो पुत्र रघु एवी रीते केटलाको मोक्षमा तथा केटलाको खर्गमां गया बाद साकेत नामना नगरमां प्रख्यात, अने शत्रुउँने जीतनारो जय नामे राजा थयो. तेणे सघली दिशा जीती, पण पूर्व कर्मना संयोगे तेने एकसोने श्राप जातिना रोगो थया. एवी रीते रोगयुक्त बतां पण ते राजाए पोताना अंतर्वीर्यथी सेंकडोगमे पुःसाध्य राजाउने जीत्या. एवी रीते एक वखते अखंड थाझावालो ते अनुक्रमे त्रणखंड पृथ्वीना मंडनरुप एवा सौराष्ट्र देशमां श्राव्यो. त्यां शत्रुजयपर अत्यंत जावधी प्रजुने नमीने ते दीपपत्तनमा श्राव्यो. एटलामा रत्नसार नामे को धनाढ्य वहाणवटी करीयाणाथी वहाण जरीने समुजप्रते चाल्यो. त्यां सारा पवनथी ते वहाण सुखे समाधे केटलोक समुष उलंगी गयु. पड़ी पर्वतो देखावाची लोको जीवितनी आशाथी श्रानंदीत थया; पण तेटलामां वहाणवासीऊना जीवितने हरनारो अनि खुणामांथी वायु वावा लाग्यो. ते वखते कंथाथी (जीर्ण गोदडीथी) जेम योगीनुं शरीर, तेम वादलाउनासमूहथी दिशाउँनु मुख तथा श्राकाश बवा गयु. वली ते वखते पोताना मित्र मेघने जाणे श्रालिंगन करवाने श्वतो होय नहीं, तेम समुज पोतानां मोजांउरूपी हा. थोथी अत्यंत उबलवा लाग्यो. ते वखते वायुना वंटोलीयाथी वहाण जमवा लाग्यु, थने तेथी जीव सटोसटनो अवसर श्राववाथी रत्नसार वहाणवटी विचारवा लाग्यो के, मारापर श्रा महाकष्ट श्रावी पड्यु!! वली में निर्बुछिए धनना लोनथी था धनेड लोकोने ठगीने वहाणमा बेसाड्या बे. वली श्रा समये था जीवित देनारो मेघ पण मारां पापोथी जारीत थश्ने, वायुराजनी आझामां रही जीवित हरवाने फुमी रह्यो . वली श्रा समये था वहाण पण उबलता दडानी पेठे मोजांउरूपी लाकडी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शएन शत्रुजयमाहात्म्य. उना मारथी चलाचल थ रह्यु बे; माटे हवे जेटलामां था वहाणना टुकडे टुकडा न थ जाय, तथा ज्यांसुधि था वहाणमा रहेला लो. कोनो नाश न थाय, तेटलामां श्रा समुअमां ऊंपापात करी हुँ मारा प्राणोनो त्याग करूं. एम विचारि जेवामां ते वहाणना कटेरापर थावे , तेटलामां श्रवणने प्रिय लागे एवी अदृश्य रीते श्राकाशवाणी थर के, "हे रत्नसार ! तुं समुअमां ऊपापात करवारूप साहसने नहीं करतो,तारी था दशा मेंज करी बे; था समुनी अंदर कल्पवृक्षना पाटीयांउथी वी. टाएली, हवे थनारा श्री पार्श्वप्रजुनी निर्मल प्रतिमा . ते महा प्रजा. विक प्रतिमार्नु पूर्वे लाख वर्षोसुधि धरणे पूजन करे , तथा पठी बसो वर्षोंसुधि कुबेरे पूजन कयु बे. पडी तेनी पासेथी प्रार्थना करीने वरुणे ते लीधी, तथा तेणे उत्तम नक्तिथी सात लाख वर्षोंसुधि तेनुं पूजन कर्यु. हवडे ते अजय राजाना नाग्यथी वहीं श्रावेली ने, माटे ते प्रतिमाने खेश्ने तुं ते इक्ष्वाकुवंशीने श्रापजे ? ते हमणा सघली दिशाउने जीतीने हीप नामना नगरमां श्राव्यो , माटे ते नाग्यवंत राजाने तुं ते प्रतिमा थापजे ? ते प्रतिमाना दर्शनश्रीज तेना रोगो तथा कुकर्मो दूर जशे; ते प्रतिमानी अधिष्टायक एवी हुं प्रजाववाली पद्मावती नामनी देवी बु. एवी रीतनी आकाशवाणी सांजलीने ते महाबुद्धिवान रत्नसारे तुरत ते प्रतिमाने बहार कहाडवा माटे खलासीउने समुपमा उतार्या. पनी जीव जेम धर्मने पामीने समाधिथी देवलोकमां जाय , तेम ते खलासी ते प्रतिमाना संपुटने लेश्ने तुरत वहाणमां श्राव्या. तेज वखते हलदरना रंगनी पेठे, उर्जननी मित्राश्नी पेठे, तथा कमलपर रहेला जलबिंनी पेठे मेघनो घटाटोप जोतजोतामां नाश पाम्यो. वली ते वखते प्राणीउने आनंद आपतो, तथा तेजनी चिंताने दूर करतो उत्तम वायु पण वावा लाग्यो. ते वखते जिनना श्रागमनी पेठे अंतरमा निबिड (जंडांउंडां) रहस्यवालो, तथा उपरथी शांत, एवो गंजीर समुज पण तोफानरहित थ उपशांत थयो. पड़ी ते वहाण पण शुल वायुना योगयी छीपनगरप्रते श्राव्यु, त्यारे एक माणसे वेगथी जर अजयपालने वधामणी आपी. त्यारे ते अजयपाल पण पार्श्वप्रजुने श्रावता सांजलीने, विकखर नयनवालो थयो थको, घोडापर चडीने तुरत त्यां सन्मुख श्राव्यो, पढी त्यां राजाना नयनरूपी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः ୧୯ पद्मने विकखर करवामां सूर्य सरखी ते पार्श्वप्रनुनी प्रतिमाना संपुटने लो. कोए उत्सव सहीत वहाणमांथी बहार कहाडी. पडी वाजित्रो वागते ते, केटलाको हर्षथी नाचते बते, तथा नाट लोको बिरुदावली बोलते बते, महादान देवाते बते, ध्वजोथी शणगारेला, तथा कपूर ने अगरना धूपोथी सुवासित करेला एवा ते नगरमां राजाए ते प्रतिमाना संपुटने प्रवेश कराव्यो. पड़ी ते संपुटने राजाए सिंहासनपर स्थापन करीने, तथा तेनी पूजा करीने, जतिथी खोट्यु, त्यारे शेषनागनी फणापर रहेला रत्नोना किरणोथी नाश करेल डे अंधकारनो समूह जेमणे एवा, त्रण उत्रोथी शोजता, पद्मासन वारीने रहेला, बन्ने पडखे चामरोवाला, धरणे धारि राखेला सिंहासनपर बेठेला, नखना किरणोना समूहथी शोजता, कृत्रिम तथा अकृत्रिम एवा अरिष्टने दूर करवामां समर्थ, श्री. वत्सथी लांडित थएला साथलवाला, प्रजाविक, सर्व प्रकारना बाजूषणोना समूहथी शृंगारयुक्त थएवें वे शरीर जेमनुं एवा, तथा कल्पवृक्षना पुष्पोनी सुगंधियी वासित करेल ने सर्व जगत जेमणे एवा,अने मध्यम लोकना नाथ, एवा श्री पार्श्वनाथ प्रजुने ते संपुटनी अंदर तेमणे जोया. पड़ी ते राजाए पंचांगथी पृथ्वीपीउने स्पर्श करीने, हर्षसहित पुण्यना समूहथी प्राप्त थाय एवा ते प्रज्जुने नमस्कार को. वली तेज समये तेना सर्व रोगोरूपी सों दूर थया, तथा तेथी ते अत्यंत आनंद पाम्यो. पनी नक्तिथी ते मूर्तिने पूजीने तथा उत्सव सहित घेरे श्रावीने तेणे प्रीतिथी रत्नसारनी राथे नोजन कयु. पड़ी ते रात्रीए ज्यारे ते अजयपाल राजा सुखेथी निजा करता हता, त्यारे तेना ते सर्व व्याधि तेनी पासे आवी हर्षथी तेने कहेवा लाग्या के, हे राजन् ! तें पूर्व नवमां जे मुनिने उन्नाव्या हता, तेना फलतरिके अमोए तने घणा उपायोथी पीडित करेल , ते सघj तारे सहन करवू. हवे था पार्श्वप्रजुना दर्शनथी श्रमो तमारा अंगथी दूर गया बीए; तोपण हजु ते कर्म ड माससुधि किंचित जोगववानुं रघु . अने तेथी शाखापुर नामना नगरमा एक सूर नामनो पशुपाल , तेने त्यां वक्षस्थलमां, पुंबडामां, तथा मुखपर सफेद धाबांवाली एक बकरी . तेना शरीरमांपूर्वार्जित कर्मोथी अमो रह्या बीयें, माटे ते ब मास सुधि तुं ते बकरीनुं तृणादिकथी पो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० शत्रुजय मादात्म्य. षण करजे? तारा देहपरना चंदनादिक लेपनने उखेडीने, तथा तेमांजलने मिश्रित करीने तुं तेने देजे, के जेथी श्रमो थानंदित थश्शु. पड़ी बमासने अंते सुवर्णसरखी कांतिवालो थश्ने था पार्श्वप्रजुनी कृपाथी तुं घणा कालसुधि तारुं राज्य पालीश. एम कहीने ते रोगो अलक्ष्य रीते चाख्या गया, पढी राजाए पण जाग्या बाद पोताना शरीरने निरोगी जोयु. पड़ी तेणे नगरनी अंदर सर्व माणसोने आनंदित करीने मोटो उत्सव कयों. पठी त्यां तेणे पोताना नामथी अजय नामर्नु गाम वसावीने पार्श्वप्रजुनुं मंदिर बंधाव्यु. वली त्यां तेणे ते मंदिरना खरचमाटे दश ग्रामो आप्यां, तथा पुजारी ने पण राख्या. वली त्यां त्रणे काल ते तेनी पूजा करवा लाग्यो, अने तेना प्रजावथी तेना कल्याणनी वृद्धि थवा लागी. पनी ते बकरीने त्यां लावीने तेणे रोगोए कहेली विधि पूर्वक धान्य श्रादिकथी तेणीनुं पोषण कयु. - हवे एटलामां सौराष्ट्र देशनो कुलीन राजा वज्रपाणि पोताना गिरिपुगपुरथी त्यां श्रावीने ते अजय राजाने मल्यो. त्यारे अजय राजाए पण अत्यंत प्रीतिथी तेने घणा देशोना दानपूर्वक ते बन्ने तीर्थोनो रक्षक नीम्यो. पडी ते वजपाणीए प्रेरणा कर्याथी अजय राजाए गिरनारपर श्री नेमिनाथ प्रजुने नमस्कार कयों. पड़ी तेणे फरीने पोताना अजयपूरमां श्रावीने रोगोने नाश करनारा श्री पार्श्वनाथ प्रजुने नमस्कार कर्यो. हवे एटलामां कोश्क ज्ञानी मुनि त्यां प्रजुने नमवामाटे श्राव्या, त्यारे तेने नमस्कार करीने राजाए तेनुं मनोहर माहात्म्य पुज्युं. त्यारे ते मु. निए पण कयु के, हे राजन् ! था मूर्तिना प्रजावनी तो वातज शुं करवी ? वली जेनो प्रत्यक्ष प्रजाव होय तेमां, कयो पंडित माणस संदेह करे ? वली था प्रनुनी प्रतिमाना दर्शनमात्रथीज तारा घणा कालना रोगो पण अंगधी नाश पाम्या ने श्रने तेनी पेठेज सर्व कुष्टो, नेत्रना, मुखना, तथा उदरसंबंधि सघला रोगो पण तेना दर्शनथी नाश पामे . वली तेमना स्मरणथी पण शाकिनी, नूत, वेताल, राक्षस तथा यदना उत्पन्न करेला उपसों पण नाश पामे बे. वली था तीर्थमां ते प्रजुनी सेवा करनाराऊना कालज्वर, विषनी पीडा, उन्माद, तथा सन्निपात विगेरे दोषो पण नाश पामे . वली अहीं ते प्रजुना ध्यानथी विद्या, लक्ष्मी, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०१ नवमःसर्गः सुख, पुत्र, स्त्री श्रादिकनी अजिलाषा करनाराना सर्व शछितो सिक थशे. वली जे बिंबने एकसो वर्षों थयां होय, ते बिंब तीर्थज कहेवाय डे; अने था बिंब तो लाखो वर्षीसुधी खर्ग तथा समुजमां देवोथी पूजाएj बे; माटे या बिंबना दर्शनथीज पापोनी शांति थाय डे, तथा अहीं दी. धेलु दान अधिक फलने श्रापे . एवी