SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमः सर्गः ३ र्थ समान बीजुं कोइ उत्तम तीर्थ नथी, तथा तेना समान बीजो कोइ धर्म नथी, केम के, त्यां ज‍ जिननुं ध्यान करनुं, ते जगतने सुखनुं कारण े. अशुभ परिणामी, मन, वचन, अने कायाथी जे पाप बांध्युं दोय, • जयंकर पाप पण या शत्रुंजय गिरिनां स्मरणथी नाशने प्राप्त थायडे. वली या शत्रुंजय पर्वतनां दर्शनथी सिंह, वाघ, सर्प, जील तथा हिंसक पeिd पण खर्गगामी थाय बे. वली जेर्जए सुर, असुर, अने म नुष्यादि जवोमां पण या शत्रुंजय पर्वत जोयो नथी, तेर्जने पशु सरखा जाणवा, छाने ते मोनां अधिकारी थता नथी. अन्य तीर्थोमां उत्तम ध्यान, शील, दान तथा पूजनथी जे फल मले बे, तेथी पण अधिक फल शत्रुंजयमाहात्म्य सांजल्याथी मले बे. माटे हे लोको! श्रा गिरिराजनुं माहात्म्य तमो महा नक्तिथी सांजलो ? केम के, ते सांजलवा मात्रथीज संपदा प्राप्त थाय बे. एक दहाडो घणां देवोथी वींटाएला एवा श्री महावीर स्वामी, द्रव्य जाव रूप शत्रुने जीतनारा एवा या शत्रुंजय पर्वत प्रते श्राव्या. ते वखते जाणे जिनेश्वरोने नमस्कार करवा माटे उतावलज करतां होय नहीं, तेम इंद्रोनां श्रसनो एकदम कंपवा लाग्यां. त्यारे वीश जवनपतिनां इंडो, बत्रीश व्यंतरनां इंडो वे ज्योतिषनां इंद्रो तथा दश उर्ध्वलोकनां इंडो, एम सघला मली चोसव इंद्रो देवो सहित, प्रभुथी - षित थपला ते शत्रुंजय पर्वत प्रते खाव्या. या लोकमां जोवा लायक एवा श्र पर्वतने जो जोइने, मस्तक धुणावता थका, ते इंद्रादिक देवो, पोताना सेवकोने नीचे प्रमाणे कड़ेवा लाग्या. " हो ! या महान शोजावालो गिरिराज निरुपम किरणोवालां रनोयें करीने जाणे चित्रेलो होय नहीं !! तेवो शोने बे; वली सोनानां शिखरो वडे करीने, जाणे सर्व पर्वतोनो स्वामी होवाथी, मुकुटोथी शोजतो होय नहीं जेम तेम श्र पर्वत शोभे बे. वली ते आकाशमां पढ़ोंari एव सोनां, रूपा, ने रत्ननां शिखरोथी एकी वखते पृथ्वी अने स्वर्गने पवित्र करतो थको पापने हरनारो बे; वली या पर्वत स्वर्णगिरि, ब्रह्म गिरि, उदयगिरि, तथा अर्बुद गिरि आदिक एकसोने आठ शिखरोथी अत्यंत सोने बे. वली स्वर्गमंदिर सरखां यरिहंत प्रजुनां मंदि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy