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________________ १७‍ शत्रुंजय माहात्म्य. पाणीयादिकथी प्रतिलाभेला सुनि चक्रीनी ने इंद्रनी पदवी श्रापीने, बेवढे मोक्ष थापे बे. चैत्री पर्व सर्व पर्वोमां उत्तम बेः तथा सर्व पुण्योने वधारनारुं बे; तेनुं पुंडरिक गिरिपर आराधन करवाथी ते उत्कृष्ट फलने देनारुं बे. वली चैत्री पुनेमनी अाइ श्रष्ट सिद्धिउने पनारी ठे वली सघला देवो पण या चैत्री पर्वने नंदीश्वर द्वीपमां जइ जिनपूजादिकथी जति पूर्वक राधे बे. माटे धर्ममां प्रीतिवाला माणसे प्रमादनां हेतुरूप कलह, क्रीडा तथा अनर्थदंडादिक तजीने चैत्री पर्वने नजवुं वली अक्षय सिद्धिमाटे चैत्री पुनेमने दिवसे प्रजावना, जिन, चैत्य, सिद्धांत, गुरु ने मुनि प्रते नक्ति करवी. हवे श्री देव प्रभु विहार करी पृथ्वीने पावन करता थका वि नीता नगरीनी पासे रहेला सिद्धार्थ नामनां उद्यानमां पहोंच्या. त्यां इंद्रादिक देवो प्रजुनी तिथी आकाशमांधी उतरीने श्राव्या; तथा तेए त्यां योजन सुधिनी भूमिमां त्रण गढोवालुं प्रभुनुं समवसरण रच्युं. त्यारे उद्यानपालके तेनी जरत महाराजने वधामणी श्रापी; त्यारे नरतजीए पण तेने हर्षथी बार कोड सोनामोहोरोनुं इनाम प्राप्युं पढ़ी पाला, घोडा, हाथी, रथो, पुत्रो, सामंतो, सेनापतिर्ज, राजा, राणी तथा माणसोथी वीटाएला, तथा साहुकारो, सार्थवाहो, चारणो, बंदि, गांधर्वो ने सघलां लश्करोथी सेवाएला जरत महाराज थकाशने त्रमय करता थका, दिशाउने चामरो तथा धजार्ज सहित करता थका, अने सैन्योथी पृथ्वीने पूरता थका त्यां चालवा लाग्या. पढी त्यां पूर्व तरफनां द्वारथी समवसरणमां घ्यावीने, तथा प्रजुने प्रदक्षिणा दे इने चक्री नीचे प्रमाणे तेमनी स्तुति करवा लाग्या के हे स्वामी ! हे जिनाधीश ! हे करुणासमुद्र ! हे संसार रूपी वनमांथी तारनारा ! तथा दे वत्सल प्रभु ! तमो जय पामो ? घणां कालथी उत्कंठा करता एवा मने जे पनुं दर्शन युं बे, छाने तेथी मने एम लागे बे के, श्राजे मारुं पूर्वनुं करेलुं शुभ कर्म फलीभूत थयुं वली हे प्रभु! आप वीतरागनां चित्तमां हुं वसुं बुं, एम केम कहेवाय ? पण याप मारा चित्तमां वसी रह्या बो, माटे हवे मारे बीजा कोइनी पण जरुर नथी. सुखमां, दुःखमां, नगरमां, अरण्यमां, जलमां, श्रग्निमां, रणसंग्राममां, दिवसमां ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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