रीते ते तीर्थनो महिमा कहीने ते मुनि आकाशमार्गे चाख्या गया. पड़ी ते अजय राजा त्यां उमाससुधि रह्यो, तथा पनी वजपाणीथी नमाता थकां तेणे सिझगिरिपर जश् प्रजुने पूज्या. पनी त्यां स्नात्रपूजा, इंसोत्सव, ध्वजारोपण थादिक कृत्योकरी पोताना राज्यमा गयो, तथा केटलांक धर्मकार्यों करी ते व्रत लेश्ने खर्गे गयो. तेनो पृथ्वी नामनी राणीथी उत्पन्न थएलो अनंतरथ नामे राजा थयो. तथा तेनो पुत्र दशरथ नामे राजा थयो. तेने देहधारी लक्ष्मी सरखी कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा तथा सुप्रजा नामनी चार राणी हती. हवे एक दहाडो हाथी, सिंह, चंद्र तथा सूर्यना खप्नथी सूचित थएला रामचंज नामना बलदेव पुत्रने कौशल्याए जन्म थाप्यो. तथा हाथी, सिंह, चंड, समुफ, लक्ष्मी, अग्निशिखा, अने सूर्यना खप्नथी सूचित थएला लक्ष्मण नामना वासुदेव पुत्रने सुमित्राए जन्म थाप्यो. वली उत्तम स्वप्नपूर्वक कैकेयीए नरत नामना पुत्रने, तथा सुप्रजाए शत्रुघ्न नामना पुत्रने जन्म थाप्यो. विद्या तथा विनयथी युक्त, श्रने उत्तम श्राशयोवाला एवा ते चारे पुत्रोथी, दान, शील, तप अने जावथी जेम धर्म, तेम दशरथ राजा शोजता हता. हवे त्यां जेम बलदेव अने वासुदेवने परस्पर प्रीति हती, तेम शत्रुघ्न अने जरतने पण परस्पर प्रीति हती. हवे ते वखते मिथिला नामनी नगरीमा हरिवंशना वासवकेतु नामना राजानी विपुला नामनी राणीथी उत्पन्न थएलो जनक नामे राजा हतो. तेनी विदेहा नामनी स्त्रीए उत्तम खप्नपूर्वक महातेजस्वी पुत्र अने पुत्रीने ( जोडलांने ) जन्म श्राप्यो. ते वखते सौधर्मा देवलोकमां रहेनारा पिंगल नामना देवे पूर्वजन्मना वैरथी ते जोडलामांथी पुत्रने हरी लीधो. पठी दया श्राववाथी तेणे कुंडल श्रादिकथी ते बालकने शणगारीने वैताढ्यना वनमां बोडी दीधो. तेटलामा रथनूपुर नगरना चंगति नामना विद्याधर राजाए ते पुत्रने सेश्ने हर्षयी पोतानी पुष्पवती नामनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ शत्रुजय मादात्म्य. राणीने सॉप्यों. पड़ी तेणे नगरमा उद्घोषणा करावी के, “श्राजे राजाने पुत्र थयो जे;" पड़ी तेनी अत्यंत कांति होवाथी तेनुं “जामंडल" नाम पाड्यु. पड़ी ते जामंडल त्यां चंगतिथी तथा पुष्पवतीथी लालन करातो थको कल्पवृक्षनी पेठे वृद्धि पामवा लाग्यो. हवे अहीं जनक राजाए पुत्रनी जाल नहीं मलवाथी अनुक्रमे शोक रहित थश्ने पुत्रीनें “ सीता" नाम पाड्यु. पड़ी तेणीने संपूर्ण यौवनवाली, तथा परणवाने लायक जाणीने जनक राजा वरनी चिंतारूपी समुषमा स्वयंवररूपी नावें करीने बुड्यो; (अर्धात् स्वयंवरमंडप रच्यो.) हवे एटलामा मातंग, रंग श्रादिक म्लेडो, दैत्यो जेम धर्मस्थानकने तेम जनक राजानी पृथ्वीने उपजव करवा लाग्या. त्यारे ते व्रतांत जनक राजाए मित्राश्ना दावाथी दशरथने जणाव्यो, त्यारे पोताना पिताने थटकावीने रामचंजी पोते रणसंग्राममाटे गया. एवी रीते रामचंजी ज्यारे युद्ध करवामाटे श्राव्या, त्यारे ते म्लेट राजा नाशी गया, केम के सूर्यना किरणोशागल अंधकारना समूहो रही शकता नथी. पड़ी ते जनक राजा खुशी थश्ने रामचंद्रजीने पोताना नगरमां लाव्या, तथा इपंथी तेमने सीताने आपवाने तेणे श्ब्युं. एटलामां त्यां श्रावेला पीला केशवाला अने नयंकर एवा नारदने जोश्ने सीता जय पामीने तुरत नाशी गश्. ते वखते कोलाहल करती तथा कोधातुर थएली दासीउए ते नारदने गलेथी पकडीने घरमांथी कहाडी मेव्यो. तेथी नारदे गुस्से थश्ने, सीतानुं चित्र चीत्रीने, ते चित्र चंप्रगतिना पुत्र जामंडलने देखाड्युं. त्यारे ते नामंडल पण तेणीने पोतानी बेहेन नहीं जाणीने कामातुर थयो थको, बीबरा पाणीमां जेम मत्स्य तेम उद्विग्न थयो. पनी चंगतिए पुत्रना उठेगना कारणने जा. णीने तुरत तेणे जनकने बोलाव्यो; तथा पड़ी तेनी पासे तेणे प्रीतिथी सीतानी मागणी करी; त्यारे जनके कयु के, में ते रामचंडजीने आपेली डे. त्यारे चंजगतिए कह्यु के, जो के हुँ ते सीतार्नु हरण करवाने पण समर्थ डं, उतां मारी पासे बे देवाधिष्ठीत धनुष्यो बे, तेपर जे बाण चडावे ते सीताने परणे. ते वात कबुल करीने जनके पोतानी नगरीमां आवी, ते बन्ने धनुष्यो मंडपमा मुक्यां' हवे ते वखते त्यां केटलाक रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः ३०३ जाउँ तथा विद्याधरो पण श्रावी पहोंच्या. वली ते समये त्यां चंप्रगति पण नामंडलसहित श्राव्यो: तथा दशरथ राजा पण पोताना राम थादिक चार पुत्रो तथा बीजा राजासहित त्यां आव्यो. पनी त्यां जनक राजाए सर्व राजाऊनो आदरसत्कार कर्यो. तेमां पण राम श्रादिकोनो विशेष प्रकारे को. हवे शुज दिवसे सर्व राजा मंडपमा योग्य स्थानके बेग बाद सीता पण मनोहर वेषने धारण करीने वाहनमां बेसीने त्यां श्रावी. पडी ते बलवान राजकुमारो तथा विद्याधरो ते धनुष्यो ग्रहण करवाने असमर्थ थवाथी नीचां मुखो करीने रह्या. पडी रामचंअजीए खुरशीपरथी उतरीने क्रीडा मात्रमांज ते धनुष्य लीधुं, तथा तेनी दोरीनो जयंकर टंकार कयों. ते समये सीताए पुष्पोना वरसादसहित रामचंजजीना कंठमां वरमाला नाखी, अने लोकोए पण मोटो हर्षनाद कयों. पड़ी बीजा धनुष्यने लक्ष्मणे पण नमाव्यु, तेथी विद्याधरोए तेने पोतानी श्रढार कन्या परणावी.पली शुज दिवसे राम अने सीतानो विवाह थयो; . बाद जरते पण कनक राजानी पुत्री जनासाथे लग्न कर्यु. पली दशरथ राजा पोताना चारे पुत्रोसहित पोतानी नगरीप्रते गया; अने बीजा राजाउँ पण जनकनी रजा लेश्ने उत्सवसहित पोतपोताने स्थानके गया. हवे त्यां दशरथ राजा ते पुत्रोसहित सागररूपी वस्त्रवाली पृथ्वीने पा. सवा लाग्या. हवे एक दहाडो दशरथ राजाए कंचुकी (नाकर ) मा. रफते जिनस्नात्रनुं नमण सुमित्रा पटराणीने मोकलाव्यु. अने बीजी रा• णीउने पण तेणे हर्षसहित दासी मारफते ते मोकट्यु; त्यारे ते दासी तरुण होवाथी ते राणीउने ते नमण तुरत पहोंच्यु, अने तेए पण ते नमणने नमस्कार कयों. हवे ते कंचुकी वृक्ष होवाथी सुमित्राने ते नमण तुरत पहोंच्युं नहीं, तेथी पोताना माननंगथी ते गलेफांसो खावा लागी. पडी राजाए विचायु के, सुमित्राने नमण नहीं पहोंचवाथी ते गुस्से थर लागे , एम विचारि तेने मनाववामाटे ते गया. त्यां तेषीने गलेफांसो खावानी तैयारी करती जोश्ने दशरथ राजाए कह्यु के, अरे चंडे ! था तें शुं करवा मांड्युं ? एम कहेतां थकां राजाए ते पाश जोडीने तेणीने पोताना खोलामा बेसाडी. तेज वखते नमणसहित थावेला कंचुकीने राजाए कह्यु के, तने केम वखत लाग्यो ? त्यारे तेणे पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ शत्रुजयमाहात्म्य. तेना जवाबमा पोतानुं वृद्धपणुं सूचव्यु. पड़ी जरती लालोथी जयंकर मु. खवाला, श्वेत केशोवाला, मंद मंद चालनारा, तथा कंपता एवा ते कं. चुकीने जोश्ने राजाए विचार्यु के, खंडेररूप थएला घरनी पेठे, तथा अरधां मूलमाथी उखडेलां वृक्षनी पेठे असाध्य एवा था शरीरनुं रक्षण करवामाटे कोइ पण समर्थ नथी. माटे हवे ज्यांसुधि मारूं था शरीर पण धडपणथी जर्जरित थयुं नथी, त्यांसुधिमां हुं पण मारा आत्मसाधनमाटे प्रयत्न करीश.एम विचारि दशरथ राजा फरीने सनामांश्राव्या; त्या केटलाक दिवसो बाद एक दहाडो ते मुनिने वांदवामाटे गया. पली ते मुनिने नमिने राजा जेटलामा तेमनीपासे बेग, तेटलामां नामं डल विद्याधर पण जमतो थको त्यां श्राव्यो. त्यां ते मुनिए सुखना कारणरूप एवा धर्मनो उपदेश देश्ने पुंडरिक गिरिनुं निर्मल माहात्म्य पण कह्यु.पडी मुनिना कदेवाथी सीताने पोतानी बेहेन जाणीने,जामंडले तेणीने नमस्कार कयों. त्यारे तेणीए पण तेने आशिष थापी. पनी दशरथ राजा पो. ताना जन्मने सफल करवामाटे तीर्थप्रते चाख्या. चार पुत्रो तथा मंडलिको सहित मार्गमां पांच प्रकारचें दान देता थका ते पुण्यने उपार्जन करवा लाग्या. वली मार्गमां श्रावतां दरेक गाम, नगर अने स्थानको प्रते ते जिनपूजनमां तत्पर रहेता. पली अनुक्रमे शत्रुजयप्रते श्रावीने तेमणे प्रजुने नमस्कार कर्यो, तथा केटलाक प्रासादो पण त्यां बंधाव्यां. वली तेमणे नक्तिश्री गुरुने पूजीने विधिपूर्वक दान दीधुं, तथा पडी ते संघसहित त्यांची नीचे उता. पनी चंप्रनास नगरमां सीताए पोते करावेला जिनमंदिरमा तेपीए चंजप्रन प्रजुनी स्थापना करी. एवी रीते त्यां तेणीए प्रतिमानी प्रतिष्ठा करीने तेनुं पूजन कयु, तथा गुरुने प्रतिलानीने ते तीर्थमां प्रजावना करी. पडी दशरथ राजाए रैवताचलपर जश्ने, तथा त्यां ने. मिनाथ प्रजुने पूजीने सुपात्रदानपूर्वक तीर्थोछार कर्यो. पली बरट प. र्वतप्रते जवाने उत्सुक थएली कैकेयी पतिनी थाज्ञा लेश्ने राम आदिक पुत्रोसहित त्यां ग. त्यां बरटे बनावेला नेमिनाथ प्रजुना चैत्यमां ते. पीए जतिथी महोत्सव कों, तथा याचकोने पण दान थाप्यु. पडी त्यां ते प्रासादने जीर्ण थएटुं जोश, तेणीए तेनो उझार कर्यो, तथा तेमां ह. पंधी श्री नेमिनाथ प्रजुनी मूर्ति पण स्थापी. वली त्यां तेणीए महातीर्थ For Personal and Private Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०५ नवमःसर्गः संबंधि सघर्षा कार्य कर्यु तथा ते पापोनो नाश करनारूं तीर्थ तेणीना ना. मथी