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तृतीयःसर्गः डानां पर्वतोमां, तो को वखते चित्रशालामां, तो कोश् वखते स्त्रीउनी रासलीला जोवामां, तो कोइ को वखते किन्नरीउनां मनोहर गीतो सांजलवामां, तो कोई वखते इंजे हुकम करेली देवांगनाये करेलां नाटकमां तत्पर थश्ने पोतानां कर्मोनी निर्जरा करवा लाग्या. एवी रीते पूर्व ही. पमां, पूर्व क्षेत्रमा, पूर्व दिशामां अने पूर्वनी नगरीमां त्रेसठ लाख पूर्वोसुधि प्रजुए राज्य कर्यु. एक दहाडोप्रनु लजासहित होय नहीं जेम तेम आरामक्रीडा करता हता, ते वखते पोतानां कार्यमां तत्पर एवा लोकांतिक देवोये आवीने नमस्कार करी जय जय शब्द करीने प्रजुने कां के, हे जगवन् ! मुक्तिनो मार्ग देखाडो ? एम कहीने ते देवो गया बाद प्रजुये क्रीडा तजीने, पूर्वनां जिनोनी स्थितिने स्मरण करतां थकां, विरक्त थश्ने, मोटा पुत्रने न्याय युक्त तथा अमृत सरखां वचनोथी शांत करीने, राज्यपर बेसाड्यो; तथा बाहुबलि प्रमुख बीजा पुत्रोने पण यथोचित पोतपोतानां नामनां देशो वेहेंची थाप्या. एवी रीते राज्यनो नार तजीने प्रजु जगतने करज रहित करनारं वर्षिदान देवा लाग्या. वली इंजनी श्राशाथी धनदे, चोवटा श्रादिकमा रहेढुं नधणीथातुं धन प्रजुने पुर्यु. एवी रीते प्रनु हमेशां सनामां श्रावीने, याचकोने सुवर्ण, रत्न तथा धनादिक तेजेनी श्छा प्रमाणे श्रापवा लाग्या; अने तेम करीने दिनोदयथी मांडीने जोजन वखत सुधि प्रनु एक करोडने श्राप लाख सो. नैयानुं दान देता हता. एवी रीते प्रजुए एक वर्षमा त्रणसो अव्यासि क्रोड ने एंसी लाख सोनैयानुं दान थाप्यु; त्यारथी मांडीने सर्व प्राणीउँने हितकारी दानधर्म चाल्यो; केम के, जेम थरिहंत प्रनु प्रवर्ते , तेमज लोको पण प्रवर्ते बे. हवे चैत्रवदी बाग्मने दिवसे, चंड उत्तराषाढा नक्षत्रप्रते श्रावते ते, पाबले पहोरे, देवोथी पूजाएला प्रजुये, कब, महाकछादिक चार हजार राजाऊनी साथे शकटोद्यानमां दीक्षा लीधी.ते वखते संज्ञी प्राणीनां मननां पर्यायने सूचवनालं, प्रजुने चोथु मनःपर्यय झान थयु. जे प्रजु पूर्वे राग, द्वेष, मद,अजिमान श्रादिक शत्रुथी श्लिष्ट थएला हता, तथा तेजनो नाश करवा माटे ते पृथ्वीतल पर उपाय सहित ज्रमण करता हता, एवा प्रनु नाशिकाना श्रय नागपर बन्ने थांखो राखीने, तथा सघली इंजिउने वश करीने, जाणे मनमां कंक विचार कर
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