________________
पंचमःसर्गः
२७१ मुनिम्नां पण घातिको त्रुटी गयां; केम के, तप सर्वने सरखो . तपथी राज्य, स्वर्गनी संपदा, तथा मोदसुख मले में अने त्रणे लोक वश थाय . त्यां चैत्रसुदी पुनेमने दिवसे पुंडरिकजी महाराजने प्रथम के. वलज्ञान थयु; तथा पढ़ी ते मुनि ने थयु. पड़ी ते योगि क्षणवार चोथा शुक्लध्यानमा रहीने, सर्व कर्मो दीण थवाथी मोदे गया. ते वखते त्यां सर्व देवोए श्रावीने मरुदेवा मातानी पेठे, तेमनो निर्वाणमहोत्सव कों. जेम था श्रवसर्पिणीमां श्री षनदेव प्रजु पेहेला तीर्थंकर डे, तेम था पेहेबुं तीर्थ थयु; ज्यां एक मुनि पण सिक थाय , ते तीर्थ कहेवाय डे, त्यारे ज्यां श्राटला बधा मुनि सिझ थया, तेने तो मोटामां मोटुं तीर्थ जापवू. हवे श्रीशषनदेव प्रजु फागणसुदि थाउमने दिवसे था शत्रुजयपर श्राव्या, त्यारथी अष्टमीपर्व थयु. श्रापम, पाखी तथा पुर्णिमाने दिवसे प्राणीउँने शुजाशुन श्रायुनो बंध पडे बे. ते बन्ने पर्वने दिवसे आ तीर्थमा जक्तिथी अल्प श्रापेलु दान पण क्षेत्रमा रोपेला बीजनी पेठे बहु फल थापे . तप, दान तथा शीलादिकथी जिननक्तिनी पेठे आराधेवू अष्टमी पर्व प्रगट रीतेप्राणीऊना श्राठे कर्मोनो नाश करे . चैत्रसुदी पुनेमने दिवसे था तीर्थपर पुंडरिकजीमहाराज मोदे गया, त्यारथी चैत्रीपुनेमनुं पर्व थयु; तथा श्रापर्वतर्नु नाम पुंडरिकगिरि पड्युं जे माणससंघसहित चैत्री पुनेमने दिवसे या पुंडरिकगिरिपर रहेला पुंडरिक महाराजने पूजे , ते लोकोत्तर स्थितिवालो थाय . वली नंदीश्वरादिक छीपोमा रहेला शाश्वता प्रजुनां पूजनथी जे पुण्य थाय , तेथी पण श्रधिक पुण्य शत्रुजय गिरिनी चैत्रीनी यात्राथी थाय बे. वली बीजे वखते दान, शील, तप तथा पूजा प्रमुखथी जे पुण्य थाय बे, तेथी क्रोडगणुं पुण्य चैत्री पुनेमने दिवसे अहीं शत्रुजयपर जिनपूजनथी थाय बे. चारित्र, चंप्रन प्रजु, चैत्री पुनेम, शत्रुजय पर्वत, तथा शत्रुजयी नदी पुएय विना मली शकतां नथी. जे माणस था तीर्थपर चैत्री पुनेमने दिवसे जिनालयमां शांतिस्नात्र, ध्वजारोपण, तथा श्रारति करे ले, ते पोतानां निर्मल नवोने मेलवे . वली बीजी जगोये पण चैत्री पुनेमने दिवसे संघपूजन करवाथी माणस ज्यारे देवनां सुखोने मेलवे बे, त्यारे आ विमलाचलपरनी तो वातज शी करवी ? चैत्री पुनेमने दिवसे वस्त्र, अन्न अने
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org