प्रसिद्ध थयु. वली ढंक नगरमां कौशल्याए रुपनदेव प्रजुनुं मंदिर बनावीने, गुरुपासे तेमां प्रतिमानी प्रतिष्ठा करावी. वली प्रजाववाली एवी सुप्रजाए पण वसनीपुरमा प्रतिष्ठामहोत्सवपूर्वक श्री शांतिनाथ प्रजुनुं उंचुं मंदिर बंधाव्यु. वली रामे कांपिढ्यपुरमा तथा लक्ष्मणे वामनपुरमा ( वणथलीमां) श्री रुषजदेव प्रजुना प्रासादो कराव्यां. वली त्यां बीजा कुमारोए, सामंतोए, मंडलीकोए, तथा लामंडले पण जिनेश्वर प्रजुना मंदिरो बंधाव्यां. एवी रीते सर्व तीर्थोमां यात्रा करीने दशरथ राजा फरीने पाठा पोतानी उत्सवयुक्त नगरीमा हर्षथी पधार्या. हवे संसारथी उद्विग्न थएला राजाए सनामां आवीने राज्य माटे पोताना पुत्रोने बोलाव्या; त्यारे तेए पण त्यां आवीने नमस्कार कर्यो. हवे ते समये कपटनी पेटी सरखी कैकेयीए अवसर जाणीने जक्तिपूर्वक राजा पासेथी पूर्वे श्रापेलां बे वरदानो माग्यां के, हे खामी! मारा ते वरदानोथी मारा पुत्रने राज्य आपो ? तथा लक्ष्मण सहित राम चौद वर्षोंसुधि वनवासमां रहे. अकाले वज्रपात सरखां ते वचनोने सांजलीने राजाने मूळ आवी; पनी संज्ञा श्राव्या बाद तेनुं मन अत्यंत उठेग पामवा लाग्युं. पडी ते व्रतांतनुं रामने जाणपणुं थवाथी, तेज वखते पिताने नमस्कार करीने लक्ष्मण अने सीता सहित लोकोथी अनुमोदन कराता अका ते वनवास माटे चाल्या. पनी मस्तकविना जेम शरीर, नाशिकाविना जेम मुखनी शोजा, कीकीविना जेमश्रांख, पांदडांविना जेम वेलडी, जलविना जेम तलाव, देवमूर्ति विना जेम मंदिर, विद्याविना जेम लक्ष्मी, सिंहविना जेम गुफा, सूर्यविना जेम आकाश तथा चंद्धविना जेम रात्री तेम रामविना अयोध्या शोनारहित थर. पनी दशरथ राजाए जरतने राज्यपर बेसाडीने शुज मनथी सत्यनूति नामना मुनि पासे दीक्षा लीधी. हवे वनने तथा गंजीर नदीने उलंगीने रामचंद्र विगेरे एक वडना वृक्षनीचे बेग, त्यारे लक्ष्मणे कडं के, श्रा देश कोश्ना जयथी हमणाज उजाड थएलो लोगे , केम के अहींनां वृदो रसवालां तथा खला धान्यथी नरेला . एटलामा कोश्क माणस त्यां श्रावी चड्यो, त्यारे रामे तेने ते देशना उजाड थवानुं मनोहर वाणीथी कारण पुब्युं. त्यारे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ शत्रुंजय माहात्म्य. ते माणसे कांके, यहीं सिंहकर्ण नामे राजा हतो, ते पोताना नियमां रहीने जिन शिवाय देवने, के सुगुरु शिवाय गुरुने मानतो नहीं. तेना ते नियमने सांजलीने सिंहोदर राजाए क्रोधथी तेने कहाडी मेल्यो. त्यारे ते पण जयश्री नाशीने कंक दूर चाल्यो गयो. एवी रीते देशना उऊडपणानुं कारण सांजलीने रामचंद्रजीए लक्ष्मण मारफते ते जैनीने त्यां श्रादरथी स्थाप्यो पछी एक दहाडो रामचंद्रजी कंक बहार गया हता, त्यारे आकाशमांथी वे उत्तम विद्याधर मुनि त्यां उतर्या, त्यारे सीताए जक्तिपूर्वक तेमने प्रतिलाच्या त्यां देवोए आदरपूर्वक गंधोदकनी वृष्टि करी, तेनी सुगंध लेवा माटे त्यां तुरत जाटायु पक्षी श्राव्यो. पी त्यां ते बे मुनि पासेथी उत्तम धर्मोपदेशने सांजलीने ते जटायुने जातिस्मरण ज्ञान थवाथी, ते सीतापासे रह्यो पढी ते मुनिर्ज पण शाश्वता जिनोने नमवा माटे श्राकाशमार्गे चाल्या गया. वे ज्यारे राक्षसी मां लंका नगरीमां, अजितनाथ प्रभु विहार क रता हता, त्यारे त्यां राक्षसवंशमां धनवान नामे राजा हतो. राक्षसोना इंद्र एवा जीम नामना राजाए पोताना ते मोटा पुत्रने राक्षसी विद्यापी हती, त्यारथी ते राक्षसवंश थयो हतो. तेनो पुत्र महारक्ष जिनोना चरणप्रते मरतुल्य हतो, तथा तेनो पुत्र देवर दीक्षा लेने मोके गयो. एवी ते ते राक्षसवंशमां घणा राजार्ज थइ गया बाद श्रेयांसप्रभुना तीर्थमां त्यां कीर्तिधवल नामे राक्षसोनो राजा थयो. तेणे वैताढ्यपरथी श्रीकंठ नामना विद्याधर ने प्रीतिथी बोलावी ने वानरद्वीपमां वसाव्यो. ते द्वीप त्रणसो योजनना मानवालो इतो, तथा त्यां किष्किंध नामे पर्वत, अने किष्किंधा नामनी नवी राजधानीनी नगरी थइ.पढी ते लोको वानरद्वीपवासीना नामथी प्रसिद्ध थया, तथा त्यां अनुक्रमे ते ए वांदरापणाना अंगने करनारी विद्या साधी. हवे ते श्रीकंठनो पुत्र वज्रकंट, तथा एवी रीते घणा राजा थया बाद श्री मुनिसुव्रतस्वामिना तीर्थमां घनोदधि नामे राजा थयो. वली ते वखते लंकां नगरीमां तडित्केश नामे राजा हतो; तथा तेर्ज बन्ने बच्चे घणो स्नेह हतो. ते समये किष्किंधा नगरीमां घनोदधिनो पुत्र किष्किंध हतो, लंकामां तडित्केश पढी सुकेश नामे राजा थयो पढी विद्याधरना नायक अशनिवेगे जितेला एवा लंका अने किष्किंधाना राजा पाताल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः ३०७ लंकामां गया. त्यां पाताललंकामां सुकेशराजानी इंशाणी नामनी स्त्रीथी उत्पन्न थएला माली, सुमाली, अने माल्यवान नामना त्रण पुत्रो हता. किष्किंधी राजाने श्रीमाला नामनी राणीथी श्रादित्यरज तथा रुकरज नामना बे प्रतापी पुत्रो थया हता. हवे किष्किंधि राजा मेरुपर शाश्वती जिनप्रतिमाने नमीने मधुपर्वतपर किष्किंध नाम, नगर वसावीने रह्यो. हवे सुकेशना क्रोधायमान थएला एवा ते त्रणे पुत्रोए लंकामां आवीने वैरथी अशनिवेगनाचाकरने मार्यो. पडी किष्किंधा नगरीमा माली राजा थयो, तेने अने श्रादित्यरजने परस्पर प्रीति थ. हवे अशनिवेगना पुत्र सहस्रार नामना राजाने चित्रसुंदरी नामनी स्त्रीची इंज नामे पुत्र थयो. तेणे इंउनी पेठे पोताना लोकपालोने स्थाप्या; तथा फरीने पातललंकामां वानरोने तथा राक्षसोने स्थाप्या. हवे त्यां रहेता सुमालीने रत्नश्रवा नामे विद्याने धरनारो पुत्र थयो; तेनी कैकसी नामे स्त्री हती. तेनो म. दोफत पुत्र दशमुख नामे हतो; तथा कंठमा स्थापन करेला नव रत्नना हारमा पडतां प्रतिबिंबोथी तेनुं ते नाम सत्यार्थने सूचवतुं हतुं. वली ते. वीज रीते ते कैकसीए अनुक्रमे कुंजकर्ण, सुर्पणखा, तथा बिनीषण नामना अपत्योने पण जन्म प्राप्यो. पड़ी माताना मुखथी पोताना तेवी रीतना परानवने सांजलीने ते त्रणे विद्यासाधनमाटे जीमारण्यमां श्राव्या. त्यां दशग्रीवने (रावणने) एक हजार विद्या सिझ थर, कुंजकर्णने पांच तथा बीनीषणने चार विद्या सिद्ध थ. हेमवती नामनी स्त्रीथी उत्पन्न थएनी मंदोदरी नामनी विद्याधरनी कन्याने रावण परण्यो हतो. वली ते बीजी उ हजार विद्याधरोनी कन्याउँने पण परण्यो हतो, तेम तेना गुणोथी रंजित थएली बीजी पण केटलीक कन्याउँने ते परण्यो हतो. कुंजकर्ण पण महोदर राजानी तडिन्माला नामनी कन्याने परण्यो हतो. वली बिनीषण पण पितानी श्रााथी हर्षपूर्वक वीर नामना विद्याधरनी पंकजश्री नामनी पुत्रीने परण्यो हतो. हवे मंदोदरी राणीए अनुक्रमे शुज लग्नमां इंजित तथा मेघवंत नामना बे पुत्रोने जन्म थाप्यो. हवे रावण इंश विद्याधरना सेवक वैश्रवणने जीतीने पुष्पकविमान सहित लंकामां आव्यो. पडी इंजना सेवक यमने जीतीने तथा नरकोने नांगीने तेणे पोताना मित्र आदित्यरजने किष्किंधानगरी थापी. For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० शत्रुजय माहात्म्य. वली तेणे नवु राक्षसपुर वसावीने रक्षसरजने श्राप्यु; हवे श्रादित्यरजनो पुत्र बलवान वाली नामे थयो. वली तेने सुग्रीव नामनो अद्भूत पराक्रमी पुत्र हतो; तेनी नानी कन्या श्रीप्रजा नामे हती. रदसरजने पृ. थ्वीमा प्रख्यात एवाहरिकांता स्त्रीथीनल ने नील नामनाबे पुत्रो थया.हवे श्रादित्यरजे पोताना राज्यपर वालीने, तथा सुग्रीवने युवराजपर बेसाडीने पोते दीक्षा लीधी. श्रादित्यरजना पुत्र खरदूषणे चंबोदर राजाने जीतीने, तथा सुर्पणखाने हरीने पातललंका ले लीधी. मंदोदरीना कहेवाथी रावणे क्रोधरहित थश्ने खरदूषणने बेहेननो खामी करीने राज्यपर बेसाड्यो; हवे चंझोदरना मृत्युबाद तेनी स्त्री अनुराधाए वनमा रहीने विराध नामना गुणवान पुत्रने जन्म थाप्यो; एक दहाडो रावणे वानरपति वालीने बलवान जाणीने, सहन नहीं करवाथी तेने दूत मारफते बोलाव्यो. श्ररिहंत प्रनुविना बीजाने नहीं नमता एवा ते वालीने जाणीने रावणे तेनी साथे लडाइ करी. तेमां वालीए रावणने चंडहास खड्गसहित जीतीने केद कर्यो; तथा चारे ससुषप्रते फेरव्यो. पडी रावणने जोडीने वालीए वैराग्यथी पोताना राज्यपर सुग्रीवने बेसाडी दीक्षा लीधी. पनी सुग्रीवे श्रीप्रजाने रावणने श्रापी, तथा चंबरश्मि नामना वालीना पुत्रने तेणे यौवराज्यपर बेसाड्यो. हवे एक दहाडो रावण रत्नवतीने परणवाने वैताव्यप्रते चाल्यो, तेटलामां तेनुं विमान अष्टापदपर स्खलित थयु. ते स्खवित थवाना कारणरूप प्रतिमामा रहेला निश्चल वालिने तेणे जोयो. त्यारे तेणे विचार्यु के, हजु पण या माराप्रते क्रोधयुक्त थश्ने कपटथी साधुपणुं वेश्ने बेगे , माटे हवे तो आ पर्वतसहित तेने हुं लवणसमुरुमांज फेंकी देखें. एम विचारि ते पृथ्वीने फाडीने पर्वतनी नीचे गयो, तथा त्यां तेणे पोतानी हजार विद्यार्नु स्मरण कयु. पनी तेणे ते पर्वतने अधर उपाड्यो, त्यारे तेपरना शिखरो तडतडाट शब्दो करवा लाग्यां, तथा ऊरणा ऊपजपाट करतां थकां वेदेवा लाग्यां; त्यारे वालीए विचार्यु के, अरे ! था पुष्ट ! मारापर मत्सर लावीने शुं था तीर्थनो नाश करशे ? माटे हवे तो हुँ निःसंग बतां