SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शत्रुंजय माहात्म्य. रोधी, तथा योनां मंदिरोधी अत्यंत शीने बे. वली या शत्रुंजय पर्वत यक्ष, किन्नर, गंधर्व, विद्याधर, तथा देवोनां समूहोथी, तथा अप्सराथी सेववा लायक थयो थको अत्यंत शोने बे. वली श्रा पर्वतमां मोहनी इछा वाला योगी, विद्याधरो तथा भुवनपति पवित्र गुफामां रहिने श्री अरिहंत प्रजुनुं ध्यान धरे बे. वली या शत्रुंजय पर्वत रसकुंपिका, रत्ननी खाणो, तथा दिव्य औषधियी संपूर्ण थयो थको सघला पर्वतोनां गर्वने भेदनारो बे. वली या पर्वत कस्तुरीयां मृगोनां टोलांJथी, मयूरोथी, मदोन्मत्त हाथीउंथी, तथा चमरी गायोनां समूहोथी सर्व बाजुची शोभे ठे वली श्र पर्वत मंदार, पारिजातक, संतान, हरिचंदन, चंपक, अशोक, तथा सालरीयादिक वृक्षोथी नरेलो बे. वली केतकीनां पुष्पोनी सुगंधिथी सुगंध युक्त करेल वे दिशानां जागो जेणे, तथा ऊरता एवा पाणीनां करणाथी वाचाल थलो, तथा मालती, गुलाब, कृष्णागुरु, अने श्रांबा प्रमुखथी हमेशां पुष्प तथा फलवालो, एवो या पर्वत अत्यंत शोने बे. वली या पर्वतपर कल्पवृक्षोनी घाटी बायामां बेठेली किन्नरी जिनेश्वर जगवाननां गुणोने गाय बे, छाने तेथी पोताना पापोनो दय करे बे. वली ऊरता एवा पाणीना ऊरणानां बिंडु श्रा पर्वतरूपी स्वामी, पोतानी मुक्तिरूपी खीनां द्वार माटे जाणे मोतीने करतो होय नहीं, तेम शोने बे; वली अहीं एक बाजुपर, क रणामांची पडता पाणी नां बिंडुने वर्षाद पडतो जाणीने, मयूरो प्रजुनी पासे नाच्या करे बे. वली एक बाजुए हजार फपाउंथी शोजतो एवो शेषनाग प्रभुनी आगल अहीं दीव्य नाटक करतो थको शोने बे. वली अहीं एक बाजुए उत्तम वस्त्रोवाली, तथा उत्तम रागवाली एवी खेचरी हाथमां वीणा लेइने, अरिहंत भगवाननां गुणोने गाती थकी देखाय बे. पली जे प्राणीजने जम्मथी मांडीने पण परस्पर वैर होय बे, एवा प्राणी पण पोतपोतानुं वैर तजी ने यहीं जिननां मुखने जोता कारमे बे. वहीं एक बाजुए पूर्व समुद्रमां जनारी एवी शत्रुंजयी नदी, जोनार तथा सांजलनाराउंनी जाणे पुण्यनी रेखाज होय नहीं, तेम शोने बे. वली एक बाजुए अहीं तालध्वज ( तलाजा ) नामनां शिखरनां उत्संगमांथी गमन करती एवी तालध्वजी नदी शत्रुंजी नदीने ok Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy