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प्रथमःसर्गः
अहीं स्फुरायमान एवां रत्नोयें करीने, आ देशनां गुणोनेज जाणे प्रगट करतो होय नहीं, तथा प्रजुनी जक्तिमां तत्पर थश्ने मोजांरूपी हाथोथी नाचतो तथा गर्जना करतो होय नहीं जेम, तेम समुज शोने दे. श्रा तीर्थनी रक्षामाटे मने अहीं सगर चक्रवर्ती लावेलो, एवा हर्षथी जाणे फीणनां समूहनां मिशथी हसतो होय नहीं, तेम ते समुप शोने दे.वली थहीं देवोथी पूजायेला चोवीस तीर्थंकरो, चक्रवर्ति, वासुदेवो, त. था बलदेव प्रमुखोये पण विहार कयों ने. वली श्रही अनंत मुनि सिकथया बे, तथा घणा सिह थशे, तथा अहीं घणा धर्मधुरंधुर संघपति थयेला बे. वली अहीं जरासिंधादिकने मारीने कृष्णादिके जय मेलव्यो बे, तथा बीजा पण नीतिनिपुणो अहीं घणा राजा थयेला बे; वली अहीं केटलाक राजा प्रजानां प्रतिपालनथी तथा शत्रुनो नाश करखाथी कीर्तिवाला, त्यागी, धर्मकार्यनां श्राधारजूत तथा सर्व जगोये स. मदृष्टिवाला थयेला - वली श्रहीं हमेशां सरल खजावी, प्रसन्न मुखवाला, विवेकी, संतोषी, हमेशां श्रानंदी, तथा निंदा भने मात्सर्य विनानां, पोतानीज स्त्रीउमां संतोषी, परस्त्रीश्री विरक्त, सत्य बोलनारा, पुण्यशाली, परखोहनी बुद्धिविनानां, कदाग्रह अने वैर विनानां, कपट अने खोनविनानां, उदार, निर्दोष श्राचारवाला, तथा सुखी लोको वसे .वली ब्रह्मचर्य गुणें करीने मनोहर, पतिनी सेवामां तत्पर, हसमुखी, रूपाली, परिवारनुं हित करनारी, मातपितानी नक्ति करनारी, जार प्रते प्रीतिवाली, सर्व लोकने ववन, नाग्यथी नासुर, बहु पुत्रोथी शोजती, सजायुक्त, कमल सरखां नेत्रोवाली, कौतुकवाली, स्वल्प क्रोधवाली, उत्तम पेहेरवेषवाली, सरल बुद्धिवाली, मीष्ट वचनोवाली, गंजीर, अने गुणो डे प्रिय जेउँने एवी स्त्री अहीं वसे . वली अहीं पुत्रो मातपिता प्रते ज. क्तिवाला, हमेशांमातपितानी श्राज्ञापालनारा, कलाउँमा कुशल,शांत अने सुशीलो ने. वली अहीं चाकरो शेउप्रते उत्तम नक्तिवाला, कार्य वखते याचना नहिं करनारा, शूरा, स्वल्पमां पण संतोषी, स्नेही, नलुं करनारा शेठना अभिप्रायने जाणनारा, सनाने योग्य, उत्तम वचनवाला, श्रत्यंत प्रीतिवाला, शेषनां वैरी प्रते वैरवाला, तथा शेग्नां मीत्र प्रते मित्राध्वाला . वली अहीं दत्रि आस्तिकपणामां तथा उचितपणामां चतु
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