पण तेने शिक्षामाटे मारं जरा बल बतावं. एम विचारि ते वाली मुनीश्वरे पोताना पगना डाबा पगना अंगुगथी श्रष्टापदने जरा दबाव्यो. त्यारे रावण त्यां दबाश्ने रुधिर व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः सर्गः ३०० मतो थयो, तथा दीननी पेठे बराडा मारी रडवा लाग्यो. एवी रीते तेना दीन खरने सांजलीने दयालु वालीए ते कार्य तजी दीधुं; केम के तेनुं कार्य क्रोधी नहीं, पण तेने शिक्षामाटे हतुं पढी रावण पर्वतनीचे थी नीकलीने, तथा वालीने खमावीने प्रजुने पूजवामाटे जरते बनावेलां चैत्यमा गयो. त्यां पोतानी स्त्रीसहित तेणे जतिथी आठ प्रकारे प्रभुने पूज्या; तथा ( तार तुटवाथी ) पोतानी नसने पण तेमां जोडीने तेणे वीणासहित त्यां नृत्य कर्यु. ते वखते त्यां धरणेंद्र श्राव्या, तथा तेनी ( रावणनी ) जक्तिथी संतुष्ट थने तेने वरदान मागवानुं कयुं. त्यारे रावणे युंके, मारी अरिहंत प्रजुमांज जति रहो ? एम कद्देवाची ते धरणेंद्र तेने " अमोघशक्ति " तथा केटलीक विद्या श्रापीने पोताने स्थानके गयो. पी रावण पण त्यां तीर्थंकरोने नमीने नित्यालोक नामना नगरमा गयो. तथा त्यांथी रत्नावलीने परणीने ते लंकामां श्राव्यो. वाली मुनिराज पण घातिकमना दयश्री केवलज्ञान पामी सुरासुरोश्री सेवाता थका मोके गया. साहसगतिथी मागणी कराती, एवी ज्वलन - शिख विद्याधरनी तारा नामनी मनोहर कन्याने सुग्रीव परण्यो. तेणीनी साथे जोगविलास जोगवतां थंकां सुग्रीवने अंगद ने जयानंद नामना बे उत्तम पुत्रो थया. पढी ते साहसगति ताराथी उगायाबाद हिमवंत पर्वतपर जश्ने तेणीने हृदयमां स्मरतो थको विद्या साधवा लाग्यो. हवे रावण पण खरदूषण या दिक विद्याधरो तथा सुग्रीवसहित इंद्र विद्याधरोने जीवाने चाल्यो. त्यां रेवा नदीना कांठापर ते प्रजुने रत्नपीठपर स्थापी ने नक्किथी तेना पाणी तथा कमलथी पूजवा लाग्यो; पढी त्यां ते ध्यानमा लीन या बाद अकस्मात नदीमां पूर याववाथी ते जिनपूजा विखराइ गइ. ते जोइ रावण क्रोधायमान थयो; त्यां कोक विद्याधरे श्रीने तेनेयुंके, हे स्वामी ! था जलनो प्रवाह माहष्मतीना स्वामी सहस्रांशु बोड्यो बे. तेथे पडेलां पाणीने अटकाव राख्युं हतुं, तथा पढी बुद्धं कर्यु बे; अने ते श्रात्मरक्षक राजार्ज तथा स्त्रीसहित a नजदीकमांज बे. ते सांजली रावणे क्रोधथी तेने जीतवामाटे रा सोने मोकल्या, त्यारे ते उपद्रव पामीने रावणपासे पाठा याव्या. पढी रावण पोते त्यां जइ तेने जीतीने पोताना कोलाहलयुक्त शिबिरमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० शत्रुजय मादात्म्य. लाव्यो. पड़ी ते हर्षित थश्ने जेटलामां सनामां श्रावी बेगे, तेटलामां आकाशमार्गेथी त्यां कोश्क मुनि श्राव्या, त्यारे रावणे तेनी पूजा करी. पडी ते शतबाहु मुनिए कत्यु के, था मारा पुत्र बे, ते सांजली रावणे तुरत ते सहस्रांशुने बोडी मेव्यो, त्यारे तेणे पण दीक्षा लीधी. पडी ते द. यादु रावणे नारदना वचनथी मरुत राजाना यज्ञनी हिंसाने निवारण करी. पडी रावणनी आज्ञाथी कुंजकर्णादिको उलय नगरमा रहेला इंस विद्याधरना नलकुबर नामना दिक्पालने जीतवा गया. त्यां नलकूबरे थाशाली विद्याथी पोताना नगरनी आसपास सो जोजनो अग्निमय किलो को. ते तरफ नजर मांडवाने पण अशक्त थएला एवा ते कुंजकर्णादिकोए रावणपासे श्रावी ते व्रतांत तेमने जणाव्यो. एटलामां रावणप्रते अनुरागवाली थएली उपरंना नामनी नलकुबरनी स्त्रीए तेनी (रावणनी) पासे श्रावीने ते आशाली विद्या तेने आपी. पडी ते विद्याथी रावणे ते थनिगढने दूर करीने, उर्लधपुर हाथ कयु, तथा त्यां तेने सुदर्शन चक्र प्राप्त थयु. पडी त्यां तें नलकूबरने ते नगरनो तेणे स्वामी स्थाप्यो, तथा तेनी स्त्रीने “ परस्त्री" जाणी, नोगव्याविना तेणे तेंने पानी सोंपी. पठी रावणे पोताना सैन्यथी वैताढ्यपर रहेला रथनूपुर नगरने घेरो घाल्यो, त्यारे ते नगरनो स्वामी इंड विद्याधर पण क्रोधथी तेनीसाथे लडवाने श्राव्यो. त्यारे रावणे तेने कडु के, था सैन्यने फोकट शामाटे आपणे हणावीए, श्रापण बन्नेने वैर होवाथी, आपण बन्नेज लडीये. पनी बन्ने हाथीपर चडीने विद्यायुक्त हथीथारोने वरसावी लडता थका पर्वतोने कंपाववा लाग्या, तथा देवोने पण जय श्रापवा लाग्या. पली बलने जाणनार रावण पोताना हाथीपरथी कुदीने तेना हाथीपर गयो, तथा तेने बांधी लावीने ते पाडो पोताना हाथीपर आव्यो. ते वखते राक्षसोना सैन्यमां जयजय शब्द थर रह्यो, तथा विद्याधरना सैनिकोनां मुखो नीचां थयां. पनी त्यांथी ते रावण पाडो लंकामां आव्यो, अने त्यां पक्षिने जेम पांजरामां, तेम तेणे इंडने केदखानामां नांख्यो. पली लोकपालोसहित स. हस्रारे रावणने नमीने तेनी पासेथी पुत्रनिदा मागी. त्यां विनयथी श्राश्चर्य थएला रावणे कयुं के, जो ते मारी नगरीने तृण काष्ठादिकथी रहित करीने जल अने पुष्पोथी सींचे तो हुं तेने बोडं. त्यारे ते वात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः सहस्त्रारे पण कबुल करीने तेने डोडाव्यो. पनी इंसे रथनुपूरमां श्रावीने वैराग्यथी दीक्षा लीधी, तथा घणो काल तप करी, कर्मोना क्यथी मोदे गयो. हवे एक दहाडो गुरुना मुखथी रावणे, नहीं श्वती एवी परस्त्रीथी पोताना मरणने जाणीने गुरुना वाक्यनो निषेध कर्यो.. __ हवे श्रादित्य नगरमां प्रल्हादनो केतुमती नामनी स्त्रीथी उत्पन्न थएलो पवनंजय नामनो विद्याधर पुत्र हतो. ते माहेंड नगरना अधिपति माहेंज राजानी हृत्सुंदरी नामनी राणीथी उत्पन्न थएली अंजनसुंदरी नामनी कन्याने परण्यो हतो. पवनंजयने कोए तेणिना विषे कंई खोटुं समजाव्याथी ते तेने बोलावतो नहीं, पण ते तो महासती हती, तेथी पुःखें करीने ते पोतानो काल निर्गमन करती हती. एटलामां समुज्ना खामि वरुणने जीतवा जता एवा राक्षसराजाए प्रल्हाद राजाने बोलाववा माटे दूतने मोकल्यो. त्यारे पवनंजय विनयथी पिताने नमीने, तथा तेमनी थाझा वेश्ने, ते माताने नमवा माटे गयो; त्यां तेणे पोतानी स्त्रीधेजनसुंदरीने पण जोश. त्यां नमती एवी पण पोतानी स्त्रीनी अवज्ञा करीने ते सैन्यसहित श्राकाशमार्गे चालतो थको एक तलावपर पहोंच्यो.त्यां रात्रिए (स्वामिना)वियोगथीपीडितथएली चक्रवाकीने जोश्ने,तेवी रीतनी पोतानी निर्दोष स्त्रीने ते पण संजालवा लाग्यो. पनी त्यां रात्रिए प्रहसित मित्रनी साथे तुरत अंजनाना आवासप्रते श्राव्यो, तथा त्यां तेणीने शोकातुर दीठी. पनी त्यां पवनंजये तेणीने मधुर वाक्योथी शांत करीने तेनी साथे जोगविलास कर्यो; परी ज्यारे प्रनाते ते जवा लाग्यो, त्यारे अंजनासतीए तेने का के, हे स्वामी ! जो बाथी हवे हुँ गर्नवंती थजं, तो थापे ते बाबतनी मारी संजाल करवी. त्यारे पवनंजये तेणीने एंघाणीमाटे वींटी थापीने कडं के, तारे डर नहीं; एम कहीने ते तुरत पोताना शिबिरमां गयो. हवे अंजनानो गर्न प्रगट रीते देखावाथी तेनी सासु केतुमतीए श्रादेपथी तेणीने कडं के, अरे पापिणी ! आ तें बन्ने कुलने कलंक आपनाएं शुं कार्य कर्यु ? पति देशांतरमां बेगे , श्रने तुं गजिणी ते क्यांथी थ? त्यारे ते अंजना सतीए रडतां थकां, वींटी दे. खाडीने सासुने गुप्त रीते पतिना मेलापनो वृत्तांत कहो. तोपण ते क्रोधातुर थएली केतुमतीए सीपाजे सहित तेषीने रथमां नांखीने माहेंअपुर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ शत्रुजय माहात्म्य. मोकलावी थापी. त्यारे तेना पिताए पण तेणीने दोषयुक्त जाणीने वसंततिलका नामनी दासी सहित तेज वखते घरमांधी कहाडी मेली. पनी राजाना हुकमथी तेणीने कोपण गाममां श्राश्रय नहीं मलवाथी ते वनमां ग, त्यां एक चारणमुनिने जोश्ने तेणीए हर्षथी तेमने नमस्कार कर्यो. पनी त्यां वसंततिलकाए सर्व वृत्तांत मुनिने कहीने तेणीनो सघलो कर्मविपाक पूज्यो. त्यारे मुनिए कडं के, लांतक नामना देवलोकथी चवेलो जीव आ अंजनासुंदरीनो पुत्र थशे, तथा ते विद्याधर थश्ने मोदें जशे. हवे पूर्वे कनकरथ राजानी लक्ष्मीवती अने कनकोदरी नामे बे राणी हती, तेमां लक्ष्मीवती जैनधर्म पालनारी हती. एक दहाडो ते कनकोदरीए लक्ष्मीवतीनी जिनप्रतिमा लीधी. तथा तेणीने ते अवज्ञा करवा लागी, पण पली साधवीउँना कहेवाश्री ते तेनी श्राराधना करवा लागी. ठेवटे धर्मना बोधथी ते कनकोदरी देवी थर. तथा त्यांची चवीने ते आ तारी अंजना नामे सखी थ, तेणीए पूर्वे जिनप्रतिमानी थासातना करी हती, तेथी श्रावी रीते ते पुःखी थ. पड़ी ते मुनिए अंजनासुंदरीने का के, हवे ते तारुं कर्म घणुं खरं नोगवा चुक्युं , माटे हवे तुं जैनधर्म अंगीकार कर ? श्रने अत्यंत सुख माटे ते कर्मरूपी वैरीउने तुं हण ? पढ़ी गंधर्वाना खामी मणिचूडनी आझाथी गुफामां वसतां थकां तेणीए एक अमृत पुत्रने जन्म प्यो. त्यां तेणीने दीन मुखवाली अने रडती जोश्ने प्रतिसूर्य नामनो विद्याधर पोतानी बेहेन करीने विमानमां बेसाडी चालवालाग्यो. विमान वेगथी चालतुंहतुं, तेथी ते बालक माताना खोलामांथी एक पर्वतपर पडी गयो. त्यारे तेना शरीरना जारथी ते पर्वत चूर्ण थर गयो. पठी ते प्रतिसूर्य विद्याधरे तुरत ते अखंड बालकने पृथ्वीपरथी लावीने अंजना बेहेनने सोंप्यो. पड़ी ते प्रतिसूर्य