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प्रथमः सर्गः
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श्रीने मलेठे. वली अहींथी उत्तर दिशामां; स्वच्छ पाणीथी महा उदयवाली, इंद्रे बनावेली, तथा विकस्वर कमलोवाली “ऐंडी” नामनी नदी वहे बे; तेने तमो जु ? वली दीव्य जलनां मोजांची शोजीती थएली, तथा कमलनी अंदर रहेला हंसोवाली, धने सारसची सेवाएली एवी
कपर्दिका नामनी नदीने तमो जुई ? वली हे देवो !! पश्चिम जागमां जगतनो उपकार करनारी, तथा वेद्धेता पाणीथी संपूर्ण, अने पापोनो नाश करनारी एवी या ब्राह्मी नामनी नदी शोने बे. वली हे देवो !! यहीं शेत्रुजी, ऐंडी, नागेंद्री, कपिला, यमला, तालध्वजी, यकांगा, ब्राह्मी, माहेश्वरी, साचमती, शबला, वरतोया, उजयंती, तथा जा नामनी चौद महा नदी शोने बे. वली दे देवो !! यहीं पूर्व दिशामां अत्यंत शोजावालुं सूर्योद्यान वे, तथा दक्षिण दिशामां नंदनवन सरखुं स्वर्गोद्यान बे, तथा पश्चिम दिशामां अत्यंत मनोहर चंद्रोद्यान बे, तथा उत्तर दिशामां या लक्ष्मी लीला विलास नामनुं उद्यान बे. एवी रीतनां, चार दिशाउंमांथी आवती एवी लक्ष्मीनां चोटला सरखा चार उद्यानोथी या शत्रुंजय पर्वत अत्यंत शोने बे. वली अहीं सौधर्मेंद्रनां हुकमी कुबेरे बनावेलो, तथा पापरूपी मेलने धोनारो एवो इंद्र नामनो कुंड शोने बे. स्फुरायमान यती एवी चांदनी सरखा पाणीनां मोजांथी शोजतो, अने जाणे जरतनां यशोनो ढगलोज होय नहीं, एवो जारत नामनो कुंड छाहीं शोजे बे. वली अहीं मंद मंद वाता एवा पवनश्री चलायमान यता मोजानी पंक्तिथी शोजतो एवो कपद्दयनो कुंड कोने सुख करनारो नथी ? ( अर्थात् सर्वने सुख करनारो बे. ) वली श्रीं मुक्ति रूपी स्त्रीनुं मुख जोवा माटे दर्पण सरखो, तथा प्रीति उत्पन्न करना एवो दिल्लण मुनिनो कुंड तमो जुठे ? वली सर्वतीर्थावतार बे नाम जेनुं, एवा चंद्रकुंड ने सूर्यकुंडने, तथा वीजा पण कुंडोने, हे देवो !! तमो यहीं जुड़े ?
वली हे देवो !! यहीं श्रा बाजुए उत्तम बुद्धिवान एवो था मुनि तप तपे बे, तेनां विचित्र चरित्रनी वार्ता तमो कौतुकधी सांजलो ?
पूर्वे यम सरखो, तथा पापीउंनो स्वामी एवो, चंद्रपूरनो या कंडु नामे राजा हतो. ते धननो मद राखीने देव, गुरु, वृद्ध, तथा मातपि
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