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________________ शए शत्रुजयमादात्म्य. बुद्धिवाला चक्रधर राजा उठीने कहेवा लाग्या के, हे प्रजु ! मने आप संघाधिपपणुं श्रापो? त्यारे प्रजुए पण देवोए लावेलो वासक्षेप तेमना मस्तकपर नाख्यो. एवी रीते प्रजुनी ते आशिष लेश्ने, तथा इंजे दीधेला चैत्यने लेश्ने राजाए संघने निमंत्रण कर्यु. पडी कुलस्त्रीउए करेल ने मंगल जेनुं एवा ते चक्रधर राजा सैन्यना नारथी जगतनें चलायमान करता थका संघसहित चालवा लाग्या. पनी थनवछिन्न प्रयाणथी, गामोगाम प्रते जिनोने तथा मुनिउँने नमता थका ते सुराष्ट्र देशमां श्रावीने तीर्थ समीपे श्राव्या. त्यां एक दहाडो राजा ज्यारे देवालयमां बेग हता त्यारे, पोतानी कांतिथी आकाशने तेजस्वी करतो थको कोश्क विद्याधर श्राव्यो. तेने जोश् चक्रधर राजा श्रासनपरथी जरा उठ्या, तथा, तेने उत्तम आसनपर बेसाड्यो, पडी ते विद्याधर हाथ जोडीने राजाने कहेवा लाग्यो के, हे राजन् ! तमो अरिहंत प्रजुना पुत्र, तथा इक्ष्वाकु वं. शमां मुकुट समान बो. हुं खेटपुरना राजा मणिप्रिय विद्याधरनो कलाप्रिय नामे पुत्र बुं, तथा शत्रुथी बसें करीने पराजव पामेलो इं. हवे गोत्रदेवीनी श्राज्ञाथी आपनाथी ते मारा शत्रुनो क्षय जाणीने, श्रापने बोलाववा माटे हुँ अहीं श्राव्यो बुं, तेथी हे प्रजु! श्राप मारापर कृपा करो ? पड़ी चक्रधर राजानी श्राज्ञाथी ते विद्याधरे पोतानी अत्यंत शक्तिथी विमाननी रचना करी. पनी शत्रुने नाश करनार चक्रधर राजा पण विमानमां बेसीने दणवारमांज ते विद्याधर सहित खेटपुरमां श्राव्या. एवी रीते चक्रधरना त्यां श्राक्वाथी, तेना तेजने सहन नहीं करवायी जलकांत मणिमांथी करता पाणीनी पेठे शत्रु दूर चाख्या गया. एवी रीते शत्रुनो समूह नाशी गया बाद ते कलाप्रिय विद्याधर चक्रधर राजाने श्रादरसहित कहेवा लाग्यो के, हे प्रजु ! पोतानी मेलेज आपप्रते रक्त थएली मारी बेहेनने आप परणो? जो के तेथी पण हुं श्रापनो बदलो तो लेशमात्र पण वाली शकतो नथी. एम कहीने तेणे पोतानी गुणमाला नामनी बेहेन चक्रधरने श्रापी. तेना संगमथी चक्रधर कौमुदी सहित चंजनी पेठे शोजवा लाग्या. वली तेना रुपथी मोहित घएली बीजी विद्याधरनी कन्याउँने पण चक्री त्यां परण्या; केम के नाग्यवंतोनुं जाग्य सर्व जगोए उत्कृष्टज होय . पनी चक्रधर राजाने तीर्थपर जवानी - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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