तेणीने पोताना हनुरुह नामना नगरमा लावीने आनंदयी तेना मनोवांबिन पूरवा लाग्यो. था बालक जनमतांज हनुरुहमा श्राव्यो में, एम जाणी ते विद्याधर मामाए तेनुं हनुमान नाम पाड्यु; श्रने पड़ी ते अनुक्रमे वृद्धि पामवा लाग्यो. ___ हवे पवनंजय पण वरुणसाथे संधि करीने, तथा रावणनी कृपा मेलवीने पोताना नगरमां श्राव्यो. त्यां पोतानी स्त्रीनो व्रतांत जाणीने, खे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः ३१३ दयुक्त थयो थको ते पोताना ससराने घेर थाव्यो, त्यां पण तेणीने नहीं जोवाथी ते वनवनप्रते नमवा लाग्यो, त्यां पण तेणीने नहीं जोवाथी शून्य मनवाला थयां थकां तेणे पोताना श्रापघातनो विचार प्रहसित मित्र मारफते नमस्कार पूर्वक पिताने कदेवराव्यो. त्यारे प्रल्हाद पण पवनंजय तथा अंजनाने शोधवा माटे विद्याधरोसहित वेगथी पृथ्वीपर नमवा लाग्यो. हवे पवनंजय (स्त्रीना) वियोगःखने सहन नहीं करी शकवाथी जेटलामांश्रग्निमां प्रवेश करतो हतो,तेटलामां तेने प्रल्हादे जोयो. त्यारे प्रल्हादे तेने कडं के, हे पुत्र ! तुं था अविचार्यु कार्य नहीं कर ? अने नीतिमार्गने अंगीकार कर ? ते एम कहे , तेटलामां तेणे मोकखेला विद्याधरो त्यां अंजनासहित श्राव्या. पनी आनंदित थएला ते सघला प्रतिसूर्यना उपरोधथी महोत्सवपूर्वक हनुरुप नगरमांथाव्या. पली ते सर्वे श्रानंदथी पोतपोताने स्थानके गया, तथा पवनंजय श्रने अंजनासुंदरी पुत्र सहीत त्यांज रह्या. हवे लोकोने हर्ष थापनारो हनुमान पण सर्व कला मेलवीने यौवन अवस्थाने पाम्यो. हवे वरुण साथेना सं. ग्राममां हनुमाननुं श्रद्भूत बल जोश्ने रावणनी तेनापर मेहेरबानी थ. पडी ते वरुणनी पुत्री सत्यवतीने, तथा खरदूषणनी पुत्री अनंगकुसुमाने अने बीजी पण घणी स्त्रीने परण्यो. पनी रावण सूर्यप्रमुख विद्याधरोने जीतीने, तथा इंनी पेठे तेमने पण चाकररुप करीने सुखेथी राज्य पालवा लाग्यो. हवे दंडका अरण्यमां ज्यारे रामचंजजी रह्या हता, त्यारे लक्ष्मणे पण त्यां क्रीडाथी जमतां थकां वनमा एक खड्ग जोयु, त्यारे पोताना क्षत्रीयपणाथी ते खग वेश्ने तेणे वांसनी जालीमां माणु; तेटलामां त्यां पोतानी पासे, तेथी कोश्ना बेदाएला मस्तकने तेणे जोयुं ते जो ते खेदथी विचारवा लाग्यो के, अरे! में कोई निरपराधी मनुष्यने मार्यो !! पली तेने सेश्ने रामपासे श्रावी ते व्रतांत तेमने कह्यो; त्यारे रामे कडं के हे वत्स! था ते ठीक कर्यु नहीं. था चंअहास नामर्नु खड्ग , अने जे माणस ताराथी हणायो, ते श्रानुं साधन करनारो , माटे अहीं नजदीकमांज तेनो को उत्तरसाधक पण होवो जोशए. हवे एटलामां सुर्पणखा पोताना पुत्रने विद्यासिफ जाणती थकी पू. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ शQजय माहात्म्य. जाना उपकरणो लेने त्यां श्रावी; पण त्यां तो तेणे पोताना पुत्रनुं मस्तक दाएबुं जोयु; त्यारे ते रावणनी बेहेन सुर्पणखा विलाप करवा लागी के; अरे पुत्र शंबुक! श्रावी रीते कालथी वैरीरूप थएला एवा कया माणसे तने यमने मंदिरे पहोंचतो कर्यो ? पढी त्यां पडेला पगलांने अनुसारे ते जवा लागी, तो त्यां तेणे कामदेव सरखा रूपवंत रामचंअजीने जोया. त्यारे तेना रूपथी मोहित थश्ने वैरनावने वीसरी जश्ने, तथा शोक तजीने जोगविलास माटे ते रामचंजीने प्रार्थना करवा लागी, माटे धिक्कार , तेवी स्त्रीने !! पली रामचंअजीए तेणीने कडं के हुँ तो स्त्री सहित बुं, माटे तुं लक्ष्मणपासे जा ? त्यारे लदमणे पण " नाश्नी स्त्री" जाणीने तेणीने तजी दीधी. एवीरीते बन्ने जगोएथी ज्रष्ट थएली ते पुष्ट सुर्पणखा त्यांथी पोताना स्वामीपासे गश्, अने माथु कुटीने तेणीए पुत्रना मृत्युनो व्रतांत कह्यो. त्यारे चौद हजार सुनट वि. याधरो सहित खरदूषणादिक रामपासे लडवाने श्राव्या. त्यारे रामचंजीए लक्ष्मणने कह्यु के, हे वत्स! हुं आ शत्रुउँने मारी बावु त्यांसुधि तुं यहीं रहे? अने थाप्रत्नाववंती सीतानुं तुंरक्षण करजे ? त्यारे सदमणे कडं के, हे ज्येष्टबंधु ! श्राप अहीं रहो? अने हुँ एक लीलामात्रमांज तेमने हणीने श्रावीश, माटे मने श्राप युद्धमाटे श्राझा श्रापो? त्यारेवली रामचंअजीए कह्यु के, हे वत्स! ज्यारे त्यां तने वैरीतरफथी कंई पण संकट श्रावे त्यारे तुं मने सिंहनादथी खबर करजे? एटले हुं तुरत श्रावी शत्रुनो नाश करीश. पनी लक्ष्मण पण रामनी ते श्राझाने मस्तकपर चडावीने तथा तेने नमीने, धनुष्यना टंकारोथी तथा जुजास्फोटोथी शत्रुउने त्रास पमाडतो थको त्यां गयो. एवी रीते वैरीरूपी हाथीप्रते सिंह सरखा लक्ष्मणने क्रोधायमान थएलो जोश्ने पुष्ट एवी चंजनखा रावणपासे पोताना जरतारनी मदद माटे गश्, अने कहेवा लागी के हे ना! दंडकारण्यमां को बे देवसरखा पुरुषो श्रावेला , तेए तपमा रहेला तमारा जाणेजने मारी नांख्यो . तेथी मारां वचनथी तमारो जमाई तेमने मारवा गयो बे, अने त्यां ते लक्ष्मणनी साथे युद्ध करे , वली तेनो मोटो जाश रामचंदजी लक्ष्मणना तथा पोताना बलथी, अने पोतानी स्त्री सीतानारूपश्री जगतने तो तृण समानज गणे ,ते सीताना रूपथी गौरी तो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः ३२५ पूर थएली ,रंजा तो हणागबे, इंशाणी तो मषीरूप थडे,मेनका तो पोताना पुण्योनेज निंदे , मृगी तो प्रशंसा विनानी थ बे, तिलोत्तमा तो तल समानज थडे, सावित्री तो लजायुक्त थ बे, लदमी तो हलकी थने, प्रीति अप्रीतिने उत्पन्न करनारी थडे, तथा रति तो पुःखना जाजनरूप थइ ,माटे खरेखर ते सघली स्त्रीजना रूपोने हरीनेज तेणीने बनावेली लागे , तेथी हे ना! ते सीता तमोनेज योग्य बे. वली ज्यांसुधि ते सीता तमारा हाथमां श्रावी नथी, त्यांसुधि तमारु श्रा राज्य, दीव्य रूपवाली स्त्री, अनुत लक्ष्मी, तथा बल, ते सघबुं हुं कंई हिसाबमा लेखती नथी. ते सांजलीने सीतामां आसक्त थएलो ते रावण तेज समये पुष्पक विमानमां बेसीने, रामथी पवित्र थएला ते दंडकारण्यमां गयो. त्यां रामरूपी गरुडना तेजथी सर्प सरखा ते रावण- श्रनिमानरूपी फेर उतरी गयुं, त्यारे ते मनमां विचारवा लाग्यो के, श्रा सीता तो त्रणे जगतमां श्रनत एवी ब्रह्मानी को अलौकिक सृष्टिरूप बे, अने था राम उष्टोने शिक्षा करवाने समर्थ बे, माटे हवे शुं करवु ? एम विचारतां थकां तेणे अवलोकिनी वीद्यानुं स्मरण कर्यु; त्यारे ते विया पण तेनी पासे हाजर थर, त्यारे रावणे तेणीने सीताना हरणनो उपाय पुनवाथी ते कहेवा लागी के, समुज्ने हाथेथी तरवो, अग्निमां पडवू, तथा सिंहना मुखमां हाथ नाखवो, ते सघलु सेहेऱ्या बे, पण श्रा कार्य तेथी पण पुष्कर . पण था राम, लक्ष्मणनो सिंदनाद सांजलीने संकेत प्रमाणे त्यां जशे, अने पनी तुं सुखेथी सीताने ले शकशे, माटे तुं कहे तो तारे माटे हुं ते कार्य करूं. त्यारे रावणे तेम करवायूँ कहेवाथी तेणीए लक्ष्मणना सिंहनाद सरखो शब्द कयों, त्यारे रामचंद्रजी पण ते संकेत प्रमाणे त्यां दोड्या. एटलामां ते अधम रावण पण, तेना जोवाथी डरती एवी सीताने हरीने चालवा लाग्यो. त्यारे ते सीता पण वारंवार पोकार करवा लागी के हे तात ! हे स्वामी! हे जा! था जयंकर माणसथी तमो मारुं रक्षण करो? एवी रीतनी सीतानी दीन वाणी सांजलीने क्रोधातुर थएलो जटायु पक्षी, तेणीने धीरज थापीने पोताना नखोथी रावपर्नु मुख चीरवा लाग्यो. त्यारे क्रोधायमान थएला रावणे तलवारथी ते जटायुने मारी नांख्यो, अने तेथी वधारे जयजीत थएली सीता जामंड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ शत्रुजय मादात्म्य. लने याद करवा लागी के, हे नामंडल ! तुमारं रक्षण कर? ते सांजली नामंडलनो अनुयायि रत्नजटी नामनो वीद्याधर तेणीने सीता जाणीने रावण तरफ दोड्यो, त्यारे पाबल दोडता श्रावता ते रत्नजटीने रावणे पोतानी विद्याउँथी तेनी विद्याउने दणीने पृथ्वीपर पाडी नांख्यो. पनी विघ्नरहीत पोताने स्थानके जश्ने, तेणे पोताने नहीं श्वती एवी ते सीताने खेचरीउनी तपासनीचे रमणोद्यानमा राखी. .. हवे एटलामां रामचंजीने त्यां श्रावेला जोश, शत्रुउने बोडी लक्ष्मण तेमने कहेवा लाग्या के हे ज्येष्टबंधु ! सीताने एकली बोडीने तमो वहीं केम श्राव्या ? त्यारे रामचंअजीए कयु के, तमारा सिंहनादथी हुँ यहीं थाव्यो बुं. त्यारे लक्ष्मणे कडं के, में कंश सिंहनाद को नथी, माटे खरेखर आपणने कोश्ए उग्या . माटे हवे जेटलामां हुं शत्रुउँने हणीने त्यां श्रावं, तेटलामां तमो त्यां जश् सीतार्नु रक्षण करो ? ते सांजली राम पण उतावलथी त्यां चाव्या. त्यां श्रावतांज सीताने नहीं जोवाची तुरत ते मुळ खा पड्या; तथा पढी वनना वायुथी संज्ञा श्राव्या बाद बहुज रडवा लाग्या. पनी अहीं तहीं नमता एवा रामे, मृत्युनी अणीपर रहेला जटायुने नवकारमंत्र संजलावी देवलोकमां पहोंचाड्यो. एटलामां सुनटोसहित खरदूषणने हणीने लक्ष्मण विराध नामना मित्रसहित रामनीपासे श्राव्यो. त्यां रामचंद्रजीने आंखोमां अश्रुसहित तथा उदास थएला जोश्ने लक्ष्मणे कडं के, हे ज्येष्टबंधु ! हुं शत्रुठने जीतीने तमोने नमवामाटे आव्यो बुं; तो श्राप आम उदास केम हो ? तथा ते पूज्य एवां सीताजी क्या ? त्यारे रामे सीताहरणनो व्रतांत कह्यो; त्यारे लक्ष्मणे पण कडं के, खरेखर ते कार्य माटेज को कपटीए सिंहनाद कर्यो. माटे हे ना! हवे तमो कायरपणुं तजो? अने श्रापणे तेनी शोध करीयें; पड़ी रामचंद्रजी लक्ष्मण सहित त्यां नमवा लाग्या. पली रामचंद्रजीए पाताललंकामां खरदूषणना पुत्रने जीतीने विराधने गादीपर बेसाड्यो. हवे किष्किंधा नगरीमाथी सुग्रीव ज्यारे क्रीडा करवामाटे बहार गयो हतो, त्यारे साहसगति नामनो विद्याधर त्यां श्राव्यो. तेणे सुग्रीवनी तारा नामनी स्त्रीपर श्रासक्त थवाथी, प्रतारिणी नामनी विद्याथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः .