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________________ २५० शत्रुजयमाहात्म्य. राजा ! था तमारा सेवकपर कोप नहीं करो ? वली हे राजन् ! जीर्ण वस्त्रथी जेम सूर्यने, तथा तृणथी जेम अग्निने, तेम में जे तमोने रोध्या डे तेनुं कारण तमो सांगलो? हुं प्रथम वियजति नामनो एक विद्याधरोनो खामी हतो; अने तमोए मने संग्राममां जीत्यो हतो. तेनी पीडाथी मरीने खल्प आयुष्यथी, धणा नवोमां जटकीने, कोश्क पुण्यने योगे था वनना पर्वतमा ढुं वैताल थयो. पनी विनंगानथी इक्ष्वाकु वंशमां नूषण समान एवा तमोने अहीं थावेला जाणीने तमारो मार्ग रोकीने हुँ बेठो. गरुडना पदाघातथी जेम नागपाशो तेम तमारा धनुष्यना टंकारथी था पर्वतो फाटी गया; वली अगाउ हुँ को राक्षस, दानव, के मनुष्योथी पण जी. तायो न होतो. पण हवे तो तमारां बलने सहन करवाने हुं शक्तिवान नहीं होवाथी आपनाथी हुँ जीतायो बुं. अने हे स्वामी ! हवे हुँ श्रापनी आज्ञाथी अहीं चाकारनी पेठे रहीश; पनी राजाए पण तेने त्यांज स्थाप्यो. पडी राजाए क्रोध रहित थक्ष, स्नान करी, तथा प्रजुने पूजीने, अने जोजन करीने परिवार सहित त्यांश्री प्रयाण कयु. एवी रीते श्रखंड प्रयाणथी केटलेक दिवसे ते जरतजीनी पेठे शत्रुजय नजदीक पहोंच्यो. पडी त्यां आनंदपूरमां नरतनी पेठेज तेमणे जिनपूजा, तीर्थपूजा, संघपूजा, थादिक सर्व कार्य कर्यु. पठी ते शत्रुजयी, जरतकुंड, तथा बीजा कुंडोमांधी पण तीर्थोदक लेश्ने शत्रुजय पर्वतपर चड्यो; तथा वटे मुख्य शिखरपर चडीने, तेणे तेने त्रण प्रदक्षिणा दीधी. त्यां जरत चक्री. ए बनावेलां तेमनी कीर्तिरूपी वृदसरखां प्रज्जुनां प्रासादोने जोश्ने ते अत्यंत श्रानंद पाम्यो. हवे ते वखते अवधिज्ञानथी त्यां दंडवीर्य रा. जाने श्रावेला जाणीने इंश पण देवोनी साथे श्राव्यो; तथा तेणे मुख्य शिखरने, चैत्यने, रायणने, समवसरणने, तथा प्रजुनां पगलांने पूज्यां; पनी त्यां ते राजाए से कहेली विधिपूर्वक, दारिजरूपी वृदने बालवामां दावानलसरलुं संघपूजा, उत्सव आदिक शुज कार्य कयु. वली त्यां मुनिए कहेला ते गिरिना माहात्म्यने सांजलतां थकां तेणे त्रण अगर महोत्सव पूर्वक तीर्थोत्सव कर्यो. पड़ी त्यां प्रजुना मंदिरोने जीर्ण थएला जोश्ने ऊःखित थर, इंजनी अनुमतिथी तेऊनो तेणे उधार कयों. पनी तेणे रैवताचलपर पण उत्सवपूर्वक इंजनी अनुमतिथी मंदिरादिकोनो उ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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