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________________ पंचमःसर्गः १७३ रात्रिमा पण मारा चित्तमां आपना चरणोनुं ध्यान रहेजो ? एवी रीते प्रजुनी स्तुति करीने तथा पंचांगथी प्रजुने नमीने चक्री इंजनां नाना नाश्नी पेठे तेमनी पाउल बेग. त्यारे प्रनु पण सर्व नाषारूप, तथा एक योजनसुधि संचलाय एवी वाणीथी देशना देवा लाग्या के, सुपात्रे दान, श्री संघनी पूजा, उत्तम प्रजावना, महोत्सव पूर्वक तीर्थयात्रा, सिद्धांतोनुं लखाव, स्वामीवात्सल्य, गुरु तथा अगमोनो महोत्सव, समता, श्रने शुजध्यान एटलां पूण्यनां स्थानको . ते देशनाने अंते जरत महाराजा प्रजुने मस्तकथी नमस्कार करीने, तथा पोतानां शब्दोथी समुज्ने पण ललित करता थका पुरवा लाग्या के, हे खामी ! श्रापे संघाधिपनां पदनुं बहु वर्णन कर्यु बे; ते शी रीते उत्तम प्रकारे प्राप्त कराय ? तथा तेथी झुं फल मले ? त्यारे श्री युगादीश प्रजुए कह्यु के, दे राजन् ! जेवू तीर्थंकर पद , तेवुज संघाधिपर्नु पद . वली बती संपदाए पण पुंडरिकगिरिनी पेठे जाग्यविना संघाधिपतिनुं पद मली शकतुं नथी. इंजपद तथा चक्रीपद पण प्रशंसवा लायक ; श्रने ते बन्नेश्री पण संधाधिपर्नु पद पुण्योत्पादक होवाथी वधारे प्रशंसनीक . संघपति उत्तम दर्शनशुकि पामीने फुर्लन तीर्थंकरनामगोत्रने पण मेलवे डे. संघ तो अरिहंतोने पण हमेशां माननीक तथा पूजनीक बे; अने तेवा संघनो जे अधिपति थाय, ते तो लोकोत्तर स्थितिवालो थाय. चतुविध संघ सहित, शुज नाव सहित महोत्सव पूर्वक जिनबिंबने रथमां स्थापन करीने, पंचविध दान देतां थकां, दीनोनो उद्धार करता थकां, नगर नगर प्रते जिनमंदिरोपर ध्वजारोपण करतां थकां, शत्रुजयपर, गिरनारपर, वैनार पर्वतपर, अष्टापद पर्वतपर, तथा सम्मेतशिखरपर शुभ सम्यक्त्वश्री देवपूजन करतां थकां, तथा गुरुनी श्राझा प्रमाणे ते सर्व तीर्थोमां अथवा एक तीर्थमां पण इंशोत्सवादिक कार्य करतां थकां संघपति थवाय बे. वली हमेशां पूजनिक एवा गुरु पुण्यकार्यमाटे जे धाराधाय , ते सुवर्णमां सुगंध मलवा बरोबर बे. वली उत्तम यात्रानुं फल श्वनार माणसे, मिथ्यात्विऊनो संग, तथा तेनां वाक्योमा आदर करवो नहीं. वली परतीर्थनी निंदा के स्तुति करवी नहीं; पण त्रिकरण शुद्धिथी जीवित पर्यंत सम्यक्त्व पालवू. वली संघयात्रा करनारे साधु तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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