३२७ सुग्रीव सरखं रूप कर्यु; अने जेटलामां ते अंतःपुरमा जवा लाग्यो, एटलामा खरो सुग्रीव पण तेमां प्रवेश करवा लाग्यो. त्यारे द्वारपालोए तेने रोक्यो. त्यारे वालीनो पुत्र चंजरश्मी ते बन्नेने तुल्य जोश्ने माताना रक्षणमाटे, ते जूग सुग्रीवने पण अटकावतो हवो. एटलामां तेउ बन्नेना लश्कर- चौद अदौहिणी जेटलुं सैन्य त्यां एक थयु. ते महायुद्धमा बन्ने लश्करोनां घणां सुनटो मार्या गया, पठी ते खरो सुग्रीव हारी जजवाथी नगरनी बहार ज चिंतववा लाग्यो के, ते महापराक्रमी वाली खरेखर पुण्यशाली थयो; केम के ते दीदा खेश्ने मोदे गयो. वली तेना बलवान पुत्र चंपरश्मीने पण धन्य बे, के जेणे बन्नेना अंतरने नहीं जाणवाथी ते जूग सुग्रीवने पण रोकी राख्यो . वली मारा मित्र खरदूषणने पण बलवान् रामे मार्यो , माटे विराधपर उपकार करनारा ते रामपासे हूं पण जलं. एम विचारि दूत मारफते विराधने ते वात जणावीने, तेनी ( विराधनी ) मारफते तेणे शरणात एवा लदमणसहित रामने नमस्कार कर्यो. पनी दयालु एवा राम पण किष्किंधामां जश्ने, ते जूग सुग्रीवने रणसंग्राममाटे बोलावता हवा. पनी त्यां बन्नेने तुख्य रूपवाला जोश्ने, तेजेनी परीक्षामाटे रामे वजावर्त धनुष्यनो टंकार कर्यो, ते टंकारनादथी जूग सुग्रीवनी " वेषप्रवर्तिनी” विद्या नाशी गइ. त्यारे रामे ते जूग सुग्रीवने एकज बाणथी मारी नांख्यो. पठी त्यां ते खरा सु. ग्रीवनो सर्व परिवार एकठो थयो, अने रामे पण तेने फरीने तेना राज्यपर स्थाप्यो. पड़ी अवसरने जाणनारा विराध, तथा नामंडल पण त्यां परिवार ने लश्कर सहित श्रावी पहोंच्या. पनी त्यां सुग्रीवे हनुमान, नील, निषधना पुत्रो, विगेरे राजाउँने एकठा कर्या. पठी त्यां ते वि. नयी कपीश्वरे रामनी श्राज्ञाथी सीतानी तलासमाटे महाबलवान हनुमानने मोकल्यो. अहीं रावण पण नहीं श्चती एवी परस्त्रीसाथे विलास करवा राजी नहोतो, तेथी ते सीताने हमेशां पोतानी स्त्री मारफते समजावतो. वली ते रावणने बिनीषणादिक मित्रोए घणो समजाव्यो, तो पण तेणे सीताप्रतेनो राग तज्यो नहीं. केमके नवितव्यता अन्यथा थती नथी. हवे श्रहीं हनुमान शाकाशमार्गे चालतो थको माहेंअपर्वतपर, पो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ शत्रुंजय माहात्म्य. तानी माताना पिताना नगरने जोइ विचारवा लाग्यो के थाणे मारी निरपराधी माताने कहाडी मेली हती, माटे तेने हुं कंक मारुं बल बता. एम विचारि क्रोधथी तेणे सिंहनाद कयों, त्यारे माहेंद्र पण star निकलीने तेनी सामे लडवाने श्राव्यो. पढी त्यां घणो वखत ल ने, तथा तेने जीतीने तेथे तेने नमस्कार कर्यो, तथा पछी पोतानी लखाण श्रापीने, तथा पोताना खामिना कार्यनुं वृतांत कहीने ते त्यांची चाली निकल्यो. पठी ते त्यांथी बीषिणने घेर गयो. पछी तेना वचनथी बिजीषण रावणने समजाववा गयो. अने हनुमान सीताथी पवित्र थ एला वनमां गयो. त्यां राक्षसीथी वींटाएली, मलीन वस्त्रने धरनारी, म्लान मुखवाली, तथा कुधायी क्षीण यएली, छाने रामनुं नाम जपती, एवी सीताने जोइने तेथे विचार्य के, खरेखर या सीता जगतने पवित्र करनारी महासती बे, माटे याने अर्थे राम जे खेद पामे बे, ते युक्तज बे पछी ते हनुमाने श्रदृश्य रहीने रामे आपेली वींटी तेणीना खोलामां नांखी, ते वींटीने जोश्ने सीता हर्षथी गलगली घर गइ. ते वखते ( तेणीनी चोकीमां राखेली ) त्रीजटाए तेणीने दर्षयुक्त जाणीने, ते बीना रावणने जइ कही, त्यारे रावणे दूतकार्यमां चतुर एवी मंदोदरीने सीताने समजाववामाटे तेणीनी पासे मोकलावी. त्यारे सीताए तेणीने ि कारी कहाडी. पी हनुमाने वृक्षपरथी उतरी सीताने नमस्कार कर्यो, ते तेने कवा लाग्यो के, हे माता ! रावणनो नाश करनार थापना स्वामी लक्ष्मणसहित कुशल बे, तेमनो हुं पवन ने अंजनानो पुत्र हनुमान नामे दूत बुं. ते राम ने लक्ष्मण दंडकारण्यमां रहेला बे, तथा तेमनी श्राज्ञाथी हुं यहीं आवेलो बुं. ते सांजली सीताए अत्यंत हर्षित धने तेने श्राशिष पी. पढी त्यां हनुमानना उपरोधथी, तथा रामचं जीना कुशलत्रतांतना हर्षथी तेणीए एकवीस रात्रिदिवसोने ते पार क. पछी हनुमान पंधाण तरीके सीतानो चूडामणि लेश्ने देवरमण उद्यानमां श्रव्यो, तथा त्यांना वृदोने जांगवा लाग्यो. वली त्यांना उद्यानपालकोने पण तेणे मार्या. त्यारे रावणना पुत्र इंद्रजीते त्यां यावने तेने नागपाशोथी बांध्यो, अने पठी ते तेने रावणपासे लेइ गयो. त्यां रावणना दुर्वाक्यथी तेथे तुरत नागपाशोने बेदीने, पाटुं मारी रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः ३१ए वणना मुकुटने चूर्ण करी नांख्यो. पड़ी तुरत त्यांथी उडीने तेणे रावणनी नगरीमा नांगफोड करी. तथा पली तुरत रामपासे जश्ने तेणे सीतानो ते चूडामणि श्राप्यो. ते चूडामणिने सादात सीतानी पेठेज मानीने रामे तेने आलिंगन कयु, तथा हनुमानपर तेणे अत्यंत प्रीतिजाव प्र. कट को. पड़ी रामनी आज्ञाथी सुग्रीवादिकोए रणसंग्राममाटे वा जित्रो वगडाव्यां. पनी त्यां सर्व विद्याधरो, राम, लक्ष्मण, तथा सुग्रीवादिकोसहित विमानोथी आकाशने आबादित करता थका चालवा लाग्या. पड़ी त्यांथी सुवेल पर्वतपर सुवेल नामना राजाने जीतीने, उपलंकामां हंसरथने तेणे जीत्यो. पढ़ी ज्यारे ते लंकानी नजदीक श्राव्या, त्यारे ते नगरीमा हाहाकार थयो, अने रावणे पण रणसंग्राम माटे वाजित्रो वगडाव्यां. पठी त्यां रामने श्रावेला जाणीने डाह्यो तथा गुणोए करीने ज्येष्ट एवो ते बिनीषण नामनो रावणनो नानो नाश, रावणने नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के, हे जा! जोके तुं विचार कर्याविना परस्त्रीने हरी खावेल , तोपण हवे यहीं पहोंचेला रामने तुं ते तुरत पानी थापी दे? वली था एक परस्त्रीना माटे तारे राज्यनो शामाटे विनाश करवो जोशए बीए ? श्रने वली ते पापथी तारो परजव पण उर्गतिरूप थशे. वली था समुउपर तेमणे पुल बांध्यो, एवी रीतना तेना बलथी पण जो तने खातरी थती न होय, तोपण ते रामना सेवक एवा हनुमाने सन्जामा जे कार्य कर्यु हतुं, तेने तुं याद कर? वली जे रामनी श्रावी क्षमा , तथा जेनो श्रावो उत्कृष्ट न्याय दे, एवा राम हमेशां विजयवान बे. एवी रीते वैरीनी प्रशंसा करवाथी रावणे ते बिनीषणने नगरमाथी कहाडी मेव्यो, त्यारे तेपण रामपासे गयो. त्यां बिजीणनी पाउल साथे श्रावेला राक्षसोना तथा विद्याधरोना त्रीस श्रदौहिणी जेटला सुनटोने रामे प्रीतिपूर्वक बोलाव्या. पनी रामचंअजीए बिनीषणने लंकानुं राज्य आपq Tरावीने, रावणनी नगरीने लश्करथी घेरो घाख्यो. तेज वखते महा बलवान, तथा जुजास्फोटो करता थका रावणना कोडो गमे सुनटो बहार श्राव्या. त्यां बन्ने सैन्यो वच्चे शिला, वृद विगेरेरूप हथीयारोथी घणा कालसुधि जबलं युद्ध मच्यु. त्यां रणसंग्रामरूपी तीर्थमां मुडदांउने बापपाषाणनां घसावाथी उत्पन्न थएलो अग्नि, वृक्षोने बालतो थको श्रमि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० शत्रुजय माहात्म्य. संस्काररूप थयो. एवी रीते परस्पर जयनी हाथी युद्ध होते उते जयश्री हींचोला खावा लागी. रामचंउजीना सैन्यमां जरा नंगाण पडतांज तेमना चुकुटीना संकेतथी प्रेराएला राजा एकदम रणसंग्रामामां धस्या. एवी रीते राक्षसोना सैन्यमां नंगाण पडतांज रथमां बेठेला हस्त प्रहस्तक नामना बे वीरो हाथमा धनुष्योने लेश्ने लडवा लाग्या. ते वखते रामना सैन्यमांथी पण नल अने नील नामना बे मोटा वानरनायको तेनी सामा लडवाने लाग्या, तेना रथोना शब्दोने जाणे सहन करती न होय नहीं जेम तेम पृथ्वी परराट शब्द करवा लागी. एटलामां नले हस्तने तथा नीले प्रहस्तने मार्यो, अने ते पर श्राकाशमाथी पुष्पवृष्टि थर. एवी रीते हस्तप्रहस्तना मरावाथी रावणना सैन्यमांथी मारीच, सिंहजघन, स्वयंनू, सरण, शुक, चंड, अर्क, उद्दाम, बीजत्स, कामाद, मकर, ज्वर, गंजीर सिंह, विगेरे सुनटो धसी श्राव्या. ते वखते मदन, अंकुर, संताप, प्रथित, थाक्रोशनंदन, उरित, अनघपुष्प, अस्त्रविघ्न तथा प्रीतिकर श्रादिक सुजटो रामना सैन्यमांथी पण तेमनी सामा धस्या, अने ते राक्षसोने मार्या. ते वखते सूर्य पण श्रस्त थयो, अने बन्ने सैन्यो पण पोतपोताने स्थानके गया. पडी प्रजातमा रावणनी चुकुटीथी प्रेराएला राक्षसयोका रामना सैन्यप्रते धस्या. त्यारे तेनी सामे रामना सुनटो पण धसी व्या. ते सघला हाथमा रहेली खगलताने नटीनी पेठे नचावता थका, बाणोथी श्राकाशने थाहादित करता थका, सिंहनादोथी दीशाउँने ध्वनियुक्त करता थका, पगना धबकाराउथी पृथ्वीने कंपावता थका, तथा पर्वतोने पण दारण करता थका, समुज्ने उबलावता थका, अने वृदोने लांगता थका परस्पर एक बीजाने इणवा लाग्या, ते वखते रावणना हुंकारथी प्रेराएलाराक्षसो, समुजना मोजां जेम कांगपरना वृदोने तेम वानरसुनटोने तोडी पाडवा लाग्या. ते वखते उठेला सुग्रीवने वारीने हनुमान क्रोधातुर थश्ने राक्षसोप्रते धस्यो. ते वखते माली धनुष्य लेश्ने क्रोधथी हनुमाननी सामे आव्यो. ते बन्ने महासुनटो प्रलयकालना सूर्यनी पेठे, एकबीजाना शस्त्रोने - दता थका, जगतने उष्प्रेदय थया. एटलामां हाथचालाकीथी श्रीशैले मालीने हाथीयाररहित कर्यो; त्यारे वस्त्रोदर नामनो राक्षस त्यां धसी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः ३१ श्राव्यो. त्यारे हनुमाने सिंहनादोथी दीशाउने बेहेरी करतां थकां तेने बाणोथी श्राबादित कयों. त्यारे लोको कहेवा लाग्या के, अहो! श्रा बन्ने वीरो एक सरखा . ते वाणी सहन नहीं करीने हनुमाने ते वज्रोदरने मारी नांख्यो. एवी रीते वजोदरना घातथी क्रोधायमान थएलो जंबुमाली नामनो रावणनो पुत्र हनुमानपर धसी गयो; त्यारे ते पण तेनी सन्मुख आव्यो. पडी हनुमाने तेने माथामां गदा मारवाथी ते जंबूमाली मुळ खाइ पड्यो, त्यारे राक्षसना सैन्यमांथी महोदर प्रमुख सुजटो हनुमान तरफ धस्या. त्यारे हनुमाने केटलाक राक्षसोने तो मुखमां लीधा, केटलाकोने हाथमां लीधा, केटलाकोने हृदयमां लीधा, तथा केटलाकोने बगलमा घाख्या, अने केटलाकोने बाणथी हण्या. एवी रीतना राक्षसोना मर्दनने सहन नहीं करीने, नयंकर मुखवालो कुंजकर्ण हाथमां त्रिशूल लेश्ने वृक्षोने नांगतो थको दोड्यो. चारे कोरेधी वानरसुनटोने तेने मारतो जोश्ने सुग्रीव राजा, कुमद, अंगद तथा माहेंज सहित तेनी सन्मुख धस्यो. वली ते वखते नामंडल प्रमुख पण रामना योघा शस्त्रोनो वरसाद वरसाववा लाग्या; पबी सुग्रीवे गदाएं करीने शत्रुना रथने नांग्यो. ते वखते क्रोधातुर थएला कुंजकर्णे पण हाथमां मुगर लेश्ने सुग्रीवना रथने जीर्ण घडानी पेठे नांगी नाख्यो. पड़ी सुग्रीवना शस्त्रथी पीडित थएलो कुंचकर्ण मूर्छित थश्ने पृथ्वीपर पड्यो. एवी रीते नाश्नी मु धी रावण अत्यंत क्रोधायमान थयो. त्यारे इंजजित तेने रोकीने पोते कपिसैन्यने उपजव करवा लाग्यो. पड़ी तेनी सामे सुग्रीव क्रोधथी धस्यो, अने नामंडल तेना नाना जा मेघवाहनप्रते धस्यो. एवी रीते ते चारे वीरो परस्पर युद्ध करता थका पृथ्वी, स. मुन, अने पर्वतोने पण दोजाववा लाग्या. एटलामां अजित अने मेघवाहने सुग्रीव अने नामंडलने नागपाशोथी बांध्या. वली तेज वखते कुं. जकर्णे पण चैतन्य श्राववाथी हनुमानने गदाथी मारीने पोतानी कांखमां घाल्यो. एटलामां अंगद सुजट कुंजकर्णप्रते धस्यो, ते वखते हनुमान जोर करीने कुंजकर्णनी काखमांधी बुटी गयो. हवे बिनीषण रामने नमीने रथमां बेसी जामंडल तथा सुग्रीवने डोडाववा माटे धस्यो. ते समये इंजित तथा मेघवाहने विचार्यु के, पितातुल्य एवा था बि ४१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ शत्रुजय मादात्म्य. जीषण साथे आपणे युद्ध करवू लायक नहीं, एम विचारि ते नाशी गया. एटलामा पूर्वे श्रापेलुं डे वरदान जेणे एवो गरुडदेव, रामना स्मरणथी शवधिज्ञाने करीने त्यां आव्यो, तथा तेणे रामने सिंह निनदा नामनी विद्या, तथा मुशल श्राप्यां, श्रने लक्ष्मणने गारूडी विद्या, संग्राममा शत्रुने हणनारी विद्युम्दना गदा, तथा बीजां शत्रो पण आप्यां. तथा पठी ते अंतर्ध्यान थर गयो. हवे त्यां लक्ष्मणना वाहनरूप थएला गरुडने जोश्ने सुग्रीव अने नामंडलना नागपाशो दूर नाशी गया. ते वखते रामना सैन्यमां जय जय शब्द थवा लाग्यो, अने राक्षसोनुं सैन्य मलीन मुखवालुं थयु; तथा सूर्य पण ते समये अस्त पाम्यो. वली प्रजातमां ज्यारे राक्षसो रामनुं सैन्य नागवा मांड्या, त्यारे सुग्रीवादिक महावीरोए राक्षसोने मार्या. एवी रीते राक्षसोना जंगथी क्रोध पामेला रावण, इंजित, तथा कुंजकर्ण श्रादिक सर्वे एकी समये धस्या. तेउनी सामे धसी जता रामने निवारीने, बिनीषण धस्यो, तथा रावणने अटकावीने प्रीतिथी तेने समजाववा लाग्यो के, हे बंधु ! हजु पण तुं माझं कहुं मान ? अने सीताने बोडी दे ? केम के नहींतर श्रा राम, यमनी पेठे तारा कुलनो अंत लावशे. त्यारे रावणे तेने कह्यु के, अरे ! तुं मने शा माटे डरावे ? एम कहीने ते बन्ने वीरो धनुष्योना टंकारो करीने शस्त्रोथी महायुद्ध करवा लाग्या. ते वखते रामे कुंजकर्णने, लदमणे इंजजीतने, नीले सिंहजघनने, धर्मदे घटोदरने, शंजुए, उर्बुद्धि एवा खयंजुने, नले अगमोदयने, स्कंदे चंजणखने, तथा चंडोदरना पुत्रे विघ्नने रोक्यो. एवी रीते ते योद्धा लडते ते इंडजिते लक्ष्मणपर क्रोधथी तामसशस्त्र फेंक्यु; त्यारे लदमण तपनास्त्रश्री ते शस्त्रने दीने, तथा इंजजितने नागपाशोथी बांधीने तेने पोताना शिबिरमां लाव्यो. पठी रामे पण कुंजकर्णने नागपाशोथी बांधीने पोताना शिबिरमां मोकलाव्यो. तथा रामना योगाउँए बीजा राक्षसोने पण बांध्या. ते जोश क्रोधायमान थएला रावणे बिनीषणपर तेने मारवा माटे त्रिशूल फेंक्यु, पण ते त्रिशूलने लदमणे बाणोथी बेदी नांख्युं. त्यारे रावणे धरणेथे श्रापेली धगधगायमान थती शक्तिने, लेश्ने, कोधथी आकाशमां फेरवी. ते वखते सदमण रावणना अनिप्रायने, जाणीने तुरत बिनीषण पासे आवीने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः सर्गः ३२३ रावणने अत्यंत आक्षेप करवा लाग्यो. त्यारे रावणे लक्ष्मणने गरुडपर बेठेला जोइने, कोपथी लाल आंखो करी; तथा पढी तेणे ते वज्ञ सरखी शक्ति तेनापर मुकी. त्यारे ते शक्ति सघलां शस्त्रोने अवगणीने लक्ष्मपनी बात पर पडी; अने तेथी लक्ष्मण मूर्छा खाइने पृथ्वीपर पड्या, तेना शिबिरमा पण शोक पथराई गयो. तेथी क्रोधायमान थएला रामचंद्रजीए सिंह जेम हाथी साथे, तेम सिंहना रथमां बेठेला रावप साथे युद्ध करवा मांड्यं; पढी त्यां रामचंद्रजीए रावणना पांच रथोने जांगी नाख्या; त्यारबाद रामना तेजने नहीं सहन करवायी रावण पोताना नगर तरफ गयो. पढी सूर्य अस्त यये बते राम, लक्ष्मण पासे व्या, तथा तेने तेवी रीतना जोइने मूर्छा पाम्या, तथा पढी संज्ञा आव्याबाद ते कहेवा लाग्या के, दे जाइ ! वैरीजना समूहने मार्या विना, सीता पाव्याविना, बीजीषणने पोते श्रपेतुं राज्य श्राप्या विना, तथा शत्रुची वीटाएला था रामने एकाकी बोडीने, तुं चाल्यो नहीं जा ? श्रथवा तेमां तारो कंई पण दोष नथी, पण मारोज दोष बे, केम के हजु हुं हीं जीवतो बेठो ढुं. हे सुग्रीव ! तुं मने सानिध्य कर ? हे हनुमान ! तुं अगाडी था? हे चंद्ररश्मि ! तुं उत्साही था ? तथा हे जामडल ! तुं उद्यमी था ? अरे अत्यारे मारो कोइ एवो संबंधि नथी, के या मारा नाना जाने सज करे !! एवी रीते कल्पांत करीने शुन्य थया थका राम मूर्च्छित थया. त्यारे बिजीषणे कयुं के, हे प्रभु! तमो धीरज राखो ? केम के शक्तिथी हवाएलो प्राणी रात्रिसुधि जीवी शके बे, माटे तेने वास्ते उद्यम करो ? पढी रामनी श्राज्ञाथी सुग्रीवादिकोए लक्ष्मणनी आसपास विद्याना बलथी चार द्वारोवाला सात किल्ला बनाव्या. वली ते समये खामिना दुःखथी दुखित थएला सुग्रीव, अंगद, अंशु, तथा जामंडल श्रादिक विद्याधरो ते किल्लाउने घेरीने त्यां रह्या. हवे ते समये नामंडलनो हितेबु मित्रजानु नामनो महान विद्याधर त्यां श्रीने तिथी रामने कड़ेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! अयोध्याथी बार योजनने बेटे द्रोण राजाथी रक्षित थपलं कौतुकमंगल नामनुं एक मनोहर नगर बे. त्यां कैकेयी ना जाइनी विशल्या नामे पुत्री बे, तेणीना हाथना स्पर्शथी या लक्ष्मणजीनुं शल्य दूर थशे अने ते पण जो सूर्योदय पेहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ शत्रुजय मादात्म्य. लांज अहीं श्रावी पहोंचे, तोज था लक्ष्मण सऊ थश्ने शत्रुउँने हणी शके. ते सांजली रामचं जीए तुरत प्रीतिपूर्वक अंगद, नामंडल तथा हनुमानने जरतपासे मोकल्या.त्यारे तेउए पण तुरत विमानमारफतें अयोध्यामां जश् सीताहरणपूर्वक सर्व व्रतांत जरतने कही संजलाव्यो. त्यारे खामीना कार्योमा तप्तर थएला नरत राजाए पण ते ने साथे लेश तुरत प्रो. पपासे श्रावी विशल्यानी मागणी करी. त्यारे जोण राजाए तो बीजी हजार कन्या सहित विशल्याने श्रापी; पड़ी ते जरतने अयोध्यामां बोडी विशल्या सहित रामचंद्रजी पासे तुरत श्राव्या. पनी त्यां ते विशल्याना हाथना स्पर्शथी ते शक्ति लक्ष्मणने तजीने तुरत आकाशमा उडवा लागी; तेज वखते हनुमाने तुरत तेणीने पकडी लीधी. त्यारे ते शक्ति हनुमानने कहेवा लागी के, देवतारूप एवी हुँ (रावणप्रतेना) दासपणायें करीने वहीं श्रावी हती,पण विशल्यानापूर्व नवनातपनाप्रजावधी हवे हुँचालीजउंडं. माटे तुं मने बोडी दे ? पढी हनुनाने तेणीने तजी देवाथी ते शक्ति पोताना अपराधथी जाणे डरती होय नहीं जेम, तेम उडीने आकाशमां चाली गइ. पडी प्रज्ञप्तीना स्नात्रना पाणीथी फरीने लक्ष्मणने सींच्या, अने तेना घा रुका जवाथी तुरत निजामांथी जेम तेम ते उठीने बेग थया. पनी रामचंद्रजीए तेने आलिंगन कयु तथा सधलो व्रतांत निवे. दन करीने एक हजार कन्याउंसहित विशव्यानो तेनी साथे विवाह कयों. पड़ी तेणीना स्नानना पाणीथी बीजा सुनटोना घा पण साजा थया; तथा पली सर्व विद्याधरोए मलीने त्यां हर्षथी महोत्सव को. पठी रावणे चरोना ( गुप्तराखेला माणसोना) मुखथी लक्ष्मणने जीवता थएला जाणीने बहुरूपी विद्यानुं साधन करवानो विचार कयों. पड़ी तेणे सोलमा तीर्थकर श्री शांतिनाथ प्रजुनी अष्टप्रकारी पूजा करीने ते विद्यार्नु साधन करवा मांड्युं. वली मंदोदरीनी श्राशाथी नगरना सर्व लोको आठ दिवसो सुधि जैनधर्ममां रक्त थया. पठी ते विद्या सिक थवाथी रावण राक्षसोनी महोटी सेनासहित प्रजातमां समरांगणप्रते श्राव्यो. पली त्यां बन्ने सैन्योनुं महा जयंकर युद्ध थयु; तथा तेमां कोडोगमे सुनटो मराया; अने तेथी रथोने चालवानी जगोपण रही नहीं. ते समये महा बलवान लक्ष्मण अन्य राक्षसोने मारीने, वारंवार रावणने ताडना करवा लाग्या. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमःसर्गः ३३५ तेथी थाकुल थश्ने रावणे तुरतते विद्याथी पोतानां नयंकर एवां घणां रूपो काँ. त्यारे लक्ष्मण पृथ्वीपर, आकाशमां, पलाडी, बागल, तथा पडखामां विविध प्रकारनां शस्त्रोनो वरसाद वरसावनारा अनेक रावणोने जोवा लाग्या. पठी एक एवा पण ते गरुडपर बेठेला बलवान लक्ष्मणे अनेक स. रखा थश्ने बाणोनी धाराउँथी, पतंगीथाने जेम मेघ, तेम तेने हण्या. बाणोनी ते धाराउँथी व्याकुल थएला रावणे चक्रनुं स्मरण कयु; त्यारे अर्धचक्रीना जीवित सरखं जाज्वल्यमान चक्र पण तुरत तेनी पासे आव्यु. त्यारे क्रोधथी लाल आंखोवाला थएला ते रावणे ते चक्रने नमाडीने लक्ष्मणपर फेंक्यु, त्यारे ते चक्र लक्ष्मणने प्रदक्षिणा देश्ने तेना (लक्ष्मणना) हाथमा श्रावी रह्यं. त्यारे लमणे पण तेज चक्रथी, इंजेम वनथी पर्वतने, तेम रावणना वक्षःस्थलपर ताडना करी. ते ताडनथी जेठ वदी अगीयारसने दिवसे पाउले पहोरे रावण मरीने चोथी नरके गयो. ते वखते देवताए पण जय जय शब्द करीने प्रीतिथी लक्ष्मणजीपर पुष्पोनी वृष्टि करी. पठी जयथी दिङ्मूढ थएला राक्षसोने बिजीषणे स्नेहथी शांत कर्या; केम के खजातिनुं रक्षण करवं ते उत्तम कार्य . पनी रामचंद्रजीए कुंजकर्ण,खजित तथा मेघवाहन श्रादिक राक्षसोने बोडी मेल्या, त्यारे तेउए पण रावण- प्रेतकार्य कयु. पनी ते समये कुंजकर्णे, इंडजिते, मेघनादे तथा मंदोदरीए अप्रमेयबल नामना ऋषिनी पासे दीक्षा लीधी. पडी निर्दोष एवी महासती सीताने लेश्ने रामचंघजीए बिनीषणे बतावेला मार्गे थश्ने उत्सवपूर्वक लंकामां प्रवेश कयों. पठी त्यां रामचंगजीए ते लंकाराज्य बिन्नीषणने सोंप्यु; तथा त्यां ब वर्षो रह्या बाद ते माताना चरणोने नमवा माटे उत्सुक थया. एटलामां विंध्यस्थलीमां इंजित तथा मेघवाहन मोदे गया; अने तेथी ते तीर्थनें “मेघरथ" नाम पज्यु. वली नर्मदाने कांठे कुंचकर्ण मोदे गया, अने ते तीर्थ- “पृथुरक्षित" नाम पड्युं. पली उत्तम दिवसे रामचंजी, सीता अने लक्ष्मणसहित सुग्रीवादिकनी अनुमतिपूर्वक पुष्पक विमानमां बेसीने, पृथ्वीपरनां नगरो तथा श्राश्चयोंने उंचे प्रकारे जोता थका, अनुक्रमे उंची धजाउथी शोनिती थएली, एवी अयोध्या नगरीप्रते श्राव्या. ते वखते जरत राजा पण शत्रुघ्ननाश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ शत्रुजय मादात्म्य. सहित हाथीपर बेसी महान उत्सवपूर्वक सामे श्राव्या, तथा तेमणे रा मचं जीना चरणोने नमस्कार कर्यो. पठी त्यां रामचंअजीए तथा लक्ष्म एजीए पण बंधुउने श्रालिंगन कर्यु, तथा त्यारबाद वृक्ष स्त्रीथी वधावात एवा ते रामचंअजीए नगरीमा प्रवेश कयों. पठी त्यां रामचंडजीए ल दमण सहित पोतानी सर्व माताउँने नमस्कार कयों, पनी जरत राजार जाणे थापणतरिके राख्यु होय नहीं, तेम ते राज्य रामचंदजीने सोंप्यु तथा पोते सेवकनी पेठे तेमनी सेवा करवा लाग्यो. पठी एक दहाडोन रत राजाए देशजूषण नामना मुनिपासेथी पोताना पूर्व नवोने सांजलीने आग्रहसहित दीदा लीधी. पनी शत्रुजय गिरिनो महिमा सांजलीने एक हजार मुनि सहित ते मार्गमां यत्नापूर्वक चालता थका त्यां जवा लाग्या पड़ी त्यां जश् श्री रुपनदेव प्रजुने नमीने, ते तीर्थनो प्रजाव अंतरम ते ध्याववा लाग्या. पठी सघलां कर्मो क्षीण थवाथी केवलज्ञान पामीने जरतमुनि ते मुनिउँसहित मोदे गया. पनी त्यां रामचंउजीए तथा स क्ष्मणजीए शत्रुजयादिक तीर्थोनो उद्धार कयों, तथा त्यां ध्वजादिक च डाव्यां. पनी अग्निप्रवेशना निदर्शनश्री सीतानो अपवाद दूर थयो, तथ त्यारबाद ते सीता पण दीदा लेश, तप तपीने अच्युतेंअरूप थश्. श्री शैल पण पोतानुं राज्य पुत्रने सोंपी, वैराग्यथी दीक्षा लेश, तथा घणे काल ते पालीने मोदे गया. पठी नाश्ना स्नेहनी परीक्षामाटे श्रावेल देवोनी वाणीथी रामना (कल्पित) मोदने सांजली, शोकशख्यथी ल दमण पण मृत्यु पाम्या. ते सांजली वैराग्ययुक्त थएला रामना लवण अने अंकुश नामना पुत्रो दीदा देश अनुक्रमे मोदे गया. पनी जटायुदेवन प्रतिबोधश्री रामचंअजीए लक्ष्मणजीनुं मृतकार्य करी, अनंगदेवने राज्य सोप्यु. तथा पठी तेमणे शत्रुघ्न सुग्रीव, तथा बिनीषण प्रमुख सोलह जार राजासहित दीक्षा लीधी. पठी नाना प्रकारना अनिग्रहवाला एव रामचंदजी महामुनि विहार करता थका कोटिशिलाप्रते जश्ने ध्यानर्थ केवलज्ञान पाम्या. पड़ी पुंडरिकगिरि श्रादिक तीर्थोमां विहार करीने तथा तेनो प्रनाव विस्तारीने, पंदर हजार वर्षोनुं आयुष्य पूर्ण करी रा मचंअजी मुनि महाराज मोदे गया. वली जरतादिक मुनि महाराजाल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७ नवमः सर्गः ते समयमां श्री शत्रुजयपर मोदे गया बे, माटे ते तीर्थने जेम बने तेम अधिक रीतें सेवईं; केम के, ते मोदना श्रव्याबाध कारणरूप . एवी रीते श्रीवीर प्रजु लोकोना समूहरूपी देत्रोमां आनंद करनारा, तथा श्री शत्रुजय तीर्थना महिमारूपी जलसायमान पुण्यना समूह सरखा वाणीना समूहने वरसीने, तेना उगममाटे, पुष्करावर्तमेघ, कमल, तथा शंख सरखी उत्तम कीर्तिने थापनार्थी अध्ययन मुखथी कहेता हवा. एवी रीते श्राचार्य महाराज श्रीधनेश्वरसूरिजीए बनावेला महा तीर्थ श्री शत्रुजयना माहात्म्यमां श्रीराम थादिक महापुरुषोना चरित्रना वर्णननो नवमो सर्ग समाप्त थयो. एवी रीते था शत्रुजय माहात्म्यना प्रथम खंडन संस्कृतपरथी शुद्ध गुजराती भाषांतर जामनगर निवासी पंडित श्रावक हीरालाल वि. हं. सराजे करेलु डे; तेमां प्रमादथी के मतिदोषथी जे कंई उत्सूत्र के विपरीत लखायुंहोय,ते “मिलामि डुक्कम तथा तेसुज्ञजनोए सुधारीनेवांच.केम के, गवतः स्खलनं क्वापि, नवत्येव प्रमादतः इसंति दुर्जनास्तत्र, समादधति सजनाः॥१॥ अर्थः- मार्गे जतां थकां प्राणीने प्रमादयी स्खलना तो क्यांक थयाज करे , पण ते वखते उर्जनोज त्यां हांसी करे , पण सङनो तो तेने सारी रीते उगडीने बेठो करे बे. हवे नाषांतरकर्ता समाप्तिमंगल माटे पोताना गुरु श्री चारित्रविजपजी महाराजनी स्तुति करे . लब्ध्वा यदीयचरणांबुजतारसारं, खादछटाधरितदिव्यसुधासमूहम् ॥ संसारकाननतटेह्यटतालिनेव, पीतो मया प्रवरबोध रसप्रवाहः॥१॥ वंदे ममगुरुतंच,चारित्रविजयानिधम्, परोपकारिणांधुर्य,दत्तानंदकदंबकम्य हीनपुण्या न पश्यंति, रागांधास्तत्वसंस्थितिम् ॥ लानेऽलानफलं चैव, लनंते ते नराधमाः॥१॥ समाप्तोऽयं श्री शत्रुजयमाहात्म्यस्य प्रथमः खंडः गुरुश्रीमच्चारित्रविजयसुप्रसादात् ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 327 शत्रुजय माहात्म्य. जाहेर खबर. सर्वे जैनबंधुने मालुम थाय जे अमारा तरफथी हालमां नीचेना नवा अपूर्व जैनी ग्रंथो, गुजराती भाषांतर साथे उपावीने पाका पुगंठि. बांधी बहार पाडवामां श्राव्यां . योगशास्त्र.- ( कर्ता श्री हेमचंदाचार्य) किम्मत रु. 3-4-0 सामुजिक शास्त्र.-(कर्ता श्री नबाहुखामि) किम्मत रु. 1-0-0 शुकनशास्त्र.- (कर्ता श्री जिनदत्तसूरि) किम्मत रु. 0-6-0 प्रतिष्ठाकल्प. (कर्ता श्री सकलजी ) किम्मत रु. 4-6-7 जलजात्रादिविधि.- (कर्ता श्री रत्नशेखर सूरि ) किम्मत रु. 0-6-0 श्रष्टकजी.- (कर्ता श्री हरिनमसूरि, टीकाकार श्री जिनेश्वरसूरि) किम्मत रु. 1-15-0 कल्पसूत्र.-(सुखबोधिका टीकार्नु गुजराती भाषांतर चित्रोसहित) 3-0-0 धर्म सर्व स्वाधिकार. (कर्ता श्री जयशेखरसूरि)) तथा किम्मत रु.०--० कस्तूरिप्रकरण. (कर्ता श्री हेम विमलगणि ) शत्रुजय माहात्म्य खंड पेहेलो (कर्ता श्रीधनेश्वरसूरि) कि. रु. 2-4-0 नीचेनां पुस्तको गुजराती नाषांतरसहित तैयार थाय बे, अने थोडाज वखतमांबपाश्बहार पडशे. वैराग्यकल्पलता.( कर्ता श्री यशोविजयजी उपाध्याय) हिंगुलप्रकरण. ( कर्ता श्रीविनयसागरोपाध्यायजी) जैनकुमारसंचव महाकाव्य. (कर्ता श्री जयशेखरसूरि) जजबाहु संहिता.(जैननोअपूर्वज्योतिषग्रंथ)(कर्ता श्रीनप्रबाहुस्वामि) प्रनाविक चरित्र (जैनधर्ममां थएला महान पुरुषोनां चरित्र) शत्रुजय माहात्म्य. खंड बीजो. (कर्ता श्री धनेश्वरसूरि) . मेघमाला विचार. ( कर्ता श्रीविजयप्रनसूरि ) शा. नीमसिंद माणेक के. मुंब. मांडवीबंदर. शाकगली. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only